हिंदी की कक्षा Discussions - Open Books Online2024-03-29T15:40:09Zhttp://openbooks.ning.com/group/hindi_ki_kaksha/forum?feed=yes&xn_auth=noहिंदी लेखन की शुद्धता के नियम - डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तवtag:openbooks.ning.com,2019-07-07:5170231:Topic:9871512019-07-07T14:55:11.018Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>हिंदी लेखन में बड़े लोग भी शुद्ध-अशुद्ध के विचार में प्रायशः चूक जाते हैं i नये लेखकों के तो लेखन का निकष भी यही होना चाहिए की वे कितना शुद्ध या अशुद्ध लिख रहे है I कम्प्यूटर का मंगल फांट तो अशुद्धियों से भरा है और उसमे बार-बार संशोधन करने के बाद भी यह संभावना बनी रहती है कि अभी भी यह त्रुटिहीन नहीं है I पूर्ण शुद्ध लेखन का दावा करना तो विद्वानों के लिए भी मुश्किल है पर यह प्रयास अवश्य होना चाहिए कि हम सप्रयास शुद्ध लेखन कर रहे हैं I इसके लिए कुछ अध्ययन करना पड़े तो वह भी स्वीकार्य होना चाहिए…</p>
<p>हिंदी लेखन में बड़े लोग भी शुद्ध-अशुद्ध के विचार में प्रायशः चूक जाते हैं i नये लेखकों के तो लेखन का निकष भी यही होना चाहिए की वे कितना शुद्ध या अशुद्ध लिख रहे है I कम्प्यूटर का मंगल फांट तो अशुद्धियों से भरा है और उसमे बार-बार संशोधन करने के बाद भी यह संभावना बनी रहती है कि अभी भी यह त्रुटिहीन नहीं है I पूर्ण शुद्ध लेखन का दावा करना तो विद्वानों के लिए भी मुश्किल है पर यह प्रयास अवश्य होना चाहिए कि हम सप्रयास शुद्ध लेखन कर रहे हैं I इसके लिए कुछ अध्ययन करना पड़े तो वह भी स्वीकार्य होना चाहिए I सामान्यतः लेखन में तीन प्रकार की अशुद्धियाँ होती हैं- शाब्दिक अशुद्धि, वाक्य रचना अशुद्धि और विराम चिह्न विषयक अशुद्धि I यहाँ शाब्दिक अशुद्धि पर विचार किया जा रहा है -</p>
<p><strong><u>[1] सर्वनाम के साथ विभक्ति</u></strong></p>
<p>विभक्ति शब्द के आगे लगा वह प्रत्यय या चिह्न है, जिससे यह पता लगता है कि उस शब्द का क्रियापद (क्रिया वाचक शब्द जैसे-पढ़ना )से क्या संबंध है I इनकी संख्या सात है और उनके अपने अभिप्राय बोधक शब्द होते हैं I ये शब्द जब किसी सर्वनाम के बाद आते हैं तो वे सर्वनाम से जुड़ जाते हैं I जैसे -</p>
<table>
<tbody><tr><td width="115"><p><strong> विभक्ति</strong></p>
</td>
<td width="216"><p><strong>अभिप्राय बोधक शब्द</strong></p>
</td>
<td width="288"><p><strong>सर्वनाम से योग</strong></p>
</td>
</tr>
<tr><td width="115"><p>1- कर्ता</p>
</td>
<td width="216"><p>ने</p>
</td>
<td width="288"><p>उस + ने = उसने</p>
</td>
</tr>
<tr><td width="115"><p>2-कर्म</p>
</td>
<td width="216"><p>को</p>
</td>
<td width="288"><p>उस + को = उसको </p>
</td>
</tr>
<tr><td width="115"><p>3-करण</p>
</td>
<td width="216"><p>से</p>
</td>
<td width="288"><p>उस + से = उससे </p>
</td>
</tr>
<tr><td width="115"><p>4- संप्रदान</p>
</td>
<td width="216"><p>के लिए</p>
</td>
<td width="288"><p>उस+ के लिए= उसके लिए </p>
</td>
</tr>
<tr><td width="115"><p>5-अपादान</p>
</td>
<td width="216"><p>से (विलग होने का भाव )</p>
</td>
<td width="288"><p>उस + से = उससे </p>
</td>
</tr>
<tr><td width="115"><p>6- संबंध</p>
</td>
<td width="216"><p>का, के, की</p>
</td>
<td width="288"><p>उस+ का/के /की = उसका/ उसके / उसकी </p>
</td>
</tr>
<tr><td width="115"><p>7-अधिकरण</p>
</td>
<td width="216"><p>में, पर</p>
</td>
<td width="288"><p>उस+में/पर = उसमें </p>
</td>
</tr>
</tbody>
</table>
<p>इसी प्रकार तुमने, आपको, मुझसे, उनके लिए, हमसे (विलग होने का भाव), इनका, उनका, किसकी, तुझमें आदि लिखे जायेंगे I इसमें निम्न अपवाद भी है I</p>
<p>(1) सर्वनाम और विभक्ति के बीच यदि ही, तक और पर जैसे शब्द आयें तब इनका मेल नहीं होगा I जैसे- आप ही का नाम, तुम तक, किसी पर आदि I</p>
<p>(2) सर्वनाम के बाद यदि दो विभक्तियाँ हैं, तो सर्वनाम पहली विभक्ति से ही जुड़ेगा I जैसे – इनमें से, आपके लिए I संज्ञा के साथ कोई भी विभक्ति नहीं जुड़ेगी I जैसे -राधा ने कृष्ण की मुरली से छेड़खानी की I</p>
<p><strong>विशेष -</strong> आजकल प्रेस की सुविधा के लिहाज से कुछ संज्ञाओं में भी विभक्तियाँ जुड़ने लगी है जो नियमत: गलत है I</p>
<p><strong><u>[2] अव्यय का प्रयोग</u></strong></p>
<p>व्याकरण में अव्यय का अर्थ है, वह शब्द जिसका सभी लिंगों, सब विभक्तियों और सब वचनों में समान रूप से प्रयोग हो I जैसे- ही, सो, जो, जब, तब, कब, कभी, अभी, नहीं, साथ, तक, श्री, जी इत्यादि I अव्ययों का प्रयोग सदैव स्वतंत्र होता है I इसे किसी भी शब्द से मिलाया नहीं जाता I जैसे- मेरे साथ, यहाँ तक, आप ही के लिए, मुझ तक को, उस ही के लिए (इसे ‘उसी के लिये’ लिखने का भी चलन है ), श्री बलराम जी इत्यादि I </p>
<p>[<strong><u>3] पूर्णकालिक प्रत्यय का प्रयोग</u></strong></p>
<p>विभक्तियाँ भी प्रत्यय ही है, यह उल्लेख पूर्व में हो चुका है I प्रत्यय की संख्या बहुत अधिक है और शब्दों से उनके जुड़ने के अनेक रूप है जो संधि से भी क्रियान्वित होते है I किन्तु जो पूर्णकालिक प्रत्यय हैं, वे ज्यों के त्यों शब्द के बाद में जुड़ते हैं I उदाहरण निम्नवत है –</p>
<table width="619">
<tbody><tr><td width="175"><p><strong>शब्द</strong></p>
</td>
<td width="174"><p><strong>प्रत्यय</strong></p>
</td>
<td width="270"><p><strong>नवार्थक शब्द</strong></p>
</td>
</tr>
<tr><td width="175"><p>पानी</p>
</td>
<td width="174"><p>दार</p>
</td>
<td width="270"><p>पानीदार</p>
</td>
</tr>
<tr><td width="175"><p>शक्ति</p>
</td>
<td width="174"><p>मान</p>
</td>
<td width="270"><p>शक्तिमान</p>
</td>
</tr>
<tr><td width="175"><p>आदर</p>
</td>
<td width="174"><p>पूर्वक</p>
</td>
<td width="270"><p>आदरपूर्वक</p>
</td>
</tr>
<tr><td width="175"><p>तीव्र</p>
</td>
<td width="174"><p>तम </p>
</td>
<td width="270"><p>तीव्रतम</p>
</td>
</tr>
<tr><td width="175"><p>दु:ख</p>
</td>
<td width="174"><p>मय</p>
</td>
<td width="270"><p>दु:खमय</p>
</td>
</tr>
<tr><td width="175"><p>कोटि</p>
</td>
<td width="174"><p>श :</p>
</td>
<td width="270"><p>कोटिशः</p>
</td>
</tr>
<tr><td width="175"><p>धन्य</p>
</td>
<td width="174"><p>वाद</p>
</td>
<td width="270"><p>धन्यवाद</p>
</td>
</tr>
</tbody>
</table>
<p>इसी प्रकार अन्य उदाहरण हैं – गौरवशाली, मायावी, यथावत्, मिलाकर, अद्यतन , राजकीय, हरिजन इत्यादि I</p>
<p><strong><u>[4] सामासिक चिह्न का प्रयोग </u></strong></p>
<p>समासों में द्वन्द समास में सदैव और तत्पुरुष समास में कभी-कभी ही दो संज्ञाओं के बीच सामासिक चिह्न का प्रयोग होता है I जैसे- आचार-विचार, जीवन –मरण, पेड़-पौधे, साग-पात, देश-विदेश इत्यादि I कभी-कभी दो विशेषणों में भी यह चिह्न लगता है जब वे विशेषण संज्ञा की तरह प्रयुक्त हुए हों I जैसे- टूटे-फूटे, लूले-लंगड़े, फटे-पुराने इत्यादि I</p>
<p>तत्पुरुष समास में सामान्यतः योजक चिह्न नहीं लगता पर जहाँ भ्रम की संभावना हो या स्थिति विशेष हो, वहाँ सामासिक चिह्न आवश्यक है I जैसे– भू-वैज्ञानिक, भू-तत्व, बलि-पशु, गुरु-दक्षिणा, पूजा-सामग्री इत्यादि I </p>
<p>एक ही शब्द जब दो बार प्रयुक्त होता है, तब भी सामासिक चिह्न का उपयोग करना लाजिमी है I जैसे- द्वारे-द्वारे, बार-बार, धांय-धांय, पीहू-पीहू, कभी-कभी, सांय-सांय, हुआ-हुआ, काँव-काँव धू-धू, पृथक-पृथक इत्यादि I</p>
<p>इसके अतिरिक्त जब सारूप्य वाचक शब्दों का प्रयोग करते है, तब भी सामासिक चिह्न लगना चाहिए I जैसे– तीखा-सा, आप-सा, प्यारा-सा, अबोध-सा, मुक्ता–सा, कसैला-सा इत्यादि I सरलीकरण के अनुयायी अब इस नियम का पालन प्रायशः नहीं करते हैं I </p>
<p>कभी कभी कुछ क्लिष्ट संयोजनों में भी सामासिक चिह्न लगाने की परंपरा है I जैसे- पी-यच. डी., द्वि-अक्षर, द्वि-भाषी इत्यादि I</p>
<p>[<strong><u>5]</u></strong> <strong><u>अनेक क्रियाओं का प्रयोग</u></strong></p>
<p>कभी-कभी संयुक्त क्रिया का लेखन अनिवार्य हो जाता है I इसमें एक से अधिक क्रियाओं का उपयोग होता है I एक फ़िल्मी गीत है – मुझसे गाया न गया, तुमसे भुलाया न गया I यह संयुक्त क्रिया का अच्छा उदाहरण है I ऐसे क्रिया प्रयोगों में हर क्रिया अलग-अलग लिखी जाती है I जैसे – गीत गाता चला जा रहा हूँ I हमें हँसते-हँसाते, गाते-बजाते सफ़र करने में मजा आता है I </p>
<p>[<strong><u>6] अनुस्वार का प्रयोग</u></strong></p>
<p>हिंदी की व्यंजन वर्णमाला के कुछ अक्षर कवर्ग, चवर्ग आदि वर्गों में बंटे हैं I इसमें हर वर्ग का अंतिम अर्थात पाँचवाँ अक्षर अनुस्वार है जिसे (˙)चिह्न से प्रकट करते है I किन्तु किसी वर्ग विशेष के पंचमाक्षर के बाद यदि उसी वर्ग के शेष चारों अक्षरों में से कोई अक्षर आता है तब अनुस्वार का प्रयोग किया जाएगा I उदाहरण निम्नवत है</p>
<table>
<tbody><tr><td width="160"><p><strong> नाम वर्ग</strong></p>
</td>
<td width="160"><p><strong>पंचमाक्षर</strong></p>
</td>
<td width="294"><p><strong> शब्द</strong></p>
</td>
</tr>
<tr><td width="160"><p>कवर्ग</p>
</td>
<td width="160"><p><strong>ङ्</strong></p>
</td>
<td width="294"><p>अंक ,शंख ,संग, कंघा</p>
</td>
</tr>
<tr><td width="160"><p>चवर्ग</p>
</td>
<td width="160"><p><strong>ञ्</strong></p>
</td>
<td width="294"><p>कंचन, उछंग, भुजंग, झंझा</p>
</td>
</tr>
<tr><td width="160"><p>टवर्ग</p>
</td>
<td width="160"><p>ण</p>
</td>
<td width="294"><p>कंटक, शंठ, उदंड, ढिंढोरा </p>
</td>
</tr>
<tr><td width="160"><p>तवर्ग</p>
</td>
<td width="160"><p>न</p>
</td>
<td width="294"><p>संत, ग्रंथ, मंद, धुंध </p>
</td>
</tr>
<tr><td width="160"><p>पवर्ग</p>
</td>
<td width="160"><p>म</p>
</td>
<td width="294"><p>कंप, सौंफ, लंब, खंभ</p>
</td>
</tr>
</tbody>
</table>
<p>इतना सरलीकरण होने पर भी पराङ्मुख और वाङ्मय जैसे शब्द आज भी पुरानी परंपरा में ही चल रहे हैं I</p>
<p>अग्रेतर किसी वर्ग विशेष के पंचमाक्षर के बाद यदि –</p>
<p>1- उस वर्ग के अतिरिक्त किसी अन्य वर्ग का अक्षर आता है तो उस पंचमाक्षर का आधा रूप ही लिखा जाएगा I जैसे- जन्म, सन्मार्ग, पुण्य, सम्पर्क, सम्पादक, इत्यादि I</p>
<p>2- उस वर्ग का पंचमाक्षर पुनः आता है तब भी पंचमाक्षर का आधा रूप ही लिखा जाएगा I जैसे - सम्मान, सन्नारी, अक्षुण्ण इत्यादि I</p>
<p>3- अन्तस्थ व्यंजन (य,र,ल,व) आता है तो भी पंचमाक्षर का आधा रूप ही लिखा जाएगा I जैसे- कन्या, रम्य, अम्ल, अन्वय, अन्वेषण इत्यादि I</p>
<p>4- ऊष्म व्यंजन (श, ष, स, ह ) आता है तो पंचमाक्षर का आधा रूप नहीं लिखा जाएगा और उसकी जगह पर अनुस्वार का प्रयोग कियi जाएगा I जैसे – संशय, दंश, ध्वंस, संहिता आदि I</p>
<p>5- सम् उपसर्ग के बाद अन्तस्थ व्यंजन (य, र, ल, व) या ऊष्म व्यंजन (श, ष, स, ह ) हो तो अनुस्वार (सं) का प्रयोग अनिवार्य रूप से करते है I जैसे – सम्+वाद = संवाद , सम्+सर्ग = संसर्ग, सम्+रचना = संरचना , सम् +यम = संयम और सम् +हार = संहार आदि I</p>
<p><strong><u>[7] अनुनासिक का प्रयोग</u></strong></p>
<p>अनुस्वार यदि बिंदी है तो अनुनासिक चन्द्र बिंदी है I यहाँ यह जानना आवश्यक है कि अनुस्वार व्यंजन है जबकि अनुनासिक स्वर है I जिस अक्षर पर अनुस्वार लगता है उसकी मात्रा दीर्घ होती है जबकि अनुनासिक के प्रयोग से अक्षर ह्रस्व मात्रिक समझा जाता है I जैसे- धंस (21) और धँस (11)</p>
<p>अनुनासिक स्वर में ध्वनि मुख के साथ साथ नासिका द्वार से भी निकलती है<strong>।</strong> अत: अनुनासिक को प्रकट करने के लिए शिरोरेखा के ऊपर बिंदु या चन्द्र बिंदु का प्रयोग करते हैं। शब्द के ऊपर लगायी जाने वाली रेखा को शिरोरेखा कहते हैं ।</p>
<p>अनुनासिका का प्रयोग केवल उन शब्दों में ही किया जा सकता है जिनकी शिरोरेखा पर कोई मात्रा न लगीं हों अर्थात जहाँ व्यंजनों में अ, आ और उ ऊ का बोध हो I जैसे - (<strong>g~+</strong><strong>+</strong> <strong>v</strong> ) हँस, <strong>(</strong> <strong>p</strong> <strong>+</strong><strong>vk</strong> ) चाँद , (<strong>i</strong> <strong>+</strong> <strong>Å</strong>) पूँछ आदि I अन्य शब्द दाँत, ऊँट, हूँ, पाँच, हाँ, ढाँचा वगैरह I </p>
<p><strong><u>[8]</u></strong> <strong><u>हलन्त चिह्न का उपयोग</u></strong></p>
<p> हिंदी में हलन्त चिह्न का उपयोग प्रायशः समाप्त हो गया है I किन्तु संधि एवं संधि विच्छेद को समझाने के लिए इस चिह्न का प्रयोग अपरिहार्य है i जैसे –</p>
<table>
<tbody><tr><td width="319"><p><strong>संधि में</strong></p>
</td>
<td width="319"><p><strong>संधि विच्छेद में</strong></p>
</td>
</tr>
<tr><td width="319"><p>दिक् + अम्बर = दिगम्बर</p>
<p>दिक् + गज = दिग्गज</p>
<p>वाक् +ईश = वागीश</p>
<p>अच् +अन्त = अजन्त</p>
<p>अच् + आदि =अजादी</p>
<p>षट् + आनन = षडानन</p>
<p>षट् + यन्त्र = षड्यन्त्र</p>
<p>तत् + उपरान्त = तदुपरान्त</p>
<p>अप् + द = अब्द</p>
<p> </p>
</td>
<td width="319"><p>षड्दर्शन = षट् + दर्शन</p>
<p>षड्विकार = षट् + विकार</p>
<p>षडंग = षट् + अंग</p>
<p>सदाशय = सत् + आशय</p>
<p>तदनन्तर = तत् + अनन्तर</p>
<p>उद्घाटन = उत् + घाटन</p>
<p>जगदम्बा = जगत् + अम्बा</p>
<p>अब्ज = अप् + ज</p>
<p>दिङ्मण्डल = दिक् + मण्डल</p>
</td>
</tr>
</tbody>
</table>
<p>[<strong><u>9] नुक्ते का प्रयोग</u></strong></p>
<p>भाषा विज्ञान कहता है की वही भाषा अधिकाधिक समृद्ध होती है जो विदेशी भाषा के शब्दों को अपने में आत्मसात करती चलती है I भारत में दीर्घकाल तक विदेशियों का शासन रहा है I इसलिए हिंदी को उनके शब्दों को अपनाने का अवसर भी अधिक मिला है I खासकर अरबी और फ़ारसी का प्रभाव अधिक है I हिंदी और अरबी-फ़ारसी के कुछ शब्द ऐसे हैं, जो मिलते-जुलते हैं, उनका अंतर नुक्ते के प्रयोग से ही स्पष्ट होता है I जैसे- हिंदी में राज मायने शासन और फ़ारसी में राज़ माने- रहस्य I जहाँ समानता की ऐसी बाधा न हो, वहाँ पर भी अपेक्षानुसार नुक्ते का प्रयोग करना लाजिमी है जैसे – कफ़न, दरख़्त, ग़ज़ल आदि I हिंदी के क,ख,ग, ज और फ पर यह इन्ही अक्षरों में अरबी या फ़ारसी में नुक्ता लगता है I जैसे क़, ख़, ग़ ,ज़ और फ़ I</p>
<p><strong><u>[10] हाईफन का प्रयोग </u></strong></p>
<p>अंगरेजी के जो शब्द हिंदी में हू-ब-हू लिए गए है ओर उनमे अर्द्ध-विवृत ओ ‘O’ का प्रयोग है तो O को हाईफन चिह्न से प्रकट करते हैं I जैसे – ऑफिस , कॉलेज, हॉट, डॉक्टर, ऑनेस्ट, ऑर्डर आदि I</p>
<p><strong><u>[11] विसर्ग का प्रयोग</u></strong></p>
<p>हिंदी में विसर्ग (:) का प्रयोग प्रायशः समाप्त हो गया है I किन्तु शुद्ध लिखने के लिए कुछ शब्दों में इनका उपयोग होता है I जैसे – सुख-दु:ख, प्रातः, फलतः, स्वान्तःसुखाय, अतः, मूलतः I ध्यानव्य है की जहाँ विसर्ग के बाद प्रत्यय हो वहां विसर्ग का प्रयोग अब नही होता I जैसे- अतएव. दुखद आदि I विसर्ग के बाद यदि श ष या स आये तो या तो विसर्ग को ज्यों का त्यों लिखते है या फिर उसके स्थान पर आधे श ष या स का प्रयोग करते हैं i जैसे –</p>
<table>
<tbody><tr><td width="213"><p><strong>विच्छेद</strong></p>
</td>
<td width="213"><p><strong> स्वीकार्य</strong></p>
</td>
<td width="213"><p><strong>संधि</strong></p>
</td>
</tr>
<tr><td width="213"><p>नि: + संदेह</p>
</td>
<td width="213"><p>नि:संदेह</p>
</td>
<td width="213"><p>निस्संदेह</p>
</td>
</tr>
<tr><td width="213"><p>दु: + शासन</p>
</td>
<td width="213"><p>दु:शासन</p>
</td>
<td width="213"><p>दुशासन</p>
</td>
</tr>
<tr><td width="213"><p>निः + संतान</p>
</td>
<td width="213"><p>निःसंतान</p>
</td>
<td width="213"><p>निस्संतान</p>
</td>
</tr>
</tbody>
</table>
<p><strong> </strong></p>
<p><strong><u>[12] क्रियारूपों का सही निर्धारण</u></strong></p>
<p><strong> </strong> हिंदी की कुछ क्रियाओं को लेकर बड़ी भ्रांति है, क्योंकि उनके दो रूप प्रचलन में हैं और प्रायशः यह निर्धारण नहीं हो पाता कि कौन सा रूप सही है I जैसे – आये /आए, आयी / आई गये /गए , चाहिए / चाहिये आदि I इनके संबंध में वर्तमान नियम यह है कि –</p>
<p>(1) जिस क्रिया के अंत में ‘या’ आता है , उनमे या, ये और यी का प्रयोग किया जाना चाहिये I जैसे – गया, गये , गयी , आया, आये, आयी, भया, भये, भयी आदि I</p>
<p>(2) जिस क्रिया के अंत में ‘आ’ आता है , उनमे ए और ई प्रयोग किया जाना चाहिये i जैसे – हुआ, हुए , हुई , छुआ, छुई आदि I</p>
<p>(3) विधि क्रियाओं में भी ‘ये’ के स्थान पर ’ए’ का प्रयोग होता है I विधि क्रियाएं वे क्रियायें हैं जिनमे आज्ञा या अनुरोध का भाव हो I जैसे- आइए, कहिए, ठहरिए, जाइए, मुस्कराइए आदि I मगर इसमें व्यतिरेक यह है कि कुछ लोग ‘इ’ के अनुवर्ती ‘ये’ का प्रयोग सही मानते हैं i जैसे- कह +इये = कहिये, खा +इये = खाइये, आ+इये=आइये आदि I उक्त स्थित में खाइए और खाइये दोनों रूप सही हैं I </p>
<p> 537 ए /005 , महाराजा अग्रसेन नगर</p>
<p> निकट पवार चौराहा, सीतापुर रोड, लखनऊ</p>
<p> मोबा. 9795518586</p>
<p> </p>
<p>(मौलिक /अप्रकाशित )</p> आंग्ल-साहित्य से हिन्दी=साहित्य में आये अलंकारो का सच - डा0 गोपाल नारायन श्रीवास्तवtag:openbooks.ning.com,2014-07-06:5170231:Topic:5559832014-07-06T07:33:44.930Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p><b> </b></p>
<p> </p>
<p> एक समय था जब हिन्दी साहित्य पर पाश्चात्य साहित्य के प्रभाव को लेकर विद्वानों में बड़ी बहस हुयी I यह माना गया कि हिन्दी में छायावाद अंग्रेजी साहित्य से आया I नए प्रतीक, लाक्षणिकता, बिम्ब, चित्रोपमता आदि प्रभाव इंग्लिश साहित्य की देन माने गए I बहुत से प्रख्यात हिन्दी विद्वान इस अंधी मान्यता की धारा में बहते नजर आये I किन्तु भारतभूषण अग्रवाल और दिनकर जैसे कवि इस मान्यता के विरोध में थे I हिन्दी जिसका व्याकरण संस्कृत भाषा के व्याकरण से छन कर आया है I जहाँ…</p>
<p><b> </b></p>
<p> </p>
<p> एक समय था जब हिन्दी साहित्य पर पाश्चात्य साहित्य के प्रभाव को लेकर विद्वानों में बड़ी बहस हुयी I यह माना गया कि हिन्दी में छायावाद अंग्रेजी साहित्य से आया I नए प्रतीक, लाक्षणिकता, बिम्ब, चित्रोपमता आदि प्रभाव इंग्लिश साहित्य की देन माने गए I बहुत से प्रख्यात हिन्दी विद्वान इस अंधी मान्यता की धारा में बहते नजर आये I किन्तु भारतभूषण अग्रवाल और दिनकर जैसे कवि इस मान्यता के विरोध में थे I हिन्दी जिसका व्याकरण संस्कृत भाषा के व्याकरण से छन कर आया है I जहाँ शब्द, ध्वनि, रीति, वृत्ति, गुण, शब्द-शक्ति ,रस, छंद एवं अलंकार पर ऐसे सूत्र ग्रन्थ हो जिनको समझने हेतु पृथक से भाष्य-ग्रंथ रचना आवश्यक हो जाय, ऐसे समृद्ध साहित्य पर अंगरेजी के साहित्य का प्रभाव पड़ना अतिशयोक्ति कथन प्रतीत होता है I जब दो भाषाये एक दूसरे के संपर्क में आती है तो उनके कुछ शब्द एक दूसरे में मिल जाते है I भाषा -विज्ञान के अनुसार यह शब्द-भंडार की समृद्धि के लिए एक स्वाभाविक एवं आवश्यक प्रक्रिया है I किन्तु यह साहित्य का प्रभाव नहीं है I इसी प्रकार रोमांटिसिज्म यह भारत के लिए कोई अजूबी चीज नहीं थी I जयदेव के गीत-गोविन्द से बढ़कर साहित्यिक रोमांस अन्यत्र कहाँ मिलेगा I अंग्रेजी का बस इतना ही प्रभाव् पड़ा कि हिन्दी साहित्य में जो प्रवृत्तियां सोयी हुयी थी वह एकाएक जाग्रत हो गयीं I इस प्रकार एक प्रछन्न सा प्रभाव हिंदी पर अवश्य पड़ा I</p>
<p> प्रायशः छायावाद-युग में ही अंगरेजी साहित्य के प्रभाव से हिंदी साहित्य के अंतर्गत तीन नये अलंकार (<b>Figures of speech</b> ) स्वीकार किये गए I इनके नाम निम्न प्रकार है I</p>
<p> अंगरेजी के अलंकार हिन्दी में इनका नामकरण</p>
<p> 1 – <b>Personification </b> मानवीकरण</p>
<p> 2 – <b>Transferred epithet</b> विशेषण विपर्यय </p>
<p> 3 – <b>Onomatopoeia </b> ध्वन्यर्थ व्यंजना</p>
<p> </p>
<p> अंगरेजी में एक और अलंकार है - <b>Apostrophe</b> I इसे हिन्दी में अलंकार के रूप में नहीं स्वीकार किया गया क्योंकि हिंदी व्याकरण में <b>Apostrophe</b> यानि कि संबोधन ‘कारक’ में उपलब्ध है और इसका उपयोग भी उसी भांति होता है जैसा अंगरेजी में <b>Apostrophe</b> अलंकार का होता है I अर्थात, संबोधन या विस्मयबोधक शब्द यथा- आह ! वाह i अरे ! अद्भुत ! हे ईश्वर ! आदि I</p>
<p> </p>
<p> अंग्रेजी से हिन्दी में जो अलंकार मान्य रूप से आए उनमे <b> </b><b>Personification </b> का स्थान सर्वोपरि है I अंग्रेजी में इसकी परिभाषा निम्न प्रकार है –<b> </b></p>
<p><b> </b> <b>Personification is a figure of speech in which a thing, an idea or an animal is given human attributes. The non-human objects are portrayed in such a way that we feel they have the ability to act like human beings. For example, when we say, “Opportunity knocks at the door but once.” we are giving the opportunity the ability to knock at the door, which is a human quality. Thus, we can say that the opportunity has been personified in the given sentence.</b></p>
<p> अर्थात, मानवीकरण एक अलंकार है जिसमे किसी वस्तु, विचार या पशु को मानव होने का श्रेय दिया जाता है I इसमें एक अमानव पदार्थ को इस भांति चित्रित किया जाता है कि मानो उसमे मनुष्य की तरह कार्य करने की योग्यता है I उदाहरण के लिए जब हम कहते हैं कि ‘अवसर दरवाजे पर दस्तक देता है पर केवल एक बार I’ यहाँ हम अवसर को दस्तक देने की क्षमता प्रदान कर रहे है जो एक मनुष्य की क्षमता है I इस प्रकार हम कह सकते है कि इस वाक्य में अवसर का मानवीकरण किया गया है I</p>
<p> मालिक मुहम्मद जायसी ने ‘नागमती विरह वर्णन ‘ के अंतर्गत लिखा है- “पुनि-पुनि रोव कोउ नहीं डोला I आधी रात विहंगम बोला II” इसी प्रकार कबीर कहते है – ‘दिवस थका साई मिल्यो पीछे पडी है रात I’ यह मानवीकरण उस समय का है जब अंग्रेज इस देश में आए ही नहीं थे I सैयद इब्राहीम ‘रसखान’ की कविताओ में भी मानवीकरण के ऐसे अनेक उदहारण मिलते है और यह सभी कवि भारत में अंगरेजी राज्य की स्थापना से काफी पहले के है I अतः यह अवधारणा कि अंगरेजी का हिन्दी साहित्य पर विशेष प्रभाव पड़ा अधिक सत्य प्रतीत नहीं होता I हाँ हम यह अवश्य कह सकते है कि अंग्रेजी के प्रभाव से हिन्दी साहित्य की सोई प्रवृत्तियां एकाएक जाग्रत हो गयीं I रसखान कहते है - बैरिनि वाहि भई मुसकानि जु वा रसखानि के प्रान बसी है I’ इसमें मुस्कान को बैरिन कहा गया है I </p>
<p>बैरी कोई अचेतन नहीं हो सक्ता अतः यहाँ पर मानवीकरण है I इसी भांति रसखान की काव्य पंक्ति ‘वहि बाँसुरि की धुनि कान परें कुलकानि हियौ तजि भाजति है I‘ तथा ‘व्याकुलता निरखे बिन मूरति भागति भूख न भूषन भावै I’ में भी मानवीकरण है I छायावादी कवियों में तो मानवीकरण के प्रति विशेष आग्रह सदैव रहा है I प्रसाद के ‘आंसू’ काव्य का पंक्तिया निदर्शन स्वरुप प्रस्तुत है –</p>
<p> </p>
<p> देखा बौने जलनिधि का</p>
<p> शशि छूने को ललचाना I</p>
<p> वह हा–हाकार मचाना</p>
<p> फिर उठ–उठ कर गिर जाना I </p>
<p> ‘दिनकर‘ का एक अतीव सुन्दर मानवीकरण बानगी के रूप में द्रष्टव्य है –</p>
<p> धूप का ऐसा तना वितान</p>
<p> अँधेरा कठिनाई में फंसा I</p>
<p> मिला जब उसे न कोई ठौर</p>
<p> मनुज के अन्तर में जा बसा II</p>
<p> </p>
<p> विशेषण-विपर्यय (<b>Transferred epithet</b> ) दूसरा अलंकार है जो अंगरेजी साहित्य से हिंदी में आया, ऐसी मान्यता है I अंग्रेजी में इसे निम्न प्रकार परिभाषित किया गया है –</p>
<p> </p>
<p><b> In this figure</b> <b>of speech , an epithet is transformed from its proper word to another that is closely associated with that in the sentence . For example- He passed sleepless night</b> .</p>
<p>अर्थात, इस अलंकार में किसी उपनाम (यहाँ पर विशेषण) को उसके उचित विशेष्य से अंतरित कर दूसरे शब्द से जोड़ दिया जाता है जो वाक्य में उसके साथ घनिष्ठ सम्बन्ध रखता हो I सामान्य शब्दों में कहें तो यह कि एक स्वाभाविक विशेषण को अस्वाभाविक विशेष्य में लगा देना I जैसे – उसने नींद रहित रात गुजारी I यहाँ पर नींद रहित व्यक्ति है पर वाक्य से ऐसा लगता है मानो रात स्वयं निद्रा विहीन हो I</p>
<p> हिन्दी साहित्य में पन्त, निराला, महादेवी, प्रसाद इत्यादि कवियो ने विशेषण-विपर्यय का बहुलता से प्रयोग किया है I इनमे जिन अप्रत्याशित विशेषण-विशेष्यो का प्रयोग हुआ है उनमे से कुछ इस प्रकार है – स्वप्निल-मुस्कान, मृदु-आघात, मूक-कण, भग्न-दृश्य , नीरव-गान, तन्वंगी-गंगा, गीले-गान, मदिर-बाण, मुकुलित-नयन, सोई -वीणा इत्यादि I प्रसाद ने ‘आंसू’ काव्य का प्रारंभ निम्नांकित छंद से किया –</p>
<p> इस करुणा-कलित ह्रदय में</p>
<p> अब विकल रागिनी बजती I</p>
<p> क्यो हा –हाकार स्वरों से</p>
<p> वेदना असीम गरजती II</p>
<p> उक्त पंक्तियों में रागिनी को विकल बताया गया है जो अस्वाभाविक है क्योंकि व्याकुल तो कवि का ह्रदय है I अतः यहाँ पर विशेषण में विपर्यय है I इसी प्रकार ‘पल्लव’ काव्य में पन्त का </p>
<p>विशेषण-विपर्यय दर्शनीय है –</p>
<p> रंगीले गीले फूलो से अधखिले-भावो से प्रमुदित I</p>
<p> बाल्य-सरिता के कूलों से खेलती थी तरंग सी नित II</p>
<p> उक्त पद्यांश में अधखिले भाव अंकित है जबकि अधखिला फूल होता है I इसी प्रकार बाल्य-सरिता में बाल्य तो जीवन होता है I इस प्रकार इन उदाहरणों में स्वाभाविक विशेषण और विशेष्य नहीं है i अतः यहाँ पर विशेषण-विपर्यय है I </p>
<p> </p>
<p> तीसरा अलंकार जो अंगरेजी से हिन्दी में आयी माना जाता वह है – <b>Onomatopoeia</b> I इसे हिन्दी में ध्वन्यार्थ व्यंजना नाम दिया गया है I इसकी अंगरेजी में परिभाषा है -</p>
<p> </p>
<p><b> </b><b>The naming of a thing or action by a vocal imitation o</b><b>f the sound associated with it . Such as -<i>buzz, hiss </i> etc.</b></p>
<p>अर्थात, किसी वस्तु या क्रिया से सम्बंधित आवाज की मौखिक नक़ल को ध्वन्यार्थ-व्यंजना कहते है I जैसे – सर्प की फुफकार , मक्खियों की भिनभिनाहट I</p>
<p> उक्त दृष्टि से देखा जय तो हिन्दी के प्राचीन साहित्य में युद्धादि वर्णनों में ध्वन्यार्थ-व्यंजना की भरमार है I जगनिक के आल्हा की निम्नांकित अतिशय प्रसिद्ध पंक्तियां दृष्टव्य है-</p>
<p> “तड़-तड़ तड़-तड़ तेगा बोलै, रण माँ छपकि-छपकि तलवारि I”</p>
<p> उप्रयुक्त से स्पष्ट है की हिन्दी काव्य में ध्वन्यार्थ-व्यंजना की परंपरा पूर्व से विद्यमान थी किन्तु इसे अलंकार का दर्जा हासिल नही था I अलंकार के रूप में इसको मान्यता अंगरेजी साहित्य के प्रभाव से मिली I किन्तु अंततः वही बात सामने आती है की अंगरेजी साहित्य ने हिन्दी की सोयी प्रवृत्तियों को जगाया और उन्हें एक नाम दिया I ध्वन्यार्थ-व्यंजना के उदहारण के रूप में प्रायशः लोग भगवती चरण वर्मा की निम्नांकित पंक्तियों का हवाला देते है – ‘चरमर-चरमर चूं चरर-मरर जा रही चली भैसा गाड़ी I’ किन्तु हिन्दी में इसके अनेक अति सुन्दर उदहारण भी है I जैसे, पन्त की अध्वांकित पंक्तियां -</p>
<p><b> </b></p>
<p> संध्या का छुट –पुट</p>
<p> बांसो का झुर –मुट I</p>
<p> थी चहक रही चिड़ियाँ</p>
<p> टी बी टी टुट-टुट I</p>
<p> ‘रेणुका’ काव्य के पहले हे गीत ‘मंगल गान’ में ‘दिनकर’ ने उक्त अलंकार की बड़ी मनमोहिनी छटा दिखाई है I यथा- <br/> आज सरित का कल-कल, छल-छल, <br/> निर्झर का अविरल झर-झर,<br/> पावस की बूँदों की रिम-झिम <br/> पीले पत्तों का मर्मर,</p>
<p> पहाडी गीतों में ध्वन्यार्थ-व्यंजना का अधिकाधिक उपयोग देखने को मिलता है I जैसे- ‘गिण-गिणान्दो आषाढ आयो I’ इस क्रम में मैथिलीशरण गुप्त कृत ‘साकेत’ के नवम-स्कंध का यह गीत भी अवलोकनीय है -</p>
<p> सखि, निरख नदी की धारा,</p>
<p> ढलमल ढलमल चंचल अंचल, झलमल झलमल तारा!<br/> निर्मल जल अंतःस्थल भरके,<br/> उछल उछल कर, छल छल करके,<br/> थल थल तरके, कल-कल धरके,</p>
<p> बिखराता है पारा !</p>
<p> </p>
<p> </p>
<p> </p>
<p><b> </b>ई एस -1/436, सीतापुर रोड योजना</p>
<p> सेक्टर-ए, अलीगंज, लखनऊ I</p>
<p> मो0 9795518586</p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित )</p> कर्त्ता और क्रिया के व्यवस्थापक है कारक -- डा0 गोपाल नारायन श्रीवास्तवtag:openbooks.ning.com,2014-06-15:5170231:Topic:5489972014-06-15T06:27:44.092Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p><b> </b></p>
<p> हिंदी शब्द सागर के अनुसार- व्याकरण में संज्ञा या सर्वनाम की उस व्यवस्था को कारक कहते है, जिसके द्वारा वाक्य में उसका क्रिया के साथ सम्बन्ध प्रकट होता है I यह अंग्रेजी व्याकरण के CASE की भांति है I CASE को अंग्रेजी में निम्न प्रकार परिभषित किया गया है I</p>
<p> </p>
<p><b> Grammatical case pertains to nouns and pronouns. A case shows its relationship of a</b> <b>noun or pronoun</b> <b> </b><b>with the other words in a sentence.…</b><b><br></br></b></p>
<p><b> </b></p>
<p> हिंदी शब्द सागर के अनुसार- व्याकरण में संज्ञा या सर्वनाम की उस व्यवस्था को कारक कहते है, जिसके द्वारा वाक्य में उसका क्रिया के साथ सम्बन्ध प्रकट होता है I यह अंग्रेजी व्याकरण के CASE की भांति है I CASE को अंग्रेजी में निम्न प्रकार परिभषित किया गया है I</p>
<p> </p>
<p><b> Grammatical case pertains to nouns and pronouns. A case shows its relationship of a</b> <b>noun or pronoun</b> <b> </b><b>with the other words in a sentence.</b><b><br/> <br/></b></p>
<p><b> </b> हिन्दी में कारको की संख्या आठ है I इन कारको के अपने अर्थ है और उनके चिन्ह भी है परन्तु यह चिन्ह कभी वाक्य में स्पष्ट रूप से विद्यमान होते है कभी वे लुप्त अथवा अप्रत्यक्ष होते है I यथा – ‘मैंने खाया’, यहाँ पर कर्ता कारक का चिन्ह ‘ने’ स्पष्ट है I परन्तु ‘मै गया’ में यह चिन्ह लुप्त है I सम्प्रति यहाँ सभी कारक, उनके अर्थ और उनके चिन्हों का विवरण अधोवत दिया जा रहा है -</p>
<p></p>
<p><u>नाम कारक</u> <u>संक्षिप्त अर्थ</u> <u>चिन्ह</u></p>
<p>1-कर्ता कार्य करने वाला ने</p>
<p>2-कर्म कार्य का जिस पर प्रभाव पड़े को</p>
<p>3-करण कर्ता के कार्य करने का माध्यम से</p>
<p>4-सम्प्रदान क्रिया जिसके लिए की जाये को ,के ,लिए</p>
<p>5–अपादान जिससे से अलग होनेका बोध हो से [बिछड़ना]</p>
<p>6-सम्बन्ध वाक्य की अन्य बातो से सम्बन्ध का,की,के.रा,री,रे</p>
<p>7-अधिकरण क्रिया का आधार स्तम्भ में पर, ऊपर</p>
<p>8–संबोधन पुकारना, बुलाना, आह्वान चौंकना, विस्मय, शोक हे ! भगवान , सखी री ! हाय !</p>
<p> </p>
<p> </p>
<p><u> </u></p>
<p><b><u>1-कर्ता कारक</u></b></p>
<p> वाक्य में कार्य करने वाले को कर्ता कहते है I जैसे –</p>
<p></p>
<p><b> </b> <b> </b><b> लखन सकोप बचन जब बोले I डगमगानि महि कुंजर डोले II</b></p>
<p></p>
<p> उक्त उदहारण में लखन, महि [पृथ्वी ], कुंजर [दिग्गज ] ये बोलने, डगमगाने और डोलने की क्रिया के करने वाले है I अतः इनमे कर्ता कारक है I</p>
<p> </p>
<p><b><u>2-कर्म कारक </u></b></p>
<p> कर्ता जब कोई कार्य करता है तो किसी संज्ञा, सर्वनाम, व्यक्ति अथवा वस्तु पर उसका प्रभाव पड़ता है I यह प्रभाव जिस पर भी पड़ता है वही कर्म कारक है I जैसे –</p>
<p></p>
<p> <b>मुठिका एक महा कपि हनी I रुधिर बमत धरती ढनमनी II</b></p>
<p></p>
<p> इस उदाहरण में कर्ता हनुमान जी हैं, जो लंकिनी को एक मुक्का जड़ते है और प्रभाव किसपर होता है , जाहिर है लंकिनी पर क्योंकि वही रक्त वमन करती हुयी धरती पर ढेर हो जाती है I इस प्रकार लंकिनी यहाँ पर कर्म कारक है I</p>
<p> </p>
<p><b><u>3-करण कारक</u></b></p>
<p> कर्ता कार्य करता है, परंतु उसकी क्रिया का जो साधन है, वही करण कारक है I उदाहरणस्वरुप मैथिलीशरण गुप्त के ‘जयद्रथ-बध’ काव्य की निम्नांकित पंक्तियां देखिये –</p>
<p> </p>
<p> <b>वह शर इधर गांडीव-गुण से भिन्न जैसे ही हुआ I</b></p>
<p><b> </b> <b> </b><b> धड से जयद्रथ का उधर सर छिन्न वैसे ही हुआ II</b></p>
<p></p>
<p> उक्त उदाहरण में अर्जुन का बाण जैसे ही गांडीव धनुष की प्रत्यंचा से छूटा वैसे ही उधर जयद्रथ का धड उसके शरीर से अलग हो गया I यहाँ पर क्रिया का साधन धनुष है I अतः धनुष ‘करण’ कारक हुआ I इसी प्रकार एक उदाहरण ‘पंचवटी’ काव्य से देखिये -</p>
<p> </p>
<p><b> आक्रमणकारिणी के झट,</b> <b>लेकर शोणित तीक्ष्ण कृपाण</b> <b>I</b></p>
<p><b> नाक कान काटे लक्ष्मन ने,</b> <b>लिये न उसके पापी प्राण ।</b></p>
<p><b> </b></p>
<p> उपर्युक्त उदाहरण में लक्ष्मण ने तीक्ष्ण कृपाण से सुपर्णखा के नाक व कान काटे है I यहाँ पर कार्य का साधन कृपाण है I अतः कृपाण में ‘करण’ कारक है I</p>
<p> </p>
<p> </p>
<p><b><u>4 –सम्प्रदान कारक</u></b></p>
<p> कर्ता जब कोई कार्य करता है तो उसका कोई उद्देश्य होता है I वह कार्य स्वयं के लिए करता है या किसी दूसरे के लिए I वह जिसके लिए यह कार्य करता है उसे ही सम्प्रदान कारक कहते हैं I जैसे ‘यशोधरा’ महाकाव्य के इस उदाहरण में दर्शित है</p>
<p> </p>
<p><b> </b> <b> </b><b> </b><b> </b> <b> तेरे वैतालिक गाते है I</b></p>
<p><b> </b> <b> </b> <b> स्वस्ति लिए ब्राह्मण आते है I</b></p>
<p><b> </b> <b> </b><b> </b> <b> </b><b>गोप दुग्ध–भाजन लाते है I</b></p>
<p><b> </b> <b>ऊपर झलक रहा है झाग I</b></p>
<p><b> </b> <b>जाग ! दु:खिनी के सुख जाग !</b></p>
<p></p>
<p> उक्त उदाहरण में वैतालिक गौतम पुत्र राहुल का विरुद गाते है I ब्राह्मण उसके लिए ‘स्वस्ति’ लेकर आते है I ग्वाले दूध लेकर आते है और यशोधरा कहती है कि हे दु:खिनी माता के पुत्र अब तू जाग I यहाँ पर सारा कार्य राहुल के लिए हो रहा है अतः यहाँ पर सम्प्रदान कारक है I</p>
<p> </p>
<p><b><u>5- अपादान कारक </u></b></p>
<p> किसी संज्ञा या सर्वनाम से जब कोई वस्तु या चीज का अलगाव अथवा पार्थक्य होने का बोध हो तब वहां पर अपादान कारक होता है I इसका ‘साकेत’ में एक उदाहरण देखे -</p>
<p> </p>
<p> <b>वर विमान से कूद</b><b>,</b> <b> </b><b>गरुड़ से ज्यों पुरुषोत्तम</b><b>,</b><b><br/></b><b> </b><b> </b> <b> मिले भरत से राम क्षितिज में सिन्धु-गगन-सम !</b></p>
<p></p>
<p> उक्त उदाहरण के अनुसार राम जब पुष्पक विमान से अयोध्या लौटे तब वे भरत को देखकर विमान से यूँ कूद पड़े जैसे भगवान विष्णु गरुड़ से कूद पड़ते है I यहाँ पर विमान और गरुड़ से अलगाव का भाव है I अतः अपादान कारण है I इससे पहले करण कारक में भी जो उदाहरण दिया गया है उसमे भी बाण लगने पर जयद्रथ का धड शरीर से अलग हो जाता है I अतः वहा भी उस प्रसंग में अपादान कारण है I</p>
<p> </p>
<p><b><u>6-सम्बन्ध कारक</u></b></p>
<p> संज्ञा अथवा सर्वनाम के जिस स्वरुप से किसी एक वस्तु का दूसरी वस्तु से सम्बन्ध प्रकट होता है, उसे सम्बन्ध कारक कहते है I उदाहरण स्वरूप जयशंकर प्रसाद कृत ‘आंसू ‘ का यह वर्णन अवलोकनीय है –</p>
<p> </p>
<p> <b>नक्षत्र डूब जाते है</b></p>
<p><b> </b> <b> </b><b> स्वर्गंगा की धारा में I</b></p>
<p><b> </b> <b> </b><b> बिजली बंदी होती जब </b></p>
<p><b> </b> <b> </b> <b> कादिम्बिनि की कारा में I </b></p>
<p><b> </b></p>
<p> उक्त उदाहरण में नक्षत्र का सम्बन्ध आकाश गंगा से है और बिजली का सम्बन्ध बादलो के कारावास से है I इस प्रकार यहाँ सम्बन्ध कारक है I</p>
<p> </p>
<p><b><u>7-अधिकरण कारक</u></b></p>
<p> संज्ञा के जिस रूप से क्रिया के आधार-स्तम्भ का भान होता है उसे अधिकरण कारक कहते है I उदाहरण स्वरुप ‘साकेत’ में उर्मिला का एक चित्र देखिये -</p>
<p> </p>
<p> <b>दायाँ हाथ लिये था सुरभित</b></p>
<p><b> </b> <b> </b><b> चित्र-विचित्र सुमन माला I</b></p>
<p><b> </b> <b> टांग धनुष को इन्द्रलता पर</b></p>
<p><b> </b> <b> </b><b> मनसिज ने डेरा डाला I</b></p>
<p><b> </b></p>
<p> उक्त दृश्य में उर्मिला बहुवर्णी सुमन माल को (लक्ष्मण के गले में डालने हेतु) उठाये हुए है पर कवि को लगता है कि कामदेव ने इन्द्रलता पर धनुष टांग कर आराम से डेरा डाल दिया है I यहाँ इन्द्रलता आधार है जिस ‘पर’ धनुष टंगा हुआ है I अतः यहाँ पर अधिकरण कारक है I</p>
<p> </p>
<p><b><u>8-संबोधन कारक</u></b></p>
<p> संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से किसी को संबोधित किया जाये या आश्चर्य, हर्ष, विषाद अथवा घृणा प्रकट की जाए वहाँ संबोधन कारक होता है I उदाहरण के रूप में मलिक मुहम्मद जायसी कृत ‘पद्मावत’ के नागमती विरह वर्णन का यह चित्र देखिये –</p>
<p> </p>
<p> <b>पिउ से कहेव संदेसड़ा, हे भौरा ! हे काग !</b></p>
<p><b> </b> <b>सो धनि विरहै जरि मुई</b> <b> तेहिक धुवाँ हम लाग I</b></p>
<p><b> </b></p>
<p> यहाँ नागमती भौरे और कौए को संबोधित करते हुए कहती है कि तुम {चूँकि उड़ने वाले जीव हो ) जाकर मेरे प्रिय से यह संदेश कहना कि वह स्त्री विरह में जल कर मर गयी है और उसी का धुवाँ हमें लगा है ( जिससे हम काले हो गए है ) इसी प्रकार ‘पंचवटी’ काव्य में भगवान् राम और सूपर्णखा का वार्तालाप दृष्टव्य है –</p>
<p> </p>
<p><b> </b><b>पाप शांत हो ! पाप शांत हो !</b></p>
<p><b> </b> <b>कि मै विवाहित हूँ बाले !</b></p>
<p><b> </b><b>पर क्या पुरुष नहीं होते है</b></p>
<p><b> </b> <b>दो-दो दाराओ वाले I</b></p>
<p><b> </b></p>
<p> इस प्रसंग में ‘पाप शांत हो !’ मे शान्ति का आह्वान है और ‘बाले !’ में संबोधन है I अतः यहाँ पर संबोधन कारक है I</p>
<p></p>
<p></p>
<p> </p>
<p> <b> </b> <b> </b><b> </b>ई एस -1/436, सीतापुर रोड योजना</p>
<p> सेक्टर-ए, अलीगंज, लखनऊ I</p>
<p> मो0 9795518586</p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित )</p>
<p> </p> भाषाtag:openbooks.ning.com,2014-03-02:5170231:Topic:5171512014-03-02T06:59:27.838Zबृजेश नीरजhttp://openbooks.ning.com/profile/BrijeshKumarSingh
<p><b>भाषा</b><b>-</b> मानव-समाज के लिए भाषा बहुत महत्वपूर्ण तत्व है। इसके माध्यम से ही मनुष्य विचारों और भावों का आदान-प्रदान करता है। भाषा संप्रेषण का मुख्य साधन होती है। वैसे तो संप्रेषण संकेतों के माध्यम से भी हो सकता है लेकिन सांकेतिक क्रिया-कलापों को भाषा नहीं माना जा सकता।</p>
<p> ‘भाषा’ शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत की ‘भाष्’ धातु से हुई है जिसका अर्थ होता है- बोलना, कहना। भाषा हमने बोलकर पाई है, बाद में इसे लिपिबद्ध किया गया।</p>
<p> भावों और विचारों की अभिव्यक्ति के लिए…</p>
<p><b>भाषा</b><b>-</b> मानव-समाज के लिए भाषा बहुत महत्वपूर्ण तत्व है। इसके माध्यम से ही मनुष्य विचारों और भावों का आदान-प्रदान करता है। भाषा संप्रेषण का मुख्य साधन होती है। वैसे तो संप्रेषण संकेतों के माध्यम से भी हो सकता है लेकिन सांकेतिक क्रिया-कलापों को भाषा नहीं माना जा सकता।</p>
<p> ‘भाषा’ शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत की ‘भाष्’ धातु से हुई है जिसका अर्थ होता है- बोलना, कहना। भाषा हमने बोलकर पाई है, बाद में इसे लिपिबद्ध किया गया।</p>
<p> भावों और विचारों की अभिव्यक्ति के लिए प्रयुक्त ध्वनि संकेतों की व्यवस्था ‘भाषा’ कहलाती है। इन ध्वनियों के प्रतिनिधि स्वन एक निश्चित व्यवस्था में मिलकर भाषा का निर्माण करते हैं। इस प्रकार, भाषा व्यक्त नाद की वह समष्टि है जिसके द्वारा किसी समाज या देश के लोग अपने मनोगत भाव तथा विचार प्रकट करते हैं।</p>
<p>संसार में अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं, जैसे- हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, बँगला, उर्दू, रोमन, तेलुगु, फ्रैंच, चीनी, जर्मन इत्यादि। भारत के संविधान में २२ भाषाओं को मान्यता प्रदान की गयी है- असमिया, ओड़िया, उर्दू, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, गुजराती, डोगरी, तमिल, तेलुगु, नेपाली, पंजाबी, बंगला, बोडो, मणिपुरी, मलयालम, मैथिली, संथाली, संस्कृत, सिन्धी, मराठी, हिंदी।</p>
<p> हिंदी भाषा का क्षेत्र आज बहुत व्यापक हो गया है। विश्व के १५० से भी अधिक विश्वविद्यालयों में यह भाषा पढ़ाई जाती है।</p>
<p></p>
<p><b>भाषा के रूप-</b> भाषा दो रूपों में प्रयुक्त होती है- मौखिक और लिखित।</p>
<p> ‘मौखिक भाषा’ ही भाषा का मूल रूप है। मनोभावों को बोलकर प्रकट करते समय भाषा के मौखिक रूप का प्रयोग किया जाता है जबकि पत्र, लेख आदि के द्वारा अपने भाव या विचार प्रकट करते समय भाषा के लिखित रूप का प्रयोग होता है।</p>
<p></p>
<p><b>मातृभाषा-</b> जन्म से हम जिस भाषा को बोलते-समझते हैं, वह मातृभाषा कहलाती है। इस भाषा को बालक अपने परिवार से सीखता है। </p>
<p></p>
<p><b>राष्ट्रभाषा-</b> किसी देश के अधिकांश नागरिकों द्वारा जिस भाषा का प्रयोग किया जाता है, वह राष्ट्रभाषा कहलाती है।</p>
<p></p>
<p><b>राजभाषा-</b> किसी देश के सरकारी काम-काज में जो भाषा प्रयुक्त होती है, उसे राजभाषा कहा जाता है। १४ सितम्बर, १९४९ को भारत के संविधान में हिंदी को राजभाषा के रूप में मान्यता दी गई लेकिन अंग्रेजी को सह-राजभाषा के रूप में जारी रखा गया।</p>
<p></p>
<p></p>
<p><b>बोली-</b> भाषा का एक सीमित क्षेत्र मेँ बोला जाने वाला रूप बोली कहलाता है। बोली एक बड़े भू-भाग में प्रयुक्त होने वाली भाषा का क्षेत्रीय तथा अर्ध विकसित रूप है। कई बोलियों की समान बातें मिलकर भाषा बनाती हैं। आमतौर पर ‘बोली’ का संबंध बोलने तक सीमित रहता है और इसमें लिखित साहित्य नहीं होता। कई बार बोली विकसित होकर लोक-गीत, लोक-कथा आदि रूपों में भी सामने आती है। हिंदी भाषा की १८ बोलियाँ प्रचलित हैं। पहले ब्रज, अवधी, मैथिली बोलियाँ ही थीं जो आज विकसित होकर भाषाएँ बन गई हैं। </p>
<p> </p>
<p><b>लिपि-</b> भाव व्यक्तीकरण के दो अभिन्न पहलू हैं- भाषा और लिपि। वर्णों का उच्चारण ध्वनियों से होता है। इन मौखिक ध्वनियों को जिन निश्चित चिन्हों के माध्यम से लिखा जाता है, उसे लिपि कहते हैं। लिपि भाषा को लिखने की रीति है। अंग्रेजी भाषा की लिपि रोमन और उर्दू भाषा की लिपि फारसी है। एक भाषा कई लिपियों में लिखी जा सकती है जबकि दो या अधिक भाषाओं को एक ही लिपि में लिखा जा सकता है। उदाहरणार्थ- पंजाबी भाषा गुरूमुखी तथा शाहमुखी दोनों लिपियों में लिखी जाती है जबकि हिन्दी, मराठी, संस्कृत, नेपाली इत्यादि देवनागरी लिपि में ही लिखी जाती हैं।</p>
<p> </p>
<p><b>व्याकरण</b><b>-</b> व्याकरण वह शास्त्र है जो भाषा के शुद्ध रूप का ज्ञान कराता है। यह नियमबद्ध योजना है जो भाषा के स्वरुप का निर्धारण करती है। व्याकरण के द्वारा शब्दों के शुद्ध स्वरुप व उच्चारण, शब्द-प्रयोग, वाक्य-गठन आदि का निर्धारण किया जाता है।</p>
<p></p>
<p><b>व्याकरण के अंग-</b> व्याकरण के चार अंग निर्धारित किये गये हैं-</p>
<p>1. <b>वर्ण-विचार-</b> इसमें वर्ण-आकार, उच्चारण, भेद और मिलान की विधि बताई जाती है।</p>
<p>2. <b>शब्द-विचार-</b> इसमें शब्द-रूप, भेद, व्युत्पति आदि का वर्णन किया जाता है।</p>
<p>3. <b>पद-विचार-</b> इसमें पद तथा उसके भेदों का अध्ययन किया जाता है।</p>
<p>4. <b>वाक्य-विचार-</b> इसमें वाक्य-भेद, वाक्य बनाने की विधि तथा विराम-चिह्नों का वर्णन होता है।</p>
<p> - बृजेश नीरज</p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित)</p> संस्कृत है अंगरेजी का मूल : संजीव वर्मा 'सलिल'tag:openbooks.ning.com,2013-02-08:5170231:Topic:3162372013-02-08T11:17:41.658Zsanjiv verma 'salil'http://openbooks.ning.com/profile/sanjivvermasalil
<p>संस्कृत है अंगरेजी का मूल :</p>
<p>संजीव वर्मा 'सलिल'</p>
<p>*</p>
<p> भारत में अ-मृत वाणी संस्कृत को मृत, हिंदी को स्थानीय तथा अंगरेजी को विश्व भाष मानने की भ्रामक धारणा व्याप्त है। इसका मूल कारण यह है कि अंगरेजी विदेशी शासकों की भाषा रही है और हिंदी शोषित शासकों की। यह स्वाभाविक है कि हर शासित अपने पुत्र को शासक बनाना चाहे। इस चाह ने भारतीयों के मन में बच्चों को अंगरेजी पढ़ाने की मानसिकता पैदा की। इसके साथ ही प्रशासनिक सेवा में कार्य कर रहे अफसरों ने खुद को अन्य जनों से…</p>
<p>संस्कृत है अंगरेजी का मूल :</p>
<p>संजीव वर्मा 'सलिल'</p>
<p>*</p>
<p> भारत में अ-मृत वाणी संस्कृत को मृत, हिंदी को स्थानीय तथा अंगरेजी को विश्व भाष मानने की भ्रामक धारणा व्याप्त है। इसका मूल कारण यह है कि अंगरेजी विदेशी शासकों की भाषा रही है और हिंदी शोषित शासकों की। यह स्वाभाविक है कि हर शासित अपने पुत्र को शासक बनाना चाहे। इस चाह ने भारतीयों के मन में बच्चों को अंगरेजी पढ़ाने की मानसिकता पैदा की। इसके साथ ही प्रशासनिक सेवा में कार्य कर रहे अफसरों ने खुद को अन्य जनों से अधिक अधिकार संपन्न बताने के लिए अंगरेजी का व्यवहार किया। </p>
<p> </p>
<p> मनोवैज्ञानिकों द्वारा बार-बार यह बताने के बाद भी कि शिशु मातृभाषा में अधिकतम सरलता तथा सहजता से ज्ञान को ग्रहण कर सकता है, समझ सकता है तथा स्मरण रख सकता है, भारतीयों में शिशु को अंगरेजी माध्यम से शिक्षा दिलाना प्रतिष्ठा का प्रश्न मान लिया गया है। ऐसे अंगरेजी प्रेमी भारतीयों को संस्कृत अव्यावहारिक प्रतीत होती है जबकि अमरीकी संस्था नासा अपने अन्तरिक्ष वैज्ञानिकों को संस्कृत सिखाने के लिए संस्कृतविदों को आमंत्रित कर रही है। अमरीकी राष्ट्रपति अपने देशवासियों को हिंदी सीखने की प्रेरणा दे रहे हैं। </p>
<p> </p>
<p> अन्ग्रेजी भक्तों को यह जानकर विस्मय होगा कि अंगरेजी के अनेक शब्द उसी संस्कृत से व्युत्पन्न हैं जिसे वे हेय मानते रहे हैं। संस्कृत की एक धातु है 'स्थ' जिससे स्थल, स्थान, स्थिति, स्थगन, स्थगित, प्रतिष्ठित, प्रतिष्ठा आदि शब्द बने। 'स्था तिष्ठति' का साधारण अर्थ है यथास्थिति जैसा का तैसा रहना। एक जगह खड़ा रहने के लिए स्थिरता की आवश्यकता होने से स्थिर रहना भी अर्थ में जुड़ गया। उसके लिए फिर परिश्रमपूर्वक डटे रहना भी अपेक्षित है। इसी प्रकार डटे रहने से अंत तक बचे रहने का भाव जुड गया। प्रतीक्षा करने के लिए भी खड़ा रहना पड़ता है, साथ में विलम्ब करना भी जुडा। ऐसे <b>१६</b> अर्थ संस्कृत शब्दकोषों में दिए गए हैं।</p>
<p> </p>
<div><b>स्था (१ उ.) तिष्ठति-ते</b><b>,</b> <b>के १६ अर्थ</b></div>
<div><b>१ खडा होना</b><b>,</b></div>
<div><b>२ ठहरना</b><b>,</b> <b>डटे रहना</b><b>,</b> <b>बसना</b><b>,</b> <b>रहना</b><b>,</b></div>
<div><b>३ शेष बचना</b><b>,</b></div>
<div><b>४ विलम्ब करना</b><b>,</b> <b>प्रतीक्षा करना</b><b>,</b></div>
<div><b>५ रूकना</b><b>,</b> <b>उपरत होना</b><b>,</b> <b>निश्चेष्ट होना</b><b>,</b></div>
<div><b>६ एक ओर रह जाना</b></div>
<div><b>७ होना</b><b>,</b> <b>विद्यमान होना</b><b>,</b> <b>किसी भी स्थिति में होना</b></div>
<div><b>८ डटे रहना</b><b>,</b> <b>आज्ञा मानना</b><b>,</b> <b>अनुरूप होना</b></div>
<div><b>९. प्रतिबद्ध होना</b></div>
<div><b>१० निकट होना</b><b>,</b></div>
<div><b>११ जीवित रहना</b><b>,</b> <b>सांस लेना</b></div>
<div><b>१२ साथ देना</b><b>,</b> <b>सहायता करना</b><b>,</b></div>
<div><b>१३ आश्रित होना</b><b>,</b> <b>निर्भर होना</b></div>
<div><b>१४ करना</b><b>,</b> <b>अनुष्ठान करना</b><b>,</b> <b>अपने आपको व्यस्त करना</b></div>
<div><b>१५ सहारा लेना</b><b>,</b> <b>मध्यस्थ मान कर उसके पास जाना</b><b>,</b> <b>मार्ग दर्शन पाना</b></div>
<div><b>१६ (सुरतालिंगन के लिए) प्रस्तुत करना</b><b>,</b> <b>उपस्थित होना</b></div>
<div><b> </b></div>
<div><b>अंग्रेज़ी शब्दों के उदाहरण:</b></div>
<div><b>संस्कृत का </b> <b>'स्थ' को फारसी में 'स्त' होकर अंगरेजी में '</b><b>st'</b> <b>हो गया। 'स्थान' 'स्तान' हुआ, पाक (पवित्र) स्थान पाकिस्तान हो गया। रोमन लिपि में 'थ' तो है नहीं</b><b>, </b> <b>इस लिए उच्चारण 'स्थ' से 'स्ट' बना होगा</b><b>,</b> <b>ऐसा तर्क असंगत नहीं है।</b> <b>निम्न प्रत्येक शब्द में</b> <b>ST</b> <b>देखिए</b><b>,</b> <b>और उनके साथ उपर्युक्त १६ में से जुडा हुआ</b><b>,</b> <b>कोई न कोई अर्थ देखिए।</b></div>
<div><b>(</b><b>0१)</b> <b>Stable</b> <b>= स्थिर।</b></div>
<div><b>(</b><b>0२)</b> <b>Stake =</b> <b>स्थिर, अचल।</b></div>
<div><b>(</b><b>0३)</b> <b>Stack =</b> <b>थप्पी</b><b>,</b> <b>ढेर एक जगह पर लगाई जाती है।</b></div>
<div><b>(</b><b>0४)</b> <b>Stage =</b> <b>मंच जो एक जगह पर स्थिर बनाया गया है।</b></div>
<div><b>(</b><b>0५)</b> <b>Stability</b> <b>=स्थिरता।</b></div>
<div><b>(</b><b>0६)</b> <b>Stackable =</b> <b>एक जगह पर ढेर</b><b> किया जा सकनेवाला पदार्थ</b><b>।</b></div>
<div><b>(</b><b>0७)</b> <b>Stagnancy =</b> <b>रुकाव</b><b>,</b> <b>अटकाव</b><b>,</b> <b>जड़ता, स्थिरता।</b></div>
<div><b>(</b><b>0८)</b> <b>Stagnate =</b> <b>एक जगह स्थिर/रोक रखना।</b></div>
<div><b>(0</b><b>९)</b> <b>Stageable =</b><b>स्थित मंच पर मंचन योग्य।</b></div>
<div><b>(</b><b>१०)</b> <b> </b> <b>Stager =</b> <b>मंच पर अभिनय करने वाले।</b></div>
<div><b>(</b><b>११)</b><b> Stabilize</b> <b>= स्थिरीकरण की क्रिया।</b></div>
<div><b>(</b><b>१२)</b> <b> Stand =</b> <b>एक जगह बनाया हुआ मंच</b><b>।</b></div>
<div><b>(</b><b>१३) </b> <b>Stadium = </b><b>खेल का मैदान</b><b>,</b> <b>क्रीडांगण</b><b>।</b></div>
<div><b>(</b><b>१४)</b> <b> Stillroom =</b> <b>रसोई के साथ छोटा रसोई की सामग्री संग्रह करने का कक्ष।</b></div>
<div><b>(</b><b>१५)</b><b> State =</b> <b>विशेष निश्चित भूमि (राज्य)</b><b>।</b></div>
<div><b>(</b><b>१६) </b> <b>Street =</b> <b>गली</b><b>,</b> <b>जो विशेष स्थायी पता रखती है।</b></div>
<div><b>(</b><b>१७)</b><b> Stand =</b> <b>स्थिर रूप में सीधा खड़ा रहना। स्थापित होना</b><b>,</b> <b>एक स्थान पर टिकना</b><b>।</b></div>
<div><b>(</b><b>१८)</b> <b>Standards =</b> <b>स्थापित, शाश्वत आदर्श मापदंड, मानक</b><b>।</b></div>
<p><b>(</b><b>१९)</b> <b>Staid</b> <b>= स्थिर</b><b>,</b> <b>गम्भीर</b><b>।</b></p>
<p><b>(</b><b>२</b><b>०) Stabilize</b><b>r </b> <b>= स्थिर करने का उपकरण।</b></p>
<p><b>(२</b><b>१) Stabilization = स्थिरता।</b></p>
<p><b>__________ <br/></b></p>
<p><b> courtsey: dr. M. D. Jhaveri <br/></b></p>
<p><b> </b></p> अनुनासिक - अनुस्वार समझ मात्र गिनिये मीत:tag:openbooks.ning.com,2012-06-18:5170231:Topic:2382872012-06-18T02:20:17.903Zsanjiv verma 'salil'http://openbooks.ning.com/profile/sanjivvermasalil
<p></p>
<div class="post-body entry-content" id="post-body-4272048928771203073"><div dir="ltr" style="text-align: left;"><br></br><div style="text-align: justify;"><a href="https://encrypted-tbn0.google.com/images?q=tbn:ANd9GcQjZ-lNz63VYOwXcrXak18vo1A7SE71Wk2Rc6v4G0ybEZOlONgS" target="_blank"><img class="align-left" src="https://encrypted-tbn0.google.com/images?q=tbn:ANd9GcQjZ-lNz63VYOwXcrXak18vo1A7SE71Wk2Rc6v4G0ybEZOlONgS&width=197" width="197"></img></a> <span class="font-size-4" style="font-size: large;">अनुनासिक - अनुस्वार समझ मात्र गिनिये मीत:</span> <br></br> <br></br> <span style="font-size: medium;">संजीव 'सलिल', दीप्ति गुप्ता …</span></div>
</div>
</div>
<p></p>
<div class="post-body entry-content" id="post-body-4272048928771203073"><div dir="ltr" style="text-align: left;"><br/><div style="text-align: justify;"><a target="_blank" href="https://encrypted-tbn0.google.com/images?q=tbn:ANd9GcQjZ-lNz63VYOwXcrXak18vo1A7SE71Wk2Rc6v4G0ybEZOlONgS"><img class="align-left" src="https://encrypted-tbn0.google.com/images?q=tbn:ANd9GcQjZ-lNz63VYOwXcrXak18vo1A7SE71Wk2Rc6v4G0ybEZOlONgS&width=197" width="197"/></a><span style="font-size: large;" class="font-size-4">अनुनासिक - अनुस्वार समझ मात्र गिनिये मीत:</span> <br/> <br/> <span style="font-size: medium;">संजीव 'सलिल', दीप्ति गुप्ता </span> <span style="font-size: medium;"> </span></div>
<div style="text-align: justify;"></div>
<div style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;"><span style="font-size: small;"><br/></span></span></div>
<div style="text-align: justify;"></div>
<div style="text-align: justify;"><div style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><a target="_blank" href="https://encrypted-tbn0.google.com/images?q=tbn:ANd9GcTxHxokybVU0qF2ujIajhe4K54ykaqjUx0WbNfsvqXv0_Sr2iyt"><img class="align-right" src="https://encrypted-tbn0.google.com/images?q=tbn:ANd9GcTxHxokybVU0qF2ujIajhe4K54ykaqjUx0WbNfsvqXv0_Sr2iyt&width=176" width="176"/></a></div>
<div style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><span style="font-size: medium;"> </span></div>
<div style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><br/> <span style="font-size: medium;">संस्कृत की वाचिक परंपरा हिंदी में प्रारंभिक दौर में ही अवरुद्ध हो गयी. विविध अंचलों में भाषा के विविध रूप प्रचलित होने से शब्दों व क्रियापदों के रूप-उच्चारण में अंतर आया. इस कारण छंदों का प्रयोग कठिन प्रतीत होने लगा चूँकि छंद में लय के अनुसार शब्द संयोजन करना जरूरी है. मुग़ल काल में प्रशासन की भाषा उर्दू होने से उर्दू की शिक्षा विधिवत लेनेवाले उस्ताद-शागिर्द परंपरा में बोलने तथा लिखने (तक़्तीअ करने) के अभ्यस्त हो गये. उर्दू के विविध रूप दिल्ली, लखनऊ तथा हैदराबाद में विकसित हुए किंतु तक़्तीअ के नियम एक से ही रहे. <br/> <br/> हिंदी में खड़ी बोली के विकास से भाषा के मानकीकरण का दौर प्रारंभ हुआ किंतु अंग्रेजी तथा आंचलिक भाषा रूपों के प्रति लगाव ने बाधा उपस्थित की. संस्कृत व्याकरण-पिंगल पर आधारित हिंदी में मात्रा गणना के लिये अनुनासिक और अनुस्वर को समझना आवश्यक है. </span></div>
<div style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><span style="font-size: medium;">अनुनासिक</span> <span style="font-size: medium;">और</span> <span style="font-size: medium;">अनुस्वर</span><span style="font-size: medium;">--</span></div>
<div style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><span style="font-size: medium;"> </span><span style="font-size: medium;"> </span> <span style="font-size: medium;"><br/></span></div>
<div style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="" class="rg_hi uh_hi" id="rg_hi" src="https://encrypted-tbn3.google.com/images?q=tbn:ANd9GcRz0106sf1_iq8-W_xaSKA_AfMTLM-ubozfCxCaD7n5EobQB8h1" style="height: 194px; width: 259px;" name="rg_hi" height="194" width="259"/></div>
<span style="font-size: medium;">इस सर्वोपयोगी चर्चा को आगे बढ़ाने के पूर्व यह जान लें कि कहना और लिखना एक दूसरे के पूरक हैं, विरोधी नहीं. निस्संदेह भाषा पहले बोली गयी फिर लिखी गयी. बोले गये में अलग-अलग स्थानों, बोलनेवाले के ज्ञान, उच्चारण क्षमता तथा अभ्यास के कारण परिवर्तन होने पर शुद्ध रूप को लिखने की आवश्यकता हुई. </span></div>
<div style="text-align: justify;"></div>
<div style="text-align: justify;"><br/><span style="font-size: medium;">संस्कृत में वाचिक परंपरा में आश्रमों में गुरु उच्च स्वर से पाठ करते थे जिन्हें सुनकर शिष्य स्मरण करने के साथ-साथ उच्चारण विधि भी सीख लेते थे. ज्ञान राशि के विस्तार तथा जटिलता के कारण श्रुति-स्मृति युग का स्थान लिपि युग ने लिया जो अब तक चल रहा है. संभव है कि भविष्य में विविध भाषाओं में प्राप्त विज्ञान तथा साहित्य सबके लिये सुलभ बनाने के लिये शब्द संकेतों के स्थान पर यांत्रिक ध्वनि संकेतों का प्रयोग हो जिसे हर</span> <span style="font-size: medium;">भाषा-भाषी समझ सके. अस्तु...</span><br/> <br/> <br/> <span style="font-size: medium;"><strong>अनुनासिक</strong>: <span xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">जिन वर्णों में</span> <span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">ध्वनि मुख के साथ</span><b><span xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">-</span></b><span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">साथ नासिका से भी निकलती है,</span> <span style="color: #c00000;">उन्हें नासिक ध्वनि (Nasal sound)</span> के कारण <span style="color: #c00000;">अनुनासिक</span> कहते हैं. प्रत्येक वर्ण समूह का पाँचवाँ अक्षर अर्थात <span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">क वर्ग</span> <span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">(क</span><b>,</b> <span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">ख</span><b>,</b> <span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">ग</span><b>,</b> <span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">घ<b>,</b></span> <span style="color: red; font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">ङ</span><b>),</b> <span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">च वर्ग (</span><span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">च</span><b>,</b> <span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">छ</span><b>,</b> <span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">ज</span><b>,</b> <span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">झ<b>,</b></span> <span style="color: #c00000; font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA"><span style="color: red;">ञ</span></span><b>),</b> <span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">ट वर्ग (</span><span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">ट</span><b>,</b> <span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">ठ</span><b>,</b> <span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">ड</span><b>,</b> <span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">ढ,</span> <span style="color: red; font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">ण</span><span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">), त वर्ग (</span><span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">त</span><b>,</b> <span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">थ</span><b>,</b> <span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">द<b>,</b></span> <span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">ध,</span> <span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA"><span style="color: red;">न</span>), प वर्ग (</span><span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">प</span><b>,</b> <span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">फ</span><b>,</b> <span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">ब</span><b>,</b> <span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">भ,</span> <span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA"><span style="color: red;">म</span>) आदि के अंतिम पंचम वर्ण</span> <span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA"><span style="color: red;">ङ्, ञ्, ण, न, म</span></span> <span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">'अनुनासिक'</span><span xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA"> कहलाते हैं</span>. उच्चारण को सरल रूप से समझने के लिये अनुनासिक के स्थान पर अर्ध ध्वन्याक्षर का प्रयोग प्रचलन में है. </span><br/> <span style="font-size: medium;"><br/> शुद्ध पाञ्चजन्य = प्रचलित पान्चजन्य, प्रत्यञ्चा = प्रत्यंचा, <br/> शुद्ध वाङ्मय / वाङ् मय = प्रचलित वांग्मय, गङ्गा = गंगा, तरङ्गिणी = तरंगिनी, <br/> उद्दण्ड = उद्दंड = उद्दन्ड, अखण्ड = अखंड = अख</span><span style="font-size: medium;">न्ड</span> <br/> <span style="font-size: medium;"><br/> अन्य (इसे अंय नहीं लिख सकते) क्यों ?<br/> प्रणम्य (यहाँ आधे म को हटाकर उसके स्थान पर पूर्वाक्षर पर बिंदी नहीं रख सकते)</span><br/> <br/> <span style="font-size: medium;"><strong>अनुस्वर</strong>: स्वर के बाद बोला जाने वाला हलंत (अर्ध ध्वनि) अनुस्वार कहलाता है जिसका उच्चारण अनुनासिक वर्णानुसार किया जाता है ! इसका चिन्ह . वर्ण के ऊपर बिंदी (जैसी यहाँ बि पर लगी है) होता है ! जिस अक्षर के ऊपर अनुस्वर (बिंदी) हो उसका अगला अक्षर जिस वर्ण समूह का हो उसके पंचम अक्षर की अर्ध ध्वनि अनुस्वर के स्थान पर बोली जाती है. <span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">यथा: </span>शङ्का = शंका, शङ्ख = शंख, गङ्ग = गंग, उल्लङ्घन = उल्लंघन<b>,</b></span> <span style="font-size: medium;"><span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">प्रपंच</span> <b>,</b> <span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">लांछन</span> <b>,</b></span> <span style="font-size: medium;">सञ्जय =</span> <span style="font-size: medium;">संजय</span><span style="font-size: medium;"><b>,</b> <span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">झंझट</span><span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">, घण्टा = घंटा =</span> <span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">घन्टा,</span> <span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">कण्ठ = कंठ = कन्ठ, दण्ड = दंड = दन्ड, माण्ढेर = मां</span><span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">ढेर,</span> <span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">मा</span><span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">न्</span><span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">ढेर,</span> <span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">संत = सन्त, पंथ = पन्थ, छंद = छन्द, धंधा = धन्धा,</span> <span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">चंपत = चम्पत, गुंफित = गुम्फ़ित,</span> <span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">कंबल</span> <b>=</b> कम्बल<b>, </b>दंभ = दम्भ, <span style="font-family: Mangal;" xml:lang="AR-SA" lang="AR-SA">मंजूषा = मन्जूषा </span> आदि<b>.</b></span> <span style="font-size: medium;"><br/> </span> <br/> <span style="font-size: medium;">-- संयुक्त अक्षर यदि प्रथम हो तो अर्ध अक्षर की मात्रा की गणना नहीं होती. </span><br/> <span style="font-size: medium;">यथा प्रचुर = १ १ १ = ३, क्रय १ १ = २, क्रिया १ २ = ३, क्रेता = २ २ = ४, विक्रय = २ १ १ = ४, विक्रेता = २ २ २ = ६, ग्रह = १ १ = २, विग्रह = २ १ १ = ४ किन्तु अनुस्वार वाले शब्द की मात्रा २ गिनी जायेगी ! </span><br/> <br/> <span style="font-size: medium;">हंस (पक्षी) और हँस (क्रिया हँसना) के उच्चारण पर ध्यान दें तो शब्दों में कहाँ बिंदी और कहाँ चन्द्र बिंदी लगाना है स्पष्ट होगा. प्रायः इसमें गलती होती है. </span> <br/> <span style="font-size: medium;"><br/></span></div>
<div style="text-align: justify;"><a href="https://encrypted-tbn0.google.com/images?q=tbn:ANd9GcQg1FfY0P_oaClkK3ZLzBeOudzmltY7CljJfoqgmp7iVXe4pGlPSg" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img alt="" class="rg_hi uh_hi" id="rg_hi" src="https://encrypted-tbn0.google.com/images?q=tbn:ANd9GcQg1FfY0P_oaClkK3ZLzBeOudzmltY7CljJfoqgmp7iVXe4pGlPSg" style="height: 165px; width: 176px;" name="rg_hi" border="0" height="165" width="176"/></a><span style="font-size: medium;">(उर्दू में भी ऐसी ही गणना होती है और उसे ’वज़न’ कहते हैं और वह भी ’मल्फ़ूज़ी’ (यानी तल्फ़्फ़ुज़=उच्चारण के आधार पर होती है. दो-हर्फ़ी कलमा को ’सबब’ और 3- हर्फ़ी कलमा को ’वतद’ और 4-हर्फ़ी कलमा को फ़ासिला’ कहते हैं.)</span></div>
<div style="text-align: justify;"><br/><span style="font-size: medium;"><span style="font-family: 'Mangal','serif';" xml:lang="HI" lang="HI">‘क्ष’ संयुक्त अक्षर में क् और मूर्धन्य ष का योग है न कि तालव्य श का.</span></span></div>
<div style="text-align: justify;"></div>
<div style="text-align: justify;"></div>
<div style="text-align: justify;"><div style="text-align: justify;"> 88888888</div>
</div>
</div>
</div> संयुक्त अक्षरों की मात्रा गणना (आदरणीय संजीव वर्मा 'सलिल' जी से वार्तालाप के आधार पर )tag:openbooks.ning.com,2012-06-11:5170231:Topic:2367292012-06-11T15:00:26.886ZDr.Prachi Singhhttp://openbooks.ning.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>संयुक्त अक्षरों की मात्रा गणना: <br></br> (आदरणीय संजीव वर्मा 'सलिल' जी से वार्तालाप के आधार पर )</p>
<p></p>
<p>•जब दो अक्षर मिलकर संयुक्त अक्षर बनाते हैं तो जिस अक्षर की आधी ध्वनि होती है उसकी गणना पूर्व अक्षर के साथ होती है. <br></br> यथा: अर्ध = (अ + आधा र) + ध = २ + १ = ३<br></br> मार्ग = (मा + आधा र) + ग = २ + १ = ३<br></br> दर्शन = (द + आधा र) + श + न = २ + १ + १ = ४</p>
<p></p>
<p>•आधे अक्षर के पहले दीर्घ या बड़ा अक्षर हो तो आधा अक्षर उसके साथ मिलकर उच्चरित होता है इसलिए मात्रा २ ही रहती हैं. ढाई या…</p>
<p>संयुक्त अक्षरों की मात्रा गणना: <br/> (आदरणीय संजीव वर्मा 'सलिल' जी से वार्तालाप के आधार पर )</p>
<p></p>
<p>•जब दो अक्षर मिलकर संयुक्त अक्षर बनाते हैं तो जिस अक्षर की आधी ध्वनि होती है उसकी गणना पूर्व अक्षर के साथ होती है. <br/> यथा: अर्ध = (अ + आधा र) + ध = २ + १ = ३<br/> मार्ग = (मा + आधा र) + ग = २ + १ = ३<br/> दर्शन = (द + आधा र) + श + न = २ + १ + १ = ४</p>
<p></p>
<p>•आधे अक्षर के पहले दीर्घ या बड़ा अक्षर हो तो आधा अक्षर उसके साथ मिलकर उच्चरित होता है इसलिए मात्रा २ ही रहती हैं. ढाई या तीन मात्रा नहीं हो सकती.<br/> क्ष = आधा क + श<br/> कक्षा = (क + आधा क) + शा = २ + २ = ४<br/> क्षत = (आधा क + श ) + त = १ + १ = २<br/> विक्षत = ( वि + आधा क ) + श + त = २ +१+१ = ४<br/> ज्ञ = आधा ज + ञ<br/> विज्ञ = (वि + आधा ज) + ञ = २ + १ = ३<br/> ज्ञान की मात्रा ३ होगी, पर विज्ञान की मात्रा ५ होगी<br/> त्र में त तथा र का उच्चारण एक साथ होता है अतः त्र की मात्रा भी १ होगी <br/> पत्र = २ + १ = ३ <br/> पात्र = २ + १ = ३</p>
<p></p>
<p>•संयुक्त अक्षर यदि प्रथम हो तो अर्ध अक्षर की गणना नहीं होती <br/> प्रचुर १+१+१ = ३<br/> त्रस्त = २ + १ = ३<br/> क्षत = (आधा क + श ) + त = १ + १ = २</p>
<p></p>
<p>•जिन्हें तथा उन्हीं की मात्रा गणना किस प्रकार होगी ?<br/> जिन्हें तथा उन्हीं को जोर से बोलिए अप पहले जि फिर न्हें तथा उ फिर न्हीं बोलेंगी. इसी अधार पर गिनिए. मात्रा गणना के नियम ध्वन-विज्ञान अर्थात उच्चारण के अधार पर ही बने हैं.<br/> उन्हीं = उ + (आधा न + हीं) = १ + २ = ३<br/> जिन्हें = जि + (आधा न + हें) = १ + २ = ३ <br/><br/></p>
<p>•मात्रा गणना बिलकुल आसान है . शब्द को जोर से बोलिए... उच्चारण में लगने वाले समय का ध्यान रखें. कम समय लघु मात्रा १, अधिक समय दीर्घ मात्रा २ . कुल इतना है... शेष अभ्यास...<br/> बोलकर अंतर समझें कन्या, हंस आदि में ‘न’ का उच्चारण क्रमशः ‘क’ व ‘ह’ के साथ है. कन्हैया में ‘न’ का उच्चारण ‘है’ के साथ है क + न्है + या<br/> कन्या = (क + आधा न) + या = २ + २ = ४<br/> हंस = (ह + आधा न) + स = २ + १ = ३ <br/> कन्हैया = क + न्है + या = १ + २ + २ = ५</p>
<p></p>
<p></p> विशेष लेखमाला: जगवाणी हिंदी का वैशिष्टय् व्याकरण और छंद विधान - 2tag:openbooks.ning.com,2011-08-13:5170231:Topic:1273172011-08-13T19:05:40.336Zsanjiv verma 'salil'http://openbooks.ning.com/profile/sanjivvermasalil
<p><font size="4">विशेष लेखमाला: <span style="color: #ff6600;">जगवाणी हिंदी का वैशिष्टय् व्याकरण और छंद विधान</span> <span style="color: #ff6600;">- 2</span></font><span style="color: #ff6600;"> </span></p>
<p><span style="color: #ff6600;"> </span><b style="color: #006600;">जन-मन को भायी चौपाई</b><span style="color: #cc33cc;"> </span></p>
<p><span style="color: blue;">छंद पर इस महत्वपूर्ण लेख माला की प्रथम श्रंखला में आपने जाना कि </span> वेद के 6 अंगों <span style="color: red;">1. छंद, 2.…</span></p>
<p><font size="4">विशेष लेखमाला: <span style="color: #ff6600;">जगवाणी हिंदी का वैशिष्टय् व्याकरण और छंद विधान</span> <span style="color: #ff6600;">- 2</span></font><span style="color: #ff6600;"> </span></p>
<p><span style="color: #ff6600;"> </span><b style="color: #006600;">जन-मन को भायी चौपाई</b><span style="color: #cc33cc;"> </span></p>
<p><span style="color: blue;">छंद पर इस महत्वपूर्ण लेख माला की प्रथम श्रंखला में आपने जाना कि </span> वेद के 6 अंगों <span style="color: red;">1. छंद, 2. कल्प, 3. ज्योतिऽष , 4. निरुक्त, 5. शिक्षा तथा 6. व्याकरण</span> में छंद का प्रमुख स्थान है ।</p>
<div style="text-align: justify;"><br/> भाषा का सौंदर्य उसकी कविता में निहित है । कविता के 2 तत्व - <b>बाह्य तत्व</b> (लय, छंद योजना, <span style="color: blue;">श</span>ब्द योजना, अलंकार, तुक आदि) तथा <b>आंतरिक तत्व</b> (भाव, रस, अनुभूति आदि) हैं । <span style="color: blue;">छंद के 2 प्रकार मात्रिक (जिनमें मात्राओं की संख्या निश्चित रहती है) तथा वर्णिक (जिनमें वर्णों की संख्या</span> <span style="color: blue;">निश्चित</span> <span style="color: blue;">तथा गणों के आधार पर होती है) हैं</span>. भाषा, व्याकरण, वर्ण, स्वर, व्यंजन, लय, छंद, तुक, शब्द-प्रकार आदि की जानकारी के पश्चात् <span style="color: blue;">दूसरी कड़ी में प्रस्तुत है कुछ और प्राथमिक जानकारी के साथ चौपाई छंद के रचना विधान की जानकारी -सं. <br/></span></div>
<div style="text-align: center;">=================</div>
<p><b style="color: #009900;">भाषा/लैंग्वेज</b> <span style="color: #009900;"><b>का विकास</b> :</span><br/> <br/></p>
<div style="text-align: justify;"> अनुभूतियों से उत्पन्न भावों को अभिव्यक्त करने के लिये भंगिमाओं या ध्वनियों की आवश्यकता होती है। भंगिमाओं से नृत्य, नाट्य, चित्र आदि कलाओं का विकास हुआ. ध्वनि से भाषा, वादन एवं गायन कलाओं का जन्म हुआ। आदि मानव को प्राकृतिक घटनाओं (वर्षा, तूफ़ान, जल या वायु का प्रवाह), पशु-पक्षियों की बोली आदि को सुनकर हर्ष, भय, शांति आदि की अनुभूति हुई। इन ध्वनियों की नकलकर उसने बोलना, एक-दूसरे को पुकारना, भगाना, स्नेह-क्रोध आदि की अभिव्यक्ति करना सदियों में सीखा।</div>
<p><br/> <b style="color: #009900;">लिपि</b><span style="color: #009900;">:</span></p>
<p> कहे हुए को अंकित कर स्मरण रखने अथवा अनुपस्थित साथी को बताने के लिये हर ध्वनि के लिये अलग- अलग संकेत निश्चित कर, अंकित करना सीखकर मनुष्य शेष सभी जीवों से अधिक उन्नत हो सका। इन संकेतों की संख्या बढ़ने तथा व्यवस्थित रूप ग्रहण करने ने लिपि को जन्म दिया। एक ही अनुभूति के लिये अलग-अलग मानव समूहों में अलग-अलग ध्वनि तथा संकेत बनने तथा आपस में संपर्क न होने से विविध भाषाओँ और लिपियों का जन्म हुआ।</p>
<p style="color: #009900;"><b>लिंग (जेंडर)</b>: </p>
<p> लिंग से स्त्री या पुरुष होने का बोध होता है। लिंग हिंदी में २ पुल्लिंग व स्त्रीलिंग, संस्कृत में ३ पुल्लिंग, स्त्रीलिंग व नपुंसक लिंग तथा अंग्रेजी में ४ मैस्कुलाइन जेंडर (पुल्लिंग), फेमिनाइन जेंडर (स्त्रीलिंग), कोमन जेंडर (उभयलिंग) तथा न्यूटर जेंडर (नपुंसक लिंग) होते हैं।</p>
<p style="color: #009900;"><b>वचन (नंबर)</b>:</p>
<p> वचन से संख्या या तादाद का बोध होता है।हिंदी व अंग्रेजी में २ वचन एकवचन (सिंगुलर) तथा बहुवचन (प्लूरल) होते हैं जबकि संस्कृत में तीसरा द्विवचन भी होता है।</p>
<p><b style="color: #009900;">विकारी शब्दों के भेद:</b></p>
<p>पिछले लेख में इंगित विकारी शब्दों के चार भेद संज्ञा (नाउन), सर्वनाम (प्रोनाउन), विशेषण (एडजेक्टिव) तथा क्रिया (वर्ब) हैं जबकि अविकारी शब्दों के चार भेद क्रिया विशेषण (एडवर्ब), समुच्चय बोधक (कंजंकशन), संबंधवाचक (प्रीपोजीशन) तथा विस्मयादिबोधक (इंटरजेकशन) हैं।</p>
<div style="text-align: left;"><br/> <b style="color: #ff6600;">संज्ञा:</b> किसी व्यक्ति, स्थान, वस्तु, भाव या वर्ग के नाम को संज्ञा कहते हैं। संज्ञा के ५ प्रकार निम्न हैं:<br/> १. व्यक्तिवाचक संज्ञा (प्रोपर नाउन)- जिससे व्यक्ति या स्थान विशेष का बोध हो। यथा: प्रभाकर, जबलपुर, गंगा, गूगल आदि। <br/><br/> २. जातिवाचक (कॉमन नाउन)- जिससे पूरी जाति या वर्ग का बोध हो। यथा: पुस्तक, बालक, ब्लॉग, कविता आदि। <br/><br/> ३. भाववाचक (एब्सट्रेक्ट नाउन)- जिससे किसी वस्तु के गुण, धर्म, दशा, भाव आदि का बोध हो। यथा: मानवता, लिखावट, मित्रता, माधुर्य, ईमानदारी आदि। <br/><br/> ४. समूहवाचक (कलेक्टिव नाउन)- जिससे एक जाति या वर्ग के समस्त सदस्यों का बोध हो। यथा: कवि, ब्लॉग लेखक, सेना, कक्षा सभा, आदि। <br/><br/> ५. पदार्थवाचक (मटीरिअल नाउन)- जिससे किसी धातु, द्रव्य या पदार्थ का बोध हो। यथा: सोना, कागज़, तेल आदि। <br/> <br/> <b> <span style="color: #ff6600;">सर्वनाम</span>:</b> किसी संज्ञा शब्द के स्थान पर प्रयोग में आनेवाले शब्द को सर्वनाम कहते हैं। सर्वनाम के १० प्रकार निम्न हैं:<br/><br/> १. पुरुष/व्यक्तिवाचक (पर्सनल प्रोनाउन)- व्यक्ति, वस्तु या स्थान के नाम के स्थान पर प्रयुक्त शब्द व्यक्तिवाचक सर्वनाम कहलाते हैं। इसके ३ प्रकार : अ. उत्तम पुरुष (फर्स्ट पर्सन) मैं, हम, मेरे, हमारे आदि, आ. मध्यम पुरुष (सेकेण्ड पर्सन) तुम, तू, तुम्हारे, आप आपके आदि, इ. अन्य पुरुष (थर्ड पर्सन) वह, वे, उन, उनका आदि हैं। <br/><br/> २. निश्चयवाचक (डेफिनिट/एम्फैटिक प्रोनाउन)- जिससे वस्तु की निकटता या दूरी आदि का बोध हो। यथा: यह, ये, वह, वे इसी, उसी आदि। <br/><br/> ३. अनिश्चयवाचक (इनडेफिनिट प्रोनाउन)- जिससे निश्चित वस्तु या माप बोध न हो। यथा: सब, कुछ, कई, कोई, किसी आदि। <br/><br/> ४. संबंधवाचक (रिलेटिव प्रोनाउन)- जिससे दो वाक्यों या आगे-पीछे आनेवाली संज्ञाओं / सर्वनामों से सम्बन्ध का बोध हो। यथा: यथावत, जैसी की तैसी, जो सो, आदि। <br/><br/> ५. प्रश्नवाचक (इनटेरोगेटिव प्रोनाउन)- जिससे प्रश्न किये जाने का का बोध हो। यथा: कौन?, क्या? आदि। <br/><br/> ६. निजवाचक (रिफ्लेक्सिव प्रोनाउन)-जिसका प्रभाव कर्ता पर पड़ने का बोध हो। यथा: अपना काम समय पर करो।, वे स्वयं कर लेंगे आदि। <br/> <br/> <b> <span style="color: #ff6600;">विशेषण</span>:</b> किसी संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता का बोध करनेवाले शब्द को विशेषण तथा जिस शब्द की विशेषता बताई जाती है उसे विशेष्य कहते हैं।विशेषण के निम्न प्रकार हैं-<br/> <br/>१. गुणवाचक विशेषण (एडजेक्टिव ओफ क्वालिटी)- यह संज्ञा शब्द के गुणों का बोध कराता है। यथा: बुद्धिमान छात्र, तेज घोड़ा, भव्य इमारत आदि।<br/><br/>२. संख्यावाचक विशेषण (एडजेक्टिव ऑफ़ नंबर)- जिससे संज्ञा की संख्या का बोध हो। यथा: दुगनी मेहनत, सौ विद्यार्थी आदि।<br/> <br/>३. परिमाणवाचक विशेषण (एडजेक्टिव ऑफ़ क्वांटिटी)- जो संज्ञा का परिमाण या माप व्यक्त करें। यथा: कुछ फलाहार, थोड़ा विश्राम, प्रचुर उत्पादन, अल्प उपस्थिति आदि ।<br/><br/>४. संकेतवाचक विशेषण (डिमोंसट्रेटिव एडजेक्टिव)- ये संज्ञा या सर्वनाम की ओर संकेत करते हैं। यथा: यह पुस्तक, वह समान आदि।<br/> <br/>५. प्रश्नवाचक विशेषण (इंटेरोगेटिव एडजेक्टिव)- इससे प्रश्न किया जाए। यथा: किसकी किताब?, कौन छात्र? आदि। <br/><br/>६. व्यक्तिवाचक विशेषण (प्रोपर एडजेक्टिव)- व्यक्तिवाचक संज्ञा से बने विशेषण। यथा: भारतीय, हिंदीभाषी आदि।<br/> <br/>७. विभागसूचक विशेषण (डिस्ट्रीब्यूटिव एडजेक्टिव): जो अनेक में से प्रत्येक का बोध कराये। यथा: हर एक, प्रत्येक, हर कोई आदि।<br/><br/> <b style="color: #ff6600;">विशेषण की तुलनात्मक स्थितियाँ</b> (डिग्री ऑफ़ कंपेरिजन): तुलना की दृष्टि से विशेषण की ३ स्थितियाँ १. मूलावस्था या सामान्यावस्था (पोजिटिव डिग्री) जिसमें किसी से तुलना न हो यथा: सुंदर, बड़ा, चतुर आदि, २. उत्तरावस्था या तुलनात्मक (कंपेरेटिव डिग्री) दो के बीच तुलना यथा अपेक्षा, बेहतर, बदतर, अधिक या कम आदि <br/> तथा ३. उत्तमावस्था या चरम स्थिति (सुपरलेटिव डिग्री) सबसे अधिक/कम श्रेष्ठ, उत्तम, सर्वाधिक, सबसे आगे आदि हैं।<br/><b><span style="color: #ff6600;">जन-मन को भायी चौपाई/चौपायी :</span></b></div>
<p> भारत में शायद ही कोई हिन्दीभाषी होगा जिसे चौपाई छंद की जानकारी न हो. रामचरित मानस की रचना चौपाई छंद में ही हुई है.</p>
<div style="text-align: justify;"><br/> चौपाई छंद पर चर्चा करने के पूर्व मात्राओं की जानकारी होना अनिवार्य है. मात्राएँ दो हैं १. लघु या छोटी (पदभार एक) तथा दीर्घ या बड़ी (पदभार २). ऊपर वर्णित स्वरों-व्यंजनों में <span style="color: #33cc00;"> </span><b style="color: #000000; font-weight: normal;">हृस्व</b>, लघु या छोटे स्वर ( अ, इ, उ, ऋ, ऌ ) तथा सभी मात्राहीन व्यंजनों की मात्रा लघु या छोटी (१) तथा <b style="color: #333333; font-weight: normal;">दीर्घ</b>, गुरु या बड़े स्वरों (आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अ:) तथा इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अ: मात्रा युक्त व्यंजनों की मात्रा दीर्घ या बड़ी (२) गिनी जाती हैं. <br/> <br/><b>चौपाई छंद</b> : रचना विधान-<br/><br/> चौपाई के चार चरण होने के कारण इसे चौपायी नाम मिला है. यह एक मात्रिक सम छंद है चूँकि इसकी चार चरणों में मात्राओं की संख्या निश्चित तथा समान रहती है. चौपाई द्विपदिक छंद है जिसमें दो पद या पंक्तियाँ होती हैं. प्रत्येक पद में दो चरण होते हैं जिनकी अंतिम मात्राएँ समान (दोनों में लघु या दोनों में गुरु) होती हैं. चौपायी के प्रत्येक चरण में १६ तथा प्रत्येक पद में ३२ मात्राएँ होती हैं. चौपायी के चारों चरणों के समान मात्राएँ हों तो नाद सौंदर्य में वृद्धि होती है किन्तु यह अनिवार्य नहीं है. चौपायी के पद के दो चरण विषय की दृष्टि से आपस में जुड़े होते हैं किन्तु हर चरण अपने में स्वतंत्र होता है. चौपायी के पठन या गायन के समय हर चरण के बाद अल्प विराम लिया जाता है जिसे यति कहते हैं. अत: किसी चरण का अंतिम शब्द अगले चरण में नहीं जाना चाहिए. चौपायी के चरणान्त में गुरु-लघु मात्राएँ वर्जित हैं. <br/> <br/><b>उदाहरण</b>: <br/> १. शिव चालीसा की प्रारंभिक पंक्तियाँ देखें. <br/><br/>जय गिरिजापति दीनदयाला | -प्रथम चरण <br/> १ १ १ १ २ १ १ २ १ १ २ २ = १६ मात्राएँ <br/>सदा करत संतत प्रतिपाला || -द्वितीय चरण <br/> १ २ १ १ १ २ १ १ १ १ २ २ = १६१६ मात्राएँ <br/> भाल चंद्रमा सोहत नीके | - तृतीय चरण<br/> २ १ २ १ २ २ १ १ २ २ = १६ मात्राएँ <br/>कानन कुंडल नाक फनीके || -चतुर्थ चरण <br/>२ १ १ २ १ १ २ १ १ २ २ = १६ मात्राएँ <br/> <br/> रामचरित मानस के अतिरिक्त शिव चालीसा, हनुमान चालीसा आदि धार्मिक रचनाओं में चौपाई का प्रयोग सर्वाधिक हुआ है किन्तु इनमें प्रयुक्त भाषा उस समय की बोलियों (अवधी, बुन्देली, बृज, भोजपुरी आदि ) है.<br/> निम्न उदाहरण वर्त्तमान काल में प्रचलित खड़ी हिंदी के तथा समकालिक कवियों द्वारा रचे गये हैं.<br/> २. <b>श्री रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'</b><br/> भुवन भास्कर बहुत दुलारा।<br/> मुख मंडल है प्यारा-प्यारा।।<br/> सुबह-सुबह जब जगते हो तुम|<br/> कितने अच्छे लगते हो तुम।।<br/> ३. <b>श्री छोटू भाई चतुर्वेदी</b> <br/> <span style="color: #000000;">हर युग के इतिहास ने कहा| <br/> भारत का ध्वज उच्च ही रहा| <br/> सोने की चिड़िया कहलाया| <br/> सदा लुटेरों के मन भाया।।<br/> ४. <b>शेखर चतुर्वेदी</b> <br/> मुझको जग में लाने वाले |</span><br style="color: #000000;"/><span style="color: #000000;">दुनिया अजब दिखने वाले |</span><br style="color: #000000;"/><span style="color: #000000;">उँगली थाम चलाने वाले |</span><br style="color: #000000;"/><span style="color: #000000;">अच्छा बुरा बताने वाले ||</span><br/> ५. <b>श्री मृत्युंजय</b> <br/> <span style="color: #000000;">श्याम वर्ण, माथे पर टोपी|</span><br style="color: #000000;"/><span style="color: #000000;">नाचत रुन-झुन रुन-झुन गोपी|</span><br style="color: #000000;"/><span style="color: #000000;">हरित वस्त्र आभूषण पूरा|</span><br style="color: #000000;"/><span style="color: #000000;">ज्यों लड्डू पर छिटका बूरा||</span><br/> ६. <b>श्री मयंक अवस्थी</b> <br/> <span style="color: #000000; font-size: 100%;">निर्निमेष तुमको निहारती|<br/> विरह –निशा तुमको पुकारती|<br/> मेरी प्रणय –कथा है कोरी|<br/> तुम चन्दा, मैं एक चकोरी||</span><br/> ७.<b>श्री रविकांत पाण्डे</b><br/> <span style="color: #000099; font-size: 100%;"><span style="color: #000000;">मौसम के हाथों दुत्कारे|</span><br style="color: #000000;"/><span style="color: #000000;">पतझड़ के कष्टों के मारे|</span><br style="color: #000000;"/><span style="color: #000000;">सुमन हृदय के जब मुरझाये|</span><br style="color: #000000;"/><span style="color: #000000;">तुम वसंत बनकर प्रिय आये|</span><span style="font-weight: bold;">|</span></span><br/> ८. <b>श्री राणा प्रताप सिंह</b><br/> <span style="color: #000000;">जितना मुझको तरसाओगे|</span><br style="color: #000000;"/><span style="color: #000000;">उतना निकट मुझे पाओगे|</span><br style="color: #000000;"/><span style="color: #000000;">तुम में 'मैं', मुझमें 'तुम', जानो|</span><br style="color: #000000;"/><span style="color: #000000;">मुझसे 'तुम', तुमसे 'मैं', मानो||<br/> ९. <b>श्री शेषधर तिवारी</b> <br/> एक दिवस आँगन में मेरे |</span><br style="color: #000000;"/><span style="color: #000000;">उतरे दो कलहंस सबेरे|</span><br style="color: #000000;"/><span style="color: #000000;">कितने सुन्दर कितने भोले |</span><br style="color: #000000;"/><span style="color: #000000;">सारे आँगन में वो डोले ||<br/> १०. <b>श्री धर्मेन्द्र कुमार 'सज्जन'</b><br/> नन्हें मुन्हें हाथों से जब ।</span><br style="color: #000000;"/><span style="color: #000000;">छूते हो मेरा तन मन तब॥</span><br style="color: #000000;"/><span style="color: #000000;">मुझको बेसुध करते हो तुम।</span><br style="color: #000000;"/><span style="color: #000000;">कितने अच्छे लगते हो तुम ||<br/> ११. <b>श्री संजीव 'सलिल'</b><br/></span> कितने अच्छे लगते हो तुम | <br/> बिना जगाये जगते हो तुम || <br/> <br/> नहीं किसी को ठगते हो तुम | <br/> सदा प्रेम में पगते हो तुम || <br/> <br/> दाना-चुग्गा मंगते हो तुम | <br/> चूँ-चूँ-चूँ-चूँ चुगते हो तुम || <br/> <br/> आलस कैसे तजते हो तुम?<br/> क्या प्रभु को भी भजते हो तुम?<br/> <br/> चिड़िया माँ पा नचते हो तुम | <br/> बिल्ली से डर बचते हो तुम || <br/> <br/> क्या माला भी जपते हो तुम?<br/> शीत लगे तो कँपते हो तुम?<br/> <br/> सुना न मैंने हँसते हो तुम | <br/> चूजे भाई! रुचते हो तुम ||</div>
<div style="text-align: justify;"></div>
<div style="text-align: justify;">अंतिम उदाहरण में चौपाई छन्द का प्रयोग कर 'चूजे' विषय पर मुक्तिका (हिंदी गजल) लिखी गयी है. यह एक अभिनव साहित्यिक प्रयोग है. <br/> <br/> अगले अंक में क्रिया, वाच्य, काल आदि के साथ आल्हा छंद की चर्चा करेंगे.</div>
<div style="text-align: justify;"></div>
<div style="text-align: justify;">************************************************</div> लेखमाला: जगवाणी हिंदी का वैशिऽष्टय् छंद और छंद विधान: 1 --आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिलtag:openbooks.ning.com,2011-07-31:5170231:Topic:1177212011-07-31T14:28:43.164Zsanjiv verma 'salil'http://openbooks.ning.com/profile/sanjivvermasalil
<p><font size="2" style="color: #ff0000;"><span class="font-size-4"><span style="color: #000000;">आत्मीय!</span></span></font></p>
<p><font size="4" style="color: #ff0000;"><span class="font-size-4"><font size="2"><span style="color: #000000;">वन्दे मातरम. <br></br></span></font></span></font></p>
<p><font size="4" style="color: #ff0000;"><span class="font-size-4"><font size="2"><span style="color: #000000;">इस विषय पर कुछ सामग्री पहले प्रेषित की थी. उसे संशोधित-परिवर्तित कर पुनः भेज रहा हूँ. कृपया…</span></font></span></font></p>
<p><font style="color: #ff0000;" size="2"><span class="font-size-4"><span style="color: #000000;">आत्मीय!</span></span></font></p>
<p><font style="color: #ff0000;" size="4"><span class="font-size-4"><font size="2"><span style="color: #000000;">वन्दे मातरम. <br/></span></font></span></font></p>
<p><font style="color: #ff0000;" size="4"><span class="font-size-4"><font size="2"><span style="color: #000000;">इस विषय पर कुछ सामग्री पहले प्रेषित की थी. उसे संशोधित-परिवर्तित कर पुनः भेज रहा हूँ. कृपया पूर्व सामग्री को निरस्त कर उपयुक्त प्रतीत होने पर इसे प्रयोग करें.</span></font> <br/></span></font></p>
<p><font style="color: #ff0000;" size="4"><span class="font-size-4"><br/></span></font></p>
<p><font style="color: #ff0000;" size="4"><span class="font-size-4">लेखमाला:</span></font><span class="font-size-6"><br/></span></p>
<p><span class="font-size-6"> <b><font size="4"><span style="color: #006600;">जगवाणी हिंदी का वैशिऽष्टय् छंद और छंद विधान: 1</span></font></b></span><br/> <font size="4"><span style="color: #6600cc;" class="font-size-4">आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’</span><br/></font> <br/><span class="font-size-3"> वेद को सकल विद्याओं का मूल माना गया है । वेद के 6 अंगों 1. छंद, 2. कल्प, 3. ज्योतिऽष , 4. निरुक्त, 5. शिक्षा तथा 6. व्याकरण में छंद का प्रमुख स्थान है ।</span><br/><br/><span class="font-size-3"> <b><span style="color: #ff6600;"> </span></b></span></p>
<p style="text-align: center;"><span class="font-size-3"><b><span style="color: #ff6600;">छंदः पादौतु वेदस्य हस्तौ कल्पोऽथ कथ्यते । </span><br style="color: #ff6600;"/></b></span></p>
<p style="color: #ff6600; text-align: center;"><b><span class="font-size-3">ज्योतिऽषामयनं नेत्रं निरुक्तं श्रोत्र मुच्यते ।।</span></b></p>
<p style="color: #ff6600; text-align: center;"><b><span class="font-size-3">शिक्षा घ्राणंतुवेदस्य मुखंव्याकरणंस्मृतं</span> <span class="font-size-3">।</span><span class="font-size-3"> <br/></span></b></p>
<p style="text-align: center;"><b><span style="color: #ff6600;" class="font-size-3">तस्मात् सांगमधीत्यैव ब्रम्हलोके महीतले ।।</span></b></p>
<p><br/><span class="font-size-3"> वेद का चरण होने के कारण छंद पूज्य है । छंदशास्त्र का ज्ञान न होने पर मनुष्य पंगुवत है, वह न तो काव्य की यथार्थ गति समझ सकता है न ही शुद्ध रीति से काव्य रच सकता है । छंद</span><span class="font-size-3">शा</span><span class="font-size-3">स्त्र को आदिप्रणेता महर्षि पिंगल के नाम पर पिंगल तथा पर्यायवाची</span> <span class="font-size-3">श</span><span class="font-size-3">ब्दों सर्प, फणि, अहि, भुजंग आदि नामों से संबोधित कर शेषावतार माना जाता है</span><span class="font-size-3"> </span> <span class="font-size-3">। जटिल से जटिल विषय छंदबद्ध होने पर सहजता से कंठस्थ ही</span> <span class="font-size-3">न</span><span class="font-size-3">हीं हो जाता, आनंद भी देता है ।</span><br/><br/><span class="font-size-3"> <b><span style="color: #ff6600;">नरत्वं दुर्लभं लोके विद्या तत्र सुदुर्लभा ।</span></b></span></p>
<p><b><span style="color: #ff6600;" class="font-size-3"> कवित्वं दुर्लभं तत्र, शक्तिस्तत्र सुदुर्लभा ।।</span></b><br style="color: #ff6600;"/><br/><span class="font-size-3"> अर्थात संसार में नर तन दुर्लभ है, विद्या अधिक दुर्लभ, काव्य रचना और अधिक दुर्लभ तथा सुकाव्य-सृजन की </span><span class="font-size-3">शक्ति</span> <span class="font-size-3">दुर्लभतम है । काव्य के पठन-पाठन अथवा श्रवण से अलौकिक आनंद की प्राप्ति होती है ।</span> <br/><br/><span class="font-size-3"> <b><span style="color: #ff6600;">काव्यशास्त्रेण विनोदेन कालो गच्छति धीमताम ।</span></b></span></p>
<p><b><span style="color: #ff6600;" class="font-size-3"> व्यसने नच मूर्खाणां निद्रया कलहेन वा ।।</span></b><br/><br/></p>
<div style="text-align: left;"><span class="font-size-3"> विश्व की किसी भी भाषा का सौंदर्य उसकी कविता में निहित है । प्राचीन काल में</span> <span class="font-size-3">शि</span><span class="font-size-3">क्षा का प्रचार-प्रसार कम होने के कारण काव्य-सृजन केवल कवित्व</span> <span class="font-size-3">श</span><span class="font-size-3">क्ति संपन्न प्रतिभावान महानुभावों द्वारा किया जाता था जो श्रवण परंपरा से छंद की लय व प्रवाह आत्मसात कर अपने सृजन में यथावत अभिव्यक्त कर पाते थे । वर्तमान काल में</span> <span class="font-size-3">शि</span><span class="font-size-3">क्षा का सर्वव्यापी प्रचार-प्रसार होने तथा भाषा या काव्य</span><span class="font-size-3">शा</span><span class="font-size-3">स्त्र से आजीविका के साधन न मिलने के कारण सामान्यतः अध्ययन काल में इनकी उपेक्षा की जाती है तथा कालांतर में काव्याकर्षण होने पर भाषा का व्याकरण- पिंगल समझे बिना छंदहीन तथा दोषपूर्ण काव्य रचनाकर आत्मतुष्टि पाल ली जाती है जिसका दुष्परिणाम आमजनों में कविता के प्रति अरुचि के रूप में दृष्टव्य है । काव्य के तत्वों रस, छंद, अलंकार आदि से संबंधित सामग्री व उदाहरण पूर्व प्रचलित भाषा / बोलियों में होने के कारण उनका आ</span><span class="font-size-3">श</span><span class="font-size-3">य हिंदी के वर्तमान रूप से परिचित छात्र पूरी तरह समझ नहीं पाते । प्राथमिक स्तर पर अंग्रेजी माध्यम से</span> <span class="font-size-3">शि</span><span class="font-size-3">क्षा के चलन ने हिंदी की समझ और घटायी है । </span></div>
<p><br/><span class="font-size-3">छंद विषयक चर्चा के पूर्व हिंदी भाषा की आरंभिक जानकारी दोहरा लेना लाभप्रद होगा । </span></p>
<p><span class="font-size-3"><strong><span style="color: #ff0c67;">भाषा :</span></strong></span><br/> <span class="font-size-3"> अनुभूतियों से उत्पन्न भावों को अभिव्यक्त करने के लिए भंगिमाओं या ध्वनियों की आवश्यकता होती है</span><span class="font-size-3">।</span> <span class="font-size-3">भंगिमाओं से नृत्य, नाट्य, चित्र आदि कलाओं का विकास हुआ</span><span class="font-size-3">।</span> <span class="font-size-3">ध्वनि से भाषा, वादन एवं गायन कलाओं का जन्म हुआ</span><span class="font-size-3">।</span><br/> <br/> <span class="font-size-3"><strong><span style="color: #9c0c67;"> <b><span style="color: #ff6600;">चित्र गुप्त ज्यों चित्त का, बसा आप में आप</span></b></span></strong><b><span style="color: #ff6600;">।</span></b></span><b><span style="color: #ff6600;"><br/></span> <span style="color: #ff6600;"><span class="font-size-3"><strong> </strong> भाषा <strong>सलिला निरंतर करे अनाहद जाप</strong>।।</span></span></b><br/> <br/> <span class="font-size-3">भाषा वह साधन है जिससे हम अपने भाव एवं विचार अन्य लोगों तक पहुँचा पाते हैं अथवा अन्यों के भाव और विचार गृहण कर पाते हैं</span><span class="font-size-3">।</span> <span class="font-size-3">यह आदान-प्रदान वाणी के माध्यम से (मौखिक) या लेखनी के द्वारा (लिखित) होता है</span><span class="font-size-3">।</span><br/> <br/> <span style="color: #ff6600;" class="font-size-3"><strong>निर्विकार अक्षर रहे मौन, शांत निः शब्द</strong><b>।</b> <strong><br/> भाषा वाहक भाव की, माध्यम हैं लिपि-शब्द</strong> <b>।<strong> </strong>।</b></span> <br/> <br/> <span class="font-size-3"><strong><span style="color: #ff0c67;">व्याकरण ( ग्रामर ) -</span></strong></span> <br/> <br/> <span class="font-size-3">व्याकरण ( वि + आ + करण ) का अर्थ भली-भाँति समझना है. व्याकरण भाषा के शुद्ध एवं परिष्कृत रूप सम्बन्धी नियमोपनियमों का संग्रह है</span><span class="font-size-3">।</span> <span class="font-size-3">भाषा के समुचित ज्ञान हेतु <b>वर्ण विचार</b> (ओर्थोग्राफी) अर्थात वर्णों (अक्षरों) के आकार, उच्चारण, भेद, संधि आदि, <b>शब्द विचार</b> (एटीमोलोजी) याने शब्दों के भेद, उनकी व्युत्पत्ति एवं रूप परिवर्तन आदि तथा <b>वाक्य विचार</b> (सिंटेक्स) अर्थात वाक्यों के भेद, रचना और वाक्य विश्लेष्ण को जानना आवश्यक है</span><span class="font-size-3">।</span><br/> <br/></p>
<div style="text-align: center; color: #ff6600;"><b><span class="font-size-3"><strong>वर्ण शब्द संग वाक्य का, कविगण करें विचार</strong></span><span class="font-size-3">।</span><span class="font-size-3"><strong><br/> तभी पा सकें वे 'सलिल', भाषा पर अधिकार</strong></span><span class="font-size-3">।</span><span class="font-size-3">।</span></b></div>
<p><br/> <span class="font-size-3"><strong><span style="color: #ff0c67;">वर्ण / अक्षर :</span></strong></span> <br/> <br/> <span class="font-size-3">वर्ण के दो प्रकार स्वर (वोवेल्स) तथा व्यंजन (कोंसोनेंट्स) हैं</span><span class="font-size-3">।</span><br/> <br/></p>
<div style="text-align: center; color: #ff6600;"><b><span class="font-size-3"><strong>अजर अमर अक्षर अजित, ध्वनि कहलाती वर्ण</strong></span><span class="font-size-3">।</span><br/> <span class="font-size-3"><strong>स्वर-व्यंजन दो रूप बिन, हो अभिव्यक्ति विवर्ण</strong></span><span class="font-size-3">।</span><span class="font-size-3">।</span></b></div>
<p><br/> <span class="font-size-3"><strong><span style="color: #ff0c67;">स्वर ( वोवेल्स ) :</span></strong></span><br/> <br/> <span class="font-size-3">स्वर वह मूल ध्वनि है जिसे विभाजित नहीं किया जा सकता. वह अक्षर है</span><span class="font-size-3">।</span> <span class="font-size-3">स्वर के उच्चारण में अन्य वर्णों की सहायता की आवश्यकता नहीं होती</span><span class="font-size-3">।</span> <span class="font-size-3">यथा - अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ ए, ऐ, ओ, औ, अं, अ:. स्वर के दो प्रकार १. हृस्व ( अ, इ, उ, ऋ ) तथा दीर्घ ( आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अ: ) हैं</span><span class="font-size-3">।</span> <br/> <br/></p>
<div style="text-align: center; color: #ff6600;"><b><span class="font-size-3"><strong>अ, इ, उ, ऋ हृस्व स्वर, शेष दीर्घ पहचान</strong></span><span class="font-size-3">।</span><br/> <span class="font-size-3"><strong>मिलें हृस्व से हृस्व स्वर, उन्हें दीर्घ ले मान</strong></span><span class="font-size-3">।</span><span class="font-size-3">।</span></b></div>
<p><br/> <span class="font-size-3"><strong><span style="color: #ff0c67;">व्यंजन (कांसोनेंट्स) :</span></strong></span> <br/> <br/> <span class="font-size-3">व्यंजन वे वर्ण हैं जो स्वर की सहायता के बिना नहीं बोले जा सकते</span><span class="font-size-3">।</span> <span class="font-size-3">व्यंजनों के चार प्रकार १. स्पर्श (क वर्ग - क, ख, ग, घ, ङ्), (च वर्ग - च, छ, ज, झ, ञ्.), (ट वर्ग - ट, ठ, ड, ढ, ण्), (त वर्ग त, थ, द, ढ, न), (प वर्ग - प,फ, ब, भ, म) २. अन्तस्थ (य वर्ग - य, र, ल, व्, श), ३. (उष्म - श, ष, स ह) तथा ४. (संयुक्त - क्ष, त्र, ज्ञ) हैं</span><span class="font-size-3">।</span> <span class="font-size-3">अनुस्वार (अं) तथा विसर्ग (अ:) भी व्यंजन हैं</span><span class="font-size-3">।</span><br/> <br/></p>
<div style="text-align: center; color: #ff6600;"><b><span class="font-size-3"><strong>भाषा में रस घोलते, व्यंजन भरते भाव</strong></span><span class="font-size-3">।</span><br/> <span class="font-size-3"><strong>कर अपूर्ण को पूर्ण वे मेटें सकल अभाव</strong></span><span class="font-size-3">।</span><span class="font-size-3">।</span></b></div>
<p><br/> <span class="font-size-3"><strong><span style="color: #ff0c67;">शब्द :</span></strong></span><span class="font-size-3"><strong><br/></strong></span></p>
<p><span class="font-size-3"><strong> <span style="color: #ff6600;">अक्षर मिलकर शब्द बन, हमें बताते अर्थ</span></strong></span><span style="color: #ff6600;" class="font-size-3">।</span><br style="color: #ff6600;"/></p>
<div style="text-align: center; color: #ff6600;"><span class="font-size-3"><strong>मिलकर रहें न जो 'सलिल', उनका जीवन व्यर्थ</strong></span><span class="font-size-3">।</span><span class="font-size-3">।</span></div>
<p><br/> <span class="font-size-3">अक्षरों का ऐसा समूह जिससे किसी अर्थ की प्रतीति हो शब्द कहलाता है</span><span class="font-size-3">।</span> <span class="font-size-3">यह भाषा का मूल तत्व है</span><span class="font-size-3">।</span> <span class="font-size-3">शब्द के निम्न प्रकार हैं-</span></p>
<p><span class="font-size-3">१. <b>अर्थ की दृष्टि से</b> : <b><br/></b></span></p>
<p><span class="font-size-3"><b><span style="color: #cc0000;">सार्थक शब्द</span> :</b> जिनसे अर्थ ज्ञात हो यथा - कलम, कविता आदि एवं <br/></span></p>
<p><span style="color: #cc0000;" class="font-size-3"><b>निरर्थक</b></span> <span class="font-size-3"><b><span style="color: #cc0000;">शब्द</span> :</b></span> <span class="font-size-3">जिनसे किसी अर्थ की प्रतीति न हो यथा - अगड़म बगड़म आदि</span> <span class="font-size-3">।</span></p>
<p><span class="font-size-3">२. <b>व्युत्पत्ति (बनावट) की दृष्टि से</b> : <b><br/></b></span></p>
<p><span style="color: #cc0000;" class="font-size-3"><b>रूढ़</b></span> <span class="font-size-3"><b><span style="color: #cc0000;">शब्द</span> :</b></span> <span class="font-size-3">स्वतंत्र शब्द - यथा भारत, युवा, आया आदि</span> <span class="font-size-3">।</span></p>
<p><span style="color: #cc0000;" class="font-size-3"><b>यौगिक</b></span> <span class="font-size-3"><b><span style="color: #cc0000;">शब्द</span> :</b></span> <span class="font-size-3">दो या अधिक शब्दों से मिलकर बने शब्द जो पृथक किए जा सकें यथा - गणवेश, छात्रावास, घोडागाडी आदि एवं <b><br/></b></span></p>
<p><span style="color: #cc0000;" class="font-size-3"><b>योगरूढ़ </b></span><span class="font-size-3"><b><span style="color: #cc0000;">शब्द</span> :</b></span> <span class="font-size-3">जो दो शब्दों के मेल से बनते हैं पर किसी अन्य अर्थ का बोध कराते हैं यथा - दश + आनन = दशानन = रावण, चार + पाई = चारपाई = खाट आदि</span> <span class="font-size-3">।</span></p>
<p><span class="font-size-3">३. <b>स्रोत या व्युत्पत्ति के आधार पर</b>: <b><br/></b></span></p>
<p><span style="color: #cc0000;" class="font-size-3"><b>तत्सम</b></span> <span class="font-size-3"><b><span style="color: #cc0000;">शब्द</span> :</b></span> <span class="font-size-3">मूलतः संस्कृत शब्द जो हिन्दी में यथावत प्रयोग होते हैं यथा - अम्बुज, उत्कर्ष आदि</span><span class="font-size-3">।</span></p>
<p><span style="color: #cc0000;" class="font-size-3"><b>तद्भव</b></span> <span class="font-size-3"><b><span style="color: #cc0000;">शब्द</span> :</b></span> <span class="font-size-3">संस्कृत से उद्भूत शब्द जिनका परिवर्तित रूप हिन्दी में प्रयोग किया जाता है यथा - निद्रा से नींद, छिद्र से छेद, अर्ध से आधा, अग्नि से आग आदि</span><span class="font-size-3">।</span></p>
<p><span style="color: #cc0000;" class="font-size-3"><b>अनुकरण वाचक</b></span> <span class="font-size-3"><b><span style="color: #cc0000;">शब्द</span> :</b></span> <span class="font-size-3">विविध ध्वनियों के आधार पर कल्पित शब्द यथा - घोड़े की आवाज से हिनहिनाना, बिल्ली के बोलने से म्याऊँ आदि</span><span class="font-size-3">।</span></p>
<p><span style="color: #cc0000;" class="font-size-3"><b>देशज</b></span> <span class="font-size-3"><b><span style="color: #cc0000;">शब्द</span> :</b></span> <span class="font-size-3">आदिवासियों अथवा प्रांतीय भाषाओँ से लिये गये शब्द जिनकी उत्पत्ति का स्रोत अज्ञात है यथा - खिड़की, कुल्हड़ आदि</span><span class="font-size-3">।</span></p>
<p><span style="color: #cc0000;" class="font-size-3"><b>विदेशी</b></span> <span class="font-size-3"><b><span style="color: #cc0000;">शब्द</span> :</b></span> <span class="font-size-3">संस्कृत के अलावा अन्य भाषाओँ से लिये गये शब्द जो हिन्दी में जैसे के तैसे प्रयोग होते हैं</span><span class="font-size-3">।</span> <span class="font-size-3">यथा - अरबी से - कानून, फकीर, औरत आदि, अंग्रेजी से - स्टेशन, स्कूल, ऑफिस आदि</span><span class="font-size-3">।</span> <span class="font-size-3"><br/></span></p>
<p><span class="font-size-3">४. <b>प्रयोग के आधार पर</b>: <b><br/></b></span></p>
<p><span style="color: #cc0000;" class="font-size-3"><b>विकारी</b></span> <span class="font-size-3"><b><span style="color: #cc0000;">शब्द</span> :</b></span> <span class="font-size-3">वे शब्द जिनमें संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया या विशेषण के रूप में प्रयोग किये जाने पर लिंग, वचन एवं कारक के आधार पर परिवर्तन होता है</span><span class="font-size-3">।</span> <span class="font-size-3">यथा - लड़का, लड़के, लड़कों, लड़कपन, अच्छा, अच्छे, अच्छी, अच्छाइयाँ आदि</span><span class="font-size-3">।</span> <span class="font-size-3"><b><br/></b></span></p>
<p><span style="color: #cc0000;" class="font-size-3"><b>अविकारी</b></span><span class="font-size-3"><b><span style="color: #cc0000;">शब्द</span> :</b></span> <span class="font-size-3">वे शब्द जिनके रूप में कोई परिवर्तन नहीं होता</span><span class="font-size-3">।</span> <span class="font-size-3">इन्हें अव्यय कहते हैं</span><span class="font-size-3">।</span> <span class="font-size-3">यथा - यहाँ, कहाँ, जब, तब, अवश्य, कम, बहुत, सामने, किंतु, आहा, अरे आदि</span><span class="font-size-3">।</span><span class="font-size-3"> </span><span class="font-size-3"> </span> <span class="font-size-3">इनके प्रकार क्रिया विशेषण, सम्बन्ध सूचक, समुच्चय बोधक तथा विस्मयादि बोधक हैं</span><span class="font-size-3">।</span></p>
<div style="text-align: center;"><div style="text-align: center;"><span style="color: #ff6600;" class="font-size-3"><strong>नदियों से जल ग्रहणकर, सागर करे किलोल</strong>।</span><br style="color: #ff6600;"/><span style="color: #ff6600;" class="font-size-3"><strong>विविध स्रोत से शब्द ले, भाषा हो अनमोल</strong>।।</span></div>
</div>
<p><span class="font-size-3"><br/></span></p>
<p><span class="font-size-3"><b style="color: #ff0000;">कविता के तत्वः</b> <br/></span></p>
<p><span class="font-size-3">कविता के 2 तत्व <b>बाह्य तत्व</b> (लय, छंद योजना,</span> <span class="font-size-3">श</span><span class="font-size-3">ब्द योजना, अलंकार, तुक आदि) तथा <b>आंतरिक तत्व</b> (भाव, रस, अनुभूति आदि) हैं ।</span><br/><br/><b style="color: #ff0000;"><span class="font-size-4">कविता के बाह्य तत्वः</span></b></p>
<p><span class="font-size-3"><strong style="color: #ff0000;">लयः</strong></span></p>
<p><span class="font-size-3"> भाषा के उतार-चढ़ाव, विराम आदि के योग से लय बनती है । कविता में लय के लिये गद्य से कुछ हटकर</span> <span class="font-size-3">श</span><span class="font-size-3">ब्दों का क्रम संयोजन इस प्रकार करना होता है कि वांछित अर्थ की अभिव्यक्ति भी हो सके । </span></p>
<p><br/><span class="font-size-3"><strong style="color: #ff0000;">छंदः</strong></span></p>
<p><span class="font-size-3"> मात्रा, वर्ण, विराम, गति, लय तथा तुक (समान उच्चारण) आदि के व्यवस्थित सामंजस्य को छंद कहते हैं । छंदबद्ध कविता सहजता से स्मरणीय, अधिक प्रभाव</span><span class="font-size-3">शा</span><span class="font-size-3">ली</span> <span class="font-size-3">व</span> <span class="font-size-3">हृदयग्राही होती है । छंद के 2 मुख्य प्रकार <b>मात्रिक</b> (जिनमें मात्राओं की संख्या निश्चित रहती है) तथा <b>वर्णिक</b> (जिनमें वर्णों की संख्या</span> <span class="font-size-3">निश्चित</span> <span class="font-size-3">तथा गणों के आधार पर होती है) हैं । छंद के असंख्य उपप्रकार हैं जो ध्वनि विज्ञान तथा गणितीय समुच्चय-अव्यय पर आधृत हैं ।</span><br/><br/><strong style="color: #ff0000;"><span class="font-size-3">श</span></strong><span style="color: #ff0000;" class="font-size-3"><strong>ब्दयोजनाः</strong> </span></p>
<p><span class="font-size-3"> कविता में</span> <span class="font-size-3">श</span><span class="font-size-3">ब्दों का चयन विषय के अनुरूप, सजगता, कु</span><span class="font-size-3">श</span><span class="font-size-3">लता से इस प्रकार किया जाता है कि भाव, प्रवाह तथा गेयता से कविता के सौंदर्य में वृद्धि हो ।</span><br/><br/><span class="font-size-3"><strong style="color: #ff0000;">तुकः</strong></span></p>
<p><span class="font-size-3"> काव्य पंक्तियों में अंतिम वर्ण तथा ध्वनि में समानता को तुक कहते हैं । अतुकांत कविता में यह तत्व नहीं होता । मुक्तिका या ग़ज़ल में तुक के 2 प्रकार</span> <span class="font-size-3">तुकांत</span> <span class="font-size-3">व </span> <span class="font-size-3">पदांत होते हैं जिन्हें उर्दू में क़ाफि़या व रदीफ़ कहते हैं । </span> <br/><br/><span class="font-size-3"><strong style="color: #ff0000;">अलंकारः</strong></span></p>
<p><span class="font-size-3"> अलंकार से कविता की सौंदर्य-वृद्धि होती है और वह अधिक चित्ताकर्षक प्रतीत होती है । अलंकार की न्यूनता या अधिकता दोनों काव्य दोष माने गये हैं । अलंकार के 2 मुख्य प्रकार</span> <span class="font-size-3">श</span><span class="font-size-3">ब्दालंकार व अर्थालंकार तथा अनेक भेद-उपभेद हैं ।</span><br/><br/><b style="color: #ff0000;"><span class="font-size-4">कविता के आंतरिक तत्वः</span></b></p>
<p><br/><span class="font-size-3"><strong style="color: #ff0000;">रस:</strong></span></p>
<p><span class="font-size-3"> कविता को पढ़ने या सुनने से जो अनुभूति (आनंद, दुःख, हास्य, शांति आदि) होती है उसे रस कहते हैं । रस को कविता की आत्मा (रसात्मकं वाक्यं काव्यं), ब्रम्हानंद सहोदर आदि कहा गया है । यदि कविता पाठक को उस रस की अनुभूति करा सके जो कवि को कविता करते समय हुई थी तो वह सफल कविता कही जाती है । रस के 9 प्रकार श्रृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, भयानक, वीर, वीभत्स, शांत तथा अद्भुत हैं । कुछ विद्वान वात्सल्य को दसवां रस मानते हैं ।</span><br/><br/><span class="font-size-3"><strong style="color: #ff0000;">अनुभूतिः</strong></span></p>
<p><span class="font-size-3"> गद्य की अपेक्षा पद्य अधिक हृद्स्पर्शी होता है चूंकि कविता में अनुभूति की तीव्रता अधिक होती है इसलिए कहा गया है कि गद्य मस्तिष्क को शांति देता है कविता हृदय को ।</span><br/><br/><span class="font-size-3"><strong style="color: #ff0000;">भावः</strong></span></p>
<p><span class="font-size-3"> रस की अनुभूति करानेवाले कारक को भाव कहते हैं । हर रस</span> <span class="font-size-3">के</span> <span class="font-size-3">अलग-अलग स्थायी भाव इस प्रकार हैं । श्रृंगार-रति, हास्य-हास्य, करुण-</span><span class="font-size-3">शो</span><span class="font-size-3">क, रौद्र-क्रोध, भयानक-भय, वीर-उत्साह, वीभत्स-जुगुप्सा/घृणा, शांत-निर्वेद/वैराग्य, अद्भुत-विस्मय तथा वात्सल्य-ममता ।</span><br/><br/> <span class="font-size-3">इन प्रसंगों पर पाठकों से जानकारियाँ और जिज्ञासाएँ आमंत्रित हैं। इस आधारभूत प्राथमिक जानकारी के पश्चात् आगामी सत्र में किस प्रसंग पर हो? सुझाइए।</span></p>
<p> ******************</p>