DRx Ravi Verma's Posts - Open Books Online2024-03-29T07:41:03ZDRx Ravi Vermahttp://openbooks.ning.com/profile/RaviVermahttp://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2991284016?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1http://openbooks.ning.com/profiles/blog/feed?user=2t0tiwiblzzkg&xn_auth=no“ गुनाहों से सुकून है मुझे “tag:openbooks.ning.com,2014-02-15:5170231:BlogPost:5123042014-02-15T10:30:00.000ZDRx Ravi Vermahttp://openbooks.ning.com/profile/RaviVerma
<p align="center" style="text-align: left;">तन्हा क्यूँ हूँ मैं</p>
<p align="center" style="text-align: left;">तेरे होने के बाद भी,</p>
<p align="center" style="text-align: left;">प्यासी क्यूँ है सांस</p>
<p align="center" style="text-align: left;">इतना पीने के बाद भी..</p>
<p align="center" style="text-align: left;"> </p>
<p align="center" style="text-align: left;">दर दर की शराब</p>
<p align="center" style="text-align: left;">उतारी है हलक से,</p>
<p align="center" style="text-align: left;">तर…</p>
<p style="text-align: left;" align="center">तन्हा क्यूँ हूँ मैं</p>
<p style="text-align: left;" align="center">तेरे होने के बाद भी,</p>
<p style="text-align: left;" align="center">प्यासी क्यूँ है सांस</p>
<p style="text-align: left;" align="center">इतना पीने के बाद भी..</p>
<p style="text-align: left;" align="center"> </p>
<p style="text-align: left;" align="center">दर दर की शराब</p>
<p style="text-align: left;" align="center">उतारी है हलक से,</p>
<p style="text-align: left;" align="center">तर क्यूँ न हुआ</p>
<p style="text-align: left;" align="center">फिर अक्स शर्म से..</p>
<p style="text-align: left;" align="center"> </p>
<p style="text-align: left;" align="center">ये कह नहीं सकता</p>
<p style="text-align: left;" align="center">पिला दे एक बार,</p>
<p style="text-align: left;" align="center">हर ख़्वाब कमबख्त</p>
<p style="text-align: left;" align="center">पर तेरा नाम ले..</p>
<p style="text-align: left;" align="center"> </p>
<p style="text-align: left;" align="center">देखूँ मैं भी कब आएगी</p>
<p style="text-align: left;" align="center">मय प्याले को चखने,</p>
<p style="text-align: left;" align="center">आधी उम्र की आवारगी</p>
<p style="text-align: left;" align="center">बाकी थोडा और सही..</p>
<p style="text-align: left;" align="center"> </p>
<p style="text-align: left;" align="center">अब न लौटूंगा तेरे पास</p>
<p style="text-align: left;" align="center">निकलवाने को दफ्न खंजर,</p>
<p style="text-align: left;" align="center">दर्द ये बड़े काम का निकला </p>
<p style="text-align: left;" align="center">गुनाहों से सुकून है मुझे </p>
<p style="text-align: left;" align="center"></p>
<p style="text-align: left;" align="center"></p>
<p style="text-align: left;" align="center"></p>
<p style="text-align: left;" align="center">"मौलिक व अप्रकाशित" </p>लघु कथा - सस्ता घीtag:openbooks.ning.com,2013-06-03:5170231:BlogPost:3717272013-06-03T09:00:00.000ZDRx Ravi Vermahttp://openbooks.ning.com/profile/RaviVerma
<p>लैब से स्टूडेंट जा चुके थे . मनोज वर्मा प्रैक्टिकल रिकॉर्ड चेक कर रहा था . </p>
<p>‘अरे जयराम , यार तुम्हारे यहाँ गाय-भैस तो होगी ही , बढ़िया शुद्ध घी का इंतजान करो यार’ (मनोज मुस्कुराता हुआ अपने लैब सहायक से बोला)</p>
<p>‘है तो साहब , लेकिन घरही में पूर नाय पड़त’ .</p>
<p>‘अरे जुगाड़ करो यार कही से , पैसे की कोई बात नहीं है’ (जोर देते हुए मनोज बोला )</p>
<p>‘उ तो ठीक है साहब , देखित है’.</p>
<p>(कुछ सेकंड के मौन के बाद)…</p>
<p>लैब से स्टूडेंट जा चुके थे . मनोज वर्मा प्रैक्टिकल रिकॉर्ड चेक कर रहा था . </p>
<p>‘अरे जयराम , यार तुम्हारे यहाँ गाय-भैस तो होगी ही , बढ़िया शुद्ध घी का इंतजान करो यार’ (मनोज मुस्कुराता हुआ अपने लैब सहायक से बोला)</p>
<p>‘है तो साहब , लेकिन घरही में पूर नाय पड़त’ .</p>
<p>‘अरे जुगाड़ करो यार कही से , पैसे की कोई बात नहीं है’ (जोर देते हुए मनोज बोला )</p>
<p>‘उ तो ठीक है साहब , देखित है’.</p>
<p>(कुछ सेकंड के मौन के बाद) ............................................................................................................</p>
<p>मनोज – वैसे कितने में मिल जाएगा ? </p>
<p>जय राम – साहब अब हम लोग तो चार सौ किलो माँ देयित है , और कुछ जने तीनय सौ में दै देत हैं .</p>
<p>मनोज “कम दाम” की ख़ुशी और रहस्य से चौका .</p>
<p>‘अरे ऐसा क्यों भाई , कुछ मिलावट करते है क्या वो लोग’ ?</p>
<p>जयराम (लैब प्लेटफोर्म साफ़ करते हुए)- अब इ तो पता नाय साहब ....................दरअसल उ सब है नीची जाति के हैं तो गाँव में उनकी घी कोई खरीदते नाय है.........पता नाय कैसे बनावट होइयें ......तबे उ लोग सस्ता दै देत हैं .</p>
<p>मनोज - अच्छा.................... ये बात हैं........................................चलो फिर मैं बताऊंगा .</p>
<p>जयराम – ठीक है साहब .</p>
<p>(दुःख और गुस्से के मिले जुले भाव मनोज चेहरे को छू कर निकल गए).</p>
<p>जयराम अभी भी प्लेटफोर्म साफ़ करने में तल्लीन था.</p>
<p></p>
<p></p>
<p><strong>"मौलिक व अप्रकाशित"</strong></p>
<p></p>
<p></p>
<p> </p>
<p> </p>माँ चुप रही (लघु कथा )tag:openbooks.ning.com,2013-06-02:5170231:BlogPost:3709832013-06-02T05:30:00.000ZDRx Ravi Vermahttp://openbooks.ning.com/profile/RaviVerma
<p>मेरे वास्तविक भारतीय मध्यम वर्गीय परिवार में माता पिता और पांच भाई हैं . छोटे तीन भाई जो तिडुआ हैं, मुझसे ५ साल छोटे .</p>
<p>रौशन और जलज बी. टेक कर रहे है और पवन बी. ए. अंतिम वर्ष में है ..</p>
<p>होली के बहाने सब इकट्ठा हैं.</p>
<p>माँ (पवन से) – कल तुम फिर खा पी कर आये थे . खाना ख़राब हुआ . पहले बता नहीं पाते हो की ढूस के आओगे ?</p>
<p>पवन कुछ नहीं बोला ..</p>
<p>माँ (लगभग मुझे सुनाते हुए )- कल गेट नहीं खोल पा रहा था . पता नहीं ये लड़के क्या करेंगे ? रोज पार्टी , रोज दारू .</p>
<p>पवन कुछ…</p>
<p>मेरे वास्तविक भारतीय मध्यम वर्गीय परिवार में माता पिता और पांच भाई हैं . छोटे तीन भाई जो तिडुआ हैं, मुझसे ५ साल छोटे .</p>
<p>रौशन और जलज बी. टेक कर रहे है और पवन बी. ए. अंतिम वर्ष में है ..</p>
<p>होली के बहाने सब इकट्ठा हैं.</p>
<p>माँ (पवन से) – कल तुम फिर खा पी कर आये थे . खाना ख़राब हुआ . पहले बता नहीं पाते हो की ढूस के आओगे ?</p>
<p>पवन कुछ नहीं बोला ..</p>
<p>माँ (लगभग मुझे सुनाते हुए )- कल गेट नहीं खोल पा रहा था . पता नहीं ये लड़के क्या करेंगे ? रोज पार्टी , रोज दारू .</p>
<p>पवन कुछ नहीं बोला ..पर अचानक रोशन आ गया .</p>
<p>रोशन – तुम नासमझ हो . बाहर तो कही गयी नहीं हो .</p>
<p>माँ – हाँ तुम बहुत काबिल हो . पढने लिखने का टाइम है , तो दारू पियो , सिगरट पियो ..</p>
<p>रोशन – इतना पैसा नहीं मिलता है </p>
<p>माँ- हाँ, फिर तो जरुरत ही क्या है पीने की ?</p>
<p>रोशन- अरे तुम एकम पागल हो.. तुमको कुछ पता भी है , जितने बड़े अधिकारी , आई. ए. एस हैं , सब पीते है .तो तुम्हारे हिसाब से वो सब ख़राब हैं . सब पागल हैं ? </p>
<p>माँ कुछ नहीं बोली सकी . शायद वो समझ गयी थी की अब बोलने का कोई फायदा नहीं .</p>
<p>मैंने माँ का दर्द अपने सीने में महसूस किया पर मैं भी चुप रहा .</p>
<p>सवाल मेरे मुँह में था ..पर मैंने नहीं पूछा कि कितने लोग, बड़े अधिकारी और आई. ए. एस सिर्फ़ दारू पी कर बने ? </p>
<p></p>
<p></p>
<p><strong>"मौलिक व अप्रकाशित"</strong></p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p><b>रवि वर्मा </b></p>
<p><b>प्रवक्ता ( फार्मेसी ) </b></p>
<p><b>आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी </b></p>
<p><b>बभनान (गोंडा )</b></p>
<p></p>केंचुलtag:openbooks.ning.com,2013-06-01:5170231:BlogPost:3703832013-06-01T06:25:49.000ZDRx Ravi Vermahttp://openbooks.ning.com/profile/RaviVerma
<p></p>
<p><span style="color: #888888;">आशंकित सशंकित इंसान</span></p>
<p><span style="color: #888888;">लगा है निज आवरण बचाने में</span></p>
<p><span style="color: #888888;">जो बनाता रहा जीवन पर्यंत</span></p>
<p><span style="color: #888888;">कभी चाहे , कभी अनचाहे</span></p>
<p></p>
<p><span style="color: #888888;">जुटा है अपनी</span> <span style="color: #888888; font-family: georgia, palatino;">केंचुल</span> <span style="color: #888888;">बचाने में…</span></p>
<p></p>
<p></p>
<p><span style="color: #888888;">आशंकित सशंकित इंसान</span></p>
<p><span style="color: #888888;">लगा है निज आवरण बचाने में</span></p>
<p><span style="color: #888888;">जो बनाता रहा जीवन पर्यंत</span></p>
<p><span style="color: #888888;">कभी चाहे , कभी अनचाहे</span></p>
<p></p>
<p><span style="color: #888888;">जुटा है अपनी</span> <span style="color: #888888; font-family: georgia, palatino;">केंचुल</span> <span style="color: #888888;">बचाने में</span></p>
<p><span style="color: #888888;">जो दरकती जाती है</span></p>
<p><span style="color: #888888;">स्वत: ही समय के साथ</span></p>
<p><span style="color: #888888;">और कभी दूसरों के नोचने से ....................</span></p>
<p></p>
<p><font color="#888888">"मौलिक व अप्रकाशित"</font></p>चरित्रहीनता: विकराल सामाजिक समस्याtag:openbooks.ning.com,2012-12-29:5170231:BlogPost:3047572012-12-29T19:00:00.000ZDRx Ravi Vermahttp://openbooks.ning.com/profile/RaviVerma
<p>एक जोरदार झटका,<br></br> और शुरू हो गया विचारो का मंथन,<br></br> कई मंचो पर चिल्लाने <strong>लगे</strong> <strong>बुद्धिजीवी</strong>,<br></br> सियार की तरह,<br></br> कैसे हुआ ये ?<br></br> क्यों हुआ ?<br></br> अरे पकड़ो, <br></br> कौन है जिम्मेदार ?<br></br> लटका दो फांसी पर,<br></br> बना दो नपुंसक उन पिशाचो को,<br></br> जिन्होंने नरेन्द्र, गाँधी, बुद्ध की भूमि को, <br></br> कलंकित किया है |<br></br> पर कोई नहीं बात करता,<br></br> और न करना चाहता,<br></br> इस सतत, स्वाभाविक, जन्मजात मानवीय विकृति को,<br></br> जिसको हराया था गाँधी ने, नरेन्द्र ने और…</p>
<p>एक जोरदार झटका,<br/> और शुरू हो गया विचारो का मंथन,<br/> कई मंचो पर चिल्लाने <strong>लगे</strong> <strong>बुद्धिजीवी</strong>,<br/> सियार की तरह,<br/> कैसे हुआ ये ?<br/> क्यों हुआ ?<br/> अरे पकड़ो, <br/> कौन है जिम्मेदार ?<br/> लटका दो फांसी पर,<br/> बना दो नपुंसक उन पिशाचो को,<br/> जिन्होंने नरेन्द्र, गाँधी, बुद्ध की भूमि को, <br/> कलंकित किया है |<br/> पर कोई नहीं बात करता,<br/> और न करना चाहता,<br/> इस सतत, स्वाभाविक, जन्मजात मानवीय विकृति को,<br/> जिसको हराया था गाँधी ने, नरेन्द्र ने और बुद्ध ने,<br/> अपने चरित्र के बल पर,<br/> हाँ हाँ चरित्र निर्माण ...<br/> चरित्र निर्माण ही है समाधान,<br/> यही तो है जो कमजोर हो गया है,<br/> आधुनिकता, वैश्वीकरण, <br/> धन लोलुपता की चाह में |</p>