Ajay Agyat's Posts - Open Books Online2024-03-29T09:23:12ZAjay Agyathttp://openbooks.ning.com/profile/ajaykumarsharmahttp://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2991279926?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1http://openbooks.ning.com/profiles/blog/feed?user=01luh3ylv1ehq&xn_auth=noग़ज़लtag:openbooks.ning.com,2014-11-30:5170231:BlogPost:5918222014-11-30T11:53:51.000ZAjay Agyathttp://openbooks.ning.com/profile/ajaykumarsharma
<p>ग़ज़ल के 4 अशआर </p>
<p></p>
<p>सन्नाटों पर खूब सितम बरपाती है<br/> मेरे भीतर तन्हाई चिल्लाती है<br/> संकल्पों के मन्त्र मैं जब भी जपता हूँ<br/> मंज़िल मेरे और निकट आ जाती है<br/> पूरी क्षमता से जब काम नहीं करता<br/> मेरी किस्मत भी मुझ पर झल्लाती है<br/> हर पल तुझ को याद किया करता हूँ मैं<br/> याद विरह के दंशों को सहलाती है</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित .... </p>
<p>ग़ज़ल के 4 अशआर </p>
<p></p>
<p>सन्नाटों पर खूब सितम बरपाती है<br/> मेरे भीतर तन्हाई चिल्लाती है<br/> संकल्पों के मन्त्र मैं जब भी जपता हूँ<br/> मंज़िल मेरे और निकट आ जाती है<br/> पूरी क्षमता से जब काम नहीं करता<br/> मेरी किस्मत भी मुझ पर झल्लाती है<br/> हर पल तुझ को याद किया करता हूँ मैं<br/> याद विरह के दंशों को सहलाती है</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित .... </p>ग़ज़लtag:openbooks.ning.com,2014-10-15:5170231:BlogPost:5819772014-10-15T12:00:00.000ZAjay Agyathttp://openbooks.ning.com/profile/ajaykumarsharma
<p>बचो इस से कि ये आफत बुरी है<br/> नशा कैसा भी हो आदत बुरी है</p>
<p><br/> पतन की ओर गर जाने लगे हो<br/> यकीनन आपकी संगत बुरी है</p>
<p><br/> कि सिगरेट मदिरा गुटका या कि खैनी<br/> किसी भी चीज़ की चाहत बुरी है</p>
<p><br/> हमें मालूम है मरना है इक दिन<br/> मगर इस मौत की दहशत बुरी है</p>
<p><br/> कमाया है जिसे इज्ज़त गँवा कर <br/> अजय अज्ञात वो दौलत बुरी है</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>
<p>बचो इस से कि ये आफत बुरी है<br/> नशा कैसा भी हो आदत बुरी है</p>
<p><br/> पतन की ओर गर जाने लगे हो<br/> यकीनन आपकी संगत बुरी है</p>
<p><br/> कि सिगरेट मदिरा गुटका या कि खैनी<br/> किसी भी चीज़ की चाहत बुरी है</p>
<p><br/> हमें मालूम है मरना है इक दिन<br/> मगर इस मौत की दहशत बुरी है</p>
<p><br/> कमाया है जिसे इज्ज़त गँवा कर <br/> अजय अज्ञात वो दौलत बुरी है</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>ग़ज़लtag:openbooks.ning.com,2014-08-05:5170231:BlogPost:5646052014-08-05T01:30:00.000ZAjay Agyathttp://openbooks.ning.com/profile/ajaykumarsharma
<p><span>अंधेरों को मिटाने का इरादा हम भी रखते हैं</span><br></br> <span>कि हम जुगनू हैं थोडा सा उजाला हम भी रखते हैं</span></p>
<p></p>
<p><span>अगर मौका मिला हमको ज़माने को दिखा देंगे</span><br></br> <span>हवा का रुख बदलने का कलेज़ा हम भी रखते हैं </span></p>
<p></p>
<p><span>हमेशा खामियां ही मत दिखाओ आइना बन कर</span><br></br> <span>सुनो अच्छाइयों का इक खज़ाना हम भी रखते हैं</span></p>
<p><br></br> <span>महकती है फिजायें भी चहक़ते हैं परिंदे भी</span><br></br> <span>कि अपने घर में छोटा सा बगीचा हम भी रखते…</span></p>
<p><span>अंधेरों को मिटाने का इरादा हम भी रखते हैं</span><br/> <span>कि हम जुगनू हैं थोडा सा उजाला हम भी रखते हैं</span></p>
<p></p>
<p><span>अगर मौका मिला हमको ज़माने को दिखा देंगे</span><br/> <span>हवा का रुख बदलने का कलेज़ा हम भी रखते हैं </span></p>
<p></p>
<p><span>हमेशा खामियां ही मत दिखाओ आइना बन कर</span><br/> <span>सुनो अच्छाइयों का इक खज़ाना हम भी रखते हैं</span></p>
<p><br/> <span>महकती है फिजायें भी चहक़ते हैं परिंदे भी</span><br/> <span>कि अपने घर में छोटा सा बगीचा हम भी रखते हैं</span></p>
<p><br/> <span>हमारे पास भी है अब नए फीचर का मोबाइल</span><br/> <span>अजय देखो तो मुट्ठी में ज़माना हम भी रखते हैं</span></p>
<p></p>
<p> (मौलिक एवं अप्रकाशित)</p>ग़ज़लtag:openbooks.ning.com,2014-08-01:5170231:BlogPost:5635802014-08-01T15:00:00.000ZAjay Agyathttp://openbooks.ning.com/profile/ajaykumarsharma
<p>मालूम है कि सांप पिटारे में बंद है<br/> फिर भी वॊ डर रहा है क्यूँ कि अक्लमंद है</p>
<p>.</p>
<p>ये रंग रूप, नखरे,अदा तौरे गुफ्तगू<br/> तेरी हरेक बात ही मुझको पसंद है</p>
<p>.</p>
<p>ये दिल भी एक लय में धड़कता है दोस्तो<br/> सांसो का आना जाना भी क्या खूब छंद है</p>
<p>.</p>
<p>सोचा था चंद पल में ही छू लूँगा बाम को<br/> पर हश्र ये है हाथ में टूटी कमंद है</p>
<p>.</p>
<p>दुश्वारियों से जूझते गुजरी है ज़िन्दगी<br/> अज्ञात फिर भी हौसला अपना बुलंद है</p>
<p>.</p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित.</p>
<p>मालूम है कि सांप पिटारे में बंद है<br/> फिर भी वॊ डर रहा है क्यूँ कि अक्लमंद है</p>
<p>.</p>
<p>ये रंग रूप, नखरे,अदा तौरे गुफ्तगू<br/> तेरी हरेक बात ही मुझको पसंद है</p>
<p>.</p>
<p>ये दिल भी एक लय में धड़कता है दोस्तो<br/> सांसो का आना जाना भी क्या खूब छंद है</p>
<p>.</p>
<p>सोचा था चंद पल में ही छू लूँगा बाम को<br/> पर हश्र ये है हाथ में टूटी कमंद है</p>
<p>.</p>
<p>दुश्वारियों से जूझते गुजरी है ज़िन्दगी<br/> अज्ञात फिर भी हौसला अपना बुलंद है</p>
<p>.</p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित.</p>ग़ज़लtag:openbooks.ning.com,2014-04-09:5170231:BlogPost:5289602014-04-09T14:00:00.000ZAjay Agyathttp://openbooks.ning.com/profile/ajaykumarsharma
<p>221 2121, 1221, 212 , </p>
<p></p>
<p><span>इक ग़म में जब से मुब्तला रहने लगा हूँ मैं </span><br></br> <span>अपने वुजूद से खफा रहने लगा हूँ मैं...</span><br></br> <span>देखा था बेनकाब किसी रोज़ चाँद को </span><br></br> <span>खिड़की के सामने खड़ा रहने लगा हूँ मैं ...</span><br></br> <span>कागज़ पे इक रिसाले के छप कर मैं क्या करूँ </span><span class="text_exposed_show"><br></br> अब तेरे दिल में दिलरुबा रहने लगा हूँ मैं .....<br></br> दिल को नहीं सुहाता है शोरे तरब ज़रा <br></br> बज़्मे तरब में सहमा सा रहने लगा हूँ मैं....…<br></br></span></p>
<p>221 2121, 1221, 212 , </p>
<p></p>
<p><span>इक ग़म में जब से मुब्तला रहने लगा हूँ मैं </span><br/> <span>अपने वुजूद से खफा रहने लगा हूँ मैं...</span><br/> <span>देखा था बेनकाब किसी रोज़ चाँद को </span><br/> <span>खिड़की के सामने खड़ा रहने लगा हूँ मैं ...</span><br/> <span>कागज़ पे इक रिसाले के छप कर मैं क्या करूँ </span><span class="text_exposed_show"><br/> अब तेरे दिल में दिलरुबा रहने लगा हूँ मैं .....<br/> दिल को नहीं सुहाता है शोरे तरब ज़रा <br/> बज़्मे तरब में सहमा सा रहने लगा हूँ मैं....<br/> पहले सी जिस्म में नहीं ताकत रही अजय <br/> पहले से ज्यादा चिड़चिड़ा रहने लगा हूँ मैं...</span></p>
<p></p>
<p></p>
<p>अजय अज्ञात </p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित ...</p>ग़ज़लtag:openbooks.ning.com,2014-03-23:5170231:BlogPost:5231662014-03-23T09:30:00.000ZAjay Agyathttp://openbooks.ning.com/profile/ajaykumarsharma
<p><span>फकत वोटों की खातिर झूठे वादे करने वालों को</span><br></br> <span>सबक सिखलाएंगे अब के छलावे करने वालों को ...</span></p>
<p><br></br> <span>नहीं गुमराह होंगे हम किसी की बातों में आ कर </span><br></br> <span>न गद्दी पर बिठाएंगे तमाशे करने वालों को...</span></p>
<p></p>
<p><span>गरीबी,भुखमरी,बेरोजगारी से लड़ेंगे वो</span><br></br> <span>चलो हम हौसला देवें इरादे करने वालों को ...</span></p>
<p></p>
<p><span>चुनावी वायदे अपने कभी पूरे नहीं करते</span><br></br> <span>बहाना चाहिए कोई बहाने करने वालों…</span></p>
<p><span>फकत वोटों की खातिर झूठे वादे करने वालों को</span><br/> <span>सबक सिखलाएंगे अब के छलावे करने वालों को ...</span></p>
<p><br/> <span>नहीं गुमराह होंगे हम किसी की बातों में आ कर </span><br/> <span>न गद्दी पर बिठाएंगे तमाशे करने वालों को...</span></p>
<p></p>
<p><span>गरीबी,भुखमरी,बेरोजगारी से लड़ेंगे वो</span><br/> <span>चलो हम हौसला देवें इरादे करने वालों को ...</span></p>
<p></p>
<p><span>चुनावी वायदे अपने कभी पूरे नहीं करते</span><br/> <span>बहाना चाहिए कोई बहाने करने वालों को....</span></p>
<p></p>
<p><span>सियासी चाल में फंस कर अंधेरों में हैं हम भटके</span><br/> <span>कि अब के वोट डालेंगे उजाले करने वालों को....</span></p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित ....</p>ग़ज़लtag:openbooks.ning.com,2014-03-02:5170231:BlogPost:5171752014-03-02T08:30:00.000ZAjay Agyathttp://openbooks.ning.com/profile/ajaykumarsharma
<p><span>वो होगा जो कभी न हुआ, देखते रहो </span><br></br> <span>इक दिन खुलेगा बाबे वफा, देखते रहो ...</span><br></br> <span>जो शख्स मुझ से रूठ गया है वो दोस्तो</span><br></br> <span>आएगा मुसकुराता हुआ, देखते रहो....</span><br></br> <span>ज़िंदाने ग़म में जिसने मुझे कैद कर दिया </span><br></br> <span>वो ही करेगा मुझ को रिहा , देखते रहो...</span><br></br> <span>अशकों से कैसे बनते हैं मेरी ग़ज़ल के शेर </span><br></br> <span>लिक्खेगी मेरी नोके मिज़ा देखते रहो ...</span><br></br> <span>फूलों में कौन भरता है ये रंगो बू अजय …</span><br></br></p>
<p><span>वो होगा जो कभी न हुआ, देखते रहो </span><br/> <span>इक दिन खुलेगा बाबे वफा, देखते रहो ...</span><br/> <span>जो शख्स मुझ से रूठ गया है वो दोस्तो</span><br/> <span>आएगा मुसकुराता हुआ, देखते रहो....</span><br/> <span>ज़िंदाने ग़म में जिसने मुझे कैद कर दिया </span><br/> <span>वो ही करेगा मुझ को रिहा , देखते रहो...</span><br/> <span>अशकों से कैसे बनते हैं मेरी ग़ज़ल के शेर </span><br/> <span>लिक्खेगी मेरी नोके मिज़ा देखते रहो ...</span><br/> <span>फूलों में कौन भरता है ये रंगो बू अजय </span><br/> <span>इंसान है कोई या खुदा , देखते रहो....</span></p>
<p></p>
<p><span>मौलिक व अप्रकाशित .....</span></p>ऐ खुदा मुझ को भी तेरी मेहरबानी चाहिएtag:openbooks.ning.com,2014-01-12:5170231:BlogPost:4989542014-01-12T11:30:00.000ZAjay Agyathttp://openbooks.ning.com/profile/ajaykumarsharma
<p><span>ऐ खुदा मुझ को भी तेरी मेहरबानी चाहिए </span><br></br> <span>इक महकते गुल की जैसी ज़िंदगानी चाहिए </span><br></br> <br></br> <span>मुझ को लंबी उम्र की हरगिज नहीं है आरज़ू </span><br></br> <span>जब तलक है जिंदगी ,मुझको जवानी चाहिए </span><span><br></br> <br></br> मैं समंदर तो नहीं जो उम्र भर ठहरा रहूँ <br></br> एक दरया की तरह मुझ को रवानी चाहिए ...</span></p>
<p></p>
<p>परवरिश बच्चों की करना , फर्ज़ है माँ बाप का </p>
<p>सच की हरदम राह भी उन को दिखानी चाहिए </p>
<p></p>
<p>आज के अखबार का यह कह रहा है राशि…</p>
<p><span>ऐ खुदा मुझ को भी तेरी मेहरबानी चाहिए </span><br/> <span>इक महकते गुल की जैसी ज़िंदगानी चाहिए </span><br/> <br/> <span>मुझ को लंबी उम्र की हरगिज नहीं है आरज़ू </span><br/> <span>जब तलक है जिंदगी ,मुझको जवानी चाहिए </span><span><br/> <br/> मैं समंदर तो नहीं जो उम्र भर ठहरा रहूँ <br/> एक दरया की तरह मुझ को रवानी चाहिए ...</span></p>
<p></p>
<p>परवरिश बच्चों की करना , फर्ज़ है माँ बाप का </p>
<p>सच की हरदम राह भी उन को दिखानी चाहिए </p>
<p></p>
<p>आज के अखबार का यह कह रहा है राशि फल </p>
<p>आज मुझ को अपनी किस्मत आजमानी चाहिए </p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित.... </p>ग़ज़ल (ज़िंदगी के यज्ञ में खुद को हवन करना पड़ा)tag:openbooks.ning.com,2014-01-11:5170231:BlogPost:4985682014-01-11T13:30:00.000ZAjay Agyathttp://openbooks.ning.com/profile/ajaykumarsharma
<p><span>ज़िंदगी के यज्ञ में खुद को हवन करना पड़ा </span><br></br> <span>आंसुओं से ज़िंदगीभर आचमन करना पड़ा....</span></p>
<p><br></br> <span>मंज़िलों से दूरियाँ जब ,कम नहीं होती दिखीं </span><br></br> <span>क्या कमी थी कोशिशों में,आंकलन करना पड़ा .....</span></p>
<p><br></br> <span>ऐसे ही पायी नहीं थी देश ने स्वतन्त्रता </span><br></br> <span>इस को पाने के लिए क्या क्या जतन करना पड़ा ...</span></p>
<p><br></br> <span>जाने मुंसिफ़ की भला थी कौन सी मजबूरियां </span><br></br> <span>फैसला हक़ में मेरे जो दफ़अतन करना…</span></p>
<p><span>ज़िंदगी के यज्ञ में खुद को हवन करना पड़ा </span><br/> <span>आंसुओं से ज़िंदगीभर आचमन करना पड़ा....</span></p>
<p><br/> <span>मंज़िलों से दूरियाँ जब ,कम नहीं होती दिखीं </span><br/> <span>क्या कमी थी कोशिशों में,आंकलन करना पड़ा .....</span></p>
<p><br/> <span>ऐसे ही पायी नहीं थी देश ने स्वतन्त्रता </span><br/> <span>इस को पाने के लिए क्या क्या जतन करना पड़ा ...</span></p>
<p><br/> <span>जाने मुंसिफ़ की भला थी कौन सी मजबूरियां </span><br/> <span>फैसला हक़ में मेरे जो दफ़अतन करना पड़ा.... </span></p>
<p><br/> <span>किस तरह कृतत्व से व्यक्तित्व है ,आखिर जुड़ा </span><br/> <span>इस विषय पर देर तक चिंतन ग</span><span class="text_exposed_show">हन करना पड़ा ....</span></p>
<p><span class="text_exposed_show"><br/> मोह,माया,वासना की कामना कोई न थी <br/> इश्क़ हमको आपसे बस आदतन करना पड़ा ...</span></p>
<p><span class="text_exposed_show"><br/> काव्य रस का पान कर ,आनंद लेने के लिए <br/> मन लगा कर पाठकों को अध्ययन करना पड़ा ...</span></p>
<p></p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित .... </p>ग़ज़ल (अजय अज्ञात)tag:openbooks.ning.com,2014-01-09:5170231:BlogPost:4981092014-01-09T15:30:00.000ZAjay Agyathttp://openbooks.ning.com/profile/ajaykumarsharma
<p><span>करें हम हमेशा ही उनकी इबादत </span><br></br> <span>ये जीवन हमारा है जिनकी बदौलत... </span></p>
<p><br></br> <span>नहीं कोई सानी है माता पिता का</span><br></br> <span>यकीनन ये करते हैं दिल से मुहब्बत... </span></p>
<p><br></br> <span>चरण छू लो इनके, मिलेंगी दुआएं </span><span class="text_exposed_show"><br></br> इन्हें देखने भर से होती जियारत ... </span></p>
<p><span class="text_exposed_show"><br></br> सही मायने में यही देवता हैं <br></br> यही पूरी करते हमारी ज़रूरत ...…</span></p>
<p></p>
<p><span>करें हम हमेशा ही उनकी इबादत </span><br/> <span>ये जीवन हमारा है जिनकी बदौलत... </span></p>
<p><br/> <span>नहीं कोई सानी है माता पिता का</span><br/> <span>यकीनन ये करते हैं दिल से मुहब्बत... </span></p>
<p><br/> <span>चरण छू लो इनके, मिलेंगी दुआएं </span><span class="text_exposed_show"><br/> इन्हें देखने भर से होती जियारत ... </span></p>
<p><span class="text_exposed_show"><br/> सही मायने में यही देवता हैं <br/> यही पूरी करते हमारी ज़रूरत ...</span></p>
<p><span class="text_exposed_show"><br/> हमेशा कलेजे से रखते लगाए<br/> बलाओं से करते हमारी हिफाज़त ...</span></p>
<p><span class="text_exposed_show"><br/> ये उंगली पकड़ हम को चलना सिखाते<br/> पिलाते हैं घुट्टी में हम को सदाकत .... </span></p>
<p><span class="text_exposed_show"><br/> न माता पिता का कभी दिल दुखाना <br/> इन्हीं की दुआओं से हम हैं सलामत ....</span></p>
<p><span class="text_exposed_show"><br/> यहीं लुत्फ मिलता है जीवन का यारो <br/> कि अज्ञात कदमों में इनके है जन्नत ...</span></p>
<p><span class="text_exposed_show">.</span></p>
<p><span class="text_exposed_show"><strong>मौलिक व अप्रकाशित ...</strong></span></p>ग़ज़लtag:openbooks.ning.com,2013-08-01:5170231:BlogPost:4061882013-08-01T00:30:00.000ZAjay Agyathttp://openbooks.ning.com/profile/ajaykumarsharma
<p><span>मैं वाकिफ हूँ ,हकीकत से, ज़माने की </span><br></br> <span>इसे आदत, है चिढ़ने की,चिढ़ाने की ...</span></p>
<p>.<br></br> <span>बहुत मुश्किल हुनर है ये , भला सब को </span><br></br> <span>कहाँ आती कला रिश्ते निभाने की ...</span></p>
<p>.<br></br> <span>सज़ा क्या दूँ तुम्हें आखिर बताओ तो </span><br></br> <span>मेरी आँखों से नींदों को चुराने की ...</span></p>
<p>.<br></br> <span>बयां इक शेर में, हो सकता है जब सब </span><br></br> <span>ज़रूरत क्या तुम्हें किस्सा सुनाने की ..</span></p>
<p>.<br></br> <span>इसे महसूस करिएगा…</span></p>
<p><span>मैं वाकिफ हूँ ,हकीकत से, ज़माने की </span><br/> <span>इसे आदत, है चिढ़ने की,चिढ़ाने की ...</span></p>
<p>.<br/> <span>बहुत मुश्किल हुनर है ये , भला सब को </span><br/> <span>कहाँ आती कला रिश्ते निभाने की ...</span></p>
<p>.<br/> <span>सज़ा क्या दूँ तुम्हें आखिर बताओ तो </span><br/> <span>मेरी आँखों से नींदों को चुराने की ...</span></p>
<p>.<br/> <span>बयां इक शेर में, हो सकता है जब सब </span><br/> <span>ज़रूरत क्या तुम्हें किस्सा सुनाने की ..</span></p>
<p>.<br/> <span>इसे महसूस करिएगा 'अजय' दिल से </span><br/> <span>मुहब्बत शै नहीं दिखने दिखाने की...</span></p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित ... अजय अज्ञात </p>अशआरtag:openbooks.ning.com,2013-06-26:5170231:BlogPost:3854622013-06-26T14:30:00.000ZAjay Agyathttp://openbooks.ning.com/profile/ajaykumarsharma
<p>मुखतलिफ़ शेर .... </p>
<p>.</p>
<p>लाख कोशिश कर ले इंसा कुछ नहीं कर पाएगा<br></br> मौत की जद में किसी दिन जिंदगी आ जाएगी</p>
<p></p>
<p>इबादत करना चाहो गर खुदा की तुम हकीकत में<br></br> मुहब्बत के चिरागों को कभी बुझने नहीं देना ...</p>
<p></p>
<p>आधे अधूरे रह गए हैं ख्वाब इस लिए <br></br> इल्ज़ाम दे रहे हैं वो अपने नसीब को .....</p>
<p> </p>
<p>रायगां बहने नहीं देता इन्हें <br></br> अपने अशकों से वुजू करता हूँ मैं ....</p>
<p> </p>
<p>दिया मुझ को मेरी किस्मत ने सब कुछ <br></br> मगर तेरी कमी अब भी है…</p>
<p>मुखतलिफ़ शेर .... </p>
<p>.</p>
<p>लाख कोशिश कर ले इंसा कुछ नहीं कर पाएगा<br/> मौत की जद में किसी दिन जिंदगी आ जाएगी</p>
<p></p>
<p>इबादत करना चाहो गर खुदा की तुम हकीकत में<br/> मुहब्बत के चिरागों को कभी बुझने नहीं देना ...</p>
<p></p>
<p>आधे अधूरे रह गए हैं ख्वाब इस लिए <br/> इल्ज़ाम दे रहे हैं वो अपने नसीब को .....</p>
<p> </p>
<p>रायगां बहने नहीं देता इन्हें <br/> अपने अशकों से वुजू करता हूँ मैं ....</p>
<p> </p>
<p>दिया मुझ को मेरी किस्मत ने सब कुछ <br/> मगर तेरी कमी अब भी है बाकी….</p>
<p> </p>
<p>मेरे लफ़्ज़ों में खुशबू है मेरा लहजा भी शीरी है <br/> मुझे हासिल है फ़न तहजीब से अशआर कहने का…..</p>
<p> </p>
<p>ख्वाब जिस के रात दिन, देखे थे मैंने दोस्तो <br/> दर्दे दिल की लौ जला, वो दूर क्यूँ मुझ से हुआ .....</p>
<p></p>
<p>तक़दीर खुद सँवारता है अपने हाथ से <br/> अज्ञात ने नसीब से मिन्नत कभी न की ..</p>
<p></p>
<p>अजय उगने न पाये अब कहीं बारूद खेतों में <br/> अमन के वास्ते आओ ज़मीं में ख़ुशबुएँ बोएँ ....</p>
<p></p>
<p>मैं इक अदना सा खादिम हूँ ग़ज़ल का <br/> मेरे अशआर हैं पहचान मेरी ...</p>
<p></p>
<p>मेरी माँ की दुआएं ही हमेशा <br/> बचाती हैं मुझे बर्कों बला से </p>
<p></p>
<p>ज़ेहन में जिसके मची रहती हो हरदम खलबली <br/> मयकदों या बुतकदों में कैसे पाए वो सुकूँ ....</p>
<p></p>
<p>बेशक खाओ पाँच सितारे होटल में<br/> स्वाद अलग ही होता है लंगर में कुछ ....</p>
<p>.</p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित)</p>
<p></p>दो ग़ज़लेंtag:openbooks.ning.com,2013-06-13:5170231:BlogPost:3781532013-06-13T15:30:00.000ZAjay Agyathttp://openbooks.ning.com/profile/ajaykumarsharma
<p>आपने चाहा ही नहीं दर्द का दरमां होना <br></br> कितना आसान था दुश्वार का आसां होना </p>
<p>.<br></br> आपका हुस्न तो खुद होश उड़ा देता <br></br> आपको ज़ेब नहीं देता है हैरां होना </p>
<p>.<br></br> नाम ए मर्ग है फूलों के लिए काली घटा <br></br> दोशे गुलनार पे ज़ुल्फों का परेशां होना</p>
<p>.<br></br> वक़्त वो दोस्त है जो पल में बदल जाता है <br></br> भूल से भी न कभी वक़्त पे नाजां होना </p>
<p>.<br></br> दिल पे अज्ञात के जो गुजरा है वो ज़ाहिर है <br></br> इस तरह आप का लहरा के पेरीजां होना </p>
<p>.<br></br> ज़ेब = शोभा , नाजाँ =…</p>
<p>आपने चाहा ही नहीं दर्द का दरमां होना <br/> कितना आसान था दुश्वार का आसां होना </p>
<p>.<br/> आपका हुस्न तो खुद होश उड़ा देता <br/> आपको ज़ेब नहीं देता है हैरां होना </p>
<p>.<br/> नाम ए मर्ग है फूलों के लिए काली घटा <br/> दोशे गुलनार पे ज़ुल्फों का परेशां होना</p>
<p>.<br/> वक़्त वो दोस्त है जो पल में बदल जाता है <br/> भूल से भी न कभी वक़्त पे नाजां होना </p>
<p>.<br/> दिल पे अज्ञात के जो गुजरा है वो ज़ाहिर है <br/> इस तरह आप का लहरा के पेरीजां होना </p>
<p>.<br/> ज़ेब = शोभा , नाजाँ = गरवान्वित , दरमां = उपचार</p>
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<p>देखो हर सू कैसे मंज़र दिखते हैं<br/> लोगों के हाथों में पत्थर दिखते हैं</p>
<p>.<br/> कैसे दिल का दर्द छिपा पाएंगे वो <br/> उन आँखों में खुश्क समंदर दिखते हैं </p>
<p>.<br/> दुनिया की नज़रों में हम कैसे भी हों<br/> माँ की आँखों में हम सुंदर दिखते हैं</p>
<p>.<br/> लूट लिए हैं जिसने होश हवास मेरे <br/> मुझ को वो ख्वाबों में अक्सर दिखते हैं</p>
<p>.<br/> केवल मन का भ्रम है ये अज्ञात तेरे <br/> दूर जो मिलते धरती अंबर दिखते हैं</p>
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<p>(मौलिक/अप्रकाशित)</p>