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आग़ाज मुहब्बत का वो हलचल भी नहीं है
आँखों में इजाज़त है हलाहल भी नहीं है।
क्या हिन्दू मुसलमाँ बना फिरता है ज़माने
इन्सान बनेगा कोई अटकल भी नहीं है ।
आसान नहीं होता जहाँ रोटी जुटाना, तू मौज मनाता दुखी बेकल भी नहीं है |
क़मज़र्फ बने मत कि कमाना नहीँ पड़ता मुँहजोर है औलाद उसे कल भी नहीं है |
है एक मुसीबत वो निभाने हैं मरासिम, अब वक्त बचा क़म है, वो दल-बल भी नहीं है
आवाज़ ल…