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किसी की बेरुख़ी है या सनम हालात का दुख परेशां हूँ हुआ है अब तुझे किस बात का दुख तुम्हें तो पड़ गई हैं आदतें सी रतजगों की तुम्हें क्या फ़र्क़ पड़ता बढ़ रहा जो रात का दुख जमाती सर्दियाँ, फुटपाथ का घर, पेट ख़ाली उन्हें सोने नहीं देता कई हालात का दुख भिंगोते रात का आँचल बशर अपने ग़मों से सवेरे फिर बरसता ओस बनकर रात का दुख वो सारी ज़िन्दगी अप…