“दर्द के दायरे” यह ख़याल मुझको एक दिन नदी के किनारे पर बैठे “ जाती लहरों ” को देखते आया । कितनी मासूम होती हैं वह जाती लहरें, नहीं जानती कि अभी कुछ पल में उनका अंत होने को है । जिस पल कोई एक लहर नदी में विलीन होने को होती है, ठीक उसी पल एक नई लहर जन्म ले लेती है .... दर्द की तरह । दर्द कभी समाप्त नहीं होता, आते-जाते उभर आती है दर्द की एक और लहर, और अंतर की रेत पर मानो कुछ लिख जाती है । मेरी एक…