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ओबीओ पर प्रतिमाह आयोजित होने वाले लाइव महोत्सव, छंदोत्सव, तरही मुशायरा व लघुकथा गोष्ठी में आप सहभागिता निभाएंगे तो हमें ख़ुशी होगी. इस सन्देश को पढने के लिए आपका धन्यवाद. |
लौटे राघव, जनपद भ्रमण कर, हतोत्साहित उदास ,
स्कंध निचे, द्रवित हृदय, उद्वेलित मन, कम्पित श्वास,
चिंतित मन, बार-बार करते हृदय कठोर,
पर कानों में पुनः-पुनः गुञ्जित होता वहीं शोर,
हाय निष्कपट प्रजा यह, पर बुद्धिहीन ,
अंतः विषाद से हो उठा श्याम-मुख-मलिन,
यह कैसा विकट शत्रु बन खड़ा राजधर्म ,
प्रजा बेध रही ब्यंग-विशिख से राम मर्म ,
और राम ! प्रत्युत्तर में विकल, ठगे से मौन ,
सोच रहे मुझसे हतभागा है धरा पर कौन?
हाय माता का ही नहीं…
ContinuePosted on April 5, 2018 at 7:00am — 4 Comments
फिर से होली आ गयी है ,
यादें मन में छा गयीं हैं ,
यादों का है क्या ठिकाना ,
इनका तो है आना जाना।
पर वो होली और थी जब ,
घर की घर में साथ थे सब ,
माँ के हाथों की मिठाई ,
मानो अमृत में डुबाई।
पिताजी का प्यार देना,
स्नेह से यूँ निहार देना ,
उनकी आँखों का मैं तारा ,
उनके प्राणों का सहारा।
आज घर से दूर हूँ मैं ,
दूर क्या मजबूर हूँ मैं ,
रंग होली के मुझे अब,
चुभते हैं काँटों से सब।
फिर से…
ContinuePosted on March 1, 2018 at 8:34am — 10 Comments
ये मत सोचो रुक जाऊंगा।
बेताब लहर के धक्कों से -
नौका चूर हो जाएगी,
नियति की वक्र नजर मुझपर -
माना की क्रूर हो जाएगी ,
तूफां हठ ठान भले ही ले-
कर ले चाहे लाख जतन ,
जीवन यज्ञ आहुति में -
हो जाये मेरा सर्वस्व हवन,
पर जबतक धड़कन जिन्दा है-
ये मत सोचो झुक जाऊंगा।
ये मत सोचो रुक जाऊंगा।
ये मत सोचो रुक जाऊंगा।
पग-पग पर शूल मिलें चाहे-
राहों में तप्त अंगारे हों।
पावों में छाले पड़ जाएं या-
रोम-रोम प्यास के मारे…
Posted on February 6, 2018 at 3:31pm — 7 Comments
अंगार भर लो लोचनों में, श्वांस में फुंफकार हो ,
नस-नस अनल से पूर्ण हो , पुरुष्त्व का संचार हो।
विश्वास जन का खोकर भी सत्तासीन हो जाते हैं।
जो हर चुनावी परिवेश में नए प्रपंच रचाते हैं।
वैसे दागी लोग न जाने क्यों हमारे नायक हैं ?
क्या वे लोग ही हमपर शासन करने लायक हैं ?
जैसे मृगेंद्र के पुत्रों पर भेड़ियों का बर्चस्व हो।
जैसे गर्दभ-दौड़ में कोई हारता सा अश्व हो।
वैसे ही आज अयोग्य हाथों में हमारा देश है।
फिर भी सुप्त…
ContinuePosted on January 6, 2018 at 9:30pm — 12 Comments
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