सदस्य कार्यकारिणी

बदनाम यूँ करते न कभी शम्अ वफ़ा को (तरही ग़ज़ल 'राज')

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अपनाया मुहब्बत में पतिंगो  ने क़जा को

बदनाम यूँ करते न कभी शम्अ वफ़ा को  

 

है जह्र पियाले में ये मीरा को पता था

बे खौफ़ मगर दिल से लगाया था  सजा को

 

जो लोग  सदाकत से करें पाक मुहब्बत

वो बीच में लाते न कभी अपनी अना को

 

आँधी का नहीं खौफ़ चरागों को भला फिर   

समझेंगे उसे क्या जरा ये कह दो हवा को 

 

देखी वो जवाँ झील लिए नूर की गागर

लो चाँद दीवाना चला अब छोड़ हया को 

  

जब रोज  जलाता रहे  खुर्शीद तपिश से

वो फूल तरसते हैं सदा  बाद-ए-सबा को

 

सजदे में बिछाए हैं बगीचों ने  सितारे 

रोका न करो अब्र यूँ सूरज की जिया को

 

दुनिया ये  मुहब्बत पे भरोसा न करेगी  

तोड़ा न करो यार कभी रस्मे वफा को

---------राजेश कुमारी ‘राज’

  • TEJ VEER SINGH

    आदरणीय राजेश कुमारी जी। हार्दिक बधाई।बेहतरीन गज़ल।

    जो दिल से सदाकत से करें पाक मुहब्बत

    वो बीच में लाते न कभी अपनी अना को|


  • सदस्य कार्यकारिणी

    rajesh kumari

    आद० तेजवीर सिंह जी, ग़ज़ल के सर्वप्रथम पाठक के रूप में आप द्वारा दी गई इस दाद के प्रति दिल से शुक्रगुजार हूँ बहुत बहुत शुक्रिया .

  • Mohammed Arif

    आदरणीया राजेश कुमारी जी आदाब, ग़ज़ल का हर शे'र उम्दा । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद कुबूल कीजिए ।

  • सदस्य कार्यकारिणी

    rajesh kumari

    आद० मोहम्मद आरिफ़ जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका तहे दिल से शुक्रिया |

  • Samar kabeer

    बहना राजेश कुमारी जी आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
    इस समय मंच पर आने का मेरा मक़सद ये था कि जनाब डॉ गोपाल नारायन साहिब की ग़ज़ल पर मुझे अपनी प्रतिक्रिया देनी थी और उसके बाद मंच से दो हफ़्ते की छुट्टी की दरख़्वास्त पेश करना थी,क्यूँकि आजकल मेरी तबीअत मुझे इजाज़त नहीं देती की मैं मंच पर अपनी सक्रीयता दिखा सकूँ । जनाब गोपाल नारायन जी की गज़ल से पहले आपकी ग़ज़ल पर नज़र पड़ गई तो सोचा की आपकी ग़ज़ल पर अपने विचार आपसे साझा कर लूँ ।

    मतले के ऊला मिसरे में 'पतंगों' को "पतिंगों" कर लें ।

    "बे खौफ़ मगर दिल से लगाई थी सजा को"

    इस मिसरे में 'लगाई थी' शब्द आपने 'सज़ा' की वजह से लिखा है कि सज़ा स्त्रीलिंग है,लेकिन 'दिल' शब्द इसे नकार रहा है ,इसलिये मुनासिब यह होगा की 'लगाई थी' की जगह "लगाया था" कर लें ,ये बहुत बारीक नुक्ता है बहना,इस पर ग़ौर करें :-

    "बे ख़ौफ़ मगर दिल से लगाया था,सज़ा को"

    'जो दिल से सदाकत से करें पाक मुहब्बत'

    इस मिसरे में दो बार 'से' शब्द का इस्तेमाल मिसरे को कमज़ोर कर रहा है,इसे शायद व्याकरण की ग़लती कहेंगे ,ये मिसरा मेरे ख़याल में यूँ होना चाहिये :-

    "जो लोग सदाक़त से करें पाक मुहब्बत"

    'दिन रात जलाता जिन्हें खुर्शीद तपिश से
    वो फूल पुकारे हैं वहाँ बादे सबा को'

    इस शैर के ऊला मिसरे में ख़ुर्शीद का दिन रात जलाना मन्तिक़ (तार्किकता) के ख़िलाफ़ है क्यूँकि सूरज दिन में जलाता है रात में नहीं और इस शैर के सानी मिसरे में 'वहाँ' शब्द भर्ती का है,चूँकि ऊला मिसरे में सूरज दिन रात जला रहा है ,इस लिहाज़ से सानी मिसरे में 'पुकारेंगे' शब्द काम तो कर रहा है मगर मज़ा नहीं दे रहा,मेरे ख़याल से ये शैर यूँ होना चाहिये इसमें आपके भाव भी नहीं बदलेंगे :-

    "जब रोज़ जलाता रहे ख़ुर्शीद तपिश से
    वो फूल तरस्ते हैं सदा बाद-ए-सबा को"

    ये नुक्ता भी बहुत बारीक है बहना,अगर आप इस तक पहुँच गईं तो मेरा कहना सर्थक हो जायेगा ।

    बाक़ी अशआर बहुत उम्दा हैं,गिरह भी ख़ूब लगाई है,बाक़ी शुभ-शुभ ।
  • नाथ सोनांचली

    आद0 बहन राजेश कुमारी जी सादर अभिवादन। उम्दा गजल कही आपने, कुछ शैर तो सीधे दिल पर असर करते है। शेष उस्ताद समर साहब की इस्लाह के बाद तो ग़ज़ल और अच्छी हो गयी। आपको इस उमा गजल पर दाद के साथ बधाई निवेदित करता हूँ।

  • सदस्य कार्यकारिणी

    rajesh kumari

    आद० समर भाई जी ,आप ने उन बातों को इंगित किया है जो मेरे दिमाग में ही नहीं आई हम तो हमेशा पतंगे ही उच्चारित करते आये हैं ये आप से ही पता चला की सही लफ्ज़ पतिंगे होता है दूसरा ..दिल से लगाई थी सजा को यहाँ बहुत महीन अंतर आपके बताने पर दिखाई दिया जो ठीक लगा तीसरे ---"जब रोज़ जलाता रहे ख़ुर्शीद तपिश से
    वो फूल तरस्ते हैं सदा बाद-ए-सबा को"---ये शेर तो निखर उठा आपके सुझाव से .भाई जी इस मार्ग दर्शन की बेहद शुक्रगुजार हूँ  इस ग़ज़ल को मैंने बहुत वक़्त दिया था लोगों ने बहुत सराहा भी किन्तु इन महीन बातों पर आपने ही गौर किया |लेकिन अब जाके संतुष्टि हुई इसे संशोधित करके दुबारा अप्रूव करवाती हूँ .बहुत बहुत आभार आपका 


  • सदस्य कार्यकारिणी

    rajesh kumari

    आद० सुरेन्द्र नाथ भैया जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से बहुत बहुत शुक्रगुजार हूँ .आद० समर भाई जी ने उचित इस्स्लाह दी है बस अब इसको संशोधित करके दुबार पब्लिश करवाती हूँ |

  • indravidyavachaspatitiwari

     आ0  राजेश कुमारी जी आपकी गजल ने तो दीवानगी में चांद की हया ही छुड़ादी। वाह!वाह! क्या कहने। इतनी अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाईयां।

  • Mahendra Kumar

    बहुत ही शानदार ग़ज़ल है आदरणीया राजेश मैम। दिल से बधाई स्वीकार करें। सादर।

  • सदस्य कार्यकारिणी

    rajesh kumari

    आद०  indravidyavachaspatitiwari जी आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका तहे दिल से शुक्रिया .


  • सदस्य कार्यकारिणी

    rajesh kumari

    आद० महेंद्र कुमार जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया .

  • Dr Ashutosh Mishra

    आफर्नीय राजेश जी बेहतरीन शेरो वाली इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए ढेर सारी बधाई आपकी रचना पर आदरणीय समर सर की प्रतिक्रिया से बेहद अच्छी जानकारी प्राप्त हुयी सादर