Abid ali mansoori's Posts - Open Books Online2024-03-29T06:31:09ZAbid ali mansoorihttp://openbooks.ning.com/profile/Abidalimansoorihttp://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2991278574?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1http://openbooks.ning.com/profiles/blog/feed?user=18nqp2vjwvulu&xn_auth=noअजनबी की तरह (नज़्म) // आबिद अली मंसूरी!tag:openbooks.ning.com,2016-11-09:5170231:BlogPost:8128312016-11-09T16:55:48.000ZAbid ali mansoorihttp://openbooks.ning.com/profile/Abidalimansoori
<p><span>जब चले थे कभी </span></p>
<div>हम <div>अनजान राहों पर..<div>एक दूसरे के साथ</div>
<div>हमसफ़र बनकर,</div>
<div>कितनी कशिश थी</div>
<div>मुहब्बत की..</div>
<div>उस</div>
<div>पहली मुलाकात में,</div>
<div>चलो..! फिर चलें हम</div>
<div>आज</div>
<div>उसी मुकाम पर</div>
<div>जहां मिले थे कभी..</div>
<div>हम</div>
<div>अजनबी की तरह!</div>
</div>
</div>
<div>===========</div>
<div><i><b>(मौलिक व अप्रकाशित)</b></i></div>
<div><b>___ </b><i><font size="4">आबिद अली मंसूरी!</font></i></div>
<p><span>जब चले थे कभी </span></p>
<div>हम <div>अनजान राहों पर..<div>एक दूसरे के साथ</div>
<div>हमसफ़र बनकर,</div>
<div>कितनी कशिश थी</div>
<div>मुहब्बत की..</div>
<div>उस</div>
<div>पहली मुलाकात में,</div>
<div>चलो..! फिर चलें हम</div>
<div>आज</div>
<div>उसी मुकाम पर</div>
<div>जहां मिले थे कभी..</div>
<div>हम</div>
<div>अजनबी की तरह!</div>
</div>
</div>
<div>===========</div>
<div><i><b>(मौलिक व अप्रकाशित)</b></i></div>
<div><b>___ </b><i><font size="4">आबिद अली मंसूरी!</font></i></div>जैसी तुम हो मॉंं // आबिद अली मंसूरी!tag:openbooks.ning.com,2015-11-05:5170231:BlogPost:7132022015-11-05T15:30:00.000ZAbid ali mansoorihttp://openbooks.ning.com/profile/Abidalimansoori
<p><span>तुमसे ही तो है</span></p>
<div>यह जीवन मेरा</div>
<div>तुम्हारी ही अमानत है</div>
<div>हर सांस मेरी</div>
<div>कर्ज़दार है</div>
<div>तुम्हारी ममता की</div>
<div>आत्मा हो तुम मेरी</div>
<div>तुमसे ही</div>
<div>संसार है मॉंं........</div>
<div>क्या लिखूं</div>
<div>मैं इससे आगे</div>
<div>असमर्थ हूं</div>
<div>एक मैं ही क्या</div>
<div>यह</div>
<div>सारा संसार भी</div>
<div>मॉं की ब्याख्या</div>
<div>नहीं कर सकता</div>
<div>क्योंकि मॉंं..</div>
<div>मॉंं होती है</div>
<div>जैसी, तुम हो…</div>
<p><span>तुमसे ही तो है</span></p>
<div>यह जीवन मेरा</div>
<div>तुम्हारी ही अमानत है</div>
<div>हर सांस मेरी</div>
<div>कर्ज़दार है</div>
<div>तुम्हारी ममता की</div>
<div>आत्मा हो तुम मेरी</div>
<div>तुमसे ही</div>
<div>संसार है मॉंं........</div>
<div>क्या लिखूं</div>
<div>मैं इससे आगे</div>
<div>असमर्थ हूं</div>
<div>एक मैं ही क्या</div>
<div>यह</div>
<div>सारा संसार भी</div>
<div>मॉं की ब्याख्या</div>
<div>नहीं कर सकता</div>
<div>क्योंकि मॉंं..</div>
<div>मॉंं होती है</div>
<div>जैसी, तुम हो मॉंं..!!</div>
<div>--------------------------------------</div>
<div>--------------<b><i>आबिद अली मंसूरी!</i></b></div>
<div><b>(<i>मौलिक व अप्रकाशित)</i></b></div>जीवन पथ पर..//गीत!tag:openbooks.ning.com,2015-11-05:5170231:BlogPost:7130752015-11-05T07:53:15.000ZAbid ali mansoorihttp://openbooks.ning.com/profile/Abidalimansoori
जीवन पथ पर चारो ओर फैला हुआ बस प्यार हो<br />
आशाओँ का हमारी ऐसा एक संसार हो!<br />
-<br />
जाति-धर्म का न भेदभाव जहां हो<br />
मानवता का बस बर्ताव वहां हो,<br />
रहेँ हम सब मिलकर ऐसा एक घर-बार हो<br />
...आशाओँ का हमारी ऐसा एक संसार हो!<br />
-<br />
स्वयं को समझेँगे जब एक समान<br />
तभी बनेँगे हिन्दु,मुस्लिम,सिक्ख महान,<br />
सब धर्मोँ की लागी एक कतार हो<br />
...आशाओँ का हमारी ऐसा एक संसार हो!<br />
-<br />
जहां प्रेम हो पूजा, प्रेम जीवन हो<br />
तन,मन,धन सब इसे अर्पण होँ,<br />
सत्य,अहिँसा और प्रेम जीवन का आधार हो<br />
...आशाओँ का हमारी ऐसा एक संसार हो!<br />
-<br />
पग बढ़ाकर हम सब मिलकर एक साथ…
जीवन पथ पर चारो ओर फैला हुआ बस प्यार हो<br />
आशाओँ का हमारी ऐसा एक संसार हो!<br />
-<br />
जाति-धर्म का न भेदभाव जहां हो<br />
मानवता का बस बर्ताव वहां हो,<br />
रहेँ हम सब मिलकर ऐसा एक घर-बार हो<br />
...आशाओँ का हमारी ऐसा एक संसार हो!<br />
-<br />
स्वयं को समझेँगे जब एक समान<br />
तभी बनेँगे हिन्दु,मुस्लिम,सिक्ख महान,<br />
सब धर्मोँ की लागी एक कतार हो<br />
...आशाओँ का हमारी ऐसा एक संसार हो!<br />
-<br />
जहां प्रेम हो पूजा, प्रेम जीवन हो<br />
तन,मन,धन सब इसे अर्पण होँ,<br />
सत्य,अहिँसा और प्रेम जीवन का आधार हो<br />
...आशाओँ का हमारी ऐसा एक संसार हो!<br />
-<br />
पग बढ़ाकर हम सब मिलकर एक साथ चलेँ<br />
मानवता का हर पथ पर हम नाम लिखेँ,<br />
स्वपन हमारी आशाओँ का ऐसे अब साकार हो<br />
...आशाओँ का हमारी ऐसा एक संसार हो!!<br />
-----<br />
<br />
(मौलिक व अप्रकाशित)<br />
<br />
......... आबिद अली मंसूरी!आलोचना के स्वर // आबिद अली मंसूरी!tag:openbooks.ning.com,2015-11-03:5170231:BlogPost:7128182015-11-03T15:00:00.000ZAbid ali mansoorihttp://openbooks.ning.com/profile/Abidalimansoori
<p></p>
<p><span>कौन सुनता है</span></p>
<div>कौन सुनना चाहता है</div>
<div>किसे पसन्द है आलोचना अपनी</div>
<div>एक कड़वा सच</div>
<div>छिपा होता है</div>
<div>आलोचना के शब्दों में</div>
<div>जिसे</div>
<div>नहीं चहते हम</div>
<div>स्वीकार करना,</div>
<div>जानते हैं</div>
<div>अपने अन्दर फ़ैले</div>
<div>खरपतवारों को सभी</div>
<div>पर नहीं चाहते</div>
<div>उखाड़ना</div>
<div>उनकी जड़ों को,</div>
<div>कभी-कभी</div>
<div>अकारण ही</div>
<div>करना पड़ता है</div>
<div>सामना</div>
<div>आलोचनाओं के बबंडर…</div>
<p></p>
<p><span>कौन सुनता है</span></p>
<div>कौन सुनना चाहता है</div>
<div>किसे पसन्द है आलोचना अपनी</div>
<div>एक कड़वा सच</div>
<div>छिपा होता है</div>
<div>आलोचना के शब्दों में</div>
<div>जिसे</div>
<div>नहीं चहते हम</div>
<div>स्वीकार करना,</div>
<div>जानते हैं</div>
<div>अपने अन्दर फ़ैले</div>
<div>खरपतवारों को सभी</div>
<div>पर नहीं चाहते</div>
<div>उखाड़ना</div>
<div>उनकी जड़ों को,</div>
<div>कभी-कभी</div>
<div>अकारण ही</div>
<div>करना पड़ता है</div>
<div>सामना</div>
<div>आलोचनाओं के बबंडर का</div>
<div>यह मानसिकता</div>
<div>होती है</div>
<div>कुछ लोगों की</div>
<div>अच्छे को</div>
<div>बुरा कहने की,</div>
<div>भटक जाते हैं</div>
<div>उद्देश्य से अपने</div>
<div>और</div>
<div>टेक देते हैं घुटने</div>
<div>हम</div>
<div>उनके आगे</div>
<div>जैसा</div>
<div>कुछ लोग चाहते हैं,</div>
<div>कड़वे होते हैं</div>
<div>मिठास नहीं होती</div>
<div>इनमें</div>
<div>मिश्री सी</div>
<div>जीवन में निरंतर</div>
<div>आगे बढ़ने</div>
<div>और अच्छा बनने की</div>
<div>सीख देते हैं</div>
<div>हमें</div>
<div>कितने प्रेरक</div>
<div>और सार्थक होते हैं</div>
<div>आलोचना के स्वर !</div>
<div><b>.............. आबिद अली मंसूरी,</b></div>
<div><b> </b></div>
<div><b>( मौलिक एवं अप्रकाशित )</b></div>क्या मैं..आकाश नहीँ छू सकती?tag:openbooks.ning.com,2013-06-12:5170231:BlogPost:3774822013-06-12T08:31:41.000ZAbid ali mansoorihttp://openbooks.ning.com/profile/Abidalimansoori
जब तक कि रुक नहीँ जाता<br />
बेटियोँ के संग<br />
भेदभाव का सिलसिला<br />
मैँ पूंछती हूं..मैँ पूंछूंगी और पूंछती ही रहूंगी,<br />
मैँ एक बेटी हूं<br />
क्या बेटी होना कोई गुनाह है?<br />
क्या मैँ माँ-बाप की<br />
आशाओँ को<br />
पूरा नही कर सकती?<br />
क्या मैँ उनकी कसौटी पर<br />
खरा नहीँ उतर सकती?<br />
क्या मैँ वह नहीँ कर सकती..<br />
जो एक बेटा करता है<br />
माँ-बाप,भाई,बहन<br />
और समाज के लिए?<br />
क्या मैँ अपनी मेहनत से<br />
इस बंजर जमीन को<br />
हरा भरा नहीँ कर सकती?<br />
क्या मैँ<br />
किसी के जीवन मेँ<br />
प्यार के रंग नहीँ भर सकती?<br />
क्योँ बेटी को आज भी<br />
बेटे के बराबर<br />
नहीँ समझा जाता?<br />
क्योँ आधुनिकता…
जब तक कि रुक नहीँ जाता<br />
बेटियोँ के संग<br />
भेदभाव का सिलसिला<br />
मैँ पूंछती हूं..मैँ पूंछूंगी और पूंछती ही रहूंगी,<br />
मैँ एक बेटी हूं<br />
क्या बेटी होना कोई गुनाह है?<br />
क्या मैँ माँ-बाप की<br />
आशाओँ को<br />
पूरा नही कर सकती?<br />
क्या मैँ उनकी कसौटी पर<br />
खरा नहीँ उतर सकती?<br />
क्या मैँ वह नहीँ कर सकती..<br />
जो एक बेटा करता है<br />
माँ-बाप,भाई,बहन<br />
और समाज के लिए?<br />
क्या मैँ अपनी मेहनत से<br />
इस बंजर जमीन को<br />
हरा भरा नहीँ कर सकती?<br />
क्या मैँ<br />
किसी के जीवन मेँ<br />
प्यार के रंग नहीँ भर सकती?<br />
क्योँ बेटी को आज भी<br />
बेटे के बराबर<br />
नहीँ समझा जाता?<br />
क्योँ आधुनिकता के<br />
इस युग मेँ<br />
एक बेटी को<br />
मार दिया जाता है<br />
जन्म से पहले ही बोझ समझकर?<br />
मैँ फिर पूंछती हूं एक बार<br />
क्या मैँ....आकाश नहीँ छू सकती?<br />
¤¤¤¤¤¤<br />
(मौलिक व अप्रकाशिता)<br />
<br />
_आबिद अली मंसूरीअक्स तेरा..//आबिद अली मंसूरी!tag:openbooks.ning.com,2013-06-08:5170231:BlogPost:3746182013-06-08T09:45:06.000ZAbid ali mansoorihttp://openbooks.ning.com/profile/Abidalimansoori
यह दिलकशी का आलम<br />
यह ख़्यालोँ की अंजुमन,<br />
हमसफर बन गयी हैँ जैसे<br />
हिज़्र की तन्हाइयां..<br />
हसरतोँ की आगोश मेँ<br />
ली हैँ धड़कनोँ ने<br />
फिर<br />
अंगड़ाइयाँ चाहत की..<br />
फूलोँ मेँ निहित खुश्बू की तरह<br />
एक नयी सहर की आस लिए<br />
आँखोँ मेँ उतर आया है जैसे<br />
झिलमिल-झिलमिल<br />
अक्स तेरा..!<br />
>¤<>¤<>¤<>¤<>¤<<br /> (मौलिक व अप्रकाशित)<br />
----->_आबिद अली मंसूरी
यह दिलकशी का आलम<br />
यह ख़्यालोँ की अंजुमन,<br />
हमसफर बन गयी हैँ जैसे<br />
हिज़्र की तन्हाइयां..<br />
हसरतोँ की आगोश मेँ<br />
ली हैँ धड़कनोँ ने<br />
फिर<br />
अंगड़ाइयाँ चाहत की..<br />
फूलोँ मेँ निहित खुश्बू की तरह<br />
एक नयी सहर की आस लिए<br />
आँखोँ मेँ उतर आया है जैसे<br />
झिलमिल-झिलमिल<br />
अक्स तेरा..!<br />
>¤<>¤<>¤<>¤<>¤<<br /> (मौलिक व अप्रकाशित)<br />
----->_आबिद अली मंसूरीतेरे इन्तेज़ार का मौसम!tag:openbooks.ning.com,2013-06-07:5170231:BlogPost:3737052013-06-07T05:30:00.000ZAbid ali mansoorihttp://openbooks.ning.com/profile/Abidalimansoori
<p>सजी हैँ ख़्वाब बनकर<br/> जुगनुओँ की तरह<br/> मासूम हसरतेँ दिल की<br/> हिज़्र की पलकोँ पर...</p>
<p><br/> यह टीसती हवायेँ<br/> यह लम्होँ की तल्खियां<br/> मचलने लगी है<br/> हर तमन्ना<br/> वक्त की आगोश मेँ..</p>
<p></p>
<p>मुन्तज़िर है आज भी दिल<br/> किसी मख़्सूस सी<br/> आहट के लिए..</p>
<p><br/> यह मंज़र यह फ़िज़ायेँ<br/> यह प्यार का मौसम<br/> कितना है हसीँ<br/> तेरे इन्तेज़ार का मौसम..!</p>
<p>*******************************</p>
<p></p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित)<br/> ___आबिद अली मंसूरी</p>
<p>सजी हैँ ख़्वाब बनकर<br/> जुगनुओँ की तरह<br/> मासूम हसरतेँ दिल की<br/> हिज़्र की पलकोँ पर...</p>
<p><br/> यह टीसती हवायेँ<br/> यह लम्होँ की तल्खियां<br/> मचलने लगी है<br/> हर तमन्ना<br/> वक्त की आगोश मेँ..</p>
<p></p>
<p>मुन्तज़िर है आज भी दिल<br/> किसी मख़्सूस सी<br/> आहट के लिए..</p>
<p><br/> यह मंज़र यह फ़िज़ायेँ<br/> यह प्यार का मौसम<br/> कितना है हसीँ<br/> तेरे इन्तेज़ार का मौसम..!</p>
<p>*******************************</p>
<p></p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित)<br/> ___आबिद अली मंसूरी</p>ग़ज़ल// कोई मौसम नहीँ होता!tag:openbooks.ning.com,2013-06-06:5170231:BlogPost:3731952013-06-06T06:00:00.000ZAbid ali mansoorihttp://openbooks.ning.com/profile/Abidalimansoori
<p>किसी की याद आने का,कोई मौसम नहीँ होता,<br></br> अश्क फुरकत मेँ बहाने का,कोई मौसम नहीँ होता!</p>
<p><br></br> कौन जाने कब वफा से,बेवफा हो जाये को</p>
<p><span style="font-size: 13px;">फ़रेब इश्क मेँ खाने का,कोई मौसम नहीँ होता!</span></p>
<p></p>
<p></p>
<p>राहे उल्फ़त मेँ देखा है,हमने आसियां बनाकर,<br></br> दिल पे चोट खाने का,कोई मौसम नहीँ होता!</p>
<p></p>
<p>उम्र भर का निभाई साथ कोई,यह ज़रुरी तो नहीँ,<br></br> पल मेँ बिछड़ जाने का,कोई मौसम नहीँ होता!</p>
<p></p>
<p>अजनबी सी राहोँ मेँ हमसफर मिल जाते…</p>
<p>किसी की याद आने का,कोई मौसम नहीँ होता,<br/> अश्क फुरकत मेँ बहाने का,कोई मौसम नहीँ होता!</p>
<p><br/> कौन जाने कब वफा से,बेवफा हो जाये को</p>
<p><span style="font-size: 13px;">फ़रेब इश्क मेँ खाने का,कोई मौसम नहीँ होता!</span></p>
<p></p>
<p></p>
<p>राहे उल्फ़त मेँ देखा है,हमने आसियां बनाकर,<br/> दिल पे चोट खाने का,कोई मौसम नहीँ होता!</p>
<p></p>
<p>उम्र भर का निभाई साथ कोई,यह ज़रुरी तो नहीँ,<br/> पल मेँ बिछड़ जाने का,कोई मौसम नहीँ होता!</p>
<p></p>
<p>अजनबी सी राहोँ मेँ हमसफर मिल जाते हैँ,<br/> किसी को अपना बनाने का,कोई मौसम नहीँ होता!</p>
<p></p>
<p>भूलकर गिले शिकवे चलो मोहब्बत को आम करेँ,<br/> चिराग उल्फ़त के जलाने का,कोई मौसम नहीँ होता!</p>
<p></p>
<p>हो ही जाती है मोहब्बत,राहोँ मेँ ज़िँदगी की,,<br/> किसी को चाहने का 'आबिद' कोई मौसम नहीँ होता!!</p>
<p></p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित)<br/> ___आबिद अली मंसूरी</p>बिन तेरे//आबिद अली मंसूरीtag:openbooks.ning.com,2013-06-05:5170231:BlogPost:3723942013-06-05T04:24:31.000ZAbid ali mansoorihttp://openbooks.ning.com/profile/Abidalimansoori
कितने तल्ख हैँ लम्हे<br />
तेरे प्यार के वगैर<br />
यह ग़म की आंधियां<br />
यह तीरगी के साये<br />
जैसे कोई ख़लिश<br />
हो हवाओँ मेँ..<br />
डसती हैँ मुझको पल-पल<br />
पुरवाइयां<br />
तेरी यादोँ की<br />
बे रंग सी लगती है<br />
ज़िंदगी अब तो<br />
कुछ भी तो नहीँ जैसे<br />
इन फिज़ाओँ मेँ...बिन तेरे!<br />
<br />
(मौलिक व अप्रकाशित)<br />
<br />
__आबिद अली मंसूरी
कितने तल्ख हैँ लम्हे<br />
तेरे प्यार के वगैर<br />
यह ग़म की आंधियां<br />
यह तीरगी के साये<br />
जैसे कोई ख़लिश<br />
हो हवाओँ मेँ..<br />
डसती हैँ मुझको पल-पल<br />
पुरवाइयां<br />
तेरी यादोँ की<br />
बे रंग सी लगती है<br />
ज़िंदगी अब तो<br />
कुछ भी तो नहीँ जैसे<br />
इन फिज़ाओँ मेँ...बिन तेरे!<br />
<br />
(मौलिक व अप्रकाशित)<br />
<br />
__आबिद अली मंसूरीतेरी यादोँ के सिलसिले!tag:openbooks.ning.com,2013-06-04:5170231:BlogPost:3720772013-06-04T06:58:50.000ZAbid ali mansoorihttp://openbooks.ning.com/profile/Abidalimansoori
तुझे पाने की जुस्तजू मेँ<br />
तेरा एहसास लिए,<br />
रोज लड़ता हूं मैँ<br />
तन्हाइयोँ से अपनी,<br />
चाहत की रहगुजर पर,<br />
अक्सर दे जाते हैँ<br />
ग़म की सौगात,<br />
और हवा मेरे जख्मोँ को,<br />
कितने संगदिल हैँ<br />
यह<br />
तेरी यादोँ के सिलसिले!<br />
(मौलिक व अप्रकाशित)<br />
__आबिद अली मंसूरी
तुझे पाने की जुस्तजू मेँ<br />
तेरा एहसास लिए,<br />
रोज लड़ता हूं मैँ<br />
तन्हाइयोँ से अपनी,<br />
चाहत की रहगुजर पर,<br />
अक्सर दे जाते हैँ<br />
ग़म की सौगात,<br />
और हवा मेरे जख्मोँ को,<br />
कितने संगदिल हैँ<br />
यह<br />
तेरी यादोँ के सिलसिले!<br />
(मौलिक व अप्रकाशित)<br />
__आबिद अली मंसूरीग़ज़लtag:openbooks.ning.com,2013-06-03:5170231:BlogPost:3714622013-06-03T08:00:00.000ZAbid ali mansoorihttp://openbooks.ning.com/profile/Abidalimansoori
<p>वह शौक से मेरी जान लेगा,<br/> हर कदम पे मेरा इम्तेहान लेगा,</p>
<p><br/> पिघलेगा एक दिन मोम की तरह,<br/> वह संगदिल मुझे जब पहचान लेगा,</p>
<p></p>
<p>गिर ही जायेँगी दीवारेँ नफरतोँ की,<br/> मोहब्बत से काम जब इंसान लेगा,</p>
<p></p>
<p>मिलेगी 'आबिद' यहां मंजिल उसी को,<br/> हौसलोँ से अपने जो भी उड़ान लेगा!</p>
<p></p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित)</p>
<p>_______आबिद</p>
<p>वह शौक से मेरी जान लेगा,<br/> हर कदम पे मेरा इम्तेहान लेगा,</p>
<p><br/> पिघलेगा एक दिन मोम की तरह,<br/> वह संगदिल मुझे जब पहचान लेगा,</p>
<p></p>
<p>गिर ही जायेँगी दीवारेँ नफरतोँ की,<br/> मोहब्बत से काम जब इंसान लेगा,</p>
<p></p>
<p>मिलेगी 'आबिद' यहां मंजिल उसी को,<br/> हौसलोँ से अपने जो भी उड़ान लेगा!</p>
<p></p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित)</p>
<p>_______आबिद</p>