कुंडलिया. . .

कुंडलिया. . . .

जीना  है  तो  सीख  ले ,विष  पीने  का  ढंग ।
बड़े  कसैले   प्रीति  के,अब  लगते   हैं   रंग ।।
अब  लगते  हैं  रंग , जगत् में  छलिया  सारे ।
पल - पल बदलें रूप, स्वयं का साँझ सकारे ।।
बड़ा कठिन  है  सोम, भरोसे  का  यों  पीना ।
विष को जीवन  मान , पड़ेगा  यों  ही  जीना ।।

सुशील सरना / 27-2-25

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Load Previous Comments

  • सदस्य टीम प्रबंधन

    Saurabh Pandey

    मौजूदा जीवन के यथार्थ को कुण्डलिया छ्ंद में बाँधने के लिए बधाई, आदरणीय सुशील सरना जी. 

  • Sushil Sarna

    आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी 

  • Sushil Sarna

    आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ ।