"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक-105 - Open Books Online2024-03-28T21:42:09Zhttp://openbooks.ning.com/group/pop/forum/topics/105?commentId=5170231%3AComment%3A999565&feed=yes&xn_auth=noबहुत बधाई लीजिए, छंदविशारद आप…tag:openbooks.ning.com,2020-01-19:5170231:Comment:9996802020-01-19T18:32:10.070ZSaurabh Pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>बहुत बधाई लीजिए, छंदविशारद आप</p>
<p>आए क्यों पर देर से, देने अपनी छाप ??</p>
<p></p>
<p>शुभ-शुभ</p>
<p>सादर </p>
<p></p>
<p>बहुत बधाई लीजिए, छंदविशारद आप</p>
<p>आए क्यों पर देर से, देने अपनी छाप ??</p>
<p></p>
<p>शुभ-शुभ</p>
<p>सादर </p>
<p></p> जी ! सादर प्रणाम.tag:openbooks.ning.com,2020-01-19:5170231:Comment:9994732020-01-19T18:29:24.315ZAshok Kumar Raktalehttp://openbooks.ning.com/profile/AshokKumarRaktale
<p>जी ! सादर प्रणाम.</p>
<p>जी ! सादर प्रणाम.</p> आदरणीय अशोक भाईजी, आपका सुझाव…tag:openbooks.ning.com,2020-01-19:5170231:Comment:9997922020-01-19T18:25:24.327ZSaurabh Pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय अशोक भाईजी, आपका सुझाव शिरोधार्य है.</p>
<p>किंतु, एक मत यह भी हो सकता है, कि दोहा में प्रयुक्त 'दीन' यदि समूहवाचक के अनुसार व्यवहार करे तो 'उनकी' सर्वथा उचित होगा. अलबत्ता, चित्र के अनुुुुरूप यह व्यक्तिवाची है, तो 'उसकी' का सर्वनाम ही सही होगा. परंतु, ऐसे में उक्त दोहा की उपयोगिता संकुचित ही रहेगी. </p>
<p>सादर</p>
<p>आदरणीय अशोक भाईजी, आपका सुझाव शिरोधार्य है.</p>
<p>किंतु, एक मत यह भी हो सकता है, कि दोहा में प्रयुक्त 'दीन' यदि समूहवाचक के अनुसार व्यवहार करे तो 'उनकी' सर्वथा उचित होगा. अलबत्ता, चित्र के अनुुुुरूप यह व्यक्तिवाची है, तो 'उसकी' का सर्वनाम ही सही होगा. परंतु, ऐसे में उक्त दोहा की उपयोगिता संकुचित ही रहेगी. </p>
<p>सादर</p> दोहे
काम सदा इन्सान के, आता…tag:openbooks.ning.com,2020-01-19:5170231:Comment:9994722020-01-19T18:17:34.673ZAshok Kumar Raktalehttp://openbooks.ning.com/profile/AshokKumarRaktale
<h2>दोहे</h2>
<h2> </h2>
<h2>काम सदा इन्सान के, आता है इंसान ।</h2>
<h2>फोटो खूब खिंचाइये, किन्तु कीजिये दान ।।1</h2>
<h2> </h2>
<h2>हाथ टिका कर भूमि पर, बैठा हुआ गरीब ।</h2>
<h2>कम्बल पाकर भी कहाँ, बदला कहो नसीब ।।2</h2>
<h2> </h2>
<h2>दानी बनकर हैं खड़े, मुख पर है मुस्कान ।</h2>
<h2>इन लोगों को चाहिए, बस केवल सम्मान ।।3</h2>
<h2> </h2>
<h2>लोग न अब सरकार के, रहें भरोसे आज ।</h2>
<h2>निर्धन की करता रहे, सेवा सकल समाज ।।4</h2>
<h2> </h2>
<h2>दिखे न कोई भी यहाँ, मानव अब लाचार ।</h2>
<h2>इतना सब…</h2>
<h2>दोहे</h2>
<h2> </h2>
<h2>काम सदा इन्सान के, आता है इंसान ।</h2>
<h2>फोटो खूब खिंचाइये, किन्तु कीजिये दान ।।1</h2>
<h2> </h2>
<h2>हाथ टिका कर भूमि पर, बैठा हुआ गरीब ।</h2>
<h2>कम्बल पाकर भी कहाँ, बदला कहो नसीब ।।2</h2>
<h2> </h2>
<h2>दानी बनकर हैं खड़े, मुख पर है मुस्कान ।</h2>
<h2>इन लोगों को चाहिए, बस केवल सम्मान ।।3</h2>
<h2> </h2>
<h2>लोग न अब सरकार के, रहें भरोसे आज ।</h2>
<h2>निर्धन की करता रहे, सेवा सकल समाज ।।4</h2>
<h2> </h2>
<h2>दिखे न कोई भी यहाँ, मानव अब लाचार ।</h2>
<h2>इतना सब मिलकर करें, जीवन में उपकार ।।5</h2>
<h2> </h2>
<h2>मौलिक/अप्रकाशित.</h2>
<h2> </h2> आदरणीय अशोक रक्ताले जी इस प्र…tag:openbooks.ning.com,2020-01-19:5170231:Comment:9995672020-01-19T18:14:09.938ZSatyanarayan Singhhttp://openbooks.ning.com/profile/satyanarayanShivramSingh
<p>आदरणीय अशोक रक्ताले जी इस प्रयास पर आपकी सराहना के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय </p>
<p>जी आपके सुझावानुसार <em>उसका</em> ही समुचित शब्द होगा अपनी मूल रचना में तदनुसार संशोधित कर रहा हूँ । सादर आभार आपका आदरणीय मार्गदर्शन हेतु</p>
<p>आदरणीय अशोक रक्ताले जी इस प्रयास पर आपकी सराहना के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय </p>
<p>जी आपके सुझावानुसार <em>उसका</em> ही समुचित शब्द होगा अपनी मूल रचना में तदनुसार संशोधित कर रहा हूँ । सादर आभार आपका आदरणीय मार्गदर्शन हेतु</p> आदरणीय भाई सत्यनारायण सिंह जी…tag:openbooks.ning.com,2020-01-19:5170231:Comment:9996792020-01-19T17:55:48.255ZAshok Kumar Raktalehttp://openbooks.ning.com/profile/AshokKumarRaktale
<p>आदरणीय भाई सत्यनारायण सिंह जी सादर, प्रदत्त चित्र के माध्यम से दीनों के हित कार्य करने का सन्देश देते सुन्दर युग्म से सजी गीतिका की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें. फिरभी प्रथम युग्म में उनकी या उसकी देख लें. सादर. </p>
<p>आदरणीय भाई सत्यनारायण सिंह जी सादर, प्रदत्त चित्र के माध्यम से दीनों के हित कार्य करने का सन्देश देते सुन्दर युग्म से सजी गीतिका की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें. फिरभी प्रथम युग्म में उनकी या उसकी देख लें. सादर. </p> उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय…tag:openbooks.ning.com,2020-01-19:5170231:Comment:9996782020-01-19T17:54:05.854ZSatyanarayan Singhhttp://openbooks.ning.com/profile/satyanarayanShivramSingh
<p>उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय से आभार आदरणीय अखिलेश कृष्ण जी सादर</p>
<p>उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय से आभार आदरणीय अखिलेश कृष्ण जी सादर</p> आदरणीय अशोक भाईजी
इस उत्सव मे…tag:openbooks.ning.com,2020-01-19:5170231:Comment:9997902020-01-19T17:53:03.376Zअखिलेश कृष्ण श्रीवास्तवhttp://openbooks.ning.com/profile/1j78r4oio7ulh
<p>आदरणीय अशोक भाईजी</p>
<p>इस उत्सव में आपका आना सुखद है। उत्साहवर्धन और प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार</p>
<p></p>
<p>आदरणीय अशोक भाईजी</p>
<p>इस उत्सव में आपका आना सुखद है। उत्साहवर्धन और प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार</p>
<p></p> आदरणीय भाई सतविन्द्र कुमार जी…tag:openbooks.ning.com,2020-01-19:5170231:Comment:9995662020-01-19T17:52:23.185ZAshok Kumar Raktalehttp://openbooks.ning.com/profile/AshokKumarRaktale
<p>आदरणीय भाई सतविन्द्र कुमार जी सादर, प्रदत्त चित्र पर सुंदर दोहा गीतिका रची है आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. किन्तु चौथे युग्म के अंतिम चरण में मात्राएँ कम रह गई हैं. भाठ, राठ, माठ जैसे शब्दों का प्रयोग प्रथम बार ही पढने का अवसर है. सादर. </p>
<p>आदरणीय भाई सतविन्द्र कुमार जी सादर, प्रदत्त चित्र पर सुंदर दोहा गीतिका रची है आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. किन्तु चौथे युग्म के अंतिम चरण में मात्राएँ कम रह गई हैं. भाठ, राठ, माठ जैसे शब्दों का प्रयोग प्रथम बार ही पढने का अवसर है. सादर. </p> उत्सासाहवर्धन के लिए हृदय से…tag:openbooks.ning.com,2020-01-19:5170231:Comment:9997892020-01-19T17:50:06.396ZSatyanarayan Singhhttp://openbooks.ning.com/profile/satyanarayanShivramSingh
<p>उत्सासाहवर्धन के लिए हृदय से आभार आपका आदरणीया प्रतिभा पांडे जी</p>
<p>उत्सासाहवर्धन के लिए हृदय से आभार आपका आदरणीया प्रतिभा पांडे जी</p>