Featured Discussions - Open Books Online2024-03-28T18:16:44Zhttp://openbooks.ning.com/group/Pustak_samiksha/forum/topic/list?feed=yes&xn_auth=no&featured=1''परों को खोलते हुए'' की काव्यात्मक समीक्षा....................आदित्य चतुर्वेदी........समीक्षकtag:openbooks.ning.com,2013-11-07:5170231:Topic:4677552013-11-07T05:02:54.328Zaditya chaturvedihttp://openbooks.ning.com/profile/adityachaturvedi
<p>''परों को खोलते हुए'' की काव्यात्मक समीक्षा....................आदित्य चतुर्वेदी........समीक्षक</p>
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<p><br></br>देखिए तीस परों को खोलते हुए<br></br>अक्षर-अक्षर को स्वयं से, तोलते हुए<br></br>कह गए ये दर्द सारा, इस जहां का,<br></br>ओ0बी0ओ0 आकाश में खुद डोलते हए।।</p>
<p><br></br>//2//</p>
<p><br></br>पीत पट की लालिमा मुख पृष्ठ की<br></br>हो प्रमुख यह द्वार ज्यों नवसृ-िष्ट की<br></br>रच दिया लम्बा वितान साहित्य का<br></br>सोच मौलिक चिर निरन्तन दृ-िष्ट की।।</p>
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<p><br></br>पन्द्रह रत्नों में…</p>
<p>''परों को खोलते हुए'' की काव्यात्मक समीक्षा....................आदित्य चतुर्वेदी........समीक्षक</p>
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<p><br/>देखिए तीस परों को खोलते हुए<br/>अक्षर-अक्षर को स्वयं से, तोलते हुए<br/>कह गए ये दर्द सारा, इस जहां का,<br/>ओ0बी0ओ0 आकाश में खुद डोलते हए।।</p>
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<p><br/>पीत पट की लालिमा मुख पृष्ठ की<br/>हो प्रमुख यह द्वार ज्यों नवसृ-िष्ट की<br/>रच दिया लम्बा वितान साहित्य का<br/>सोच मौलिक चिर निरन्तन दृ-िष्ट की।।</p>
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<p><br/>पन्द्रह रत्नों में प्रथम काव्यारत्न हैं अरूण<br/>सप्त रचनाओं का किया जिसने वरण<br/>'सावन' 'मेरूदण्ड' 'जीवन' 'मन की छुवन'<br/>'कूप' के 'रिश्तों' , तरफ बढ़ते चरण।।</p>
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<p>//4//</p>
<p><br/>'कैसे कहता' 'प्रेम' में 'बची' हुई 'कविता'<br/>अन्तर्मन संवाद की कहती है सरिता<br/>'बीमार पीढ़ी' साथ में 'क्षमा करें'<br/>जो स्वयं से अंजान दिखती अरूण सविता।।</p>
<p></p>
<p>//5//</p>
<p><br/>साहित्य 'पथिक' ये मॉरिशस की बाला हैं<br/>'चांद' 'प्रकृति' की ''त्रुटि', तपन की ज्वाला हैं'<br/>'अपने को ढूंढों' अपने अन्तर्मन में <br/>शब्दों-शब्दों की व्यथा, गजब कह डाला है।।</p>
<p></p>
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<p><br/>'मैं हूं मौन' मौन है के0पी 'सत्ता सार' के गलियारे से<br/>'बेरोजगार' हो गई भावना, 'दंगा' दूध' किनारे से<br/>वो 'मासूम सा बच्चा' 'अलगाववादी' चक्राे में<br/>धन्य हो गई रचना तेरी, हम तो जिए इशारे से।।</p>
<p></p>
<p>//7//</p>
<p><br/>'सुनो तुम' गीतिका 'देर हो रही', मंजिल तुमसे दूर नहीं<br/>'तुम्हारे कंधे' बंधी निराशा, खुद से तुम मजबूर नहीं<br/>सजग लेखनी तुम्हें पुकारे मन का पीर अक्षर बन जाये<br/>'सत्य सार' 'सदियों' से कहती है बात, पर गुरूर नही।।</p>
<p></p>
<p>//8//</p>
<p><br/>धन्य हुए धर्मेन्द्र जी, 'सिस्टम' हुआ खराब<br/>'चमकीली रंगीन' का रंगत खुश्बो आब<br/>'लोक तंत्र के मेढक' 'तुम्हारी बारिश' के साये<br/>साधुवाद कविवर बाकी सब है हाय!........।।</p>
<p></p>
<p>//9//</p>
<p><br/>'लगता बसंत आ गया' फिर काहे 'दुर्भाग्य'<br/>प्रदीप 'स्पर्श उम्मीदों का' उदित हुआ सौभाग्य<br/>'इन्कलाब' 'जीवन-मृत्यु' स्वयं परचम 'शान्ति' का<br/>उत्तम रचना, श्रेष्ठ विचार बहा दिया बैराग्य।।</p>
<p></p>
<p>//10//</p>
<p><br/>प्राची के 'अनसुलझे प्रश्न' 'चंद शब्द' आ गये<br/>'अनछुआ चैतन्य' में छायावाद पा गये<br/>'देह बोध' 'जाने क्यों 'अनगिनत बातें कहीं<br/>छोड़ धरा उसी क्षण, आकाश में हम आ गये।।</p>
<p><br/>//11//</p>
<p><br/>'हांफता-कांपता सा दिख रहा था 'हाथी'<br/>'कुम्हार' की व्यथा को शब्द दे गये साथी<br/>'चिल्लाओ कि जिन्दा हो' जरूरत है बृजेश<br/>'सूरज' 'पत्थर' चांदनी शत-शत नमन है साथी।।</p>
<p></p>
<p>//12//</p>
<p><br/>महिमा 'प्रवंचनाएं' 'दोराहे पर लाती हैं<br/>'तुम स्त्री हो' बहुत कुछ कह जाती है<br/>'स्मृतियों' में 'अंतस का कोना' 'तुम्हारा मौन' नही<br/>'सर्द धरती' बुलंदी की मीनार नजर आती है।।</p>
<p></p>
<p>//13//</p>
<p><br/>'कांपते उर' 'चिरानन्द' वैचारिक नन्दन है<br/>'अंश हूं तुम्हारा' 'मां' का शत अभिनन्दन है<br/>'जिंदगी की राह' में 'द्वन्द' तो होते हैं<br/>लिखती रहो वन्दना, भविष्य का वन्दन है।।</p>
<p></p>
<p>//14//</p>
<p><br/>'बारिश की बूंदे' अतीत की यादें <br/>'घाव समय की' करती फरियादें<br/>'मौन पलने दो' यादें विजय की<br/>'रक्तधार' निजत्व की, पीड़ा की खादें।।</p>
<p></p>
<p>//15//</p>
<p></p>
<p>'निशा का नाश' अवश्य होता है<br/>शीतलता में तपन का सोता है<br/>व्यंग्य की धार 'पुरानी हवेली'<br/>लिखती है लेखनी कवि मन रोता है।।</p>
<p></p>
<p>//16//</p>
<p></p>
<p>'एक कील एक तस्वीर' का एहसास है<br/>शरदिन्दु की रचना उत्तम और खास है<br/>'आशंका' 'औकात' की 'तस्वीर' क्या कहने<br/>'जन्मदिन' प्रवम्य पुस्तक की बिग बॉस है।।</p>
<p></p>
<p>//17//</p>
<p><br/>'अनगढ़न सी इबारत' 'रात-दिन' लिखती है<br/>'आत्म-मुग्धा' शालिनी, प्रवाहमय कहती है<br/>गीतों का लालित्य दिखा मुक्त छन्द में<br/>उज्वल कवियत्री अभी से दिखती हैं।।</p>
<p></p>
<p>//18//</p>
<p><br/>सौरभ जी बधाई गुलदस्ते सजाएं है<br/>चुने हुए फूल साहित्य में जो लाए हैं<br/>शीर्षकों को जोडा आत्म कथ्य में मैंने<br/>क्षमा करना मुझे यदि हुई कुछ खताएं है।।</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
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<p></p>
<p>पुस्तक का नाम - परों को खोलते हुए<br/>सम्पादक- सौरभ पाण्डेय<br/>प्रकाशन- अंजुमन प्रकाशन, 942 आर्य कन्या चौराहा मुठ्ठीगंज, इलाहाबाद-211003<br/>पुस्तक का मूल्य- रू0 170.00</p> ''छन्द काव्यामृत"...-----------------.रचनाकार- डा0 आशुतोष बाजपेयीtag:openbooks.ning.com,2013-11-01:5170231:Topic:4660892013-11-01T16:14:45.716Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'http://openbooks.ning.com/profile/kewalprasad
<p>!!! पुस्तक समीक्षा !!!</p>
<p></p>
<p>''छन्द काव्यामृत".....</p>
<p></p>
<p>............पारंपरिक छन्द विधाओं का परिपालन करते हुए सरस, सहज और धारा प्रवाह विचार, बोधगम्य, जनकल्याणकारी, देश प्रेम से ओत-प्रोत भकित भाव में नत कुटिलताओं के विरूध्द चटटान की तरह अडिग और सशक्त अभिव्यकितयों के सशक्त हस्ताक्षर डा0 आशुतोष बाजपेयी जी ज्योतिषाचार्य होने के साथ ही साथ एक सहृदय सुकवि भी हैं। जब व्यकित स्वयं को समर्पण कर देता है तो उसका स्व, आत्मबोध रूप अहं नष्ट हो जाता है और वह परम सत्य को प्राप्त करने में…</p>
<p>!!! पुस्तक समीक्षा !!!</p>
<p></p>
<p>''छन्द काव्यामृत".....</p>
<p></p>
<p>............पारंपरिक छन्द विधाओं का परिपालन करते हुए सरस, सहज और धारा प्रवाह विचार, बोधगम्य, जनकल्याणकारी, देश प्रेम से ओत-प्रोत भकित भाव में नत कुटिलताओं के विरूध्द चटटान की तरह अडिग और सशक्त अभिव्यकितयों के सशक्त हस्ताक्षर डा0 आशुतोष बाजपेयी जी ज्योतिषाचार्य होने के साथ ही साथ एक सहृदय सुकवि भी हैं। जब व्यकित स्वयं को समर्पण कर देता है तो उसका स्व, आत्मबोध रूप अहं नष्ट हो जाता है और वह परम सत्य को प्राप्त करने में सफल भी हो जाता है। सुकवि डा0 आशुतोष बाजपेयी जी एक उत्कृष्ट और ओजस्वी छन्दकार के रूप में उभर कर हिन्दी के साहित्याकाश में दैदीप्यमान हुए हैं। आपने अपने सतत और लगनशील जिजीविषा से हिन्दी के छन्द विधाओं पर गहन अध्ययन किया है, चूंकि श्री बाजपेयी जी एक सफल ज्योतिषाचार्य भी है। इस कारण भी इनके छान्दसिक रस धारा में पवित्रता, रहस्य और लालित्य का पुट सर्वथा देखने को मिलता है। आपकी कृति छन्द काव्यामृत में मनहरण, घनाक्षरी छन्दों में प्राय: यदा कदा नवीन प्रयोग भी देखने को मिलते हैं। यहां एक विशेष बात कहना चाहूंगा कि आप मां शारदा के अनन्य भक्त होने के कारण भी छन्दों में जो समर्पण भावों का प्रतिपादन हुआ है, स्तुत्य योग्य है। सर्व मंगलकारी एवं भारतीय संस्कृति से ओत-प्रोत ओजस्वी भाषा में छन्दों की रचना बहुतायत से मिलती है। आप एक प्रेरणा स्रोत के रूप में नवोदित छन्दकारों को आकर्षित करने में सफल हुए हैं।</p>
<p></p>
<p>आपका विषय विशद और बहुआयामी होने के कारण आपने देश, धर्म, क्षेत्र और जाति वर्ण आदि अन्य विषम विषयों को चुना है। हर विषय क्षेत्र में आपकी साहित्य प्रेम का सूर्यकेतु आकाश मण्डल में फहरा रहा है। छन्द काव्यामृत.....घनाक्षरी खण्ड में कुल इकहत्तर छन्द और सवैया में कुल छत्तीस छन्दों का प्रतिपादन हुआ है। इस छन्द काव्यामृत में सृजनात्मक, परिमार्जनात्मक के प्रति विशेष ध्यान रखते हुए काव्य सौष्ठव का अदभुत संयोजन किया गया है। आपने तत्सम शब्दो का उल्लेख बड़ी ही सावधानी पूर्वक मात्रामैत्री और वर्णमैत्री में सामांजस्य बैठा कर ही प्रयोग किया है। सवैया छन्द को अभिव्यक्त करने में आपने कहीं भी मात्रापात के महास्त्र की बैसाखी का सहारा नहीं लिया।</p>
<p></p>
<p>घनाक्षरी खण्ड-1 में विविधताओं का सामंजस्य बडे़ ही विवेक से विषयपरक शैली मे धाराप्रवाह भावपूर्ण रचनाओं को संजोया है, जो इनके शिल्पकला का धोतक है। आइये आपकी विशिष्ठ शैलिपक विन्यास पर कुछ छन्दों का अमृतपान करते है-</p>
<p></p>
<p>"स्वर्णमेखला के साथ शुभ्रवस्त्र धारिणी मां, कर जोड़ दास हम सेवा में खड़े हुए।"</p>
<p></p>
<p>प्रस्तुत विनय में कवि ने स्वयं को अकिंचन दास की श्रेणी में रखकर एक पैर पर खड़े होकर सर्वकल्याणकारी सेवाओं में स्वयं को आहुति होने के लिए आग्रह करता है। अदभुत भाव--अतिसुन्दर है।</p>
<p></p>
<p>''कालजयी बन जाएं सभी रचनाएं मेरी, ख्यातिवान कालिदास व्यास सम कर दे''</p>
<p></p>
<p>आपकी लालित्यपूर्ण भाषा अपना प्रभाव तो जमाने के साथ ही साथ नम्र भाव अनन्ताकाश में फैलने को उत्साहित भी हो रही है। आपकी रचनात्मक शैली कर्म के प्रति कर्मठता और जागरूकता के साथ विश्वास की दृढ़ता भी लिए हुए है-</p>
<p></p>
<p>किन्तु है दायित्व कर्इ वर दो कि पूर्ण हों वे, रचूं कालजयी छन्द प्रीति न हो धन में।।</p>
<p></p>
<p>आपके मानस पौरूष में देश प्रेम की भावना तो कूट-कूट कर भरी हुर्इ है-</p>
<p></p>
<p>भ्रष्टाचारी आततायी त्रास दे रहें हैं नित्य, घोर ताड़ना व दण्ड उन्हें एक बार दे।</p>
<p></p>
<p>भारत की नाव फंसी आज है भंवर मध्य पतवार कृपा की लगा के उसे खेना मां।</p>
<p></p>
<p>जनकल्याणकारी कार्यो के हित मार्गो के प्रशसित हेतु आप हिय से अधीर होकर विकल स्वर में गाते है-</p>
<p></p>
<p>धर्म क्षेत्र में पतन देख है व्यथित मन, आसुरी प्रवृतितयों से ठान अब रार लो।<br/> मत्र में ही नही सभी दीन हैं पुकार रहे, आर्य भूमि शोधन को अम्ब अवतार लो।।<br/> ''दण्ड दे जो रावणों को ज्ञात नहीं कहां राम, आर्य धर्म रक्षणार्थ अम्ब अवतार लो''</p>
<p></p>
<p>साम्यवादी, आहिंसा के पुजारी और सहृदय कवि की परख है-</p>
<p></p>
<p>शकितयां अकूत संग साहस प्रभूत मिले, किन्तु कभी हृदय में क्रोध को न आने दो।</p>
<p></p>
<p>''प्रेरणा बनों करो सुधार मानसिकता का, अन्यथा विनाश मित्र निशिचत समाज का।''</p>
<p></p>
<p>हाड़ तोड़ श्रम करें फिर भी रूदन करें, सभी त्राहिमाम करें हाय! मंहगार्इ में।</p>
<p></p>
<p>आपका सदसाहित्य चिंतन और अथाह प्रेम अनायास ही पाठक के हृदय को झकझोर देता है-</p>
<p></p>
<p>''काव्य साधको की पथ बाधा बने ऐसे लोग, दम्भ मूढ़ वे विरोध करें छन्द का।''</p>
<p></p>
<p>और-मूढ़ बुधिद काव्य शास्त्र को न जानते परन्तु, धिक आधुनिक काव्य नियम बखानते।</p>
<p></p>
<p>आपकी देश प्रेम भावना तो सातवें आसमान पर चढ़कर शंखनाद कर रही है-</p>
<p></p>
<p>ऐसे नाटको से नष्ट होेगा नहीं उग्रवाद, सत्ताधीश मात्र स्वप्नलोक में पड़े हुए।</p>
<p></p>
<p>और-लेखनी व तलवार द्रोही धर्म का चलाए, उसे मृत्युदण्ड का विधान होना चाहिए।</p>
<p></p>
<p>''ओ रे अमरीका! अब खोल के नयन देख, धूर्त पाक की ये कैसी रक्त की पिपासा है।</p>
<p></p>
<p>हिन्दी साहित्य में वैचारिकता और गुरू-शिष्य की परम्परा को आगे बढ़ाने में उत्सुक अपनी व्यग्रता का यूं उल्लेख करते हैं-</p>
<p></p>
<p>हस्तयुग्म चौरदण्ड में बांट लिए जाएं, ले अंगुष्ठ शिष्य का बचाव करता हूं मैं।</p>
<p></p>
<p>रोक सके मेधा के पलायन को देश से जो, राष्टभाव युक्त सुनेतृत्व की तलाश है।</p>
<p></p>
<p>''लुप्त प्राय श्रवण कुमार हुए आज वहीं, धन का प्रभाव बढ़ा क्षीण हुर्इ ममता।''</p>
<p></p>
<p>छन्द काव्यामृत के खण्ड-2 में आपने सवैयों के माध्यम से नये-नये प्रतीक-प्रतिमानों का आज के भौतिक और वैज्ञानिक युग में भी कालजयी बिम्बो का सहज प्रयोग परिलक्षित होता है-</p>
<p></p>
<p>"धुनते सिर सज्जन है कितना सब पाप निरन्तर जोड़ रहे!"</p>
<p></p>
<p>बसुधा न कुटुम्ब रही अब तो, परिवार यहां जन तोड़ रहा।'</p>
<p></p>
<p>निज की पहचान करो तुम तो, तम नाशक वीर धनुर्धर हो।</p>
<p></p>
<p>सर्वधर्म समभाव से ओत-प्रोत सवैया-</p>
<p></p>
<p>''रूप व नाम न दे पहचान, जुनैद कहे खुद को अब भीमा।<br/> मूल्य पचास हजार तुले यह, जीवन हो न कहीं यदि बीमा।। ''</p>
<p></p>
<p>मन में न हुआ अहलाद कभी, मुझको डर मध्य कराह रही।<br/> किस भांति प्रसन्न करूं सबको, यह पीर अतीव अथाह रही।।</p>
<p></p>
<p>आप एक सिध्द ज्योतिषाचार्य होने के कारण छन्दों मे ज्यातिर्विज्ञान सम्बन्धी दिव्य ज्ञान की ज्योति से आपकी लेखनी अछूती नहीं रह सकी और दिव्य आलोक-प्रतिमान व सफल जीवन की रेखा को परिभाषित कर रही है-</p>
<p></p>
<p>बध्द परस्पर कण्ठ दिखे निज, द्वेष भुलाकर के हमजोली।</p>
<p></p>
<p>यथा शनि देव के लिए- रवि के तुम पुत्र यमाग्रज हो, नित न्याय प्रसार किया करते।</p>
<p></p>
<p>प्रज्वलितागिन नवान्न चढ़ा तब, खेल मनुष्य रहे सब होली।।</p>
<p></p>
<p>तिल तैल व दीपक पूजन से, जन दुष्ट कृपा तब हैं हरते।</p>
<p></p>
<p>गुरू-शिष्य की परंपरा को दृढ़ करते हुए सुकवि डा0 आशुतोष बाजपेयी ने स्वयं ही स्पष्ट किया है कि उन्हे वरिष्ठ साहित्यकारों का स्नेह और मार्गदर्शन मिला है, जिसके बिना यह छन्द काव्यामृत का संकलन प्रकाशन हो पाना असम्भव था। आप के साहित्यानुराग, कठिन परिश्रम और अपने चर्चित शब्दशिल्प विन्यास के कारण ही छन्दों में पूर्ण प्रवाह सहजता एवं सरसता विहित है। आशा करता हूं कि डा0 बाजपेयी जी की यह कृति छन्द काव्यामृत को विद्वानों द्वारा हर्ष से अंगीकार किया जायेगा तथा नवोदित छन्दकारों के लिए यह पुस्तक प्रेरणादायी सिध्द होगी। इसी के साथ मैं आदरणीय डा0 आशुतोष बाजपेयी जी को शुभकामनाओं सहित हार्दिक धन्यवाद व बधार्इ देता हूं। और आशा करता हूं कि आपका यह सफर अबाध्य गति से निरन्तर चलता रहेगा।</p>
<p></p>
<p>शुभ-शुभ......।</p>
<p></p>
<p>रचनाकार- डा0 आशुतोष बाजपेयी .....मो0 नं0-9335903222<br/> पुस्तक का मूल्य-रू0 150.00.....माण्डवी प्रकाशन, देहली गेट, गाजियाबाद, उ0प्र0</p>
<p></p>
<p>समीक्षाकार-के0पी0 सत्यम----मौलिक एवं अप्रकाशित</p>