Veena Gupta's Posts - Open Books Online2024-03-28T19:14:13ZVeena Guptahttp://openbooks.ning.com/profile/VeenaGuptahttp://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/8110035896?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1http://openbooks.ning.com/profiles/blog/feed?user=0xka0e5z4pj2d&xn_auth=noसरल जीवनtag:openbooks.ning.com,2022-03-03:5170231:BlogPost:10803902022-03-03T19:00:00.000ZVeena Guptahttp://openbooks.ning.com/profile/VeenaGupta
<p>अब न रहे वो चाँदी से दिन,सोने सी वो रातें हैं </p>
<p>बाबुल का वो प्यारा अंगना,सपनो की सी बातें हैं </p>
<p>इसी अंगने मेंभाई बहन संग ,खेल कूद कर बड़े हुए </p>
<p>संग संग खाना,लड़ना झगड़ना,अब बस मीठी यादें हैं </p>
<p>चैन न था इक पल जिनके बिन,जाने कैसे बिछुड़ गए </p>
<p>अब सब अपनी अपनी उलझन अलग अलग सुलझाते हैं </p>
<p>चाहे कितना हृदय दग्ध हो,चाहे कितना बड़ा हो संकट</p>
<p>हम तो बिल्कुल ठीक ठाक हैं,सदा यही दर्शाते हैं </p>
<p>इस दिखावटी युग में यदि हम,हृदय खोल सुख दुःख बाटें </p>
<p>निश्चय सरल…</p>
<p>अब न रहे वो चाँदी से दिन,सोने सी वो रातें हैं </p>
<p>बाबुल का वो प्यारा अंगना,सपनो की सी बातें हैं </p>
<p>इसी अंगने मेंभाई बहन संग ,खेल कूद कर बड़े हुए </p>
<p>संग संग खाना,लड़ना झगड़ना,अब बस मीठी यादें हैं </p>
<p>चैन न था इक पल जिनके बिन,जाने कैसे बिछुड़ गए </p>
<p>अब सब अपनी अपनी उलझन अलग अलग सुलझाते हैं </p>
<p>चाहे कितना हृदय दग्ध हो,चाहे कितना बड़ा हो संकट</p>
<p>हम तो बिल्कुल ठीक ठाक हैं,सदा यही दर्शाते हैं </p>
<p>इस दिखावटी युग में यदि हम,हृदय खोल सुख दुःख बाटें </p>
<p>निश्चय सरल जीवन होगा,सम्भव है निज ख़ुशियाँ फिर से पा जाएँ </p>
<p></p>
<p>मौलिक /अप्रकाशित </p>
<p></p>
<p></p>आज का सचtag:openbooks.ning.com,2021-11-29:5170231:BlogPost:10740882021-11-29T19:39:32.000ZVeena Guptahttp://openbooks.ning.com/profile/VeenaGupta
<p>लव यू -लव यू कहते रहो ,मिस यू -मिस यू जपते रहो </p>
<p>पीठ फिरे तो गो टू हैल ,नारा भी बुलंद करो </p>
<p>नहीं रहे वो सच्चे रिश्ते ,प्यार जहां पर पलता था </p>
<p>आज के रिश्ते बस एक छलावा,सबकुछ एक दिखावा है </p>
<p>मात-पिता का प्यार भी अब ,लगता ज़िम्मेदारी है </p>
<p>भाई बहन का प्यार अब बस एक नातेदारी है </p>
<p>रिश्तों का जहां मान नहीं ,कैसा युग ये आया है </p>
<p>कहते हैं वे हमें पुरातन ,पर नवयुग से क्या पाया है ?</p>
<p>पति-पत्नी के रिश्तों की भी ,गरिमा अब है कहाँ बची </p>
<p>नित होते तलाक़ों…</p>
<p>लव यू -लव यू कहते रहो ,मिस यू -मिस यू जपते रहो </p>
<p>पीठ फिरे तो गो टू हैल ,नारा भी बुलंद करो </p>
<p>नहीं रहे वो सच्चे रिश्ते ,प्यार जहां पर पलता था </p>
<p>आज के रिश्ते बस एक छलावा,सबकुछ एक दिखावा है </p>
<p>मात-पिता का प्यार भी अब ,लगता ज़िम्मेदारी है </p>
<p>भाई बहन का प्यार अब बस एक नातेदारी है </p>
<p>रिश्तों का जहां मान नहीं ,कैसा युग ये आया है </p>
<p>कहते हैं वे हमें पुरातन ,पर नवयुग से क्या पाया है ?</p>
<p>पति-पत्नी के रिश्तों की भी ,गरिमा अब है कहाँ बची </p>
<p>नित होते तलाक़ों ने,परिवारों का सुख चैन मिटाया है </p>
<p>घायल होता बच्चों का मन,छिन जाता उनका बचपन </p>
<p>कुंठाओं से घिरता मन,विश्वास कहीं खो जाता है </p>
<p>नवयुग शायद यही सिखाता,बस खुद के ही लिए जीयो </p>
<p>ज़िम्मेदारी कुछ नहीं तुम्हारी,बस खुद को ही ख़ुश रक्खो </p>
<p></p>
<p> मौलिक /अप्रकाशित </p>
<p> वीणा </p>मिथ्या जगतtag:openbooks.ning.com,2021-11-18:5170231:BlogPost:10738142021-11-18T23:13:09.000ZVeena Guptahttp://openbooks.ning.com/profile/VeenaGupta
<p>मिथ्या अगर जगत ये होता ,क्यूँ कर इसमें आते हम </p>
<p>देवों को भी जो दुर्लभ है ,वह मानुष जन्म क्यों पाते हम </p>
<p>ज्ञानी जन बस यही बताते ,मिथ्या जग के सुख दुःख सारे </p>
<p>पर इस जग में आ कर ही तो ,मोती ज्ञान के पाए सारे </p>
<p>ईश्वर की अद्भुत रचना ये सृष्टि ,नहीं जानता कोई कुछ भी </p>
<p>फिर भी ज्ञान सभी जन बाटें ,मानो स्रषटा हैं बस वे ही </p>
<p>जगत सत्य है या है मिथ्या ,क्यूंकर इसपर करें बहस </p>
<p>ईश्वर प्रदत्त अमूल्य जीवन को ,जिएँ सभी हम जी भरकर </p>
<p>उस अद्भुत कारीगर की ,रचना…</p>
<p>मिथ्या अगर जगत ये होता ,क्यूँ कर इसमें आते हम </p>
<p>देवों को भी जो दुर्लभ है ,वह मानुष जन्म क्यों पाते हम </p>
<p>ज्ञानी जन बस यही बताते ,मिथ्या जग के सुख दुःख सारे </p>
<p>पर इस जग में आ कर ही तो ,मोती ज्ञान के पाए सारे </p>
<p>ईश्वर की अद्भुत रचना ये सृष्टि ,नहीं जानता कोई कुछ भी </p>
<p>फिर भी ज्ञान सभी जन बाटें ,मानो स्रषटा हैं बस वे ही </p>
<p>जगत सत्य है या है मिथ्या ,क्यूंकर इसपर करें बहस </p>
<p>ईश्वर प्रदत्त अमूल्य जीवन को ,जिएँ सभी हम जी भरकर </p>
<p>उस अद्भुत कारीगर की ,रचना में कोई त्रुटि नहीं </p>
<p>जिसका जैसा भाव है होता ,उसको बस मिलता है वही </p>
<p>जगत है मिथ्या इसका ज्ञान भी ,हमें तभी तो होता है </p>
<p>जब जग में आ कर हमको ,सुख दुःख सहना पड़ता है </p>
<p></p>
<p></p>
<p> मौलिक /अप्रकाशित </p>
<p> वीणा </p>मुस्कुराहटेंtag:openbooks.ning.com,2021-09-04:5170231:BlogPost:10675912021-09-04T19:11:34.000ZVeena Guptahttp://openbooks.ning.com/profile/VeenaGupta
<p>कहते हैं सब यही ,बस मुस्कुराते रहिए </p>
<p>लेकिन जनाब बड़ी शातिर होती है ये मुस्कुराहट </p>
<p>दिल का सुकून होती है,किसी की मुस्कुराहट </p>
<p>तो चैन छीन लेती दिलों का ,कोई मुस्कुराहट </p>
<p>प्यार का दरिया बहाती बच्चे की मासूम मुस्कुराहट </p>
<p>और विचलित कर जाती मन को,व्यंग भरी मुस्कुराहट </p>
<p>ना जाने क्यों लोग बेवजह भी मुस्कुराते हैं </p>
<p>ना जाने कौन सा ग़म उस हंसी में छुपाते हैं </p>
<p>कभी ख़ुशी से खिलखिलाते चेहरे</p>
<p>नमी आँखों की बन आंसू ले आते हैं </p>
<p>तो दोस्तों ये…</p>
<p>कहते हैं सब यही ,बस मुस्कुराते रहिए </p>
<p>लेकिन जनाब बड़ी शातिर होती है ये मुस्कुराहट </p>
<p>दिल का सुकून होती है,किसी की मुस्कुराहट </p>
<p>तो चैन छीन लेती दिलों का ,कोई मुस्कुराहट </p>
<p>प्यार का दरिया बहाती बच्चे की मासूम मुस्कुराहट </p>
<p>और विचलित कर जाती मन को,व्यंग भरी मुस्कुराहट </p>
<p>ना जाने क्यों लोग बेवजह भी मुस्कुराते हैं </p>
<p>ना जाने कौन सा ग़म उस हंसी में छुपाते हैं </p>
<p>कभी ख़ुशी से खिलखिलाते चेहरे</p>
<p>नमी आँखों की बन आंसू ले आते हैं </p>
<p>तो दोस्तों ये मुस्कुराहट बड़ी फ़ितरती है </p>
<p>जो सिर्फ़ ख़ुशी नहीं,ग़म का भी इज़हार करती है </p>
<p>कभी छू जाती है दिल को,तो कभी घायल भी करती है </p>
<p>तो फिर ना कहना की मुस्कुराते रहिए </p>
<p>पूछ ही लीजिए क्या हाल है कहिए ?</p>
<p>चंद लफ़्ज़ शायद् कुछ सुकुं दे जाएँगे </p>
<p>और मुस्कुराने की सही वजह दे पायेंगे</p>
<p></p>
<p>मौलिक/अप्रकाशित </p>
<p></p>
<p> वीणा </p>आंखेंtag:openbooks.ning.com,2021-06-29:5170231:BlogPost:10628442021-06-29T13:24:36.000ZVeena Guptahttp://openbooks.ning.com/profile/VeenaGupta
<p>आंखें आंखें अद्भुत आंखें,नित नए रूप बदलती आंखें</p>
<p>सबकुछ कहतीं पर चुप रहतीं,नित नए रूप दिखाती आंखें </p>
<p>कहीं तो ज्वालामुखी हैं आँखें,कहीं झील सी गहरी आंखें </p>
<p>मंद मंद मुस्काती आँखें,कहीं उपहास उडा़ती आंखें </p>
<p>हिरनी सी चंचल ये आँखें,डरी डरी सहमी सी आंखें </p>
<p>लज्जा से भरी अवगुंठित आँखें,फिर टेढी चितवन वाली आंखें </p>
<p>कहीं प्यार बरसाती आंखें,कहीं पर सबक सिखाती आंखें </p>
<p>ममता भरी वो भीगी आँखें,सजदे में झुक जाती आंखें </p>
<p>क्रोध से लाल धधकती आँखें,मेघों सी वो बरसती…</p>
<p>आंखें आंखें अद्भुत आंखें,नित नए रूप बदलती आंखें</p>
<p>सबकुछ कहतीं पर चुप रहतीं,नित नए रूप दिखाती आंखें </p>
<p>कहीं तो ज्वालामुखी हैं आँखें,कहीं झील सी गहरी आंखें </p>
<p>मंद मंद मुस्काती आँखें,कहीं उपहास उडा़ती आंखें </p>
<p>हिरनी सी चंचल ये आँखें,डरी डरी सहमी सी आंखें </p>
<p>लज्जा से भरी अवगुंठित आँखें,फिर टेढी चितवन वाली आंखें </p>
<p>कहीं प्यार बरसाती आंखें,कहीं पर सबक सिखाती आंखें </p>
<p>ममता भरी वो भीगी आँखें,सजदे में झुक जाती आंखें </p>
<p>क्रोध से लाल धधकती आँखें,मेघों सी वो बरसती आंखें </p>
<p>दैन्य भाव दर्शाती आंखें,हठ और गर्व भरी वो आंखें </p>
<p>एक दृष्टि सबकुछ कह जाती,ऐसी जादूभरी ये आंखें </p>
<p>अनुपम है आंखों की ज्योती,सृष्टि का उपहार ये आंखें </p>
<p></p>
<p>मौलिक/अप्रकाशित </p>
<p> वीणा </p>
<p></p>मेरा भारतtag:openbooks.ning.com,2021-06-24:5170231:BlogPost:10620312021-06-24T16:18:04.000ZVeena Guptahttp://openbooks.ning.com/profile/VeenaGupta
<p>भारत की जब बात है होती,ज्योति मेरे दिल की है जलती</p>
<p>कितना सुंदर देश है मेरा,कितनी पावन रीति यहाँ की</p>
<p>घर घर मंदिर गुरुद्वारा है,सबके बीच परस्पर प्रीती</p>
<p>संतोष बड़ा धन है जीवन में,सिखलाती ये अपनीसंस्कृती</p>
<p>नहीं थोपते धर्म किसी पर,ना ज़िद कोई विश्व विजय की</p>
<p>खुश हैं हम अपनी धरती पर,नहीं चाहिए ज़मीं दुजे की</p>
<p>स्वयं जियो और जीने दो,भारत का सिद्धांत यही</p>
<p>विश्व संस्कृती को अपनाते,वसुधैव कुटुंबकम है येही</p>
<p><br/>मौलिक/अप्रकाशित</p>
<p> वीणा</p>
<p>भारत की जब बात है होती,ज्योति मेरे दिल की है जलती</p>
<p>कितना सुंदर देश है मेरा,कितनी पावन रीति यहाँ की</p>
<p>घर घर मंदिर गुरुद्वारा है,सबके बीच परस्पर प्रीती</p>
<p>संतोष बड़ा धन है जीवन में,सिखलाती ये अपनीसंस्कृती</p>
<p>नहीं थोपते धर्म किसी पर,ना ज़िद कोई विश्व विजय की</p>
<p>खुश हैं हम अपनी धरती पर,नहीं चाहिए ज़मीं दुजे की</p>
<p>स्वयं जियो और जीने दो,भारत का सिद्धांत यही</p>
<p>विश्व संस्कृती को अपनाते,वसुधैव कुटुंबकम है येही</p>
<p><br/>मौलिक/अप्रकाशित</p>
<p> वीणा</p>सरस्वती वंदनाtag:openbooks.ning.com,2021-02-12:5170231:BlogPost:10490762021-02-12T19:51:52.000ZVeena Guptahttp://openbooks.ning.com/profile/VeenaGupta
<p>मात शारदे सुन ले विनती,ज्ञान चक्षु तू मेरे खोल </p>
<p>मिट जाए सब कलुष हृदय का,वाणी में अमृत तू घोल </p>
<p>बासंती मौसम आया है,नव-नव पल्लव रहे हैं डोल </p>
<p>विश्व प्रेम का अंकुर फूटे,मंत्र कोई ऐसा तू बोल </p>
<p>ज्ञान की मन में जगे पिपासा,दे ऐसा आशीष अमोल </p>
<p>विद्या धन ही सच्चा धन है,ऐसा न कोइ खजाना अनमोल </p>
<p>आज खड़ी झोली फैलाए,मॉं तू अपना ख़ज़ाना खोल </p>
<p>दो बूंदें दे ज्ञान सागर की,मॉं दे दे ये वर अनमोल </p>
<p>मॉं तू अपना ख़ज़ाना खोल,मात शारदे कुछ तो बोल </p>
<p>तेरी माँ अब…</p>
<p>मात शारदे सुन ले विनती,ज्ञान चक्षु तू मेरे खोल </p>
<p>मिट जाए सब कलुष हृदय का,वाणी में अमृत तू घोल </p>
<p>बासंती मौसम आया है,नव-नव पल्लव रहे हैं डोल </p>
<p>विश्व प्रेम का अंकुर फूटे,मंत्र कोई ऐसा तू बोल </p>
<p>ज्ञान की मन में जगे पिपासा,दे ऐसा आशीष अमोल </p>
<p>विद्या धन ही सच्चा धन है,ऐसा न कोइ खजाना अनमोल </p>
<p>आज खड़ी झोली फैलाए,मॉं तू अपना ख़ज़ाना खोल </p>
<p>दो बूंदें दे ज्ञान सागर की,मॉं दे दे ये वर अनमोल </p>
<p>मॉं तू अपना ख़ज़ाना खोल,मात शारदे कुछ तो बोल </p>
<p>तेरी माँ अब तू ही जाने,हृदय दिया है मैंने खोल </p>
<p>मात शारदे सुन ले विनती, ज्ञान चक्षु तू मेरे खोल </p>
<p></p>
<p></p>
<p>मौलिक/अप्रकाशित </p>
<p> वीणा </p>ज़िन्दगीtag:openbooks.ning.com,2021-02-06:5170231:BlogPost:10451502021-02-06T21:55:37.000ZVeena Guptahttp://openbooks.ning.com/profile/VeenaGupta
<p>जैसी भी हो बडी़ ख़ूबसूरत होती है ज़िन्दगी </p>
<p>जिन्दगी में नित नए मोती पिरोती है ज़िन्दगी </p>
<p>कहीं चंदा सी चमचम कहीं तारों सी झिलमिल </p>
<p>और कहीं सूरज सी रौशन होती है ज़िन्दगी </p>
<p>फूलों सी महकती कहीं, कहीं काँटों सी उलझ जाती ज़िन्दगी </p>
<p>कहीं नदिया की चंचल धारा,कहीं सागर सी ठहरी ज़िन्दगी </p>
<p>सुख दुख में अपने पराए की पहचान कराती है ज़िन्दगी </p>
<p>वक्त बदले तो राजा को भी रंक बनाती है ज़िन्दगी </p>
<p>ना जाने कैसे कैसे रंग दिखाती है ज़िन्दगी </p>
<p>कभी सुख कभी दुख के…</p>
<p>जैसी भी हो बडी़ ख़ूबसूरत होती है ज़िन्दगी </p>
<p>जिन्दगी में नित नए मोती पिरोती है ज़िन्दगी </p>
<p>कहीं चंदा सी चमचम कहीं तारों सी झिलमिल </p>
<p>और कहीं सूरज सी रौशन होती है ज़िन्दगी </p>
<p>फूलों सी महकती कहीं, कहीं काँटों सी उलझ जाती ज़िन्दगी </p>
<p>कहीं नदिया की चंचल धारा,कहीं सागर सी ठहरी ज़िन्दगी </p>
<p>सुख दुख में अपने पराए की पहचान कराती है ज़िन्दगी </p>
<p>वक्त बदले तो राजा को भी रंक बनाती है ज़िन्दगी </p>
<p>ना जाने कैसे कैसे रंग दिखाती है ज़िन्दगी </p>
<p>कभी सुख कभी दुख के समंदर में डुबाती है ज़िन्दगी </p>
<p>जाने क्यों इतनी दुश्वारियों से भरी होती है ज़िन्दगी </p>
<p>मुस्कुरा के बोली मुझसे मेरी ही ज़िन्दगी </p>
<p>दुश्वारियों से भरी जो न होती ये ज़िन्दगी </p>
<p>सोचो कैसी बेमज़ा, नीरस होती ये ज़िन्दगी </p>
<p>अलग अलग रंगों के बिन,बेरंग थी ये ज़िन्दगी </p>
<p>तो जैसी भी हो बडी़ ख़ूबसूरत होती है ज़िन्दगी </p>
<p> </p>
<p>मौलिक/अप्रकाशित </p>
<p> वीणा </p>प्यार का सागरtag:openbooks.ning.com,2020-12-26:5170231:BlogPost:10395472020-12-26T17:24:59.000ZVeena Guptahttp://openbooks.ning.com/profile/VeenaGupta
<p>इक मैं थी इक मेरा साथी,सुन्दर इक संसार था </p>
<p>संसार नहीं था एक समंदर,बसता जहां बस प्यार था </p>
<p>छोटे बडे़ सभी रिश्तों की,मर्यादा यहाँ पालन होती थी </p>
<p>प्यार की हर नदिया का,सम्मान यहाँ पर होता था </p>
<p>मिलती जब कोइ नदिया समुद्र से,हर्षोल्लास बरसता था </p>
<p>बाहें फैला समुद्र भी अपनी,सबका स्वागत करता था </p>
<p>ना जाने फिर इकदिन कैसा एक बवंडर आया था </p>
<p>सारा समंदर सूख गया,बस मरुस्थल ही बच पाया था </p>
<p>आज प्रयत्न मैं कर रही,मरुभूमि में कुछ पुष्प खिलाने का </p>
<p>कुछ सुकूं…</p>
<p>इक मैं थी इक मेरा साथी,सुन्दर इक संसार था </p>
<p>संसार नहीं था एक समंदर,बसता जहां बस प्यार था </p>
<p>छोटे बडे़ सभी रिश्तों की,मर्यादा यहाँ पालन होती थी </p>
<p>प्यार की हर नदिया का,सम्मान यहाँ पर होता था </p>
<p>मिलती जब कोइ नदिया समुद्र से,हर्षोल्लास बरसता था </p>
<p>बाहें फैला समुद्र भी अपनी,सबका स्वागत करता था </p>
<p>ना जाने फिर इकदिन कैसा एक बवंडर आया था </p>
<p>सारा समंदर सूख गया,बस मरुस्थल ही बच पाया था </p>
<p>आज प्रयत्न मैं कर रही,मरुभूमि में कुछ पुष्प खिलाने का </p>
<p>कुछ सुकूं जो दे सकें,स्वागत मरुभूमि में आने वालों का </p>
<p></p>
<p>मौलिक/अप्रकाशित </p>
<p> वीणा </p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>मौन की भाषाtag:openbooks.ning.com,2020-12-17:5170231:BlogPost:10388582020-12-17T22:03:36.000ZVeena Guptahttp://openbooks.ning.com/profile/VeenaGupta
<p>मौन की भाषा सुनो,मौन मुखरित हो रहा है </p>
<p>जाने कितने शिकवे छिपे हैं,जाने कितने हैं फसाने </p>
<p>अपने अंतर में छुपाये,जाने कब से सह रहा है </p>
<p>खामोशी चारों तरफ है,अब न कोइ शोर है </p>
<p>कोइ नहीं है पास में अब,एकाकीपन का ये दौर है </p>
<p>लग रहा है फिर भी ऐसा,ज्यों गूंजता कानों में कोइ शोर है </p>
<p>ध्यान और एकांत ने,धीरे से फिर समझा दिया </p>
<p>मौन तो इक शक्ति है विश्वास है </p>
<p>नयी राहों पर देता ज्ञान का प्रकाश है </p>
<p>एकांत मौन में मिलती नयी उर्जा सदा </p>
<p>मौन चिंतन ही…</p>
<p>मौन की भाषा सुनो,मौन मुखरित हो रहा है </p>
<p>जाने कितने शिकवे छिपे हैं,जाने कितने हैं फसाने </p>
<p>अपने अंतर में छुपाये,जाने कब से सह रहा है </p>
<p>खामोशी चारों तरफ है,अब न कोइ शोर है </p>
<p>कोइ नहीं है पास में अब,एकाकीपन का ये दौर है </p>
<p>लग रहा है फिर भी ऐसा,ज्यों गूंजता कानों में कोइ शोर है </p>
<p>ध्यान और एकांत ने,धीरे से फिर समझा दिया </p>
<p>मौन तो इक शक्ति है विश्वास है </p>
<p>नयी राहों पर देता ज्ञान का प्रकाश है </p>
<p>एकांत मौन में मिलती नयी उर्जा सदा </p>
<p>मौन चिंतन ही देता नये आयाम है </p>
<p>मौन मानो खुद से खुद की इक नयी पहचान है </p>
<p>मौन की भाषा अनूठी दे रही नव ज्ञान है </p>
<p></p>
<p>मौलिक/अप्रकाशित </p>
<p> वीणा </p>अंतिम सत्यtag:openbooks.ning.com,2020-12-17:5170231:BlogPost:10385982020-12-17T21:30:00.000ZVeena Guptahttp://openbooks.ning.com/profile/VeenaGupta
<p>जीवन की इस नदिया को,बस बहते ही जाना है </p>
<p>लक्ष्य यही है इसका इकदिन,सागर में मिल जाना है </p>
<p>चाहे जितनी बाधाएँ हों,चाहे जितने हों भटकाव </p>
<p>लक्ष्य प्राप्त करना ही होगा,होगा ना उसमें बदलाव </p>
<p>मीठे पानी की नदिया इकदिन,खारा सागर बन जायेगी </p>
<p>इसी तरह ये जीवन नदिया इकदिन,अमर आत्मा बन जायेगी </p>
<p>पर जाने से पहले जीवन में,कुछ ऐसे मीठे काम करो </p>
<p>नदिया जैसे सब याद करें,आत्मा अमर हो जाने दो </p>
<p></p>
<p></p>
<p>मौलिक /अप्रकाशित </p>
<p> वीणा </p>
<p>जीवन की इस नदिया को,बस बहते ही जाना है </p>
<p>लक्ष्य यही है इसका इकदिन,सागर में मिल जाना है </p>
<p>चाहे जितनी बाधाएँ हों,चाहे जितने हों भटकाव </p>
<p>लक्ष्य प्राप्त करना ही होगा,होगा ना उसमें बदलाव </p>
<p>मीठे पानी की नदिया इकदिन,खारा सागर बन जायेगी </p>
<p>इसी तरह ये जीवन नदिया इकदिन,अमर आत्मा बन जायेगी </p>
<p>पर जाने से पहले जीवन में,कुछ ऐसे मीठे काम करो </p>
<p>नदिया जैसे सब याद करें,आत्मा अमर हो जाने दो </p>
<p></p>
<p></p>
<p>मौलिक /अप्रकाशित </p>
<p> वीणा </p>रफ़्तारे ज़िन्दगीtag:openbooks.ning.com,2020-12-01:5170231:BlogPost:10378482020-12-01T21:07:49.000ZVeena Guptahttp://openbooks.ning.com/profile/VeenaGupta
<p>बड़ी तेज़ रफ़्तार है ज़िन्दगी की,मुट्ठी से फिसलती चली जा रही है </p>
<p>उम्र की इस दहलीज़ पर जैसे,ठिठक सी गयी है,सिमट सी गयी है </p>
<p>बीते हुए पुराने मौसम याद आ रहे हैं,हासिल क्या किया तूने समझा रहे हैं </p>
<p>ऐ ज़िन्दगी तू ज़रा तो ठहर जा,जीने की कोई राह बता जा </p>
<p>बचे जो पल हैं चंद ज़िन्दगी के,कैसे संवारूँ ज़रा तू बता जा </p>
<p>जिन्दगी ने कहा कुछ यूँ मुस्कुरा कर,प्यार ख़ुद से तू कर ले दुनिया भुला कर </p>
<p>परमात्मा से लौ तू लगा ले,जीवन का सच्चा आनन्द पा ले </p>
<p>स्वर्णिम ये पल मत…</p>
<p>बड़ी तेज़ रफ़्तार है ज़िन्दगी की,मुट्ठी से फिसलती चली जा रही है </p>
<p>उम्र की इस दहलीज़ पर जैसे,ठिठक सी गयी है,सिमट सी गयी है </p>
<p>बीते हुए पुराने मौसम याद आ रहे हैं,हासिल क्या किया तूने समझा रहे हैं </p>
<p>ऐ ज़िन्दगी तू ज़रा तो ठहर जा,जीने की कोई राह बता जा </p>
<p>बचे जो पल हैं चंद ज़िन्दगी के,कैसे संवारूँ ज़रा तू बता जा </p>
<p>जिन्दगी ने कहा कुछ यूँ मुस्कुरा कर,प्यार ख़ुद से तू कर ले दुनिया भुला कर </p>
<p>परमात्मा से लौ तू लगा ले,जीवन का सच्चा आनन्द पा ले </p>
<p>स्वर्णिम ये पल मत व्यर्थ गँवा,बात मेरी तू मान जा </p>
<p>प्रभु का प्यार जब तुझको मिलेगा,तू प्यार का इक दरिया बनेगा </p>
<p>ये दरिया जब अनन्त में जा मिलेगा,तब लक्ष्य को तू पा ही लेगा</p>
<p></p>
<p>मौलिक/अप्रकाशित </p>
<p> वीणा </p>
<p> </p>आइनाtag:openbooks.ning.com,2020-11-28:5170231:BlogPost:10374872020-11-28T03:39:52.000ZVeena Guptahttp://openbooks.ning.com/profile/VeenaGupta
<p>आइना हूं मैं तो बस ज़िन्दगी का,कहते हो तुम बुढ़ापा जिसे</p>
<p>जिन्दगी के सफ़र में जो भी खोया या पाया,पलटकर देखो नज़र भर उसे </p>
<p>ज़िन्दगी से सदा तूने सदा ये ही शिकवे किये,ए ज़िंदगी तूने सदा दुख है दिये </p>
<p>सच ये नहीं छुपेगा आइने से बिखरी थीं ख़ुशियाँ,तेरी ज़िन्दगी में </p>
<p>ग़मों को सदा तूने गले से लगाया,ख़ुशियों के पल क्यों ना याद किये </p>
<p>आइने में देखोगे जो ख़ुशियों के वो पल,ग़मों में भी फिर जल उठेंगे दिये</p>
<p>जीवन जीने की कला आप कहते हैं जिसे</p>
<p>उम्र का ये दौर ही है…</p>
<p>आइना हूं मैं तो बस ज़िन्दगी का,कहते हो तुम बुढ़ापा जिसे</p>
<p>जिन्दगी के सफ़र में जो भी खोया या पाया,पलटकर देखो नज़र भर उसे </p>
<p>ज़िन्दगी से सदा तूने सदा ये ही शिकवे किये,ए ज़िंदगी तूने सदा दुख है दिये </p>
<p>सच ये नहीं छुपेगा आइने से बिखरी थीं ख़ुशियाँ,तेरी ज़िन्दगी में </p>
<p>ग़मों को सदा तूने गले से लगाया,ख़ुशियों के पल क्यों ना याद किये </p>
<p>आइने में देखोगे जो ख़ुशियों के वो पल,ग़मों में भी फिर जल उठेंगे दिये</p>
<p>जीवन जीने की कला आप कहते हैं जिसे</p>
<p>उम्र का ये दौर ही है सिखा जाता उसे </p>
<p></p>
<p>मौलिक /अप्रकाशित</p>
<p></p>
<p>वीणा</p>शून्य (ज़ीरो)tag:openbooks.ning.com,2020-11-19:5170231:BlogPost:10371552020-11-19T21:50:36.000ZVeena Guptahttp://openbooks.ning.com/profile/VeenaGupta
<p><span style="font-size: 12pt;">पूर्णता का जो है प्रतीक ,वह तो बस एक शून्य है </span></p>
<p><font size="3">शून्य है जीवन का सत्य ,शून्य ही सम्पूर्ण है </font></p>
<p><font size="3">जिस बिंदु से आरम्भ होता ,होता वहीं वह पूर्ण है </font></p>
<p><font size="3">आरम्भ जीवन का शून्य से और अंत भी बस शून्य है </font></p>
<p><font size="3">शून्य में जोड़ दो ,चाहे जितने शून्य तुम </font></p>
<p><font size="3">या निकालो शून्य में से चाहे जितने शून्य तुम </font></p>
<p><font size="3">शून्य फिर भी शून्य…</font></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">पूर्णता का जो है प्रतीक ,वह तो बस एक शून्य है </span></p>
<p><font size="3">शून्य है जीवन का सत्य ,शून्य ही सम्पूर्ण है </font></p>
<p><font size="3">जिस बिंदु से आरम्भ होता ,होता वहीं वह पूर्ण है </font></p>
<p><font size="3">आरम्भ जीवन का शून्य से और अंत भी बस शून्य है </font></p>
<p><font size="3">शून्य में जोड़ दो ,चाहे जितने शून्य तुम </font></p>
<p><font size="3">या निकालो शून्य में से चाहे जितने शून्य तुम </font></p>
<p><font size="3">शून्य फिर भी शून्य है ,इसलिए सम्पूर्ण है </font></p>
<p><font size="3">बिंदु से आरम्भ हो कर ,वृहदाकार होता है शून्य </font></p>
<p><font size="3">पूर्ण ब्रह्म स्वरूप है शून्य ,ज्ञानी भी यह मानते </font></p>
<p><font size="3">हम सब भी हैं जानते ,अंतरिक्ष का पर्याय शून्य </font></p>
<p></p>
<p><font size="3">मौलिक एवं अप्रकाशित </font></p>
<p></p>
<p><font size="3"> वीणा</font></p>दीपावलीtag:openbooks.ning.com,2020-11-13:5170231:BlogPost:10368912020-11-13T20:30:00.000ZVeena Guptahttp://openbooks.ning.com/profile/VeenaGupta
<p>दीपोत्सव हम मना रहे</p>
<p>जगमग जग ये हो सारा</p>
<p>ज्ञान का ऐसा दीप जलायें</p>
<p>अज्ञान दूर हो जग से सारा</p>
<p>सौहार्द प्रेम का हो प्रसार</p>
<p>वसुधैव कुटुम्बकम का सच हो नारा</p>
<p>दीपक ऐसा एक जलायें</p>
<p>फैले प्रेम का उजियारा</p>
<p></p>
<p>(मौलिक/अप्रकाशित)</p>
<p>दीपोत्सव हम मना रहे</p>
<p>जगमग जग ये हो सारा</p>
<p>ज्ञान का ऐसा दीप जलायें</p>
<p>अज्ञान दूर हो जग से सारा</p>
<p>सौहार्द प्रेम का हो प्रसार</p>
<p>वसुधैव कुटुम्बकम का सच हो नारा</p>
<p>दीपक ऐसा एक जलायें</p>
<p>फैले प्रेम का उजियारा</p>
<p></p>
<p>(मौलिक/अप्रकाशित)</p>