"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-94 सभी ग़ज़लों का संकलन (चिन्हित मिसरों के साथ) - Open Books Online2024-03-28T17:35:21Zhttp://openbooks.ning.com/forum/topics/94-1?commentId=5170231%3AComment%3A929535&x=1&feed=yes&xn_auth=noजी मैंने भी एक गजल पोस्ट की थ…tag:openbooks.ning.com,2018-05-07:5170231:Comment:9295352018-05-07T07:00:06.406ZManan Kumar singhhttp://openbooks.ning.com/profile/MananKumarsingh
<p>जी मैंने भी एक गजल पोस्ट की थी। शायद संकलन के काबिल नहीं पाई गयी हो। </p>
<p>जी मैंने भी एक गजल पोस्ट की थी। शायद संकलन के काबिल नहीं पाई गयी हो। </p> किसी भी दिल में मुहब्बत मचल त…tag:openbooks.ning.com,2018-05-06:5170231:Comment:9294052018-05-06T10:08:19.760Zanjali guptahttp://openbooks.ning.com/profile/anjaligupta
किसी भी दिल में मुहब्बत मचल तो सकती हैं<br />
तपिश से शम'अ भी जिसकी पिघल तो सकती है<br />
<br />
ये माना हो न सकेगा कभी मिलन अपना<br />
उफ़क़ तलक तू मगर साथ चल तो सकती है<br />
<br />
तू रात भर हो मेरे पहलू में नहीं मुमकिन<br />
मेरे ख़यालों में ख्वाहिश ये पल तो सकती है<br />
<br />
किसी भी हाल में दिल की लगी नहीं बुझती<br />
वो आग है ये जो पानी से जल तो सकती है<br />
<br />
न साथ आस का तू छोड़ना किसी भी पल<br />
मिले ना छांव मगर धूप ढल तो सकती है<br />
--------------------------------------------------------<br />
आदरणीय संचालक महोदय , अंतिम शें'र का उला आपके द्वारा काटा गया है…
किसी भी दिल में मुहब्बत मचल तो सकती हैं<br />
तपिश से शम'अ भी जिसकी पिघल तो सकती है<br />
<br />
ये माना हो न सकेगा कभी मिलन अपना<br />
उफ़क़ तलक तू मगर साथ चल तो सकती है<br />
<br />
तू रात भर हो मेरे पहलू में नहीं मुमकिन<br />
मेरे ख़यालों में ख्वाहिश ये पल तो सकती है<br />
<br />
किसी भी हाल में दिल की लगी नहीं बुझती<br />
वो आग है ये जो पानी से जल तो सकती है<br />
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न साथ आस का तू छोड़ना किसी भी पल<br />
मिले ना छांव मगर धूप ढल तो सकती है<br />
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आदरणीय संचालक महोदय , अंतिम शें'र का उला आपके द्वारा काटा गया है जिसमे मैं गलती नहीं समझ पा रही हूँ<br />
कृपया मार्गदर्शन करें मैसेज बॉक्स में आपके सवाल का…tag:openbooks.ning.com,2018-05-02:5170231:Comment:9279262018-05-02T17:51:13.228ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>मैसेज बॉक्स में आपके सवाल का जवाब दिया है,संतुष्ट न हों तो प्रश्न करने में संकोच न करें ।</p>
<p>मैसेज बॉक्स में आपके सवाल का जवाब दिया है,संतुष्ट न हों तो प्रश्न करने में संकोच न करें ।</p> आदरनीय समर जी, बहुत शुक्रिया tag:openbooks.ning.com,2018-05-02:5170231:Comment:9276982018-05-02T14:16:32.185Zमोहन बेगोवालhttp://openbooks.ning.com/profile/DrMohanlal
<p>आदरनीय समर जी, बहुत शुक्रिया </p>
<p>आदरनीय समर जी, बहुत शुक्रिया </p> आदरणीय समर sir या कोई और गुणी…tag:openbooks.ning.com,2018-05-02:5170231:Comment:9279132018-05-02T08:15:52.190Zanjali guptahttp://openbooks.ning.com/profile/anjaligupta
आदरणीय समर sir या कोई और गुणीजन अगर मेरी सहायता कर सकें<br />
<br />
1.<br />
न साथ आस का तू छोड़ना किसी भी पल<br />
मिले न धूप मग़र छांव ढल तो सकती है<br />
इसके उला में मुझे गलती नहीं मिल पा रही। मुशायरे के दौरान भी इसकी तरफ कोई इशारा नहीं हुआ था। अभी ये कटा हुआ है।<br />
2.<br />
लकीरों में कभी नाकामियां भी होती हैं<br />
किसी मां की दुआ उनको बदल तो सकती है<br />
इसके सानी में भी गलती समझ नहीं आ रही। मुशायरे के दौरान भी इसकी ओर इशारा हुआ लेकिन गलती नहीं पता चल पा रही। माफ़ी चाहती हूँ<br />
सादर
आदरणीय समर sir या कोई और गुणीजन अगर मेरी सहायता कर सकें<br />
<br />
1.<br />
न साथ आस का तू छोड़ना किसी भी पल<br />
मिले न धूप मग़र छांव ढल तो सकती है<br />
इसके उला में मुझे गलती नहीं मिल पा रही। मुशायरे के दौरान भी इसकी तरफ कोई इशारा नहीं हुआ था। अभी ये कटा हुआ है।<br />
2.<br />
लकीरों में कभी नाकामियां भी होती हैं<br />
किसी मां की दुआ उनको बदल तो सकती है<br />
इसके सानी में भी गलती समझ नहीं आ रही। मुशायरे के दौरान भी इसकी ओर इशारा हुआ लेकिन गलती नहीं पता चल पा रही। माफ़ी चाहती हूँ<br />
सादर जी शुक्रिया समर sirtag:openbooks.ning.com,2018-05-02:5170231:Comment:9278572018-05-02T07:38:03.166Zanjali guptahttp://openbooks.ning.com/profile/anjaligupta
जी शुक्रिया समर sir
जी शुक्रिया समर sir अंजली गुप्ता जी,जो मिसरे आपके…tag:openbooks.ning.com,2018-05-02:5170231:Comment:9276862018-05-02T05:19:07.986ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>अंजली गुप्ता जी,जो मिसरे आपके दोषपूर्ण हैं,उन्हें दुरुस्त करने के बाद यहाँ लिख दें और संचालक महोदय से उन्हें बदलने का निवेदन करें ।</p>
<p>अंजली गुप्ता जी,जो मिसरे आपके दोषपूर्ण हैं,उन्हें दुरुस्त करने के बाद यहाँ लिख दें और संचालक महोदय से उन्हें बदलने का निवेदन करें ।</p> 'न ज़िन्दगी यूँ हमारे से दूर त…tag:openbooks.ning.com,2018-05-02:5170231:Comment:9276842018-05-02T05:15:49.644ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>'न ज़िन्दगी यूँ हमारे से दूर तू रहना</p>
<p>गई बिखर जो वो सँभल तो सकती है'</p>
<p>जनाब मोहन जी,ऊला मिसरे में व्याकरण सहीह नहीं है,और सानी मिसरा बह्र में नहीं है,इस शैर को यूँ कर सकते हैं :-</p>
<p>'ऐ ज़िन्दगी तू हमारे क़रीब ही रहना</p>
<p>कि लड़खड़ा के भी दुनिया सँभल तो सकती है'</p>
<p>'न ज़िन्दगी यूँ हमारे से दूर तू रहना</p>
<p>गई बिखर जो वो सँभल तो सकती है'</p>
<p>जनाब मोहन जी,ऊला मिसरे में व्याकरण सहीह नहीं है,और सानी मिसरा बह्र में नहीं है,इस शैर को यूँ कर सकते हैं :-</p>
<p>'ऐ ज़िन्दगी तू हमारे क़रीब ही रहना</p>
<p>कि लड़खड़ा के भी दुनिया सँभल तो सकती है'</p> आदरणीय मुझे अभी नियम कायदे पत…tag:openbooks.ning.com,2018-05-01:5170231:Comment:9276032018-05-01T17:44:06.702Zanjali guptahttp://openbooks.ning.com/profile/anjaligupta
आदरणीय मुझे अभी नियम कायदे पता नहीं हैं। कृपया बताएं इन त्रुटियों का सुधार किस प्रकार किया जा सकता है और कब तक
आदरणीय मुझे अभी नियम कायदे पता नहीं हैं। कृपया बताएं इन त्रुटियों का सुधार किस प्रकार किया जा सकता है और कब तक आपकी मेहनत को तहेदिल से सलाम…tag:openbooks.ning.com,2018-04-30:5170231:Comment:9274582018-04-30T11:02:31.164Zsurender insanhttp://openbooks.ning.com/profile/surenderinsan
<p>आपकी मेहनत को तहेदिल से सलाम करता हूं । बहुत बहुत बधाई हो जी । संकलन में मेरी ग़ज़ल को जगह देने के लिए बहुत बहुत आभार जी।</p>
<p>आपकी मेहनत को तहेदिल से सलाम करता हूं । बहुत बहुत बधाई हो जी । संकलन में मेरी ग़ज़ल को जगह देने के लिए बहुत बहुत आभार जी।</p>