Sumit Naithani's Posts - Open Books Online2024-03-28T22:30:45ZSumit Naithanihttp://openbooks.ning.com/profile/SumitNaithanihttp://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2991283421?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1http://openbooks.ning.com/profiles/blog/feed?user=2soq977yaszzq&xn_auth=noएक खबर यह भी (लघु कथा )tag:openbooks.ning.com,2013-09-03:5170231:BlogPost:4270632013-09-03T03:30:00.000ZSumit Naithanihttp://openbooks.ning.com/profile/SumitNaithani
<div style="text-align: left;">सुबह सुबह न्यूज़ पेपर पढ़ रहा था , कही पर चोरी की वारदात, कही रेप केस , तो कही हत्या। । आखिरी के पन्नो पर खेल समाचार …और होता ही क्या है एक न्यूज़ पेपर के अंदर …और जाने कितनी समाज सुधारक बातें मन में विचरण करने लगी। । कल्पनाओं के समुंदर में गोते लगाने के बजाए मैं ऑफिस के लिए तैयार होने लगा। ….</div>
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<div>घर से बाहर निकला ही था, कि मेरी नज़र एक कबाड़ बीनने वाले बच्चे पर गयी, जो सामने लगे विज्ञापन बोर्ड को बड़े ध्यान से देख रहा था…. आखिर वो क्या देख…</div>
<div style="text-align: left;">सुबह सुबह न्यूज़ पेपर पढ़ रहा था , कही पर चोरी की वारदात, कही रेप केस , तो कही हत्या। । आखिरी के पन्नो पर खेल समाचार …और होता ही क्या है एक न्यूज़ पेपर के अंदर …और जाने कितनी समाज सुधारक बातें मन में विचरण करने लगी। । कल्पनाओं के समुंदर में गोते लगाने के बजाए मैं ऑफिस के लिए तैयार होने लगा। ….</div>
<div>.</div>
<div>घर से बाहर निकला ही था, कि मेरी नज़र एक कबाड़ बीनने वाले बच्चे पर गयी, जो सामने लगे विज्ञापन बोर्ड को बड़े ध्यान से देख रहा था…. आखिर वो क्या देख रहा था ? क्या पढ़ रहा था ? मेरे मन में उत्सुकता हुयी। …. मैं बच्चे के पास गया और पूछा "क्या कर रहा है यहाँ पर ?" अचानक हुए इस वार से बच्चा पहले तो घबरा गया , और हडबडा कर बोल " नहीं, कुछ भी तो नहीं " …. मैं जानना चाहता था कि वो विज्ञापन बोर्ड पर क्या पढ़ रहा था, इसलिए मैंने प्यार से पूछा " बता न यार , क्या देख रहा था, उस बोर्ड पर, वहां तो कोई तस्वीर भी नहीं है " बच्चे ने मेरे इस बर्ताव को देखकर, चेन की सांस ली और बोला " कुछ नहीं अंकल, " मैंने कहा " कुछ नहीं तो, इतनी देर से क्या देख रहा था इस बोर्ड पर" .....</div>
<div>.</div>
<div>बच्चे ने कहा " कुछ नहीं, ये जो अजीब सा बना होता है, वो मुझे बड़ा अच्छा लगता है," मैंने कहा " अरे इस पर तो कुछ नहीं बना हुआ है, तू किस की बात कर रहा है " तब बच्चा बोला " ये जो टेढ़ी मेडी डंडिया खिची हुयी है , मुझे बहुत अच्छी लगती है, आपको पता है अंकल, मैं रोज़ खाली वक़्त में इन्हें बनाने की कोशिश करता हूँ "… बीच में टोकते हुए मैंने अपनी बात कही "जब ये इतना ही पसंद है तो स्कूल क्यों नहीं जाते !" उत्तर मिला " पूरे दिन कबाड़ में रहने के बाद अंकल, शाम की रोटी हो पाती है , माँ हमेशा बीमार रहती है और बापू नशे में," एक बार फिर उसकी बात काटी मैंने "पढना पसंद है तो , मैं तुम्हारी मदद करूँगा , रोज़ एक घंटे मेरे पास आना " मेरी बात पूरी नहीं होने दी नादान ने " हमारे यहाँ बच्चे स्कूल नहीं जाते, वो तो पैदा होते ही , पैसा कमाने लगते है, मोहल्ले में मेरा एक दोस्त है कल्लू , उसके घर पर सब बढ़िया है , फ्रिज , टेलीविज़न सब है, कोई दिक्कत नहीं , फिर भी स्कूल नहीं जाता , कबाड़ बीनता है क्योंकि हमारे यहाँ सब यही काम करते है। । मैंने कई बार कहा कि मैं भी स्कूल जाना चाहता हूँ, तो सबने मेरा मजाक उड़ाया " और बोलते बोलते कब उसकी आँखों से आसू छलक आये , मैं कुछ कह पाता उससे पहले वो वहां से जा चूका था। ….</div>
<div>.</div>
<div>हमारे समाज का सबसे दुश्मन शायद यही है , जिस दिन न्यूज़ पेपर में इसके बारे में छपने लगेगा, तब और खबरे छपनी बंद हो जाएँगी.... ...</div>
<div><span>मौलिक एवं अप्रकाशित </span><br/> <span>सुमित नैथानी</span></div>कागज़ी आज़ादीtag:openbooks.ning.com,2013-08-14:5170231:BlogPost:4141302013-08-14T12:30:00.000ZSumit Naithanihttp://openbooks.ning.com/profile/SumitNaithani
<p>एक बार फिर दिल से, गुस्ताखी माफ़ अगर लगे दिल पे </p>
<p> .</p>
<p>आज कल हर कोई स्वतंत्रता दिवस के रंग में रंगा है, ऐसे में मेरे मन में कुछ विचार आये है ... जो शायद क्रांति नहीं ला सकते और न ही उनमे कोई बोद्धिकता है | फिर भी लिख रहा हूँ और आप सबके साथ साँझा कर रहा हूँ ....</p>
<p> .</p>
<p>बात तब की है, जब मैं बचपने की गोद में खेला करता था, दूरदर्शन पर स्वतंत्रता दिवस के दिन मनोज कुमार की शहीद दिखाई गयी, फिल्म इतनी अच्छी लगी कि मुझे भारत माँ के सबसे महान और वीर बेटे भगत सिंह ही नज़र आने…</p>
<p>एक बार फिर दिल से, गुस्ताखी माफ़ अगर लगे दिल पे </p>
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<p>आज कल हर कोई स्वतंत्रता दिवस के रंग में रंगा है, ऐसे में मेरे मन में कुछ विचार आये है ... जो शायद क्रांति नहीं ला सकते और न ही उनमे कोई बोद्धिकता है | फिर भी लिख रहा हूँ और आप सबके साथ साँझा कर रहा हूँ ....</p>
<p> .</p>
<p>बात तब की है, जब मैं बचपने की गोद में खेला करता था, दूरदर्शन पर स्वतंत्रता दिवस के दिन मनोज कुमार की शहीद दिखाई गयी, फिल्म इतनी अच्छी लगी कि मुझे भारत माँ के सबसे महान और वीर बेटे भगत सिंह ही नज़र आने लगे | अब कोई मुझसे पूछता, "तुम्हे कौन अच्छा लगता है या तुम किस की तरह बनना चाहते हो", तो मैं तपाक से जवाब देता, "भगत सिंह जैसा" धीरे धीरे मैं बड़ा हुआ और मेरा बोद्धिक विकास निम्न स्तर का होता चला गया ....</p>
<p> .</p>
<p>अब मैं सोचता हूँ, क्या इतना कह देने से कि मैं भगत सिंह या राजगुरु को मानता हूँ, पूजता हूँ, सिर्फ कह देना ही काफी है, यदि हां तो मैं अभी भी बचपने की देहलीज़ पर हूँ और यदि न तो आखिर हमने ऐसा क्या कार्य किया है, जो हम इन्हें अपना आदर्श व्यक्तित्व मानते है ....</p>
<p> .</p>
<p> लेखको में खासकर एक बात आम है या नज़र आती है , इनसे सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें कागजों पर लिखवा लो, किसी महान व्यक्ति का चरित्र चित्रण करवा लो .. या किसी विधा पर लिखवा लो, मगर एक बार उन्हें ये कहकर देखो कि देश के लिए कुछ करोगे , तो लेखक महाशय कहेंगे, "देखते नहीं हो मैं काम कर रहा हूँ, विचारो को कागजों पर उड़ेल रहा हूँ ...."</p>
<p> .</p>
<p>हमारे देश भारत ओह माफ़ कीजिये इंडिया में, एक रिवाज़ और जोरो पर है, पहले भी था, मगर आज कल कुछ ज्यादा ही प्रभावी है , वो रिवाज़ है अपने नाम के साथ किसी महान हस्ती , फिल्म कलाकार या किसी नेता का नाम जोड़ लेना... क्या सिर्फ अपने नाम के साथ किसी का नाम जोड़ लेने से, किसी अन्य व्यक्ति के गुण आपकी आत्मा, बुद्धि और स्वभाव को प्रभावित कर सकते है, अगर नहीं तो फिर किसी का नाम या उपनाम , अपने साथ के साथ क्यों जोड़ा जाये और अगर हां, तो फिर सिर्फ फिल्म कलाकारों या किसी अन्य का नाम जोड़ लेने के बजाए विवेकानंद जी या दयानन्द जी जैसे ज्ञानियों के नाम क्यों नहीं जोड़े जाते....</p>
<p> .</p>
<p>कागज़ी आज़ादी तो हमे 1947 में ही मिल गयी थी, मगर अफ़सोस की बात है कि आज भी हम कागज़ी जंग ही लड़ रहे है और आगे भी जाने कितने सालो तक, ये जंग बरक़रार रहेगी ....</p>
<p> .</p>
<p>पता नहीं कभी-कभी मुझे क्या हो जाता है, शायद पागलपन के दौरे पड़ते है, खुमारी में जाने क्या-क्या लिख जाता हूँ... आज स्वतंत्रता दिवस है, तो अब मैं भी चलता हूँ, छत पर पतंग उड़ा कर, मार्किट या किसी मोल में जा कर कुछ कपडे खरीद लूँगा , शाम को एक नयी फिल्म देखूंगा और रात का डिनर किसी होटल में करने के पश्चात घर आकर सो जाऊंगा .... बाकि दिन ऑफिस, टाइम ही कहाँ है मेरे पास.........और जो खाली वक़्त, है भी मेरे पास, उसे मैं अपने देश के नाम नयोछावर करता हूँ, कागज़ पर लिख लिख कर ............</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p></p>
<p></p>
<p>सुमित नैथानी </p>गरीब की भूखtag:openbooks.ning.com,2013-07-31:5170231:BlogPost:4060562013-07-31T10:30:00.000ZSumit Naithanihttp://openbooks.ning.com/profile/SumitNaithani
<div>आज सुबह मेरे दोस्त ने मुझे फोन किया और कहा की आज एक विषय पर कहानी लिखो -गरीब की भूख , मुझे थोड़ी हैरानी हुयी, "ये क्या ! आज ये क्या विषय दे दिया '<span>गरीब की भूख </span>', ये तो निबन्ध लिखने का विषय है, इस पर कहानी कैसे लिखी जा सकती है "...थोडा विरोध था मन में, मगर जाने क्या हुआ, मैंने सोचा "चलो रहने देते है, देखते है, आज अपनी प्रतिभा को भी आजमाते है .... </div>
<div>.</div>
<div>उसके बाद मैं अपने कार्यालय के लिये चल पड़ा, मगर आज मन बेचैन था, आखिर <span>गरीब की भूख</span> पर कोई कहानी…</div>
<div>आज सुबह मेरे दोस्त ने मुझे फोन किया और कहा की आज एक विषय पर कहानी लिखो -गरीब की भूख , मुझे थोड़ी हैरानी हुयी, "ये क्या ! आज ये क्या विषय दे दिया '<span>गरीब की भूख </span>', ये तो निबन्ध लिखने का विषय है, इस पर कहानी कैसे लिखी जा सकती है "...थोडा विरोध था मन में, मगर जाने क्या हुआ, मैंने सोचा "चलो रहने देते है, देखते है, आज अपनी प्रतिभा को भी आजमाते है .... </div>
<div>.</div>
<div>उसके बाद मैं अपने कार्यालय के लिये चल पड़ा, मगर आज मन बेचैन था, आखिर <span>गरीब की भूख</span> पर कोई कहानी कैसे लिखी जाये...सोचते सोचते कब मैं अपनी मंजिल तक आ पंहुचा, मुझे पता नहीं चला ... कार्यालय में भी मन नहीं लग रहा था, आखिर सवाल ही ऐसा था, जो मन के साथ साथ दिमाग से भी खेल रहा था... </div>
<div>.</div>
<div>मैंने कार्यालय में बीमार होने की बात कह, निकल पड़ा गरीबो की खोज में ..... मैंने तलाश शुरू की, नॉएडा के छोटे छोटे गावों से, कस्बो से .. मगर ये क्या ? यहाँ भी सब अमीर है, यहाँ भी कोई गरीब नहीं....</div>
<div>तभी मेरे सामने से एक छोटा बच्चा दौड़ता हुआ आ रहा था , उम्र यही कोई ७-८ साल, सलमान का दीवाना लग रहा था, लोग ६ पैक के लिये जिम जाते है, और मुझे उसके शरीर पर ८ से ज्यादा पैक दिख रहे थे...</div>
<div>मैंने उसे आवाज़ देकर रोका और पूछा "बेटा यहाँ सबसे गरीब इंसान कौन है ? मैं सुबह से भटक रहा हूँ, कोई गरीब ही नहीं दिखाई दे रहा है, क्या दुनिया से गरीबी जा चुकी है या मैं पागलपन के शुरुवाती दौर में कदम रख रहा हूँ " </div>
<div>.</div>
<div>बच्चा मेरी बात काटते हुये बोला "ये तो हमारे भगवान की कृपा है, उनकी वजह से अब कोई गरीब नहीं है, सब अमीर है ." मैंने गुस्साते हुये पूछा "ऐसा कौन सा भगवान आ गया है, जिसने गरीबी को दूर कर दिया, बता लड़के ??" वो भागते हुये गया और एक तस्वीर लेकर आया, किसी नेता की थी, और बोला " यही है हमारे भगवान, जिन्होंने २१ रुपये कमाने वाले को भी अमीरों का दर्ज़ा दे दिया है, अब हम सब अमीर है | खाने के लिये चार दिन से कुछ नहीं मिला, मगर हम अमीर है | कपडे नहीं है शरीर पर, फिर भी हम अमीर है | वो छोडो अंकल, अब तो हम किसी से भीख भी नहीं मांग सकते, आखिर हम भी अमीर जो ठहरे " </div>
<div>.</div>
<div>मैं बच्चे को देखता ही रह गया और वो नजरो के आगे से भागता हुआ निकल गया ... मैं भी अब गरीबो की तलाश या उनकी भूख को रास्ते में ही छोड, घर आ गया ...</div>
<div>२--४ चाय की चुस्की ली और मन ही मन सोचा जब गरीब ही नहीं रहे तो <span>गरीब की भूख </span> ... आज का विषय ही बकवास है ........</div>
<div><span>मौलिक एवं अप्रकाशित </span><br/><span>सुमित नैथानी</span></div>ऐ प्रकृति तू धर शरीरtag:openbooks.ning.com,2013-07-12:5170231:BlogPost:3962752013-07-12T04:00:00.000ZSumit Naithanihttp://openbooks.ning.com/profile/SumitNaithani
<p>ऐ प्रकृति तू धर शरीर<br></br> ले जन्म किसी माँ की कोख से !!</p>
<p>.<br></br> जब तुझे लगेगी चोट <br></br> बहेगा लहू तेरे शरीर से <br></br> या बीच राह में कोई <br></br> दाग लगेगा आबरू पे कोई <br></br> जब जागेगा ये मानव कही <br></br> रक्षा को तेरी तभी</p>
<p>ऐ प्रकृति तू धर शरीर !!</p>
<p>.<br></br> वैसे तो कुछ दिनों का होगा जोश<br></br> मानव का मानव के लिए <br></br> मगर इस बहाने ऐ प्रकृति <br></br> तेरा ख्याल तो आयेगा<br></br> वरना ये शातिन प्राणी <br></br> अपने स्वार्थ के लिए <br></br> तुझको ही ये लूटता जायेगा <br></br> ऐ प्रकृति तू धर शरीर<br></br> ले…</p>
<p>ऐ प्रकृति तू धर शरीर<br/> ले जन्म किसी माँ की कोख से !!</p>
<p>.<br/> जब तुझे लगेगी चोट <br/> बहेगा लहू तेरे शरीर से <br/> या बीच राह में कोई <br/> दाग लगेगा आबरू पे कोई <br/> जब जागेगा ये मानव कही <br/> रक्षा को तेरी तभी</p>
<p>ऐ प्रकृति तू धर शरीर !!</p>
<p>.<br/> वैसे तो कुछ दिनों का होगा जोश<br/> मानव का मानव के लिए <br/> मगर इस बहाने ऐ प्रकृति <br/> तेरा ख्याल तो आयेगा<br/> वरना ये शातिन प्राणी <br/> अपने स्वार्थ के लिए <br/> तुझको ही ये लूटता जायेगा <br/> ऐ प्रकृति तू धर शरीर<br/> ले जन्म किसी माँ की कोख से ......!!</p>
<p></p>
<p>शातिन = दुराचारी </p>
<p><br/> मौलिक एवं अप्रकाशित <br/> सुमित नैथानी</p>हमसफ़र मेराtag:openbooks.ning.com,2013-07-03:5170231:BlogPost:3897612013-07-03T08:30:00.000ZSumit Naithanihttp://openbooks.ning.com/profile/SumitNaithani
<p>बिछड़ा था हमसफ़र मेरा</p>
<div>अप्रैल की गर्मियों में </div>
<div>मिले न अब तक, </div>
<div>उसके कोई निशान </div>
<div>न आयी उसकी कोई चिट्ठी -खबर !!</div>
<div>.</div>
<div>गर्मियों से बरसात तक </div>
<div>मिले जो राह में पदचिह्न मुझे </div>
<div>उन पदचिह्नों को देख कर </div>
<div>जाने कितनी बार अश्क बहाये </div>
<div>कितनो के आगे रोया </div>
<div>कही देखा है हमसफ़र मेरा !! </div>
<div>.</div>
<div>उम्र के साथ अब ढल रही है नज़रे </div>
<div>और थक रहा है बदन मेरा </div>
<div>मगर मेरी…</div>
<p>बिछड़ा था हमसफ़र मेरा</p>
<div>अप्रैल की गर्मियों में </div>
<div>मिले न अब तक, </div>
<div>उसके कोई निशान </div>
<div>न आयी उसकी कोई चिट्ठी -खबर !!</div>
<div>.</div>
<div>गर्मियों से बरसात तक </div>
<div>मिले जो राह में पदचिह्न मुझे </div>
<div>उन पदचिह्नों को देख कर </div>
<div>जाने कितनी बार अश्क बहाये </div>
<div>कितनो के आगे रोया </div>
<div>कही देखा है हमसफ़र मेरा !! </div>
<div>.</div>
<div>उम्र के साथ अब ढल रही है नज़रे </div>
<div>और थक रहा है बदन मेरा </div>
<div>मगर मेरी उम्मीद कहती है </div>
<div>मिलेगा एक दिन हमसफ़र तेरा ...</div>
<div>.</div>
<div>मेरे मरने से पहले</div>
<div>उससे मिला देना खुदा </div>
<div>या मुझ तक भेज देना सन्देश उसका</div>
<div>कि वो जहाँ है बहुत खुश है </div>
<div>ताकि <span>सुकून</span> से मर सकू मैं !!!!</div>
<div>.</div>
<div>सुमित नैथानी </div>
<div> </div>
<div>मौलिक एवं अप्रकाशित </div>
<div><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001462765?profile=original" target="_self"><img width="750" src="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001462765?profile=RESIZE_1024x1024" width="750"/></a></div>न आये लौट केtag:openbooks.ning.com,2013-06-28:5170231:BlogPost:3864402013-06-28T10:00:00.000ZSumit Naithanihttp://openbooks.ning.com/profile/SumitNaithani
<p><span class="font-size-2">रूठकर गयी थी सुबह मुझसे </span></p>
<div><span class="font-size-2">रात का दर्पण दिखा कर </span></div>
<div><span class="font-size-2">फिर लौट आयी है सुबह !!.</span></div>
<div><span class="font-size-2">.</span></div>
<div><span class="font-size-2">रूठकर गयी थी बहार मुझसे </span></div>
<div><span class="font-size-2">पतझड के पत्ते उड़ा कर </span></div>
<div><span class="font-size-2">फिर लौट आयी है फिजा !!…</span></div>
<p><span class="font-size-2">रूठकर गयी थी सुबह मुझसे </span></p>
<div><span class="font-size-2">रात का दर्पण दिखा कर </span></div>
<div><span class="font-size-2">फिर लौट आयी है सुबह !!.</span></div>
<div><span class="font-size-2">.</span></div>
<div><span class="font-size-2">रूठकर गयी थी बहार मुझसे </span></div>
<div><span class="font-size-2">पतझड के पत्ते उड़ा कर </span></div>
<div><span class="font-size-2">फिर लौट आयी है फिजा !!</span></div>
<div><span class="font-size-2">.</span></div>
<div><span class="font-size-2">रूठकर जो गये तुम मुझसे </span></div>
<div><span class="font-size-2">न आये लौट के.....लौट के आयी</span></div>
<div><span class="font-size-2">मन का अज़ाब और यादें नाचार !!</span></div>
<div><span class="font-size-2">.</span></div>
<div><span class="font-size-2">.</span></div>
<div><span class="font-size-2">अज़ाब <em>=पीड़ा, </em>नाचार <em>=असहाय</em></span></div>
<div><span class="font-size-2"> </span></div>
<div><span class="font-size-2">सुमित नैथानी </span></div>
<div><span class="font-size-2">मौलिक एवं अप्रकाशित </span></div>
<div><span class="font-size-2"><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001461120?profile=original" target="_self"><img width="750" src="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001461120?profile=RESIZE_1024x1024" class="align-full" width="750"/></a></span></div>एक अच्छी मछलीtag:openbooks.ning.com,2013-06-18:5170231:BlogPost:3800042013-06-18T10:30:00.000ZSumit Naithanihttp://openbooks.ning.com/profile/SumitNaithani
<p><span class="font-size-2" style="color: #000000;">कल सुना मैंने</span> <br></br> <span class="font-size-2" style="color: #000000;">तालाब किनारे</span> <br></br> <span class="font-size-2" style="color: #000000;">दो मछलियों को</span> <br></br> <span class="font-size-2" style="color: #000000;">बात करते हुए -</span></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-2" style="color: #000000;">"वो शरीफ़</span> <br></br> <span class="font-size-2" style="color: #000000;">न्यायसंगत,…</span> <br></br></p>
<p><span class="font-size-2" style="color: #000000;">कल सुना मैंने</span> <br/> <span class="font-size-2" style="color: #000000;">तालाब किनारे</span> <br/> <span class="font-size-2" style="color: #000000;">दो मछलियों को</span> <br/> <span class="font-size-2" style="color: #000000;">बात करते हुए -</span></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-2" style="color: #000000;">"वो शरीफ़</span> <br/> <span class="font-size-2" style="color: #000000;">न्यायसंगत,</span> <br/> <span class="font-size-2" style="color: #000000;">सज्जनता से परिपूर्ण है</span> <br/> <span class="font-size-2" style="color: #000000;">आ गयी अगर</span> <br/> <span class="font-size-2" style="color: #000000;">हमारे तालाब में</span> <br/> <span class="font-size-2" style="color: #000000;">तो कर देगी</span> <br/> <span class="font-size-2" style="color: #000000;">दूषित तालाब हमारा</span> <br/> <span class="font-size-2" style="color: #000000;">क्योंकि मम्मी कहती है</span> <br/> <span class="font-size-2" style="color: #000000;">एक अच्छी मछली</span> <br/> <span class="font-size-2" style="color: #000000;">पूरे तालाब को गन्दा कर देती है "</span></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-2" style="color: #000000;">सुमित नैथानी </span></p>
<p><span class="font-size-2" style="color: #000000;"><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001461112?profile=original" target="_self"><img width="750" src="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001461112?profile=RESIZE_1024x1024" width="750" class="align-full"/></a></span></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-2" style="color: #000000;">मौलिक व अप्रकाशित </span></p>सुबह-सुबहtag:openbooks.ning.com,2013-06-13:5170231:BlogPost:3782212013-06-13T10:30:00.000ZSumit Naithanihttp://openbooks.ning.com/profile/SumitNaithani
<p><span class="font-size-2" lang="HI" style="color: #000000;" xml:lang="HI">मेरे आंगन में आती</span></p>
<p><span class="font-size-2" style="color: #000000;"><span lang="HI" xml:lang="HI">सुबह-</span>सुबह</span></p>
<p><span class="font-size-2" lang="HI" style="color: #000000;" xml:lang="HI">किरणे सूरज की</span></p>
<p><span class="font-size-2" style="color: #000000;"><span lang="HI" xml:lang="HI">आंगन की बेल का </span>उठ…</span></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-2" style="color: #000000;" xml:lang="HI" lang="HI">मेरे आंगन में आती</span></p>
<p><span class="font-size-2" style="color: #000000;"><span xml:lang="HI" lang="HI">सुबह-</span>सुबह</span></p>
<p><span class="font-size-2" style="color: #000000;" xml:lang="HI" lang="HI">किरणे सूरज की</span></p>
<p><span class="font-size-2" style="color: #000000;"><span xml:lang="HI" lang="HI">आंगन की बेल का </span>उठ</span></p>
<p><span class="font-size-2" style="color: #000000;" xml:lang="HI" lang="HI">अतिथि सत्कार करना</span></p>
<p><span class="font-size-2" style="color: #000000;" xml:lang="HI" lang="HI">गमले में लगे</span></p>
<p><span class="font-size-2" style="color: #000000;" xml:lang="HI" lang="HI">फूलो का महकाना</span></p>
<p><span class="font-size-2" style="color: #000000;" xml:lang="HI" lang="HI">चिड़ियाओं ने गीत</span></p>
<p><span class="font-size-2" style="color: #000000;" xml:lang="HI" lang="HI">गुनगुनाना ........</span></p>
<p><span class="font-size-2" style="color: #000000;"><font face="Mangal">और इसके साथ ही </font></span></p>
<p><span class="font-size-2" style="color: #000000;" xml:lang="HI" lang="HI">मेरे घर के अंदर</span></p>
<p><span class="font-size-2" style="color: #000000;" xml:lang="HI" lang="HI">दीवारों से</span></p>
<p><span class="font-size-2" style="color: #000000;" xml:lang="HI" lang="HI">छिपकली</span></p>
<p><span class="font-size-2" style="color: #000000;" xml:lang="HI" lang="HI">कोकरोच</span></p>
<p><span class="font-size-2" style="color: #000000;" xml:lang="HI" lang="HI">और</span></p>
<p><span class="font-size-2" style="color: #000000;" xml:lang="HI" lang="HI">उड़ते मच्छरों का</span></p>
<p><span class="font-size-2" style="color: #000000;" xml:lang="HI" lang="HI">किसी कोने में</span></p>
<p><span class="font-size-2" style="color: #000000;" xml:lang="HI" lang="HI">छुप जाना ......</span></p>
<p></p>
<p><span style="color: #000000;" class="font-size-2" xml:lang="HI" lang="HI"><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001460987?profile=original" target="_self"><span style="color: #000000;"><img width="750" src="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001460987?profile=RESIZE_1024x1024" class="align-full" width="750"/></span></a></span></p>
<p><span style="color: #000000;" class="font-size-2">मौलिक एवं अप्रकाशित </span></p>
<p><span style="color: #000000;" class="font-size-2">- सुमित नैथानी </span></p>
<p></p>परिपक्वता और नादानीयाँtag:openbooks.ning.com,2013-06-07:5170231:BlogPost:3737952013-06-07T10:24:34.000ZSumit Naithanihttp://openbooks.ning.com/profile/SumitNaithani
<p><strong><span lang="HI" style="font-family: arial, helvetica, sans-serif; color: #0000ff;" xml:lang="HI">धर्म-मजहब के नाम पर,</span></strong></p>
<p><strong><span lang="HI" style="font-family: arial, helvetica, sans-serif; color: #0000ff;" xml:lang="HI">तुम लड़ सकते हो, मैं नहीं</span></strong></p>
<p><strong><span lang="HI" style="font-family: arial, helvetica, sans-serif; color: #0000ff;" xml:lang="HI">अपने शब्दों की नुमाइश बेहतर,…</span></strong></p>
<p></p>
<p><strong><span lang="HI" style="font-family: arial, helvetica, sans-serif; color: #0000ff;" xml:lang="HI">धर्म-मजहब के नाम पर,</span></strong></p>
<p><strong><span lang="HI" style="font-family: arial, helvetica, sans-serif; color: #0000ff;" xml:lang="HI">तुम लड़ सकते हो, मैं नहीं</span></strong></p>
<p><strong><span lang="HI" style="font-family: arial, helvetica, sans-serif; color: #0000ff;" xml:lang="HI">अपने शब्दों की नुमाइश बेहतर,</span></strong></p>
<p><strong><span lang="HI" style="font-family: arial, helvetica, sans-serif; color: #0000ff;" xml:lang="HI">तुम कर सकते हो, मैं नहीं</span></strong></p>
<p><strong><span lang="HI" style="font-family: arial, helvetica, sans-serif; color: #0000ff;" xml:lang="HI">.</span></strong></p>
<p><strong><span lang="HI" style="font-family: arial, helvetica, sans-serif; color: #0000ff;" xml:lang="HI">मैं.............. मैं क्या कर सकता हूँ ???</span></strong></p>
<p><strong><span lang="HI" style="font-family: arial, helvetica, sans-serif; color: #0000ff;" xml:lang="HI">मैं तो बस....</span></strong></p>
<p><strong><span lang="HI" style="font-family: arial, helvetica, sans-serif; color: #0000ff;" xml:lang="HI">.</span></strong></p>
<p><strong><span lang="HI" style="font-family: arial, helvetica, sans-serif; color: #0000ff;" xml:lang="HI">मैं तो आज भी ले सकता हूँ</span></strong></p>
<p><strong><span lang="HI" style="font-family: arial, helvetica, sans-serif; color: #0000ff;" xml:lang="HI">बारिश का मज़ा</span></strong></p>
<p><strong><span lang="HI" style="font-family: arial, helvetica, sans-serif; color: #0000ff;" xml:lang="HI">गलतियाँ कर पा सकता हूँ सजा</span></strong></p>
<p><strong><span lang="HI" style="font-family: arial, helvetica, sans-serif; color: #0000ff;" xml:lang="HI">कल्पनाओ से निखार सकता हूँ धरा</span></strong></p>
<p><strong><span lang="HI" style="font-family: arial, helvetica, sans-serif; color: #0000ff;" xml:lang="HI">बात दिल की कहता हूँ सदा.......</span></strong></p>
<p><strong><span lang="HI" style="font-family: arial, helvetica, sans-serif; color: #0000ff;" xml:lang="HI">.</span></strong></p>
<p><strong><span lang="HI" style="font-family: arial, helvetica, sans-serif; color: #0000ff;" xml:lang="HI">रो कर मना सकता हूँ उन्हें</span></strong></p>
<p><strong><span lang="HI" style="font-family: arial, helvetica, sans-serif; color: #0000ff;" xml:lang="HI">रूठ के सता सकता हूँ उन्हें</span></strong></p>
<p><strong><span lang="HI" style="font-family: arial, helvetica, sans-serif; color: #0000ff;" xml:lang="HI">नादानियो से हँसा सकता हूँ उन्हें</span></strong></p>
<p><strong><span lang="HI" style="font-family: arial, helvetica, sans-serif; color: #0000ff;" xml:lang="HI">क्या तुम कर सकते हो ?</span></strong></p>
<p><strong><span lang="HI" style="font-family: arial, helvetica, sans-serif; color: #0000ff;" xml:lang="HI">.</span></strong></p>
<p><strong><span lang="HI" style="font-family: arial, helvetica, sans-serif; color: #0000ff;" xml:lang="HI">कदाचित नहीं</span></strong></p>
<p><strong><span lang="HI" style="font-family: arial, helvetica, sans-serif; color: #0000ff;" xml:lang="HI"> </span></strong></p>
<p><strong><span style="font-family: arial, helvetica, sans-serif; color: #0000ff;"><span lang="HI" xml:lang="HI">क्योंकि </span>परिपक्वता तुम्हारा बन्धन है <a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2966939806?profile=original" target="_self"><br/></a></span></strong></p>
<p><strong><span style="font-family: arial, helvetica, sans-serif; color: #0000ff;">और नादानीयाँ मेरी आज़ाद उड़ान .....</span></strong></p>
<p><strong><span style="font-family: arial, helvetica, sans-serif; color: #0000ff;"><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2966939806?profile=original" target="_self"><img width="750" src="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2966939806?profile=RESIZE_1024x1024" width="750" class="align-center"/></a></span></strong></p>
<p></p>
<p><span style="color: #333399;">मौलिक एवं अप्रकाशित </span></p>
<p><span style="color: #333399;">- सुमित नैथानी </span></p>
<p></p>
<p><span> </span></p>