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ग़ज़ल : - बनारस के घाट पर

ग़ज़ल : - बनारस के घाट पर

 

कुछ था ज़रूर खास बनारस के घाट पर ,

धुंधला दिखा लिबास बनारस के घाट पर |

 

घर था हज़ार कोस मगर फ़िक्र साथ थी ,

मन हो गया उदास बनारस के घाट पर |

 

संज्ञा क्रिया की संधि में विचलित हुआ ये मन

गढ़ने लगा समास बनारस के…

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Added by Abhinav Arun on February 1, 2011 at 9:00am — 13 Comments

ग़ज़ल :- डूब रहे से नाव की बातें

ग़ज़ल :- डूब रहे से नाव की बातें

डूब रहे से नाव की बातें ,

थोथी है बदलाव की बातें |

 

राजनीति के दुर्दिन आये ,

सब करते अलगाव की बातें |

 …

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Added by Abhinav Arun on January 30, 2011 at 10:30pm — 3 Comments

कविता :- परिंदों दे दो

परिंदों दे दो

अपने दाने दाने

पाने के संघर्ष के पल

हम मानवों…

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Added by Abhinav Arun on January 30, 2011 at 10:00pm — 2 Comments

स्वप्न और यथार्थ...

थाम के मैं हाथ तेरा चल पड़ी सपनों के नगर ..

एक अनजाना सा घर, एक  अनजानी डगर ..

ठान के ,हूँ साथ तेरे,कितना भी हो कठिन ये सफ़र..

पार भव कर ही लेंगे साथ मेरे तुम हो अगर..

 

छोड़ना मत हाथ मेरा तुम कभी वो हमसफ़र..

प्यार से सजाएंगे हम अपना ये प्रेम नगर..

करना नज़रंदाज़ मेरी गलती हो कोई अगर..

कोशिश तो बस ये मेरी, नेह में न हो कोई…

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Added by Lata R.Ojha on January 30, 2011 at 7:30pm — 8 Comments

वो स्थिर ...

कुछ भी तो स्थिर नहीं..

ना घूमती धरा…
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Added by Lata R.Ojha on January 30, 2011 at 12:30am — 5 Comments

खुद को सौंपा अब मैंने 'उनको '..



ओस की बूँद सी आँखों में सिमट आयी है...

फिर भी  क्यों लब पे हंसी छाई है..

सांझ का धुंधलका मेरे आसपास सिमटा है..

जैसे मेरे ज़ेहन की परछाई है..

 

क्यों मिले थे तुम ? क्यों पास हम आये थे?

क्यों अनजान बन के ख्वाब सजाये थे?

एक पत्थर से वो ख़्वाबों का घर बिखरा है..

जो हम अनजाने थे तो पहचाने से क्यों थे ?…

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Added by Lata R.Ojha on January 28, 2011 at 11:00pm — 3 Comments

बह्रे हज़ज़ मुसम्मन सालिम

ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के सम्मानित सदस्यों

आप सभी को प्रणाम



     जैसा की पहले ही अवगत कराया जा चुका है की "बह्र पहचानिए" कोई पहेली नहीं है, यह तो एक चर्चा है, इल्मे अरूज और आम आदमी की दुनिया में बरसों से चली आ रही खाई को पाटने की, इसी के तहत हमने पिछली बार आप सबको एक गीत सुनवाया था और…

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Added by RP&VK on January 28, 2011 at 8:30pm — No Comments

इतना कीजिए...

 

सफ़र को हसीं - सा इक मोड़ दीजिए ,
मंजिलें दो दिलों की जोड़ दीजिए |
 
ऐ खुदा ! करने ग़ैरों की भलाई ,
दुनियावालों में कभी होड़ दीजिए |  
 
भरे जो कड़वाहट कभी यूँ दिल में ,…
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Added by Veerendra Jain on January 28, 2011 at 11:45am — 12 Comments

स्मृति में..

 

पिताजी की डायरी से...

स्मृति में..



मेरे नगमे तुम्हारे लबो पर,

अचानक ही आते रहेंगें .

एक गुजरी हुई जिंदगी में ,

फिरसे वापस बुलाते रहेगें.



याद आयेगा तुमको सरोवर

और पीपल की सुन्दर ये छाया .

ये बिल्डिंग खड़ी याद होगी ,

जिसको यादों में हमने बसाया .

बरबस ये कहेंगे कहानी ,

और हम…

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Added by R N Tiwari on January 28, 2011 at 10:00am — 2 Comments

एक थैली बूंदी...

एक थैली बूंदी... 

              - शमशाद इलाही अंसारी "शम्स"

 

पता नहीं मुझे आज

एक थैली बूंदी की याद

इतनी क्यों आ रही है..?

आज के दिन..

जब स्कूल में

बंटा करती थी..

तमाम उबाऊ क्रिया कलापों 

और न्यूनतम स्तर के

पाखण्डों के बाद

बस प्रतीक्षा रहती थी

कब मिलेंगी

वो, गर्म गर्म बूंदियों की

रस भरी थैलियां

जो, न जाने कब और कैसे

जुड़ गयी थी

गणतंत्र दिवस…

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Added by Shamshad Elahee Ansari "Shams" on January 26, 2011 at 7:09pm — 9 Comments

कविता : - केवल तूने ही नहीं खाईं गोलियाँ ..

कविता : -केवल तूने ही नहीं खाईं गोलियाँ ..

बापू केवल…

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Added by Abhinav Arun on January 26, 2011 at 7:00pm — 10 Comments

बह्र पहचानिये-1

ओ. बी. ओ. परिवार के सम्मानित सदस्यों को सहर्ष सूचित किया जाता है की इस ब्लॉग के जरिये बह्र को सीखने समझने का नव प्रयास किया जा रहा है| इस ब्लॉग के अंतर्गत सप्ताह के प्रत्येक रविवार को प्रातः 08 बजे एक गीत के बोल अथवा गज़ल दी जायेगी, उपलब्ध हुआ तो वीडियो भी लगाया जायेगा

आपको उस गीत अथवा गज़ल की बह्र को पहचानना है और कमेन्ट करना है अगर हो सके तो और जानकारी भी देनी है, यदि उसी बहर पर कोई दूसरा गीत/ग़ज़ल मिले तो वह भी बता सकते है। पाठक एक…

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Added by RP&VK on January 26, 2011 at 5:00pm — 18 Comments

नेता जी.

 

 

 

 

पिताजी की डायरी से.....



नेता जी.


राजनीती कहवा से सिखलीं, नेता भयिलिन कहिया .

हम  ता   देखली  कोल्हुवाड़े  में,चाटत  रहलीं महिया.  

त्यागी तपस्वी बनी नाही,कैसे चली यी गाड़ी.

काहें जाएब पटना…
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Added by R N Tiwari on January 26, 2011 at 12:13pm — 3 Comments

आज देखा हमने तिरंगे का बस दो रंग अपने चेहरे पर !

क्यों संसद खामोश और ट्विट्टर चिल्ला रहा ,


क्या बदनसीबी थी हमारी,
हमारा ही रोकेट, हमारे ही घर को जला गया कहीं !


100 मेडल्स जीते हमने इस बार पर,
100 करोड़ की कीमत चूका गया कोई !


ये कैसी विकास गंगा बहा दी अपने देश मे ,
अपने ही लोगो का खून सूखा गया कोई !


ये कैसी छाई है…
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Added by Sujit Kumar Lucky on January 26, 2011 at 9:30am — 6 Comments

जो जितना झुका, उतना उठा अपने वतन में

हर रुख से चली यूं तो हवा अपने वतन में

सावन कभी पतझड़ न बना अपने वतन में

 

साज़िश तो बहुत रचते रहे अम्न के दुश्मन...

रिश्तों पे रही महरे-खुदा अपने वतन में

 

हर हीर के दिल में है बसी झांसी की रानी

हर रांझे में बिस्मिल है छिपा अपने वतन में

 …

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Added by shahid mirza shahid on January 26, 2011 at 4:30am — 7 Comments

आप सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ..

विश्व शक्ति बने और  लहराता रहे ..

गीत अपनी तरक्की के गाता रहे..
कोई छू न सके वो बुलंदी मिले..
भूल शिकवे सभी साथ मिल के चलें..
आंच आये नहीं आन पे अब…
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Added by Lata R.Ojha on January 25, 2011 at 11:30pm — 9 Comments

पिताजी की डायरी से.......

पिताजी की डायरी से.......



मनुष्य में कुछ भावनाएं स्थाई रूप से रहती हैं. उन भावनाओं में परिवर्तन धीरे धीरे आता है.एक लम्बे समय के बाद उसके स्थान पर दूसरी भावना आती है.प्राचीन काल में भारतीय भावना यही रहती थी की ईश्वर को प्रसन्न रखना है. जिसके परिणाम स्वरुप वह… Continue

Added by R N Tiwari on January 25, 2011 at 9:25pm — 1 Comment

कविता :- कहाँ गणतंत्र

कविता :- कहाँ गणतंत्र

 

फेल हुए सब मंत्र…

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Added by Abhinav Arun on January 25, 2011 at 3:51pm — 10 Comments

मोती बीए: भोजपुरी कवि (1919-2009)







मोती बीए: भोजपुरी कवि (1919-2009)…

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Added by R N Tiwari on January 25, 2011 at 11:33am — 1 Comment

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