गुज़ारिश
मुहब्बत में मज़हब न हो मज़हब में हो मुहब्बत मुहब्बत ही हो सभी का मज़हब तो सोचो, हाँ, सोचो तो ज़रा कैसी होगी यह कायनात कैसी होगी यह ज़मीन खुश होगा कितना यह आसमान कायनात जो खुदगरज़ी में हर लम्हा सिकुड़ती जा रही है कब से ... अब सात समंदरों के किनारों को तोड़ चंगुल में दबोचते आज के मज़हब को छोड़ दिल से आएँ अगर सभी दिल के करीब तो यह कायनात फ़कत "बड़ी लगेगी" नहीं फैल जाएगी यह हकीकत में इतनी कि सच में हो…