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वही !
एक घूंट फिर सही।
निराशा के गहरे आघातों से,
झनझनाते मन की उश्वासों को
एक झूठी दिलासा और सही!
ऐन्द्रजालिक दुनिया के बदलते रंगों को
भौतिकी के वर्णक्रम से मत तौलो और न ही
उनमें जोड़ो क्वान्टम मेकेनिक्स।
आइंस्टीन जैसे भी इन तरंगों के विवर्तन से न बच सके,
फिर, तुम एक अकिंचन!
अपनी ही सीमाओं में बंधे रहने के आदी,
उन्हें क्या समझोगे?
इसलिये ,
इस बहुआयामी प्रक्रम के खेलों से मत खेलो
क्य…