कागज की किस्ती और वर्षा का पानी,
वह बचपन की यादें हैं बहुत याद आती
आज रूठी गई दादी और वर्षा की रानी
न कहती है कहानी न बरसता है पानी॥
बच्चों को पता नहीं कैसे बहती है नाली
छतों से गटर में बहता, बरसा का पानी
गटर जब चोक हो ,सड़क पर बहे पानी
सड़के और गलियाँ नदियाँ बनके बहती ॥
वह कागज की किस्ती तभी याद आती
दादी की कहानी, रिमझिम बरसता पानी
बहुत याद आती वह बचपन की कहानी
माँ बाप को फुरसत कहाँ कहे…