अजय गुप्ता 'अजेय's Posts - Open Books Online2024-03-28T23:15:19Zअजय गुप्ता 'अजेयhttp://openbooks.ning.com/profile/3tuckjroyzywihttp://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/12269906695?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1http://openbooks.ning.com/profiles/blog/feed?user=3tuckjroyzywi&xn_auth=noग़ज़ल (आदमी सी फ़ितरतें हों आदमी की)tag:openbooks.ning.com,2020-10-07:5170231:BlogPost:10265742020-10-07T11:30:00.000Zअजय गुप्ता 'अजेयhttp://openbooks.ning.com/profile/3tuckjroyzywi
<p>कौशिशें इतनी सी हैं बस शायरी की </p>
<p>आदमी सी फ़ितरतें हों आदमी की</p>
<p></p>
<p>हद जुनूँ की तोड़ कर की है इबादत</p>
<p>ख़ूँँ जलाकर अपना तेरी आरती की</p>
<p></p>
<p>गोलियों की ही धमक है हर दिशा में<br></br> और तू कहता है ग़ज़लें आशिक़ी की!</p>
<p></p>
<p>भूले-बिसरे लफ़्ज़ कुछ आये हवा में<br></br> कोई बातें कर रहा है सादगी की</p>
<p></p>
<p>इतनी लंबी हो गयी है ये अमावस<br></br> चाँद भी अब शक्ल भूला चांदनी की</p>
<p></p>
<p>बूँद मय की तुम पिलाओ वक़्ते-रुखसत<br></br> आखि़री ख्वा़हिश यही है ज़िन्दगी…</p>
<p>कौशिशें इतनी सी हैं बस शायरी की </p>
<p>आदमी सी फ़ितरतें हों आदमी की</p>
<p></p>
<p>हद जुनूँ की तोड़ कर की है इबादत</p>
<p>ख़ूँँ जलाकर अपना तेरी आरती की</p>
<p></p>
<p>गोलियों की ही धमक है हर दिशा में<br/> और तू कहता है ग़ज़लें आशिक़ी की!</p>
<p></p>
<p>भूले-बिसरे लफ़्ज़ कुछ आये हवा में<br/> कोई बातें कर रहा है सादगी की</p>
<p></p>
<p>इतनी लंबी हो गयी है ये अमावस<br/> चाँद भी अब शक्ल भूला चांदनी की</p>
<p></p>
<p>बूँद मय की तुम पिलाओ वक़्ते-रुखसत<br/> आखि़री ख्वा़हिश यही है ज़िन्दगी की</p>
<p></p>
<p>#मौलिक व अप्रकाशित</p>ग़ज़ल (और कितनी देर तक सोयेंगें हम)tag:openbooks.ning.com,2020-09-19:5170231:BlogPost:10179222020-09-19T17:50:42.000Zअजय गुप्ता 'अजेयhttp://openbooks.ning.com/profile/3tuckjroyzywi
<p dir="ltr"><span style="font-size: 12pt;">पल सुनहरी सुबह के खोयेंगें हम</span><br></br><span style="font-size: 12pt;">और कितनी देर तक सोयेंगें हम।</span></p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr"><span style="font-size: 12pt;">रात काली तो कभी की जा चुकी</span><br></br><span style="font-size: 12pt;">अब अँधेरा कब तलक ढोयेंगे हम।</span></p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr"><span style="font-size: 12pt;">जुगनुओं जैसा चमकना सीख लें </span><br></br><span style="font-size: 12pt;">रोशनी के बीज फिर बोयेंगे…</span></p>
<p dir="ltr"><span style="font-size: 12pt;">पल सुनहरी सुबह के खोयेंगें हम</span><br/><span style="font-size: 12pt;">और कितनी देर तक सोयेंगें हम।</span></p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr"><span style="font-size: 12pt;">रात काली तो कभी की जा चुकी</span><br/><span style="font-size: 12pt;">अब अँधेरा कब तलक ढोयेंगे हम।</span></p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr"><span style="font-size: 12pt;">जुगनुओं जैसा चमकना सीख लें </span><br/><span style="font-size: 12pt;">रोशनी के बीज फिर बोयेंगे हम।</span></p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr"><span style="font-size: 12pt;">बीत जाता है समय जैसा भी हो</span><br/><span style="font-size: 12pt;">क्यों हँसेंगे और क्यों रोयेंगें हम।</span></p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr"><span style="font-size: 12pt;">आदतें अहसां-फरामोशी की हैं</span><br/><span style="font-size: 12pt;">चाँदनी को धूप से धोयेंगें हम।</span></p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr"><span style="font-size: 12pt;">काम बचपन में किये जो फिर करें</span><br/><span style="font-size: 12pt;">क्या कभी इतने बड़े होयेंगें हम।</span></p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr"><span style="font-size: 12pt;">#मौलिक व अप्रकाशित</span></p>एक ग़ज़ल (वैलेंटाइन डे स्पेशल)tag:openbooks.ning.com,2019-02-14:5170231:BlogPost:9748442019-02-14T08:24:21.000Zअजय गुप्ता 'अजेयhttp://openbooks.ning.com/profile/3tuckjroyzywi
<p>एक ग़ज़ल।<br></br>**********</p>
<p>बँध गई हैं एक दिन से प्रेम की अनुभूतियाँ<br></br>बिक रही रैपर लपेटे प्रेम की अनुभूतियाँ</p>
<p></p>
<p>शाश्वत से हो गई नश्वर विदेशी चाल में<br></br>भूल बैठी स्वयं को ऐसे प्रेम की अनुभूतियाँ</p>
<p></p>
<p>प्रेम पथ पर अब विकल्पों के बिना जीवन नहीं<br></br>आज मुझ से, कल किसी से, प्रेम की अनुभूतियाँ</p>
<p></p>
<p>पाप से और पुण्य से हो कर पृथक ये सोचिए<br></br>लज्जा में लिपटी हैं क्यों ये प्रेम की अनुभूतियाँ</p>
<p></p>
<p>परवरिश बंधन में हो तो दोष किसको दीजिये<br></br>कैसे पहचानेंगे…</p>
<p>एक ग़ज़ल।<br/>**********</p>
<p>बँध गई हैं एक दिन से प्रेम की अनुभूतियाँ<br/>बिक रही रैपर लपेटे प्रेम की अनुभूतियाँ</p>
<p></p>
<p>शाश्वत से हो गई नश्वर विदेशी चाल में<br/>भूल बैठी स्वयं को ऐसे प्रेम की अनुभूतियाँ</p>
<p></p>
<p>प्रेम पथ पर अब विकल्पों के बिना जीवन नहीं<br/>आज मुझ से, कल किसी से, प्रेम की अनुभूतियाँ</p>
<p></p>
<p>पाप से और पुण्य से हो कर पृथक ये सोचिए<br/>लज्जा में लिपटी हैं क्यों ये प्रेम की अनुभूतियाँ</p>
<p></p>
<p>परवरिश बंधन में हो तो दोष किसको दीजिये<br/>कैसे पहचानेंगे बच्चे प्रेम की अनुभूतियाँ</p>
<p></p>
<p>#मौलिक व अप्रकाशित</p>एक ग़ज़ल (हिलता है तो लगता ज़िंदा है साया)tag:openbooks.ning.com,2019-02-07:5170231:BlogPost:9729712019-02-07T07:08:04.000Zअजय गुप्ता 'अजेयhttp://openbooks.ning.com/profile/3tuckjroyzywi
<div class="xg_column xg_span-16" id="column1"><div class="xj_canvas" id="xg_canvas"><div class="xg_module"><div class="xg_module_body pad"><div class="xg_user_generated"><p>हिलता है तो लगता ज़िंदा है साया</p>
<p>लेकिन चुप है, शायद गूँगा है साया</p>
<p></p>
<p>कहने में तो है अच्छा हमराही पर</p>
<p>सिर्फ़ उजालों में सँग होता है साया</p>
<p></p>
<p>सूरज सर पर हो तो बिछता पाँवों में</p>
<p>आड़ में मेरी धूप से बचता है साया</p>
<p></p>
<p>असमंजस में हूँ मैं तुमसे ये सुनकर</p>
<p>अँधियारे में तुमने देखा…</p>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
<div class="xg_column xg_span-16" id="column1"><div id="xg_canvas" class="xj_canvas"><div class="xg_module"><div class="xg_module_body pad"><div class="xg_user_generated"><p>हिलता है तो लगता ज़िंदा है साया</p>
<p>लेकिन चुप है, शायद गूँगा है साया</p>
<p></p>
<p>कहने में तो है अच्छा हमराही पर</p>
<p>सिर्फ़ उजालों में सँग होता है साया</p>
<p></p>
<p>सूरज सर पर हो तो बिछता पाँवों में</p>
<p>आड़ में मेरी धूप से बचता है साया</p>
<p></p>
<p>असमंजस में हूँ मैं तुमसे ये सुनकर</p>
<p>अँधियारे में तुमने देखा है साया</p>
<p></p>
<p>वो पौधा महफूज़ रहे पर फले नहीं</p>
<p>जिस ऊपर बरगद का रहता है साया</p>
<p></p>
<p>मेरे सिवा ये सबके गले से लगता है<br/>कैसे मानूँ मेरा अपना है साया</p>
<p></p>
<p>गाँव में साये खुल्ले-खुल्ले रहते हैं<br/>शहर में तो साये पर गिरता है साया</p>
<p></p>
<p>बड़े नसीबों वाले हैं वो लोग 'अजेय</p>
<p>जिनके सर पर मात-पिता का है साया</p>
<p></p>
<p>#मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
<p></p>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
<div class="xg_column xg_span-5 xg_last" id="column2"><div class="xj_user_info"><div class="xg_module" id="xg_module_account"><div class="xg_module_head"></div>
</div>
</div>
<div class="xj_sidebar_content"><div class="xg_module html_module module_text xg_reset"><div class="xg_module_body xg_user_generated"><p></p>
</div>
</div>
</div>
</div>ग़ज़ल (छिपा बैठा चितेरा है)tag:openbooks.ning.com,2018-12-10:5170231:BlogPost:9652072018-12-10T14:00:00.000Zअजय गुप्ता 'अजेयhttp://openbooks.ning.com/profile/3tuckjroyzywi
<p>दिखे हरसूँ अँधेरा है</p>
<p>कहाँ जाने सवेरा है</p>
<p> </p>
<p>नहीं दिखता कहीं रस्ता</p>
<p>कुहासा है घनेरा है</p>
<p> </p>
<p>हुनर सीखें नए कैसे</p>
<p>गुरु बिन आज चेरा है</p>
<p> </p>
<p>चुराता जा रहा साँसें</p>
<p>समय है या लुटेरा है</p>
<p> </p>
<p>बनाता है जो इंसा को</p>
<p>ये जीवन वो ठठेरा है</p>
<p> </p>
<p>नहीं शिकवा है साँपों से</p>
<p>डसे जाता सपेरा है</p>
<p> </p>
<p>नहीं घर रास है मुझको</p>
<p>दिलों में ही बसेरा है</p>
<p> </p>
<p>तेरा क्या और क्या मेरा</p>
<p>चले माया का फेरा…</p>
<p>दिखे हरसूँ अँधेरा है</p>
<p>कहाँ जाने सवेरा है</p>
<p> </p>
<p>नहीं दिखता कहीं रस्ता</p>
<p>कुहासा है घनेरा है</p>
<p> </p>
<p>हुनर सीखें नए कैसे</p>
<p>गुरु बिन आज चेरा है</p>
<p> </p>
<p>चुराता जा रहा साँसें</p>
<p>समय है या लुटेरा है</p>
<p> </p>
<p>बनाता है जो इंसा को</p>
<p>ये जीवन वो ठठेरा है</p>
<p> </p>
<p>नहीं शिकवा है साँपों से</p>
<p>डसे जाता सपेरा है</p>
<p> </p>
<p>नहीं घर रास है मुझको</p>
<p>दिलों में ही बसेरा है</p>
<p> </p>
<p>तेरा क्या और क्या मेरा</p>
<p>चले माया का फेरा है</p>
<p> </p>
<p>भरे हैं रंग दुनिया में</p>
<p>छिपा बैठा चितेरा है</p>