1222 - 1222 - 1222 - 1222
न यूँ दर-दर भटकते हम जो अपना आशियाँ होता
ख़ुदा ने काश हमको भी किया अह्ल-ए-मकाँ होता
बिछा के राहों में काँटे पता देते हैं मंज़िल का
कोई तो रहनुमा होता कोई तो मेह्रबाँ होता
ख़ुदा या फेर लेता रुख़ जो तू भी ग़म के मारों से
तो मुझ-से बेक़रारों का ठिकाना फिर कहाँ होता
बने तुम हमसफ़र मेरे ख़ुदा का शुक्र है वर्ना
न जाने तुम कहाँ होते न जा…