कैसी तकदीर ले के दुनियां में हम आए हैं
ज़ख्म-ए-दिल पे ही तो इल्ज़ाम उनके खाए हैं
कैसी तकदीर ले के दुनियां -------------
हम गुनहगार नहीं फिर भी गुनहगार सही
क्या कहें किससे कितनें धोखे हमनें खाए हैं
ज़ख्म-ए-दिल पे ही तो इल्ज़ाम उनके खाए हैं
कैसी तकदीर ले के दुनियां -------------
वक़्त-ओ-हालात मुकद्दर ही बदल देते हैं
हम तो अपनों के ही सताए हैं
ज़ख्म-ए-दिल पे ही तो इल्ज़ाम उनके खाए हैं
कैसी त…