ASHISH KUMAAR TRIVEDI's Posts - Open Books Online2024-03-29T12:29:54ZASHISH KUMAAR TRIVEDIhttp://openbooks.ning.com/profile/ASHISHKUMAARTRIVEDIhttp://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2991285369?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1http://openbooks.ning.com/profiles/blog/feed?user=065tsfbj3i4t8&xn_auth=noफ़ोकट का तमाशा {लघु कथा}tag:openbooks.ning.com,2016-08-08:5170231:BlogPost:7907572016-08-08T05:00:00.000ZASHISH KUMAAR TRIVEDIhttp://openbooks.ning.com/profile/ASHISHKUMAARTRIVEDI
<p>आज फिर कामिनी बाहर गली में आकर चिल्ला रही थी 'कोई भी नही बचेगा, सब को सजा मिलेगी. कानून किसी को नही छोड़ेगा.' सभी अपने अपने घरों से झांक रहे थे. उसका भाई इंदर उसे समझा बुझा कर भीतर ले जाने का प्रयास कर रहा था.</p>
<p>अपनी बहन की इस दशा से वह बहुत दुखी था. बड़ी मुश्किल से समझा बुझा कर वह उसे भीतर ले गया. कुछ देर तक अपने अपने घरों से बाहर झांकने के बाद सब भीतर चले गए.</p>
<p>कभी कामिनी भी एक सामान्य लड़की थी. एक कंपनी में नौकरी करती थी. कुछ ही समय में विवाह होने वाला था. अपने आने वाले भविष्य…</p>
<p>आज फिर कामिनी बाहर गली में आकर चिल्ला रही थी 'कोई भी नही बचेगा, सब को सजा मिलेगी. कानून किसी को नही छोड़ेगा.' सभी अपने अपने घरों से झांक रहे थे. उसका भाई इंदर उसे समझा बुझा कर भीतर ले जाने का प्रयास कर रहा था.</p>
<p>अपनी बहन की इस दशा से वह बहुत दुखी था. बड़ी मुश्किल से समझा बुझा कर वह उसे भीतर ले गया. कुछ देर तक अपने अपने घरों से बाहर झांकने के बाद सब भीतर चले गए.</p>
<p>कभी कामिनी भी एक सामान्य लड़की थी. एक कंपनी में नौकरी करती थी. कुछ ही समय में विवाह होने वाला था. अपने आने वाले भविष्य को लेकर वह बहुत खुश थी. उसका होने वाला पति एक अच्छी नौकरी में था. परिवार भी बहुत अच्छा था. अतः वह आने वाले दिनों के सुखद स्वप्न देखने लगी थी.</p>
<p>किंतु उसके सारे सपने बिखर गए. एक दिन जब वह दफ्तर से घर लौट रही थी तब कुछ रईसजादों ने उसे जबरन अपनी कार में बिठा लिया. रात भर उसे नोचने खसोटने के बाद सड़क पर फेंक दिया. लड़के वालों ने विवाह से इंकार कर दिया.</p>
<p>इतने पर भी उसने हिम्मत नही हारी. अपने भाई इंदर के साथ मिलकर कानूनी लड़ाई के ज़रिए इंसाफ पाने का प्रयास किया. पुलिस स्टेशन के चक्कर मेडिकल जांच उसके बाद कोर्ट में प्रतिपक्षी वकील के भद्दे सवाल कुछ भी उसके हौंसले को तोड़ नही सका. लेकिन वह लड़के रसूखदार खानदानों के थे. पैसे की ताकत ने साबित कर दिया कि घटना के समय कोई शहर में नही था. सब बाइज़्ज़त बरी हो गए.</p>
<p>कामिनी यह आघात सह नही पाई. वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठी. अब अक्सर वह इस तरह चीखने चिल्लाने लगती थी.</p>
<p>मोहल्ले वालों के लिए यह आए दिन का तमाशा था. किंतु कामिनी के लिए यह उसके मन की व्यथा थी.</p>
<p></p>
<p>प्रस्तुत रचना मौलिक व अप्रकाशित है </p>पारिवारिक सौहार्दtag:openbooks.ning.com,2013-05-05:5170231:BlogPost:3583132013-05-05T05:30:00.000ZASHISH KUMAAR TRIVEDIhttp://openbooks.ning.com/profile/ASHISHKUMAARTRIVEDI
<p><span class="font-size-3"><span style="font-family: 'comic sans ms', sans-serif;">मानव समाज में पारिवारिक इकाई के अंतर्गत बच्चे युवा एवं बुजुर्ग तीन पीढ़ियों के लोग आते हैं। इन तीनों पीढ़ियों में आयु के अंतर के कारण सोंच में भी अंतर होता है। अक्सर </span><span style="font-family: 'comic sans ms', sans-serif;">सोंच</span> का यह अंतर आपसी टकराव का कारण बन जाता है।</span></p>
<p><span class="font-size-3" style="font-family: 'comic sans ms', sans-serif;">सोंच में अंतर स्वाभाविक है। हर समय का…</span></p>
<p><span class="font-size-3"><span style="font-family: 'comic sans ms', sans-serif;">मानव समाज में पारिवारिक इकाई के अंतर्गत बच्चे युवा एवं बुजुर्ग तीन पीढ़ियों के लोग आते हैं। इन तीनों पीढ़ियों में आयु के अंतर के कारण सोंच में भी अंतर होता है। अक्सर </span><span style="font-family: 'comic sans ms', sans-serif;">सोंच</span> का यह अंतर आपसी टकराव का कारण बन जाता है।</span></p>
<p><span style="font-family: 'comic sans ms', sans-serif;" class="font-size-3">सोंच में अंतर स्वाभाविक है। हर समय का अपना एक सामजिक परिवेश होता है। जो हर पीढ़ी में एक नई सोंच को जन्म देता है। विचारों में परिवर्तन आवश्यक भी है क्योंकि जिस समाज में परिवर्तन नहीं आता वहां ठहराव की स्तिथि पैदा हो जाती है। समाज बहती धारा की तरह होना चाहिए जिसमे समय के साथ साथ बदलाव आते रहे नहीं तो समाज मृतवत हो जाता है। परिवर्तन किसी समाज के जीवित होने की निशानी है।</span></p>
<p><span style="font-family: 'comic sans ms', sans-serif;" class="font-size-3">अतः विचारों का अंतर तो ठीक है किन्तु उसके कारण उपजने वाले मतभेद जो मनमुटाव का कारण बन जाते हैं चिंता का विषय हैं। आखिर ऐसी स्तिथि आती क्यों है। इसका कारण हसी एक दूसरे के दृष्टिकोण को समझने का प्रयास न करना।</span></p>
<p><span style="font-family: 'comic sans ms', sans-serif;" class="font-size-3">बुजुर्गों को शिकायत रहती है की नई पीढ़ी गैरजिम्मेंदार एवं आत्म केन्द्रित है। उन्हें दूसरों की भावनाओं की कद्र ही नहीं। दूसरी तरफ युवाओं का कहना है की बुजुर्गों की सोंच दकियानूसी है। वो हमारे नज़रिए को समझना ही नहीं चाहते हैं तथा किसी भी नए विचार का विरोध करते हैं। यहाँ दोनों पक्षों को समझदारी दिखाना ज़रूरी है।</span></p>
<p><span style="font-family: 'comic sans ms', sans-serif;" class="font-size-3">समय के साथ सामाजिक व्यवास्था में बहुत सारे बदलाव आते हैं। यह आवश्यक नहीं है की जो पहले उचित था वह आज भी उतना ही उचित हो। बुज़ुर्गों को चाहिए की वर्तमान अवश्यक्तों एवं युवाओं के परेशानी को ध्यान में रखकर उनके उनके दृष्टिकोण को समझाने का प्रयास करें।</span></p>
<p><span style="font-family: 'comic sans ms', sans-serif;" class="font-size-3">नयी पीढ़ी को चाहिए की उतावलापन न दिखाते हुए पूरे धैर्य एवं प्रेम के साथ अपनी बात बुजुर्गों के सामने रखें। मतभेद होने पर अपना पक्ष इस प्रकार रखें की उनके आत्मसम्मान को ठेस न लगे।</span></p>
<p><span style="font-family: 'comic sans ms', sans-serif;" class="font-size-3">सबसे बड़ी समस्या किशोर वय के बच्चों एवं उनके माता पिता के बीच होती है। इस अवस्था में बच्चों के भीतर अनेक शारीरिक एवं भावनात्मक बदलाव आते हैं। यह बीच की उम्र होती है जब बच्चे न तो पूरी तरह परिपक्व होते हैं और न हीं बच्चे रह जाते हैं। इस उम्र में उन्हें सबसे अधिक प्रेम अपनत्व एवं मार्गदर्शन की ज़रुरत होती है। यहाँ पूर्ण दायित्व माँ बाप एवं अन्य बड़े लोगों का है कि वो उन्हें उचित छूट दें एवं उन पर आवश्यक नियंत्रण भी रखें।</span></p>
<p><span style="font-family: 'comic sans ms', sans-serif;" class="font-size-3">कुछ चीज़ें जैसे बड़ों का आदर, प्रेम, करुणा, सच्चाई, इमानदारी ये सरे गुण समय के परिवर्तन से अछूते हैं। इनकी सार्थकता हर युग में रहती है। अतः वर्तमान पीढ़ी को ये गुण भावी पीढ़ी को अवश्य देने चाहिए।</span></p>
<p><span style="font-family: 'comic sans ms', sans-serif;" class="font-size-3">पीढ़ियों का अंतर बना रहेगा और विचारों में अंतर भी रहेगा। आवश्यकता परिवारों में ऐसा प्रेमपूर्ण वातावरण बनाने की है जहाँ सब एक दूसरे के विचारों को सुन उनमें सामंजस्य बनाने का प्रयास करें ताकि रिश्तों में मधुरता बनी रहे।</span></p>पंचतंत्र की रोचक कहानियां और बच्चेंtag:openbooks.ning.com,2013-04-25:5170231:BlogPost:3525922013-04-25T06:00:00.000ZASHISH KUMAAR TRIVEDIhttp://openbooks.ning.com/profile/ASHISHKUMAARTRIVEDI
<p><span class="font-size-3" style="font-family: 'comic sans ms', sans-serif;">वर्तमान समय में हमारे बच्चों को मनोरंजन के अनेक साधन उपलब्ध हैं। इनमे सबसे प्रमुख है टी . वी . जिस पर प्रसारित होने वाले कार्टून बच्चों को बेहद पसंद आते हैं। पर बच्चे इनसे क्या सीखते हैं यह सोंच का विषय है।</span></p>
<p><span class="font-size-3" style="font-family: 'comic sans ms', sans-serif;">कई कार्टून चरित्र जो बच्चों में बहुत लोकप्रिय हैं जैसे स्पाइडरमैन, बैटमैन, बेन टेन इत्यादि। बच्चे इन चरित्रों से बहुत…</span></p>
<p><span class="font-size-3" style="font-family: 'comic sans ms', sans-serif;">वर्तमान समय में हमारे बच्चों को मनोरंजन के अनेक साधन उपलब्ध हैं। इनमे सबसे प्रमुख है टी . वी . जिस पर प्रसारित होने वाले कार्टून बच्चों को बेहद पसंद आते हैं। पर बच्चे इनसे क्या सीखते हैं यह सोंच का विषय है।</span></p>
<p><span class="font-size-3" style="font-family: 'comic sans ms', sans-serif;">कई कार्टून चरित्र जो बच्चों में बहुत लोकप्रिय हैं जैसे स्पाइडरमैन, बैटमैन, बेन टेन इत्यादि। बच्चे इन चरित्रों से बहुत प्रभावित होते है और उनका अनुशरण करने का प्रयास करते हैं।</span></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-3" style="font-family: 'comic sans ms', sans-serif;">इन चरित्रों में किसी न किसी शक्ति को दर्शाया जाता है जिसके द्वारा वो आश्चर्यजनक कारनामों को अंजाम देते हैं। अक्सर ऐसे किस्से सुनने में आते रहते हैं जहाँ ऐसे ही कारनामों की नक़ल करते हुए बच्चे अपनी जान जोखिम में डाल लेते हैं।</span></p>
<p><span class="font-size-3" style="font-family: 'comic sans ms', sans-serif;">किन्तु उससे भी अधिक घातक यह है कि बच्चों के मन में यह धारणा बैठ जाती है कि कुछ कर दिखने के लिए हमें किसी असाधारण शक्ति कि आवश्यकता होती है। अतः वे ऐसी किसी शक्ति की कामना करने लगते हैं।</span></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-3" style="font-family: 'comic sans ms', sans-serif;">ऐसे में आवश्यकता इस बात की है कि हम उन्हें इस बात का अहसास कराएँ की अपनी समस्याओं से निपटने के लिए हमें किसी असाधारण शक्ति की नहीं अपितु थोड़ी सूझबूझ एवं आत्मविश्वास की आवश्यकता होती है।</span></p>
<p><span class="font-size-3" style="font-family: 'comic sans ms', sans-serif;">बच्चे किसी भी समाज का भविष्य होते हैं। हमारे बच्चे जितने सच्चरित्र और आत्मविश्वास से भरे होंगे हमारा भविष्य उतना ही उज्जवल होगा। उनके चरित्र निर्माण की जिम्मेंदारी हमारे ऊपर ही है। अतः यह हमारा दायित्व है की हम उन्हें ऐसे मोंराजन के साधन उपलब्ध कराएँ जो उनके चरित्र निर्माण में भी सहायक हों।</span></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-3" style="font-family: 'comic sans ms', sans-serif;">पंचतंत्र की कहानियां इस कसौटी पर खरी उतरती हैं। विष्णु शर्मा द्वारा रचित इस ग्रन्थ के चरित्र वन्य जीव हैं। जिनके द्वारा ज्ञानवर्धक एवं नैतिक बातों को बहुत ही रोचकता और सरलता के साथ कहानियों के रूप में प्रस्तुत किया गया है। जिस खूबी के साथ इन्हें प्रस्तुत किया गया है उससे कहानियों में निहित शिक्षा आसानी से बच्चों के मन में उतारी जा सकती है।</span></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-3" style="font-family: 'comic sans ms', sans-serif;">अतः हमें अपने बच्चों को उस खरगोश की कहानी सुनानी चाहिए जो शेर के पास गया तो उसका भोजन बनने था किन्तु अपनी बुद्धि के दम पर उसने शेर को ही काल का ग्रास बना दिया। या फिर प्यासे कौवे की कहानी जिससे वे समझ सकें की धैर्य पूर्वक किये गए सतत प्रयास द्वारा असंभव भी संभव हो जाता है।</span></p>तत् त्वम् असिtag:openbooks.ning.com,2013-04-21:5170231:BlogPost:3506502013-04-21T06:00:00.000ZASHISH KUMAAR TRIVEDIhttp://openbooks.ning.com/profile/ASHISHKUMAARTRIVEDI
<p><span class="font-size-2" style="font-family: courier new,courier;"><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001460795?profile=original" target="_self"><img class="align-full" src="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001460795?profile=original" width="143"></img></a></span></p>
<p><span class="font-size-2" style="font-family: courier new,courier;">हम हैं कौन, हमारी वास्तविक पहचान क्या है, क्या हम महज हाड़ मांस से बने शरीर मात्र हैं या इससे भी अलग हमारी कोई पहचान है।</span></p>
<p><span class="font-size-2" style="font-family: courier new,courier;">ये प्रश्न सृष्टि के…</span></p>
<p><span style="font-family: courier new,courier;" class="font-size-2"><a target="_self" href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001460795?profile=original"><img class="align-full" src="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001460795?profile=original" width="143"/></a></span></p>
<p><span style="font-family: courier new,courier;" class="font-size-2">हम हैं कौन, हमारी वास्तविक पहचान क्या है, क्या हम महज हाड़ मांस से बने शरीर मात्र हैं या इससे भी अलग हमारी कोई पहचान है।</span></p>
<p><span style="font-family: courier new,courier;" class="font-size-2">ये प्रश्न सृष्टि के प्रारंभ से ही मानव मन को उद्वेलित करते रहे हैं। इन प्रश्नों का उत्तर पाने हेतु मानव अध्यात्म के धरातल पर कदम रखता है।</span></p>
<p><span style="font-family: courier new,courier;" class="font-size-2">हम सिर्फ शरीर मात्र ही नहीं हैं वरन शरीर से पृथक ही हमारा वास्तविक अस्तित्व है। हम सभी में उस परम शक्ति का वास है। 'आत्मा' ही हमारा वास्तविक स्वरुप है। हम सभी में असीमित क्षमताएं हैं।</span></p>
<p><span style="font-family: courier new,courier;" class="font-size-2"><a target="_self" href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001460816?profile=original"><img class="align-full" src="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001460816?profile=original" width="264"/></a></span></p>
<p><span style="font-family: courier new,courier;" class="font-size-2">छान्दोग्य उपनिषद् का महावाक्य है <span style="color: #ff0000;">'तत् त्वम् असि'</span> इसका अर्थ है तुम वो हो। आखिर इसका क्या अर्थ हुआ। इसका अर्थ है हम वही हैं जिसकी हमें तलाश है।</span></p>
<p><span style="font-family: courier new,courier;" class="font-size-2">हम सभी को पूर्णता की खोज है। हम सभी शक्ति, शांति, ज्ञान की अभिलाषा रखते हैं। हम जिन वस्तुओं को बहार तलाशते हैं वे हमारे भीतर ही विद्यमान है। हम अपने आप में सम्पूर्ण हैं। हम परम शक्ति, शांति एवं ज्ञान के भण्डार हैं।</span></p>
<p><span style="font-family: courier new,courier;" class="font-size-2">आवश्यकता स्वयं के भीतर झांकने की हम। हम अपने मन की गहराइयों में जितना अधिक उतरेंगे उतना ही अधिक इस सत्य के निकट होंगे।</span></p>
<p><span style="font-family: courier new,courier;" class="font-size-2">'तत् त्वम् असि' अद्वैत के सिद्धांत पर आधारित है। जिसके अनुसार सम्पूर्ण सृष्टि में केवल एक ब्रह्मं तत्व ही विद्यमान है। ब्रह्मं ही एक मात्र सत्य है जो की सभी चल तथा अचल वस्तुओं में समाया है। क्षुद्र कीट से लेकर ब्रह्मज्ञानी सभी के अंतर में वह आत्मा के रूप में स्थित है। माया उसे अज्ञान के आवरण से ढँक देती है और हमारे सामने विविधताओं का संसार प्रस्तुत हो जाता है। हम स्वयं को उस परम शक्ति से पृथक मान कर उसे बाहरी वस्तुओं में खोजने लगते है। जबकि वह हमारे भीतर स्थित है।</span></p>
<p><span style="font-family: courier new,courier;" class="font-size-2">जब यह द्वैत का भाव रहता है हम स्वयं को निर्बल समझते हैं। <span style="color: #ff0000;">'तत् त्वम् असि'</span> इस महावाक्य का स्मरण हमें इस द्वैत भाव से मुक्त करने में सहायक होता है। हम अपने भीतर एक असीम शक्ति का अनुभव करते हैं। यह महावाक्य ओजपूर्ण है। विषम से विषम परिस्तिथि में भी यह हमारे भीतर एक उर्जा का संचार करता है। हमें निराश नहीं होने देता है क्योंकि हम जानते हैं की हमारे भीतर वह परम शक्ति विद्यमान है।</span></p>
<p><span style="font-family: courier new,courier;" class="font-size-2">स्वयं को असहाय एवं निर्बल न समझें। इस महावाक्य की शक्ति को अपने भीतर महसूस करें। यह उस आत्मविश्वास को जन्म देगा जिसके बल पर आप चुनौतियों के समक्ष स्वयं चुनौती बन कर खड़े होंगे।</span></p>जीवन जीने के लिए हैtag:openbooks.ning.com,2013-04-14:5170231:BlogPost:3469312013-04-14T10:30:00.000ZASHISH KUMAAR TRIVEDIhttp://openbooks.ning.com/profile/ASHISHKUMAARTRIVEDI
<p><span class="font-size-3" style="font-family: georgia,palatino;">हमारे प्रथम रुदन से लेकर अंतिम श्वाश तक जीवन अनुभवों का एक सिलसिला है। सम्पूर्ण जीवन काल में हम प्रेम और घृणा, मान और अपमानं, ख़ुशी और गम आदि द्वंदों के बीच में झूलते रहते है। एक रोलर कोस्टर की भांति इसके उतार चढ़ाव हमें आकर्षित करते हैं।</span></p>
<p><span class="font-size-3" style="font-family: georgia,palatino; color: #ff0000;">"जीवन साईकिल की सवारी की भांति है। संतुलन बनाये रखने के लिए आगे बढ़ते रहना आवश्यक…</span></p>
<p><span style="font-family: georgia,palatino;" class="font-size-3">हमारे प्रथम रुदन से लेकर अंतिम श्वाश तक जीवन अनुभवों का एक सिलसिला है। सम्पूर्ण जीवन काल में हम प्रेम और घृणा, मान और अपमानं, ख़ुशी और गम आदि द्वंदों के बीच में झूलते रहते है। एक रोलर कोस्टर की भांति इसके उतार चढ़ाव हमें आकर्षित करते हैं।</span></p>
<p><span style="font-family: georgia,palatino; color: #ff0000;" class="font-size-3">"जीवन साईकिल की सवारी की भांति है। संतुलन बनाये रखने के लिए आगे बढ़ते रहना आवश्यक है।"</span></p>
<p><span style="font-family: georgia,palatino; color: #ff0000;" class="font-size-3">[अल्बर्ट आइंस्टीन]</span></p>
<p><span style="font-family: georgia,palatino;" class="font-size-3">उतार चढ़ाव तो जीवन का हिस्सा हैं। जीवन में कठिनाईयों का आना जाना लगा रहता है किन्तु हमें किसी भी परिस्तिथि में हार मानकर जीवन के प्रति उदासीन नहीं होना चाहिए। जीवन तो बहती नदी है। यदि इसका बहाव रुक जाए तो इसमें सड़ांध आ जाएगी। अतः हमें हर स्तिथि में आगे बढ़ते रहना चाहिए।</span></p>
<p><span style="font-family: georgia,palatino; color: #ff0000;" class="font-size-3">"जीवन स्वयं को खोजने का नाम नहीं। जीवन स्वनिर्माण के लिए है।" [जार्ज बर्नार्ड शॉ]</span></p>
<p><span style="font-family: georgia,palatino;" class="font-size-3">जीवन हम सभी को यह अवसर प्रदान करता है की हम अपने व्यक्तित्व का निर्माण कर सकें। हम सभी में कोई न कोई प्रतिभा अवश्य होती है। आवश्यकता है उसे पहचान कर उसे उभारने की। जीवन संसार के रंग मंच पर खेला जा रहा एक अनंत नाटक है जिसमें हम सभी अपनी भूमिका निभा रहे हैं। हमें चाहिए कि हम अपनी भूमिका अच्छी प्रकार निभाएं ताकि इस मंच को छोड़ कर जाते समय लोग तालियों के साथ हमें विदा करें।</span></p>
<p><span style="font-family: georgia,palatino; color: #3366ff;" class="font-size-3">'जीवन बहुत अप्रत्याशित है'</span></p>
<p><span style="font-family: georgia,palatino;" class="font-size-3">जीवन में सदैव वही नहीं होता जो हम सोंचते हैं। यह हमारे समक्ष अलग अलग रूपों में आता है। कभी हमको ऐसा महसूस होता है की हम मरुस्थल में भटक रहें हैं। ऐसे में जीवन बहुत कठिन जान पड़ता है। फिर अचानक किसी मोड़ पर ऐसा लगता है कि हम फूलों के बागीचे में खड़े हैं। जहाँ सब कुछ बहुत सुहावना है। किन्तु यह अनिश्चितता इसे और भी रोचक बना देती है।</span></p>
<p><span style="font-family: georgia,palatino; color: #ff0000;" class="font-size-3">"जीवन से भाग कर हम शांति नहीं पा सकते।"</span></p>
<p><span style="font-family: georgia,palatino; color: #ff0000;" class="font-size-3">[वर्जीनिया वुल्फ]</span></p>
<p><span style="font-family: georgia,palatino;" class="font-size-3">जीवन ईश्वर द्वारा दिया गया अनमोल तोहफा है। जीवन हमें मिला है की हम संघर्षों का सामना करते हुए स्वयं का विकास करें। इससे भाग कर कोई भी सुखी नहीं रह सकता है। हमें चाहिए कि जीवन के संघर्षों का डट कर सामना करें। पलायनवादी व्यक्ति उस पागल की तरह होता है जो अपनी ही छाया से दूर भागने का प्रयास करता है।</span></p>
<p><span style="font-family: georgia,palatino;" class="font-size-3">जीवन से भागें नहीं वरन इसका लुत्फ़ उठायें। जो भी हमारे समक्ष आये बिना किसी शिकायत के उसको अपनाएं। जीवन चाहे कैसा हो उसे भार स्वरुप न लें। हर परिस्तिथि में अपना सर ऊंचा रखें, सदैव प्रसन्न रहें और जीवन को पूर्ण रूप से जियें।</span></p>
<p><span style="font-family: georgia,palatino; color: #ff6600;" class="font-size-3">ईश्वर के इस उपहार की कद्र करें इसे व्यर्थ न जानें दें।</span></p>हार न मानें लड़ेंtag:openbooks.ning.com,2013-04-07:5170231:BlogPost:3430162013-04-07T14:00:00.000ZASHISH KUMAAR TRIVEDIhttp://openbooks.ning.com/profile/ASHISHKUMAARTRIVEDI
<p><span class="font-size-2">जीवन में सभी के साथ कोई न कोई कठिनाई होती है। कठिनाईयां तो जीवन का एक हिस्सा हैं। उनसे हार नहीं मानना चाहिए। कठिनाईयों से लड़कर ही उनसे पार पाया जा सकता है न कि उनके सामने घुटने टेक कर। धैर्य, हिम्मत एवं थोड़ी सी सूझ बूझ से मुश्किलों का हराया जा सकता है। किन्तु अक्सर हम समस्याओं से इतने भयभीत हो जाते हैं कि अपना धैर्य खो बैठते हैं। समस्याओं के प्रति हमारा नकारात्मक रवैया हमें अधिक तकलीफ पहुंचाता है।</span></p>
<p><span class="font-size-2">इसके लिए आवश्यक है कि हम…</span></p>
<p><span class="font-size-2">जीवन में सभी के साथ कोई न कोई कठिनाई होती है। कठिनाईयां तो जीवन का एक हिस्सा हैं। उनसे हार नहीं मानना चाहिए। कठिनाईयों से लड़कर ही उनसे पार पाया जा सकता है न कि उनके सामने घुटने टेक कर। धैर्य, हिम्मत एवं थोड़ी सी सूझ बूझ से मुश्किलों का हराया जा सकता है। किन्तु अक्सर हम समस्याओं से इतने भयभीत हो जाते हैं कि अपना धैर्य खो बैठते हैं। समस्याओं के प्रति हमारा नकारात्मक रवैया हमें अधिक तकलीफ पहुंचाता है।</span></p>
<p><span class="font-size-2">इसके लिए आवश्यक है कि हम अपने भीतर सकारात्मक सोंच का विकास करें। सकारात्मक सोंच हमें बड़ी से बड़ी समस्या से लड़ने की प्रेरणा देती है। आवश्यकता है की हम समस्याओं से हार न मानकर उनसे लड़ने का इरादा बनाएं।</span></p>
<p><span class="font-size-2">जीवन के प्रति हमारा दृष्टिकोण हमारे जीवन में एक अहम् भूमिका निभाता है। सकारात्मक सोंच रखने वाला व्यक्ति सदैव स्तिथि के उजले पक्ष को देखता है। वह सदैव इस बात पर यकीन करता है कि समस्या के समाधान का कोई न कोई मार्ग ढूंढा जा सकता है। जबकि नकारात्मक सोंच वाला व्यक्ति समस्यायों से डर कर उनसे पीछा छुड़ाने का प्रयास करता है। हमारे पास दो विकल्प हैं या तो अपने दुखों का रोना रोयें या फिर समस्या का सामना करें। दूसरा विकल्प हमें आगे ले जाता है।</span></p>
<p><span class="font-size-2">हमारे भीतर वह शक्ति है की हम अपनी कमज़ोरी को अपनी ताक़त बना सकें।</span></p>
<p><span class="font-size-2">अगाथा क्रिस्टी, अल्बर्ट आइन्स्टीन, बीटओवन इन सब में एक वास्तु समान है। यह सभी समस्या से ग्रसित थे किन्तु इन्होंने समस्या से हार मानने की बजाय उसका सामना किया और अपनी कमजोरी कर काबू पाकर उसे अपनी ताक़त बना लिया। बधिर होने के बावजूद बीतओवन ने कर्णप्रिय धुनों की रचना की, अगथा क्रिस्टी जो की डिसलेक्सिया से पीड़ित थी, को लिखने पढ़ने में मुश्किल थी किन्तु अपनी सकारात्मक सोंच के कारण वह बजाय हार मानने के उसने अपनी समस्या को हरा कर एक प्रसिद्ध जासूसी उपन्यासकार के रूप में अपनी पहचान बनाई। प्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्स्टीन को स्मरणशक्ति से सम्बंधित समस्या थी किन्तु वे नोबेल पुरष्कार के विजेता बने।</span></p>
<p><span class="font-size-2">इन सब के जीवन से हमें एक ही प्रेरणा मिलती है कि हम प्रयत्न करें तो अपनी कमजोरियों से ऊपर उठ सकते हैं।</span></p>
<p><span class="font-size-2">जब एक द्वार बंद होता है तो दूसरा खुल जाता है किन्तु हम बंद दरवाज़े को ही ताकते रहते है और दूसरे दरवाज़े को नहीं देखते हैं। जब परिस्तिथियाँ अनुकूल हों तब जीवन आसान होता है किन्तु प्रतिकूल परिस्तिथियों में ही हमारे धैर्य, विवेक एवं साहस की असल परीक्षा होती है।</span></p>
<p><span class="font-size-2">कठिनाईयों से हार मान लेना आसान है किन्तु उनका सामना करने वाला ही विजय प्राप्त करता है।</span></p>रिश्ते बहुमूल्य निधिtag:openbooks.ning.com,2013-04-02:5170231:BlogPost:3400582013-04-02T14:30:00.000ZASHISH KUMAAR TRIVEDIhttp://openbooks.ning.com/profile/ASHISHKUMAARTRIVEDI
<p><span class="font-size-2">सामाजिक प्राणी होने के नाते हम सभी रिश्तों से घिरे रहते हैं। रिश्ते सामाजिक व्यवस्था का मूल आधार होते हैं। रिश्ते हमें आपस में बांधे रहते हैं। हमारे रिश्ते जितने मज़बूत होते हैं सामजिक ढांचा उतना ही मज़बूत बनता है।</span><br></br> <span class="font-size-2">प्रेम संबंधों को सबल बनाता है। स्वस्थ संबंधों के लिए आवश्यक है की हमारे बीच एक दूसरे के लिए आदर तथा आपसी समझबूझ हो। एक दूसरे के हित लिए अपने निजी स्वार्थों का त्याग रिश्तों को दीर्घायु बनाता है। रिश्ते हमें बहुत कुछ…</span></p>
<p><span class="font-size-2">सामाजिक प्राणी होने के नाते हम सभी रिश्तों से घिरे रहते हैं। रिश्ते सामाजिक व्यवस्था का मूल आधार होते हैं। रिश्ते हमें आपस में बांधे रहते हैं। हमारे रिश्ते जितने मज़बूत होते हैं सामजिक ढांचा उतना ही मज़बूत बनता है।</span><br/> <span class="font-size-2">प्रेम संबंधों को सबल बनाता है। स्वस्थ संबंधों के लिए आवश्यक है की हमारे बीच एक दूसरे के लिए आदर तथा आपसी समझबूझ हो। एक दूसरे के हित लिए अपने निजी स्वार्थों का त्याग रिश्तों को दीर्घायु बनाता है। रिश्ते हमें बहुत कुछ देते हैं। आपसी प्रेम एवं सहयोग तथा एक दूसरे के प्रति समर्पण की भावना हमें पूर्णता प्रदान करती है।</span><br/> <span class="font-size-2">एक रिश्ते को बनाये रखने का दायित्व उसमें सम्मिलित दोनों पक्षों का होता है। केवल एक पक्ष रिश्ते को नहीं बनाए रख सकता है। यदि एक व्यक्ति ही इस दिशा में प्रयास करता है तथा दूसरा उदासीन रहता है तो एक स्वस्थ रिश्ता कायम नहीं हो सकता है। ऐसा रिश्ता सामान्य नहीं होगा। उस रिश्ते में रहने वाला व्यक्ति घुटन महसूस करेगा। उदासीनता एवं उपेक्षा अक्सर सीधे तौर पर जताई गयी घृणा से भी अधिक तकलीफ देती है।</span><br/> <span class="font-size-2">संबंधों में माधुर्य बनाए रखने के लिए आवश्यक है की जिस प्रेम, विश्वास तथा सम्मान की हम दूसरों से अपेक्षा करते हैं वही हम दूसरों को भी दें।</span><br/> <span class="font-size-2">रिश्तों में तनाव तब आता है जब हम दूसरों से अपेक्षाएं तो रखते हैं किन्तु स्वयं दूसरों के लिए कुछ नहीं करते हैं। रिश्ते एक तरफा व्यवहार से नहीं चलते हैं। रिश्तों को बनाये रखने के लिए दोनों पक्षों का सहयोग एवं समर्पण आवश्यक है।</span><br/> <span class="font-size-2">अहम् रिश्तों का सबसे बड़ा शत्रु है। जब अहम् का प्रवेश हमारे संबंधो में होता है तो यह दीमक की भांति उसकी जड़ों को खोखला कर देता है। यह किसी भी रिश्ते में तनाव पूर्ण स्तिथि ले आता है। अहम् व्यक्ति को आत्म केन्द्रित बनाता है। इसके कारण दूसरे के प्रति प्रेम तथा सम्मान की भावना का लोप हो जाता है। व्यक्ति केवल अपने स्वार्थ के बारे में ही सोंचता है। ऐसे में बात बात पर तर्क और एक दूसरे पर दोषारोपण का दौर चलने लगता है। यह स्तिथि रिश्ते में ह्रास का कारण बनती है।</span><br/> <span style="color: #ff0000;" class="font-size-2">"अहम् को कभी अपने ह्रदय में स्थान न दें, प्रेम की भावना को कभी अपने ह्रदय से न जानें दें।"</span><br/> <span style="color: #ff0000;" class="font-size-2">[स्वामी विवेकानंद]</span></p>
<p><span class="font-size-2">संदेह भी रिश्तों के टूटने का प्रमुख कारण है। किसी भी रिश्ते के लिए आवश्यक है की दोनों पक्ष एक दूसरे पर पूर्ण विश्वास रखें। इसके लिए संबंधों में पारदर्शिता अति आवश्यक है। संदेह रिश्तों में ज़हर घोल देता है। संदेह वह तलवार है जो रिश्तों को लहुलुहान कर देती है।</span><br/> <span class="font-size-2">रिश्तों का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान होता है। संबंधों से मिलने वाली ऊर्जा हमें भावनात्मक रूप से सबल बनती है तथा हमारे विकास में सहायक होती है। अतः संबंधों की मर्यादा को बनाए रखना हमारा कर्त्तव्य है।</span><br/> <span style="color: #ff0000;" class="font-size-2">" संबंध जीवन से भी अधिक महत्वपूर्ण हैं किन्तु उससे अधिक महत्वपूर्ण है कि संबंधों में सजीवता रहे।"</span></p>
<p><span style="color: #ff0000;" class="font-size-2">[स्वामी विवेकानंद]</span></p>
<p></p>
<p><span style="color: #3366ff;" class="font-size-2">" खुशियों का हमारे जीवन में तभी महत्त्व है जब उन्हें हमारे साथ बाटने वाले मित्र तथा प्रियजन हमारे साथ हों।"</span></p>आत्म साक्षात्कारtag:openbooks.ning.com,2013-03-11:5170231:BlogPost:3316732013-03-11T15:00:00.000ZASHISH KUMAAR TRIVEDIhttp://openbooks.ning.com/profile/ASHISHKUMAARTRIVEDI
<p><span class="font-size-3" style="font-size: 20pt;"><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001460724?profile=original" target="_self"><img class="align-right" src="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001460724?profile=RESIZE_320x320" width="200"></img></a> <span class="font-size-6"> इ</span>स सृष्टि के प्रारम्भ से ही मानव ह्रदय में अपने अस्तित्व को लेकर अनेक प्रश्न उठते रहे हैं।</span> <span style="color: #ff0000;"><span class="font-size-3">'</span>मैं कौन हूँ' 'इस धरती पर मेरे आगमन का क्या औचित्य है' ' वह कौन है जो इस सम्पूर्ण सृष्टि को नियंत्रित करता है'…</span></p>
<p><span class="font-size-3" style="font-size: 20pt;"><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001460724?profile=original" target="_self"><img width="200" src="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001460724?profile=RESIZE_320x320" class="align-right" width="200"/></a><span class="font-size-6"> इ</span>स सृष्टि के प्रारम्भ से ही मानव ह्रदय में अपने अस्तित्व को लेकर अनेक प्रश्न उठते रहे हैं।</span> <span style="color: #ff0000;"><span class="font-size-3">'</span>मैं कौन हूँ' 'इस धरती पर मेरे आगमन का क्या औचित्य है' ' वह कौन है जो इस सम्पूर्ण सृष्टि को नियंत्रित करता है'</span> <span class="font-size-3" style="font-size: 20pt;">इन सभी प्रश्नों ने वर्षों से मानव ह्रदय को आंदोलित कर रखा है। मनुष्य की सम्पूर्ण वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक प्रगति का कारण यही प्रश्न रहे हैं।</span></p>
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<p></p>
<p><span class="font-size-3"> जब भी इन प्रश्नों ने किसी व्यक्ति के मन को माथा है तब वह इन प्रश्नों का उत्तर प्राप्त करने के लिए व्याकुल हो उठा है। उसकी इस व्याकुलता ने उसे आध्यात्म के दुष्कर मार्ग का पथिक बना दिया है। अपने प्रश्नों का उत्तर खोजने के लिए वह सिद्धार्थ की भांति अपना सर्वस्व त्याग कर इस दुर्गम मार्ग पर चल पड़ा है। यह सिद्धार्थ जब अपने प्रश्नों के वन में भटकते भटकते थक जाता है तब शांत होकर एक स्थान पर बैठ जाता है। अपने आप को बाहरी दुनिया से पृथक कर वह अंतर्मुखी हो जाता है। गहन साधना के बाद वह उन प्रश्नों का उत्तर अपने भीतर पाता है जिन्हें पाने के लिए वह बाहर भटक रहा था। हर सिद्धार्थ को गौतम बनाने के लिए इस प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है।</span></p>
<p><span class="font-size-3">भगवद गीता में आत्म साक्षात्कार के दो मार्ग बताये गए हैं -</span></p>
<ul>
<li><span style="font-size: 20pt; color: #ff0000;" class="font-size-3">ज्ञान मार्ग </span></li>
<li><span style="font-size: 20pt; color: #ff0000;" class="font-size-3">कर्म मार्ग</span></li>
</ul>
<p><span class="font-size-3">ज्ञान का मार्ग बहुत कठिन है। यह मार्ग उनके लिए उचित है जो जो पूर्ण ज्ञानी हैं। एक नौसीखिए के लिए</span></p>
<p><span class="font-size-3">यह डगर फिसलन से भरी है। अतः आत्म अनुभूति की चाह रखने वाले के लिए निष्काम कर्म का मार्ग ही श्रेष्ठ है।</span></p>
<p><span class="font-size-3">व्यक्ति चाहे किसी भी मार्ग का चुनाव करे किन्तु एक दृढ प्रतिज्ञ व्यक्ति ही आध्यात्म की राह पर आगे बढ़ सकता है। आत्म विश्वास से भरा हुआ व्यक्ति ही इस यात्रा की कठिनाईयों का सामना कर सकता है। पलायनवादी व्यक्ति जो आत्म अनुभूति की आड़ में अपने कर्तव्यों से भागता है कभी भी सफलता नहीं पाता है। आत्म साक्षात्कार का मार्ग दुर्बल ह्रदय वाले व्यक्तियों के लिए नहीं है।</span></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-3"> प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का उद्देश्य आत्म अनुभूति है। जैसे नदियाँ सागर की ओर बढ़ती हैं हम भी आत्म अनुभूति के पथ पर तब तक बढ़ते रहते हैं जब तक अपनी मंजिल न पा लें। इस प्रक्रिया में कई जन्म लग जाते हैं।</span></p>जीवन धाराtag:openbooks.ning.com,2013-03-09:5170231:BlogPost:3299852013-03-09T07:16:31.000ZASHISH KUMAAR TRIVEDIhttp://openbooks.ning.com/profile/ASHISHKUMAARTRIVEDI
<p><span class="font-size-3">जब मि . गुप्ता ने कैफे में प्रवेश किया तब मि . खान और मसंद का ठहाका उनके कानों में पड़ा। उन्हें देखकर मि .खान बोले " आओ भाई सुभाष आज देर कर दी।" मि . गुप्ता ने बैठते हुए कहा " अभी तक रघु नहीं आया, वो तो हमेशा सबसे पहले आ जाता है।" मि . मसंद बोले " हाँ हर बार सबसे पहले आता है और हमें देर से आने के लिए आँखें दिखाता है, आज आने दो उसे सब मिलकर उसकी क्लास लेंगे।" एक और संयुक्त ठहाका कैफे में गूंज उठा।</span></p>
<p><span class="font-size-3">तीनों मित्र मि . मेहता का…</span></p>
<p><span class="font-size-3">जब मि . गुप्ता ने कैफे में प्रवेश किया तब मि . खान और मसंद का ठहाका उनके कानों में पड़ा। उन्हें देखकर मि .खान बोले " आओ भाई सुभाष आज देर कर दी।" मि . गुप्ता ने बैठते हुए कहा " अभी तक रघु नहीं आया, वो तो हमेशा सबसे पहले आ जाता है।" मि . मसंद बोले " हाँ हर बार सबसे पहले आता है और हमें देर से आने के लिए आँखें दिखाता है, आज आने दो उसे सब मिलकर उसकी क्लास लेंगे।" एक और संयुक्त ठहाका कैफे में गूंज उठा।</span></p>
<p><span class="font-size-3">तीनों मित्र मि . मेहता का इंतज़ार कर रहे थे। मि . मेहता ही थे जिन्होंने चारों मित्रों को फिर से एकजुट किया था। चारों कॉलेज के ज़माने के अच्छे मित्र थे। कॉलेज में उनका ग्रुप मशहूर था। किन्तु वक़्त के बहाव ने इन्हें अलग कर दिया। रिटायरमेंट के बाद मि . मेहता ने खोज बीन कर बाकी तीनों को इक्कठा किया। इत्तेफाक से सभी मित्र एक ही शहर में थे। सभी पहली बार इसी कैफे में मिले थे। उसके बाद यह कैफे ही उनका अड्डा बन गया। हर माह की बीस तारीख को सभी यहीं मिलते। आपस में हंसी मजाक करते। कुछ पुरानी यादें ताज़ा करते। मि .खान की शायरी और मि .मसंद के चुटकुले इन महफिलों को चार चाँद लगाते थे। इस तरह वक़्त कब बीत जाता उन्हें पता ही नहीं चलता था।</span></p>
<p><span class="font-size-3">मि .खान ने अपनी घडी पर नज़र डालते हुए कहा " यार आज तो बहुत देर हो गयी, रघु अभी तक नहीं आया।" मि .मसंद ने भी चिंता जताते हुए कहा " हाँ यार जावेद ठीक कह रहा है।" मि . खान ने मि . मसंद से कहा " भाई नवीन ज़रा फ़ोन तो लगाओ उसे।" मि .मसंद अपना फोन निकाल ही रहे थे कि मि . गुप्ता ने उन्हें रोकते हुए कहा " ठहरो नवीन, ज़रूर कोई खास बात होगी वरना रघु अपने नियम का पक्का है। उसके घर चलकर ही देखते हैं।" मि .खान ने भी उनकी बात का समर्थन किया। तीनों मित्र मि .मेहता के घर चल दिए।</span></p>
<p><span class="font-size-3">मि . मसंद ने काल बेल दबाई। मि .मेहता की बहू ने दरवाज़ा खोला। तीनों अन्दर जाकर बैठ गए। मि . मेहता की बहू ने बताया की पंद्रह तारीख को अचानक उन्हें दिल का दौरा पड़ा। अस्पताल पहुँच कर उन्होंने दम तोड़ दिया। अपने मित्र की अकस्मात् मृत्यु की खबर सुनकर तीनों मित्र स्तब्ध रह गए। कुछ देर ठहराने के बाद वो कैफे में वापस आ गए।</span></p>
<p><span class="font-size-3">कुछ देर शांति छाई रही। मौन को तोड़ते हुए मि . मसंद बोले " अब ........" "अब क्या नवीन अगले महीने बीस तारिख को हम फिर मिलेंगे।" मि . गुप्ता ने एक निर्णय के साथ कहा। " लेकिन रघु तो रहा नहीं।" मि . मसंद ने हिचकिचाते हुए कहा। " तो क्या , हमने कोई पहली बार किसी अपने को खोया है। हम दोनों ने अपनी पत्नियों को खोया है। जावेद ने तो अपने जवान बेटे की मौत का दुःख झेला है। मिलना और बिछड़ना तो जीवन का हिस्सा है। किन्तु जीवन तो बहती धारा है। सोंचो तो रघु ने कितनी मेहनत की थी हमें एक साथ लाने के लिए। पता नहीं अगली बारी हम में से किसकी हो किन्तु जब तक हैं यूँ ही एक दूसरे का सुख दुःख बाटेंगे। पहले की तरह ही हम यहाँ मिलेंगे। हंसी मजाक करेंगे। हमारे मित्र को हमारी यही सच्ची श्रद्धांजली होगी।" यह कह कर उन्होंने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया। तीनों मित्रों ने एक दूसरे का हाथ थाम कर अहद किया कि वो एक दूसरे का साथ नहीं छोड़ेंगे। अगली बीस तारिख को मिलाने का वादा कर तीनों अपने अपने घर चले गए।</span></p>