Ajay sharma's Posts - Open Books Online2024-03-28T22:35:08Zajay sharmahttp://openbooks.ning.com/profile/ajaysharma234http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2991279777?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1http://openbooks.ning.com/profiles/blog/feed?user=1mlnx1vsphtbw&xn_auth=noइक तेरे जाने के बाद...........tag:openbooks.ning.com,2017-08-28:5170231:BlogPost:8766892017-08-28T18:16:24.000Zajay sharmahttp://openbooks.ning.com/profile/ajaysharma234
<p>कोई भी लगता नहीं अपना , तेरे जाने के बाद <br></br>हो गया ऐसा भी क्या , इक तेरे जाने के बाद १<br></br>ढूँढता रहता हूँ , हर इक सूरत में <br></br>खो गया मेरा भला क्या , इक तेरे जाने के बाद २<br></br>न महफिलें कल थी , ना है दोस्त आज भी कोई <br></br>अब मगर तन्हा बहुत हूँ , इक तेरे जाने के बाद ३<br></br>बिन बुलाए ख़ामोशी , तन्हाई , बे -परवाहपन <br></br>टिक गये हैं घर में मेरे , इक तेरे जाने के बाद ४<br></br>पूँछते हैं सब दरोदिवार मेरे , पहचान मेरी <br></br>अब तलक लौटा नहीं घर , इक तेरे जाने के बाद ५<br></br>तोड़ कर सब रख दिए मैंने ,…</p>
<p>कोई भी लगता नहीं अपना , तेरे जाने के बाद <br/>हो गया ऐसा भी क्या , इक तेरे जाने के बाद १<br/>ढूँढता रहता हूँ , हर इक सूरत में <br/>खो गया मेरा भला क्या , इक तेरे जाने के बाद २<br/>न महफिलें कल थी , ना है दोस्त आज भी कोई <br/>अब मगर तन्हा बहुत हूँ , इक तेरे जाने के बाद ३<br/>बिन बुलाए ख़ामोशी , तन्हाई , बे -परवाहपन <br/>टिक गये हैं घर में मेरे , इक तेरे जाने के बाद ४<br/>पूँछते हैं सब दरोदिवार मेरे , पहचान मेरी <br/>अब तलक लौटा नहीं घर , इक तेरे जाने के बाद ५<br/>तोड़ कर सब रख दिए मैंने , "दिए" बरसात में <br/>दिल मगर जलने दियाइक, इक तेरे जाने के बाद <br/>कैसा थामैं , मालूम तुमको ? इक तेरे आने से पहले <br/>कैसा हूँ मैं , मालूम है , इक तेरे जाने के बाद ५ <br/>"अजय"<br/>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>देख कर तुझको , निखर जाएॅगे.tag:openbooks.ning.com,2016-01-07:5170231:BlogPost:7304262016-01-07T18:35:30.000Zajay sharmahttp://openbooks.ning.com/profile/ajaysharma234
<p>देख कर तुझको , निखर जाएॅगे।<br></br>हम आइना बनके , सॅवर जाएॅगे ।.</p>
<p>तिनका-तिनका है मेरा, पास तेरे <br></br>तुझसे बिछडे तो , बिखर जाएॅगे ।</p>
<p>दिल हमारा औ तुम्हारा है , इक <br></br>घर से निकले , तो भी घर जाएॅगे।</p>
<p>दूरियों में ही , रहे महफूज हैं हम<br></br>पास जो आये , तो डर जाएॅगे ।</p>
<p>वो समन्दर था , मगर भटका नहीं <br></br>हम तो दरिया हैं , किधर जाएॅगे ।</p>
<p>दोस्ती भीड औ धुॅये से कर ली , अब <br></br>छोडकर गाॅव अपना शहर जाएॅगे ।<br></br>सच्चे इक प्यार के मोती के लिये <br></br>हम कई समंदर में , उतर जाएॅगे…</p>
<p>देख कर तुझको , निखर जाएॅगे।<br/>हम आइना बनके , सॅवर जाएॅगे ।.</p>
<p>तिनका-तिनका है मेरा, पास तेरे <br/>तुझसे बिछडे तो , बिखर जाएॅगे ।</p>
<p>दिल हमारा औ तुम्हारा है , इक <br/>घर से निकले , तो भी घर जाएॅगे।</p>
<p>दूरियों में ही , रहे महफूज हैं हम<br/>पास जो आये , तो डर जाएॅगे ।</p>
<p>वो समन्दर था , मगर भटका नहीं <br/>हम तो दरिया हैं , किधर जाएॅगे ।</p>
<p>दोस्ती भीड औ धुॅये से कर ली , अब <br/>छोडकर गाॅव अपना शहर जाएॅगे ।<br/>सच्चे इक प्यार के मोती के लिये <br/>हम कई समंदर में , उतर जाएॅगे ।<br/>सोचने ही भर से जिन्दा हूॅ "अजय" <br/>मिल गये तुझसे तो , मर जाएॅगे।</p>
<p><br/>मौलिक वअप्रकाशित <br/>अजय कुमार शर्मा</p>चलते चल्ते जब भी हम रुक जाएँगे..................tag:openbooks.ning.com,2015-04-01:5170231:BlogPost:6371472015-04-01T17:59:31.000Zajay sharmahttp://openbooks.ning.com/profile/ajaysharma234
<p>चलते चल्ते जब भी हम रुक जाएँगे</p>
<p>तेरी बाहों में हम छुप जाएँगे ................</p>
<p></p>
<p>जब छा जाएँगे रिश्तों के निपट अंधेरे</p>
<p>और थकन की धूल पाँव से सर तक बोलेगी</p>
<p>थकते थकते जब इक दिन चुक जाएँगे</p>
<p>तेरी बाहों में हम छुप जाएँगे................</p>
<p></p>
<p></p>
<p>जब जब बोले हैं , बोले हैं खामोशी से हम</p>
<p>और प्रति-उत्तर भी पाए हैं , वैसे ही हमने</p>
<p>मिलते मिलते मौन कहीं जब थक जाएँगे</p>
<p>तेरी बाहों में हम छुप…</p>
<p>चलते चल्ते जब भी हम रुक जाएँगे</p>
<p>तेरी बाहों में हम छुप जाएँगे ................</p>
<p></p>
<p>जब छा जाएँगे रिश्तों के निपट अंधेरे</p>
<p>और थकन की धूल पाँव से सर तक बोलेगी</p>
<p>थकते थकते जब इक दिन चुक जाएँगे</p>
<p>तेरी बाहों में हम छुप जाएँगे................</p>
<p></p>
<p></p>
<p>जब जब बोले हैं , बोले हैं खामोशी से हम</p>
<p>और प्रति-उत्तर भी पाए हैं , वैसे ही हमने</p>
<p>मिलते मिलते मौन कहीं जब थक जाएँगे</p>
<p>तेरी बाहों में हम छुप जाएँगे................</p>
<p></p>
<p></p>
<p>सीधी सरल बात भी गीत , ग़ज़ल या छन्द लगे जब</p>
<p>और लगे ये भाव कि जैसे कोई ख़ुश्बू हो आसपास</p>
<p>छलते -पलते जीवन में जब ऐसे तुक आएँगे</p>
<p>तेरी बाहों में हम छुप जाएँगे................</p>
<p></p>
<p></p>
<p>प्यास बुझाते रहे मगर हम , सागर से</p>
<p>और मिटाते रहे भीड़ से अपनी तन्हाई</p>
<p>बढ़ते -चढ़ते खुद से जब हम इक दिन झुक जाएँगे</p>
<p>तेरी बाहों में हम छुप जाएँगे ................</p>
<p></p>
<p>मौलिक अप्रकाशित अजय कुमार शर्मा</p>मैं अज़ीज़ सबका था , ज़रूरत पे , मगर..........tag:openbooks.ning.com,2015-03-10:5170231:BlogPost:6290922015-03-10T18:29:47.000Zajay sharmahttp://openbooks.ning.com/profile/ajaysharma234
<p>बद -गुमानी थी मुझे क़िस्मत पे , मगर <br></br>मैं अज़ीज़ सबका था , ज़रूरत पे , मगर</p>
<p></p>
<p>हज़ार बार मुझे टोंका उसने , सलाह दी , <br></br>ख़याल आया मुझे उसका , ठोकर पे , मगर</p>
<p></p>
<p>सुबह से हो गयी शाम और अब रात भी<br></br>पैर हैं कि थकने का , नाम नहीं लेते , मगर</p>
<p></p>
<p>वो खरीददार है , कोई क़ीमत भी दे सकता है<br></br>अभी आया है कहाँ , वो मेरी चौखट पे , मगर <br></br> <br></br>करो गुस्सा या कि नाराज़ हो जायो "अजय" <br></br>सितम जो भी करो , करो खुद पे , मगर</p>
<p></p>
<p></p>
<p>अजय कुमार…</p>
<p>बद -गुमानी थी मुझे क़िस्मत पे , मगर <br/>मैं अज़ीज़ सबका था , ज़रूरत पे , मगर</p>
<p></p>
<p>हज़ार बार मुझे टोंका उसने , सलाह दी , <br/>ख़याल आया मुझे उसका , ठोकर पे , मगर</p>
<p></p>
<p>सुबह से हो गयी शाम और अब रात भी<br/>पैर हैं कि थकने का , नाम नहीं लेते , मगर</p>
<p></p>
<p>वो खरीददार है , कोई क़ीमत भी दे सकता है<br/>अभी आया है कहाँ , वो मेरी चौखट पे , मगर <br/> <br/>करो गुस्सा या कि नाराज़ हो जायो "अजय" <br/>सितम जो भी करो , करो खुद पे , मगर</p>
<p></p>
<p></p>
<p>अजय कुमार शर्मा<br/>मौलिक व अप्रकाशित</p>आम आदमी हूँ , रोज़ गिरता संभलता हूँ , क्या करूँ ..............tag:openbooks.ning.com,2015-02-23:5170231:BlogPost:6213622015-02-23T18:59:58.000Zajay sharmahttp://openbooks.ning.com/profile/ajaysharma234
<p>मैं रोज़ ढलता हूँ पर , निकलता हूँ , क्या करूँ <br></br>सूरज हूँ , मगर रोज़ जलता हूँ , क्या करूँ //</p>
<p></p>
<p>मैं मिट्टी नहीं , न हि पानी न कोई खुश्बू <br></br>मैं हवा का इक झोंखा हूँ , आँख मल्ता हूँ , क्या करूँ //</p>
<p></p>
<p>मैं बचपन भी कहाँ अब , जवानी भी नहीं हूँ मैं <br></br>बुढ़ापा हूँ मैं , इसीलिए खलता हूँ , क्या करूँ//</p>
<p></p>
<p>न कोई सफ़र हूँ मैं , न कोई पड़ाव न सराय कोई<br></br>मील का पत्थर हूँ मैं , बस टलता हूँ , क्या करूँ //</p>
<p></p>
<p>कहाँ खुद्दार हूँ मैं , अना वाला भी नहीं हूँ…</p>
<p>मैं रोज़ ढलता हूँ पर , निकलता हूँ , क्या करूँ <br/>सूरज हूँ , मगर रोज़ जलता हूँ , क्या करूँ //</p>
<p></p>
<p>मैं मिट्टी नहीं , न हि पानी न कोई खुश्बू <br/>मैं हवा का इक झोंखा हूँ , आँख मल्ता हूँ , क्या करूँ //</p>
<p></p>
<p>मैं बचपन भी कहाँ अब , जवानी भी नहीं हूँ मैं <br/>बुढ़ापा हूँ मैं , इसीलिए खलता हूँ , क्या करूँ//</p>
<p></p>
<p>न कोई सफ़र हूँ मैं , न कोई पड़ाव न सराय कोई<br/>मील का पत्थर हूँ मैं , बस टलता हूँ , क्या करूँ //</p>
<p></p>
<p>कहाँ खुद्दार हूँ मैं , अना वाला भी नहीं हूँ मैं <br/>आम आदमी हूँ , रोज़ गिरता संभलता हूँ , क्या करूँ //</p>
<p> </p>
<p></p>
<p>अजय कुमार शर्मा<br/>मौलिक & अप्रकाशित</p>देह का सागर जल गयाtag:openbooks.ning.com,2015-02-16:5170231:BlogPost:6181962015-02-16T17:30:00.000Zajay sharmahttp://openbooks.ning.com/profile/ajaysharma234
<p>मन का मीत मन को छल गया <br/> आँख का पानी मचल गया</p>
<p></p>
<p>वो मेहन्दी हाथ की मेरे चिटक के रह गयी <br/> वो मछली नेह की मेरे , तड़फ़ के रह गयी <br/> देह का सागर जल गया</p>
<p></p>
<p>पराई छाँव थी , आख़िर मैं रोकता कब तक<br/> पराया ख्वाब था , आख़िर मैं सोचता कब तक <br/> समय के हाथ से सावन फिसल गया</p>
<p></p>
<p>लिपट के रोटी रही , मन से मेरे प्रीत मेरी <br/> वो अन्छुयी ही रही , मेरे स्वप्न की कोरी देहरी <br/> आस का संबल गल गया</p>
<p></p>
<p></p>
<p>मौलिक अप्रकाशित<br/> अजय कुमार शर्मा</p>
<p>मन का मीत मन को छल गया <br/> आँख का पानी मचल गया</p>
<p></p>
<p>वो मेहन्दी हाथ की मेरे चिटक के रह गयी <br/> वो मछली नेह की मेरे , तड़फ़ के रह गयी <br/> देह का सागर जल गया</p>
<p></p>
<p>पराई छाँव थी , आख़िर मैं रोकता कब तक<br/> पराया ख्वाब था , आख़िर मैं सोचता कब तक <br/> समय के हाथ से सावन फिसल गया</p>
<p></p>
<p>लिपट के रोटी रही , मन से मेरे प्रीत मेरी <br/> वो अन्छुयी ही रही , मेरे स्वप्न की कोरी देहरी <br/> आस का संबल गल गया</p>
<p></p>
<p></p>
<p>मौलिक अप्रकाशित<br/> अजय कुमार शर्मा</p>ज़िंदगी गम का समंदर है ..............tag:openbooks.ning.com,2015-02-11:5170231:BlogPost:6160042015-02-11T19:00:00.000Zajay sharmahttp://openbooks.ning.com/profile/ajaysharma234
<p>दूर मुझसे कितने दिन रह पायोगे , सोच लो , फिर रहो<br></br> दर्द-ए-दिल है ये , सह पायोगे , सोच लो, फिर सहो<br></br> <br></br> लौट के खुद पे आती हैं , बद-दुयाएँ , सुना है ?<br></br> सहन ये सब कर पायोगे , सोच लो , फिर कहो<br></br> <br></br> क्या नहीं उसने दिया , पर क्या दिया तुमने उसे ?<br></br> क्या कभी उठ पायोगे इतना , सोच लो , फिर गिरो<br></br> <br></br> इतना भी आसां नहीं है, रास्ता ख़ुद्दारियों का<br></br> सूरज की जलन सह पायोगे , सोच लो , फिर बढ़ो<br></br> <br></br> घर से बे-घर होके भी उसने बसाई दिल की दुनिया<br></br> आँसुयों सा ये सफ़र कर…</p>
<p>दूर मुझसे कितने दिन रह पायोगे , सोच लो , फिर रहो<br/> दर्द-ए-दिल है ये , सह पायोगे , सोच लो, फिर सहो<br/> <br/> लौट के खुद पे आती हैं , बद-दुयाएँ , सुना है ?<br/> सहन ये सब कर पायोगे , सोच लो , फिर कहो<br/> <br/> क्या नहीं उसने दिया , पर क्या दिया तुमने उसे ?<br/> क्या कभी उठ पायोगे इतना , सोच लो , फिर गिरो<br/> <br/> इतना भी आसां नहीं है, रास्ता ख़ुद्दारियों का<br/> सूरज की जलन सह पायोगे , सोच लो , फिर बढ़ो<br/> <br/> घर से बे-घर होके भी उसने बसाई दिल की दुनिया<br/> आँसुयों सा ये सफ़र कर पायोगे , सोच लो , फिर चलो<br/> <br/> उठने लगी है हर तरफ आवाज़ तेरी ख़िलाफ , लेकिन ?<br/> क्या यूँ ही डर के कहीं छुप जाओगे , सोच लो , फिर डरो<br/> <br/> ज़िंदगी गम का समंदर है इक , ये ख़याल रहे<br/> पार कर पायोगे इसको "अजय", सोच लो , फिर बहो<br/> <br/> अजय कुमार शर्मा<br/> मौलिक व अप्रकाशित</p>कुछ तो आपस मे बनी रहने दे .............tag:openbooks.ning.com,2015-02-04:5170231:BlogPost:6143622015-02-04T17:57:42.000Zajay sharmahttp://openbooks.ning.com/profile/ajaysharma234
<p>कुछ तो आपस मे बनी रहने दे <br/>आसमाँ तेरा सही मेरी ज़मीं रहने दे</p>
<p></p>
<p>बिछड़ के होगा तुझे अफ़सोस इस खातिर<br/>अपनी आँखों में नमी रहने दे</p>
<p></p>
<p>मिल गया तू मुझे , तो फिर क्या होगा <br/>मेरे मौला ये कमी रहने दे</p>
<p></p>
<p>मेरे ईमान की आँखें बे-नूर हो जाएँ<br/>तरक़्क़ी तू मुझे ऐसी रोशिनी रहने दे</p>
<p></p>
<p>गैरों पे यक़ीन करना पड़े , "अजय" <br/>तू मुझसे ऐसी दुश्मनी रहने दे</p>
<p></p>
<p></p>
<p>अजय कुमार शर्मा<br/>मौलिक & अप्रकाशित</p>
<p>कुछ तो आपस मे बनी रहने दे <br/>आसमाँ तेरा सही मेरी ज़मीं रहने दे</p>
<p></p>
<p>बिछड़ के होगा तुझे अफ़सोस इस खातिर<br/>अपनी आँखों में नमी रहने दे</p>
<p></p>
<p>मिल गया तू मुझे , तो फिर क्या होगा <br/>मेरे मौला ये कमी रहने दे</p>
<p></p>
<p>मेरे ईमान की आँखें बे-नूर हो जाएँ<br/>तरक़्क़ी तू मुझे ऐसी रोशिनी रहने दे</p>
<p></p>
<p>गैरों पे यक़ीन करना पड़े , "अजय" <br/>तू मुझसे ऐसी दुश्मनी रहने दे</p>
<p></p>
<p></p>
<p>अजय कुमार शर्मा<br/>मौलिक & अप्रकाशित</p>इबादत जहाँ की मोहब्बत सिखाएं......tag:openbooks.ning.com,2015-02-02:5170231:BlogPost:6137752015-02-02T17:59:13.000Zajay sharmahttp://openbooks.ning.com/profile/ajaysharma234
<p>मोहब्बत क आयो दिया हम जलाएँ<br></br>ये नफ़रत के सारे अंधेरे मिटाएँ</p>
<p></p>
<p>हो मंदिर कोई एक ऐसा भी आला<br></br>हो इंसानियत का जहाँ पे उजाला <br></br>दुआ मिलके माँगें सभी सब की खातिर<br></br>इबादत जहाँ की मोहब्बत सिखाएं</p>
<p></p>
<p></p>
<p>वो खवाबों की पारियाँ वो चाँद और सितारें <br></br>महज़ हैं कहानी के क़िरदार सारे <br></br>क़िताबों के पन्नों से बाहर निकल के <br></br>चलो हम हक़ीकत की ग़ज़ल गुनगुनाएँ</p>
<p></p>
<p></p>
<p>यही धर्म कहता है मज़हब सिखाता <br></br>सबक देती क़ुरान कहती है गीता <br></br>हो पैदा ये अहसास…</p>
<p>मोहब्बत क आयो दिया हम जलाएँ<br/>ये नफ़रत के सारे अंधेरे मिटाएँ</p>
<p></p>
<p>हो मंदिर कोई एक ऐसा भी आला<br/>हो इंसानियत का जहाँ पे उजाला <br/>दुआ मिलके माँगें सभी सब की खातिर<br/>इबादत जहाँ की मोहब्बत सिखाएं</p>
<p></p>
<p></p>
<p>वो खवाबों की पारियाँ वो चाँद और सितारें <br/>महज़ हैं कहानी के क़िरदार सारे <br/>क़िताबों के पन्नों से बाहर निकल के <br/>चलो हम हक़ीकत की ग़ज़ल गुनगुनाएँ</p>
<p></p>
<p></p>
<p>यही धर्म कहता है मज़हब सिखाता <br/>सबक देती क़ुरान कहती है गीता <br/>हो पैदा ये अहसास हर इक दिल में<br/>जो गिरता हो उसको गले से लगाएँ</p>
<p></p>
<p></p>
<p>तुम्हें भी पता है , हमें भी खबर है <br/>हो मंदिर या मस्ज़िद ये उसका ही घर है <br/>महज़ सोच का फ़र्क़ है , राह इक है<br/>जो भटकें हुएँ हैं , उन्हे ये बताएँ</p>
<p></p>
<p>अजय कुमार शर्मा<br/>मौलिक & अप्रकाशित</p>है ईश्वर तुल्य वो , जो अपने वतन पर मरने वाला है .......tag:openbooks.ning.com,2015-01-25:5170231:BlogPost:6107032015-01-25T17:31:57.000Zajay sharmahttp://openbooks.ning.com/profile/ajaysharma234
<p>बडा मंदिर न मस्जिद , न कोई गिरजा शिवाला है<br></br>न कोई अर्चना , पूजा बडी , अरदास , माला है<br></br> वतन सबसे बडा मंदिर , वतन सबसे बडी पूजा<br></br>है ईश्वर तुल्य वो , जो अपने वतन पर मरने वाला है ।</p>
<p></p>
<p>जो सच की पैरवी और झूठ का प्रतिकार करता है , <br></br>मोहब्बत हो जिसे इंसानियत से और एतबार करता है <br></br>जरूरी है नहीं हर शख्स सरहद पर लडे जाकर , <br></br>वही सच्चा सिपाही है , जो वतन से प्यार से करता है ।</p>
<p></p>
<p>न कोई आरजू , ख्वाहि श , न कोई शर्त रखते हैं ।<br></br>न बोझा कोई सीने पर , न सर पे कर्ज…</p>
<p>बडा मंदिर न मस्जिद , न कोई गिरजा शिवाला है<br/>न कोई अर्चना , पूजा बडी , अरदास , माला है<br/> वतन सबसे बडा मंदिर , वतन सबसे बडी पूजा<br/>है ईश्वर तुल्य वो , जो अपने वतन पर मरने वाला है ।</p>
<p></p>
<p>जो सच की पैरवी और झूठ का प्रतिकार करता है , <br/>मोहब्बत हो जिसे इंसानियत से और एतबार करता है <br/>जरूरी है नहीं हर शख्स सरहद पर लडे जाकर , <br/>वही सच्चा सिपाही है , जो वतन से प्यार से करता है ।</p>
<p></p>
<p>न कोई आरजू , ख्वाहि श , न कोई शर्त रखते हैं ।<br/>न बोझा कोई सीने पर , न सर पे कर्ज रखते है।<br/>वतन पर मरने वाले होते है हमऔर आप जैसे ही <br/>मगर हर हाल में आगे वो खुद से , फर्ज रखते हैं ।</p>
<p></p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित<br/>अजय कुमार शर्मा</p>खामोशी ने ऐसी खता की ......tag:openbooks.ning.com,2015-01-18:5170231:BlogPost:6078922015-01-18T17:38:48.000Zajay sharmahttp://openbooks.ning.com/profile/ajaysharma234
<p>खामोशी ने ऐसी खता की <br/>बात न की पर उसने जता दी</p>
<p></p>
<p>दिए हैं उसने ज़ख़्म अगर तो <br/>दवा भी उसने हमें लगा दी</p>
<p></p>
<p>न जाने क्या-क्या था सोच रखा <br/>मिला जो उसने , शरत लगा दी</p>
<p></p>
<p>मेरी अना थी , गुरूर उसका <br/>मगर ये रिश्ते में इक वफ़ा थी</p>
<p></p>
<p>खत इक लिखा , फिर ज़वाब उसका <br/>था काम इतना , उमर लगा दी</p>
<p></p>
<p>बग़ैर उसके , सफ़र कहाँ था <br/>कभी था चेहरा , कभी सदा थी</p>
<p></p>
<p>अजय कुमार शर्मा<br/>मौलिक प्रकाशित</p>
<p>खामोशी ने ऐसी खता की <br/>बात न की पर उसने जता दी</p>
<p></p>
<p>दिए हैं उसने ज़ख़्म अगर तो <br/>दवा भी उसने हमें लगा दी</p>
<p></p>
<p>न जाने क्या-क्या था सोच रखा <br/>मिला जो उसने , शरत लगा दी</p>
<p></p>
<p>मेरी अना थी , गुरूर उसका <br/>मगर ये रिश्ते में इक वफ़ा थी</p>
<p></p>
<p>खत इक लिखा , फिर ज़वाब उसका <br/>था काम इतना , उमर लगा दी</p>
<p></p>
<p>बग़ैर उसके , सफ़र कहाँ था <br/>कभी था चेहरा , कभी सदा थी</p>
<p></p>
<p>अजय कुमार शर्मा<br/>मौलिक प्रकाशित</p>मेरी हाथ की वो किताब हो..........tag:openbooks.ning.com,2014-12-23:5170231:BlogPost:5978672014-12-23T17:00:00.000Zajay sharmahttp://openbooks.ning.com/profile/ajaysharma234
<p>जिसे उम्र भर मैं सुना किया , <br></br> जिसे चुपके-चुपके पढा किया , <br></br> मैं समझ सका न जिसे कभी , <br></br> मेरी हाथ की वो किताब हो ।।</p>
<p><br></br> एक बाल था मिरी पलक का , <br></br> जो छुपा रहा मिरी आँख में , <br></br> मुझे जिसकी फिक्र न थी कभी , <br></br> मेरी जिन्दगी का वो ख्वाब हो ।।</p>
<p><br></br>जो ठहर गयी मेरी फिक्र थी , <br></br> जो सॅवर गया तेरा ख्याल था , <br></br> जो उतर गयी मेरे दिल के आँगन में , <br></br> वो ठण्डी छॉव हो ।।</p>
<p><br></br> तेरे इन्तजार का सिलसिला , <br></br> कभी टूूटता तो मैं जानता , <br></br> मुझे मिला…</p>
<p>जिसे उम्र भर मैं सुना किया , <br/> जिसे चुपके-चुपके पढा किया , <br/> मैं समझ सका न जिसे कभी , <br/> मेरी हाथ की वो किताब हो ।।</p>
<p><br/> एक बाल था मिरी पलक का , <br/> जो छुपा रहा मिरी आँख में , <br/> मुझे जिसकी फिक्र न थी कभी , <br/> मेरी जिन्दगी का वो ख्वाब हो ।।</p>
<p><br/>जो ठहर गयी मेरी फिक्र थी , <br/> जो सॅवर गया तेरा ख्याल था , <br/> जो उतर गयी मेरे दिल के आँगन में , <br/> वो ठण्डी छॉव हो ।।</p>
<p><br/> तेरे इन्तजार का सिलसिला , <br/> कभी टूूटता तो मैं जानता , <br/> मुझे मिला क्या मैंने खो दिया , <br/> मेरी जिन्दगी का हिसाब हो ।।</p>
<p><br/>तुझे भूलने से भी क्या मिला ,<br/> मैने करके देखा है ये बहुत , <br/> वो जो जख्म दे के चला गया , <br/> मेरी आँख को , वो ही ख्वाब हो ।।</p>
<p></p>
<p>मेरे साथ-साथ चला किया , <br/> मेरी जिन्दगी बनके अजय <br/> जिसे रख सका न सॅभाल कर ,<br/> मिरी जिन्दगी का वो खिताब हो ।।</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>शीत के दुर्दिन का ढो रहे संत्रास , क्या करे क्या न करे फुटपाथ ||tag:openbooks.ning.com,2014-12-15:5170231:BlogPost:5948912014-12-15T17:40:13.000Zajay sharmahttp://openbooks.ning.com/profile/ajaysharma234
<p><span class="font-size-2">शहरो के बीच बीच सड़कों के आसपास |</span><br></br><span class="font-size-2">शीत के दुर्दिन का ढो रहे संत्रास , क्या करे क्या न करे फुटपाथ || </span><br></br><br></br><span class="font-size-2">सूरज की <b>आँखों</b> में कोहरे की चुभन रही </span><br></br><span class="font-size-2">धुप के पैरो में <b>मेहंदी</b> की थूपन रही </span><br></br><span class="font-size-2">शर्माती शाम आई छल गयी बाजारों को </span><br></br><span class="font-size-2">समझ गए रिक्शे भी भीड़ के <b>इशारों</b> को …</span><br></br></p>
<p><span class="font-size-2">शहरो के बीच बीच सड़कों के आसपास |</span><br/><span class="font-size-2">शीत के दुर्दिन का ढो रहे संत्रास , क्या करे क्या न करे फुटपाथ || </span><br/><br/><span class="font-size-2">सूरज की <b>आँखों</b> में कोहरे की चुभन रही </span><br/><span class="font-size-2">धुप के पैरो में <b>मेहंदी</b> की थूपन रही </span><br/><span class="font-size-2">शर्माती शाम आई छल गयी बाजारों को </span><br/><span class="font-size-2">समझ गए रिक्शे भी भीड़ के <b>इशारों</b> को </span><br/><span class="font-size-2">बच्चो के खेल सब कमरों में गए बिखर </span><br/><span class="font-size-2">ठिठक गए चौराहे भी खम्भों के इधर उधर </span><br/><span class="font-size-2">सुलग उठे <b>हल्के हल्के</b> बल्बों के मन उदास </span><br/><br/><span class="font-size-2">शहरो के बीच बीच सड़कों के आसपास |</span><br/><span class="font-size-2">शीत के दुर्दिन का ढो रहे संत्रास , क्या करे क्या न करे फुटपाथ || </span><br/><br/><span class="font-size-2">अलसाई पलकों से नींदों का बढ़ा मान</span><br/><span class="font-size-2">ले के थकन आ गयी स्वप्न का सारा सामान </span><br/><span class="font-size-2">ठिठुरन भी चूल्हों के बाहों में बँट <b>गई</b> </span><br/><span class="font-size-2">छाती की उस्ड़ता पैरो से लिपट <b>गई</b> </span><br/><span class="font-size-2">फुटपाथी तापमान काया ने जोड़ लिया </span><br/><span class="font-size-2">शीत की चादर को साँसों ने ओढ़ लिया </span><br/><span class="font-size-2"><b>करवटें</b> भी भूल <b>गई</b> बाकी सब तलाश </span><br/><br/><span class="font-size-2">शहरो के बीच बीच सड़कों के आसपास |</span><br/><span class="font-size-2">शीत के दुर्दिन का ढो रहे संत्रास , क्या करे क्या न करे फुटपाथ || </span><br/><br/><span class="font-size-2">चाय के पियालो से ट्रेफिक की सीटी तक </span><br/><span class="font-size-2">अनसन और हड़ताले आग से <b>अंगीठी</b> तक </span><br/><span class="font-size-2">केवल बस केवल नाम रहा खास का </span><br/><span class="font-size-2">देश मेरा लग रहा शीत में फुटपाथ सा </span><br/><span class="font-size-2">दुखते हुए जोड़ है शीत का <b>उलाहना</b> है </span><br/><span class="font-size-2">बुझते हुए चूल्हों को शीत का बहाना है </span><br/><span class="font-size-2">शीत करे <b>राजनीति</b> मनरेगा है हताश </span><br/><br/><br/><span class="font-size-2">शहरो के बीच बीच सड़कों के आसपास |</span><br/><span class="font-size-2">शीत के दुर्दिन का ढो रहे संत्रास , क्या करे क्या न करे फुटपाथ ||</span></p>माँ होती तो ऐसा होता ,..................tag:openbooks.ning.com,2014-12-14:5170231:BlogPost:5950092014-12-14T17:42:00.000Zajay sharmahttp://openbooks.ning.com/profile/ajaysharma234
<p>माँ होती तो ऐसा होता</p>
<p>माँ होती तो वैसा होता</p>
<p></p>
<p>खुद खाने से पहले तुमने क्या कुछ खाया "पूछा " उसको <br></br>जैसे बचपन में सोते थे उसकी गोद में बेफिक्री से <br></br>कभी थकन से हारी माँ जब , तुमने कभी सुलाया उसको ?<span class="text_exposed_show"><br></br>पापा से कर चोरी जब - जब देती थी वो पैसे तुमको <br></br>कभी लौट के उन पैसो का केवल ब्याज चुकाया होता</span></p>
<p></p>
<div class="text_exposed_show"><p>माँ तुम ही हो एक सहारा</p>
<p>तब तुम कहते अच्छा होता <br></br>माँ होती तो ऐसा होता</p>
<p>माँ…</p>
</div>
<p>माँ होती तो ऐसा होता</p>
<p>माँ होती तो वैसा होता</p>
<p></p>
<p>खुद खाने से पहले तुमने क्या कुछ खाया "पूछा " उसको <br/>जैसे बचपन में सोते थे उसकी गोद में बेफिक्री से <br/>कभी थकन से हारी माँ जब , तुमने कभी सुलाया उसको ?<span class="text_exposed_show"><br/>पापा से कर चोरी जब - जब देती थी वो पैसे तुमको <br/>कभी लौट के उन पैसो का केवल ब्याज चुकाया होता</span></p>
<p></p>
<div class="text_exposed_show"><p>माँ तुम ही हो एक सहारा</p>
<p>तब तुम कहते अच्छा होता <br/>माँ होती तो ऐसा होता</p>
<p>माँ होती तो वैसा होता</p>
<p>चलना , फिरना , हसना , रोना ,और खड़े होना पैरो पर <br/>कितने बाते सीखी तुमने लेकिन याद किया क्या पल भर <br/>जिन हाथो की पकड़ के अंगुली तुम रहते थे हरदम आगे <br/>बने सहारा क्या तुम उनका , हार गए वे हाँथ अभागे <br/>माँ है आखिर कैसे कह दे " निकला मेरा सिक्का खोटा "</p>
<p>मात्र बहाना लगता तब ,</p>
<p>जब भी उनको देखा रोता <br/>माँ होती तो ऐसा होता ,</p>
<p>माँ होती तो वैसा होता</p>
<p>जब जब गलती की बचपन में माँ ने ओढ़ लिया सब दोष <br/>कभी चोट जो खाता था तू , माँ खुद करती थी अफ़सोस <br/>पापा तक जो ले जाती थी भूल गया तू उस डोरी को <br/>तेरे सपनो पे क़र्ज़ है उसका भूल गया तू उस लोरी को <br/>तन्हाई में कभी सिरहाने माँ के , आके तू भी सोता</p>
<p>माँ की तरह तू भी ऐसा</p>
<p>फूट फूट न तनहा रोता ,<br/>माँ होती तो ऐसा होता ,</p>
<p>माँ होती तो वैसा होता</p>
<p></p>
<p><span>अजय कुमार शर्मा</span><br/><span>मौलिक एवं अप्रकाशित</span></p>
</div>मैं हूँ बंदी बिन्दु परिधि का , तुम रेखा मनमानी Itag:openbooks.ning.com,2014-12-14:5170231:BlogPost:5950102014-12-14T17:30:00.000Zajay sharmahttp://openbooks.ning.com/profile/ajaysharma234
<p style="text-align: left;">मैं हूँ बंदी बिन्दु परिधि का , तुम रेखा मनमानी I <br></br> मैं ठहरा पोखर का जल , तुम हो गंगा का पानी I I</p>
<p style="text-align: left;"></p>
<p style="text-align: left;">मैं जीवन की कथा -व्यथा का नीरस सा गद्यांश कोई इक I <br></br> तुम छंदों में लिखी गयी कविता का हो रूपांश कोई इक I </p>
<p style="text-align: left;"><span class="text_exposed_show">मैं स्वांसों का निहित स्वार्थ हूँ , तुम हो जीवन की मानी I I…</span></p>
<p style="text-align: left;"></p>
<p style="text-align: left;">मैं हूँ बंदी बिन्दु परिधि का , तुम रेखा मनमानी I <br/> मैं ठहरा पोखर का जल , तुम हो गंगा का पानी I I</p>
<p style="text-align: left;"></p>
<p style="text-align: left;">मैं जीवन की कथा -व्यथा का नीरस सा गद्यांश कोई इक I <br/> तुम छंदों में लिखी गयी कविता का हो रूपांश कोई इक I </p>
<p style="text-align: left;"><span class="text_exposed_show">मैं स्वांसों का निहित स्वार्थ हूँ , तुम हो जीवन की मानी I I</span></p>
<p style="text-align: left;"></p>
<div style="text-align: left;" class="text_exposed_show"><p>धूप छाँव में पला बढा मैं विषम्तायों का हूँ सहवासी I <br/> तुम महलों के मध्य पली हो ऐश्वर्यों की हो अभ्यासी I <br/> मैं आँखों का खारा संचय , तुम हो वर्षा अभिमानी I I</p>
<p></p>
<p>विपदायों , संत्रासों से मेरा अटूट अनुबंध रहा है I <br/> पीड़ा से अनभिज्ञ रही तुम सुख से ही सम्बन्ध रहा है I <br/> मैं शमशानी श्वेत वस्त्र हूँ , तुम हो चूनर धानी I I</p>
<p></p>
<p>सुबह शाम सा दो स्वासों का मिलन सदा ही रहा असंभव I <br/> "'अजय "सत्य है फिर भी जीवन तट बंधों पर ही है संभव I <br/> तुम उजला सन्दर्भ हो , जिसका मैं हूँ वही कहानी I I</p>
<p></p>
<p>मैं हूँ बंदी बिन्दु परिधि का तुम रेखा मनमानी I <br/> मैं ठहरा पोखर का जल तुम हो गंगा का पानी I I</p>
<p></p>
<p>अप्रकाशित / अमुद्रित :</p>
<p>अजय कुमार शर्मा</p>
</div>पीर पैरों की खड़ा होने नही देती मुझे...............tag:openbooks.ning.com,2014-12-09:5170231:BlogPost:5933042014-12-09T17:30:00.000Zajay sharmahttp://openbooks.ning.com/profile/ajaysharma234
<p style="text-align: center;">पीर पैरों की खड़ा होने नही देती मुझे<br></br> मेरी देहरी ही बड़ा होने नहीं देती मुझे</p>
<p style="text-align: center;"></p>
<p style="text-align: center;">फिर वही आँगन की परिधि में बँट गया <br></br> किंतु सीमाएँ मेरी खोने नहीं देती मुझे</p>
<p style="text-align: center;"></p>
<p style="text-align: center;">उधर पाबंदी ज़माने की हैं हँसनें पे मेरे<br></br> इधर दीवारें मेरी रोने नहीं देती मुझे</p>
<p style="text-align: center;"></p>
<p style="text-align: center;">कर्म के ही हल…</p>
<p style="text-align: center;">पीर पैरों की खड़ा होने नही देती मुझे<br/> मेरी देहरी ही बड़ा होने नहीं देती मुझे</p>
<p style="text-align: center;"></p>
<p style="text-align: center;">फिर वही आँगन की परिधि में बँट गया <br/> किंतु सीमाएँ मेरी खोने नहीं देती मुझे</p>
<p style="text-align: center;"></p>
<p style="text-align: center;">उधर पाबंदी ज़माने की हैं हँसनें पे मेरे<br/> इधर दीवारें मेरी रोने नहीं देती मुझे</p>
<p style="text-align: center;"></p>
<p style="text-align: center;">कर्म के ही हल सदा रखती है कंधें पर नियति <br/> पर कभी फसलें मेरी , बोने नहीं देती मुझे</p>
<p style="text-align: center;"></p>
<p style="text-align: center;">रोज़ सहता हूँ पराजय के अनेकों दंश फिर भी<br/> ज़िद ये साँसों की "अजय" मरने नही देती मुझे</p>
<p style="text-align: center;"></p>
<p style="text-align: center;">अजय कुमार शर्मा<br/> मौलिक एवं अप्रकाशित</p>चित्र हो और कोई , ये गॅवारा नहींtag:openbooks.ning.com,2014-12-01:5170231:BlogPost:5918722014-12-01T17:30:00.000Zajay sharmahttp://openbooks.ning.com/profile/ajaysharma234
<p>साथ मेरे चलों , तो चलों उम्र भर , <br></br> दो कदम साथ चलना गॅवारा नहीं।<br></br> तुम अधूरे इधर , मैं हूँ अधूरा उधर , <br></br> दोनों आधे जिये , ये गॅवारा नहीं ।</p>
<p>तुम जो कह दो शुरू, तो शुरूआत हो <br></br> तुम जो कह दो खतम , सॉस थम जोयगी ।<br></br> पंथ कांटों का हो या कि फूलों भरा<br></br> तुम नहीं साथ में , ये गॅवारा नहीं ।</p>
<p>लाख नजरों में दिलकश नजारे रहे <br></br> किंतु आँखों की देहरी को न छू सके <br></br> मेरे सपनों के घर में सिवाय तेरे , <br></br> चित्र हो और कोई , ये गॅवारा नहीं</p>
<p>मैं अकेला रहूँ या रहूँ भीड…</p>
<p>साथ मेरे चलों , तो चलों उम्र भर , <br/> दो कदम साथ चलना गॅवारा नहीं।<br/> तुम अधूरे इधर , मैं हूँ अधूरा उधर , <br/> दोनों आधे जिये , ये गॅवारा नहीं ।</p>
<p>तुम जो कह दो शुरू, तो शुरूआत हो <br/> तुम जो कह दो खतम , सॉस थम जोयगी ।<br/> पंथ कांटों का हो या कि फूलों भरा<br/> तुम नहीं साथ में , ये गॅवारा नहीं ।</p>
<p>लाख नजरों में दिलकश नजारे रहे <br/> किंतु आँखों की देहरी को न छू सके <br/> मेरे सपनों के घर में सिवाय तेरे , <br/> चित्र हो और कोई , ये गॅवारा नहीं</p>
<p>मैं अकेला रहूँ या रहूँ भीड मैं <br/> तुम बढाना नहीं हाथ मेरी तरफ <br/> ये जमाना करें , लाख मुझपे सितम <br/> एक तुझपे सितम , ये गॅवारा नहीं।</p>
<p>.</p>
<p>अजय कुमार शर्मा<br/> ( मौलिक एवं अप्रकाशित )</p>साँसों के संबंध का , बस इतना अनुवाद..............tag:openbooks.ning.com,2014-10-29:5170231:BlogPost:5845322014-10-29T17:00:00.000Zajay sharmahttp://openbooks.ning.com/profile/ajaysharma234
<p>धीरज धर कर जीवन को , पाला होता काश <br></br> पुष्प ना बनता मैं भले , बन ही जाता घास </p>
<p></p>
<p>कितने जमनों का भँवर लिपटा मेरे पाव <br></br> धूप भी अब लगती सुखद जैसे ठंडी छाव</p>
<p></p>
<p>प्यासे को पानी मिले , गर भूखे को अन्न <br></br> हर गरीब हो जाए इस , धरती पे संपन्न</p>
<p></p>
<p>आकर बैठो पास में मेरे भी , कुछ वक़्त <br></br> आगे का लगता सफ़र होने को है सख़्त</p>
<p></p>
<p>मिला मुझे जैसा भी जो , स्वीकारा बे-खोट <br></br> इसलिए शायद हृदय , पाया मेरा चोट</p>
<p></p>
<p>नींदे जगती रात भर , सोते रहते…</p>
<p>धीरज धर कर जीवन को , पाला होता काश <br/> पुष्प ना बनता मैं भले , बन ही जाता घास </p>
<p></p>
<p>कितने जमनों का भँवर लिपटा मेरे पाव <br/> धूप भी अब लगती सुखद जैसे ठंडी छाव</p>
<p></p>
<p>प्यासे को पानी मिले , गर भूखे को अन्न <br/> हर गरीब हो जाए इस , धरती पे संपन्न</p>
<p></p>
<p>आकर बैठो पास में मेरे भी , कुछ वक़्त <br/> आगे का लगता सफ़र होने को है सख़्त</p>
<p></p>
<p>मिला मुझे जैसा भी जो , स्वीकारा बे-खोट <br/> इसलिए शायद हृदय , पाया मेरा चोट</p>
<p></p>
<p>नींदे जगती रात भर , सोते रहते ख़्वाब <br/> भूल गयीं जैसे लगे , ये लंबा कोई हिसाब</p>
<p></p>
<p>ख़्वाबों का हो जाए भी , फिर चाहे अवसान <br/> इक पल तेरी आँख में , मिल जाए स्थान</p>
<p></p>
<p>जीवन भर की दोस्ती , इक पल का संवाद <br/> साँसों के संबंध का , बस इतना अनुवाद</p>
<p></p>
<p>अमुद्रित / अप्रकाशित <br/> अजय क शर्मा <br/> 9415461125</p>उन्मीदों से भी ज़्यादा, बहुत ज़्यादा मिल गया हैtag:openbooks.ning.com,2014-08-04:5170231:BlogPost:5647132014-08-04T17:00:00.000Zajay sharmahttp://openbooks.ning.com/profile/ajaysharma234
<p>उन्मीदों से भी ज़्यादा, बहुत ज़्यादा मिल गया है <br></br> ख्वाहिशों का मेरी बे-नूर चेहरा खिल गया है</p>
<p></p>
<p>वो दौलतमंद है इक सिक्के की क़ीमत मालूम क्या उसको <br></br> कि इक सिक्के में इस बच्चे का बस्ता सिल गया है</p>
<p></p>
<p>ना चप्पल पाव में न सर पे कोई टोपी भी थी उसके<br></br> सुबह इस ठंड में जो बच्चा मज़ूरी को निकल गया है</p>
<p></p>
<p>मुफ़लिसी से नहीं अपनी अमीरी से बहुत लाचार था <br></br> वो बदन नंगे जो चौराहे पे , बुत में ढल गया है</p>
<p></p>
<p>वो सवारी बैठाने से पहले ही , किराया बोल देता…</p>
<p>उन्मीदों से भी ज़्यादा, बहुत ज़्यादा मिल गया है <br/> ख्वाहिशों का मेरी बे-नूर चेहरा खिल गया है</p>
<p></p>
<p>वो दौलतमंद है इक सिक्के की क़ीमत मालूम क्या उसको <br/> कि इक सिक्के में इस बच्चे का बस्ता सिल गया है</p>
<p></p>
<p>ना चप्पल पाव में न सर पे कोई टोपी भी थी उसके<br/> सुबह इस ठंड में जो बच्चा मज़ूरी को निकल गया है</p>
<p></p>
<p>मुफ़लिसी से नहीं अपनी अमीरी से बहुत लाचार था <br/> वो बदन नंगे जो चौराहे पे , बुत में ढल गया है</p>
<p></p>
<p>वो सवारी बैठाने से पहले ही , किराया बोल देता है <br/> हालात बदले ना बदले उसके , मगर लहज़ा बदल गया है</p>
<p>.</p>
<p>मौलिक अप्रकाशित <br/> अजय कुमार शर्मा</p>ग़ज़ल (अजय कुमार शर्मा)tag:openbooks.ning.com,2014-01-23:5170231:BlogPost:5032352014-01-23T18:00:00.000Zajay sharmahttp://openbooks.ning.com/profile/ajaysharma234
<p>सच कहता है शख्स वो ,भले बोलता कम है <br></br> बहुत सोचता है , भले वो लब खोलता कम है</p>
<p><br></br> कितनी भी हावी सियासत हो गयी हो आज भी <br></br> वो वादे निभाता तो नहीं , मगर तोड़ता कम है</p>
<p></p>
<p>कहीं जज़बात के रस्ते में कोई दुश्वारियां न हों <br></br> वो ख़त भी रखता है , तो लिफाफा मोड़ता कम है</p>
<p></p>
<p>मशीनी हो गयी है , रफ़्तार-ए -ज़िन्दगी , अब <br></br> आदमी हाँफता ज़िआदा , मगर दौड़ता कम है<br></br> <br></br> फुटपाथों पे वो नंगे ज़िस्म सो रहा है , "अजय" <br></br> चीथड़े पहनता तो है वो , मगर ओढ़ता कम…</p>
<p>सच कहता है शख्स वो ,भले बोलता कम है <br/> बहुत सोचता है , भले वो लब खोलता कम है</p>
<p><br/> कितनी भी हावी सियासत हो गयी हो आज भी <br/> वो वादे निभाता तो नहीं , मगर तोड़ता कम है</p>
<p></p>
<p>कहीं जज़बात के रस्ते में कोई दुश्वारियां न हों <br/> वो ख़त भी रखता है , तो लिफाफा मोड़ता कम है</p>
<p></p>
<p>मशीनी हो गयी है , रफ़्तार-ए -ज़िन्दगी , अब <br/> आदमी हाँफता ज़िआदा , मगर दौड़ता कम है<br/> <br/> फुटपाथों पे वो नंगे ज़िस्म सो रहा है , "अजय" <br/> चीथड़े पहनता तो है वो , मगर ओढ़ता कम है</p>
<p></p>
<p></p>
<p>अजय कुमार शर्मा <br/> मौलिक और अप्रकाशित <br/> २३-०१-२०१४</p>सावन का मौसम आया है............tag:openbooks.ning.com,2014-01-16:5170231:BlogPost:5004642014-01-16T18:00:00.000Zajay sharmahttp://openbooks.ning.com/profile/ajaysharma234
<p>हाथों से पता चल जायेगा होठों से खबर लग जायेगी <br></br> आँखों से नज़र आ जायेगा , <br></br> सावन का मौसम आया है ऄ</p>
<p></p>
<p>कुछ बातें ऐसी वैसी होंगी , होंगीं जिनकी कुछ वज़ह नहीं <br></br> कुछ फूल खिलेंगे ऐसे जिनकी , होगी बागों में जगह नहीं <br></br> ख़ुश्बू , सबको बतलायेगी <br></br> सावन का मौसम आया है</p>
<p></p>
<p></p>
<p>झूलों पे बैठे हम और तुम , धरती से नभ तक हो आयेंगे <br></br> मिलन के बरसेंगे घन घोर , विरह के ताप हवन हो जायेंगे <br></br> दुनिया सारी जल जायेगी <br></br> सावन का मौसम आया…</p>
<p>हाथों से पता चल जायेगा होठों से खबर लग जायेगी <br/> आँखों से नज़र आ जायेगा , <br/> सावन का मौसम आया है ऄ</p>
<p></p>
<p>कुछ बातें ऐसी वैसी होंगी , होंगीं जिनकी कुछ वज़ह नहीं <br/> कुछ फूल खिलेंगे ऐसे जिनकी , होगी बागों में जगह नहीं <br/> ख़ुश्बू , सबको बतलायेगी <br/> सावन का मौसम आया है</p>
<p></p>
<p></p>
<p>झूलों पे बैठे हम और तुम , धरती से नभ तक हो आयेंगे <br/> मिलन के बरसेंगे घन घोर , विरह के ताप हवन हो जायेंगे <br/> दुनिया सारी जल जायेगी <br/> सावन का मौसम आया है</p>
<p></p>
<p></p>
<p>इतनी फूलों को खबर कहाँ , कलियों को इतना होश कहाँ <br/> महकेगी जवानी जब तेरी , खुश्बू में चमन जायेगा नहाँ <br/> हर बात तेरी बहकायेगी <br/> सावन का मौसम आया है</p>
<p></p>
<p></p>
<p>ये बाली उम्र ये अल्हड़ पन , मैं कैसे छुपाऊँ मन की अगन <br/> हाथों से छूटी , अब छूटी , यौवन की गीली है डोर सजन <br/> अब डोर ये टूट ही जायेगी <br/> सावन का मौसम आया है</p>
<p></p>
<p></p>
<p>अजय कुमार शर्मा <br/> मौलिक और अप्रकाशित</p>था मेरा, जितना भी था, जैसा भी था, मेरा तो थाtag:openbooks.ning.com,2014-01-10:5170231:BlogPost:4981862014-01-10T17:00:00.000Zajay sharmahttp://openbooks.ning.com/profile/ajaysharma234
<p>बस न पाया , क्या हुआ , कुछ वक़्त वो , ठहरा तो था <br></br> वो था मेरा , जितना भी था , जैसा भी था , मेरा तो था</p>
<p></p>
<p>साथ उसके हाथ का , मुझको न मिल पाया कभी <br></br> मेरे दिल में उम्र भर , उसका मगर , चेहरा तो था</p>
<p></p>
<p>आँसुओं की , आँख में मेरे , खड़ी इक भीड़ थी <br></br> बंद पलकों का लगा , लेकिन कड़ा , पहरा तो था</p>
<p></p>
<p>हाँ ! सियासत में , वो बन्दा , था बहुत कमतर "अजय" <br></br> ख़ासियत थी इस मगर , कैसा भी था , बहरा तो था</p>
<p></p>
<p>उम्र भर , इस फ़िक्र में , डूबा रहा मैं ,…</p>
<p>बस न पाया , क्या हुआ , कुछ वक़्त वो , ठहरा तो था <br/> वो था मेरा , जितना भी था , जैसा भी था , मेरा तो था</p>
<p></p>
<p>साथ उसके हाथ का , मुझको न मिल पाया कभी <br/> मेरे दिल में उम्र भर , उसका मगर , चेहरा तो था</p>
<p></p>
<p>आँसुओं की , आँख में मेरे , खड़ी इक भीड़ थी <br/> बंद पलकों का लगा , लेकिन कड़ा , पहरा तो था</p>
<p></p>
<p>हाँ ! सियासत में , वो बन्दा , था बहुत कमतर "अजय" <br/> ख़ासियत थी इस मगर , कैसा भी था , बहरा तो था</p>
<p></p>
<p>उम्र भर , इस फ़िक्र में , डूबा रहा मैं , मुंतज़िर <br/> दरिया मेरे एहसास का , उसके लिए गहरा तो था ?</p>
<p></p>
<p></p>
<p>अजय कुमार शर्मा <br/> प्रथम , मौलिक व अप्रकाशित</p>क़द बढ़े लेकिन, वो बौरे हो गए.........tag:openbooks.ning.com,2014-01-07:5170231:BlogPost:4974262014-01-07T17:30:00.000Zajay sharmahttp://openbooks.ning.com/profile/ajaysharma234
<p>जब कभी भी भोर के मालिक अँधेरे हो गए <br></br> क़ाफ़िलें लुटते रहे , रहबर लुटेरे हो गए</p>
<p></p>
<p>कुछ हुयी इंसान में भी इस तरह तब्दीलियाँ <br></br> क़द बढ़े लेकिन , वो बौरे हो गए</p>
<p></p>
<p>हो गयी खुशबू ज़हर इस दौर में <br></br> बाग़ में , साँपों के डेरे हो गए</p>
<p></p>
<p>ग़र बँटी धरती कहाँ तेरा चमन रह जायेगा <br></br> भूल है तेरी अलग तेरे बसेरे हो गए</p>
<p></p>
<p>झूठ तो देखो इधर किस क़दर धनवान है <br></br> और उधर नीलाम सच के घर बसेरे हो गए <br></br> <br></br> आदमी डरता था पहले , रात में ही "अजय" …<br></br></p>
<p>जब कभी भी भोर के मालिक अँधेरे हो गए <br/> क़ाफ़िलें लुटते रहे , रहबर लुटेरे हो गए</p>
<p></p>
<p>कुछ हुयी इंसान में भी इस तरह तब्दीलियाँ <br/> क़द बढ़े लेकिन , वो बौरे हो गए</p>
<p></p>
<p>हो गयी खुशबू ज़हर इस दौर में <br/> बाग़ में , साँपों के डेरे हो गए</p>
<p></p>
<p>ग़र बँटी धरती कहाँ तेरा चमन रह जायेगा <br/> भूल है तेरी अलग तेरे बसेरे हो गए</p>
<p></p>
<p>झूठ तो देखो इधर किस क़दर धनवान है <br/> और उधर नीलाम सच के घर बसेरे हो गए <br/> <br/> आदमी डरता था पहले , रात में ही "अजय" <br/> सोचिये कितने भयानक अब सबेरे हो गए</p>
<p>अजय कुमार शर्मा <br/> मौलिक और प्रकाशित</p>उसे डरा सकी न मौत, वो कभी मरा नहीं.tag:openbooks.ning.com,2014-01-03:5170231:BlogPost:4958692014-01-03T18:30:00.000Zajay sharmahttp://openbooks.ning.com/profile/ajaysharma234
<p>जो ज़िंदगी का भी समर , जीत कर रुका नहीं <br></br> उसे डरा सकी न मौत , वो कभी मरा नहीं</p>
<p>(१)<br></br> जो ज़िंदगी जिया कि <br></br> जैसे हो किराए का मकान <br></br> रहा तैयार हर समय <br></br> जो साँस का लिए सामान <br></br> सुखों की कोई चाह नहीं <br></br> दुखों में कोई आह नहीं <br></br> डगर डगर मिली थकन वो , मगर कभी थका नहीं <br></br> उसे डरा सकी न मौत , वो कभी मरा नहीं <br></br> (२)<br></br> जो चल दिया तो चल दिया <br></br> जिसे नहीं सबर है कुछ<br></br> नदी है क्या पहाड़ क्या , <br></br> नहीं जिसे ख़बर है कुछ<br></br> जो नींद से बिका नहीं <br></br> थकन…</p>
<p>जो ज़िंदगी का भी समर , जीत कर रुका नहीं <br/> उसे डरा सकी न मौत , वो कभी मरा नहीं</p>
<p>(१)<br/> जो ज़िंदगी जिया कि <br/> जैसे हो किराए का मकान <br/> रहा तैयार हर समय <br/> जो साँस का लिए सामान <br/> सुखों की कोई चाह नहीं <br/> दुखों में कोई आह नहीं <br/> डगर डगर मिली थकन वो , मगर कभी थका नहीं <br/> उसे डरा सकी न मौत , वो कभी मरा नहीं <br/> (२)<br/> जो चल दिया तो चल दिया <br/> जिसे नहीं सबर है कुछ<br/> नदी है क्या पहाड़ क्या , <br/> नहीं जिसे ख़बर है कुछ<br/> जो नींद से बिका नहीं <br/> थकन में जो टिका नहीं <br/> रूकावटों की भीड़ में , कभी कहीं रूका नहीं <br/> उसे डरा सकी न मौत , वो कभी मरा नहीं<br/> (३)<br/> जिसे सफ़र में हम-सफ़र <br/> की तलाश है नहीं <br/> जिसे नहीं है , फ़िक्र <br/> कोई मेरे साथ है नहीं <br/> जो प्रीति में रुंधा नहीं <br/> जो रीति से बँधा नहीं <br/> जो गीत गाता चल दिया , कभी कहीं रूका नहीं <br/> उसे डरा सकी न मौत , वो कभी मरा नहीं<br/> (४)<br/> ह्रदय में क्रांति है भरी ,<br/> परंतु प्रेम प्रान है <br/> मंज़िलें हैं हाथ में , <br/> मगर क़दम जहान है <br/> अहम का जो सगा नहीं <br/> सुपथ से जो डिगा नहीं <br/> जो सिर्फ़ जीत के लिए , दौड़ में टिका नहीं <br/> उसे डरा सकी न मौत वो कभी मरा नहीं<br/> (५)<br/> मंज़िलें हैं दूर , रात का <br/> सफ़र धुआँ सा है <br/> ये ज़िंदगी है इक समर <br/> नहीं कोई जुआँ सा है <br/> कभी भी आँख नम न हो<br/> स्वम कभी विषम ना हो <br/> भोर की इक माँग पर , जो जला किया रूका नहीं <br/> उसे डरा सकी न मौत वो कभी मरा नहीं </p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p>प्रस्तुति मौलिक व अप्रकाशित <br/> अजय कुमार शर्मा</p>आँसू के रंग , तेरे - मेरे , अलग अलग है क्याtag:openbooks.ning.com,2013-12-30:5170231:BlogPost:4946042013-12-30T19:30:00.000Zajay sharmahttp://openbooks.ning.com/profile/ajaysharma234
<p>इन आँखो में , पलते सपने , तेरे - मेरे , अलग अलग हैं क्या <br></br> दुनिया सबकी ,फिर अपने , तेरे - मेरे , अलग अलग हैं क्या</p>
<p></p>
<p>खुशी , प्यार , अपनापन , और सुक़ून की चाह बराबर <br></br> अपनो से तक़रार और फिर मनुहार भरी इक आह बराबर <br></br> हंसता है जब - जब तू , जिन जिन बातों पे हंसता हूँ मैं भी <br></br> तूँ रोए जबभी , तो मैं भी रो दूँ ,<br></br> आँसू के रंग , तेरे - मेरे , अलग अलग है क्या</p>
<p></p>
<p>तू पत्थर को तोड़ें या मैं फिरूउँ तराशता संगमरमर को <br></br> मैं क़लम से तोड़ूं तलवारें , या तू जीत ले…</p>
<p>इन आँखो में , पलते सपने , तेरे - मेरे , अलग अलग हैं क्या <br/> दुनिया सबकी ,फिर अपने , तेरे - मेरे , अलग अलग हैं क्या</p>
<p></p>
<p>खुशी , प्यार , अपनापन , और सुक़ून की चाह बराबर <br/> अपनो से तक़रार और फिर मनुहार भरी इक आह बराबर <br/> हंसता है जब - जब तू , जिन जिन बातों पे हंसता हूँ मैं भी <br/> तूँ रोए जबभी , तो मैं भी रो दूँ ,<br/> आँसू के रंग , तेरे - मेरे , अलग अलग है क्या</p>
<p></p>
<p>तू पत्थर को तोड़ें या मैं फिरूउँ तराशता संगमरमर को <br/> मैं क़लम से तोड़ूं तलवारें , या तू जीत ले कोई समर को <br/> काटता है रातें सियाह तू , तो धूप में तपता हूँ मैं भी <br/> तू बोए धरती , तो मैं भी सींचू ,<br/> प्रश्नों के हल , तेरे-मेरे , अलग अलग है क्या</p>
<p></p>
<p>इस दुनिया के हमने तुमने , कितने ही टुकड़े कर डाले <br/> अब क्या रोने से होता जब , ज़ख़्म बने इस तन के छाले <br/> जानता है तू , ग़लतियाँ इक तरफ़ा ना थी , मानता हूँ मैं भी <br/> तू खोजे मुस्तकबिल , तो मैं भी चलूं ,<br/> माझी के गम तेरे- मेरे , अलग अलग हैं क्या</p>
<p></p>
<p></p>
<p>प्रस्तुति , मौलिक व अप्रकाशित <br/> द्वारा अजय कुमार शर्मा</p>क्या हो अगर शख़्स वो भगवान हो जाएtag:openbooks.ning.com,2013-12-26:5170231:BlogPost:4926102013-12-26T18:00:00.000Zajay sharmahttp://openbooks.ning.com/profile/ajaysharma234
<p><span>वो भी इक , अगर बे-ईमान हो जाए </span><br></br> <span>ये बस्ती उम्मीद की , वीरान हो जाए</span><br></br> <br></br> <span>इबादतगाह बन जाए , ये दुनिया सारी </span><br></br> <span>हर इक आदमी अगर इंसान हो जाए</span><br></br> <br></br> <span>झुग्गियों की क़िस्मत भी जगमगा उठे </span><br></br> <span>इक खिड़की भी अगर , रोशनदान हो जाए </span><br></br> <br></br> <span>फ़िज़ायों में इबादतपसंद है , कोई ज़रूर </span><span class="text_exposed_show"><br></br> वरना ऐसे ही नहीं , कोई अज़ान हो जाए<br></br> <br></br> साल-ये-नौ पर , दुआ है मेरी , ये…</span></p>
<p><span>वो भी इक , अगर बे-ईमान हो जाए </span><br/> <span>ये बस्ती उम्मीद की , वीरान हो जाए</span><br/> <br/> <span>इबादतगाह बन जाए , ये दुनिया सारी </span><br/> <span>हर इक आदमी अगर इंसान हो जाए</span><br/> <br/> <span>झुग्गियों की क़िस्मत भी जगमगा उठे </span><br/> <span>इक खिड़की भी अगर , रोशनदान हो जाए </span><br/> <br/> <span>फ़िज़ायों में इबादतपसंद है , कोई ज़रूर </span><span class="text_exposed_show"><br/> वरना ऐसे ही नहीं , कोई अज़ान हो जाए<br/> <br/> साल-ये-नौ पर , दुआ है मेरी , ये दोस्त <br/> तेरी ख्वाहिशों को , अता आसमान हो जाए <br/> <br/> वे मुंतज़िर हैं, ज़ंहूरियत में भी "अजय" <br/> कब सियासत , इक खानदान हो जाए <br/> <br/> उसने कर रखे हैं चराग़ रोशन ख़ून से अपने <br/> क्या हो , अगर शख़्स वो , भगवान हो जाए <br/> <br/> मौलिक व अप्रकाशित <br/> अजय कुमार शर्मा</span></p>आज मौन उपवास रहा है ..........tag:openbooks.ning.com,2013-12-25:5170231:BlogPost:4920522013-12-25T17:30:00.000Zajay sharmahttp://openbooks.ning.com/profile/ajaysharma234
<p>अब तक तेरे पास रहा है <br/> नतीज़तन वो ख़ास रहा है <br/> <br/> हिचकी , हिचकी केवल हिचकी <br/> वोआज मौन उपवास रहा है <br/> <br/> छुयन का उसकी असर ये देखो <br/> पतझड़ में मधुमास रहा है</p>
<p></p>
<p>मेरा ख्वाब है उसके दिल में <br/> मुझको ये अहसास रहा है</p>
<p></p>
<p>कभी है गहना हया ये उसकी <br/> कभी "अजय" लिबास रहा है</p>
<p></p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित <br/> अजय कुमार शर्मा</p>
<p>अब तक तेरे पास रहा है <br/> नतीज़तन वो ख़ास रहा है <br/> <br/> हिचकी , हिचकी केवल हिचकी <br/> वोआज मौन उपवास रहा है <br/> <br/> छुयन का उसकी असर ये देखो <br/> पतझड़ में मधुमास रहा है</p>
<p></p>
<p>मेरा ख्वाब है उसके दिल में <br/> मुझको ये अहसास रहा है</p>
<p></p>
<p>कभी है गहना हया ये उसकी <br/> कभी "अजय" लिबास रहा है</p>
<p></p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित <br/> अजय कुमार शर्मा</p>मुझसे मोहब्बत ये ज़माने से छुपाते होtag:openbooks.ning.com,2013-12-19:5170231:BlogPost:4892842013-12-19T17:54:51.000Zajay sharmahttp://openbooks.ning.com/profile/ajaysharma234
<p>ख्वाबों में मेरे आकर खुद ही तो बताते हो <br></br>है मुझसे मोहब्बत ये ज़माने से छुपाते हो</p>
<p></p>
<p>बढ़ जाती है क्यूँ धड़कन कभी दिल से ये पूछा है <br></br>रुक जाते हो क्यूँ मिलकर कभी दिल से ये सोचा है<br></br>फिर भी मेरा ये इश्क क्यूँ किताबी बताते हो</p>
<p></p>
<p></p>
<p>ये दिल का मसअला है , दिल से ही ये सुलझेगा<br></br>ज़ज़्बात की बातों से , ये और भी उलझेगा <br></br>उलफत भी है मुझसे और मुझको ही सताते हो</p>
<p></p>
<p></p>
<p>महफ़िल में हज़ारों की , तन्हाई में रहते हो<br></br>कहते हो नही फिर भी क्या-क्या…</p>
<p>ख्वाबों में मेरे आकर खुद ही तो बताते हो <br/>है मुझसे मोहब्बत ये ज़माने से छुपाते हो</p>
<p></p>
<p>बढ़ जाती है क्यूँ धड़कन कभी दिल से ये पूछा है <br/>रुक जाते हो क्यूँ मिलकर कभी दिल से ये सोचा है<br/>फिर भी मेरा ये इश्क क्यूँ किताबी बताते हो</p>
<p></p>
<p></p>
<p>ये दिल का मसअला है , दिल से ही ये सुलझेगा<br/>ज़ज़्बात की बातों से , ये और भी उलझेगा <br/>उलफत भी है मुझसे और मुझको ही सताते हो</p>
<p></p>
<p></p>
<p>महफ़िल में हज़ारों की , तन्हाई में रहते हो<br/>कहते हो नही फिर भी क्या-क्या नहीं कहते हो <br/>करते हो सितम खुद पे मुझको भी रुलाते हो</p>
<p></p>
<p></p>
<p>शायद पढ़ा है तुमने मेरे ख़त को अकेले में <br/>खोए हो तभी देखो तुम ख्वाबों के मेले में <br/>है "इश्क" यही जिसको तुम मुझसे छुपाते हो</p>
<p><br/>अमुद्रित एवं अप्रकाशित</p>
<p></p>साँसें लम्हों का क़र्ज़ मुझे बाँटती रहीं ......tag:openbooks.ning.com,2013-12-13:5170231:BlogPost:4864252013-12-13T17:04:28.000Zajay sharmahttp://openbooks.ning.com/profile/ajaysharma234
<p><span class="font-size-2">साँसें लम्हों का क़र्ज़ मुझे बाँटती रहीं</span> <br></br><span class="font-size-2">ज़ख़्मों पे ख्वाहिशों के दर्द टाँकती रहीं</span></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-2">सोचा था कोशिशों को मिलेगी तो कहीं छाँव</span> <br></br><span class="font-size-2">क़िस्मत की मुठ्थियाँ ये जलन बाँटती रहीं</span></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-2">बच्चों की तरह बिल्कुल मिट्टी की स्लेट पर</span><br></br><span class="font-size-2">हाथों की लकीरें भी वक़्त काटती…</span></p>
<p><span class="font-size-2">साँसें लम्हों का क़र्ज़ मुझे बाँटती रहीं</span> <br/><span class="font-size-2">ज़ख़्मों पे ख्वाहिशों के दर्द टाँकती रहीं</span></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-2">सोचा था कोशिशों को मिलेगी तो कहीं छाँव</span> <br/><span class="font-size-2">क़िस्मत की मुठ्थियाँ ये जलन बाँटती रहीं</span></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-2">बच्चों की तरह बिल्कुल मिट्टी की स्लेट पर</span><br/><span class="font-size-2">हाथों की लकीरें भी वक़्त काटती रहीं</span></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-2">कहने को हम सफ़र थीं साँसें मेरी "अजय"</span> <br/><span class="font-size-2">चलने को दो क़दम भी मगर हाँफती रहीं</span></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-2">सोया सफ़र में कितना , मैं जागा नहीं ख़बर</span> <br/><span class="font-size-2">मेरी नींदें ख़्वाब में भी सफ़र नापती रहीं</span></p>
<p></p>
<p><br/><span class="font-size-2">मौलिक एवं अप्रकाशित</span> <br/><span class="font-size-2">अजय कुमार शर्मा</span></p>थकन जो बाँट ले वो खंडहर हूँ मैं...............tag:openbooks.ning.com,2013-12-13:5170231:BlogPost:4864222013-12-13T16:00:00.000Zajay sharmahttp://openbooks.ning.com/profile/ajaysharma234
<p>ग़म ए दौरा से बेख़बर हूँ मैं <br/> निरंतर बह रहा हूँ समंदर हूँ मैं</p>
<p></p>
<p>सफ़र का बोझ उठाए हुए परिंदों की <br/> थकन जो बाँट ले वो खंडहर हूँ मैं</p>
<p></p>
<p>ले ले इम्तहाँ मेरा कोई तूफ़ा भी अगर चाहे <br/> ज़ॅमी पे सब्र की ज़िद का इक घर हूँ मैं</p>
<p></p>
<p>गमों के काफिलों की राह मैं "अजय" <br/> उम्मीद का इक पत्थर हूँ मैं</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
<p>ग़म ए दौरा से बेख़बर हूँ मैं <br/> निरंतर बह रहा हूँ समंदर हूँ मैं</p>
<p></p>
<p>सफ़र का बोझ उठाए हुए परिंदों की <br/> थकन जो बाँट ले वो खंडहर हूँ मैं</p>
<p></p>
<p>ले ले इम्तहाँ मेरा कोई तूफ़ा भी अगर चाहे <br/> ज़ॅमी पे सब्र की ज़िद का इक घर हूँ मैं</p>
<p></p>
<p>गमों के काफिलों की राह मैं "अजय" <br/> उम्मीद का इक पत्थर हूँ मैं</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>