1222 1222 1222 1222 रगों को छेदते दुर्भाग्य के नश्तर गये होते दुआयें साथ हैं माँ की नहीं तो मर गये होते
वजह बेदारियों की पूछ मत ये मीत हमसे तू हमें भी नींद आ जाती अगर हम घर गये होते नज़र के सामने जो है वही सच हो नहीं मुमकिन हो ख्वाहिशमंद सच के तो पसे मंज़र गये होते अगर होती फ़ज़ाओं में कहीं आमद ख़िज़ाओं की हवायें गर्म होतीं और पत्ते झर गये होते शिकायत भी नहीं रहती गमे फ़ुर्क़त भी होता कम न होती आँख '…