'ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव’ अंक 141 - Open Books Online2024-03-29T08:15:33Zhttp://openbooks.ning.com/group/pop/forum/topics/141?commentId=5170231%3AComment%3A1097035&feed=yes&xn_auth=noआदरणीय सौरभ भाईजी
यह एक दिन…tag:openbooks.ning.com,2023-01-22:5170231:Comment:10968772023-01-22T17:58:23.891Zअखिलेश कृष्ण श्रीवास्तवhttp://openbooks.ning.com/profile/1j78r4oio7ulh
<p>आदरणीय सौरभ भाईजी </p>
<p>यह एक दिन और एक ही बैठक में किये गये प्रयास का परिणाम् है। मैं न ज्यादा समय दे पाया न सोच पाया। </p>
<p>प्रोत्साहन और सुझाव के लिए हार्दिक धन्यवाद आभार ।</p>
<p>आदरणीय सौरभ भाईजी </p>
<p>यह एक दिन और एक ही बैठक में किये गये प्रयास का परिणाम् है। मैं न ज्यादा समय दे पाया न सोच पाया। </p>
<p>प्रोत्साहन और सुझाव के लिए हार्दिक धन्यवाद आभार ।</p> सादर प्रणाम, आदरणीया
tag:openbooks.ning.com,2023-01-22:5170231:Comment:10968762023-01-22T17:57:50.466ZSaurabh Pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>सादर प्रणाम, आदरणीया </p>
<p></p>
<p>सादर प्रणाम, आदरणीया </p>
<p></p> आदरणीय दयाराम मेथानी जी, आयो…tag:openbooks.ning.com,2023-01-22:5170231:Comment:10969772023-01-22T17:56:05.163ZSaurabh Pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p></p>
<p>आदरणीय दयाराम मेथानी जी, आयोजन में आपकी उपस्थिति तथा चित्रानुरूप रचना के लिए हार्दिक धन्यवाद तथा बधाइयाँ. </p>
<p><span> </span></p>
<p><span>स्वप्न सुंदरी सी सुंदर है, आज चांदनी रात।</span><br></br><span>बादल भी तो छाये ऐसे, जैसे हो बारात। ......... बहुत सुन्दर .. वाह वाह ! </span></p>
<p><span>वैसे, इसके तुरत बाद बच्चों की चर्चा तनिक असहज करती हुई है. </span></p>
<p></p>
<p>चली प्रेम पुरवाई कैसी, मन मचला घनघोर।<br></br>चंदा देखूं या सजनी को, दोनो है चितचोर ......... शृंगार रस का सुन्दर…</p>
<p></p>
<p>आदरणीय दयाराम मेथानी जी, आयोजन में आपकी उपस्थिति तथा चित्रानुरूप रचना के लिए हार्दिक धन्यवाद तथा बधाइयाँ. </p>
<p><span> </span></p>
<p><span>स्वप्न सुंदरी सी सुंदर है, आज चांदनी रात।</span><br/><span>बादल भी तो छाये ऐसे, जैसे हो बारात। ......... बहुत सुन्दर .. वाह वाह ! </span></p>
<p><span>वैसे, इसके तुरत बाद बच्चों की चर्चा तनिक असहज करती हुई है. </span></p>
<p></p>
<p>चली प्रेम पुरवाई कैसी, मन मचला घनघोर।<br/>चंदा देखूं या सजनी को, दोनो है चितचोर ......... शृंगार रस का सुन्दर प्रयोग हुआ है. </p>
<p></p>
<p>इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई. </p>
<p></p>
<p>एक बात : </p>
<p><span>है अद्भुत दृष्य आकाश में ............. गेयता बाधित है. कारण स्पष्ट है. आकाश को मात्रिकता के हिसाब से अकाश होना चाहिए. अर्थात सोलह की मात्रा बलात ’बनायी’ गयी है. </span></p>
<p><span>इसे ऐसे किया जा सकता है - है अद्भुत यह दृष्य गगन में .. </span></p>
<p></p>
<p><span>बज रहा मधुर साज .. .. यहाँ भी सार्थक गेयता के लिए मात्रिकता को साधना आवश्यक है. <br/></span></p>
<p><span>दूसरे, शुद्ध शब्द चाँद है, न कि चांद.</span></p>
<p>और, छोर पुल्लिंग शब्द है.</p>
<p></p>
<p>शुभ-शुभ</p>
<p></p> आदरणीय सौरभ जी
सादर अभिवादन।…tag:openbooks.ning.com,2023-01-22:5170231:Comment:10970442023-01-22T17:53:07.067Zpratibha pandehttp://openbooks.ning.com/profile/pratibhapande
<p>आदरणीय सौरभ जी</p>
<p>सादर अभिवादन। छंद प्रयासों पर आपकी उपस्तिथि की प्रतीक्षा रहती है। मार्गदर्शन और उत्साहवर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार </p>
<p> </p>
<p>हार्दिक आभार</p>
<p>आदरणीय सौरभ जी</p>
<p>सादर अभिवादन। छंद प्रयासों पर आपकी उपस्तिथि की प्रतीक्षा रहती है। मार्गदर्शन और उत्साहवर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार </p>
<p> </p>
<p>हार्दिक आभार</p> आदरणीय अखिलेश भाई जी,
आपका…tag:openbooks.ning.com,2023-01-22:5170231:Comment:10969762023-01-22T17:40:00.338ZSaurabh Pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p></p>
<p>आदरणीय अखिलेश भाई जी, </p>
<p>आपका स्वास्थ्य, विश्वास है, ठीक होगा. आपकी उपस्थिति तथा प्रस्तुत रचना इस बात की हामी है.</p>
<p>आदरणीय, आपकी रचना सधी हुई है और चित्र को सार्थकता से शाब्दिक कर रही है. यह अवश्य है, कि आपने शरद के चाँद और आकाश में भर आये बादलों को पूरी तरह से वर्षा ऋतु का बना दिया है.</p>
<p>बहरहाल, इस सधी हुई प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई. </p>
<p></p>
<p>एक बात,</p>
<p>शुद्ध शब्द चाँद है, न कि चांद </p>
<p></p>
<p>शुभातिशुभ</p>
<p></p>
<p></p>
<p>आदरणीय अखिलेश भाई जी, </p>
<p>आपका स्वास्थ्य, विश्वास है, ठीक होगा. आपकी उपस्थिति तथा प्रस्तुत रचना इस बात की हामी है.</p>
<p>आदरणीय, आपकी रचना सधी हुई है और चित्र को सार्थकता से शाब्दिक कर रही है. यह अवश्य है, कि आपने शरद के चाँद और आकाश में भर आये बादलों को पूरी तरह से वर्षा ऋतु का बना दिया है.</p>
<p>बहरहाल, इस सधी हुई प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई. </p>
<p></p>
<p>एक बात,</p>
<p>शुद्ध शब्द चाँद है, न कि चांद </p>
<p></p>
<p>शुभातिशुभ</p>
<p></p> आदरणीया प्रतिभाजी, आपकी प्रस…tag:openbooks.ning.com,2023-01-22:5170231:Comment:10970432023-01-22T17:28:45.257ZSaurabh Pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p></p>
<p>आदरणीया प्रतिभाजी, आपकी प्रस्तुतियों की विशिष्टता उनका गीत होना है. इस आयोजन में भी आपका सधा हुआ गीत विशिष्ट बन कर उभरा है. </p>
<p> </p>
<div dir="auto">आकाशी दुनियाँ के सारे, किस्से हैं अब मौन।</div>
<div dir="auto">नहीं पूछते बच्चे नभ में, सूत कातता कौन ? ........... इन पंक्तियों के माध्यम से वस्तुतः आपकी संवेदना शाब्दिक हुई है. ऐसी पंक्तियों के लिए प्रश्नवाचक्ज चिह्न की अनिवार्यता को हमें स्वीकार करना चाहिए. </div>
<div dir="auto"> </div>
<div dir="auto"><div dir="auto">एक सयाना…</div>
</div>
<p></p>
<p>आदरणीया प्रतिभाजी, आपकी प्रस्तुतियों की विशिष्टता उनका गीत होना है. इस आयोजन में भी आपका सधा हुआ गीत विशिष्ट बन कर उभरा है. </p>
<p> </p>
<div dir="auto">आकाशी दुनियाँ के सारे, किस्से हैं अब मौन।</div>
<div dir="auto">नहीं पूछते बच्चे नभ में, सूत कातता कौन ? ........... इन पंक्तियों के माध्यम से वस्तुतः आपकी संवेदना शाब्दिक हुई है. ऐसी पंक्तियों के लिए प्रश्नवाचक्ज चिह्न की अनिवार्यता को हमें स्वीकार करना चाहिए. </div>
<div dir="auto"> </div>
<div dir="auto"><div dir="auto">एक सयाना तारा बोला, छोड़ो नीरस तार।</div>
<div dir="auto">कष्ट बहुत हैं माना लेकिन, मुझे धरा से प्यार ...........क्या ही सकारात्मकता उभर कर शाब्दिक हुई है ! </div>
<div dir="auto"> </div>
<div dir="auto">कहना न होगा, आपके छांदसिक गीत आपके अभ्यास और लगन की उत्कृष्टता का बखान हैं. </div>
<div dir="auto">हार्दिक बधाइयाँ </div>
<div dir="auto"> </div>
<div dir="auto">एक बात : </div>
<div dir="auto"><div dir="auto">रात बची है थोड़ी अपना, बस कुछ पल का साथ ........... इस पद में ’अपना’ ’साथ’ के लिए है. किंतु, यह ’अपना’ वाक्य के लिए भ्रम की स्थिति बना रहा है. चूँकि यह पद दो चरणों में विभक्त है, अतः, चरणों की अस्मिता को महत्व देना उचित होगा. ऐसे में प्रथम चरण का ’अपना’ ’अपनी’ करना श्रेयस्कर होगा. यह ’अपनी’ ’रात’ से सम्बद्ध हो जाएगी. </div>
<div dir="auto">ऐसा होना दोहा या इस जैसे छंद के लिए भी सार्थक है. </div>
<div dir="auto"> </div>
<div dir="auto">शुभातिशुभ</div>
<div dir="auto"></div>
</div>
</div> सादर प्रणाम, आदरणीय.
tag:openbooks.ning.com,2023-01-22:5170231:Comment:10968752023-01-22T17:03:02.309ZSaurabh Pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>सादर प्रणाम, आदरणीय. </p>
<p></p>
<p>सादर प्रणाम, आदरणीय. </p>
<p></p> आदरणीय अजय गुप्ता अजेय जी, आप…tag:openbooks.ning.com,2023-01-22:5170231:Comment:10967802023-01-22T17:02:02.079ZSaurabh Pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय अजय गुप्ता अजेय जी, आपकी प्रस्तुति ने मन मोह लिया.है. </p>
<p>बाल कविता के लिए आवश्यक कथ्य, शिल्प तथा प्रस्तुतीकरण का सुन्दर संयोजन निस्संदेह मुग्धकारी है. तिस पर, निम्नलिखित पंक्तियों के लिए बारम्बार बधाई -</p>
<p>चंदा मामा चंदा मामा, करना हमको माफ़<br/>रखें नहीं हैं मम्मी-पापा, गगन-पवन को साफ़<br/>मगर बड़े होकर हम सारे, लायेंगें बदलाव<br/>चाँदी का धरती पर फिर से, तुम करना छिड़काव </p>
<p>वाह वाह वाह ! </p>
<p></p>
<p>जय-जय</p>
<p></p>
<p>आदरणीय अजय गुप्ता अजेय जी, आपकी प्रस्तुति ने मन मोह लिया.है. </p>
<p>बाल कविता के लिए आवश्यक कथ्य, शिल्प तथा प्रस्तुतीकरण का सुन्दर संयोजन निस्संदेह मुग्धकारी है. तिस पर, निम्नलिखित पंक्तियों के लिए बारम्बार बधाई -</p>
<p>चंदा मामा चंदा मामा, करना हमको माफ़<br/>रखें नहीं हैं मम्मी-पापा, गगन-पवन को साफ़<br/>मगर बड़े होकर हम सारे, लायेंगें बदलाव<br/>चाँदी का धरती पर फिर से, तुम करना छिड़काव </p>
<p>वाह वाह वाह ! </p>
<p></p>
<p>जय-जय</p>
<p></p> आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।…tag:openbooks.ning.com,2023-01-22:5170231:Comment:10969752023-01-22T16:45:08.180Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p><span>आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।</span></p>
<p><span>आपकी उपस्थिति के बिना मुझे अपनी हर रचना अधूरी लगती है। आपके स्नेहाशीष के बाद ही संतुष्टि मिलती है। अनमोल मार्गदर्शन के लिए पुनः आभार।</span></p>
<p><span>आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।</span></p>
<p><span>आपकी उपस्थिति के बिना मुझे अपनी हर रचना अधूरी लगती है। आपके स्नेहाशीष के बाद ही संतुष्टि मिलती है। अनमोल मार्गदर्शन के लिए पुनः आभार।</span></p> आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प…tag:openbooks.ning.com,2023-01-22:5170231:Comment:10970422023-01-22T16:23:49.899ZSaurabh Pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति का आभार.</p>
<p>चरणों / पदों की मात्राओं पर ध्यान देना श्रेयस्कर होगा. बाकी, आपकी संलग्नता से मैं सर्वथा आशान्वित हूँ. </p>
<p></p>
<p>शुभ-शुभ</p>
<p></p>
<p>आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति का आभार.</p>
<p>चरणों / पदों की मात्राओं पर ध्यान देना श्रेयस्कर होगा. बाकी, आपकी संलग्नता से मैं सर्वथा आशान्वित हूँ. </p>
<p></p>
<p>शुभ-शुभ</p>
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