For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Priyanka Pandey
  • Female
  • gorakhpur.UP
  • India
Share on Facebook MySpace

Priyanka Pandey's Friends

  • Karunik
  • harivallabh sharma
  • kalpna mishra bajpai
  • डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव
  • sanjay verma "drushti"
  • Abhishek Kumar Jha Abhi
  • Alok Mittal
  • जितेन्द्र पस्टारिया
  • Akhand Gahmari
  • Neeraj Nishchal
  • बृजेश नीरज
  • upasna siag
  • vijay nikore
  • आशीष नैथानी 'सलिल'
  • सूबे सिंह सुजान
 

Priyanka Pandey's Page

Profile Information

Gender
Female
City State
Gorakhpur - Uttar Pradesh
Native Place
Balrampur
Profession
Housewife

Comment Wall (5 comments)

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

At 12:03am on September 3, 2014, सूबे सिंह सुजान said…

आपका आभार , यह मेरे लिये वंदनीय है कि आपने मुझे मित्रता के लिये स्वीकार किया। यहां पर साहित्यिक गतविधियों में जानकारी आदान-प्रदान करने के अवसरों का लाभ मिलेगा।।

At 10:39am on August 11, 2014, डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव said…

मित्रता के लिए बढे हाथ का सादर स्वागत i मै एक अच्छ मित्र बन सकूं यह मेरा संकल्प है i

At 1:20pm on August 4, 2014, लक्ष्मण रामानुज लडीवाला said…

मित्रता का प्रस्ताव स्वीकारते हुए प्रसन्नता है स्वागत है आपका आदरणीया प्रियंका पाण्डेय जी 

At 9:34am on August 4, 2014, जितेन्द्र पस्टारिया said…

आपकि मित्रता का स्वागत है आदरणीया प्रियंका जी

सादर!

At 12:59am on August 4, 2014, vijay nikore said…

मित्रता मेरा सौभाग्य है। धन्यवाद।

Priyanka Pandey's Blog

बस तुम ही थे

पलकों के महके उपवन में

गीतों के सारे सरगम में

हर उलझन में हर सुलझन में

कोई और नहीं तुम ही थे



कुछ बंद किताबों के पन्ने

फिर फिर से जैसे खुल जाए

आखर आखर बन सरगम ज्यो

प्राणों में आकर घुल जाए

नयनो की मोहक चितवन में

कोई और नहीं तुम ही थे



महकी महकी सी साँसों में

तेरी मोहक खुशबू बस जाए

हरपल पलछिन रात और दिन

यादे तेरी सज सज जाएँ

सपनो के खिलते गुलशन में

कोई और नहीं तुम ही थे



श्वाँस श्वाँस मधुरिम स्पंदन… Continue

Posted on September 17, 2014 at 7:29am — 11 Comments

बहुत गहरा गए हैं अंधेरे हर सू

बहुत गहरा गए हैं अंधेरे हर सू

रोशनी की किरन अब कहां खोजें

 

गुम हो गई है कहां दुनिया में

आओ मिल के हम वफा खोजें

 

खतावार जब कि थे हम दोनों ही

क्यूं न इक जैसी ही सजा खोजें

 

जीत जाएं न कहीं दूरियां हमसे

आओ मिल के अपनी खता खोजें

 

नफरतों के वास्ते न जगह बाकी हो

पूरे जहान में एसा कोई पता खोजें

-----प्रियंका

 

"मौलिक व अप्रकाशित" 

Posted on August 12, 2014 at 11:00pm — 4 Comments

सूरज

सूरज............
रोज निकल पडता है चहलकदमी करते
ठिठकता है कुछ देर मेरे शहर में भी
फिर चल देता है
कांधे पर कुछ यादों की गठरी लादे
देखता है मुड कर किसी शाख के पीछे से
कुछ और भी गुमसुम हो जाते हैं
दरख्तों के घने लंबे साए
पर यादें...............
जाने कहां कहां से फिर लौट कर आ जाती हैं
जिन्हें रोज ही सूखे पत्तों के साथ
समेट कर फेंक देती हूं
---------प्रियंका

"मौलिक व अप्रकाशित"

Posted on August 8, 2014 at 2:00pm — 5 Comments

जब बूंदें रिमझिम गिरती हैं

जब बूंदें रिमझिम गिरती हैं

कुछ स्वरलहरियां सी बुनती हैं

हरियाली के इस मौसम में भी

बस फीका सा रह जाता है मन

भीगा भीगा सा ये मौसम.....

भीगी सी वादी और समां

प्यासी धरती हो दृवित चले

पर प्यासा सा रह जाता है मन

रिमझिम बारिश में घंटों रहना

राहों में बस यूं ही संग संग चलना

तेरी उन सारी बातों को

फिर फिर से दोहराता है मन.

मन तुमसे मिलने को तरसे

बूंदों संग आंखें कितना बरसें

इन दोनों की इस बारिश मे

बस रीता सा रह जाता है…

Continue

Posted on August 8, 2014 at 2:00pm — 7 Comments

 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
yesterday
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Apr 13

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service