Neelima Sharma Nivia's Posts - Open Books Online2024-03-29T15:09:39ZNeelima Sharma Niviahttp://openbooks.ning.com/profile/NeelimaSharmahttp://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2991286239?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1http://openbooks.ning.com/profiles/blog/feed?user=2umd5c8ofk5y7&xn_auth=noघातक हैं नाजायज रिश्तेtag:openbooks.ning.com,2014-03-27:5170231:BlogPost:5244522014-03-27T13:23:44.000ZNeelima Sharma Niviahttp://openbooks.ning.com/profile/NeelimaSharma
<p><span style="color: #888888;">जिन्दगी कब अपने रंग दिखा दे कुछ कहा नही जा सकता समय समय पर जिदगी में धुप और छाव का मौसम आता जाता हैं। एक लड़की की जिन्दगी भी ना जाने कितने मौसम लेकर आती हैं जब एक तरह के मौसम के साथ अब्यस्त होने लगती हैं तो मौसम का दूसरा रंग बदल जाता हैं और वोह घूमती रहती हैं अपने आप को सम्हालती हुयी तो कभी भिगोती हुयी । भावनाओं का अतिरेक भी उनकी संवेदनशीलता पर हावी होकर बहा ले जाता हैं उनको समंदर में जहाँ दिर डूबना होता हैं बाहर निकल आने का कोई रास्ता नही होता और यह जब रिश्तो के…</span></p>
<p><span style="color: #888888;">जिन्दगी कब अपने रंग दिखा दे कुछ कहा नही जा सकता समय समय पर जिदगी में धुप और छाव का मौसम आता जाता हैं। एक लड़की की जिन्दगी भी ना जाने कितने मौसम लेकर आती हैं जब एक तरह के मौसम के साथ अब्यस्त होने लगती हैं तो मौसम का दूसरा रंग बदल जाता हैं और वोह घूमती रहती हैं अपने आप को सम्हालती हुयी तो कभी भिगोती हुयी । भावनाओं का अतिरेक भी उनकी संवेदनशीलता पर हावी होकर बहा ले जाता हैं उनको समंदर में जहाँ दिर डूबना होता हैं बाहर निकल आने का कोई रास्ता नही होता और यह जब रिश्तो के तानो -बानो से से नेह के बंधन टूट जाते हैं तो आर्तनाद कर उठ'ता हैं चित्त और तब होती हैं बगावत। … कभी प्रत्यक्ष रूप से , कभी परोक्ष रूप से … गाडी की सीटी २ किलोमीटर दूर भी सुनायी दे रही थी और सरोज स्टोर में अँधेरे में मुह छिपाये खुद से खुद को कभी प्यार कर रही थी तो कभी दुःख सेद्रवित मन को सांत्वना। इसी स्टोर नुमा कमरे में उसे दुल्हन बना कर लाया गया था। लाल सुर्ख जोड़ा उसके गोर रंग पर खूब फ़ब रहा था। हाथो में लाल चूड़ियाँ पैरो हाथो में गहरी रची मेहंदी। ।बड़ी -बड़ी कजरारी आँखे उस पार सुतवा नाक गुलाब की पंखुरी जैसे होंठ। कोई शायर देखे तो ग़ज़ल कह उठे। पूरे गांव में उसके जैसे रूपवती दुल्हन नही आयी थी।वोह भी अमीर किसान के शराबी बेटे के लिय ,। सरोज भी लंगूर के हाथ लगी हूर की फुसफुसाहटे सुन रही थी गरीब घर की बेटी सरोज जिसने सिर्फ १० वी तक पढ़ाई की थी उसमें भी इंग्लिश में उसकी कम्पार्टमेंट आयी थी। एक गरीब बाप की दौलत उसकी बेटी होती हैं। उस पर अगर बेटी खूबसूरत हो तो उस दौलत को अवैध रूप से कब्जाने को बहुत से लोग अपने दांव खेलने लगते हैं। बिना माँ की बेटी का बाप कितना भी ख्याल रखे कब आँख से ओझल हो जायेगी इसका खटका लगा रहता। उत्तरप्रदेश के बहुत छोटे से गांव बझेड़ी में जब बेटिया १७ बरस की उम्र पार करती हैं तो शोहदो की आँखे भी चमकने लगती हैं। कच्चे मांस की खुशबू उनके नथुने में भर कर उन्हें भोग के लिय आमंत्रित करती सी लगती हैं और शोहदे तब अपने पर नियंत्रण कर ले तो वोह इंसान न कहलाने लग जाये ! बेटी की बढ़ती उठान से परेशान रामभरोसे अपने छोटे से कोठरे में हुक्का गुदगुदाते हुए सोचता कि कहाँ से लाएगा अपनी इतनी समझदार बेटी को ब्याहने के लिय पैसा।दो बीघा जमीन वोह भी प्रधान के पास गिरवी रखी हैं मूल तोदूर ब्याज भी चुकता नही हो पता। आज प्रधान जी से कहना होगा कि जमीन बेचकर अपना मूल धन ले ले और बाकी के बचे पैसे उसे दे दे ताकि वह भी बेटी के हाथ पीले करके गंगा नहा ले। बेटा अपने भाग से खुद कमा खायेगा। सोचो में गुम राम भरोसे हुक्का गुड़गुड़ाते हुए सोच रहा था कि अगर ईश्वर ने उसको बेटीही देनी थी तो पत्नी को तो नही बुलाता< कम से कम माँ बेटी को सम्हालती तो सही। दो बेटे होते तो घर में दहेज़ भी आता। तभी बाहर से किसी ने उसको आवाज़ लगायी।लापरवाही से उसने अनसुनी कर दी परन्तु जब आवाज़ फिर से गूंजी उसके कानो में तो उसके झटके से अपनी लोई को लपेटा और जूतियाँ पहन कर बाहर आया। " अरे !प्रधान जी !! सौ बरस जिएंगे आप !बस अभी आप को ही याद कर रहा था !!!" " क्यों राम भरोसे !! पैसे का इंतज़ाम हो गया क्या ? जो ब्याज चुकाने के लिय मुझे याद कर रहा था !" "नही मालिक ! हम छोटे लोग ,कहाँ से लाये पैसे ? , मैं तो जवान हो रही लड़की की चिंता में गांव से बाहर भी काम करने नही जा सकता ! " " तू पैसे चूका सकता है तो बात कर वर्ना तेरी लड़की के ब्याह का तो मैं इंतज़ाम कर दूँ !!" " मालिक आप माई बाप हैं !! " " जहाँ कहेंगे , जैसे कहेंगे कर दूंगा बस बेटी इज्जत से अपने घर चली जाए !" कहते कहते राम भरोसे की आँखों में आंसू आगये। प्रधान जी अपनी बहन के छोटे बेटे के लिय सरोज का हाथ मांगने आये थे। ठीक ठाक जमीन थी एक आम का बाग था। पैसे वाले लोग थे घर की मालकिनप्रधान की बहन पिछले बरस स्वर्ग सिधार गयी थी। दहेज़ के लालच में बड़े बेटे का ब्याह एक पढ़ी लिखी शहर की लड़की से आज से दस बरस पहले किया था। उस लड़की ने ससुराल मैं रहकर p.c.s के एग्जाम दिए थे और आज पीलीभीत में जिला निबंधन अधिकारी के पद पर कार्यरत थी। सरकारी गाड़ी रूतबा मिल जाने पर ससुराल पति सब हेय लगते थे। किसान पति को उसने हाउस हस्बैंड बना कर रखा हुआ था जो उसके बड़े होते बच्चो का ख्याल रखता। इसलिए अब परिवार को दुसरे बेटे के लिय कम पढ़ी लिखी गांव की गरीब लड़की कि दरकार थी। बेटा शराबी और जुआरी था। खेत की कमाई हाथ आते ही सबसे पहले ठेके पर जाना होता था। बहन के ना रहने पर जीजा को गरम रोटी और बहन के बेटे को शाम को घर आने का बहाना मिल जाए। इसलिय राम भरोसे की बेटी को दुल्हन बनाकर गाजे बाजे के संग लाया गया। । मेमसाहेब बनी जेठानी ने अपने पति को तो एक सप्ताह पहले आने दिया परन्तु खुद एन मौके पर आयी और पति को साथ वापिस लेकर तुरंत लौट गयी। दबंग पत्नी के सामने बड़े बेटे रमेश कि क्या चलती। छोटा बेटा सुरेश बहुत खुश था कि उसका ब्याह हो गया। घूँघट में लिपटी बहू का मुह देखने को बार बार कमरे के चक्कर लगता तो मोहल्ले भर की भाभियाँ द्विअर्थी मजाक से उसको बाहर का रास्ता दिखा देती। रात भर उसने ठेके पर दोस्ती संग शराब पी और भद्दे मजाक करके बीबी का बल खाती देह का वर्णन किया। सुबह ईश्वर पूजा के पश्चात् शाम की कथा में भी धुत्त होकर उसने हंगामा किया कि उसको उसकी बीबी के पास जाने क्यों नही दिया गया कल रात। अपने बेईज्ज़ती से नाराज शाम को नाक मुँह बनाती रिश्ते की गांव की औरते सरोज को उसके हाल पर छोड़ कर अपने अपने घर चलदी। बूढ़ा ससुर भी थकान से देसी पीकर अपने कमरे में लुढ़क गया। अब सरोज को सुरेश का इंतज़ार था। थोडा सा खटका हुआ तो उसने दरवाज़े पर नज़र डाली। सुरेश आते ही बिस्तर पर ढेर हो गया। सुरेश को बिस्तर पर टेढ़ा लेटे देख जैसे ही उसने सीधा करके पति को बिस्तर पर लिटाया शराब का एक तेज भभका उसकी सांसो में भर गया। और मन ख़राब हो उठा। .. पलंग के दूसरे कोने में लेटी सरोज की कब आँख लगी वह नही जानती। पति का के इस रूप ने उसे निराश कर दिया। आधी रात को बदन पर रेंगते हाथों की मजबूत पकड़ ने उसे कुछ बोलने का मौका भी नही दिया और अगली सुबह एक पौधा आँगन में रोपी जा चूका था , अब वोह पौधा अपने कवारेपन के लुट जाने शोक मनाये या पूर्ण होने की ख़ुशी ! वह समझ नही पा रही थी। सरोज एक दिन की ब्याही दुल्हन के हाथ चूल्हा फूकते हुए अपने सपनो को भी उसमे एक एक कर जलते दिखने लगे। ब्याह के सपने कच्ची उम्र से पलकों की झालर पर टैंक जाते हैं और सब सपने पूरे नही होते तो ओउंस की माफिक हर बूँद एक एक कर आंसू में घुल कर उसे मोती बना देती हैं। सुरेश शराब के नशे में धुत्त रहता न कोई काम धंधा करता काश्तकार जमीन से जितनी कमी करके ला देते थीय उसकी ऐश के बाद भी घर बहुत आराम से चाआलता था , घर में सुख सुविधाओं की कोई कमी ना थी , खूब्स्सुरत बीबी के लिय उनमी और अधिक इजाफा किया गया \डेढ़ महीना पूरे होते होते उसे अपने भीतर पनपते जीव का अहसास होने लगा और उसकी उम्मीदे अब पंख लगाने लगी।जब दसवे माह में उसने चाँद से बेटे को जन्म दिया तो दो बेटियो की माँ उसकी जेठानी मनीषा की ईर्ष्या का कटोरा लबालब आग उगलने लगा। उसका सारा क्रोध अपने पति पर ताने उलाहने में दिखने लगा। पूरे गांव में कुआ पूजन के समय मनीषा ने पति को अपनी साड़ी प्रेस न होने पर जो बाते सुनाई उसको देख सरोज का मन भी जेठानी के प्रति कसेला हो उठा और जेठ जी के लिय उसके मन में दया भाव आने लागे। अपने सब काम खुद करते जेठ जी उसे देवता जैसे लगते। दोनों भाई एक दम विपरीत जहाँ एक की सुबह," तेरी माँ की …!"अभी तक चाय नही बनी से शुरू होती तो दुसरे की सुबह घर भर की बाल्टियां पानी से भरने से ,रसोई देखते हुए। जितनी भी जल्दी उठ जाने की कोशिश करे जेठ जी उसके पहले उठे होते और लोई ओढ़े चौके में अपनी चाय बना रहे होते। अक्सर सुबह पांच बजे जब सर्दी से कोई रजाई से बाहर मुह नही निकालता था रमेश रसोई में चाय बनाकर रसोई में आयी सरोज को भी पकड़ा देता कि बहु तू भी पी। रिश्ते न उम्र के मोहताज होते हैं ना समय के ही। रिश्ते संवेदनाओ के मोहताज होते हैं दर्द से पनपे रिश्ते बहुत जल्दी जुड़ जाते हैं उस पर जब जा दर्द एक सा हो, तो रिश्तो में समीपता भी बढ़ने लगती हैं स्त्रिया स्वभाव से कोमल होती हैं। और कोमल भाव उनको आकर्षित भी करते हैं। पुरुष से प्रेम मिलता रहे तो मजबूत चट्टान सी हर मुसीबत का सामना करती रहती हैं और जब संवेदनाओ के स्तर पर अकेले हो जाए तो जरा सा भी जोर उन्हें बालू के कानो की तरह बिखेर देता हैं। उनकी मजबूती प्यार के दो लफ्ज़ या सहानुभूति की आवाज़ से ही पिघल जाती हैं। पत्थर बना मन एक गरम लावा बनकर उनके मन के बरसो से सुप्त ज्वालामुखी से बाहर आने लगता रमेश हर बरस कुछ दिन के लिय गांव आ जाता। । सुकून से गरम खाना खाता। पिता के साथ बाते करता खेत खलिहान का हिसाब देखता। और कुछ दिन के मायके प्रवास के बाद जब पत्नी के पास लौटता उसका मन बुझ जता। सिर्फ स्त्री ही नही पुरुष भी प्यार के भूखे होते हैं हर हृदय पाषाण नही होता। अपने घर के अफसरी माहौल और चिकचिक से दूर यह कुछ दिन उसे जीने को प्रेरित करते।उसका दिल बार बार अपने गांव की तरफ खींचा चला आता साल में एक बार आने वाला रमेश पिता की बीमारी का बहाना बनाकर साल में दो बार गांव आने लगा। अफसर पत्नी को भी अब उसकी ज्यादा परवाह नही थी। मेरा पति गांव में खेती करता कहकर समाज में धाक ज़माने वाली पत्नी भी अब उसे यदा कड़ा ससुराल भेज देती। बच्चियां अब होस्टल में पढ़ रही थी। इधर सरोज भी दो बच्चो ( एक बेटा /एक बेटी)की माँ बन चुकी थी। रमेश कब ताउजी से बच्चो के बड़े पापा बन गया।पता ही नही चला और बच्चे उसके आने का इंतज़ार करने लगते। अपने पिता को कभी उन्होंने पूरे होशो हवस में नही देखा था। शाम ढलते ही नशे में धुत्त रहता। उनका पितासुरेश सिर्फ उनका जैविक पिता था। कभी सर पर प्यार का हाथ भी नही देखा था उन्होने। पैसे की आमद घर में बढ़ रही थी। सरकारी दाम भी अच्छे मिलने लगे तो सरोज के बदन पर अब सोने की मात्रा भी बढ़ने लगी थी अपनी मनमर्ज़ी से उसकी देह का भोग करना और फिर उस देह पार सोना लाद देना , बस यही एक पति धर्म निभाता था सरोज का पति। बच्चे अब क्लास छह में आ चुके थे। गांव में ऐसा स्कूल नही था कि उनको अच्छी शिक्षा मिल सके। शिमला के स्कूल में बच्चो को दाखिला दिला दिया जाए ताकि वे अच्छी शिक्षा भी पा सके और पिता की शराब की आदत से भी दूर रहे। यह सोचकार बाबा ने बड़े बेटे को बुलावा भेजा क्यूंकि वही बच्चों का दाखिला सही तरीके से करवा सकेगा। रास्ते भर बच्चे बहुत खुश थे। पहली बार घर से इतनी दूर सैर के लिय जा रहे थे। उनका कोमल मन इन छोटे छोटे लम्हो की ख़ुशी को समेट रहा था। इटावा से शिमला का लम्बा सफ़र पूरी रात भर का था। इन्नोवा की पिछली सीट पर बच्चे कब के सो गये थे। आगे की सीट पर शराब पीता सुरेश तेज आवाज़ में गाने सुन रहा था। और ड्राईवर अपनी धुन में गाड़ी चला रहा था। बीच की सीट पर रमेश के संग बैठी सरोज चुपचाप गुम थी, अपनी सोचो में दिन भर की तकान बच्चो की तैयारी पहली बार सफ़र। कब अपनी शाल को कसकर ओढ़े सो गयी उसे पता न चला। आधीरात को उसने अपने सर पर एक कोमल स्पर्श महसूस किया जो उसे स्वर्गिकसा लग रहा था। उसे लगा सपना देख रही हैं पर ऐसा मीठा सपना ! उसने आँखे खोल कर देखा कि वह जेठ के कंधे पर सर रखे सो रही हैं और जेठ जी उसके सर पर प्यार से हाथ फेर रहे हैं। उसने झटके से हट जाना चाहा पर मन थोडा बे-ईमान भी हो जाता है कभी -कभी , चोरी से मिले स्वर्गिक सुख कैसे जाने दे। यूँ ही अनजान सी वह कंधे पर सर रखे उस आनंद में झूमती रही और गहरी नींद सो गयी। सुबह जब गाड़ी शिमला पहुंची तो मन बहुत हल्का सा मह्सूस हुआ उसको। उसने जेठ जी तरफ देखा तो उनको भी अपनी तरफ देखते हुए पाया झट से नजर फेर कर वह बच्चो की तरफ मुड़ गयी। उनके बैग उठाये उसने सेंट जोसफ स्कूल में प्रवेश किया। इतना बड़ा स्कूल!!! गिट - पिट अंग्रेजी बोलते बच्चे, लाल टमाटर जैसे गाल वाले बच्चे। बच्चो का भविष्य बन जाएगा उनके दाखिले से लेकर होस्टल तक सब जगह रमेश के साथ घुमती सरोज को सबने पति पत्नी ही समझा क्या फर्क पढता हैं सबके सोचने से , बच्चो का भाविष्य बन जाएगा सोचकार एक माँ ने भी मन पक्का कर के उनको छोड़ कर स्कूल से बाहर आगयी। मौसम करवट बदल रहा था , माल रोड पर सैर करती सरोज आज स्वर्गिक सुख महसूस कर रही थी पैसे से उसको कभी कोई कमी महसूस नही हुयी थी परन्तु दिल के अलग रंगी से खेलने वाला भी तो कोई हो , उसकी हर हाँ में हाँ मिला देने वाल सुरेश से अब उसे अब नाम का लगाव रहने लगा था कुछ रिश्ते जिए नही जाते धोई जाते हैं उनके भीतर का खोखलापन किसी को द्द्द्दिखायी नही देता । मार्च का महीना था पर जैसे सावन की झड़ी लग गयी हो बारिश रुकने का नाम नही ले रही थी सर्द हवाए भीतर तक चीर रही थी। सुरेश ने ड्राईवर को शिमला के अच्छे होटल में ले जाने को कहा। होटल में एक फॅमिली रूम किराये पर मिला एक डबल बेड एक सिंगल बेड के साथ था। शराबी को वक़्त पर शराब ना मिले तो वह हिंसक हो उठ'ता हैं तो उसकी बोटेल इनोवा में रह गयी सुनकर उसने सरोज को एक जोरदार झापड़ लगा दिया। जेठ के सामने सरोज की आँखे छलक उठी। और जेठ ने न चाहकर भी आपने छोटे भाई को लेकर नीचे बार में चला गया होटल में बसंत उत्सव मनाया जा रहा था उसके उपलक्ष्य में पार्टी हो रही थी और कपल्स को बहुत सारे गिफ्ट्स भी। "हम कोई कम हैं इन सुसरो से। भाई सरोज को बुला यहाँ हम भी पार्टी मैं जायेंगे !" कहकर रमेश ने दारु के पेग लगाने शुरू कर दिए। सरोज को भी जीने का हक़ हैं वह भी जाने शहर कि रंगीनिया सोचकार सुरेश ने कमरे आकर बेल बजायी। सरोज ने कुछ पल बाद दरवाजा खोला। " रो रही थी !!" "नही तो .....!" " आँखे क्यों लाल हैं फिर !!" " साबुन चला गया था। " " आप अकेले आये वो नही आये !" " वो अभी पी रहा हैं और तुमको बुला रहा हैं वहाँ आज पार्टी हैं। " " नही !! मैं नही जाऊंगी वहाँ !! "कहकर जैसे ही सरोज पलटी तो उसका पैर टेबल से टकराया और पास ही बेड पर बैठ गयी। हलकी सी चोट थी। होटल के रूम में बैंडेज थी. उसको लगाने के लिय जब रमेश ने पैर को हाथ लगाया सरोज के स्पर्श से उसका बदन सिहर उठा। एक अर्से बाद एक स्त्री शरीर को छुआ था उसने। सरोज ने भी पहली बार एक कोमल स्पर्श को महसुसू किया था। नदी में जैसे पानी का बहाव ज्यादा हो गया था बादल भी गड़गड़ाहट के साथ फट जाना चाहते थे। और इस मौसम मैं आग घी का साथ आग को भड़का ही गया। । न चाहते हुए भी सब बांध टूट गए और दोनों की अंतरात्मा जैसे कोई सुकून भर गया हो। फ़ोन की घंटी से दोनों को होश आया। "ए सरोज !!नीचे आ जल्दी खूब नाच गाना हो रहा यहाँ ! "" आज तो जी भर के जी ले फिर यह मौसम हो न हो ! सोच कर दोनों नीचे पहुंचे जहाँ सुरेश शराब में धुत्त डांस कर रहा था। " अरे डी जे वाले !! चिकनी चमेली लगा मेरी चमेली भी नाचेगी कहकर उसने सरोज को पास खींच लिया और बैरे को अपना फ़ोन देकर बोला "चल ! विडिओ बना मेरी चाैमेली की …1 000 रुपये दूंगा।" सरोज ऐसे माहौल में सकुचा रही थी। कुछ देर पहले का नशा था उस पार और फिर पति के पास आती दुर्गन्ध से भी उसे थोड़ी पहले की सुवासित गंध याद आ रही थी।पति की बेहूदा ज़िद के सामने उसे कुछ समझ नही आरहा था भीड़ में किसी को किसी की परवाह नही थी सब नशे में चूर। सरोज के संकुचित व्यवहार को देख रमेश उसके पास आन खड़ा हुआ और छोटे भाई को समझाने लगा "नही करना चाहती तो रहने दे ना डांस।" "अरे भाई ! तुम नही जानते बहुत अच्छा नाचती यह। गांव में सबके ब्याह में नाचती यह संगीत में !" कहकर उसने सरोज को भीड़ में धकेल कर खुद भी आ गया। रमेश भी भीड़ में सरोज के अस-पास नाचने लगा बैरा विडिओ बना रहा था सरोज ने भी लाज छोड़ कर नाचना शुरू किया और जेठ जी का हाथ पकड़ कर खूब नाची और उस पति दूर बैठ रूपये उडाता रहा और दारु पीता रहा। कुछ देर पहले का अचानक हुआ शारीरिक मिलन एक बार फिर से हिलोरे लेने लगा। ज्वार भावनाए फिर से उठने लगी। पाप एक बार किया जाये दूसरी बाार करने में डर कम लगता हैं। एक दुसरे के साथ नाचते हुए वे भूल गये अपना रिश्ता भी। सुबह के ३ बजे पार्टी ख़तम हुयी बैरे सब धुत्त लोगो को उनके कमरे में छोड़ कर आने लगे। … कमरे में आते ही सुरेश को जरा भी होश ना था बिस्तर पर गिरते ही उसने खर्राटे भरने शुरू कर दिए , पति जब कोई नशा करता हैं ऐश करता हैं तो अपना गिल्ट कम करने के लिय पत्नी और बच्चो को किसी न किसी रूप में भरपाई करने लगता हैं या तो एकदम हिंसक हो जाता हैं या बहुत ज्यादा प्यार करने वालाshow करता हैं सुरेश भी सरोज को कभी पैसे की कमी नही होने देता .....गांव की लड़की अबडिज़ाइनर सूट साड़ी पहनती थी गहने भी उसके फैशन के हिसाब से बार बार टूट कर बनते थे .पति अपनी ऐश में मग्न हो तो ऐसे पत्निया भी सुपर आत्मविश्वासी हो जाती हैं और अपने सामने किसी को कुछ न समझ कर जुबां भी बहुत चलाती हैं और पति उनकी गलती को अनदेखा कर अपने में मग्न रहते , शिमला की ठंडी रात . अकेलापन .फिर से गुल खिला गया और सुरेश जो पत्नी के प्यारको तरसा हुआ था स्त्री देह का कोमल स्पर्श उसे भी उचित अनुचित की परिधि में ना बाँध सका और भावनाओं का बांध टूट गया , शिमला से वापिसी का सफ़र एक अलग ही नूर लेकर आया था दो दिलो मैं .... एक सप्ताह के लिय आया बड़ा बेटा इस बार एक महीना रह गया .पिता की अनुभवी आँखे सब देख रही थी पहचान रही थी बदलते रिश्तो को , पर उम्र का आखिरी पढाव था कौन सुनता उसकी बाते या नसीहते , कोई कितना भी रूआबदार हो उम्र उसे मजबूर कर ही देती हैं चुप रहने को शराबी आदमी में डींग मारने की भी आदत होती हैं और दिखावा करने भी .....नया नया अमीर इंसान जल्दी जल्दीकार और मोबाइल बदलता हैं सुरेश ने अपना फ़ोन ओउने पौने दांव पर गांव में दूकान पर बेचकर नया स्मार्ट फ़ोन ले लिया परन्तु ज्ञान के आभाव में उसमी ली गयी फोटो और मूवी डिलीट करना भूल गया जो एक सेल से दुसरे सेल तक होते हुए लोगो की मध्य दबी जुबान से कहानी किस्सा बनकर गांव भर में घुमने लगी पर दबंग और शराबी की पत्नी थी उनके घर का मामला था तो लोग सिर्फ दबी जुबान में ही बात करते मुह पर कहने की हिम्मत किसी में नही थी इन सबसे अनजान सरोज का मन आजकल अलग ही दुनिया की खुशिया भर भर कर बटोर रहा था दिन महीने में , महीने साल में बदलने लगे अब गांव के चक्कर साल में चार बार लगने लगे एक सप्ताह का प्रवास कम से कम २० दिन का हो जाता . रमेश और सरोज दोनों के चेहरा पर गुलाबीपन बढ़ने लगा था ..कहते हैं इश्क और मुश्क कभी भी छुपाये नही छुपते, बच्चे भी अब छुट्टियों में घर आते। और बड़े पापा को देखते ही खिल उठ'ते थे , अपने पिता से उन्हें पैसा तो खूब मिलता परन्तु साथ बड़े पापा से मिलता , रमेश की अपनी बेटियाँ अपनी माँ के रंग में रंगी हुयी थी और अब नौकरी भी करने लगी थी मनीषा को पति रमेश का साथ सुहाता ही नही नही बस एक पति नामक जीव उसकी जिन्दगी में भी हैं और बेटियों के विवाह में उसके नाम की जरुरत होगी इसलिय उसका मिस्टर मनीषा चौधरी होना ही पर्याप्त था। जो सुकून उसे यहाँ सरोज और बच्चो के साथ मिलता था कही नही मिलता था , नशे में धुत्त रहता सुरेश घर में एक मेहमान सा कोने में पढ़ा रहता और रमेश सब जमीन जायदाद के साथ सरोज की देखभाल एक दम अपनी समझ कर करता। अक्सर शौपिंग के बहाने सरोज रमेश के साथ बड़े शहर भी जाने लगी थी समज के दबे स्वर भी उनको कुछ अहसास न करा पाए अवेध रिश्तो की उम्र चाहे जितनी भी होती हैं परन्तु उनका होना हमेशा दर्द जरुर देता हैं वोह दर्द चाहे पुरानी पीढ़ी भुगते या आने वाली पीढ़ी . यह रिश्ते बनाने वाले लोग कभी इस रिश्ते रिश्ते के दर्द को नही पहचान पाते और उस क्षणिक सुख के लिय बहुत सी आत्माओ को उम्र भर का दर्द दे जाते हैं समाज में एक जहरीली आक्सीजन का प्रवाह होने लगता हैं जिस्मी साँस लेना तो जरुरी होता हैं परन्तु वोह कितने घातक होते <a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001471795?profile=original" target="_self">994070_573896902693961_808372443_n.jpg</a> इसका पता भावी पीढियों को लगता हैं । रविवार की दोपहर थी बाहर लू चल रही थी शिमला से बच्चे घर आये हुए थे एक महीने के लिय , एक दुसरे के साथ होने का समय नही निकाल पा रहे थे रमेश और सरोज। जिस्म की आग जब सुलगती हैं तो कोई भी अग्निरोधक काम नही करता . , बेटे को बहाने से बाग की सैर और ट्यूब वेल में नहाने का लालच देकर खेत की तरफ भेजा गया और बिटिया रानी अपने कंप्यूटर पर अपने फेसबुक मित्रो के संग समय बिता रही थी बूढ़े चौधरी जी हमेशा की तरह अपनी बैठक में , शराबी पति को न पहले कभी पत्नी की बेवफाई का अहसास था न अब शक हुआ , मौका देख रमेश और सरोज दोनों ही पिछले स्टोर में एक दुसरे में अपने को खोजने लगे और वासना की सीढिया चदते उतारते हुए भूल गये की अब वोह उम्र के उस पायदान पर पहुँच चुके हैं जहा देह से इतर प्रेम का महत्त्व होता हैं। माँ भूख लगी !! कहती हुयी बिटिया रानी ने माँ को ढूढा। पिछले स्टोर में होंगी S…… ओचकर उसने जैसे ही दरवाज़ा को खोला सामने बड़े पापा और अपनी माँ इस अवस्था में देखकर भौंचक्की रह गयी और जोर जोर से चीखने लगी आनन् फानन मैं जैसे तैसे अपने कपडे पहनते हुए रमेश ने कमरे से बाहर का रास्ता लिया और स्टेशन पर आकर ही साँस ली सरोज को काटो तो खून नही। …। जमीन फट जाये जैसे हालत उसके सामने थे एक खान का चार्म सुख उम्र भर की मेहनत ख़राब कर गया बच्चो की परवरिश में तो उसने कोई कमी नही की थी बिटिया रानी ने अपने कमरे का दरवाज़ा बंद कर लिया और सामने राखी दादा की नींद की गोली को पापा की शराब की बोतल संग गटक गयी और वापिस माँ के पास आकर उसने बचपन में पिता के मुह से सुनी गालिया माँ को दे डाली। शराब के साथ ली गयी नींद की गोलिया असर दिखाने लगी और जहर बनकर शारीर में फ़ैल गयी बेहोश बेटी को बेटे के साथ हॉस्पिटल लेकर गयी तो डर अब इलाज में जुटे हैं। बेटा और डॉक्टर ……। दोनों परेशान हैं की आखिर इसने ऐसा किया क्यों ? अडोस पड़ोस वाले हैरान हैं। .......... आखिर इस वक़्त बड़े पापा कहाँ गये बच्चो के , बिटिया का कही चक्कर होगा जो इसने जहर खाया और सुरेश अस्तपताल के बाहर कार में शराब पि रहा की उसकी बिटिया ने यह क्या कर दिया बता देती अगर कोई लड़का पसंद हैं तो बूढ़ा बाबा रो रहा था जार जार। और सरोज. ....... सुन रही थी गाड़ी की सिटी को जो उसे बता रही थी की उसकी गाड़ी अब छूट चुकी हैं वक़्त पर उसने संयाम से काम जो नही लिया था।</span></p>तन्हाईtag:openbooks.ning.com,2013-04-08:5170231:BlogPost:3435582013-04-08T11:29:52.000ZNeelima Sharma Niviahttp://openbooks.ning.com/profile/NeelimaSharma
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<p>सुनो!!!<br></br> यु तनहा रहने का <br></br>शउर <br></br> सबको नही आता <br></br>तनहा होना अलग होता हैं <br></br> अकेले होने से<br></br>और <br></br> मैं तनहा हूँ <br></br> क्युकी तुम्हारी यादे <br></br> तुम्हारी कही /अनकही बाते <br></br> मुझे कमजोर करती हैं <br></br> लेकिन <br></br> तुम्हारी हस्ती<br></br> मेरे वजूद में एक हौसला सा बसती है<br></br>परन्तु <br></br> यह <a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001460693?profile=original" target="_self"><img class="align-full" src="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001460693?profile=original" width="333"></img></a> तन्हाई<br></br> सिर्फ मेरे हिस्से में ही नही आई हैं <br></br> तेरी हयात…</p>
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<p>सुनो!!!<br/> यु तनहा रहने का <br/>शउर <br/> सबको नही आता <br/>तनहा होना अलग होता हैं <br/> अकेले होने से<br/>और <br/> मैं तनहा हूँ <br/> क्युकी तुम्हारी यादे <br/> तुम्हारी कही /अनकही बाते <br/> मुझे कमजोर करती हैं <br/> लेकिन <br/> तुम्हारी हस्ती<br/> मेरे वजूद में एक हौसला सा बसती है<br/>परन्तु <br/> यह <a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001460693?profile=original" target="_self"><img src="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001460693?profile=original" width="333" class="align-full"/></a>तन्हाई<br/> सिर्फ मेरे हिस्से में ही नही आई हैं <br/> तेरी हयात में इसने जगह बनायीं हैं</p>
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<p>सुनो!!!<br/> यु तनहा रहने का <br/>शउर <br/> सबको नही आता !<br/>तनहा होने में <br/> घंटो खुद को खोना होता हैं <br/> रोते रोते हँसना होता हैं <br/>दामन में भरे हो चाहे कितने कांटे <br/> फूलो की तरह महकना होता हैं...........नीलिमा शर्मा ..... अप्रकाशित एवं मौलिक</p>
<p></p>तुम लिख देना इतिहास मेरे नाम सेtag:openbooks.ning.com,2013-03-25:5170231:BlogPost:3378382013-03-25T13:01:22.000ZNeelima Sharma Niviahttp://openbooks.ning.com/profile/NeelimaSharma
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<div><span>तुम लिख देना इतिहास मेरे नाम से </span><br></br><span>तुम्हारे कडवे झूठो , तीखे बयानों से </span><br></br><span>कितना भी कीचड़ उड़ेलो मेरे जज्बातों पर </span><br></br><span>मैं बहार आऊँगी चन्दन की महक से </span><br></br><br></br><br></br><span>मेरी मुखरता तुम्हे उद्वेलित करती हैं </span><br></br><span>मेरी ख़ामोशी तुमको आक्रोशित करती हैं </span><br></br><span>तुम कैसे स्वीकार सकते हो मेरे अस्तित्व…</span></div>
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<div><span>तुम लिख देना इतिहास मेरे नाम से </span><br/><span>तुम्हारे कडवे झूठो , तीखे बयानों से </span><br/><span>कितना भी कीचड़ उड़ेलो मेरे जज्बातों पर </span><br/><span>मैं बहार आऊँगी चन्दन की महक से </span><br/><br/><br/><span>मेरी मुखरता तुम्हे उद्वेलित करती हैं </span><br/><span>मेरी ख़ामोशी तुमको आक्रोशित करती हैं </span><br/><span>तुम कैसे स्वीकार सकते हो मेरे अस्तित्व को </span><br/><span>अंगीकार करो अपने हृदय को मेरी चहक से </span><br/><br/><span>लहरों की तरफ उफान भी मुझ में </span><br/><span>चाँद की तरह शांत भी रह सकती हूँ </span><br/><span>सूरज/आग की तरह ज्वालामयी भी </span><br/><span>जल न जाना कही तुम इस दहक से </span><br/><br/><br/><span>तुमने चाहा हैं हमेशा मुझे बेचारी सा </span><br/><span>टूटा सा हो लहजा मेरा लाचारी सा </span><br/><span>स्व का अंश मात्र भी लेश मात्र न रहे </span><br/><span>पर्याय बन गये हो तुम आतंक से </span><br/><br/><br/><span>लफ्जों ने बींधा हैं मुझे तीर सा </span><br/><span>नजरो ने टटोला हैं मुझे नगरवधू सा </span><br/><span>संत्रास झेल रही हैं अब तुम्हारी पीढ़ी </span><br/><span>कम होती जा रही हमारी संख्यक से </span><br/><br/><br/><span>तुम आत्माभिमानी नही </span><br/><span>तुम स्वाभिमानी नही तुम </span><br/><span>लफ्ज़ तुम्हारे , तुम्हारे नही </span><br/><span>छोड़ जाते हैं गंदे निशान से </span><br/><br/><span> नही किस्मत की मारी </span><br/><span>बस हमेशा रिश्तो से हारी </span><br/><span>देह से जैसे भी हो </span><br/><span>पर मन से हमेशा प्यारी </span><br/><br/><br/><span>इतिहास लिखना सिर्फ तुम्हारी थाती नही </span><br/><span>अब नया इतिहास लिखना हमारी बारी हैं </span><br/><br/><br/><span>तुम लिख देना इतिहास मेरे नाम से </span><br/><span>मैं महकती रहूंगी इतिहास में </span><br/><span>चन्दन की महक सी </span><br/><span>सूरज की दहक सी </span><br/><span>विरोध की आतंक सी </span><br/><span>अपनी जात की संख्यक सी </span><br/><span>पवित्र निशान सी </span><br/><span>माँ के रूप में भगवन सी ........................ नीलिमा</span></div>
<p><span> </span></p>सोचtag:openbooks.ning.com,2013-02-15:5170231:BlogPost:3188182013-02-15T13:00:00.000ZNeelima Sharma Niviahttp://openbooks.ning.com/profile/NeelimaSharma
<p><span>निशा की आँखे दर्द कर रही थी, कई दिनों से जलन हो रही थी बस हर बार खुद का ख्याल न रखने की आदत और हर बार अपना ही इलाज टाल </span><span>जाना उसकी आदतों में शुमार हो गया था । सुनील आज जबरदस्ती उसको दृष्टि क्लिनिक ले ही गये .. . सामने कतार लगी थी । इतने लोग अपनी आँखे टेस्ट करने आये हैं, सोच कर निशा को हैरानी हुई । अपना नंबर आने पर भीतर गयी और डाक्टर की बताई जगह पर चुपचाप बैठ</span> <span>गयी .. आँखे टेस्ट करते हुए डाक्टर की आँखों में खिंच आई चिंता की लकीरों को निशा ने…</span></p>
<p><span>निशा की आँखे दर्द कर रही थी, कई दिनों से जलन हो रही थी बस हर बार खुद का ख्याल न रखने की आदत और हर बार अपना ही इलाज टाल </span><span>जाना उसकी आदतों में शुमार हो गया था । सुनील आज जबरदस्ती उसको दृष्टि क्लिनिक ले ही गये .. . सामने कतार लगी थी । इतने लोग अपनी आँखे टेस्ट करने आये हैं, सोच कर निशा को हैरानी हुई । अपना नंबर आने पर भीतर गयी और डाक्टर की बताई जगह पर चुपचाप बैठ</span> <span>गयी .. आँखे टेस्ट करते हुए डाक्टर की आँखों में खिंच आई चिंता की लकीरों को निशा ने बाखूबी </span><span>पढ़ लिया था । स्ट्रेस जांचा जा रहा था उसकी आँखों में कई अलग अलग मशीनों पर, सुनील परामर्श शुल्क चूका रहे थे अलग अलग काउंटर पर और निशा अलग अलग मशीन पर जाकर आँखे दिखा रही थी । मन चुप था कुछ कह पाने में असमर्थ सा । आखिरकार 3 घंटो के बाद डाक्टर ने अंदर बुलाया और कहा देखिये .. सुनील जी आपकी पत्नी की आँखों में काला मोतिया बिंद</span> <span>की शुरूवात</span> <span>हैं अभी कुछ कहा नही जा सकता, यह दवा डालिए और तीन माह बाद फिर से चेक-अप के लिय आइये । बस हम वापिस लौटे, दोनों गम में थे, अपनी अपनी सोचो की परिधि में ... कि</span> <span>इलाज का खर्च कितना आयेगा, घर कौन</span> <span>सम्हालेगा, क्या मेरी आँखे ठीक हो पायेगी ..... वैसे ही मैं अकेली हूँ मन से और अब ??? बस अपनी गति से चल रही थी और उन दोनों का मन अपनी गति से ..........</span></p>
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<li><span>नीलिमा शर्मा</span></li>
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