२१२२/२१२२/२१२२/२१२
मेटती आयी है घर की तीरगी दीपावली सब के मन में भी करे अब रोशनी दीपावली।१। ** रीत कितने ही युगों से चल रही हो ये भले हर बरस लगती है सब को पर नई दीपावली।२। ** तोड़ आओ ये नगर का जाल कहती साथियों गाँव की नीची मुँडेरों पर जली दीपावली।३। ** दीप सब ये प्रेम और' विश्वास के हैं इसलिए आँख चुँधियाती नहीं साथी घनी दीपावली।४। ** घुट गया है आज तम का दम अकेले में यहाँ कह रही…