अमित वागर्थ's Posts - Open Books Online2024-03-28T19:35:57Zअमित वागर्थhttp://openbooks.ning.com/profile/amitkumardubeyanshhttp://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2991297831?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1http://openbooks.ning.com/profiles/blog/feed?user=3eb39gevq6vsk&xn_auth=noग़ज़ल -चाँद छुपकर अँधेरों में रोता रहाtag:openbooks.ning.com,2014-07-10:5170231:BlogPost:5572242014-07-10T05:28:17.000Zअमित वागर्थhttp://openbooks.ning.com/profile/amitkumardubeyansh
<p>212 212 212 212</p>
<p></p>
<p>रात जगता रहा दिन में सोता रहा</p>
<p>चाँद के ही सरीखे से होता रहा</p>
<p> </p>
<p>बादलों की हुकूमत हुई चाँद पर</p>
<p>चाँद छुपकर अँधेरों में रोता रहा</p>
<p> </p>
<p>उल्टे रस्ते ही जब मुझको भाने लगे</p>
<p>बारी बारी से अपनों को खोता रहा</p>
<p> </p>
<p>रस्म मैंने निभायी नहीं है मगर</p>
<p>दिल में रिश्तों को अपने संजोता रहा</p>
<p> </p>
<p>जो न मांगा मिला मुझको सौगात में</p>
<p>जिसको चाहा वो मुश्किल से होता रहा</p>
<p> </p>
<p>मैंने अपने गले से…</p>
<p>212 212 212 212</p>
<p></p>
<p>रात जगता रहा दिन में सोता रहा</p>
<p>चाँद के ही सरीखे से होता रहा</p>
<p> </p>
<p>बादलों की हुकूमत हुई चाँद पर</p>
<p>चाँद छुपकर अँधेरों में रोता रहा</p>
<p> </p>
<p>उल्टे रस्ते ही जब मुझको भाने लगे</p>
<p>बारी बारी से अपनों को खोता रहा</p>
<p> </p>
<p>रस्म मैंने निभायी नहीं है मगर</p>
<p>दिल में रिश्तों को अपने संजोता रहा</p>
<p> </p>
<p>जो न मांगा मिला मुझको सौगात में</p>
<p>जिसको चाहा वो मुश्किल से होता रहा</p>
<p> </p>
<p>मैंने अपने गले से लगाया जिसे</p>
<p>पीठ पर वो ही खंजर चुभोता रहा</p>
<p> </p>
<p>अमित कुमार दुबे मौलिक व अप्रकाशित</p>ग़ज़ल - बहाने पे बहाना हो रहा हैtag:openbooks.ning.com,2014-05-07:5170231:BlogPost:5377392014-05-07T05:30:00.000Zअमित वागर्थhttp://openbooks.ning.com/profile/amitkumardubeyansh
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">१२२२ १२२२ १२२</span></p>
<p></p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">जमाना अब दीवाना हो रहा है</span></p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">खुदी से ही बेगाना हो रहा है</span></p>
<p><span lang="EN-IN" xml:lang="EN-IN"> </span></p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">जला डाला था जिसने घर हमारा</span></p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">वही अब आशियाना हो रहा है</span></p>
<p><span lang="EN-IN" xml:lang="EN-IN"> </span></p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">जो हमने…</span></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">१२२२ १२२२ १२२</span></p>
<p></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">जमाना अब दीवाना हो रहा है</span></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">खुदी से ही बेगाना हो रहा है</span></p>
<p><span xml:lang="EN-IN" lang="EN-IN"> </span></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">जला डाला था जिसने घर हमारा</span></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">वही अब आशियाना हो रहा है</span></p>
<p><span xml:lang="EN-IN" lang="EN-IN"> </span></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">जो हमने पूछ ली उनसे हकीकत</span></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">बहाने पे बहाना हो रहा है</span></p>
<p><span xml:lang="EN-IN" lang="EN-IN"> </span></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">हमारे पास इक गैरत बची थी</span></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">उसी पर अब निशाना हो रहा है</span></p>
<p><span xml:lang="EN-IN" lang="EN-IN"> </span></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">हमें मजहब में अब वो बांट देगा</span></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">सुनो वो कातिलाना हो रहा है</span></p>
<p><span xml:lang="EN-IN" lang="EN-IN"> </span></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">मुहब्बत हम भी कर लेते मगर अब</span></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">सनम भी शातिराना हो रहा है</span></p>
<p><span xml:lang="EN-IN" lang="EN-IN"> </span></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">कहीं पर हो रहा है खेल खूनी</span></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">कहीं पर गीत गाना हो रहा है</span></p>
<p><span xml:lang="EN-IN" lang="EN-IN"> </span></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">अमित कुमार दुबे मौलिक व अप्रकाशित</span></p>ग़ज़ल - दिले-ग़ालिब कहाँ से लाओगेtag:openbooks.ning.com,2014-02-21:5170231:BlogPost:5138712014-02-21T13:32:19.000Zअमित वागर्थhttp://openbooks.ning.com/profile/amitkumardubeyansh
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">आज मजलूम को सताओगे</span></p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">बददुआ सात जन्म पाओगे</span></p>
<p> </p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">बह्र ग़ालिब की खूब लिख डालो</span></p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">दिले-ग़ालिब कहाँ से लाओगे</span></p>
<p> </p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">खुद को भगवान मान बैठेगा</span></p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">हद से ज्यादा जो सिर झुकाओगे</span></p>
<p> </p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">आज साहब बने हो रैली…</span></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">आज मजलूम को सताओगे</span></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">बददुआ सात जन्म पाओगे</span></p>
<p> </p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">बह्र ग़ालिब की खूब लिख डालो</span></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">दिले-ग़ालिब कहाँ से लाओगे</span></p>
<p> </p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">खुद को भगवान मान बैठेगा</span></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">हद से ज्यादा जो सिर झुकाओगे</span></p>
<p> </p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">आज साहब बने हो रैली में</span></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">कल तुम्हीं झुनझुना बजाओगे</span></p>
<p> </p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">खूब खोजी बने थे हाकिम के</span></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">अब हुनर जेल में दिखाओगे</span></p>
<p> </p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">अमित दुबे मौलिक व अप्रकाशित</span></p>ग़ज़ल - बज़्म थी तारों की उसमें चाँद का पहरा भी थाtag:openbooks.ning.com,2014-01-08:5170231:BlogPost:4967332014-01-08T13:30:00.000Zअमित वागर्थhttp://openbooks.ning.com/profile/amitkumardubeyansh
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">२१२२ २१२२ २१२२ २१२</span></p>
<p></p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">बज़्म थी तारों की उसमें चाँद का पहरा भी था</span></p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">धूम थी रानाइयों की दिल मेरा तन्हा भी था</span></p>
<p><span lang="EN-IN" xml:lang="EN-IN"> </span></p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">इक नदी थी नाव भी थी और था मौसम हसीं</span></p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">साथ तुम थे बाग़ गुल थे इश्क मस्ताना भी था…</span></p>
<p></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">२१२२ २१२२ २१२२ २१२</span></p>
<p></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">बज़्म थी तारों की उसमें चाँद का पहरा भी था</span></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">धूम थी रानाइयों की दिल मेरा तन्हा भी था</span></p>
<p><span xml:lang="EN-IN" lang="EN-IN"> </span></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">इक नदी थी नाव भी थी और था मौसम हसीं</span></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">साथ तुम थे बाग़ गुल थे इश्क मस्ताना भी था</span></p>
<p><span xml:lang="EN-IN" lang="EN-IN"> </span></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">यार की गलियों गया मैं फिर से लेकर आरज़ू</span></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">कुछ पुराने ख्वाब थे हर सिम्त वीराना भी था</span></p>
<p><span xml:lang="EN-IN" lang="EN-IN"> </span></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">कैसे - कैसे लोग मिलते हैं यहाँ देखो सही</span></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">बात में चीनी घुली थी दिल मगर काला भी था</span></p>
<p><span xml:lang="EN-IN" lang="EN-IN"> </span></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">वो अज़ब ही दौर था हर बात पर हँसते थे हम</span></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">ये जहाँ गोया लतीफ़ा मस्त बचकाना भी था</span></p>
<p></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">अमित दुबे</span></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">मौलिक व अप्रकाशित</span></p>
<p><strong><span xml:lang="HI" lang="HI">(संशोधित)</span></strong></p>
<p></p>ग़ज़ल -सिर हमारे इल्ज़ाम क्योंtag:openbooks.ning.com,2013-12-07:5170231:BlogPost:4838972013-12-07T17:30:00.000Zअमित वागर्थhttp://openbooks.ning.com/profile/amitkumardubeyansh
<p>2 1 2 2 2 2 1 2</p>
<p>.</p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">दफ़्तरों में आराम</span> <span lang="HI" xml:lang="HI">क्यों</span></p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">फाइलों में है काम</span> <span lang="HI" xml:lang="HI">क्यों</span></p>
<p> </p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">सुरमयी सी इक शाम है</span></p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">फिर उदासी के नाम</span> <span lang="HI" xml:lang="HI">क्यों</span></p>
<p> </p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">कर गया वो करतूत…</span></p>
<p>2 1 2 2 2 2 1 2</p>
<p>.</p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">दफ़्तरों में आराम</span> <span xml:lang="HI" lang="HI">क्यों</span></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">फाइलों में है काम</span> <span xml:lang="HI" lang="HI">क्यों</span></p>
<p> </p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">सुरमयी सी इक शाम है</span></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">फिर उदासी के नाम</span> <span xml:lang="HI" lang="HI">क्यों</span></p>
<p> </p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">कर गया वो करतूत पर</span></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">सिर हमारे इल्ज़ाम</span> <span xml:lang="HI" lang="HI">क्यों</span></p>
<p> </p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">नाम चाहिए था उसको भी</span></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">हो गये हम गुमनाम</span> <span xml:lang="HI" lang="HI">क्यों</span></p>
<p> </p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">इश्क़ फ़रमाया उसने भी</span></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">सिर्फ हम ही बदनाम</span> <span xml:lang="HI" lang="HI">क्यों</span></p>
<p> </p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">काँटों की इस बस्ती में भी</span></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">वो बना है गुलफाम</span> <span xml:lang="HI" lang="HI">क्यों</span></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">.</span></p>
<p><span xml:lang="HI" lang="HI">.</span></p>
<p>(मौलिक एवं अप्रकाशित)</p>
<p></p>
<p></p>समन्दर की लहरों सी है जिन्दगानीtag:openbooks.ning.com,2013-09-30:5170231:BlogPost:4446602013-09-30T08:30:00.000Zअमित वागर्थhttp://openbooks.ning.com/profile/amitkumardubeyansh
<p>1 2 2 1 2 2 1 2 2 1 2 2 <br/> <br/> समन्दर की लहरों सी है जिन्दगानी <br/> कभी बर्फ गोला कभी बहता पानी <br/> <br/> उदासी के बूटे जड़े हैं सभी में <br/> हो तेरी कहानी या मेरी कहानी <br/> <br/> बुढ़ापे में होने लगी ताज़पोशी <br/> किसी काम की अब नहीं है जवानी <br/> <br/> ये मौजें भी अब मुतमइन सी हैं लगती <br/> नहीं है वो जज्बा नहीं वो रवानी <br/> <br/> नये ये नज़ारे बहुत दिलनशीं हैं <br/> मगर मुझको भाती हैं चीज़ें पुरानी <br/> <br/> अमित दुबे अंश मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>1 2 2 1 2 2 1 2 2 1 2 2 <br/> <br/> समन्दर की लहरों सी है जिन्दगानी <br/> कभी बर्फ गोला कभी बहता पानी <br/> <br/> उदासी के बूटे जड़े हैं सभी में <br/> हो तेरी कहानी या मेरी कहानी <br/> <br/> बुढ़ापे में होने लगी ताज़पोशी <br/> किसी काम की अब नहीं है जवानी <br/> <br/> ये मौजें भी अब मुतमइन सी हैं लगती <br/> नहीं है वो जज्बा नहीं वो रवानी <br/> <br/> नये ये नज़ारे बहुत दिलनशीं हैं <br/> मगर मुझको भाती हैं चीज़ें पुरानी <br/> <br/> अमित दुबे अंश मौलिक व अप्रकाशित</p>आज तेरा पयाम आया हैtag:openbooks.ning.com,2013-08-24:5170231:BlogPost:4203432013-08-24T14:49:20.000Zअमित वागर्थhttp://openbooks.ning.com/profile/amitkumardubeyansh
<p>2 1 2 2 1 2 1 2 2 2 <br></br> <br></br> आज तेरा पयाम आया है <br></br> जैसे फिर माहताब आया है <br></br> <br></br> देख लो सज गये दिवारो दर <br></br> घर मेरे कोई शाद आया है <br></br> <br></br> अबके हो फैसला मेरे हक़ में <br></br> हांथ में इन्तखाब आया है <br></br> <br></br> इल्म की रौशनी जली मुझमें <br></br> यूँ लगा आफ़ताब आया है <br></br> <br></br> हो गये लाख़ रंग हसरत के <br></br> मेरा जोड़ा शहाब आया है</p>
<p></p>
<p>पयाम = सन्देश, माहताब = चाँद , शाद = ख़ुशी,<br></br>इन्तखाब = चुनाव, आफ़ताब = सूरज, शहाब = सुर्ख लाल रंग <br></br> <br></br> अमित कुमार दुबे मौलिक व…</p>
<p>2 1 2 2 1 2 1 2 2 2 <br/> <br/> आज तेरा पयाम आया है <br/> जैसे फिर माहताब आया है <br/> <br/> देख लो सज गये दिवारो दर <br/> घर मेरे कोई शाद आया है <br/> <br/> अबके हो फैसला मेरे हक़ में <br/> हांथ में इन्तखाब आया है <br/> <br/> इल्म की रौशनी जली मुझमें <br/> यूँ लगा आफ़ताब आया है <br/> <br/> हो गये लाख़ रंग हसरत के <br/> मेरा जोड़ा शहाब आया है</p>
<p></p>
<p>पयाम = सन्देश, माहताब = चाँद , शाद = ख़ुशी,<br/>इन्तखाब = चुनाव, आफ़ताब = सूरज, शहाब = सुर्ख लाल रंग <br/> <br/> अमित कुमार दुबे मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>वो जो पास होतेtag:openbooks.ning.com,2013-05-25:5170231:BlogPost:3678082013-05-25T13:00:00.000Zअमित वागर्थhttp://openbooks.ning.com/profile/amitkumardubeyansh
<div id="editor_root1"><div>वो जो पास होते कुछ ऐसा यार होता, </div>
<div>बेताब दिल हमारा खुश बेशुमार होता. </div>
<div> </div>
<div>हम हाले-दिल सुनाते बेचैन निगाहों से, </div>
<div>उनका भी कुछ अपना अंदाज़े-प्यार होता. </div>
<div> </div>
<div>एहसास जो हमें है उनको भी काश होता, </div>
<div>उनको भी मेरी चाहत का इंतज़ार होता. </div>
<div> </div>
<div>उनको भी इल्म होता दीवानगी का मेरे, </div>
<div>दीवानगी पे मेरे उनको खुमार होता. </div>
<div> </div>
<div>हम साथ-साथ चलते गिरते कभी संभलते…</div>
</div>
<div id="editor_root1"><div>वो जो पास होते कुछ ऐसा यार होता, </div>
<div>बेताब दिल हमारा खुश बेशुमार होता. </div>
<div> </div>
<div>हम हाले-दिल सुनाते बेचैन निगाहों से, </div>
<div>उनका भी कुछ अपना अंदाज़े-प्यार होता. </div>
<div> </div>
<div>एहसास जो हमें है उनको भी काश होता, </div>
<div>उनको भी मेरी चाहत का इंतज़ार होता. </div>
<div> </div>
<div>उनको भी इल्म होता दीवानगी का मेरे, </div>
<div>दीवानगी पे मेरे उनको खुमार होता. </div>
<div> </div>
<div>हम साथ-साथ चलते गिरते कभी संभलते , </div>
<div>हमराह है मेरा वो मुझे ऐतबार होता. </div>
<div><div id="editor_root1"><div>अमित कुमार दुबे.</div>
<div>मौलिक व अप्रकाशित </div>
</div>
</div>
</div>