by Sushil Sarna
Feb 27
कुंडलिया. . . .
जीना है तो सीख ले ,विष पीने का ढंग ।बड़े कसैले प्रीति के,अब लगते हैं रंग ।।अब लगते हैं रंग , जगत् में छलिया सारे ।पल - पल बदलें रूप, स्वयं का साँझ सकारे ।।बड़ा कठिन है सोम, भरोसे का यों पीना ।विष को जीवन मान , पड़ेगा यों ही जीना ।।
सुशील सरना / 27-2-25
मौलिक एवं अप्रकाशित
मौजूदा जीवन के यथार्थ को कुण्डलिया छ्ंद में बाँधने के लिए बधाई, आदरणीय सुशील सरना जी.
May 2
आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी
May 3
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ ।
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सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey
मौजूदा जीवन के यथार्थ को कुण्डलिया छ्ंद में बाँधने के लिए बधाई, आदरणीय सुशील सरना जी.
May 2
Sushil Sarna
आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी
May 3
Sushil Sarna
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ ।
May 3