क्यों मिल गयी संतुष्टि
उन्मुक्त उड़ान भरने की
जो रौंध देते हो पग में
उसे रोते , कराहते
फिर भी मूर्त बन
सहन करना मज़बूरी है
क्या कोई सह पाता है रौंदा जाना ???
वो हवा जो गिरा देती है
टहनियों से उन पत्तियों को
जो बिखर जाती हैं यहाँ वहाँ
और तुम्हारे द्वारा रौंधा जाना
स्वीकार नहीं उन्हें
तकलीफ होती है
क्या खुश होता है कोई
रौंधे जाने से ??
शायद नहीं
बस सहती हैं और
वो तल्लीनता तुम्हारी
ओह याद नहीं अब तु…