दीपक जलाओ
मैं जीवन रंगोली-रंगोली सजा लूँ
....चलो आज मैं भी दीवाली मना लूँ
माटी बनूँ ! रूँध लो, गूँथ लो तुम
युति चाक मढ़ दो, नवल रूप दो तुम
स्वर्णिम अगन से
जले प्राण बाती-
मैं स्वप्निल सितारे लिये जगमगा लूँ
....चलो आज मैं भी दीवाली मना लूँ
ओढूँ विभा सप्तरंगी तुम्हारी
छू लूँ चपलता मलंगी तुम्हारी
सुगंधि तुम्हारी
महक रूह की हो-
यूँ कतरे-कतरे में तुमको बसा लूँ
....चलो आज मैं भी दीवाली मना लूँ
तुम्हारी कदम-थाप की आवृति पर
हृदय साज की सुरमयी झंकृति पर
श्वासों की कण-कण
समर्पित नृति से-
करूँ आरती सारी रस्में निभा लूँ
....चलो आज मैं भी दीवाली मना लूँ
डॉ० प्राची
(मौलिक और अप्रकाशित)
Dr. Vijai Shanker
युति चाक मढ़ दो, नवल रूप दो तुम
स्वर्णिम अगन से
जले प्राण बाती-
मैं स्वप्निल सितारे लिये जगमगा लूँ
....चलो आज मैं भी दीवाली मना लूँ
* * * * * * *
तुम्हारी कदम-थाप की आवृति पर
हृदय साज की सुरमयी झंकृति पर
श्वासों की कण-कण
समर्पित नृति से-
करूँ आरती सारी रस्में निभा लूँ
सुंदरता की एक खूबसूरती यह भी है कि उसमें गज़ब की विविधता है , भावों की एक खूबी यह भी है कि उनकें भाव न आप लगा सकते हैं , न चुका सकते हैं , शेष निशब्द करती है आपकी यह कविता। बहुत बहुत बधाई आदरणीय डॉo प्राची सिंह जी ,
Oct 19, 2014
Satyanarayan Singh
आ. डॉ प्राची जी सादर,
अत्यंत ही सुन्दर शिल्प एवं भावाभिव्यक्ति से युक्त इस उत्तम गीत हेतु हार्दिक बधाई
Oct 20, 2014
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Dr.Prachi Singh
आ० डॉ. विजय शंकर जी
वैविध्य ही खूबसूरत लगता भी है..अन्यथा समरसता ऊबाऊ होने लगती है.... और खूबसूरती के तो अनगिन आयाम हैं ..सहमत हूँ
और सचमुच भाव अनमोल ही होते हैं.
आपने जिस भाव से इस को गीत स्वीकार किया है..... और उत्साह से अनुमोदित किया है उसके लिए मैं आपकी हृदय से आभारी हूँ
सादर
Oct 20, 2014
डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव
आदरणीया
आपकी कविता मे सदैव एक उच्च स्तर देखने को मिलता है i इस में भी है i 'युति चाक मढ दो' पर पुनः विचार कर ले
युति पशु के बंधना को कहते है i कुछ और अर्थ भी है i आप विदुषी है i आप से क्या कहें i सादर i
Oct 20, 2014
Aditya Kumar
आपकी कवितायेँ।। कुछ कहते नहीं बनता , आप इतना अच्छा लिखती हैं मै पढ़ कर सुनाता हूँ घर पर। सुबह दीपोत्सव
Oct 22, 2014
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Dr.Prachi Singh
गीत के शिल्प व भाव पर आपकी सराहना और अनुमोदन के लिए आभारी हूँ आ० सत्यनारायण सिंह जी
Oct 28, 2014
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Dr.Prachi Singh
आदरणीय डॉ० गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी
प्रस्तुत गीत आपके पाठक को संतुष्ट कर सका ये जानना मेरे लिए तोषकारी है..
अभिव्यक्ति में यदि कुछ शब्द ऐसे हों जो पाठक अपनी कल्पना के विवध आयामों से ग्रहण करें तो शायद अभिव्यक्ति और खूबसूरत हो जाती है.... 'युति' शब्द एकत्व या संयोग के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है ....दीपक, बाती रंगोली में पशुओं को नहीं बांधा है आदरणीय :))
आपकी शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद
सादर.
Oct 28, 2014
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Dr.Prachi Singh
आदरणीय आदित्य कुमार जी
मेरी लिखी रचना आप घर पर पढ़ कर सुनाते हैं..... ये जानना मुझे बहुत अन्तः संतोष दे रहा है
आपके अनुमोदन के लिए आभारी हूँ
Oct 28, 2014
Neeraj Neer
वाह !चलो आज मैं भी दीवाली मना लूँ, बहुत ही सुंदर ... कितना सुंदर गीत है, आनंद आ गया ...
Oct 28, 2014