आशीष यादव's Posts - Open Books Online2024-03-28T22:28:45Zआशीष यादवhttp://openbooks.ning.com/profile/Ashishyadavhttp://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2991268086?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1http://openbooks.ning.com/profiles/blog/feed?user=3twfteota4whi&xn_auth=noगज़ल : पत्थरों पर चल रहा हूंtag:openbooks.ning.com,2023-01-19:5170231:BlogPost:10968452023-01-19T18:26:52.000Zआशीष यादवhttp://openbooks.ning.com/profile/Ashishyadav
<p>2122 2122</p>
<p></p>
<p>पत्थरों पर चल रहा हूँ</p>
<p>रास्तों को छल रहा हूँ 1</p>
<p></p>
<p>लग रहा हूँ आज मीठा</p>
<p>सब्र का मैं फल रहा हूँ 2</p>
<p></p>
<p>कर दिया उनको पवित्तर </p>
<p>यार गंगा जल रहा हूँ 3 </p>
<p></p>
<p>अब नहीं ख्वाहिश किसी की</p>
<p>हाँ कभी बेकल रहा हूँ 4</p>
<p></p>
<p>आज इतनी गाड़ियाँ है</p>
<p>मैं कभी पैदल रहा हूँ 5</p>
<p></p>
<p>याद आऊँ, मुस्कुरा दो </p>
<p>वह तुम्हारा कल रहा हूँ 6</p>
<p></p>
<p>मैं डुबोया हूँ खुद ही को</p>
<p>स्वयं का दलदल रहा हूँ…</p>
<p>2122 2122</p>
<p></p>
<p>पत्थरों पर चल रहा हूँ</p>
<p>रास्तों को छल रहा हूँ 1</p>
<p></p>
<p>लग रहा हूँ आज मीठा</p>
<p>सब्र का मैं फल रहा हूँ 2</p>
<p></p>
<p>कर दिया उनको पवित्तर </p>
<p>यार गंगा जल रहा हूँ 3 </p>
<p></p>
<p>अब नहीं ख्वाहिश किसी की</p>
<p>हाँ कभी बेकल रहा हूँ 4</p>
<p></p>
<p>आज इतनी गाड़ियाँ है</p>
<p>मैं कभी पैदल रहा हूँ 5</p>
<p></p>
<p>याद आऊँ, मुस्कुरा दो </p>
<p>वह तुम्हारा कल रहा हूँ 6</p>
<p></p>
<p>मैं डुबोया हूँ खुद ही को</p>
<p>स्वयं का दलदल रहा हूँ 7</p>
<p></p>
<p>चल रहा हूँ चाल अपनी</p>
<p>दुश्मनों को खल रहा हूँ 8 </p>
<p></p>
<p>कर रहे परदा मुझी से </p>
<p>वो कि जिनका कल रहा हूँ 9 </p>
<p></p>
<p>योगचारी हूँ, कभी पर</p>
<p>हुस्न पर पागल रहा हूँ 10 </p>
<p></p>
<p>हो गया खुद बेसहारा</p>
<p>जो कभी संबल रहा हूँ 11 </p>
<p></p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित</p>
<p></p>ऋतु शीत रवानी में अपनेtag:openbooks.ning.com,2023-01-19:5170231:BlogPost:10967462023-01-19T05:40:38.000Zआशीष यादवhttp://openbooks.ning.com/profile/Ashishyadav
<p>ऋतु शीत रवानी में अपने</p>
<p>ऊर्ध्वगी जवानी में अपने </p>
<p>चहुँओर सर्द को बढ़ा रही</p>
<p>जीवन वह्निः तक बुला रही</p>
<p>थी जगह जगह जल रही आग</p>
<p>प्रमुदित होकर जन रहे ताप </p>
<p>कौड़े में जैसे उठी ज्वाल</p>
<p>मन मोह लिया इक अधर लाल </p>
<p>रति जैसी जिसकी छाया थी</p>
<p>वह थी समक्ष या माया थी</p>
<p>पहने थे वसन तरीके से </p>
<p>सब सज्जित स्वच्छ सलीके से </p>
<p>कुंतल को उसने झटक दिया </p>
<p>मनसिज प्रसून पर पटक दिया</p>
<p>कितने उद्गार उठे मन में </p>
<p>ताड़ित से कौंध रहे तन…</p>
<p>ऋतु शीत रवानी में अपने</p>
<p>ऊर्ध्वगी जवानी में अपने </p>
<p>चहुँओर सर्द को बढ़ा रही</p>
<p>जीवन वह्निः तक बुला रही</p>
<p>थी जगह जगह जल रही आग</p>
<p>प्रमुदित होकर जन रहे ताप </p>
<p>कौड़े में जैसे उठी ज्वाल</p>
<p>मन मोह लिया इक अधर लाल </p>
<p>रति जैसी जिसकी छाया थी</p>
<p>वह थी समक्ष या माया थी</p>
<p>पहने थे वसन तरीके से </p>
<p>सब सज्जित स्वच्छ सलीके से </p>
<p>कुंतल को उसने झटक दिया </p>
<p>मनसिज प्रसून पर पटक दिया</p>
<p>कितने उद्गार उठे मन में </p>
<p>ताड़ित से कौंध रहे तन में</p>
<p>मन हुआ अनोखा गीत लिखूँ</p>
<p>मै एक दहकती शीत लिखूँ </p>
<p></p>
<p>पर सोच रहा था यदिग्गीत </p>
<p>कविता लेखन है कर्म मेरा</p>
<p>तो क्या जिस पर लिख रहा </p>
<p>स्वीकृति लेना उससे है धर्म मेरा? </p>
<p>इस पर सोचूँगा और कभी</p>
<p>हे नाथ करूँगा गौर कभी</p>
<p>मैं अभी आपसे बस उसका</p>
<p>व्यवहार जानने आया हूँ</p>
<p>लिख सकूँ गीत उसके ऊपर </p>
<p>अधिकार माँगने आया हूँ </p>
<p></p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित </p>
<p></p>तस्वीर: एक मोहक चित्रtag:openbooks.ning.com,2023-01-19:5170231:BlogPost:10967442023-01-19T01:02:51.000Zआशीष यादवhttp://openbooks.ning.com/profile/Ashishyadav
<p>2122 2122 2122 2122</p>
<p></p>
<p>क्या पता उस लोक में दिखती हैं कैसी अप्सराएँ</p>
<p>किस तरह चलतीं मचल कर किस तरह से भाव खाएँ</p>
<p>कौन सा जादू लिए फिरतीं सभी पर मार देतीं</p>
<p>किस तरह पुचकारती हैं किस तरह से प्यार देतीं </p>
<p>क्या महावर और मेहँदी आँख में काजल अनोखा</p>
<p>केशिनी मृगचक्षुणी हैं सत्य, या उपमान धोखा </p>
<p>किस तरह श्रृंगार रचती किस तरह गेशू सजाएँ</p>
<p>क्या पता कितनी सही है आमजन की कल्पनाएँ</p>
<p></p>
<p>आज देखी थी परी जो हाल कुछ उसका सुनाऊँ</p>
<p>देखता ही रह गया…</p>
<p>2122 2122 2122 2122</p>
<p></p>
<p>क्या पता उस लोक में दिखती हैं कैसी अप्सराएँ</p>
<p>किस तरह चलतीं मचल कर किस तरह से भाव खाएँ</p>
<p>कौन सा जादू लिए फिरतीं सभी पर मार देतीं</p>
<p>किस तरह पुचकारती हैं किस तरह से प्यार देतीं </p>
<p>क्या महावर और मेहँदी आँख में काजल अनोखा</p>
<p>केशिनी मृगचक्षुणी हैं सत्य, या उपमान धोखा </p>
<p>किस तरह श्रृंगार रचती किस तरह गेशू सजाएँ</p>
<p>क्या पता कितनी सही है आमजन की कल्पनाएँ</p>
<p></p>
<p>आज देखी थी परी जो हाल कुछ उसका सुनाऊँ</p>
<p>देखता ही रह गया कितना करूँ वर्णन बताऊँ</p>
<p>मोहिनी सूरत मनोहर ललित मंजुल रम्य काया </p>
<p>उदर समतल उरस उन्नत नैन में कौतुक समाया </p>
<p>रंग होठों का निकलते सूर्य का लालित्य लेकर </p>
<p>यूँ त्वचा जैसे मिले हों दूध, कॉफी और केशर </p>
<p>केश थे इतने घने लंबे स्वयं उपमान जैसे </p>
<p>यूँ कहें की स्वर्ग की परियों के भी अरमान जैसे </p>
<p></p>
<p>दाहिना था पाँव सीधा और बाएँ को मुड़ाकर</p>
<p>इस तरह कुछ वह खड़ी थी आलमारी से टिकाकर </p>
<p>शर्ट थी काली बटन थे आठ जो उसमे लगे थे</p>
<p>दो बटन ऊपर खुले थे और दो नीचे खुले थे </p>
<p>दाहिना हिस्सा सुनीले जींस के भीतर पड़ा था था </p>
<p>जींस नीला यूँ कि जैसे नाभि तक सट कर चढ़ा था </p>
<p>कुहनियो के ठीक नीचे शर्ट की मोहड़ी चढ़ी थी</p>
<p>और बाएँ हाथ में क्या जँच रही काली घड़ी थी </p>
<p></p>
<p>बीच वाली अंगुली में एक सोने की अँगूठी </p>
<p>जानु तक लटकी हुई क्या लग रही थी वह अनूठी </p>
<p>आँख पर गॉगल्स काले फ्रेम था जिनका सुनहरा </p>
<p>मुख प्रदीपित यूँ कि जिनपर स्वयं आ दिनमान ठहरा </p>
<p>था यही शृंगार सीमित किन्तु अद्भुत लग रही थी</p>
<p>रूप से वह स्वर्ग अप्सरियों को मानो ठग रही थी </p>
<p>केशिनी के एक मोहक चित्र ने मुझको लुभाया </p>
<p>यह रहा वृत्तांत जो देखा वही मैने सुनाया </p>
<p></p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित </p>
<p></p>
<p></p>एक दिन स्वर्ग में (आशीष यादव)tag:openbooks.ning.com,2022-03-25:5170231:BlogPost:10813782022-03-25T08:00:00.000Zआशीष यादवhttp://openbooks.ning.com/profile/Ashishyadav
<p>एक दिन स्वर्ग में घूमते-घूमते <br></br> एक जगह रुक्मिणी राधिका से मिली <br></br> एक दिन स्वर्ग में……………</p>
<p></p>
<p>सैकड़ों प्रश्न मन में समेटे हुए <br></br> श्याम की प्रीत तन पर लपेटे हुए <br></br> जोड़कर हाथ राधा के सम्मुख वहाँ <br></br> एक रानी सहज भावना से मिली <br></br> एक दिन स्वर्ग में …………….</p>
<p></p>
<p>देखकर राधिका झट गले लग गई <br></br> साँवरे की महक से सुगंधित हुई <br></br> प्रीत की प्रीत में घोलकर मन, बदन <br></br> साधना प्रीत की साधना से मिली <br></br> एक दिन स्वर्ग में……………</p>
<p></p>
<p>भेँटना हो गया बात होने…</p>
<p>एक दिन स्वर्ग में घूमते-घूमते <br/> एक जगह रुक्मिणी राधिका से मिली <br/> एक दिन स्वर्ग में……………</p>
<p></p>
<p>सैकड़ों प्रश्न मन में समेटे हुए <br/> श्याम की प्रीत तन पर लपेटे हुए <br/> जोड़कर हाथ राधा के सम्मुख वहाँ <br/> एक रानी सहज भावना से मिली <br/> एक दिन स्वर्ग में …………….</p>
<p></p>
<p>देखकर राधिका झट गले लग गई <br/> साँवरे की महक से सुगंधित हुई <br/> प्रीत की प्रीत में घोलकर मन, बदन <br/> साधना प्रीत की साधना से मिली <br/> एक दिन स्वर्ग में……………</p>
<p></p>
<p>भेँटना हो गया बात होने लगीं <br/> एक दूजे की बातों में खोने लगीं <br/> जो जमाने से दोनों के मन में दबी <br/> थी कसक वो निठुर वेदना से मिली <br/> एक दिन स्वर्ग में……………</p>
<p></p>
<p>रुक्मणी ने कहा, क्या कमी हो गई <br/> तन-बदन सौंपकर श्याम की हो गई <br/> रुक्मिणी-श्याम क्यों ना जमाना कहे <br/> क्यों मेरी साधना वंचना से मिली <br/> एक दिन स्वर्ग में……………</p>
<p></p>
<p>राधिका ने कहा श्याम को भा गई <br/> सौंपकर तन-बदन श्याम को पा गई <br/> तुम गुजारी पिया संग हँस-खेल कर <br/> मैं विरह की सखी इंतहा से मिली <br/> एक दिन स्वर्ग में……………</p>
<p></p>
<p>तुम विवाहित हुई श्याम के संग में <br/> मैं समाहित हुई श्याम के रंग में <br/> तुमने पाया सखी देह का साथ, मै <br/> नेह की रँग भरी अल्पना से मिली <br/> एक दिन स्वर्ग में……………</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
<p></p>
<p>आशीष यादव</p>गणतंत्र दिवस गीतtag:openbooks.ning.com,2022-01-25:5170231:BlogPost:10777802022-01-25T17:45:02.000Zआशीष यादवhttp://openbooks.ning.com/profile/Ashishyadav
<p>जय भारत के लोगों की </p>
<p>जय भारत देश महान की </p>
<p>जय जय जय गणतंत्र दिवस की</p>
<p>जय जय संविधान की</p>
<p>जय जय जय जय हिंद</p>
<p></p>
<p>अपनी धुनें बनाई हमने अपना राग बनाया था </p>
<p>जिसमें समता, न्याय, आजादी का संकल्प समाया था </p>
<p>एक अखंडित राष्ट्र के लिए गरिमा भाईचारा से </p>
<p>हमने अपने गीत लिखे थे हमने खुद को गाया था </p>
<p>जय लिक्खी संप्रभुता की जय लोकतंत्र कल्याण की </p>
<p>जय जय जय गणतंत्र दिवस की</p>
<p>जय जय संविधान की</p>
<p>जय जय जय जय हिंद </p>
<p></p>
<p>सूत कातते…</p>
<p>जय भारत के लोगों की </p>
<p>जय भारत देश महान की </p>
<p>जय जय जय गणतंत्र दिवस की</p>
<p>जय जय संविधान की</p>
<p>जय जय जय जय हिंद</p>
<p></p>
<p>अपनी धुनें बनाई हमने अपना राग बनाया था </p>
<p>जिसमें समता, न्याय, आजादी का संकल्प समाया था </p>
<p>एक अखंडित राष्ट्र के लिए गरिमा भाईचारा से </p>
<p>हमने अपने गीत लिखे थे हमने खुद को गाया था </p>
<p>जय लिक्खी संप्रभुता की जय लोकतंत्र कल्याण की </p>
<p>जय जय जय गणतंत्र दिवस की</p>
<p>जय जय संविधान की</p>
<p>जय जय जय जय हिंद </p>
<p></p>
<p>सूत कातते वंदे मातरम जन-गण-मन ने गाया था</p>
<p>नेक विचारों के करघे ने सुंदर वस्त्र बनाया था </p>
<p>हीरों जैसे अनुच्छेद मोती सी अनुसूचियाँ जड़ित </p>
<p>स्वतंत्रता दुल्हन को हमने संविधान पहनाया था </p>
<p>चारों तरफ रोशनी फैली संविधान परिधान की </p>
<p>जय जय जय गणतंत्र दिवस की</p>
<p>जय जय संविधान की</p>
<p>जय जय जय जय हिंद</p>
<p></p>
<p>आशीष आशीष</p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>मैं पुलिस हूँ (पुलिस गीत) : आशीष यादवtag:openbooks.ning.com,2022-01-05:5170231:BlogPost:10763702022-01-05T03:53:55.000Zआशीष यादवhttp://openbooks.ning.com/profile/Ashishyadav
<p>मैं पुलिस हूँ </p>
<p>मैं पुलिस हूँ, मित्र हूँ </p>
<p>मैं आपका ही प्यार हूँ </p>
<p>आपकी खातिर खड़ा हूँ</p>
<p>आपका अधिकार हूँ </p>
<p>मैं पुलिस हूँ </p>
<p></p>
<p></p>
<p>शपथ सेवा की उठाया हूँ करूँगा आमरण </p>
<p>धीर साहस के लिए मैंने किया वर्दी-वरण </p>
<p>जुल्म-अत्याचार से चाहे प्रकृति की मार से</p>
<p>रात-दिन रक्षा करूँगा आपका बन आवरण </p>
<p></p>
<p>मैं अहर्निश कमर कसकर </p>
<p>वेदना में भी विहँसकर </p>
<p>कर्म को तैयार हूँ</p>
<p>मैं पुलिस हूँ </p>
<p>मैं पुलिस…</p>
<p>मैं पुलिस हूँ </p>
<p>मैं पुलिस हूँ, मित्र हूँ </p>
<p>मैं आपका ही प्यार हूँ </p>
<p>आपकी खातिर खड़ा हूँ</p>
<p>आपका अधिकार हूँ </p>
<p>मैं पुलिस हूँ </p>
<p></p>
<p></p>
<p>शपथ सेवा की उठाया हूँ करूँगा आमरण </p>
<p>धीर साहस के लिए मैंने किया वर्दी-वरण </p>
<p>जुल्म-अत्याचार से चाहे प्रकृति की मार से</p>
<p>रात-दिन रक्षा करूँगा आपका बन आवरण </p>
<p></p>
<p>मैं अहर्निश कमर कसकर </p>
<p>वेदना में भी विहँसकर </p>
<p>कर्म को तैयार हूँ</p>
<p>मैं पुलिस हूँ </p>
<p>मैं पुलिस हूँ, </p>
<p></p>
<p></p>
<p>आपकी होली दीवाली आपके रमज़ान में </p>
<p>आपके झाँकी-जुलुस में आपके अभिमान में </p>
<p>धूप हो बरसात हो चाहे कि झंझावात हो </p>
<p>शान से रहता सड़क पर देश के सम्मान में </p>
<p></p>
<p>क्या मेरी होली-दीवाली </p>
<p>कौन रातें ईद वाली </p>
<p>मैं स्वयं त्यौहार हूँ </p>
<p>मैं पुलिस हूँ </p>
<p>मैं पुलिस हूँ, </p>
<p></p>
<p></p>
<p>देश के सीने पे जब दुश्मन चलाया गोलियाँ </p>
<p>या महामारी ने ही विकरालता धारण किया </p>
<p>त्रासदी की जंग में, खाकी नए ही ढंग में </p>
<p>जान की बाजी लगा दी हौसला पैदा किया </p>
<p></p>
<p>कौन सी गोली-कटारी </p>
<p>कौन मारेगी बीमारी </p>
<p>मैं स्वयं हथियार हूँ </p>
<p>मैं पुलिस हूँ </p>
<p>मैं पुलिस हूँ </p>
<p></p>
<p>मैं पुलिस हूँ, मित्र हूँ </p>
<p>मैं आपका ही प्यार हूँ </p>
<p>आपकी खातिर खड़ा हूँ</p>
<p>आपका अधिकार हूँ </p>
<p>मैं पुलिस हूँ </p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित </p>
<p></p>
<p>आशीष यादव</p>
<p></p>
<p>आशीष यादव</p>नव वर्ष पर 5 दोहेtag:openbooks.ning.com,2022-01-01:5170231:BlogPost:10765082022-01-01T03:35:18.000Zआशीष यादवhttp://openbooks.ning.com/profile/Ashishyadav
<p>सबसे पहले आपको नाथ नवाता शीश<br/>यही याचना, आपका मिलता रहे आशीष</p>
<p></p>
<p>जीवन मे उत्थान दे मंगलमय नव-वर्ष<br/>नए साल में छूइए नए-नए उत्कर्ष</p>
<p></p>
<p>शुभकामना स्वीकारिये मेरी भी श्रीमान <br/>शुक्ल पक्ष के चाँद सी बढ़े आपकी शान</p>
<p></p>
<p>जैसे इस ब्रम्हांड का नही आदि ना अंत <br/>वैसे ही श्रीमान को खुशियाँ मिलें अनंत</p>
<p></p>
<p>धन-सम्पत से युक्त हों लोभ-मोह से हीन<br/>उनको भी उद्धारिये जो हैं दीन-मलीन </p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
<p><br/>आशीष यादव</p>
<p>सबसे पहले आपको नाथ नवाता शीश<br/>यही याचना, आपका मिलता रहे आशीष</p>
<p></p>
<p>जीवन मे उत्थान दे मंगलमय नव-वर्ष<br/>नए साल में छूइए नए-नए उत्कर्ष</p>
<p></p>
<p>शुभकामना स्वीकारिये मेरी भी श्रीमान <br/>शुक्ल पक्ष के चाँद सी बढ़े आपकी शान</p>
<p></p>
<p>जैसे इस ब्रम्हांड का नही आदि ना अंत <br/>वैसे ही श्रीमान को खुशियाँ मिलें अनंत</p>
<p></p>
<p>धन-सम्पत से युक्त हों लोभ-मोह से हीन<br/>उनको भी उद्धारिये जो हैं दीन-मलीन </p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
<p><br/>आशीष यादव</p>दीप जलानाtag:openbooks.ning.com,2021-11-04:5170231:BlogPost:10726912021-11-04T09:00:00.000Zआशीष यादवhttp://openbooks.ning.com/profile/Ashishyadav
<p></p>
<p>जहाँ दिखे अँधियार वहीं पर दीप जलाना </p>
<p>छाये खुशी अपार वहीं पर दीप जलाना </p>
<p></p>
<p>अपने मन के भीतर का जो पापी तम है </p>
<p>'अयं निजः' का भाव जहाँ पलता हरदम है </p>
<p>'वसुधा ही परिवार' जहाँ अंधेरे में है </p>
<p>सबसे पहले यार वहीं पर दीप जलाना </p>
<p>जहाँ दिखे अँधियार………………..</p>
<p></p>
<p>मुरझाए से होठों पर मुस्कान बिछाने </p>
<p>छोटी-छोटी खुशियों को सम्मान दिलाने </p>
<p>जिन दर दीप नहीं पहुँचे हैं उन तक जाकर </p>
<p>रोशन करना द्वार वहीं पर दीप जलाना </p>
<p>जहाँ दिखे…</p>
<p></p>
<p>जहाँ दिखे अँधियार वहीं पर दीप जलाना </p>
<p>छाये खुशी अपार वहीं पर दीप जलाना </p>
<p></p>
<p>अपने मन के भीतर का जो पापी तम है </p>
<p>'अयं निजः' का भाव जहाँ पलता हरदम है </p>
<p>'वसुधा ही परिवार' जहाँ अंधेरे में है </p>
<p>सबसे पहले यार वहीं पर दीप जलाना </p>
<p>जहाँ दिखे अँधियार………………..</p>
<p></p>
<p>मुरझाए से होठों पर मुस्कान बिछाने </p>
<p>छोटी-छोटी खुशियों को सम्मान दिलाने </p>
<p>जिन दर दीप नहीं पहुँचे हैं उन तक जाकर </p>
<p>रोशन करना द्वार वहीं पर दीप जलाना </p>
<p>जहाँ दिखे अँधियार………………..</p>
<p></p>
<p>मन में उत्सव धारे वह मुस्तैद खड़ा जो </p>
<p>देश सुरक्षा खातिर घर से दूर पड़ा जो </p>
<p>अपने देवों खातिर रखते दीप जहाँ पर </p>
<p>उनके खातिर यार वहीं पर दीप जलना </p>
<p>जहाँ दिखे अँधियार……………….. </p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
<p></p>जो इजाजत होtag:openbooks.ning.com,2021-09-24:5170231:BlogPost:10697562021-09-24T10:00:00.000Zआशीष यादवhttp://openbooks.ning.com/profile/Ashishyadav
<p>122 2122 2122 2122 2</p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">तेरी तस्वीर होठों से लगा लूँ, जो इजाजत हो। </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">उसे आगोश में लूँ, चूम डालूँ, जो इजाजत हो।</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">बहुत नायाब दौलत है तुम्हारे हुस्न की दौलत </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">तुम्हारा हुस्न तुमसे ही चुरा लूँ जो इजाजत हो ।</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">नशीले नैन लाली होंठ की यूँ मुझ पे छाई…</span></p>
<p>122 2122 2122 2122 2</p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">तेरी तस्वीर होठों से लगा लूँ, जो इजाजत हो। </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">उसे आगोश में लूँ, चूम डालूँ, जो इजाजत हो।</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">बहुत नायाब दौलत है तुम्हारे हुस्न की दौलत </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">तुम्हारा हुस्न तुमसे ही चुरा लूँ जो इजाजत हो ।</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">नशीले नैन लाली होंठ की यूँ मुझ पे छाई है </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">इन्हें मैं जाम समझूँ पी लूँ पा लूँ जो इजाजत हो। </span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">वही सुंदर तरासा जिस्म जो एक बार देखा था </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">उसे फिर यार नैनों में बसा लूँ जो इजाजत हो। </span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">कई नगमे तुम्हारी याद में लिक्खा किया मैंने </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">उन्हें इक बार स्वर दूँ यार गा लूँ जो इजाजत हो। </span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">मौलिक एवं अप्रकाशित </span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">आशीष यादव</span></p>कहो सूरमा! जीत लिए जग?tag:openbooks.ning.com,2021-09-01:5170231:BlogPost:10675692021-09-01T19:30:00.000Zआशीष यादवhttp://openbooks.ning.com/profile/Ashishyadav
<p><span style="font-weight: 400;">कहो सूरमा! जीत लिए जग? </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">तुम्हें पता है जीत हार का? </span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">केवल बारूदों के दम पर </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">फूँक रहे हो धरती सारी </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">नफरत की लपटों में तुमने </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">धधकाई करुणा की क्यारी </span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">कितना आतंकित है…</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">कहो सूरमा! जीत लिए जग? </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">तुम्हें पता है जीत हार का? </span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">केवल बारूदों के दम पर </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">फूँक रहे हो धरती सारी </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">नफरत की लपटों में तुमने </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">धधकाई करुणा की क्यारी </span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">कितना आतंकित है जीवन </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">हरसू क्रंदन ही क्रंदन है </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">मानवता की लाश बिछी है </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">सहमा डरा विवश जन-जन है </span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">तुम कितने खुश हो लहरा कर </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">बंदूकें - तलवारें - भाले </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">ऐसी विषम घड़ी आई है </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">दानवता को कौन सँभाले</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">किंतु नहीं यह जीत तुम्हारी </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">सारी मानवता हारी है </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">धर्म-कर्म सब हेय हुए हैं </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">गुरुता पर लघुता भारी है</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">तुमको जिसने आदेश दिया</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">वह पापी नीच दरिंदा है </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">वह लोभी वहशी हीन तुच्छ </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">है पर के बिना परिंदा है </span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">तुमने अंगारों से जिसकी </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">खातिर यह दुनिया नापी है </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">चाहे अल्लाह-मसीहा हो </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">चाहे कि देव हो पापी है </span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">तुमने जन्नत की चाहत में </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">दुनिया नर्क बना डाली है </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">ऐसे दुष्कर्मों की मंजिल </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">पतित घिनौनी है काली है </span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">कितने दिन का है यह जीवन </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">गिनती के ही कुछ सालों का </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">वहशीपन में स्याह किया है </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">तुमने मुँह अपने लालों का</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">दुनिया से जाने वालों में </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">कुछ अब तक पूजे जाते हैं </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">और वहीं कुछ आतंकी हैं </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">आज तलक गाली खाते हैं </span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">हाँ हिसाब होता है होगा </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जब तुम भी उस तक जाओगे </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">बारूदों की खेती वालों </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">तब बारूदें ही पाओगे </span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">पता तुम्हें है जीत हार का? </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">भय नफरत का द्वेष प्यार का? </span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जाओ पहले पता करो फिर </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">पूछो अपने अंतर्मन से </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">केवल तन पर राज किया </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जा सकता है खंजर से धन से</span></p>
<p> </p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
<p><b>आशीष यादव</b></p>स्वयं को आजमाने को तू खुलकर आ जमाने मेंtag:openbooks.ning.com,2021-06-30:5170231:BlogPost:10630232021-06-30T21:00:00.000Zआशीष यादवhttp://openbooks.ning.com/profile/Ashishyadav
<p>स्वयं को आजमाने को <br></br> तू खुलकर आ जमाने में <br></br> बहुत अनमोल है जीवन <br></br> गवाँता क्यों बहाने में</p>
<p></p>
<p>नदी के पास बैठा है <br></br> दबा के प्यास बैठा है <br></br> तुझे मालूम है, तुझमें <br></br> कोई एहसास बैठा है <br></br> किनारे कुछ न पाओगे <br></br> मिलेगा डूब जाने में</p>
<p></p>
<p></p>
<p>तुम्हारे सामने दुनिया<br></br> सुनो रणभूमि जैसी है <br></br> स्वयं का तू ही दुश्मन है <br></br> स्वयं का तू हितैषी है <br></br> कहीं पीछे न रह जाना <br></br> स्वयं से ही निभाने में</p>
<p></p>
<p></p>
<p>कहाँ दसरथ की दौलत …<br></br></p>
<p>स्वयं को आजमाने को <br/> तू खुलकर आ जमाने में <br/> बहुत अनमोल है जीवन <br/> गवाँता क्यों बहाने में</p>
<p></p>
<p>नदी के पास बैठा है <br/> दबा के प्यास बैठा है <br/> तुझे मालूम है, तुझमें <br/> कोई एहसास बैठा है <br/> किनारे कुछ न पाओगे <br/> मिलेगा डूब जाने में</p>
<p></p>
<p></p>
<p>तुम्हारे सामने दुनिया<br/> सुनो रणभूमि जैसी है <br/> स्वयं का तू ही दुश्मन है <br/> स्वयं का तू हितैषी है <br/> कहीं पीछे न रह जाना <br/> स्वयं से ही निभाने में</p>
<p></p>
<p></p>
<p>कहाँ दसरथ की दौलत <br/> राम जी के काम आती है<br/> सदा बाहें स्वयं की <br/> राह के काटें हटाती हैं <br/> स्वयं के बाहुबल से <br/> काम ले राहें बनाने में</p>
<p></p>
<p>जगा दे मन का बजरंगी </p>
<p>जला दे आलसी लंका </p>
<p>दिखा दे जोर पौरुष का </p>
<p>बजा दे विश्व में डंका </p>
<p>पड़ा विपदाओं का सागर </p>
<p>भला है लाँघ जाने में </p>
<p></p>
<p></p>
<p>विचारों के महा-रण में <br/> स्वयं अर्जुन-कन्हैया बन <br/> पड़ी मझधार में नैया <br/> स्वयं का तू खेवैया बन<br/> स्वयं ही शस्त्र बन जा तू <br/> स्वयं को जीत जाने में</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
<p></p>
<p>आशीष यादव</p>वरना पीठ दिखाने से तो अच्छा है तुम मर जाओtag:openbooks.ning.com,2021-05-27:5170231:BlogPost:10603922021-05-27T18:41:10.000Zआशीष यादवhttp://openbooks.ning.com/profile/Ashishyadav
<p>रणभेरी बजने से पहले अच्छा है तुम घर जाओ <br></br>वरना पीठ दिखाने से तो अच्छा है तुम मर जाओ</p>
<p></p>
<p>कितनी ही आशाएं तुमसे लगी हुई है, टूटेंगीं <br></br>कितनी ही तकदीरें तुमसे जुड़ी हुई हैं, रूठेगीं</p>
<p><br></br>तेरे पीछे मुड़ जाने से कितने सिर झुक जाएंगे<br></br>कितने प्राण कलंकित होंगे कितने कल रुक जाएंगे</p>
<p><br></br>उतर गए हो बीच समर तो कौशल भी दिखला जाओ <br></br>हिम्मत के बादल बन कर तुम विपदाओं पर छा जाओ</p>
<p></p>
<p>तप कर और प्रबल बनकर तुम शोलों बीच सँवर जाओ <br></br>वरना पीठ दिखाने से तो अच्छा है तुम…</p>
<p>रणभेरी बजने से पहले अच्छा है तुम घर जाओ <br/>वरना पीठ दिखाने से तो अच्छा है तुम मर जाओ</p>
<p></p>
<p>कितनी ही आशाएं तुमसे लगी हुई है, टूटेंगीं <br/>कितनी ही तकदीरें तुमसे जुड़ी हुई हैं, रूठेगीं</p>
<p><br/>तेरे पीछे मुड़ जाने से कितने सिर झुक जाएंगे<br/>कितने प्राण कलंकित होंगे कितने कल रुक जाएंगे</p>
<p><br/>उतर गए हो बीच समर तो कौशल भी दिखला जाओ <br/>हिम्मत के बादल बन कर तुम विपदाओं पर छा जाओ</p>
<p></p>
<p>तप कर और प्रबल बनकर तुम शोलों बीच सँवर जाओ <br/>वरना पीठ दिखाने से तो अच्छा है तुम मर जाओ </p>
<p></p>
<p>आशीष यादव </p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
<p></p>याद तुम्हारीtag:openbooks.ning.com,2021-04-23:5170231:BlogPost:10592512021-04-23T23:06:43.000Zआशीष यादवhttp://openbooks.ning.com/profile/Ashishyadav
<p>याद तुम्हारी क्या बतलाऊँ <br></br>कैसे कैसे आ रही है</p>
<p></p>
<p>चलने का अंदाज़ ठुमक कर <br></br>मचल-मचल कर और चहक कर <br></br>हाथों को लहरा-लहरा कर <br></br>अदा-अदा से और विहँस कर</p>
<p></p>
<p>तेरी सुंदर-सुंदर बातें <br></br>मन हर्षित है गाते-गाते <br></br>मैं कब से आवाज दे रहा <br></br>आ जाते हँसते-मुस्काते</p>
<p></p>
<p>तेरे गालों वाले डिम्पल <br></br>याद आते हैं मुझको पल-पल <br></br>मिसरी में पागे होठों के <br></br>नाज़ुक चुम्बन कोमल-कोमल</p>
<p></p>
<p>एक छवि मुस्कान बटोरे <br></br>मुझको अपने परितः घेरे <br></br>सुंदर सुखद समीर…</p>
<p>याद तुम्हारी क्या बतलाऊँ <br/>कैसे कैसे आ रही है</p>
<p></p>
<p>चलने का अंदाज़ ठुमक कर <br/>मचल-मचल कर और चहक कर <br/>हाथों को लहरा-लहरा कर <br/>अदा-अदा से और विहँस कर</p>
<p></p>
<p>तेरी सुंदर-सुंदर बातें <br/>मन हर्षित है गाते-गाते <br/>मैं कब से आवाज दे रहा <br/>आ जाते हँसते-मुस्काते</p>
<p></p>
<p>तेरे गालों वाले डिम्पल <br/>याद आते हैं मुझको पल-पल <br/>मिसरी में पागे होठों के <br/>नाज़ुक चुम्बन कोमल-कोमल</p>
<p></p>
<p>एक छवि मुस्कान बटोरे <br/>मुझको अपने परितः घेरे <br/>सुंदर सुखद समीर बहाती <br/>बदली बन कर छा रही है</p>
<p>याद तुम्हारी क्या बतलाऊँ <br/>कैसे कैसे आ रही है </p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>बोलो मैं कैसे बिकताtag:openbooks.ning.com,2020-09-06:5170231:BlogPost:10169742020-09-06T15:00:00.000Zआशीष यादवhttp://openbooks.ning.com/profile/Ashishyadav
<p>एक गजल तेरे होठों पर लिख सकता था <br></br>इसकी टपक रही लाली पर बिक सकता था</p>
<p></p>
<p>किंतु सामने जब शहीद की पीर पुकारे <br></br>जान वतन पर देने वाला वीर पुकारे <br></br>जिसने भाई, लाल, कंत कुर्बान किये हों <br></br>सूख चुकी उनकी आँखों का नीर पुकारे</p>
<p></p>
<p>कैसे उन क़ातिल मुस्कानों पर बिकता<br></br>कैसे कोमल नाजुक होठों पर लिखता</p>
<p></p>
<p><br></br>एक गजल तेरी आँखों पर लिख सकता था <br></br>चंचल चितवन सी कमान पर बिक सकता था</p>
<p></p>
<p>पर कौरव-पांडव दल आँखें मींच रहा हो <br></br>चीर दुःशासन द्रुपद-सुता की…</p>
<p>एक गजल तेरे होठों पर लिख सकता था <br/>इसकी टपक रही लाली पर बिक सकता था</p>
<p></p>
<p>किंतु सामने जब शहीद की पीर पुकारे <br/>जान वतन पर देने वाला वीर पुकारे <br/>जिसने भाई, लाल, कंत कुर्बान किये हों <br/>सूख चुकी उनकी आँखों का नीर पुकारे</p>
<p></p>
<p>कैसे उन क़ातिल मुस्कानों पर बिकता<br/>कैसे कोमल नाजुक होठों पर लिखता</p>
<p></p>
<p><br/>एक गजल तेरी आँखों पर लिख सकता था <br/>चंचल चितवन सी कमान पर बिक सकता था</p>
<p></p>
<p>पर कौरव-पांडव दल आँखें मींच रहा हो <br/>चीर दुःशासन द्रुपद-सुता की खीँच रहा हो <br/>हाथ जोड़ कर कहीं दामिनी बिलख रही हो <br/>और दरिंदा वहशी उसको भींच रहा हो </p>
<p></p>
<p>तब बोलो कैसे आलिंगन पर बिकता <br/>कैसे काजल वाली आँखों पर लिखता</p>
<p></p>
<p><br/>एक गजल तेरे गालों पर लिख सकता था <br/>हुस्न नजाकत नाज अदा पर बिक सकता था</p>
<p></p>
<p>किन्तु जहाँ नेता जनता को भरमाते हों <br/>धर्मों का धंधा करने वाले भाते हों <br/>सबके पेटों को भरने वाले जब खुद ही <br/>घुटने डाल पेट में भूखे सो जाते हों</p>
<p></p>
<p>तुम बोलो मैं कैसे चुम्बन पर बिकता <br/>कैसे डिम्पल वाले गालों पर लिखता</p>
<p></p>
<p><br/>एक गजल तेरी चालों पर लिख सकता था <br/>लटकन मटकन झटकन पर भी बिक सकता था</p>
<p></p>
<p>किन्तु जहाँ हलकू वादों पर ही जीता हो <br/>आज तलक भी झूरी का दामन रीता हो <br/>झूठे सत्ता की सीढ़ी चढ़ते जाते हों <br/>सच्चा घूँट ज़हालत के कड़वे पीता हो</p>
<p></p>
<p>कैसे मदहोशी के स्पर्शों पर बिकता <br/>कैसे हिरनी वाली चालों पर लिखता</p>
<p></p>
<p>आशीष यादव</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>ये जिंदगी का हसीन लमहाtag:openbooks.ning.com,2020-08-24:5170231:BlogPost:10155612020-08-24T21:00:00.000Zआशीष यादवhttp://openbooks.ning.com/profile/Ashishyadav
<p>(12122)×4</p>
<p></p>
<p>ये ज़िंदगी का हसीन लमहा</p>
<p>गुजर गया फिर तो क्या करोगी<br></br> जो जिंदगी के इधर खड़ा है</p>
<p>उधर गया फिर तो क्या करोगी</p>
<p></p>
<p>तुम्हें सँवरने का हक दिया है</p>
<p>वो कोई पत्थर का तो नहीं है <br></br> लगाये फिरती हो जिसको ठोकर</p>
<p>बिखर गया फिर तो क्या करोगी</p>
<p></p>
<p>कि जिनकी शाखों पे तो गुमां है</p>
<p>मगर उन्हीं की जड़ों से नफरत <br></br>"वो आँधियों में उखड़ जड़ों से"</p>
<p>शज़र गया फिर तो क्या करोगी</p>
<p></p>
<p>जिसे अनायास कोसती हो</p>
<p>छिपाए बैठा है पीर…</p>
<p>(12122)×4</p>
<p></p>
<p>ये ज़िंदगी का हसीन लमहा</p>
<p>गुजर गया फिर तो क्या करोगी<br/> जो जिंदगी के इधर खड़ा है</p>
<p>उधर गया फिर तो क्या करोगी</p>
<p></p>
<p>तुम्हें सँवरने का हक दिया है</p>
<p>वो कोई पत्थर का तो नहीं है <br/> लगाये फिरती हो जिसको ठोकर</p>
<p>बिखर गया फिर तो क्या करोगी</p>
<p></p>
<p>कि जिनकी शाखों पे तो गुमां है</p>
<p>मगर उन्हीं की जड़ों से नफरत <br/>"वो आँधियों में उखड़ जड़ों से"</p>
<p>शज़र गया फिर तो क्या करोगी</p>
<p></p>
<p>जिसे अनायास कोसती हो</p>
<p>छिपाए बैठा है पीर सारी <br/> तुम्हारी नज़रों से गिर के आखिर</p>
<p>वो मर गया फिर तो क्या करोगी</p>
<p></p>
<p>किवाड़ दिल के लगा रखी हो</p>
<p>नज़र की खिड़की खुली हुई है <br/> कोई निग़ाहों से सीधे दिल में</p>
<p>उतर गया फिर तो क्या करोगी</p>
<p></p>
<p>तू जिसकी उल्फ़त में जी रही है</p>
<p>कुछ उसकी नीयत भली नहीं है <br/> वो खा के कसमें दिखा के सपने</p>
<p>मुकर गया फिर तो क्या करोगी</p>
<p></p>
<p>आशीष यादव</p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>मगर हड़का रहा है (गजल)tag:openbooks.ning.com,2020-08-10:5170231:BlogPost:10146532020-08-10T13:06:37.000Zआशीष यादवhttp://openbooks.ning.com/profile/Ashishyadav
<p>उसकी ना है इतनी सी औकात मगर हड़का रहा है <br></br>झूठे में ही खा जाएगा लात मगर हड़का रहा है</p>
<p></p>
<p>औरों की बातों में आकर गाल बजाने वाला बच्चा <br></br>जिसके टूटे ना हैं दुधिया दाँत मगर हड़का रहा है</p>
<p></p>
<p>जिसके आधे खर्चे अपनी जेब कटाकर दे रहे हैं <br></br>अबकी ढँग से खा जायेगा मात मगर हड़का रहा है</p>
<p></p>
<p>आदर्शों मानवमूल्यों को छोड़ दिया तो राम जाने <br></br>कितने बदतर होंगे फिर हालात मगर हड़का रहा है</p>
<p></p>
<p>उल्फत की शमआ पर पर्दा डाल रहा है बदगुमानी <br></br>कटना मुश्किल है नफरत की रात…</p>
<p>उसकी ना है इतनी सी औकात मगर हड़का रहा है <br/>झूठे में ही खा जाएगा लात मगर हड़का रहा है</p>
<p></p>
<p>औरों की बातों में आकर गाल बजाने वाला बच्चा <br/>जिसके टूटे ना हैं दुधिया दाँत मगर हड़का रहा है</p>
<p></p>
<p>जिसके आधे खर्चे अपनी जेब कटाकर दे रहे हैं <br/>अबकी ढँग से खा जायेगा मात मगर हड़का रहा है</p>
<p></p>
<p>आदर्शों मानवमूल्यों को छोड़ दिया तो राम जाने <br/>कितने बदतर होंगे फिर हालात मगर हड़का रहा है</p>
<p></p>
<p>उल्फत की शमआ पर पर्दा डाल रहा है बदगुमानी <br/>कटना मुश्किल है नफरत की रात मगर हड़का रहा है</p>
<p></p>
<p>आशीष यादव </p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>उसने पी रखी हैtag:openbooks.ning.com,2020-08-03:5170231:BlogPost:10142372020-08-03T07:00:00.000Zआशीष यादवhttp://openbooks.ning.com/profile/Ashishyadav
<p>2122 2122 2122 2122</p>
<p></p>
<p>वो न बोलेगा हसद की बात उसने पी रखी है <br></br> सिर्फ़ होगी प्यार की बरसात उसने पी रखी है</p>
<p></p>
<p>होश में दुनिया सिवा अपने कहाँ कुछ सोचती है <br></br> कर रहा है वो सभी की बात उसने पी रखी है</p>
<p></p>
<p>मुँह पे कह देता है कुछ भी दिल में वो रखता नहीं है <br></br> वो समझ पाता नहीं हालात उसने पी रखी है</p>
<p></p>
<p>झूठ मक्कारी फ़रेबी ज़ुल्म का तूफ़ाँ खड़ा है <br></br> क्या वो सह पायेगा झंझावात? उसने पी रखी है</p>
<p></p>
<p>जबकि सब दौर-ए-जहाँ में लूटकर घर भर रहे हों…</p>
<p>2122 2122 2122 2122</p>
<p></p>
<p>वो न बोलेगा हसद की बात उसने पी रखी है <br/> सिर्फ़ होगी प्यार की बरसात उसने पी रखी है</p>
<p></p>
<p>होश में दुनिया सिवा अपने कहाँ कुछ सोचती है <br/> कर रहा है वो सभी की बात उसने पी रखी है</p>
<p></p>
<p>मुँह पे कह देता है कुछ भी दिल में वो रखता नहीं है <br/> वो समझ पाता नहीं हालात उसने पी रखी है</p>
<p></p>
<p>झूठ मक्कारी फ़रेबी ज़ुल्म का तूफ़ाँ खड़ा है <br/> क्या वो सह पायेगा झंझावात? उसने पी रखी है</p>
<p></p>
<p>जबकि सब दौर-ए-जहाँ में लूटकर घर भर रहे हों <br/> वो लुटाता चल रहा सौगात उसने पी रखी है</p>
<p></p>
<p>आखिरी वस्ल-ए-सबा में जिक्र-ए-हिज़रत रोक लेना <br/> उससे सँभलेंगे नहीं जज़्बात उसने पी रखी है। </p>
<p></p>
<p>आशीष यादव</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>पानी गिर रहा हैtag:openbooks.ning.com,2020-07-29:5170231:BlogPost:10137742020-07-29T23:51:29.000Zआशीष यादवhttp://openbooks.ning.com/profile/Ashishyadav
<p>2122 2122 2122 2122</p>
<p></p>
<p>इश्क बनता जा रहा व्यापार पानी गिर रहा है <br></br>हुस्न रस्ते में खड़ा लाचार पानी गिर रहा है</p>
<p></p>
<p>चंद जुगनू पूँछ पर बत्ती लगाकर सूर्य को ही<br></br>बेहयाई से रहे ललकार पानी गिर रहा है </p>
<p></p>
<p>टाँगकर झोला फ़कीरी का लबादा ओढ़कर अब<br></br>हो रहा खैरात का व्यापार पानी गिर रहा है </p>
<p></p>
<p>बाप दादों की कमाई को सरे नीलाम कर वह<br></br>खुद को साबित कर रहा हुँशियार पानी गिर रहा है </p>
<p></p>
<p>झूठ के लश्कर बुलंदी की तरफ बढ़ने लगे हैं <br></br>साँच की होने लगी…</p>
<p>2122 2122 2122 2122</p>
<p></p>
<p>इश्क बनता जा रहा व्यापार पानी गिर रहा है <br/>हुस्न रस्ते में खड़ा लाचार पानी गिर रहा है</p>
<p></p>
<p>चंद जुगनू पूँछ पर बत्ती लगाकर सूर्य को ही<br/>बेहयाई से रहे ललकार पानी गिर रहा है </p>
<p></p>
<p>टाँगकर झोला फ़कीरी का लबादा ओढ़कर अब<br/>हो रहा खैरात का व्यापार पानी गिर रहा है </p>
<p></p>
<p>बाप दादों की कमाई को सरे नीलाम कर वह<br/>खुद को साबित कर रहा हुँशियार पानी गिर रहा है </p>
<p></p>
<p>झूठ के लश्कर बुलंदी की तरफ बढ़ने लगे हैं <br/>साँच की होने लगी है हार पानी गिर रहा है </p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>यह प्रणय निवेदित है तुमकोtag:openbooks.ning.com,2020-06-14:5170231:BlogPost:10103192020-06-14T23:00:00.000Zआशीष यादवhttp://openbooks.ning.com/profile/Ashishyadav
<p>हे रूपसखी हे प्रियंवदे <br></br> हे हर्ष-प्रदा हे मनोरमे <br></br> तुम रच-बस कर अंतर्मन में <br></br> अंतर्तम को उजियार करो <br></br> यह प्रणय निवेदित है तुमको <br></br> स्वीकार करो, साकार करो</p>
<p></p>
<p>अभिलाषी मन अभिलाषा तुम <br></br> अभिलाषा की परिभाषा तुम <br></br> नयनानंदित - नयनाभिराम <br></br> हो नेह-नयन की भाषा तुम <br></br> हे चंद्र-प्रभा हे कमल-मुखे <br></br> हे नित-नवीन हे सदा-सुखे <br></br> उद्गारित होते मनोभाव <br></br> इनको ढालो, आकार करो <br></br> यह प्रणय निवेदित है तुमको <br></br> स्वीकार करो साकार करो</p>
<p></p>
<p>मैं तपता…</p>
<p>हे रूपसखी हे प्रियंवदे <br/> हे हर्ष-प्रदा हे मनोरमे <br/> तुम रच-बस कर अंतर्मन में <br/> अंतर्तम को उजियार करो <br/> यह प्रणय निवेदित है तुमको <br/> स्वीकार करो, साकार करो</p>
<p></p>
<p>अभिलाषी मन अभिलाषा तुम <br/> अभिलाषा की परिभाषा तुम <br/> नयनानंदित - नयनाभिराम <br/> हो नेह-नयन की भाषा तुम <br/> हे चंद्र-प्रभा हे कमल-मुखे <br/> हे नित-नवीन हे सदा-सुखे <br/> उद्गारित होते मनोभाव <br/> इनको ढालो, आकार करो <br/> यह प्रणय निवेदित है तुमको <br/> स्वीकार करो साकार करो</p>
<p></p>
<p>मैं तपता थल तुम हो छाया <br/> मैं सदा दीन तुम हो माया <br/> जब-जब लिक्खा, तुमको लिक्खा <br/> जब-जब गाया, तुमको गाया <br/> हे सुमुखि-केशिनी-रूपवते <br/> हे मधुर-भाषिता, मुग्ध-मते <br/> इस विस्तारित आकर्षण का <br/> कुछ तो स्नेहिल आधार करो <br/> यह प्रणय निवेदित है तुमको <br/> स्वीकार करो साकार करो </p>
<p></p>
<p>आशीष यादव </p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>हाँ बहुत कुछ याद हैtag:openbooks.ning.com,2020-04-17:5170231:BlogPost:10046182020-04-17T01:39:33.000Zआशीष यादवhttp://openbooks.ning.com/profile/Ashishyadav
<p><span>अकेले तुम नहीं यारा</span><br></br><span>तुम्हारे साथ और भी बात</span><br></br><span>मुझे हैं याद</span><br></br><br></br><span>कि जैसे फूल खिला हो</span><br></br><span>तुम हसीं, बिलकुल महकती सी</span><br></br><span>चहकती सी</span><br></br><span> मृदुल किरणों में धुलकर आ गई</span><br></br><span>और छा गई</span><br></br><span>जैसे कि बदली जून की</span><br></br><span>तपती दोपहरी से धरा को छाँव देती</span><br></br><span>ठाँव देती हो मुसाफिर को</span><br></br><br></br><span>कि जैसे झील हो गहरी</span><br></br><span>कि ये भहरी…</span></p>
<p><span>अकेले तुम नहीं यारा</span><br/><span>तुम्हारे साथ और भी बात</span><br/><span>मुझे हैं याद</span><br/><br/><span>कि जैसे फूल खिला हो</span><br/><span>तुम हसीं, बिलकुल महकती सी</span><br/><span>चहकती सी</span><br/><span> मृदुल किरणों में धुलकर आ गई</span><br/><span>और छा गई</span><br/><span>जैसे कि बदली जून की</span><br/><span>तपती दोपहरी से धरा को छाँव देती</span><br/><span>ठाँव देती हो मुसाफिर को</span><br/><br/><span>कि जैसे झील हो गहरी</span><br/><span>कि ये भहरी निगाहें</span><br/><span>काजलों की कोर ये खीँचे मुझे</span><br/><span>भींचे कि जैसे</span><br/><span>हार सी बाहें गले में डालकर</span><br/><span>और ढाल कर खुद में मुझे</span><br/><span>तुम प्यार देती</span><br/><span>वार देती थी स्वयं को</span><br/><br/><span>मेरी जानाँ,</span><br/><span>मुझे है याद यह भी</span><br/><span>कि तेरी जुल्फें लहरकर</span><br/><span>बादलों का रूप लेतीं</span><br/><span>और देती प्यार की बूंदें</span><br/><span>कि जिनमें भीगकर</span><br/><span>तन तर हो जाता</span><br/><span>और पाता स्नेह-</span><br/><span> सुख उर में समाता</span><br/><span>याद है </span><br/><br/><span>हाँ याद है</span><br/><span>पूरब में अंगड़ाई लिए</span><br/><span>सूरज की लाली से तुम्हारे होंठ</span><br/><span>कि जिनसे लिपटकर खेलती मेरी तमन्ना</span><br/><span>और तुम हँसती हुई</span><br/><span>कोमल गुलाबों को मेरे होठों पे रखती</span><br/><span>और मैं आनंद का परिपाग पाता</span><br/><span>भीग जाता</span><br/><span>याद है</span><br/><span>हाँ याद है।</span></p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
<p><br/><span>आशीष यादव</span></p>कोरोनाtag:openbooks.ning.com,2020-04-04:5170231:BlogPost:10039482020-04-04T06:03:27.000Zआशीष यादवhttp://openbooks.ning.com/profile/Ashishyadav
<p>नहीं हमारी नहीं तुम्हारी <br></br>अखिल विश्व में महा-बिमारी <br></br>आई पैर पसार <br></br>भैया मत छोड़ो घर-द्वार <br></br>भैया मत छोड़ो घर-द्वार </p>
<p></p>
<p>निकल चीन से पूर्ण जगत में डाल दिया है डेरा <br></br>यह विषाणु से जनित बिमारी, खतरनाक है घेरा <br></br>रहो घरों में रहो अकेले <br></br>नहीं लगाओ जमघट मेले <br></br>कहती है सरकार <br></br>भैया मत छोड़ो घर-द्वार </p>
<p></p>
<p>नहीं आम यह सर्दी-खाँसी इसका नाम कोरोना <br></br>नहीं दवाई इसकी, होने पर केवल है रोना <br></br>इसीलिए मत घर से निकलो <br></br>धीर धरो पतझड़ से निकलो <br></br>मानो…</p>
<p>नहीं हमारी नहीं तुम्हारी <br/>अखिल विश्व में महा-बिमारी <br/>आई पैर पसार <br/>भैया मत छोड़ो घर-द्वार <br/>भैया मत छोड़ो घर-द्वार </p>
<p></p>
<p>निकल चीन से पूर्ण जगत में डाल दिया है डेरा <br/>यह विषाणु से जनित बिमारी, खतरनाक है घेरा <br/>रहो घरों में रहो अकेले <br/>नहीं लगाओ जमघट मेले <br/>कहती है सरकार <br/>भैया मत छोड़ो घर-द्वार </p>
<p></p>
<p>नहीं आम यह सर्दी-खाँसी इसका नाम कोरोना <br/>नहीं दवाई इसकी, होने पर केवल है रोना <br/>इसीलिए मत घर से निकलो <br/>धीर धरो पतझड़ से निकलो <br/>मानो राजदुलार <br/>बेटे मत छोड़ो घर-द्वार </p>
<p> </p>
<p>एक दूसरे से मीटर भर दूरी रखो बनाके <br/>सेनीटाइज रहो, रहो तुम मुँह पर मास्क लगाके <br/>नहीं मिलाओ हाथ किसी से <br/>हाथ जोड़कर करो सभी से <br/>भैया नमस्कार <br/>बाबू मत छोड़ो घर-द्वार </p>
<p></p>
<p>हाथ बराबर साबुन से धोने की आदत डालो <br/>और नाक-मुँह ढक कर राखो जीवन शुद्ध बनालो <br/>रखो बराबर गैप बनाकर <br/>मगर सभी से द्वेष मिटाकर <br/>भजो नाथ करतार <br/>भैया मत छोड़ो घर-द्वार</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
<p>आशीष यादव</p>नव वर्ष तुम्हें मंगलमय होtag:openbooks.ning.com,2019-12-31:5170231:BlogPost:9985212019-12-31T19:01:23.000Zआशीष यादवhttp://openbooks.ning.com/profile/Ashishyadav
<p>नव वर्ष तुम्हें मंगलमय हो </p>
<p></p>
<p>घर आँगन में उजियारा हो <br></br>दुःखों का दूर अँधियारा हो <br></br>हो नई चेतना नवल स्फूर्ति <br></br>नित नव प्रभात आभामय हो <br></br>नव वर्ष तुम्हें मंगलमय हो </p>
<p></p>
<p>नित नई नई ऊँचाई हो <br></br>हृद प्राशान्तिक गहराई हो <br></br>नित नव आयामों को चूमो <br></br>चहुँओर तुम्हारी जय जय हो <br></br>नव वर्ष तुम्हें मंगलमय हो </p>
<p></p>
<p>जो खुशियाँ अब तक नहीं मिलीं <br></br>जो कलियाँ अब तक नहीं खिलीं <br></br>जीवन के नूतन अवसर पर <br></br>उनका मिलना-खिलना तय हो <br></br>नव वर्ष तुम्हे मंगलमय…</p>
<p>नव वर्ष तुम्हें मंगलमय हो </p>
<p></p>
<p>घर आँगन में उजियारा हो <br/>दुःखों का दूर अँधियारा हो <br/>हो नई चेतना नवल स्फूर्ति <br/>नित नव प्रभात आभामय हो <br/>नव वर्ष तुम्हें मंगलमय हो </p>
<p></p>
<p>नित नई नई ऊँचाई हो <br/>हृद प्राशान्तिक गहराई हो <br/>नित नव आयामों को चूमो <br/>चहुँओर तुम्हारी जय जय हो <br/>नव वर्ष तुम्हें मंगलमय हो </p>
<p></p>
<p>जो खुशियाँ अब तक नहीं मिलीं <br/>जो कलियाँ अब तक नहीं खिलीं <br/>जीवन के नूतन अवसर पर <br/>उनका मिलना-खिलना तय हो <br/>नव वर्ष तुम्हे मंगलमय हो</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
<p></p>
<p>आशीष यादव</p>सच सच बोलो आओगी नाtag:openbooks.ning.com,2019-12-22:5170231:BlogPost:9978702019-12-22T17:00:56.000Zआशीष यादवhttp://openbooks.ning.com/profile/Ashishyadav
<p>सच सच बोलो आओगी ना</p>
<p></p>
<p>जब सूरज पूरब से पश्चिम<br></br> तक चल चल कर थक जाएगा<br></br>और जहाँ धरती अम्बर से <br></br>मिलती है उस तक जाएगा</p>
<p></p>
<p>चारो ओर सुनहला मौसम <br></br>और सुनहली लाली होगी <br></br>और लौटते पंछी होंगें <br></br>खेत-खेत हरियाली होगी </p>
<p> <br></br>दिन भर के सब थके थके से <br></br>अपने घर को जाते होंगे <br></br>कभी झूम कर कभी मन्द से <br></br>पवन बाग लहराते होंगे </p>
<p> <br></br>तुम भी उसी बाग के पीछे <br></br>आकर उसी आम के नीचे <br></br>झूम-झूम कर मेरे ऊपर <br></br>तुम खुद को लहराओगी ना <br></br>सच सच बोलो…</p>
<p>सच सच बोलो आओगी ना</p>
<p></p>
<p>जब सूरज पूरब से पश्चिम<br/> तक चल चल कर थक जाएगा<br/>और जहाँ धरती अम्बर से <br/>मिलती है उस तक जाएगा</p>
<p></p>
<p>चारो ओर सुनहला मौसम <br/>और सुनहली लाली होगी <br/>और लौटते पंछी होंगें <br/>खेत-खेत हरियाली होगी </p>
<p> <br/>दिन भर के सब थके थके से <br/>अपने घर को जाते होंगे <br/>कभी झूम कर कभी मन्द से <br/>पवन बाग लहराते होंगे </p>
<p> <br/>तुम भी उसी बाग के पीछे <br/>आकर उसी आम के नीचे <br/>झूम-झूम कर मेरे ऊपर <br/>तुम खुद को लहराओगी ना <br/>सच सच बोलो आओगी ना</p>
<p></p>
<p>जब बसन्त में भाँति-भाँति के <br/>सुंदर-सुंदर फूल खिलेंगें <br/>और प्रणय के इस मौसम में <br/>नेह मेह अनुकूल मिलेंगें</p>
<p><br/>अनुकूलन के इस मौसम में<br/>जब आम-आम बौराएँगे <br/>जब बाग-बाग में कली-कली <br/>भौंरे-भौंरे मड़राएँगे </p>
<p> <br/>जब-जब शाखों पर मस्ती में<br/>कोयलें कुँहुक कर गाएँगीं<br/>और ओस की बूँदे गिरकर <br/>चाँदी की सी बन जाएँगीं </p>
<p> <br/>बोलो प्रिये ताल के पीछे <br/>हाँ-हाँ उसी आम के नीचे <br/>मेरी बाहों के घेरे में <br/>सुंदर गीत सुनाओगी ना <br/>सच सच बोलो आओगी ना</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
<p></p>
<p>आशीष यादव</p>फ़लक पे चाँद ऊँचा चढ़ रहा हैtag:openbooks.ning.com,2019-12-20:5170231:BlogPost:9978512019-12-20T04:43:40.000Zआशीष यादवhttp://openbooks.ning.com/profile/Ashishyadav
<p><br/>फ़लक पे चाँद ऊँचा चढ़ रहा है।<br/>तेरी यादों में गोते खा रहा हूँ<br/>हवा हौले से छूकर जा रही है।<br/>तेरी खुशबू में भीगा जा रहा हूँ।</p>
<p><br/>लिपट कर चाँदनी मुझसे तुम्हारे <br/>बदन का खुशनुमा एह्सास देती <br/>कभी तन्हा अगर महसूस होता<br/>ढलक कर गोद में एक आस देती</p>
<p><br/>नहीं हो तुम मगर ये सब तुम्हारे<br/>यहाँ होने का एक जरिया बने हैं<br/>समा पाऊँ तेरी गहराइयों में<br/>हवा खुशबू फ़लक दरिया बने हैं। </p>
<p> </p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
<p><br/>फ़लक पे चाँद ऊँचा चढ़ रहा है।<br/>तेरी यादों में गोते खा रहा हूँ<br/>हवा हौले से छूकर जा रही है।<br/>तेरी खुशबू में भीगा जा रहा हूँ।</p>
<p><br/>लिपट कर चाँदनी मुझसे तुम्हारे <br/>बदन का खुशनुमा एह्सास देती <br/>कभी तन्हा अगर महसूस होता<br/>ढलक कर गोद में एक आस देती</p>
<p><br/>नहीं हो तुम मगर ये सब तुम्हारे<br/>यहाँ होने का एक जरिया बने हैं<br/>समा पाऊँ तेरी गहराइयों में<br/>हवा खुशबू फ़लक दरिया बने हैं। </p>
<p> </p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>तुमने उसकी याद दिला दीtag:openbooks.ning.com,2019-12-20:5170231:BlogPost:9977612019-12-20T04:30:00.000Zआशीष यादवhttp://openbooks.ning.com/profile/Ashishyadav
<p>जाने अनजाने में कितनी<br></br> जिसे सोचते रातें काटीं<br></br> लम्हों-लम्हों में किश्तों में<br></br> जिनको अपनी साँसें बाटीं<br></br> कभी अचानक कभी चाहकर<br></br> जिसे ख़यालों में लाता था<br></br> और महकती मुस्कानों पर<br></br> सौ-सौ बार लुटा जाता था </p>
<p>उसकी बोली बोल हृदय में<br></br> तुमने जैसे आग लगा दी<br></br> तुमने उसकी याद दिला दी</p>
<p><br></br> अँधियारी रजनी में खिलकर<br></br> चम-चम करने लगते तारे<br></br> इक चंदा के आ जाने से<br></br> फ़ीके पड़ने लगते सारे<br></br> शीतल शांत सजीवन नभ में<br></br> रजत चाँदनी फैलाता था<br></br> तम-गम में भी…</p>
<p>जाने अनजाने में कितनी<br/> जिसे सोचते रातें काटीं<br/> लम्हों-लम्हों में किश्तों में<br/> जिनको अपनी साँसें बाटीं<br/> कभी अचानक कभी चाहकर<br/> जिसे ख़यालों में लाता था<br/> और महकती मुस्कानों पर<br/> सौ-सौ बार लुटा जाता था </p>
<p>उसकी बोली बोल हृदय में<br/> तुमने जैसे आग लगा दी<br/> तुमने उसकी याद दिला दी</p>
<p><br/> अँधियारी रजनी में खिलकर<br/> चम-चम करने लगते तारे<br/> इक चंदा के आ जाने से<br/> फ़ीके पड़ने लगते सारे<br/> शीतल शांत सजीवन नभ में<br/> रजत चाँदनी फैलाता था<br/> तम-गम में भी मेघ-लटों को<br/> खिसकाता औ' मुस्काता था </p>
<p>यादों पर आवरित घटा को<br/> तुमने जैसे एक हवा दी<br/> तुमने उसकी याद दिला दी </p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित </p>
<p></p>
<p>आशीष यादव</p>तुम पर कोई गीत लिखूँ क्याtag:openbooks.ning.com,2019-12-15:5170231:BlogPost:9978252019-12-15T09:30:00.000Zआशीष यादवhttp://openbooks.ning.com/profile/Ashishyadav
<p>तुम पर कोई गीत लिखूँ क्या</p>
<p></p>
<p>तुम सुगंध खिलते गुलाब सी <br></br> सुन्दर कोमल मधुर ख्वाब सी <br></br> मैं मरुथल का प्यासा हरिना <br></br> ललचाती मुझको सराब* सी</p>
<p></p>
<p>तुमको पाने की चाहत में <br></br> अब तक मचल रही हैं साँसें <br></br> तुम ही कह दो तुमको अपने <br></br> प्राणों का मनमीत लिखूँ क्या <br></br> तुम पर कोई गीत लिखूँ क्या</p>
<p></p>
<p>तुम शीतल हो चंदन वन सी <br></br> तुम निर्मल-जल, तुम उपवन सी <br></br> तुम चंदा सी और चाँदनी- <br></br> सी तुम हो, तुम मलय-पवन सी</p>
<p></p>
<p>नयन मूँद कर तुमको देखूँ…</p>
<p>तुम पर कोई गीत लिखूँ क्या</p>
<p></p>
<p>तुम सुगंध खिलते गुलाब सी <br/> सुन्दर कोमल मधुर ख्वाब सी <br/> मैं मरुथल का प्यासा हरिना <br/> ललचाती मुझको सराब* सी</p>
<p></p>
<p>तुमको पाने की चाहत में <br/> अब तक मचल रही हैं साँसें <br/> तुम ही कह दो तुमको अपने <br/> प्राणों का मनमीत लिखूँ क्या <br/> तुम पर कोई गीत लिखूँ क्या</p>
<p></p>
<p>तुम शीतल हो चंदन वन सी <br/> तुम निर्मल-जल, तुम उपवन सी <br/> तुम चंदा सी और चाँदनी- <br/> सी तुम हो, तुम मलय-पवन सी</p>
<p></p>
<p>नयन मूँद कर तुमको देखूँ <br/> तुम मेरे मन पर छा जाती <br/> कहो नयन-सुख क्या लिक्खूँ मैं <br/> तुमको मन का प्रीत लिखूँ क्या <br/> तुम पर कोई गीत लिखूँ क्या </p>
<p></p>
<p>*मृग मरीचिका </p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित </p>
<p></p>
<p>आशीष यादव</p>दर्दtag:openbooks.ning.com,2019-06-01:5170231:BlogPost:9853042019-06-01T11:32:13.000Zआशीष यादवhttp://openbooks.ning.com/profile/Ashishyadav
<p>ये रातें जल रही हैं,</p>
<p>वो बातें खल रही हैं<br></br>लगा दी ठेस तुमने दिल के अंदर<br></br>नसें अंगार बनकर जल रही हैं</p>
<p></p>
<p>मौसम सर्द है,</p>
<p>जीवन में लेकिन<br></br>लगी है आग,</p>
<p>तन मन जल रहा है।<br></br>जिसे उम्मीद से बढ़कर था माना<br></br>वही घाती बना है छल रहा है।</p>
<p></p>
<p></p>
<p>तुम्हारी ठोकरों के बीच आकर<br></br>बहुत टूटा हुआ हूँ, लुट गया हूँ<br></br>तेरा सम्मान खोकर, स्नेह खोकर<br></br>स्वयं ही बुझ चुका हूँ, घुट गया हूँ।</p>
<p></p>
<p></p>
<p>यहाँ हालात क्या से क्या हुआ है<br></br>नहीं कुछ सूझता…</p>
<p>ये रातें जल रही हैं,</p>
<p>वो बातें खल रही हैं<br/>लगा दी ठेस तुमने दिल के अंदर<br/>नसें अंगार बनकर जल रही हैं</p>
<p></p>
<p>मौसम सर्द है,</p>
<p>जीवन में लेकिन<br/>लगी है आग,</p>
<p>तन मन जल रहा है।<br/>जिसे उम्मीद से बढ़कर था माना<br/>वही घाती बना है छल रहा है।</p>
<p></p>
<p></p>
<p>तुम्हारी ठोकरों के बीच आकर<br/>बहुत टूटा हुआ हूँ, लुट गया हूँ<br/>तेरा सम्मान खोकर, स्नेह खोकर<br/>स्वयं ही बुझ चुका हूँ, घुट गया हूँ।</p>
<p></p>
<p></p>
<p>यहाँ हालात क्या से क्या हुआ है<br/>नहीं कुछ सूझता निरुपाय हूँ मैं<br/>कहाँ आकर फसा हूँ दलदलों में<br/>विवश लाचार हूँ असहाय हूँ मैं।</p>
<p></p>
<p></p>
<p>इधर दुनिया के ताने मेहनें है<br/>उधर दुनिया मेरी बर्बाद सी है<br/>छिपाऊँ किस तरह से भेद सारे<br/>बनी यह जिंदगी संवाद सी है।</p>
<p></p>
<p></p>
<p>वहीं सूखे से बूढ़े वृक्ष नीचे<br/>सघन छाया में पलना चाहता था<br/>कि जिन उँगली को थामे चल रहा था<br/>उन्हीं के साथ चलना चाहता था।</p>
<p></p>
<p></p>
<p>सभी कुछ रुक गया है जिंदगी में<br/>बची कुछ साँस हैं, कब तक चलेंगीं? <br/>चला तो जाऊँगा मैं छोड़ सब कुछ<br/>मगर यादें मेरी तुझको खलेंगीं।</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>हम तुम, दो तट नदी केtag:openbooks.ning.com,2017-04-01:5170231:BlogPost:8466432017-04-01T08:00:00.000Zआशीष यादवhttp://openbooks.ning.com/profile/Ashishyadav
<p>हम तुम <br></br> दो तट नदी के <br></br> उद्गम से ही साथ रहें हैं <br></br> जलधारा के साथ बहे हैं</p>
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<p>किन्तु हमारे किस्से कैसे, हिस्से कैसे <br></br> सबने देखा, सबने जाना, <br></br> रीति-कुरीति, रस्म-रिवाज, अपने-पराये <br></br> सब हमारे बीच आये <br></br> एक छोर तुम एक छोर मैं <br></br> इनकी बस हम दो ही सीमाएं</p>
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<p>जब इनमे अलगाव हुआ दुराव हुआ <br></br> धर्म-जाति का भेदभाव हुआ <br></br> क्षेत्रवाद और ऊँच-नीच का पतितं आविर्भाव हुआ <br></br> तब हम तुम <br></br> इस जघन्य विस्तार से और दूर हुए <br></br> तब भी इन्हें हमने ही हदों…</p>
<p>हम तुम <br/> दो तट नदी के <br/> उद्गम से ही साथ रहें हैं <br/> जलधारा के साथ बहे हैं</p>
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<p>किन्तु हमारे किस्से कैसे, हिस्से कैसे <br/> सबने देखा, सबने जाना, <br/> रीति-कुरीति, रस्म-रिवाज, अपने-पराये <br/> सब हमारे बीच आये <br/> एक छोर तुम एक छोर मैं <br/> इनकी बस हम दो ही सीमाएं</p>
<p></p>
<p>जब इनमे अलगाव हुआ दुराव हुआ <br/> धर्म-जाति का भेदभाव हुआ <br/> क्षेत्रवाद और ऊँच-नीच का पतितं आविर्भाव हुआ <br/> तब हम तुम <br/> इस जघन्य विस्तार से और दूर हुए <br/> तब भी इन्हें हमने ही हदों में बाँधा</p>
<p><br/> हाय, <br/> हमारा प्यार और ये जगत व्यवहार <br/> दूर से एक दूजे को निहारना, पुकारना <br/> मन ही मन इस सामाजिक व्यवस्था को दुत्कारना</p>
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<p>मन में असीम प्यास मिलने की आस लिए <br/> संसार भूल हम दो कूल <br/> आगे बढ़े, समीप आने लगे <br/> फिर वही <br/> रीति-कुरीति, रस्म-रिवाज, अपने-पराये <br/> स्वयं को सिकुड़ते पाये <br/> इस सँकरेपन से पुनः धर्म-जाति क्षेत्रवाद की धारा तेज हुई <br/> मानव और मानवता पर <br/> दानव और दानवता का सैलाब उमड़ा <br/> ये लहरें मानवता की बस्ती लीलने को तैयार हो गई</p>
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<p>हम दोनों की तन्द्रा टूटी <br/> ऐसी सामाजिकता, ओछी मानसिकता <br/> डुबो न दे मानव को मानवता को <br/> इसीलिए <br/> मन की असीम प्यास भूल, मिलने की आस भूल <br/> हम फिर से दूर हुए <br/> लहरें शान्त हुईं</p>
<p></p>
<p>हम नही मिलेंगे <br/> क्योंकि हम तो तट हैं <br/> हाँ <br/> साथ बहेंगे साथ रहेंगें <br/> दूर तक <br/> अंत तक</p>
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<p>मौलिक एवं अप्रकाशित </p>
<p>आशीष यादव</p>यह सियासत आप पर हम पर कहर होने को हैtag:openbooks.ning.com,2017-03-03:5170231:BlogPost:8403742017-03-03T06:30:00.000Zआशीष यादवhttp://openbooks.ning.com/profile/Ashishyadav
<p>2122 2122 2122 212<br></br> <br></br> पग सियासी आँच पर मधु भी जहर होने को है।<br></br> बच गया ईमान जो कुछ दर-ब-दर होने को है।।<br></br> <br></br> मुफलिसों को छोड़कर गायों गधों पर आ गई।<br></br> यह सियासत आप पर हम पर कहर होने को है।।<br></br> <br></br> उड़ रहा है जो हकीकत की धरा को छोड़ कर।<br></br> बेखबर वो जल्द ही अब बाखबर होने को है।।<br></br> <br></br> वो जो बल खा के चलें इतरा के घूमें कू-ब-कू।<br></br> खत्म उनके हुस्न की भी दोपहर होने को है।।<br></br> <br></br> जुल्म से घबरा के थक के हार के बैठो न तुम।</p>
<p>"हो भयावह रात कितनी भी सहर होने…</p>
<p>2122 2122 2122 212<br/> <br/> पग सियासी आँच पर मधु भी जहर होने को है।<br/> बच गया ईमान जो कुछ दर-ब-दर होने को है।।<br/> <br/> मुफलिसों को छोड़कर गायों गधों पर आ गई।<br/> यह सियासत आप पर हम पर कहर होने को है।।<br/> <br/> उड़ रहा है जो हकीकत की धरा को छोड़ कर।<br/> बेखबर वो जल्द ही अब बाखबर होने को है।।<br/> <br/> वो जो बल खा के चलें इतरा के घूमें कू-ब-कू।<br/> खत्म उनके हुस्न की भी दोपहर होने को है।।<br/> <br/> जुल्म से घबरा के थक के हार के बैठो न तुम।</p>
<p>"हो भयावह रात कितनी भी सहर होने को है॥"</p>
<p><br/> आशीष यादव<br/>मौलिक एवम् अप्रकाशित</p>वीर अब्दुल हमीदtag:openbooks.ning.com,2017-01-19:5170231:BlogPost:8295752017-01-19T09:00:00.000Zआशीष यादवhttp://openbooks.ning.com/profile/Ashishyadav
<p style="text-align: left;">हम मजा लूटते कितने सुख चैन से <br></br> कुछ तो सोचो, मजा पे क्या अधिकार है ?<br></br> जो शहादत दिए हैं हमारे लिए <br></br> याद उनको करो, ना तो धिक्कार है <br></br> <br></br> अपना कर्तव्य क्या है धरा के लिए <br></br> फ़र्ज़ कितना चुकाया है हमने यहाँ <br></br> मैं कहानी सुनाता हूँ उस वीर की <br></br> खो गया आज है जो न जाने कहाँ <br></br> <br></br> वीरता हरदम ही दुनिया में पूजी जाती है <br></br> बन के ज्वाला दुष्टों के हौसले जलाती है</p>
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<p>ऐसे ही वीरता की गाथा आज गाता हूँ <br></br> वीर अब्दुल हमीद की कथा…</p>
<p style="text-align: left;">हम मजा लूटते कितने सुख चैन से <br/> कुछ तो सोचो, मजा पे क्या अधिकार है ?<br/> जो शहादत दिए हैं हमारे लिए <br/> याद उनको करो, ना तो धिक्कार है <br/> <br/> अपना कर्तव्य क्या है धरा के लिए <br/> फ़र्ज़ कितना चुकाया है हमने यहाँ <br/> मैं कहानी सुनाता हूँ उस वीर की <br/> खो गया आज है जो न जाने कहाँ <br/> <br/> वीरता हरदम ही दुनिया में पूजी जाती है <br/> बन के ज्वाला दुष्टों के हौसले जलाती है</p>
<p></p>
<p>ऐसे ही वीरता की गाथा आज गाता हूँ <br/> वीर अब्दुल हमीद की कथा सुनाता हूँ</p>
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<p>जिला ग़ाज़ीपुर में है धामूपुर ग्राम, सुनो <br/> जन्मा था नाहर, था हमीद जिसका नाम, सुनो</p>
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<p>ईसवी उन्नीस सौ तैंतीस पहली जुलाई थी <br/> शुभ घड़ी ये उस्मान फ़ारूक़ के घर आई थी <br/> </p>
<p>मैंने माना तुमने माना सारी दुनिया मानी <br/> हिन्द देश का रहने वाला था कोई तूफानी <br/> जो था सच्चा हिंदुस्तानी, जो था सच्चा हिंदुस्तानी <br/> <br/> दादी कहती, "बेटा, घर के काम काज कुछ सिखले"<br/> कहता बालक," फउज में जाईब, दादी बात तू बुझ ले"<br/> बचपन से ही हिन्द देश से जुड़ गया था रूहानी</p>
<p>हिन्द देश का रहने वाला था कोई तूफानी <br/> जो था सच्चा हिंदुस्तानी, जो था सच्चा हिंदुस्तानी <br/> <br/> <br/> नाम हमीद देशभक्ति का सपना जिसको भाया <br/> बाँध कफ़न सिर घर से कर ज़िद सेना में वो आया <br/> खाया कसम की दे दूँगा मैं देश को अपनी जवानी <br/> हिन्द देश का रहने वाला था कोई तूफानी <br/> जो था सच्चा हिंदुस्तानी, जो था सच्चा हिंदुस्तानी <br/> <br/> सेना में आकर हमीद ऐसे करतब दिखलाता <br/> पहले से ही है ये प्रशिक्षित सबको भ्रम हो जाता <br/> वीर जाँबाज जो बना हुआ था सबके लिए कहानी <br/> हिन्द देश का रहने वाला था कोई तूफानी <br/> जो था सच्चा हिंदुस्तानी, जो था सच्चा हिंदुस्तानी <br/> <br/> जो होके जवान निज देश को दिया न कुछ <br/> उसकी जवानी पे जवानी खुद रोती है <br/> प्रेम-पाश में ही फँसा रहा महबूब के <br/> वो क्या जाने जवानी की रवानी कैसी होती है <br/> *आठ साल बीते जब चीन से लड़ा हमीद <br/> दिखला दिया कि ये जवानी कैसी होती है <br/> रुक नही सकती ये बाँध जैसा बांध लो जी <br/> राह ढूँढ लेगी बहते पानी जैसी होती है <br/> <br/> जो अशांति खातिर जन्मा शांति से न रह पायेगा <br/> दिन-रात तबाही सोचेगा पर खुद तबाह हो जाएगा <br/> पाकिस्तान सन पैंसठ में ये जुमला सच कर दिखलाया <br/> निज भाई से ही लड़ बैठा और भारी मुँह की भी खाया <br/> <br/> सितंबर सन पैंसठ की बेला <br/> पाक ने क्रूर खेल जब खेला</p>
<p><br/> दन-दन लगा दागने गोला <br/> अब्दुल जोश में जय-हिन्द बोला</p>
<p><br/> पैंटुन टैंक अमरिका वाला <br/> बना अभेद अचूक निराला</p>
<p><br/> ज्वाला बरस रही थी बाहर <br/> भिड़ने चला टैंक से नाहर</p>
<p><br/> शोला उमड़ पड़ा था रण में <br/> पहला टैंक उड़ाया क्षण में</p>
<p></p>
<p>बनकर अग्नि-पुञ्ज का झोंका <br/> पैंटुन टैंक दूसरा रोका</p>
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<p>आया एक दहकता गोला <br/> ऊपर गिरा शेर के शोला</p>
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<p>तीसरा टैंक निकट तब आया <br/> मारा खण्ड-खण्ड छितराया <br/> <br/> तब,<br/> जान बचाकर लगे भागने गीदड़ पाकिस्तानी <br/> हिन्द देश का रहने वाला था कोई तूफानी <br/> जो था सच्चा हिंदुस्तानी, जो था सच्चा हिंदुस्तानी <br/> <br/> दस सितंबर की यह घटना सन पैंसठ की जंग <br/> देख हौसला एक वीर का हुआ जमाना दंग <br/> चक्र-परमवीर **सात दिनों के भीतर ही वह पाया <br/> तन अर्पण कर मातृभूमि को अब्दुल वीर कहाया <br/> <br/> दे आशीष, लिखूँ विद्रोही बन, शारदा भवानी <br/> हिन्द देश का रहने वाला था कोई तूफानी <br/> जो था सच्चा हिंदुस्तानी, जो था सच्चा हिंदुस्तानी</p>
<p></p>
<p>* 1954 में अब्दुल हमीद भारतीय सेना में भर्ती हुए। आठ साल के दौरान ही चीन से युद्ध जिसमे बहादुरी के लिए सैन्य सेवा मेडल, समर सेवा मेडल एवं रक्षा मेडल दिया गया। <br/> ** दस सितंबर 1965 को शहीद वीर को 16 सितंबर 1965 को ही परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। <br/> <br/> मौलिक एवं अप्रकाशित <br/> आशीष यादव</p>