"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 139 - Open Books Online2024-03-28T11:51:59Zhttp://openbooks.ning.com/group/pop/forum/topics/139?commentId=5170231%3AComment%3A1093978&xg_source=activity&feed=yes&xn_auth=noआदरणीय अशोक भाईजी,
आप द्वारा…tag:openbooks.ning.com,2022-11-20:5170231:Comment:10942102022-11-20T18:30:22.249ZSaurabh Pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय अशोक भाईजी, </p>
<p>आप द्वारा हुआ छंद-प्रयास सदैव पठनीय ही नहीं, अनुकरणीय भी होता है </p>
<p></p>
<p><span>धुआँ-धुआँ हैं राहें सारी, पीं-पीं का है शोर।</span></p>
<p><span>शासन की कोशिश का सारा, निकल गया है ज़ोर।</span></p>
<p><span>दिवस रात के जैसा लगता, बढ़ी जा रही पीर।</span></p>
<p><span>जाम फेफड़े हुए धड़कते, कौन बँधाए धीर ।। ... प्रदूषण की सारी कहानी इन चार पंक्तियों से स्पष्ट हो जारही है. </span></p>
<p></p>
<p><span>कहीं पराली दाह कृषक भी, भूला जीवन मोल .... क्या बात है…</span></p>
<p>आदरणीय अशोक भाईजी, </p>
<p>आप द्वारा हुआ छंद-प्रयास सदैव पठनीय ही नहीं, अनुकरणीय भी होता है </p>
<p></p>
<p><span>धुआँ-धुआँ हैं राहें सारी, पीं-पीं का है शोर।</span></p>
<p><span>शासन की कोशिश का सारा, निकल गया है ज़ोर।</span></p>
<p><span>दिवस रात के जैसा लगता, बढ़ी जा रही पीर।</span></p>
<p><span>जाम फेफड़े हुए धड़कते, कौन बँधाए धीर ।। ... प्रदूषण की सारी कहानी इन चार पंक्तियों से स्पष्ट हो जारही है. </span></p>
<p></p>
<p><span>कहीं पराली दाह कृषक भी, भूला जीवन मोल .... क्या बात है ! क्या बात है ! </span></p>
<p></p>
<p>सार्थक छंद के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें, आदरणीय </p>
<p>शुभातिशुभ</p>
<p></p> आदरणीया प्रतिभा जी,
आप लगभग…tag:openbooks.ning.com,2022-11-20:5170231:Comment:10940562022-11-20T18:23:32.771ZSaurabh Pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीया प्रतिभा जी, </p>
<p>आप लगभग प्रत्येक आयोजन में प्रदत्त छंद पर आधारित गीत ले आती हैं और लगभग हर गीत संवेशफरक होता है. </p>
<p>सरसी छंद पर आधारित यह गीत भी सार्थक है. </p>
<p></p>
<p><span>धुँआ प्रदूषण ही लाते हैं, रोगों की सौगात ... प्रस्तुति की यह पंक्ति पूरी रचना का आधार बिन्दु है. </span></p>
<p><span>हार्दिक बधाई स्वीकर करें, आदरणीया</span></p>
<p></p>
<p>शुभातिशुभ</p>
<p></p>
<p>आदरणीया प्रतिभा जी, </p>
<p>आप लगभग प्रत्येक आयोजन में प्रदत्त छंद पर आधारित गीत ले आती हैं और लगभग हर गीत संवेशफरक होता है. </p>
<p>सरसी छंद पर आधारित यह गीत भी सार्थक है. </p>
<p></p>
<p><span>धुँआ प्रदूषण ही लाते हैं, रोगों की सौगात ... प्रस्तुति की यह पंक्ति पूरी रचना का आधार बिन्दु है. </span></p>
<p><span>हार्दिक बधाई स्वीकर करें, आदरणीया</span></p>
<p></p>
<p>शुभातिशुभ</p>
<p></p> आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी…tag:openbooks.ning.com,2022-11-20:5170231:Comment:10940552022-11-20T18:18:19.867ZSaurabh Pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति का हार्दिक धन्यवाद.</p>
<p>आपने सरसी छंद को एक और आयाम दे दिया, अर्थात, छंद की चारों पक्तियों को एक ही तरह का तुकांत किया है आपने. वाह-वाह. </p>
<p></p>
<p>किन्तु, कई पंक्तियों ंमें गेयता परिमार्जित होनी बाकी है. जैसे, </p>
<p>लेकिन हो गये प्रदूषण से \</p>
<p><span>हवा विष घुली चहुँदिश फैली, </span></p>
<p><span>हर वातावरण अब प्रदूषित, </span></p>
<p></p>
<p><span>विश्वास है आप अपने लिए सार्थक विकल्प ढूँढ लीजिएगा. </span></p>
<p><span>हार्दिक…</span></p>
<p>आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति का हार्दिक धन्यवाद.</p>
<p>आपने सरसी छंद को एक और आयाम दे दिया, अर्थात, छंद की चारों पक्तियों को एक ही तरह का तुकांत किया है आपने. वाह-वाह. </p>
<p></p>
<p>किन्तु, कई पंक्तियों ंमें गेयता परिमार्जित होनी बाकी है. जैसे, </p>
<p>लेकिन हो गये प्रदूषण से \</p>
<p><span>हवा विष घुली चहुँदिश फैली, </span></p>
<p><span>हर वातावरण अब प्रदूषित, </span></p>
<p></p>
<p><span>विश्वास है आप अपने लिए सार्थक विकल्प ढूँढ लीजिएगा. </span></p>
<p><span>हार्दिक धन्यवाद. </span></p>
<p>शुभ-शुभ</p>
<p></p> आदरणीय अखिलेश भाईजी,
प्रदूषण…tag:openbooks.ning.com,2022-11-20:5170231:Comment:10942092022-11-20T18:06:08.199ZSaurabh Pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय अखिलेश भाईजी, </p>
<p>प्रदूषण को लेकर सार्थक प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई. </p>
<p></p>
<p><span>हवा प्रदूषित महानगर की, कैसे रहें निरोग।</span></p>
<p><span>थम थमकर सांसें चलती हैं, मरमर जीते लोग .. ......... सत्य वचन </span></p>
<p></p>
<p><span>जंगल काटे नगर बसाये, कर ली पूरी आस।</span></p>
<p><span>मिलें उगलती धुँआ विषैली, हर दिन बारों मास .......... जंगल ही धरती के फेफड़े हैं. मानव अपने फेफडे के प्रति ही लापरवाह है. </span></p>
<p><span>दूसरी बात, धुआँ विषैला होता है. त्रुटि को…</span></p>
<p>आदरणीय अखिलेश भाईजी, </p>
<p>प्रदूषण को लेकर सार्थक प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई. </p>
<p></p>
<p><span>हवा प्रदूषित महानगर की, कैसे रहें निरोग।</span></p>
<p><span>थम थमकर सांसें चलती हैं, मरमर जीते लोग .. ......... सत्य वचन </span></p>
<p></p>
<p><span>जंगल काटे नगर बसाये, कर ली पूरी आस।</span></p>
<p><span>मिलें उगलती धुँआ विषैली, हर दिन बारों मास .......... जंगल ही धरती के फेफड़े हैं. मानव अपने फेफडे के प्रति ही लापरवाह है. </span></p>
<p><span>दूसरी बात, धुआँ विषैला होता है. त्रुटि को दुरुस्त कर लीजिएगा. </span></p>
<p></p>
<p><span>धूल धुँआ दुर्गंध में जिओ, देकर उसको मात ........... जिओ की जगह जीओ होगा तब मात्रिकता सटीक हो पाएगी. </span></p>
<p></p>
<p>और एक बात, आदरणीय, मरमर को मर-मर कर लें. मरमर मतलब मुलायम. और मर-मर का अर्थ है, मरते हुए. </p>
<p></p>
<p>बहरहाल, प्रस्तुति की तथ्यात्मकता सचबयानी कर रही है. हार्दिक बधाई. </p>
<p><span>जय-जय</span></p>
<p><span> </span></p> आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवाद…tag:openbooks.ning.com,2022-11-20:5170231:Comment:10941722022-11-20T17:34:31.867Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। छंदों पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और कमियों को इंगित करने के लिए आभार। कुछ सुधार का प्रयास किया है। देखकर मर्गदर्शन कीजिए।<br/><br/>"घुला हवा में विष ही विष है"<br/>"वातावरण प्रदूषित है अब"</p>
<p></p>
<p>आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। छंदों पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और कमियों को इंगित करने के लिए आभार। कुछ सुधार का प्रयास किया है। देखकर मर्गदर्शन कीजिए।<br/><br/>"घुला हवा में विष ही विष है"<br/>"वातावरण प्रदूषित है अब"</p>
<p></p> आदरणीय लक्ष्मण भाईजी
सुंदर सर…tag:openbooks.ning.com,2022-11-20:5170231:Comment:10942082022-11-20T16:56:19.014Zअखिलेश कृष्ण श्रीवास्तवhttp://openbooks.ning.com/profile/1j78r4oio7ulh
<p>आदरणीय लक्ष्मण भाईजी</p>
<p>सुंदर सरसी छंद की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें। </p>
<p><span>हवा विष घुली चहुँदिश फैली ,,,,,,,,, हर वातावरण अब प्रदूषित, ...... इन दोनों में लय बाधित है </span></p>
<p>आदरणीय लक्ष्मण भाईजी</p>
<p>सुंदर सरसी छंद की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें। </p>
<p><span>हवा विष घुली चहुँदिश फैली ,,,,,,,,, हर वातावरण अब प्रदूषित, ...... इन दोनों में लय बाधित है </span></p> आदरणीय अशोक भाईजी
छंद की प्रश…tag:openbooks.ning.com,2022-11-20:5170231:Comment:10939792022-11-20T16:48:56.533Zअखिलेश कृष्ण श्रीवास्तवhttp://openbooks.ning.com/profile/1j78r4oio7ulh
<p>आदरणीय अशोक भाईजी</p>
<p><span>छंद की प्रशंसा के लिये हार्दिक धन्यवाद आभार आपका।</span></p>
<p><span>विषैला सही है .... धन्यवाद </span></p>
<p>आदरणीय अशोक भाईजी</p>
<p><span>छंद की प्रशंसा के लिये हार्दिक धन्यवाद आभार आपका।</span></p>
<p><span>विषैला सही है .... धन्यवाद </span></p> आदरणीया प्रतिभाजी
छंद की प्रश…tag:openbooks.ning.com,2022-11-20:5170231:Comment:10942072022-11-20T16:45:48.639Zअखिलेश कृष्ण श्रीवास्तवhttp://openbooks.ning.com/profile/1j78r4oio7ulh
<p>आदरणीया प्रतिभाजी</p>
<p><span>छंद की प्रशंसा के लिये हार्दिक धन्यवाद आभार आपका।</span></p>
<p>आदरणीया प्रतिभाजी</p>
<p><span>छंद की प्रशंसा के लिये हार्दिक धन्यवाद आभार आपका।</span></p> आदरणीय अशोक भाईजी
हार्दिक बध…tag:openbooks.ning.com,2022-11-20:5170231:Comment:10939062022-11-20T16:34:48.370Zअखिलेश कृष्ण श्रीवास्तवhttp://openbooks.ning.com/profile/1j78r4oio7ulh
<p>आदरणीय अशोक भाईजी </p>
<p>हार्दिक बधाई इस सुंदर प्रस्तुति पर।</p>
<p><span>जाम फेफड़े हुए धड़कते,..... </span>प्रवाह तो है पर अर्थ स्पष्ट नहीं ........ <span> <strong>सहज न धड़के जाम फेफड़े</strong> ....... या ऐसा ही कुछ </span></p>
<p><span>नहीं सुरक्षित कोई घर है, नगर गली या गाँव। ..... सत्य कहन </span></p>
<p>आदरणीय अशोक भाईजी </p>
<p>हार्दिक बधाई इस सुंदर प्रस्तुति पर।</p>
<p><span>जाम फेफड़े हुए धड़कते,..... </span>प्रवाह तो है पर अर्थ स्पष्ट नहीं ........ <span> <strong>सहज न धड़के जाम फेफड़े</strong> ....... या ऐसा ही कुछ </span></p>
<p><span>नहीं सुरक्षित कोई घर है, नगर गली या गाँव। ..... सत्य कहन </span></p> आदरणीया प्रतिभाजी
छंद आधारित…tag:openbooks.ning.com,2022-11-20:5170231:Comment:10941712022-11-20T16:10:22.433Zअखिलेश कृष्ण श्रीवास्तवhttp://openbooks.ning.com/profile/1j78r4oio7ulh
<p>आदरणीया प्रतिभाजी</p>
<p>छंद आधारित सुंदर गीत लय के साथ प्रस्तुत करने के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।</p>
<p><strong>है भाग में इसके भागना ...... </strong></p>
<p>आदरणीया प्रतिभाजी</p>
<p>छंद आधारित सुंदर गीत लय के साथ प्रस्तुत करने के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।</p>
<p><strong>है भाग में इसके भागना ...... </strong></p>