2122 2122 2122 222
फिर गजल होगी भली रुत को जरा आने तो दो
बंद छितराये पड़े हैं,और जुड़ जाने तो दो।1
राख में चिनगारियाँ भी चिलचिलाती रहती हैं,
बस हवा का एक झोंका अब गुजर जाने तो दो।2
भागता जाता बखत भी बेकली के रस्ते से
गुनगुनायेंगी दिशाएँ मीत अब गाने तो दो।3
ज़ोर है तनहाइयों का , मानता, डरना भी क्या?
दूरियाँ क्या साहिलों की?यार अकुलाने तो दो।4
चाहतों का सिलसिला कब माँगने से मिलता है?
तिश्नगी बढ़ती…