बन गया मुसाफिर इस दुनिया मेंसुख दुःख की लाँघ सीमाओं को सुबह से चलता चलता अबसुन रहा रात की धमनी शिराओं से
कोई पुकारता है दूर चट्टानों से कोई ढूंढ़ता है मुझे मेरे बहानो सेउन झुरमुटों को साथ ले चला आयामैं अब किस दिशा को बढ़ चला हूँ कंधे पर भार लगते नहीं हैं कोई पूछे सवाल कहारों से सुबह से चलता चलता अब सुन रहा रात की धमनी शिराओं से
रोक कर कई पूंछते हैं शहर किधर को जाओगे नक्शा नहीं रास्तों का फिर न…