Rachna Bhatia's Posts - Open Books Online2024-03-29T05:06:03ZRachna Bhatiahttp://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatiahttp://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/986210709?profile=original&width=48&height=48&crop=1%3A1http://openbooks.ning.com/profiles/blog/feed?user=2gybk7v5v5092&xn_auth=noग़ज़ल - मुझे ग़ैरों में शामिल कर चुका हैtag:openbooks.ning.com,2023-05-17:5170231:BlogPost:11039302023-05-17T06:00:00.000ZRachna Bhatiahttp://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p>2122 2122 2122</p>
<p></p>
<p>1</p>
<p>वो ज़रा-सा सिरफ़िरा कुछ मनचला है</p>
<p>जो महब्बत के सफ़र पर चल पड़ा है</p>
<p>2</p>
<p>मेरे दिल ने जो कहा मैंने किया है</p>
<p>काम फिर चाहे वो अच्छा या बुरा है</p>
<p>3</p>
<p>अक़्स आँखों में हमारी जो छिपा है</p>
<p>इस जहाँ के सबसे प्यारे शख़्स का है</p>
<p>4</p>
<p>है महब्बत एक चिंगारी कुछ ऐसी</p>
<p>दिल लगाने वाला ही इसमें जला है</p>
<p>5</p>
<p>बाद मुद्दत के मिला उससे तो जाना</p>
<p>वो मुझे ग़ैरों में शामिल कर चुका है </p>
<p>6</p>
<p>कुछ कहे बिन और…</p>
<p>2122 2122 2122</p>
<p></p>
<p>1</p>
<p>वो ज़रा-सा सिरफ़िरा कुछ मनचला है</p>
<p>जो महब्बत के सफ़र पर चल पड़ा है</p>
<p>2</p>
<p>मेरे दिल ने जो कहा मैंने किया है</p>
<p>काम फिर चाहे वो अच्छा या बुरा है</p>
<p>3</p>
<p>अक़्स आँखों में हमारी जो छिपा है</p>
<p>इस जहाँ के सबसे प्यारे शख़्स का है</p>
<p>4</p>
<p>है महब्बत एक चिंगारी कुछ ऐसी</p>
<p>दिल लगाने वाला ही इसमें जला है</p>
<p>5</p>
<p>बाद मुद्दत के मिला उससे तो जाना</p>
<p>वो मुझे ग़ैरों में शामिल कर चुका है </p>
<p>6</p>
<p>कुछ कहे बिन और कुछ पूछे बिना ही </p>
<p>मेरे दिल पर नाम उसने लिख लिया है</p>
<p>7</p>
<p>क्यों नहीं बेख़ौफ़ हो कर मैं बढ़ूँ जब</p>
<p>हाथ थामे साथ जब चलता ख़ुदा है </p>
<p>दे रहा जब साथ हर इक पल ख़ुदा है</p>
<p>8</p>
<p>वक़्त से "निर्मल" यही सीखा है मैंने</p>
<p>सच हमेशा आख़िरीदम तक लड़ा है</p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>
<p>रचना निर्मल</p>आलेख - माँ की देखभाल औलाद की नैतिक जिम्मेदारीtag:openbooks.ning.com,2023-03-09:5170231:BlogPost:11006802023-03-09T04:47:26.000ZRachna Bhatiahttp://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p>माँ की देखभाल औलाद की नैतिक जिम्मेदारी</p>
<p></p>
<p>गाज़ियाबाद। इंदिरा चौधरी ने 85 साल की उम्र में जिस इकलौते बेटे की पैरवी करके जमानत कराई, उसे उन्होंने अकेले पाँच वर्ष की उम्र से पाला था। वह जब जेल से बाहर आया तो मां को साथ रखने के बजाय वृद्धाश्रम में छोड़ गया। वह बताती हैं कि वह वाराणसी में बेटे-बहू के साथ ही रह रही थीं। एक दिन अचानक बेटा बहू और पोते को लेकर लापता हो गया। पता चला कि वह जिस कंपनी में काम करता था, वहीं गबन कर गया। कंपनी के केस दर्ज कराने के बाद पुलिस ने उसे तिहाड़ जेल में…</p>
<p>माँ की देखभाल औलाद की नैतिक जिम्मेदारी</p>
<p></p>
<p>गाज़ियाबाद। इंदिरा चौधरी ने 85 साल की उम्र में जिस इकलौते बेटे की पैरवी करके जमानत कराई, उसे उन्होंने अकेले पाँच वर्ष की उम्र से पाला था। वह जब जेल से बाहर आया तो मां को साथ रखने के बजाय वृद्धाश्रम में छोड़ गया। वह बताती हैं कि वह वाराणसी में बेटे-बहू के साथ ही रह रही थीं। एक दिन अचानक बेटा बहू और पोते को लेकर लापता हो गया। पता चला कि वह जिस कंपनी में काम करता था, वहीं गबन कर गया। कंपनी के केस दर्ज कराने के बाद पुलिस ने उसे तिहाड़ जेल में बंद कर दिया। बहू पोते को लेकर मायके चली गई । इंदिरा चौधरी उसे छुड़ाने दिल्ली आ गईं। कहीं रहने का ठिकाना न मिलने पर दुहाई (गाज़ियाबाद) के वृद्धाश्रम में आ गईं। यहीं से वकील ढूंढा, बेटे से मिलने जेल गईं और पूरा मामला समझा। पैरवी के लिए रिश्तेदारों से पैसे उधार लिए। हर तारीख पर कोर्ट गई। अंत में बेटे को जमानत मिल गई और वह जेल से बाहर आ गया। इंदिरा कहती हैं कि बेटे की नौकरी जा चुकी थी।उन्होंने आश्रम की संचालिका इंदु श्रीवास्तव से दरखास्त करके बेटे को दो महीने तक आश्रम में ही रखा, क्योंकि उसे नौकरी नहीं मिल रही थी। जब इंदौर में नौकरी मिली तो वह बहू और बेटे के साथ उन्हें भी ले गया। परंतु एक महीने बाद ही बेटा यह कह कर कि "मां... तुम वहीं रहो, वृद्धाश्रम में" वापिस छोड़ गया।</p>
<p>उसी बेटे को याद करके आज भी इंदिरा की आंखें नम हो जाती हैं। वृद्धाश्रम में रहकर भी बेटे के लिए उसके मुंह से दुआ निकलती है। बेटा इतना निष्ठुर है कि मिलने भी नहीं आता।</p>
<p> आए दिन ऐसे समाचार अखबार में पढ़ने को मिलते रहते हैं समझ में नहीं आता कि आखिर बच्चे उस माँ के प्रति कैसे निष्ठुर हो जाते हैं जिस मां की तुलना ही अतुलनीय है?</p>
<p> कहते हैं कि ईश्वर को भी पृथ्वी पर आने के लिए एक स्त्री के गर्भ से आना पड़ता है।जो जन्म देने के साथ ही कई रूप धर के एक कवच की भांति उसके अंग संग रहती है। निस्वार्थ सहृदय निर्मल आत्मा लिए माँ रूपी महिला अपने जीवन की हर अभिलाषा को छोड़कर जिस बच्चे को प्राथमिकता देती है। </p>
<p>वही उसे जब चाहे दूध से मक्खी की तरह निकाल कर अलग कर देता है ।</p>
<p> देखा जाए तो माँ की उपमा विश्व के साहित्यकारों ने अलग-अलग रूप में की है किसी ने उन्हें देवी कहा किसी ने धरती , किसी ने समुद्र की उपमा दी है फिर भी अपनों के हाथों वो अपमानित होती रहती है आखिर क्यों?</p>
<p>एक माँ का क़र्ज़ कोई नहीं उतार सकता क्योंकि उसकी तपस्या उसी क्षण से शुरू हो जाती है जिस दिन एक पिंड उसकी कोख में आता है। उसी दिन से वह अपना आराम, अपनी इच्छाएँ उस पिंड के नाम कर देती है ,जिसे उसने देखा तक नहीं होता।अपने जीवन की परवाह किए बिना नौ महीनों तक अपने रक्त से सींच कर धीरे-धीरे उस बिन देखे पिंड को एक बालक का स्वरूप देकर जन्म देती है। इस अतुलनीय कार्य को ईश्वर भी माँ के बिना संपूर्ण नहीं कर सकते।</p>
<p> जो माँ बचपन में उसे दोस्त लगती है बिना कहे ही उसकी हर जरूरत समझ जाती है जिस पर वह खुद से भी अधिक भरोसा करता है जिसकी खुशबू मात्र से अपने आप को सुरक्षित समझता है,उसी माँ से बड़े होने के बाद वह दूर होने लगता है।</p>
<p> क्यों नहीं बच्चे समझते कि जहाँ माँ उन्हें न केवल दुनिया के थपेड़ों से बचाती है,उनकी एक सिसकी पर अपने दिन का चैन और रात की नींद न्यौछावर कर देती है वहीं उनकी एक किलकारी पूरी दुनिया बन जाती है। वह हमेशा बच्चे के स्वास्थ्य, शिक्षा, भविष्य और अजनबियों से सुरक्षा के बारे में सतर्क रहती है।</p>
<p> अपने ऊपर असंख्य आक्षेप सहने वाली स्त्री मां बनते ही अपने बच्चे की ढाल बन जाती है । जो काली, चंडी का रूप धारण करने में भी नहीं हिचकिचाती।उसकी दुआएँ न केवल बच्चे की सुख समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करती हैं वरन् उसके हाथों की रेखाएं बदलने की क्षमता भी रखती है।आप ही बताइए उसी को दर दर की ठोकरें खाने को छोड़ देना कहाँ तक सही है?</p>
<p> यह भी तो कटु सत्य ही है कि जिस माँ पर वह अपना हक समझता है उसके प्रति अपने कर्तव्य को पूरी तरह भूल जाता है यहाँ तक कि समाज के सामने उसका तिरस्कार करने में भी नहीं हिचकिचाता..और उसे भी एक माँ बचपना कहकर क्षमा करती जाती है। उसे आगे बढ़ने का मार्ग देकर खुद वहीं खड़ी रह जाती है। अपने बच्चे की अच्छी या बुरी गतिविधि को भलीभांति समझते हुए भी वह बेवकूफ या भोली बनी रहती है ।</p>
<p>एक समुद्र में पानी कम हो सकता है परंतु मां के हृदय में प्रेम कम नहीं हो सकता बल्कि दिन प्रतिदिन क्षण प्रति क्षण उसका प्रेम बढ़ता जाता है। कहते हैं समुद्र का खारापन भी उन आँसुओं के कारण होता है जिसे वह अपनी उपेक्षा होते देख कर भी बहाती नहीं पी लेती है ।</p>
<p>जो माँ जिस पिंड को अपने रक्त से बड़ा करती हो, जिसने अपने बच्चों को हमेशा देना ही सीखा हो वक्त की तपती धूप में अपने सर के आँचल से उसको छाँव दी हो, अपनी गोद का बिछौना और बाहों का झूला दिया हो उस माँ का हम कभी भी ऋण नहीं उतार सकते।</p>
<p> कितनी अजीब बात है कि जिस बच्चे को धार्मिक नैतिक औरऐतिहासिक कहानियाँ सुना कर अच्छे बुरे का ज्ञान देते हुए उसके जीवन को सही दिशा की ओर ले जाती है, एक अक्षम बच्चा मानसिक, शारीरिक, सामाजिक और बौद्धिक रूप से मजबूत इंसान बनाती है। </p>
<p>वही इतना मौकापरस्त हो जाता है कि अपनी मां को अनजान लोगों के बीच मरने के लिए छोड़ देता है।</p>
<p> अंत में केवल इतना ही कि चाहे माँ दो अक्षरों से बना छोटा सा शब्द है, परन्तु इसमें प्रेम भाव, स्नेह, अभिलाषा और इतनी शक्ति है कि इसे करोड़ों शब्दों से भी परिभाषित नहीं किया जा सकता क्योंकि जिसका प्यार मरते दम तक नहीं बदलता उसे मां कहते हैं।इसलिए उसे थोड़ा वक्त और प्यार दीजिए। वरना सब कुछ पा कर भी आप अधूरे रह जाएँगे।</p>
<p>समय रहते अगर आज की पीढ़ी नहीं सुधरती तो हमारे संविधान को चाहिए कि उसमें बदलाव करें और ऐसे बच्चों का हुक्का पानी बंद कर दे जो सक्षम होने के बाद अपनी जन्म दात्री को अक्षम कर देते हैं।</p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>
<p>रचना निर्मल</p>
<p>दिल्ली </p>
<p></p>
<p></p>ग़ज़ल - मेरे घर आज आ रहा है कोईtag:openbooks.ning.com,2023-03-08:5170231:BlogPost:11009082023-03-08T14:47:10.000ZRachna Bhatiahttp://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p>2122 1212 22</p>
<p>1</p>
<p>सोये जज़्बे जगा रहा है कोई </p>
<p>दिल प हौले से छा रहा है कोई </p>
<p>2</p>
<p>नज़रों से मय पिला रहा है कोई</p>
<p>मुझको मुझसे चुरा रहा है कोई</p>
<p>3</p>
<p>चाँद तारो न उम्र भर जाना</p>
<p>मेरे घर आज आ रहा है कोई</p>
<p>4</p>
<p>चन्दा कुछ देर ओढ़ ले बदरी</p>
<p>छत प मुझको बुला रहा है कोई</p>
<p>5</p>
<p>मुस्कुराहट सजा के होटों पर</p>
<p>इश्क करना सिखा रहा है कोई </p>
<p>6</p>
<p>लौटना अपना मुस्तरद*करके</p>
<p>मेरा ओहदा बढ़ा रहा है…</p>
<p>2122 1212 22</p>
<p>1</p>
<p>सोये जज़्बे जगा रहा है कोई </p>
<p>दिल प हौले से छा रहा है कोई </p>
<p>2</p>
<p>नज़रों से मय पिला रहा है कोई</p>
<p>मुझको मुझसे चुरा रहा है कोई</p>
<p>3</p>
<p>चाँद तारो न उम्र भर जाना</p>
<p>मेरे घर आज आ रहा है कोई</p>
<p>4</p>
<p>चन्दा कुछ देर ओढ़ ले बदरी</p>
<p>छत प मुझको बुला रहा है कोई</p>
<p>5</p>
<p>मुस्कुराहट सजा के होटों पर</p>
<p>इश्क करना सिखा रहा है कोई </p>
<p>6</p>
<p>लौटना अपना मुस्तरद*करके</p>
<p>मेरा ओहदा बढ़ा रहा है कोई</p>
<p>अस्वीकृत</p>
<p>7</p>
<p>शे'र लिखकर उदास काग़ज़ पर</p>
<p>ग़म ग़लत करता जा रहा है कोई</p>
<p>8</p>
<p>नाम दिल पर उकेर कर "निर्मल"</p>
<p>मुझको ग़ाफ़िल बना रहा है कोई</p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>
<p>रचना निर्मल </p>सदा - क्यों नहीं देतेtag:openbooks.ning.com,2023-01-16:5170231:BlogPost:10967022023-01-16T08:00:00.000ZRachna Bhatiahttp://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p><span style="font-weight: 400;">221--1221--1221--122</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">1</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">आँखों में भरे अश्क गिरा क्यों नहीं देते</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">है दर्द अगर सबको बता क्यों नहीं देते</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">2</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">है जुर्म मुहब्बत तो सज़ा क्यों नहीं देते</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">गर रोग है तो इसकी दवा क्यों…</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">221--1221--1221--122</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">1</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">आँखों में भरे अश्क गिरा क्यों नहीं देते</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">है दर्द अगर सबको बता क्यों नहीं देते</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">2</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">है जुर्म मुहब्बत तो सज़ा क्यों नहीं देते</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">गर रोग है तो इसकी दवा क्यों नहीं देते</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">3</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">तुम चाँद सितारों के तले उनको बुला कर</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">दिल में बसे चेहरे को दिखा क्यों नहीं देते</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">4</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">तूफ़ान से लड़ने का तुम्हें शौक़ है इतना</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">तो चप्पू समंदर में गिरा क्यों नहीं देते </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">5 </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">अक्सर जो तुम्हें ठगते है छल और कपट से</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">इक बार उन्हें तुम भी दग़ा क्यों नहीं देते</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">6</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;"><span style="color: #454545;">सच्चाई अगर मुल्क में ज़िंदा है अज़ीज़ो</span></span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">इन्साफ़ को फिर लोग सदा क्यों नहीं देते</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">7</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">क़ुदरत की तुम्हें फ़िक्र अगर इतनी है 'निर्मल</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">तो धरती को ख़ुश रंग बना क्यों नहीं देते</span></p>
<p><br/></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>रचना निर्मल</p>
<p>दिल्ली </p>ग़ज़ल- दर्द हरने लगते हैंtag:openbooks.ning.com,2022-06-21:5170231:BlogPost:10857452022-06-21T14:51:33.000ZRachna Bhatiahttp://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p><span style="font-weight: 400;">1212 1122 1212 22 /112</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">1</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">हम आह जब कभी महफ़िल में भरने लगते हैं</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">नज़र में भर के वो हर दर्द हरने लगते हैं</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">2</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जुनून-ए-इश्क़ में अब क्या सुनाएँ हाल-ए-दिल</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">ख़याल आते ही उनका सँवरने…</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">1212 1122 1212 22 /112</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">1</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">हम आह जब कभी महफ़िल में भरने लगते हैं</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">नज़र में भर के वो हर दर्द हरने लगते हैं</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">2</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जुनून-ए-इश्क़ में अब क्या सुनाएँ हाल-ए-दिल</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">ख़याल आते ही उनका सँवरने लगते हैं</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">3</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">तेरे बस एक इशारे प ही ओ जान-ए-जाँ</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">शरारतें मेरे लब ख़ुद ही करने लगते हैं</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">4</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">भुलाएँ भी तो उन्हें किस तरह भुलाएँ हम</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">फ़फोले यादों के जब तब उभरने लगते हैं </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">5</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">वो ख़्वाहिश-ए- ग़म-ए दिल का मुदावा करने को</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">रुत-ए-फ़िराक़ प इल्ज़ाम धरने लगते हैं</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">6</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">पकड़ के हाथ वो करते हैं मुतमुइन "निर्मल"</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">परेशाँ राहों से जब हम गुज़रने लगते हैं </span></p>
<p></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">मौलिक व अप्रकाशित </span></p>ग़ज़ल-गूँगा कर दियाtag:openbooks.ning.com,2022-05-31:5170231:BlogPost:10849932022-05-31T14:00:00.000ZRachna Bhatiahttp://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p>2122 2122 2122 212</p>
<p>1</p>
<p> उसने मेरे ज़ख़्मों का ऐसे मुदावा कर दिया</p>
<p>सी के आहों का मुहाना उनको गूँगा कर दिया</p>
<p>2</p>
<p>जिसने मेरा कद बढ़ा कर सबसे ऊँचा कर दिया</p>
<p> उसने सी कर लब मेरे किरदार बौना कर दिया</p>
<p>3</p>
<p>घर जलाकर अपना जिसके दर प कर दी रौशनी</p>
<p>उसने घबरा कर धुँएँ से शोर बरपा कर दिया</p>
<p>4</p>
<p>ख़त्म होते ही नहीं हैं ज़िन्दगी के मसअले</p>
<p>बैठते ही इक के दूजे ने तमाशा कर दिया</p>
<p>5</p>
<p>साथ देता ही नहीं है मेरे दिल का…</p>
<p>2122 2122 2122 212</p>
<p>1</p>
<p> उसने मेरे ज़ख़्मों का ऐसे मुदावा कर दिया</p>
<p>सी के आहों का मुहाना उनको गूँगा कर दिया</p>
<p>2</p>
<p>जिसने मेरा कद बढ़ा कर सबसे ऊँचा कर दिया</p>
<p> उसने सी कर लब मेरे किरदार बौना कर दिया</p>
<p>3</p>
<p>घर जलाकर अपना जिसके दर प कर दी रौशनी</p>
<p>उसने घबरा कर धुँएँ से शोर बरपा कर दिया</p>
<p>4</p>
<p>ख़त्म होते ही नहीं हैं ज़िन्दगी के मसअले</p>
<p>बैठते ही इक के दूजे ने तमाशा कर दिया</p>
<p>5</p>
<p>साथ देता ही नहीं है मेरे दिल का हौसला </p>
<p>ज़िन्दगी ने ऐसे मुझको पारा पारा कर दिया</p>
<p>6</p>
<p>कर गया घर ख़ौफ़ दिल में तीरगी हुजरे में है</p>
<p>साफ़गोई ने ज़हाँ में इतना रुसवा कर दिया</p>
<p>7</p>
<p>ख़ास ये 'निर्मल ' ख़ुदा का हो गया तुझ पर करम</p>
<p>मेरे इस बीमार-ए-दिल को जो तूने अच्छा कर दिया</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>ग़ज़ल-अपना है कहाँtag:openbooks.ning.com,2022-05-06:5170231:BlogPost:10834762022-05-06T05:00:00.000ZRachna Bhatiahttp://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p>2122 2122 2122 212</p>
<p></p>
<p>1</p>
<p>औरों के जैसा मुकद्दर यार अपना है कहाँ</p>
<p>अपने दिल का जोर उसके दिल प चलता है कहाँ</p>
<p>2</p>
<p>रात होती है कहाँ और दिन गुज़रता है कहाँ</p>
<p>मन मुआफ़िक़़ ज़िन्दगी में जीना मरना है कहाँ</p>
<p>3</p>
<p>एक दिन में कुछ नहीं पर एक दिन होगा ज़रूर</p>
<p>आदमी ये सब्र तब तक यार रखता है कहाँ'</p>
<p>4</p>
<p>आज तक कोई नहीं यह जान पाया दोस्तो</p>
<p>इस ज़माने को बनाने वाला रहता है कहाँ</p>
<p> 5</p>
<p>किस तरह भर लूँ उनींदी आँखों में ख़्वाबों के…</p>
<p>2122 2122 2122 212</p>
<p></p>
<p>1</p>
<p>औरों के जैसा मुकद्दर यार अपना है कहाँ</p>
<p>अपने दिल का जोर उसके दिल प चलता है कहाँ</p>
<p>2</p>
<p>रात होती है कहाँ और दिन गुज़रता है कहाँ</p>
<p>मन मुआफ़िक़़ ज़िन्दगी में जीना मरना है कहाँ</p>
<p>3</p>
<p>एक दिन में कुछ नहीं पर एक दिन होगा ज़रूर</p>
<p>आदमी ये सब्र तब तक यार रखता है कहाँ'</p>
<p>4</p>
<p>आज तक कोई नहीं यह जान पाया दोस्तो</p>
<p>इस ज़माने को बनाने वाला रहता है कहाँ</p>
<p> 5</p>
<p>किस तरह भर लूँ उनींदी आँखों में ख़्वाबों के रंग</p>
<p>थपकियाँ देकर सुलाने चाँद आया है कहाँ</p>
<p>6</p>
<p>रूह को"निर्मल" मयस्सर क़ुर्ब हो भी किस तरह </p>
<p>वो नज़र अपनी वहाँ तक ले के जाता है कहाँ</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p></p>
<p></p>ग़ज़ल -दिल लगाना छोड़ देंtag:openbooks.ning.com,2022-04-05:5170231:BlogPost:10823582022-04-05T15:30:00.000ZRachna Bhatiahttp://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p>2122 2122 2122 212</p>
<p>1</p>
<p>अश्क पीना छोड़ दें हम दिल लगाना छोड़ दें </p>
<p>एक उनकी मुस्कुराहट पर ज़माना छोड़ दें</p>
<p>2</p>
<p>हर किसी के आप दिल में आना जाना छोड़ दें</p>
<p>इश़्क को सौदा समझ क़ीमत लगाना छोड़ दें</p>
<p>3</p>
<p>कह दें अपनी चूड़ियों से खनखनाना छोड़ दें </p>
<p>दिल के रिसते ज़ख़्मों पर यूँ सरसराना छोड़ दें</p>
<p>4</p>
<p>लग गए हों ताले ख़ामोशी के जिनके होठों पर </p>
<p>उनसे उम्मीदें सदाओं की लगाना छोड़ दें </p>
<p>5</p>
<p>कब तलक फिरते रहेंगे आप ग़म के सहरा…</p>
<p>2122 2122 2122 212</p>
<p>1</p>
<p>अश्क पीना छोड़ दें हम दिल लगाना छोड़ दें </p>
<p>एक उनकी मुस्कुराहट पर ज़माना छोड़ दें</p>
<p>2</p>
<p>हर किसी के आप दिल में आना जाना छोड़ दें</p>
<p>इश़्क को सौदा समझ क़ीमत लगाना छोड़ दें</p>
<p>3</p>
<p>कह दें अपनी चूड़ियों से खनखनाना छोड़ दें </p>
<p>दिल के रिसते ज़ख़्मों पर यूँ सरसराना छोड़ दें</p>
<p>4</p>
<p>लग गए हों ताले ख़ामोशी के जिनके होठों पर </p>
<p>उनसे उम्मीदें सदाओं की लगाना छोड़ दें </p>
<p>5</p>
<p>कब तलक फिरते रहेंगे आप ग़म के सहरा में </p>
<p>इस सराब-ए-दिल से अब तो धोका खाना छोड़ दें</p>
<p>6</p>
<p>चाहते हैं शिद्दत-ए-एहसास-ए-गम कम करना तो </p>
<p>रात दिन यूँ आप अश्कों को बहाना छोड़ दें</p>
<p>7</p>
<p>कान के कच्चे जहाँ के सब दर-ओ-दीवार हों</p>
<p>उस जगह को <span style="text-decoration: line-through;">राज़-दाँ</span> अपना बनाना छोड़ दें</p>
<p>8</p>
<p><span style="font-weight: 400;">गर्दिश-ए-अय्याम आती ही है जाने के लिए </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">आप इसके डर से 'निर्मल' सर झुकाना छोड़ दें </span></p>
<p></p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p></p>
<p></p>ग़ज़ल- भाते हैं कमtag:openbooks.ning.com,2022-01-02:5170231:BlogPost:10761902022-01-02T07:31:58.000ZRachna Bhatiahttp://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p>212 212 212</p>
<p>1</p>
<p>जाने क्यों इश्क़ के पेच ओ ख़म</p>
<p>ज़ेह्न वालों को भाते हैं कम</p>
<p>2</p>
<p>उनके सर की उठा कर क़सम</p>
<p>हम महब्बत का भरते हैं दम</p>
<p>3</p>
<p>मुस्कुरातीं हैं सब चूड़ियाँ</p>
<p>जब सँवारें वो ज़ुल्फ़ों के ख़म</p>
<p>4</p>
<p>जब जी चाहे बुला लेते हैं</p>
<p>करके पायल की छम-छम सनम</p>
<p>5</p>
<p>होंगे दिन रात मधुमास से</p>
<p>जब भी पहलू में बैठेंगे हम</p>
<p>6</p>
<p>जाएँ जब उनकी आग़ोश में</p>
<p>रौशनी शम्अ की करना कम</p>
<p>7</p>
<p>एक पल में ही मर…</p>
<p>212 212 212</p>
<p>1</p>
<p>जाने क्यों इश्क़ के पेच ओ ख़म</p>
<p>ज़ेह्न वालों को भाते हैं कम</p>
<p>2</p>
<p>उनके सर की उठा कर क़सम</p>
<p>हम महब्बत का भरते हैं दम</p>
<p>3</p>
<p>मुस्कुरातीं हैं सब चूड़ियाँ</p>
<p>जब सँवारें वो ज़ुल्फ़ों के ख़म</p>
<p>4</p>
<p>जब जी चाहे बुला लेते हैं</p>
<p>करके पायल की छम-छम सनम</p>
<p>5</p>
<p>होंगे दिन रात मधुमास से</p>
<p>जब भी पहलू में बैठेंगे हम</p>
<p>6</p>
<p>जाएँ जब उनकी आग़ोश में</p>
<p>रौशनी शम्अ की करना कम</p>
<p>7</p>
<p>एक पल में ही मर जाएँगे</p>
<p>देखीं "निर्मल" ने आँखें जो नम</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>रचना निर्मल</p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>ग़ज़ल-रख क़दम सँभल केtag:openbooks.ning.com,2021-12-12:5170231:BlogPost:10750272021-12-12T05:30:00.000ZRachna Bhatiahttp://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p><span style="font-weight: 400;">1121 2122 1121 2122 </span></p>
<p><span>इस्लाह के बाद ग़ज़ल</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;"> </span><span style="font-weight: 400;"> </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">1</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">है ये इश्क़ की डगर तू ज़रा रख क़दम सँभल के</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">चला जाएगा वगरना तेरा चैन इस प चल के</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">2</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">न…</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">1121 2122 1121 2122 </span></p>
<p><span>इस्लाह के बाद ग़ज़ल</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;"> </span><span style="font-weight: 400;"> </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">1</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">है ये इश्क़ की डगर तू ज़रा रख क़दम सँभल के</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">चला जाएगा वगरना तेरा चैन इस प चल के</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">2</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">न ज़ुबान से मुकरना न क़रार तू भुलाना</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">कि मैं ख़्वाब देखती हूँ तेरे साथ अपने कल के</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">3</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">किया आइना शराफ़त का जो तुमने सम्त मेरी</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">उसे यार देख लेना कभी ख़ुद भी रुख़ बदल के</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">4</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">शब-ए-वस्ल पर न बरसें कहीं सरकशी के बादल</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">तू हवा उड़ा के लेजा ये फ़िराक़ के धुँधलके</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">5</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">नहीं शम्स का उजाला न क़मर की रौशनी है</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">कहाँ जाएँगे बता हम तेरी बज़्म से निकल के</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">6</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">नहीं रोकना क़दम तू कभी वहशियों से डर कर</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">वो रुकेंगे ख़ुद ही "निर्मल" किसी दामिनी से जल के</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;"> </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;"> </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">मौलिक व अप्रकाशित</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;"> </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">रचना निर्मल</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;"> </span></p>
<p></p>कहो तो सुना दूँ फ़साना किसी काtag:openbooks.ning.com,2021-12-09:5170231:BlogPost:10748302021-12-09T06:00:00.000ZRachna Bhatiahttp://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p>122 122 122 122 </p>
<p>कहो तो सुना दूँ फ़साना किसी का</p>
<p>वो इज़हार-ए-उल्फ़त जताना किसी का</p>
<p>सुधार</p>
<p>नज़र से महब्बत जताना किसी का</p>
<p></p>
<p>हँसाना किसी का रुलाना किसी का</p>
<p>भुलाओगे कैसे सताना किसी का</p>
<p></p>
<p>नहीं रोक पाई कभी चाहकर मैं</p>
<p>दबे पा ख़यालों में आना किसी का</p>
<p></p>
<p>है यह भी महब्बत का दस्तूर यारो</p>
<p>न दिल भूले जो दिल से जाना किसी का</p>
<p></p>
<p>बहुत कोशिशें कीं मनाने की फ़िर भी</p>
<p>न मुमकिन हुआ लौट आना किसी का</p>
<p></p>
<p>दिल ए…</p>
<p>122 122 122 122 </p>
<p>कहो तो सुना दूँ फ़साना किसी का</p>
<p>वो इज़हार-ए-उल्फ़त जताना किसी का</p>
<p>सुधार</p>
<p>नज़र से महब्बत जताना किसी का</p>
<p></p>
<p>हँसाना किसी का रुलाना किसी का</p>
<p>भुलाओगे कैसे सताना किसी का</p>
<p></p>
<p>नहीं रोक पाई कभी चाहकर मैं</p>
<p>दबे पा ख़यालों में आना किसी का</p>
<p></p>
<p>है यह भी महब्बत का दस्तूर यारो</p>
<p>न दिल भूले जो दिल से जाना किसी का</p>
<p></p>
<p>बहुत कोशिशें कीं मनाने की फ़िर भी</p>
<p>न मुमकिन हुआ लौट आना किसी का</p>
<p></p>
<p>दिल ए बेक़रारी की हद ही तो थी वह</p>
<p>जो समझे नहीं हम बहाना किसी का</p>
<p></p>
<p>नहीं रास आया ज़माने को "निर्मल" </p>
<p>मेरे दिल को अपना बताना किसी का</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>रचना निर्मल</p>ग़ज़ल-जय गान परtag:openbooks.ning.com,2021-11-01:5170231:BlogPost:10725932021-11-01T05:30:00.000ZRachna Bhatiahttp://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p>2122 2122 2122 212</p>
<p></p>
<p>1</p>
<p>जब भी छाए अब्र मुश्किल के वतन की आन पर</p>
<p>खेले हैं तब तब हमारे तिफ़्ल अपनी जान पर</p>
<p>2</p>
<p>आज़मा ले लाख अपना रौब रुतबा शान पर</p>
<p>हो न पाएगा कभी हावी तू हिन्दुस्तान पर</p>
<p>3</p>
<p>हम नहीं होते परेशाँ धर्म से या ज़ात से</p>
<p>ख़ूँ जले अपना तो झूठे और बेईमान पर</p>
<p>4</p>
<p>माना हैं मतभेद भाषा वेष भूषा धर्म में</p>
<p>फ़ख़्र करते हैं प सब भारत के बढ़ते मान पर</p>
<p>5</p>
<p>एक दिन ऐसा भी "निर्मल" देखना तुम…</p>
<p>2122 2122 2122 212</p>
<p></p>
<p>1</p>
<p>जब भी छाए अब्र मुश्किल के वतन की आन पर</p>
<p>खेले हैं तब तब हमारे तिफ़्ल अपनी जान पर</p>
<p>2</p>
<p>आज़मा ले लाख अपना रौब रुतबा शान पर</p>
<p>हो न पाएगा कभी हावी तू हिन्दुस्तान पर</p>
<p>3</p>
<p>हम नहीं होते परेशाँ धर्म से या ज़ात से</p>
<p>ख़ूँ जले अपना तो झूठे और बेईमान पर</p>
<p>4</p>
<p>माना हैं मतभेद भाषा वेष भूषा धर्म में</p>
<p>फ़ख़्र करते हैं प सब भारत के बढ़ते मान पर</p>
<p>5</p>
<p>एक दिन ऐसा भी "निर्मल" देखना तुम आएगा</p>
<p>मुस्कुराएगा फ़लक भी हिन्द के जय गान पर</p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>ग़ज़ल-ज़माने को बताना चाहेtag:openbooks.ning.com,2021-10-26:5170231:BlogPost:10721142021-10-26T15:46:49.000ZRachna Bhatiahttp://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p>2122 1122 1122 22 /112</p>
<p></p>
<p>1</p>
<p>शोर धड़कन का ज़माने को बताना चाहे</p>
<p>दिल करीब और करीब यार के आना चाहे</p>
<p>2</p>
<p>दिल की बैचेनी भी अब एक ठिकाना चाहे</p>
<p>थोड़ा ख़ुशियों के समंदर में नहाना चाहे</p>
<p>3</p>
<p>साथ जितना भी लिखा उसने तेरा मेरा सनम</p>
<p>ज़िन्दगी उतनी ही साँसों का तराना चाहे</p>
<p>4</p>
<p>ख़ुशबू बनकर मेरी साँसों में उतरने वाले</p>
<p>क्या तेरा दिल भी महक ऐसी न पाना चाहे</p>
<p>5</p>
<p>चंद अशआर महब्बत प सुना कर यह मन</p>
<p>बीच महफ़िल में तुम्हें…</p>
<p>2122 1122 1122 22 /112</p>
<p></p>
<p>1</p>
<p>शोर धड़कन का ज़माने को बताना चाहे</p>
<p>दिल करीब और करीब यार के आना चाहे</p>
<p>2</p>
<p>दिल की बैचेनी भी अब एक ठिकाना चाहे</p>
<p>थोड़ा ख़ुशियों के समंदर में नहाना चाहे</p>
<p>3</p>
<p>साथ जितना भी लिखा उसने तेरा मेरा सनम</p>
<p>ज़िन्दगी उतनी ही साँसों का तराना चाहे</p>
<p>4</p>
<p>ख़ुशबू बनकर मेरी साँसों में उतरने वाले</p>
<p>क्या तेरा दिल भी महक ऐसी न पाना चाहे</p>
<p>5</p>
<p>चंद अशआर महब्बत प सुना कर यह मन</p>
<p>बीच महफ़िल में तुम्हें अपना बनाना चाहे</p>
<p>6</p>
<p>बात कड़वी है मगर बात है सच्ची "निर्मल"</p>
<p>बेवफ़ा से कोई रिश्ता न निभाना चाहे</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p></p>ग़ज़ल-घर बसाना थाtag:openbooks.ning.com,2021-10-02:5170231:BlogPost:10704342021-10-02T06:53:40.000ZRachna Bhatiahttp://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">2122 / 1212 / 22</span></p>
<p><em><br></br><br></br></em></p>
<p><span style="font-weight: 400;">1</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">दिल का रिश्ता यूँ भी निभाना था</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">फिर से रूठा ख़ुदा मनाना था</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">2</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">चार ईंटें टिका के निस्बत की</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">आदमीयत का घर बसाना था…</span></p>
<p></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">2122 / 1212 / 22</span></p>
<p><em><br/><br/></em></p>
<p><span style="font-weight: 400;">1</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">दिल का रिश्ता यूँ भी निभाना था</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">फिर से रूठा ख़ुदा मनाना था</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">2</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">चार ईंटें टिका के निस्बत की</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">आदमीयत का घर बसाना था</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">3</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">हम वही शाख़ काट बैठे हैं</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जिस प अपना भी आशियाना था</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">4</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">छोड़ कर गाँव शह्र में उसने</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">ढूँढना फिर से आब ओ दाना था</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">5</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">उसका बेख़ौफ़ होना कहता है</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">रखता अंदाज़ काफ़िराना था</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">6</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">बाद मुद्दत के जान पाए हम</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">दिल भी उसके लिए खिलौना था</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">7</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">क्यों उसी वक़्त आ गये आँसू</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जिस घड़ी हमको मुस्कुराना था</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">8</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">खेलकर बाज़ी इश्क़ की 'निर्मल'</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">अपनी किस्मत को आज़माना था</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;"> </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">मौलिक व अप्रकाशित</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">रचना निर्मल</span></p>
<p></p>ग़ज़ल-इश्क़ महब्बत धोखा थाtag:openbooks.ning.com,2021-09-13:5170231:BlogPost:10685092021-09-13T05:30:00.000ZRachna Bhatiahttp://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p><span style="font-weight: 400;">22 22 22 2</span></p>
<p><br></br></p>
<p><span style="font-weight: 400;">1</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">आँख खुली तो जाना था</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">इश्क़ मुहब्बत धोका था</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">2</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">उधड़ी सीवन रिश्तों की</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">चुपके से वो सिलता था</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">3…</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">22 22 22 2</span></p>
<p><br/></p>
<p><span style="font-weight: 400;">1</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">आँख खुली तो जाना था</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">इश्क़ मुहब्बत धोका था</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">2</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">उधड़ी सीवन रिश्तों की</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">चुपके से वो सिलता था</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">3</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">तुझसे मिलने से पहले मैं</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जाने कैसे रहता था</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">4</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">झूठे सपनों की ख़ातिर </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">मैं ख़ुद से ही हारा था</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">5</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">सूखा पत्ता कहता है</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">कल वो भी हरियाला था</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">6</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जब भटकी रूह मेरी "निर्मल"</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">रोया दिल का कोना था</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;"> </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;"> </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">मौलिक व अप्रकाशित</span></p>
<p></p>ग़ज़ल-मिलती दुआ हैtag:openbooks.ning.com,2021-09-03:5170231:BlogPost:10677552021-09-03T05:34:21.000ZRachna Bhatiahttp://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p><span style="font-weight: 400;">1222/122</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">1</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;"> हुआ वो ही ख़फ़ा है</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">किया जिसका भला है</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">2</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">ज़माने को पता है</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">तू मेरा आश्ना है</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">3…</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">1222/122</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">1</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;"> हुआ वो ही ख़फ़ा है</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">किया जिसका भला है</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">2</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">ज़माने को पता है</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">तू मेरा आश्ना है</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">3</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">बसर करना जहाँ में</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">हुआ दुश्वार सा है</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">4</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">ख़यालों का समंदर</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">किनारा ढूँढता है</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">5</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जफ़ाओं का ये तुहफ़ा</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">किसी की बद-दुआ है</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">6</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">बिना उल्फ़त के जीना </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">कसम से इक क़ज़ा है</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">7</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">मेरी ईमानदारी</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">प हर कोई हँसा है</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">8</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">ज़बाँ की तल्ख़ियाँ ही</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">बढ़ातीं फ़ासला है</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">9</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">है ख़ुशक़िस्मत वो 'निर्मल'</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जिसे मिलती दुआ है</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;"> </span></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p><span style="font-weight: 400;"> </span></p>
<p></p>ग़ज़ल- शिवाला लगाtag:openbooks.ning.com,2021-08-30:5170231:BlogPost:10674242021-08-30T06:30:00.000ZRachna Bhatiahttp://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p>122 122 122 12</p>
<p></p>
<p>1 तुझे जिसके लहज़े में ताना लगा</p>
<p>मुझे दिल से वो शख़्स सच्चा लगा</p>
<p></p>
<p> 2 ये मत पूछ क्या उसमें अच्छा लगा</p>
<p> वो मासूम इक ज़िद्दी बच्चा लगा</p>
<p></p>
<p>3 तू सुन शोर पहले मेरे दिल का फिर</p>
<p> बता क्यों तुझे मैं अकेला लगा</p>
<p></p>
<p> 4 बता वास्ता उससे रक्खूँ भी क्यों</p>
<p> मुझे आदमी जब वो झूठा लगा</p>
<p></p>
<p> 5 थी कुछ बात या इश्क़ का था सरूर</p>
<p>हरिक चेहरा जो मुझको तेरा लगा</p>
<p></p>
<p> 6 मुहब्बत ही की है गुनह तो…</p>
<p>122 122 122 12</p>
<p></p>
<p>1 तुझे जिसके लहज़े में ताना लगा</p>
<p>मुझे दिल से वो शख़्स सच्चा लगा</p>
<p></p>
<p> 2 ये मत पूछ क्या उसमें अच्छा लगा</p>
<p> वो मासूम इक ज़िद्दी बच्चा लगा</p>
<p></p>
<p>3 तू सुन शोर पहले मेरे दिल का फिर</p>
<p> बता क्यों तुझे मैं अकेला लगा</p>
<p></p>
<p> 4 बता वास्ता उससे रक्खूँ भी क्यों</p>
<p> मुझे आदमी जब वो झूठा लगा</p>
<p></p>
<p> 5 थी कुछ बात या इश्क़ का था सरूर</p>
<p>हरिक चेहरा जो मुझको तेरा लगा</p>
<p></p>
<p> 6 मुहब्बत ही की है गुनह तो नहीं</p>
<p>जो पीछे मेरे यह ज़माना लगा</p>
<p></p>
<p>7 करूँ क्यों न उस प ज़ियाद: यकीं</p>
<p>मुझे जिसका दिल इक शिवाला लगा</p>
<p></p>
<p>8 करूँ भी तो किससे शिकायत करूँ</p>
<p>वजूद अपना ही जब पराया लगा</p>
<p></p>
<p>9 जिसे दोस्त "निर्मल" कहा उम्र भर</p>
<p>मुझे साथी वो दुश्मनों का लगा</p>
<p></p>
<p>जिसे दोस्त "निर्मल" कहा उम्र भर</p>
<p>"वो साथी मुझे दुश्मनों का लगा"</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>ग़ज़ल-गीत आशिक़ाना होtag:openbooks.ning.com,2021-08-18:5170231:BlogPost:10668212021-08-18T07:50:52.000ZRachna Bhatiahttp://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p>2122 1212 22/112</p>
<p></p>
<p></p>
<p> 1</p>
<p>उसका जब मेरी कू में आना हो</p>
<p>उठ चुका ग़म का शामियाना हो</p>
<p>2</p>
<p>मिल रहा प्यार जब पुराना हो</p>
<p>लब प तब गीत आशिक़ाना हो</p>
<p>3</p>
<p>हिज्र की रात में वो आए जब</p>
<p>होटों पर वस्ल का तराना हो</p>
<p>4</p>
<p>ऐ ख़ुदा हर गरीब के घर में</p>
<p>पेट भरने को आब ओ दाना हो</p>
<p>5</p>
<p>टूटी कश्ती में बैठ कर कैसे</p>
<p>उस किनारे प अपना जाना हो</p>
<p>6</p>
<p>कह रहा है मरीज़-ए-इश्क़ मुझे</p>
<p>उसका दिल मेरा आशियाना…</p>
<p>2122 1212 22/112</p>
<p></p>
<p></p>
<p> 1</p>
<p>उसका जब मेरी कू में आना हो</p>
<p>उठ चुका ग़म का शामियाना हो</p>
<p>2</p>
<p>मिल रहा प्यार जब पुराना हो</p>
<p>लब प तब गीत आशिक़ाना हो</p>
<p>3</p>
<p>हिज्र की रात में वो आए जब</p>
<p>होटों पर वस्ल का तराना हो</p>
<p>4</p>
<p>ऐ ख़ुदा हर गरीब के घर में</p>
<p>पेट भरने को आब ओ दाना हो</p>
<p>5</p>
<p>टूटी कश्ती में बैठ कर कैसे</p>
<p>उस किनारे प अपना जाना हो</p>
<p>6</p>
<p>कह रहा है मरीज़-ए-इश्क़ मुझे</p>
<p>उसका दिल मेरा आशियाना हो</p>
<p>7</p>
<p>तर्क पर तर्क यूँ दिए उसने</p>
<p>जैसे मक़सद जिरह बढ़ाना हो</p>
<p>8</p>
<p>दिल की दीवारें ऐसी हैं " निर्मल"</p>
<p>जैसे जाँ लेवा क़ैद खाना हो</p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p> रचना निर्मल</p>
<p></p>ग़ज़ल-तस्वीर हैtag:openbooks.ning.com,2021-08-08:5170231:BlogPost:10663552021-08-08T07:00:00.000ZRachna Bhatiahttp://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p>2122 2122 212 </p>
<p>1</p>
<p>अपने रिश्ते की यही तस्वीर है</p>
<p>उसका मैं रांझा वो मेरी हीर है</p>
<p>2</p>
<p>पाँव में रस्मों की जो ज़ंजीर है </p>
<p>मेरे दिल को देती हर पल पीर है</p>
<p>3</p>
<p>जाने किसकी शह में आ कर यार ने</p>
<p>सामने कर दी मेरे शमशीर है</p>
<p>4</p>
<p>हाथ की तहरीर पढ़कर तो बता </p>
<p>रूठी क्यों मुझसे मेरी तक़दीर है </p>
<p>5</p>
<p>होगी तेरे पास दौलत लाखों की </p>
<p>अपनी तो तालीम ही जागीर है </p>
<p>6</p>
<p>अब छिपाने से भी छिप सकती नहीं</p>
<p>आपकी आँखों में जो…</p>
<p>2122 2122 212 </p>
<p>1</p>
<p>अपने रिश्ते की यही तस्वीर है</p>
<p>उसका मैं रांझा वो मेरी हीर है</p>
<p>2</p>
<p>पाँव में रस्मों की जो ज़ंजीर है </p>
<p>मेरे दिल को देती हर पल पीर है</p>
<p>3</p>
<p>जाने किसकी शह में आ कर यार ने</p>
<p>सामने कर दी मेरे शमशीर है</p>
<p>4</p>
<p>हाथ की तहरीर पढ़कर तो बता </p>
<p>रूठी क्यों मुझसे मेरी तक़दीर है </p>
<p>5</p>
<p>होगी तेरे पास दौलत लाखों की </p>
<p>अपनी तो तालीम ही जागीर है </p>
<p>6</p>
<p>अब छिपाने से भी छिप सकती नहीं</p>
<p>आपकी आँखों में जो तस्वीर है</p>
<p>7</p>
<p>देख सकता हूँ मैं तेरी आँखों में </p>
<p>किस शराब-ए-इश्क़ की तासीर है</p>
<p>8</p>
<p>कह दे "निर्मल" दिल की बैचेनी को आज</p>
<p>क्यों न रखती और थोड़ा धीर है</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>रचना निर्मल</p>
<p></p>
<p></p>ग़ज़ल-है कहाँtag:openbooks.ning.com,2021-07-31:5170231:BlogPost:10655542021-07-31T17:51:37.000ZRachna Bhatiahttp://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p>2122 2122 2122 212</p>
<p></p>
<p></p>
<p>1</p>
<p>उनकी आँखों में उतर कर ख़ुद को देखा है कहाँ</p>
<p>हक़ अभी तक उनके दिल पर इतना अपना है कहाँ</p>
<p>2</p>
<p>आदतें यूँ तो मिलेंगी एक सी लोगों में पर</p>
<p>उनके दिल में एक सा एहसास होता है कहाँ</p>
<p>3</p>
<p>है लड़ाई ख़ुद से अपनी है बग़ावत ख़ुद ही से</p>
<p>बात इतनी सी ज़माना भी समझता है कहाँ</p>
<p>4</p>
<p>चारदीवारी में घर की साथ तो रहते हैं सब</p>
<p>ज़ाविया पर उनके दिल का एक जैसा है कहाँ</p>
<p>5</p>
<p>देख लिया गल कर पसीने में भी हमने…</p>
<p>2122 2122 2122 212</p>
<p></p>
<p></p>
<p>1</p>
<p>उनकी आँखों में उतर कर ख़ुद को देखा है कहाँ</p>
<p>हक़ अभी तक उनके दिल पर इतना अपना है कहाँ</p>
<p>2</p>
<p>आदतें यूँ तो मिलेंगी एक सी लोगों में पर</p>
<p>उनके दिल में एक सा एहसास होता है कहाँ</p>
<p>3</p>
<p>है लड़ाई ख़ुद से अपनी है बग़ावत ख़ुद ही से</p>
<p>बात इतनी सी ज़माना भी समझता है कहाँ</p>
<p>4</p>
<p>चारदीवारी में घर की साथ तो रहते हैं सब</p>
<p>ज़ाविया पर उनके दिल का एक जैसा है कहाँ</p>
<p>5</p>
<p>देख लिया गल कर पसीने में भी हमने रात दिन</p>
<p>बदले में मेहनत के पूरा पैसा मिलता है कहाँ</p>
<p>6</p>
<p>उसके दर पर माँगने से पहले इतना सोच लो</p>
<p>अपना फ़ुर्सत ए शौक़ तुमने यार रक्खा है कहाँ</p>
<p>7</p>
<p>उसके होटों का पियाला पी तो लूँ "निर्मल" मगर</p>
<p>प्यार इतना उसके दिल पर मुझको आता है कहाँ</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>रचना निर्मल</p>
<p></p>ग़ज़ल-दिल दिया हमनेtag:openbooks.ning.com,2021-07-15:5170231:BlogPost:10638492021-07-15T13:42:48.000ZRachna Bhatiahttp://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p><span style="font-weight: 400;">2122 1212 22</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">1</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">एक बेहिस को दिल दिया हमने</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">कह के अपना उसे ख़ुदा हमने</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">2</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">रहके तुमसे खफ़ा खफ़ा हमने</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">ख़ुद को बर्बाद कर लिया हमने…</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">2122 1212 22</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">1</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">एक बेहिस को दिल दिया हमने</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">कह के अपना उसे ख़ुदा हमने</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">2</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">रहके तुमसे खफ़ा खफ़ा हमने</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">ख़ुद को बर्बाद कर लिया हमने</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">3</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">हाथ बादल के भेज दीं ख़ुशियाँ</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">ढ़ूँढ कर आपका पता हमने</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">4</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">सारा इल्ज़ाम अपने सर ले कर</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">कह लिया ख़ुद को बेवफ़ा हमने</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">5</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जब हो फ़ुर्सत तभी चले आना</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">रख दिया दिल का दर खुला हमने</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">6</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">भूल कर एक एक याद तेरी</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">बोझ दिल से हटा लिया हमने</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">7</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">फ़ासला और बढ़ गया यारो</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">पूछा जब उनसे फ़ैसला हमने</span></p>
<p></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">मौलिक व अप्रकाशित </span></p>अच्छा महफ़िल में तमाशा बना मेरा कल शबtag:openbooks.ning.com,2021-04-04:5170231:BlogPost:10580502021-04-04T01:30:00.000ZRachna Bhatiahttp://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p>2122 1122 1122 22 /112</p>
<p></p>
<p>1</p>
<p>अच्छा महफ़िल में तमाशा बना मेरा कल शब</p>
<p>दिल मेरा तोड़ा गया कह के ख़िलौना कल शब</p>
<p>2</p>
<p>ज़ख़्मी दिल पर तेरा जब नाम उकेरा कल शब</p>
<p>हाय रब्बा मेरे तब होंठों से निकला कल शब</p>
<p>3</p>
<p>झूठ की सुब्ह तलक माँग है बाज़ारों में</p>
<p>और मैं एक भी सच बेच न पाया कल शब</p>
<p>4</p>
<p>मेरे हाथों की लकीरें भी बदल जाएँगी</p>
<p>ख़्वाब आँखों ने दिखाया मुझे ऐसा कल शब</p>
<p>5</p>
<p>उस तरफ़ चाँद सितारों की चमक थी "निर्मल"</p>
<p>इस तरफ़ था…</p>
<p>2122 1122 1122 22 /112</p>
<p></p>
<p>1</p>
<p>अच्छा महफ़िल में तमाशा बना मेरा कल शब</p>
<p>दिल मेरा तोड़ा गया कह के ख़िलौना कल शब</p>
<p>2</p>
<p>ज़ख़्मी दिल पर तेरा जब नाम उकेरा कल शब</p>
<p>हाय रब्बा मेरे तब होंठों से निकला कल शब</p>
<p>3</p>
<p>झूठ की सुब्ह तलक माँग है बाज़ारों में</p>
<p>और मैं एक भी सच बेच न पाया कल शब</p>
<p>4</p>
<p>मेरे हाथों की लकीरें भी बदल जाएँगी</p>
<p>ख़्वाब आँखों ने दिखाया मुझे ऐसा कल शब</p>
<p>5</p>
<p>उस तरफ़ चाँद सितारों की चमक थी "निर्मल"</p>
<p>इस तरफ़ था मेरी जाँ का रुख़ ए ज़ेबा कल शब</p>
<p>6</p>
<p>ज़िन्दगी साँस की तारों से बँधी थी "निर्मल"</p>
<p>उसने इस पाश को ही नींद में तोड़ा कल शब</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>रचना निर्मल</p>
<p></p>ग़ज़ल- ज़ार ज़ार रोते हैंtag:openbooks.ning.com,2021-03-30:5170231:BlogPost:10575902021-03-30T15:00:00.000ZRachna Bhatiahttp://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p>212 1222</p>
<p>1</p>
<p>ज़ार ज़ार रोते हैं</p>
<p>जब वो होश ख़ोते हैं</p>
<p>2</p>
<p>ख़्वान ए इश्क वाले ही</p>
<p>तो फ़कीर होते हैं</p>
<p>3</p>
<p>लोग क्यों अदावत में</p>
<p>हाथ खूँ से धोते हैं</p>
<p>4</p>
<p>डोरी में वो सांसों की</p>
<p>आरज़ू पिरोते हैं</p>
<p>5</p>
<p>चाहतों की गठरी सब</p>
<p>उम्र भर सँजोते हैं</p>
<p>6</p>
<p>क्यों अज़ीज़ अपने ही</p>
<p>अश्कों में डुबोते हैं</p>
<p>7</p>
<p>ख़्वाब देखने वाले</p>
<p>रात भर न सोते हैं</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>रचना…</p>
<p>212 1222</p>
<p>1</p>
<p>ज़ार ज़ार रोते हैं</p>
<p>जब वो होश ख़ोते हैं</p>
<p>2</p>
<p>ख़्वान ए इश्क वाले ही</p>
<p>तो फ़कीर होते हैं</p>
<p>3</p>
<p>लोग क्यों अदावत में</p>
<p>हाथ खूँ से धोते हैं</p>
<p>4</p>
<p>डोरी में वो सांसों की</p>
<p>आरज़ू पिरोते हैं</p>
<p>5</p>
<p>चाहतों की गठरी सब</p>
<p>उम्र भर सँजोते हैं</p>
<p>6</p>
<p>क्यों अज़ीज़ अपने ही</p>
<p>अश्कों में डुबोते हैं</p>
<p>7</p>
<p>ख़्वाब देखने वाले</p>
<p>रात भर न सोते हैं</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>रचना निर्मल</p>
<p>दिल्ली</p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>ग़ज़ल- उफ़ किया न करेtag:openbooks.ning.com,2021-03-21:5170231:BlogPost:10567842021-03-21T03:00:00.000ZRachna Bhatiahttp://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p>मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन</p>
<p>1212 1122 1212 22</p>
<p></p>
<p>1</p>
<p>जो सह के ज़ुल्म हज़ारों भी उफ़ किया न करे</p>
<p>दुआ करो कि उसे ग़म कोई मिला न करे</p>
<p>2</p>
<p>मुझे बहार की रंगीनियाँ मिलें न मिलें</p>
<p>मगर ख़िज़ा ही रहे उम्र भर ख़ुदा न करे</p>
<p>3</p>
<p>मुझे वो बज़्म में चाहे मिले नहीं खुल कर</p>
<p>मगर मज़ाक में भी ग़ैर तो कहा न करे</p>
<p>4</p>
<p>मैं ज़र्द पत्ते सा घबरा के काँप जाता हूँ</p>
<p>कहे हवा से कोई तेज़ वो चला न करे</p>
<p>5</p>
<p>नशा किसी प महब्बत…</p>
<p>मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन</p>
<p>1212 1122 1212 22</p>
<p></p>
<p>1</p>
<p>जो सह के ज़ुल्म हज़ारों भी उफ़ किया न करे</p>
<p>दुआ करो कि उसे ग़म कोई मिला न करे</p>
<p>2</p>
<p>मुझे बहार की रंगीनियाँ मिलें न मिलें</p>
<p>मगर ख़िज़ा ही रहे उम्र भर ख़ुदा न करे</p>
<p>3</p>
<p>मुझे वो बज़्म में चाहे मिले नहीं खुल कर</p>
<p>मगर मज़ाक में भी ग़ैर तो कहा न करे</p>
<p>4</p>
<p>मैं ज़र्द पत्ते सा घबरा के काँप जाता हूँ</p>
<p>कहे हवा से कोई तेज़ वो चला न करे</p>
<p>5</p>
<p>नशा किसी प महब्बत का यूँ भी होता है</p>
<p>फ़िराग सह के भी वो यार से गिला न करे</p>
<p>6</p>
<p>अगर हैं ख़ून में अय्यारियाँ,दग़ाबाज़ी</p>
<p>तो बात सिक़ दिली की भी वो किया न करे</p>
<p>सिक़- दिली, सत्यता,निष्कपटता</p>
<p>7</p>
<p>ख़ुदा से माँग ले 'निर्मल' उठा के हाथों को</p>
<p>किसी की आँख से आँसू कभी गिरा न करे</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>जोगिरा सा रा रारा रा,..tag:openbooks.ning.com,2021-03-19:5170231:BlogPost:10569332021-03-19T09:30:00.000ZRachna Bhatiahttp://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p><span style="font-weight: 400;">16,11 मात्रा अंत मे गुरु लघु</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">1</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">ले राधा जैसी चंचलता, कृष्णा जैसा प्यार।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">बरसाने में खेली जाए,होरी भी लठमार।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जोगिरा सा रा रारा रा,..</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">2</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">कृष्ण गए थे हँसी ठिठोली, करने राधा…</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">16,11 मात्रा अंत मे गुरु लघु</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">1</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">ले राधा जैसी चंचलता, कृष्णा जैसा प्यार।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">बरसाने में खेली जाए,होरी भी लठमार।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जोगिरा सा रा रारा रा,..</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">2</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">कृष्ण गए थे हँसी ठिठोली, करने राधा संग।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">पर क्रोधित हो राधा रानी,कर बैठी हुड़दंग।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जोगिरा सा रा रारा रा,..</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">3</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">रंग उठा कर नीला पीला, और गुलाबी लाल।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">नंदगांव के काले छोरे, करते ख़ूब धमाल।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जोगिरा सा रा रारा रा,..</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">4</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">कमरे में रूठी बैठी थी,गौरी चिट्टी नार।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">रंग लगाय गयो चुपके से, बलमा पानी डार।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जोगिरा सा रा रारा रा,..</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">5</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">छत पर नखराली नार खड़ी,खोले घूंघर बाल।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">नुक्कड़ से मजनूँ भी ताके,फैंक नज़र का जाल।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जोगिरा सा रा रारा रा,..</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">6</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">बरसाने की नवल किशोरी,नंदगांव का गोप।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">खेल के गौरी संग होरी,हो जावेगा लोप।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जोगिरा सा रा रारा रा,..</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">7</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">फैंक रहे रँग यार हमारे, दे पिचकारी धार।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">लाल गुलाबी रंग में डूबी एक छबीली नार।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जोगिरा सा रा रारा रा,..</span></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>ग़ज़ल-मचलेंगे जज़्बात हमारेtag:openbooks.ning.com,2021-03-13:5170231:BlogPost:10567152021-03-13T03:30:00.000ZRachna Bhatiahttp://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p>221--1221--1221--122</p>
<p>1</p>
<p>कैसे न सनम मचलें'गे जज़्बात हमारे</p>
<p>महफ़िल में अगर गाएंगे नग़्मात हमारे</p>
<p>2</p>
<p>दुनिया का वतीरा भी निभा सकते हैं लेकिन</p>
<p>इन सबसे अलहदा हैं ख़यालात हमारे</p>
<p>3</p>
<p>ईमान की बाज़ार में कीमत नहीं कुछ भी</p>
<p>किस तर्ह से फिर सुधरेंगे हालात हमारे</p>
<p>4</p>
<p>जल जल के बुझी जाती है उम्मीदों की शम्मा</p>
<p>दम तोड़ते हैं साथ सवालात हमारे</p>
<p>5</p>
<p>माज़ी को सिरहाने तले रख सोचते हैं हम</p>
<p>क्यों एक से रहते नहीं दिन रात…</p>
<p>221--1221--1221--122</p>
<p>1</p>
<p>कैसे न सनम मचलें'गे जज़्बात हमारे</p>
<p>महफ़िल में अगर गाएंगे नग़्मात हमारे</p>
<p>2</p>
<p>दुनिया का वतीरा भी निभा सकते हैं लेकिन</p>
<p>इन सबसे अलहदा हैं ख़यालात हमारे</p>
<p>3</p>
<p>ईमान की बाज़ार में कीमत नहीं कुछ भी</p>
<p>किस तर्ह से फिर सुधरेंगे हालात हमारे</p>
<p>4</p>
<p>जल जल के बुझी जाती है उम्मीदों की शम्मा</p>
<p>दम तोड़ते हैं साथ सवालात हमारे</p>
<p>5</p>
<p>माज़ी को सिरहाने तले रख सोचते हैं हम</p>
<p>क्यों एक से रहते नहीं दिन रात हमारे</p>
<p>6</p>
<p>ताउम्र तड़पते रहे उसके लिए 'निर्मल'</p>
<p>मिलते नहीं थे जिससे ख़यालात हमारे</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>ग़ज़ल-कूचे में बेवफ़ा केtag:openbooks.ning.com,2021-03-10:5170231:BlogPost:10564822021-03-10T08:00:00.000ZRachna Bhatiahttp://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p>221 2122 221 2122</p>
<p></p>
<p>1</p>
<p>दरिया है आँसुओं का कूचे में बेवफ़ा के</p>
<p>जाना वहाँ से यारा दामन ज़रा बचा के</p>
<p>2</p>
<p>इक बात ये बता दे मेरे हसीन क़ातिल</p>
<p>लेता है जान कैसे तू यार मुस्कुरा के</p>
<p>3</p>
<p>पूछेगी इक न इक दिन तुमसे भी ज़िन्दगानी </p>
<p>हासिल हुआ तुम्हें क्या ईमान को गँवा के</p>
<p>4</p>
<p>उल्फ़त की वादियों से रूठे रहेंगे कब तक </p>
<p>देखें तो आप इक दिन दिल इनसे भी लगा के</p>
<p>5</p>
<p>पूछा है आसमाँ से कल रात छत पे आ कर</p>
<p>जीता है किस तरह वो…</p>
<p>221 2122 221 2122</p>
<p></p>
<p>1</p>
<p>दरिया है आँसुओं का कूचे में बेवफ़ा के</p>
<p>जाना वहाँ से यारा दामन ज़रा बचा के</p>
<p>2</p>
<p>इक बात ये बता दे मेरे हसीन क़ातिल</p>
<p>लेता है जान कैसे तू यार मुस्कुरा के</p>
<p>3</p>
<p>पूछेगी इक न इक दिन तुमसे भी ज़िन्दगानी </p>
<p>हासिल हुआ तुम्हें क्या ईमान को गँवा के</p>
<p>4</p>
<p>उल्फ़त की वादियों से रूठे रहेंगे कब तक </p>
<p>देखें तो आप इक दिन दिल इनसे भी लगा के</p>
<p>5</p>
<p>पूछा है आसमाँ से कल रात छत पे आ कर</p>
<p>जीता है किस तरह वो उजली शुआ छिपा के</p>
<p>6</p>
<p>साबित ज़रूर होगी अपनी भी बेगुनाही</p>
<p>रखले हज़ार ताले चाहे तो तू लगा के</p>
<p>7</p>
<p>उसका पता बता दे ओ ज़िन्दगी के मालिक</p>
<p>जो दूर जा बसा है मेरी धड़कनें चुरा के</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>ग़ज़ल-क्या करे कोईtag:openbooks.ning.com,2021-03-02:5170231:BlogPost:10556762021-03-02T13:38:33.000ZRachna Bhatiahttp://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p><span style="font-weight: 400;">221 2121 1221 212</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">1</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">हमसे शगुफ़्तगी की तमन्ना करे कोई </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">अब और दर्द देने न आया करे कोई</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">2</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">आकर क़रीब इश्क़ जताया करे कोई</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">सच्चा नहीं तो झूठा ही वादा करे कोई…</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">221 2121 1221 212</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">1</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">हमसे शगुफ़्तगी की तमन्ना करे कोई </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">अब और दर्द देने न आया करे कोई</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">2</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">आकर क़रीब इश्क़ जताया करे कोई</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">सच्चा नहीं तो झूठा ही वादा करे कोई</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">3</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">करवट बदलने से भी कहाँ नींद आएगी</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जब आँख से ही ख़्वाब चुराया करे कोई</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">4</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जो राज़ को भी राज़ बना कर न रख सके</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">उस आदमी से दोस्ती भी क्या करे कोई</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">5</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">आज़ाद फ़िक्र ए आशियाँ से हो चुके हैं हम</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">तूफ़ान अब हवा में न लाया करे कोई </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">6</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">'निर्मल' बदल के देख ले जीने के रास्ते</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">ऐसा न हो तू बाद में शिकवा करे कोई </span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">मौलिक व अप्रकाशित</span></p>
<p></p>हमारे वारे न्यारे हो रहे हैंtag:openbooks.ning.com,2021-02-19:5170231:BlogPost:10536112021-02-19T16:00:00.000ZRachna Bhatiahttp://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p>1222 1222 122</p>
<p>1</p>
<p>हमारे वारे न्यारे हो रहे हैं<br></br> सनम को जाँ से प्यारे हो रहे हैं<br></br> 2<br></br> बसा कर दिल में शोहरत की तमन्ना<br></br> फ़लक के हम सितारे हो रहे हैं<br></br> 3<br></br> नवाज़ा है खुदा ने हर खुशी से<br></br> बड़े अच्छे गुज़ारे हो रहे हैं<br></br> 4<br></br> गिला शिकवा नहीं है अब किसी से<br></br> सभी दिल से हमारे हो रहे हैं<br></br> 5<br></br> तुम्हारी आँखों के इन मोतियों से<br></br> समंदर ख़ूूूब ख़ारे हो रहे हैं<br></br> 6<br></br> भरी महफ़िल में 'निर्मल' आज कैसे<br></br> निगाहों से इशारे हो रहे…</p>
<p>1222 1222 122</p>
<p>1</p>
<p>हमारे वारे न्यारे हो रहे हैं<br/> सनम को जाँ से प्यारे हो रहे हैं<br/> 2<br/> बसा कर दिल में शोहरत की तमन्ना<br/> फ़लक के हम सितारे हो रहे हैं<br/> 3<br/> नवाज़ा है खुदा ने हर खुशी से<br/> बड़े अच्छे गुज़ारे हो रहे हैं<br/> 4<br/> गिला शिकवा नहीं है अब किसी से<br/> सभी दिल से हमारे हो रहे हैं<br/> 5<br/> तुम्हारी आँखों के इन मोतियों से<br/> समंदर ख़ूूूब ख़ारे हो रहे हैं<br/> 6<br/> भरी महफ़िल में 'निर्मल' आज कैसे<br/> निगाहों से इशारे हो रहे हैं</p>
<p></p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>ग़ज़ल- तिफ़्ल कमाल केtag:openbooks.ning.com,2021-02-14:5170231:BlogPost:10500282021-02-14T05:50:12.000ZRachna Bhatiahttp://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p>221 2121 1221 212 </p>
<p></p>
<p>1</p>
<p>हैं आजकल के तिफ़्ल भी यारो कमाल के</p>
<p>रखते नहीं हैं दिल ज़रा अपना सँभाल के</p>
<p>2</p>
<p>जाने लुग़त कहाँ से ले आए निकाल के</p>
<p>लिक्खे जहाँ प माइने उल्टे विसाल के</p>
<p>3</p>
<p>अपनी शराफ़तों ने ही मजबूर कर दिया</p>
<p>वरना जवाब देते तुम्हारे सवाल के</p>
<p>4</p>
<p>नाज़ुक ज़रूर हूँ नहीं कमज़ोर मैं मगर</p>
<p>अल्फ़ाज़ लाइएगा ज़ुबाँ पर सँभाल के</p>
<p>5</p>
<p>कुछ तो जनाब बोलिए इस बेयक़ीनी पर</p>
<p>कहिए तो हम दिखा दें दिल अपना निकाल…</p>
<p>221 2121 1221 212 </p>
<p></p>
<p>1</p>
<p>हैं आजकल के तिफ़्ल भी यारो कमाल के</p>
<p>रखते नहीं हैं दिल ज़रा अपना सँभाल के</p>
<p>2</p>
<p>जाने लुग़त कहाँ से ले आए निकाल के</p>
<p>लिक्खे जहाँ प माइने उल्टे विसाल के</p>
<p>3</p>
<p>अपनी शराफ़तों ने ही मजबूर कर दिया</p>
<p>वरना जवाब देते तुम्हारे सवाल के</p>
<p>4</p>
<p>नाज़ुक ज़रूर हूँ नहीं कमज़ोर मैं मगर</p>
<p>अल्फ़ाज़ लाइएगा ज़ुबाँ पर सँभाल के</p>
<p>5</p>
<p>कुछ तो जनाब बोलिए इस बेयक़ीनी पर</p>
<p>कहिए तो हम दिखा दें दिल अपना निकाल के</p>
<p>6</p>
<p>शिकवे शिक़ायतों की कहानी है ज़िन्दगी</p>
<p>कुछ पल ख़ुशी के बाक़ी हैं 'निर्मल' बवाल के</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p></p>