Saarthi Baidyanath's Posts - Open Books Online2024-03-28T13:55:28ZSaarthi Baidyanathhttp://openbooks.ning.com/profile/saarthibaidyanathhttp://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/8086394475?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1http://openbooks.ning.com/profiles/blog/feed?user=0hs7wlhtbbzf8&xn_auth=noग़ज़ल- सारथी || फूलों में नाज़ुकी कहाँ है अब ||tag:openbooks.ning.com,2018-03-08:5170231:BlogPost:9178842018-03-08T06:26:15.000ZSaarthi Baidyanathhttp://openbooks.ning.com/profile/saarthibaidyanath
<p>फूलों में नाज़ुकी कहाँ है अब <br></br>थी कभी ताज़गी कहाँ है अब</p>
<p>आज कल इश्क़ तो दिखावा है <br></br>आशिक़ी आशिक़ी कहाँ है अब</p>
<p>शक्ल-सूरत तो पहले जैसी है <br></br>आदमी आदमी कहाँ है अब</p>
<p>अब नुमाइश है सिर्फ चेह्रों की <br></br>हुस्न में सादगी कहाँ है अब</p>
<p>चाँद अब दूधिया नहीं दिखता <br></br>रात भी शबनमी कहाँ है अब</p>
<p>लोग बाहर से मुस्कुराते हैं <br></br>यार सच्ची हँसी कहाँ है अब</p>
<p>जो समंदर को ढूंढ़ने निकले <br></br>ऐसी अल्हड़ नदी कहाँ है अब<br></br>छाँव भी बदली बदली लगती है <br></br>धूप भी धूप सी कहाँ है…</p>
<p>फूलों में नाज़ुकी कहाँ है अब <br/>थी कभी ताज़गी कहाँ है अब</p>
<p>आज कल इश्क़ तो दिखावा है <br/>आशिक़ी आशिक़ी कहाँ है अब</p>
<p>शक्ल-सूरत तो पहले जैसी है <br/>आदमी आदमी कहाँ है अब</p>
<p>अब नुमाइश है सिर्फ चेह्रों की <br/>हुस्न में सादगी कहाँ है अब</p>
<p>चाँद अब दूधिया नहीं दिखता <br/>रात भी शबनमी कहाँ है अब</p>
<p>लोग बाहर से मुस्कुराते हैं <br/>यार सच्ची हँसी कहाँ है अब</p>
<p>जो समंदर को ढूंढ़ने निकले <br/>ऐसी अल्हड़ नदी कहाँ है अब<br/>छाँव भी बदली बदली लगती है <br/>धूप भी धूप सी कहाँ है अब</p>
<p>एक दीवाना सा जो शायर था <br/>हाँ वही 'सारथी' कहाँ है अब <br/><br/></p>
<p>.............................................<br/>सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>अरकान: २१२२ १२१२ २२ </p>ग़ज़ल- सारथी || ख़बर तो कागज़ों की कश्तियाँ दे जाएँगी मुझको ||tag:openbooks.ning.com,2018-03-08:5170231:BlogPost:9177032018-03-08T06:21:04.000ZSaarthi Baidyanathhttp://openbooks.ning.com/profile/saarthibaidyanath
<p>ख़बर तो कागज़ों की कश्तियाँ दे जाएँगी मुझको <br></br>ये लहरें ही तुम्हारी चिठ्ठियाँ दे जाएँगी मुझको<br></br>लिखे थे जो दरख्तों पर अभी तक नाम हैं कायम </p>
<p>ख़बर ये भी कभी पुरवाईयाँ दे जाएँगी मुझको<br></br>कभी तो बात मेरी मान जाया कर दिले-नादां</p>
<p>तेरी नादानियाँ दुश्वारियाँ दे जाएँगी मुझको<br></br>बिछुड़ जाने का डर मुझको नहीं डर है तो ये डर है </p>
<p>न जाने क्या न क्या रुस्वाईयां दे जाएँगी मुझको<br></br>तुम्हीं को भूल जाऊं मैं अजी ये हो नहीं सकता </p>
<p>तुम्हारी यादें आकर हिचकियाँ दे जाएँगी…</p>
<p>ख़बर तो कागज़ों की कश्तियाँ दे जाएँगी मुझको <br/>ये लहरें ही तुम्हारी चिठ्ठियाँ दे जाएँगी मुझको<br/>लिखे थे जो दरख्तों पर अभी तक नाम हैं कायम </p>
<p>ख़बर ये भी कभी पुरवाईयाँ दे जाएँगी मुझको<br/>कभी तो बात मेरी मान जाया कर दिले-नादां</p>
<p>तेरी नादानियाँ दुश्वारियाँ दे जाएँगी मुझको<br/>बिछुड़ जाने का डर मुझको नहीं डर है तो ये डर है </p>
<p>न जाने क्या न क्या रुस्वाईयां दे जाएँगी मुझको<br/>तुम्हीं को भूल जाऊं मैं अजी ये हो नहीं सकता </p>
<p>तुम्हारी यादें आकर हिचकियाँ दे जाएँगी मुझको</p>
<p></p>
<p>................................................................<br/>सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>अरकान: १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ </p>ग़ज़ल- सारथी || दोस्त कोई न मेह्रबाँ कोई ||tag:openbooks.ning.com,2015-12-14:5170231:BlogPost:7235802015-12-14T09:44:58.000ZSaarthi Baidyanathhttp://openbooks.ning.com/profile/saarthibaidyanath
<p>दोस्त कोई न मेह्रबाँ कोई </p>
<p>काश मिल जाए राज़दाँ कोई /१</p>
<p>दिल की हालत कुछ आज ऐसी है </p>
<p>जैसे लूट जाए कारवाँ कोई /२ </p>
<p>एक ही बार इश्क़ होता है </p>
<p>रोज होता नहीं जवाँ कोई /३ </p>
<p>तुम को वो सल्तनत मुबारक हो </p>
<p>जिसकी धरती न आसमाँ कोई /४ </p>
<p>सारथी कह सके जिसे अपना </p>
<p>सारथी के सिवा कहाँ कोई /५ </p>
<p>...........................................<br/>सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>अरकान: २१२२ १२१२ २२ </p>
<p>दोस्त कोई न मेह्रबाँ कोई </p>
<p>काश मिल जाए राज़दाँ कोई /१</p>
<p>दिल की हालत कुछ आज ऐसी है </p>
<p>जैसे लूट जाए कारवाँ कोई /२ </p>
<p>एक ही बार इश्क़ होता है </p>
<p>रोज होता नहीं जवाँ कोई /३ </p>
<p>तुम को वो सल्तनत मुबारक हो </p>
<p>जिसकी धरती न आसमाँ कोई /४ </p>
<p>सारथी कह सके जिसे अपना </p>
<p>सारथी के सिवा कहाँ कोई /५ </p>
<p>...........................................<br/>सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>अरकान: २१२२ १२१२ २२ </p>ग़ज़ल- सारथी || तलाशी ले रहीं आँखें हमारी ||tag:openbooks.ning.com,2015-12-14:5170231:BlogPost:7238502015-12-14T09:30:00.000ZSaarthi Baidyanathhttp://openbooks.ning.com/profile/saarthibaidyanath
<p>तलाशी ले रहीं आँखें हमारी </p>
<p>न आँखें रोक दें साँसें हमारी /१</p>
<p>गुजर तो जाता है दिन जैसे तैसे </p>
<p>मगर कटती नहीं रातें हमारी /२ </p>
<p>न जाने लग रहा है बारहा क्यूँ </p>
<p>उन्हें मालूम हैं बातें हमारी /३ </p>
<p>जो कहना है सो कह दो कौन जाने </p>
<p>दुबारा हों मुलाकातें हमारी /४ </p>
<p>अगर तुम जा रहे हो याद रखना </p>
<p>कि पल पल तरसेंगी बाँहें हमारी /५ </p>
<p>...........................................<br/> सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>अरकान: १२२२ १२२२ १२२ </p>
<p>तलाशी ले रहीं आँखें हमारी </p>
<p>न आँखें रोक दें साँसें हमारी /१</p>
<p>गुजर तो जाता है दिन जैसे तैसे </p>
<p>मगर कटती नहीं रातें हमारी /२ </p>
<p>न जाने लग रहा है बारहा क्यूँ </p>
<p>उन्हें मालूम हैं बातें हमारी /३ </p>
<p>जो कहना है सो कह दो कौन जाने </p>
<p>दुबारा हों मुलाकातें हमारी /४ </p>
<p>अगर तुम जा रहे हो याद रखना </p>
<p>कि पल पल तरसेंगी बाँहें हमारी /५ </p>
<p>...........................................<br/> सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>अरकान: १२२२ १२२२ १२२ </p>ग़ज़ल- सारथी || इन्तिज़ार इन्तिज़ार है तो है ||tag:openbooks.ning.com,2015-11-02:5170231:BlogPost:7120932015-11-02T10:00:00.000ZSaarthi Baidyanathhttp://openbooks.ning.com/profile/saarthibaidyanath
<p>इन्तिज़ार इन्तिज़ार है तो है </p>
<p>ऐतबार ऐतबार है तो है /१</p>
<p>मैं हूँ नादाँ अगर तो, हूँ तो हूँ </p>
<p>वो अगर होशियार है तो है /२ </p>
<p>छोड़कर मुझको सिर्फ़ इक वो चाँद </p>
<p>हिज़्र का राज़दार है तो है /३ </p>
<p>कल वो हँसता था मेरी हालत पर </p>
<p>वो भी अब बेक़रार है तो है /४ </p>
<p>दीद का लुत्फ़ हो गया हासिल </p>
<p>अब नज़र कर्ज़दार है तो है /५ </p>
<p>...........................................<br/> सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>अरकान: २१२२ १२१२ २२ </p>
<p>इन्तिज़ार इन्तिज़ार है तो है </p>
<p>ऐतबार ऐतबार है तो है /१</p>
<p>मैं हूँ नादाँ अगर तो, हूँ तो हूँ </p>
<p>वो अगर होशियार है तो है /२ </p>
<p>छोड़कर मुझको सिर्फ़ इक वो चाँद </p>
<p>हिज़्र का राज़दार है तो है /३ </p>
<p>कल वो हँसता था मेरी हालत पर </p>
<p>वो भी अब बेक़रार है तो है /४ </p>
<p>दीद का लुत्फ़ हो गया हासिल </p>
<p>अब नज़र कर्ज़दार है तो है /५ </p>
<p>...........................................<br/> सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>अरकान: २१२२ १२१२ २२ </p>ग़ज़ल- सारथी || बेख़ुदी में पुकारा करेंगे ||tag:openbooks.ning.com,2014-10-29:5170231:BlogPost:5844312014-10-29T17:30:00.000ZSaarthi Baidyanathhttp://openbooks.ning.com/profile/saarthibaidyanath
<p>बेख़ुदी में पुकारा करेंगे </p>
<p>बोल कैसे गुजारा करेंगे /१</p>
<p></p>
<p>आज उनसे निगाहें लड़ीं हैं </p>
<p>आज जश्ने-बहारा करेंगे /२ </p>
<p></p>
<p>शोरगुल में कहाँ बात होगी </p>
<p>कनखियों से इशारा करेंगे /३</p>
<p></p>
<p>बेतहाशा हसीं आप हैं जी </p>
<p>रोज सदके उतारा करेंगे /४ </p>
<p></p>
<p>देखना हमसे मिलकर गये हैं </p>
<p>आईने को निहारा करेंगे /५ </p>
<p></p>
<p>...........................................<br/> सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>अरकान: २१२ २१२ २१२२</p>
<p>बेख़ुदी में पुकारा करेंगे </p>
<p>बोल कैसे गुजारा करेंगे /१</p>
<p></p>
<p>आज उनसे निगाहें लड़ीं हैं </p>
<p>आज जश्ने-बहारा करेंगे /२ </p>
<p></p>
<p>शोरगुल में कहाँ बात होगी </p>
<p>कनखियों से इशारा करेंगे /३</p>
<p></p>
<p>बेतहाशा हसीं आप हैं जी </p>
<p>रोज सदके उतारा करेंगे /४ </p>
<p></p>
<p>देखना हमसे मिलकर गये हैं </p>
<p>आईने को निहारा करेंगे /५ </p>
<p></p>
<p>...........................................<br/> सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>अरकान: २१२ २१२ २१२२</p>ग़ज़ल- सारथी || न सोना न चांदी न धन ले गई ||tag:openbooks.ning.com,2014-04-03:5170231:BlogPost:5275802014-04-03T10:30:00.000ZSaarthi Baidyanathhttp://openbooks.ning.com/profile/saarthibaidyanath
<p>न सोना न चांदी न धन ले गई </p>
<p>मुहब्बत मेरी बांकपन ले गई/१ </p>
<p></p>
<p>हजारों फ़रिश्ते गये हारकर </p>
<p>मेरी जान तो गुलबदन ले गई/२ </p>
<p></p>
<p>नई ताजगी है नई सुब्ह है </p>
<p>चलो! मौत मेरी थकन ले गई/३ </p>
<p></p>
<p>न मशहूर होना खुदा के लिए </p>
<p>समंदर नदी की उफन ले गई/४ </p>
<p></p>
<p>चलो बेच आएं बची रूह को </p>
<p>गरीबी हमारे बदन ले गई/५ </p>
<p></p>
<p>न ताक़त रही ज़ोश भी कम गया</p>
<p>शिकस्ते वफ़ा सब अगन ले गई/६ </p>
<p></p>
<p>लिबासें चमकती रहे इसलिए </p>
<p>सियासत शहीदी…</p>
<p>न सोना न चांदी न धन ले गई </p>
<p>मुहब्बत मेरी बांकपन ले गई/१ </p>
<p></p>
<p>हजारों फ़रिश्ते गये हारकर </p>
<p>मेरी जान तो गुलबदन ले गई/२ </p>
<p></p>
<p>नई ताजगी है नई सुब्ह है </p>
<p>चलो! मौत मेरी थकन ले गई/३ </p>
<p></p>
<p>न मशहूर होना खुदा के लिए </p>
<p>समंदर नदी की उफन ले गई/४ </p>
<p></p>
<p>चलो बेच आएं बची रूह को </p>
<p>गरीबी हमारे बदन ले गई/५ </p>
<p></p>
<p>न ताक़त रही ज़ोश भी कम गया</p>
<p>शिकस्ते वफ़ा सब अगन ले गई/६ </p>
<p></p>
<p>लिबासें चमकती रहे इसलिए </p>
<p>सियासत शहीदी कफन ले गई/७ </p>
<p></p>
<p>थका पर-कटा सा गया शाम को </p>
<p>हंसी बुलबुलों की चुभन ले गई/८ </p>
<p></p>
<p>हुनर को सभी से छुपाकर रखा </p>
<p>इलाही उसे भी सुखन ले गई/९ </p>
<p> </p>
<p>.....................................................</p>
<p>सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित </p>
<p>अरकान: १२२ १२२ १२२ १२ </p>ग़ज़ल- सारथी || आशिकों की आँख का मोती ग़ज़ल ||tag:openbooks.ning.com,2014-03-03:5170231:BlogPost:5176102014-03-03T05:30:00.000ZSaarthi Baidyanathhttp://openbooks.ning.com/profile/saarthibaidyanath
<p>आशिकों की आँख का मोती ग़ज़ल</p>
<p>देखिए , हंसती कभी रोती ग़ज़ल/१ </p>
<p>है नफ़ासत औ मुहब्बत से पली</p>
<p>तरबियत के बीज भी बोती ग़ज़ल/२ </p>
<p>इन लतीफ़ों –आफ़रीं के दरम्यां</p>
<p>आलमी मेयार को खोती ग़ज़ल/३ </p>
<p>मुफ़लिसी , ये भूख औ तश्नालबी</p>
<p>देख ये मंजर, कहाँ सोती ग़ज़ल/४ </p>
<p>‘सारथी’ जाया न नींदें कीजिये</p>
<p>रतजगा करके कहाँ होती ग़ज़ल/५</p>
<p>.....................................................</p>
<p>सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित </p>
<p>अरकान: २१२२ २१२२ २१२ </p>
<p>आशिकों की आँख का मोती ग़ज़ल</p>
<p>देखिए , हंसती कभी रोती ग़ज़ल/१ </p>
<p>है नफ़ासत औ मुहब्बत से पली</p>
<p>तरबियत के बीज भी बोती ग़ज़ल/२ </p>
<p>इन लतीफ़ों –आफ़रीं के दरम्यां</p>
<p>आलमी मेयार को खोती ग़ज़ल/३ </p>
<p>मुफ़लिसी , ये भूख औ तश्नालबी</p>
<p>देख ये मंजर, कहाँ सोती ग़ज़ल/४ </p>
<p>‘सारथी’ जाया न नींदें कीजिये</p>
<p>रतजगा करके कहाँ होती ग़ज़ल/५</p>
<p>.....................................................</p>
<p>सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित </p>
<p>अरकान: २१२२ २१२२ २१२ </p>ग़ज़ल- सारथी || इशारों से दिल का जलाना तेरा ||tag:openbooks.ning.com,2014-02-17:5170231:BlogPost:5132702014-02-17T11:30:00.000ZSaarthi Baidyanathhttp://openbooks.ning.com/profile/saarthibaidyanath
<p>इशारों से दिल का, जलाना तेरा</p>
<p>अजब! हुस्नवाले, बहाना तेरा /१ </p>
<p>हमें क्या फ़िकर, ग़र जमाना कहे</p>
<p>दीवाना- दीवाना, दीवाना तेरा /२ </p>
<p>हुआ जब से रिश्ता, हयाई बढ़ी</p>
<p>यूँ साड़ी पहन के, लजाना तेरा /३ </p>
<p>अभी तो जवां हूँ, है गुंजाइशें</p>
<p>जिगर पे उठा लूँ, निशाना तेरा /४ </p>
<p>न नासाज कर दे, कहीं आपको</p>
<p>सनम सर्दियों में, नहाना तेरा /५ </p>
<p>बड़प्पन कहीं से, दिखे तो कहूँ</p>
<p>सुना तो, बड़ा है घराना तेरा /६ </p>
<p>ये तेवर, ये अंदाज़, आसां नहीं</p>
<p>ग़ज़ल, 'सारथी'…</p>
<p>इशारों से दिल का, जलाना तेरा</p>
<p>अजब! हुस्नवाले, बहाना तेरा /१ </p>
<p>हमें क्या फ़िकर, ग़र जमाना कहे</p>
<p>दीवाना- दीवाना, दीवाना तेरा /२ </p>
<p>हुआ जब से रिश्ता, हयाई बढ़ी</p>
<p>यूँ साड़ी पहन के, लजाना तेरा /३ </p>
<p>अभी तो जवां हूँ, है गुंजाइशें</p>
<p>जिगर पे उठा लूँ, निशाना तेरा /४ </p>
<p>न नासाज कर दे, कहीं आपको</p>
<p>सनम सर्दियों में, नहाना तेरा /५ </p>
<p>बड़प्पन कहीं से, दिखे तो कहूँ</p>
<p>सुना तो, बड़ा है घराना तेरा /६ </p>
<p>ये तेवर, ये अंदाज़, आसां नहीं</p>
<p>ग़ज़ल, 'सारथी' जी सुनाना तेरा /७ </p>
<p>...............................................</p>
<p>अरकान: १२२१ २२१२ २१२</p>
<p>सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित </p>ग़ज़ल- सारथी || हुआ है आज क्या घर में ||tag:openbooks.ning.com,2014-01-27:5170231:BlogPost:5046972014-01-27T16:00:00.000ZSaarthi Baidyanathhttp://openbooks.ning.com/profile/saarthibaidyanath
<p class="p0">हुआ है आज क्या घर में हर इक सामान बिखरा है</p>
<p class="p0">उधर खुश्बू पड़ी है और इधर गुलदान बिखरा है /१ </p>
<p class="p0">मुहब्बत क्या है ये जाना मगर जाना ये मरकर ही</p>
<p class="p0">लिपटकर वो कफ़न से किस तरह बेजान बिखरा है /२ </p>
<p class="p0">यहीं मैं दफ्न हूँ आ और उठाकर देख ले मिट्टी</p>
<p class="p0">मेरी पहचान बिखरी है मेरा अरमान बिखरा है /३ </p>
<p class="p0">मुझे रुस्वाइयों का गम नहीं गम है तो ये गम है</p>
<p class="p0">लबों पर बेजुबानों के तेरा एहसान बिखरा है /४ …</p>
<p class="p0">हुआ है आज क्या घर में हर इक सामान बिखरा है</p>
<p class="p0">उधर खुश्बू पड़ी है और इधर गुलदान बिखरा है /१ </p>
<p class="p0">मुहब्बत क्या है ये जाना मगर जाना ये मरकर ही</p>
<p class="p0">लिपटकर वो कफ़न से किस तरह बेजान बिखरा है /२ </p>
<p class="p0">यहीं मैं दफ्न हूँ आ और उठाकर देख ले मिट्टी</p>
<p class="p0">मेरी पहचान बिखरी है मेरा अरमान बिखरा है /३ </p>
<p class="p0">मुझे रुस्वाइयों का गम नहीं गम है तो ये गम है</p>
<p class="p0">लबों पर बेजुबानों के तेरा एहसान बिखरा है /४ </p>
<p class="p0">ग़ज़ल के वास्ते मैं फिर नई पोशाक लाया हूँ</p>
<p class="p0">अलग ये बात पुर्जों में मेरा दीवान बिखरा है /५ </p>
<p>.............................................................<br/> <span>अरकान : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ </span></p>
<p><span>सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित<strong> </strong></span></p>ग़ज़ल- सारथी || जुल्फ़ के पेंचों में ||tag:openbooks.ning.com,2014-01-04:5170231:BlogPost:4962332014-01-04T15:30:00.000ZSaarthi Baidyanathhttp://openbooks.ning.com/profile/saarthibaidyanath
<p class="p0"><span>जुल्फ़ के पेंचों में कमसिन शोख़ियों में</span></p>
<p class="p0">मुब्तला हूँ हुस्न की रानाइयों में/१ </p>
<p class="p0">आसमां के चाँद की अब क्या जरूरत</p>
<p class="p0">चाँद रहता है नजर की खिड़कियों में/२ </p>
<p class="p0">दिल पे भरी पड़ती है दोनों ही सूरत</p>
<p class="p0">हो कहीं वो दूर या नजदीकियों में/३ </p>
<p class="p0">सोचता हूँ अब उसे माँ से मिला दूँ</p>
<p class="p0">छुप के बैठी है जो कब से चिठ्ठियों में/४ </p>
<p class="p0">वो अदाएं दिलवराना क़ातिलाना…</p>
<p class="p0"><span>जुल्फ़ के पेंचों में कमसिन शोख़ियों में</span></p>
<p class="p0">मुब्तला हूँ हुस्न की रानाइयों में/१ </p>
<p class="p0">आसमां के चाँद की अब क्या जरूरत</p>
<p class="p0">चाँद रहता है नजर की खिड़कियों में/२ </p>
<p class="p0">दिल पे भरी पड़ती है दोनों ही सूरत</p>
<p class="p0">हो कहीं वो दूर या नजदीकियों में/३ </p>
<p class="p0">सोचता हूँ अब उसे माँ से मिला दूँ</p>
<p class="p0">छुप के बैठी है जो कब से चिठ्ठियों में/४ </p>
<p class="p0">वो अदाएं दिलवराना क़ातिलाना</p>
<p class="p0">अब कहाँ वो रंग यारों तितलियों में/५ </p>
<p class="p0">है सुकूं कितना,बताउं कैसे तुमको</p>
<p class="p0">यार इज्जत की, कमाई रोटियों में/६ </p>
<p class="p0">चार मिसरों से कहो कांधे पे अपने</p>
<p class="p0">ले चलें हमको सुखन की वादियों में/७ </p>
<p><span class="text_exposed_show"><span class="text_exposed_show">..................................................</span></span></p>
<p>अरकान : २१२२ २१२२ २१२२ </p>
<p>सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित </p>ग़ज़ल- सारथी || देख लो जी ||tag:openbooks.ning.com,2013-12-20:5170231:BlogPost:4900132013-12-20T16:30:00.000ZSaarthi Baidyanathhttp://openbooks.ning.com/profile/saarthibaidyanath
<p>किसी से प्यार करके देख लो जी</p>
<p>हसीं इकरार करके देख लो जी /१</p>
<p>दवा है या मरज़ क्या है मुहब्बत</p>
<p>निगाहें चार करके देख लो जी /२</p>
<p>सनम हैं सर्दियों की धूप जैसी</p>
<p>जरा दीदार करके देख लो जी /३</p>
<p>हमेशा जी-हुजूरी ठीक है क्या ?</p>
<p>कभी इनकार करके देख लो जी /४</p>
<p>बिकेगी धूप चर्चा है गली में</p>
<p>यही ब्योपार करके देख लो जी /५</p>
<p>बहुत है फायदा आवारिगी में</p>
<p>धुआं घर-बार करके देख लो जी /६</p>
<p>यक़ीनन बेशरम हूँ मैं हवा हूँ</p>
<p>खड़ी दीवार करके देख लो जी…</p>
<p>किसी से प्यार करके देख लो जी</p>
<p>हसीं इकरार करके देख लो जी /१</p>
<p>दवा है या मरज़ क्या है मुहब्बत</p>
<p>निगाहें चार करके देख लो जी /२</p>
<p>सनम हैं सर्दियों की धूप जैसी</p>
<p>जरा दीदार करके देख लो जी /३</p>
<p>हमेशा जी-हुजूरी ठीक है क्या ?</p>
<p>कभी इनकार करके देख लो जी /४</p>
<p>बिकेगी धूप चर्चा है गली में</p>
<p>यही ब्योपार करके देख लो जी /५</p>
<p>बहुत है फायदा आवारिगी में</p>
<p>धुआं घर-बार करके देख लो जी /६</p>
<p>यक़ीनन बेशरम हूँ मैं हवा हूँ</p>
<p>खड़ी दीवार करके देख लो जी /७</p>
<p>..................................................</p>
<p>अरकान : १२२२ १२२२ १२२ </p>
<p>सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित </p>ग़ज़ल- सारथी || तुम हो कली कश्मीर की ||tag:openbooks.ning.com,2013-12-07:5170231:BlogPost:4837272013-12-07T07:00:00.000ZSaarthi Baidyanathhttp://openbooks.ning.com/profile/saarthibaidyanath
<p>तुम हो कली कश्मीर की , कोई फ़ना हो जाएगा </p>
<p>रब देख ले तुझको अगर , वो भी फ़िदा हो जाएगा /१</p>
<p>कोरा दुपट्टा बांध लो, पतली कमर के खूंट से </p>
<p>सरकी अगर ये नाज़ से , मौसम खफ़ा हो जाएगा/२</p>
<p>साहिब बहाने से गया, मैं बारहा उसकी गली </p>
<p>दिख जाये गर शोला बदन , कुछ तो नफा हो जाएगा /३ </p>
<p>शीशे से नाजुक हुस्न पर, जालिम बड़ी मगरूर है </p>
<p>दो पल की है ये नाजुकी, फिर सब हवा हो जाएगा /४ </p>
<p>मुझको सज़ा-ए-मौत दो , शामिल रहा हूँ क़त्ल में </p>
<p>उनको <span>सुकूँ</span> मिल जाएगी, हक़ भी…</p>
<p>तुम हो कली कश्मीर की , कोई फ़ना हो जाएगा </p>
<p>रब देख ले तुझको अगर , वो भी फ़िदा हो जाएगा /१</p>
<p>कोरा दुपट्टा बांध लो, पतली कमर के खूंट से </p>
<p>सरकी अगर ये नाज़ से , मौसम खफ़ा हो जाएगा/२</p>
<p>साहिब बहाने से गया, मैं बारहा उसकी गली </p>
<p>दिख जाये गर शोला बदन , कुछ तो नफा हो जाएगा /३ </p>
<p>शीशे से नाजुक हुस्न पर, जालिम बड़ी मगरूर है </p>
<p>दो पल की है ये नाजुकी, फिर सब हवा हो जाएगा /४ </p>
<p>मुझको सज़ा-ए-मौत दो , शामिल रहा हूँ क़त्ल में </p>
<p>उनको <span>सुकूँ</span> मिल जाएगी, हक़ भी अदा हो जाएगा/५ </p>
<p>कोई मुसाफिर भूल कर, जाये उधर तो रोक लो</p>
<p>तफ़सील से समझा उसे, वो गुमशुदा हो जाएगा/६ </p>
<p>माँ की नजर जो पड़ गई उस पर कभी ईमान से</p>
<p>सच कह रहा हूँ तिफ़्ल भी, कल बादशा हो जाएगा/७ </p>
<p>भगवान मुझको माफ़ कर, मजबूर हूँ मैं इस कदर</p>
<p>दो जून की रोटी जो दे, मेरा खुदा हो जाएगा/८ </p>
<p>माने कहाँ गुस्ताख़ दिल, देखे लगाकर टकटकी</p>
<p>नादान है दो पल में ही , सबको पता हो जाएगा/९ </p>
<p>पैसे के पीछे भागते, इंसान को मत रोकिये</p>
<p>थक जाएगा, फिर हारकर खुद ही जुदा हो जाएगा/१०</p>
<p>शैदाइ सारे हैं जमा , तू सारथी की है ग़ज़ल</p>
<p>घूँघट उठाकर देख लो, सबका भला हो जाएगा/११ </p>
<p>.........................................................</p>
<p>अरकान : २२१२ २२१२ २२१२ २२१२</p>
<p>सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित <br/> तर्जुमा: फना = मर मिटना ,तफ़सील =विस्तार से ,तिफ़्ल =बच्चा ,शैदाई =चाहने वाले </p>ग़ज़ल- सारथी || कली बेजार है ||tag:openbooks.ning.com,2013-11-28:5170231:BlogPost:4786362013-11-28T06:00:00.000ZSaarthi Baidyanathhttp://openbooks.ning.com/profile/saarthibaidyanath
<p>कली बेजार है, अपनी नजाकत से</p>
<p>बला की खूबसूरत हैं, क़यामत से/१</p>
<p>अकेला हुस्न जो देखा सरे-महफ़िल</p>
<p>तो हम पहलू में जा बैठे शरारत से /२</p>
<p>ज़मीं पर चाँद उतरा है ख़ुशी है ; पर</p>
<p>सितारे ग़मज़दा हैं इस बगावत से /३</p>
<p>बदन सोने सरीखा है , अगर मानो </p>
<p>जरा सा तिल लगा दूँ मैं, इजाजत से /४</p>
<p>बड़े खामोश रहते हो, वजह क्या है</p>
<p>समंदर दिल में रक्खा है हिफाजत से/५</p>
<p>सुना जो बागबां से आप का किस्सा</p>
<p>गुलिस्तां छोड़ आये हैं शराफ़त से /६</p>
<p>मेरी माँ फिक्रमंदी में,…</p>
<p>कली बेजार है, अपनी नजाकत से</p>
<p>बला की खूबसूरत हैं, क़यामत से/१</p>
<p>अकेला हुस्न जो देखा सरे-महफ़िल</p>
<p>तो हम पहलू में जा बैठे शरारत से /२</p>
<p>ज़मीं पर चाँद उतरा है ख़ुशी है ; पर</p>
<p>सितारे ग़मज़दा हैं इस बगावत से /३</p>
<p>बदन सोने सरीखा है , अगर मानो </p>
<p>जरा सा तिल लगा दूँ मैं, इजाजत से /४</p>
<p>बड़े खामोश रहते हो, वजह क्या है</p>
<p>समंदर दिल में रक्खा है हिफाजत से/५</p>
<p>सुना जो बागबां से आप का किस्सा</p>
<p>गुलिस्तां छोड़ आये हैं शराफ़त से /६</p>
<p>मेरी माँ फिक्रमंदी में, दुआगो है</p>
<p>के रख अल्लाह बेटे को मुहब्बत से /७</p>
<p>.................................................</p>
<p>वज्न: १२२२ १२२२ १२२२ </p>
<p>सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित </p>
<p></p>
<p> </p>
<p></p>ग़ज़ल- सारथी || तमन्ना जाग उठती है ||tag:openbooks.ning.com,2013-11-14:5170231:BlogPost:4713332013-11-14T17:30:00.000ZSaarthi Baidyanathhttp://openbooks.ning.com/profile/saarthibaidyanath
<p>तमन्ना जाग उठती है , तेरे कूचे में आने से</p>
<p class="p0">तेरे चिलमन हटाने से जरा सा मुस्कुराने से/१ </p>
<p class="p0">अजब ही दौर था जालिम ग़ज़ल की नब्ज़ चलती थी</p>
<p class="p0">मेरी पलकें उठाने से तेरी पलकें झुकाने से/२ </p>
<p class="p0">कहीं जाओ मगर अच्छे मकां मिलते कहाँ हैं अब</p>
<p class="p0">हमारे दिल में आ जाओ, ये बेहतर हर ठिकाने से/३ </p>
<p class="p0">पतंगों सा गिरा कटकर तेरी छत पर अरे क़ातिल</p>
<p class="p0">कि बाहों उठाले तू किसी तरह बहाने से/४ …</p>
<p>तमन्ना जाग उठती है , तेरे कूचे में आने से</p>
<p class="p0">तेरे चिलमन हटाने से जरा सा मुस्कुराने से/१ </p>
<p class="p0">अजब ही दौर था जालिम ग़ज़ल की नब्ज़ चलती थी</p>
<p class="p0">मेरी पलकें उठाने से तेरी पलकें झुकाने से/२ </p>
<p class="p0">कहीं जाओ मगर अच्छे मकां मिलते कहाँ हैं अब</p>
<p class="p0">हमारे दिल में आ जाओ, ये बेहतर हर ठिकाने से/३ </p>
<p class="p0">पतंगों सा गिरा कटकर तेरी छत पर अरे क़ातिल</p>
<p class="p0">कि बाहों उठाले तू किसी तरह बहाने से/४ </p>
<p class="p0">हमारे नाम से साकी सभी को मय पिला देना</p>
<p class="p0">सितारे रतजगा के हैं थके हारे जमाने से/५ </p>
<p class="p0">परेशां हो पशेमां हो यही पूछे जवाबी ख़त</p>
<p class="p0">लिखावट क्यूँ नहीं जाती तेरे ख़त को जलाने से/६ </p>
<p class="p0">लुटा शुहरत गवां दौलत मजे में सारथी देखो</p>
<p class="p0">अमीरी है फ़कीरों सी घटेगा क्या लुटाने से/७ </p>
<p>..........................................................</p>
<p>वज्न: १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ </p>
<p>सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित</p>ग़ज़ल- सारथी || दर्दे-दिल दीजिये या दवा दीजिये ||tag:openbooks.ning.com,2013-10-24:5170231:BlogPost:4602002013-10-24T08:00:00.000ZSaarthi Baidyanathhttp://openbooks.ning.com/profile/saarthibaidyanath
<p class="p0">दर्दे-दिल दीजिये या दवा दीजिये </p>
<p class="p0">बस जरा सा सनम मुस्कुरा दीजिये /१ </p>
<p class="p0">लूट ले जायेगा कोई रहजन सनम </p>
<p class="p0">आप दिल को हमीं में छुपा दीजिये /२ </p>
<p class="p0">आखरी साँस भी ले गया डाकिया </p>
<p class="p0">पढ़! उसे भी ख़ुशी से जला दीजिये /३ </p>
<p class="p0">नींद को ठंड लग जाएगी ऐ खुदा </p>
<p class="p0">लीजिये जिस्म मेरा उढ़ा दीजिये /४ </p>
<p class="p0">लग रहा है थका वक़्त भी घूमकर </p>
<p class="p0">पांव उसके दबाकर सुला दीजिये /५…</p>
<p class="p0">दर्दे-दिल दीजिये या दवा दीजिये </p>
<p class="p0">बस जरा सा सनम मुस्कुरा दीजिये /१ </p>
<p class="p0">लूट ले जायेगा कोई रहजन सनम </p>
<p class="p0">आप दिल को हमीं में छुपा दीजिये /२ </p>
<p class="p0">आखरी साँस भी ले गया डाकिया </p>
<p class="p0">पढ़! उसे भी ख़ुशी से जला दीजिये /३ </p>
<p class="p0">नींद को ठंड लग जाएगी ऐ खुदा </p>
<p class="p0">लीजिये जिस्म मेरा उढ़ा दीजिये /४ </p>
<p class="p0">लग रहा है थका वक़्त भी घूमकर </p>
<p class="p0">पांव उसके दबाकर सुला दीजिये /५ </p>
<p class="p0">दर्द है , ज़ख्म है लाइए इश्क़ को </p>
<p class="p0">इक नया आदमी फिर बना दीजिये /६ </p>
<p class="p0">शोर है भीड़ है, यूँ जनाज़े के दिन </p>
<p class="p0">‘सारथी’ इक ग़ज़ल तो सुना दीजिये/७ </p>
<p>.....................................................<br/> वज्न: २१२ २१२ २१२ २१२ </p>
<p>सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित</p>ग़ज़ल- सारथी || अलग सबसे तबीयत है करें क्या ||tag:openbooks.ning.com,2013-10-19:5170231:BlogPost:4574362013-10-19T06:30:00.000ZSaarthi Baidyanathhttp://openbooks.ning.com/profile/saarthibaidyanath
<p>अलग सबसे तबीयत है करें क्या</p>
<p>कि इक बुत से मुहब्बत है करें क्या /१</p>
<p>दुआ में मांगते हैं मौत मेरी</p>
<p>सितमगर की शरारत है करें क्या /२</p>
<p>न कोई आ रहा सुन डुगडुगी अब</p>
<p>मदारी को शिकायत है करें क्या /३</p>
<p>ये आदत छोड़िये जी शाइरी की </p>
<p>मगर दिल की जरुरत है करें क्या /४</p>
<p>तमाशा देख लो उस नामवर का</p>
<p>लिबासों की इबादत है करें क्या /५</p>
<p>हमें दिल में सनम ने रख लिया है</p>
<p>न मरने की इजाजत है करें क्या /६</p>
<p>अरे अब आसमां मत बांट देना</p>
<p>ज़मीं ने की…</p>
<p>अलग सबसे तबीयत है करें क्या</p>
<p>कि इक बुत से मुहब्बत है करें क्या /१</p>
<p>दुआ में मांगते हैं मौत मेरी</p>
<p>सितमगर की शरारत है करें क्या /२</p>
<p>न कोई आ रहा सुन डुगडुगी अब</p>
<p>मदारी को शिकायत है करें क्या /३</p>
<p>ये आदत छोड़िये जी शाइरी की </p>
<p>मगर दिल की जरुरत है करें क्या /४</p>
<p>तमाशा देख लो उस नामवर का</p>
<p>लिबासों की इबादत है करें क्या /५</p>
<p>हमें दिल में सनम ने रख लिया है</p>
<p>न मरने की इजाजत है करें क्या /६</p>
<p>अरे अब आसमां मत बांट देना</p>
<p>ज़मीं ने की फज़ीहत है करें क्या /७</p>
<p>मियां तुम लाख खुद को पाक़ बोलो</p>
<p>नज़र आती हकीक़त है करें क्या /८</p>
<p>किताबें बंद कर लो सारथी जी</p>
<p>कि सांसों की बगावत है करें क्या /९</p>
<p>........................................................</p>
<p>सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित </p>
<p>वज्न १२२२ १२२२ १२२ </p>ग़ज़ल- सारथी || ज़िक्र कुछ यार का किया जाये ||tag:openbooks.ning.com,2013-10-07:5170231:BlogPost:4509612013-10-07T06:00:00.000ZSaarthi Baidyanathhttp://openbooks.ning.com/profile/saarthibaidyanath
<p class="p0">ज़िक्र कुछ यार का किया जाये</p>
<p class="p0">ज़िन्दगी आ जरा जिया जाये /१ </p>
<p class="p0">हो चुकी हो अगर सजा पूरी</p>
<p class="p0">दर्दे दिल को रिहा किया जाये /२ </p>
<p class="p0">चाँद छूने के ही बराबर है</p>
<p class="p0">मखमली हाथ छू लिया जाये /३ </p>
<p class="p0">ज़ख़्म ताजा बहुत जरुरी है</p>
<p class="p0">चल कहीं दिललगा लिया जाये /४ </p>
<p class="p0">वक़्त ने मिन्नतें नहीं मानी</p>
<p class="p0">माँ को खुलके बता दिया जाये /५ </p>
<p class="p0">हसरतें ईद की अधूरी हैं…</p>
<p class="p0">ज़िक्र कुछ यार का किया जाये</p>
<p class="p0">ज़िन्दगी आ जरा जिया जाये /१ </p>
<p class="p0">हो चुकी हो अगर सजा पूरी</p>
<p class="p0">दर्दे दिल को रिहा किया जाये /२ </p>
<p class="p0">चाँद छूने के ही बराबर है</p>
<p class="p0">मखमली हाथ छू लिया जाये /३ </p>
<p class="p0">ज़ख़्म ताजा बहुत जरुरी है</p>
<p class="p0">चल कहीं दिललगा लिया जाये /४ </p>
<p class="p0">वक़्त ने मिन्नतें नहीं मानी</p>
<p class="p0">माँ को खुलके बता दिया जाये /५ </p>
<p class="p0">हसरतें ईद की अधूरी हैं</p>
<p class="p0">ख़ामुशी से जता दिया जाये /६ </p>
<p class="p0">चाँद से कल मेरी सगाई है</p>
<p class="p0">रकमें मेहर ज़मीं दिया जाये /७ </p>
<p class="p0">गुफ़्तगू धड़कनों की जारी है</p>
<p class="p0">यार शम्मा बुझा दिया जाये /८ </p>
<p class="p0">कब तलक ‘सारथी’ सुनाएगा</p>
<p class="p0">यार मुझको दफा किया जाये /९ </p>
<p><span>.............................................</span><br/> *सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित <br/> <span> बह्र : २१२२ १२१२ २२ </span></p>ग़ज़ल- सारथी || कोई अच्छा बहाना देख लेना ||tag:openbooks.ning.com,2013-09-21:5170231:BlogPost:4385382013-09-21T11:30:00.000ZSaarthi Baidyanathhttp://openbooks.ning.com/profile/saarthibaidyanath
<p>कोई अच्छा बहाना देख लेना</p>
<p>कहीं दिलकश ठिकाना देख लेना /१ </p>
<p>अगर मिलना हो तुमको हमनशीं से </p>
<p>तो फिर मौसम सुहाना देख लेना/२ </p>
<p>भले ही मुश्किलों में हम पले हैं</p>
<p>हमारा मुस्कुराना देख लेना/३ </p>
<p>मजा लेना अगर है दुश्मनी का</p>
<p>कोई दुश्मन पुराना देख लेना /४ </p>
<p>किसी की आबरू यूँ मत उछालो</p>
<p>कभी इज्ज़त गंवाना देख लेना/५ </p>
<p>सितारों की कबड्डी में मजा क्या </p>
<p>कभी परदा हटाना देख लेना /६ </p>
<p>हमारा ‘सारथी’ है नाम समझे</p>
<p>मिज़ाजे - शाइराना देख…</p>
<p>कोई अच्छा बहाना देख लेना</p>
<p>कहीं दिलकश ठिकाना देख लेना /१ </p>
<p>अगर मिलना हो तुमको हमनशीं से </p>
<p>तो फिर मौसम सुहाना देख लेना/२ </p>
<p>भले ही मुश्किलों में हम पले हैं</p>
<p>हमारा मुस्कुराना देख लेना/३ </p>
<p>मजा लेना अगर है दुश्मनी का</p>
<p>कोई दुश्मन पुराना देख लेना /४ </p>
<p>किसी की आबरू यूँ मत उछालो</p>
<p>कभी इज्ज़त गंवाना देख लेना/५ </p>
<p>सितारों की कबड्डी में मजा क्या </p>
<p>कभी परदा हटाना देख लेना /६ </p>
<p>हमारा ‘सारथी’ है नाम समझे</p>
<p>मिज़ाजे - शाइराना देख लेना /७ </p>
<p>.............................................<br/> *सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित <br/> बह्र : १२२२ १२२२ १२२ </p>
<p> </p>
<p></p>ग़ज़ल- सारथी || बहुत चर्चा हमारा हो रहा है ||tag:openbooks.ning.com,2013-09-18:5170231:BlogPost:4371682013-09-18T12:30:00.000ZSaarthi Baidyanathhttp://openbooks.ning.com/profile/saarthibaidyanath
<p>बहुत चर्चा हमारा हो रहा है</p>
<p>इशारों में इशारा हो रहा है /१ </p>
<p>लकीरें हाथ की बेकार हैं सब </p>
<p>समझिये बस गुजारा हो रहा है /२ </p>
<p>न जाने रूह पर गुजरी है क्या क्या </p>
<p>बदन का खून खारा हो रहा है /३ </p>
<p>गगन के तारे क्यूँ जलने लगे हैं</p>
<p>कोई जुगनू सितारा हो रहा है /४ </p>
<p>तुम अपनी धड़कनों को साधे रखना </p>
<p>तुम्हारा दिल हमारा हो रहा है/५ <br/> .............................................<br/> बह्र : १२२२ १२२२ १२२ <br/> *सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित </p>
<p>बहुत चर्चा हमारा हो रहा है</p>
<p>इशारों में इशारा हो रहा है /१ </p>
<p>लकीरें हाथ की बेकार हैं सब </p>
<p>समझिये बस गुजारा हो रहा है /२ </p>
<p>न जाने रूह पर गुजरी है क्या क्या </p>
<p>बदन का खून खारा हो रहा है /३ </p>
<p>गगन के तारे क्यूँ जलने लगे हैं</p>
<p>कोई जुगनू सितारा हो रहा है /४ </p>
<p>तुम अपनी धड़कनों को साधे रखना </p>
<p>तुम्हारा दिल हमारा हो रहा है/५ <br/> .............................................<br/> बह्र : १२२२ १२२२ १२२ <br/> *सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित </p>