जगण+रगण+जगण+रगण+जगण+गुरु
करे विचार आज क्यों समाज खण्ड खण्ड है
प्रदेश वेश धर्म जाति वर्ण क्यों प्रचण्ड है
दिखे न एकता कहीं सभी यहाँ कटे हुए
अबोध बाल वृद्ध या जवान हैं बटे हुए
अपूर्ण है स्वतन्त्रता सभी अपूर्ण ख़्वाब हैं
जिन्हें न लाज शर्म है वहीं बने नवाब हैं
अधर्म द्वेष की अपार त्योरियाँ चढ़ी यहाँ
कुकर्म और पाप बीच यारियां बढ़ी यहाँ
गरीब जोर जुल्म की वितान रात ठेलता
विषाद में पड़ा हुआ अनन्त दुःख झे…