"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-87 (विषय: मार्गदर्शन) - Open Books Online2024-04-10T06:22:42Zhttp://openbooks.ning.com/forum/topics/87-3?commentId=5170231%3AComment%3A1086233&xg_source=activity&feed=yes&xn_auth=noकथ्य में उलझी हुई है, लघुक…tag:openbooks.ning.com,2022-06-30:5170231:Comment:10862332022-06-30T18:02:00.583ZChetan Prakashhttp://openbooks.ning.com/profile/ChetanPrakash68
<p>कथ्य में उलझी हुई है, लघुकथा । पिता की उलझन अथवा ऊहापोह भी निरर्थक प्रतीत हुई । </p>
<p>कथ्य में उलझी हुई है, लघुकथा । पिता की उलझन अथवा ऊहापोह भी निरर्थक प्रतीत हुई । </p> विषय से हटकर किन्तु अगीत क…tag:openbooks.ning.com,2022-06-30:5170231:Comment:10862322022-06-30T17:56:54.924ZChetan Prakashhttp://openbooks.ning.com/profile/ChetanPrakash68
<p>विषय से हटकर किन्तु अगीत काव्य सा लगी , प्रस्तुति !</p>
<p>विषय से हटकर किन्तु अगीत काव्य सा लगी , प्रस्तुति !</p> बाई ड…tag:openbooks.ning.com,2022-06-30:5170231:Comment:10862292022-06-30T17:40:52.243ZChetan Prakashhttp://openbooks.ning.com/profile/ChetanPrakash68
<p> बाई डिफाल्ट </p>
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<p>कालेज के तीन पहलवान-- बलवान सिंह, हरकेश और दिनेश कुमार विश्विद्यालय की टीम में थे । तीनों हेवी वेट वर्ग ( नब्बे किलो) के पहलवान थे। कालेज कोच डाँगे साहब को अपने तीनों पहलवानों पर गर्व था । लेकिन उन्हें बलवान सिंह बहुत प्रिय था ! अन्तरविश्वविद्यालय कुश्ती प्रतियोगिता में तो एक ही पहलवान जा सकता था । सो उन्हें विश्वविद्यालय कोच की राय माननी पड़ी। अब तीनों पहलवानों को आपस में कुश्ती कराकर सर्वश्रेष्ठ का चयन करना था । डाँगे…</p>
<p> बाई डिफाल्ट </p>
<p></p>
<p>कालेज के तीन पहलवान-- बलवान सिंह, हरकेश और दिनेश कुमार विश्विद्यालय की टीम में थे । तीनों हेवी वेट वर्ग ( नब्बे किलो) के पहलवान थे। कालेज कोच डाँगे साहब को अपने तीनों पहलवानों पर गर्व था । लेकिन उन्हें बलवान सिंह बहुत प्रिय था ! अन्तरविश्वविद्यालय कुश्ती प्रतियोगिता में तो एक ही पहलवान जा सकता था । सो उन्हें विश्वविद्यालय कोच की राय माननी पड़ी। अब तीनों पहलवानों को आपस में कुश्ती कराकर सर्वश्रेष्ठ का चयन करना था । डाँगे साहब ने पहलवानों को सूचित किया कि शाम छह बजे उनको चयन हेतु कालेज अखाड़े पर पहुँचना था । उन्होंने हरकेश और दिनेश कुमार पहलवान को चयनित पहलवान हेतु बाजार से किट का प्रबंध करने और दोपहर का खाना बाजार में ही खाकर शाम को समय से चयन हेतु कालेज के अखाड़े पर उपलब्ध होने का निर्देश दिया और दो हजार का नोट हरकेश पहलवान को आवश्यक प्रबंध हेतु पकड़ा दिया। दोनों पहलवानों को बाँछें खिल गईं। ग्रामीण पृष्ठभूमि के दोनों पहलवान मिठाई, केले, चीकू और मन पसंद दोपहर का भोजन कर और सस्ती सी किट लेकर ऊँघते-सुस्ताते बड़ी मुश्किल से साढ़े छह बजे कालेज अखाड़े पर पहुँचे। </p>
<p> डाँगे साहब तो पहले से ही तैयार थे । उन्होंने दोनों का वजन कराया जो नब्बे किलोग्राम से काफी अधिक था । अत: उनका पहलवान बलवान सिंह ही सही वजन का निकला। और, वही अन्तरविश्वविद्यालय कुश्ती प्रतियोगिता ही चुन लिया गया। </p>
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<p>मौलिक व अप्रकाशित </p> गद्य में काव्य की अनुभूति हो…tag:openbooks.ning.com,2022-06-30:5170231:Comment:10860812022-06-30T17:36:35.678Zvibha rani shrivastavahttp://openbooks.ning.com/profile/vibharanishrivastava
गद्य में काव्य की अनुभूति हो रही है...
गद्य में काव्य की अनुभूति हो रही है... बन्धु का तो पता नहीं... मेरी…tag:openbooks.ning.com,2022-06-30:5170231:Comment:10859962022-06-30T17:34:21.576Zvibha rani shrivastavahttp://openbooks.ning.com/profile/vibharanishrivastava
बन्धु का तो पता नहीं... मेरी कोशिश
बन्धु का तो पता नहीं... मेरी कोशिश 'मार्गदर्शन'
विभा रानी श्रीवा…tag:openbooks.ning.com,2022-06-30:5170231:Comment:10862262022-06-30T17:33:29.524Zvibha rani shrivastavahttp://openbooks.ning.com/profile/vibharanishrivastava
'मार्गदर्शन'<br />
विभा रानी श्रीवास्तव<br />
"आप क्या सोच रहे हैं पिताजी?"पिता को बड़े गम्भीर मुद्रा में घर के बाहर बैठा देखकर पुत्र ने पूछा।<br />
"देखिए काले बादल ने रवि को छुपाकर दिन को ही रात में बदल डाला है। घर के अन्दर चलकर बातें करते हैं। आप मुझे बताएँ कि आख़िर क्या बात है?" पुत्र ने पुनः पूछा।<br />
"तुम्हारी माँ को किसी संस्था ने वाचस्पति पुरस्कार देने की बात किया है..," पिता ने कहा।<br />
"अरे वाह! यह तो बेहद हर्ष और गर्व की बात है। और आप हैं कि यूँ चिंताग्रस्त बैठे हैं कि न जाने कौन सी बड़ी आपदा आन पड़ी। कोई पकी फसल…
'मार्गदर्शन'<br />
विभा रानी श्रीवास्तव<br />
"आप क्या सोच रहे हैं पिताजी?"पिता को बड़े गम्भीर मुद्रा में घर के बाहर बैठा देखकर पुत्र ने पूछा।<br />
"देखिए काले बादल ने रवि को छुपाकर दिन को ही रात में बदल डाला है। घर के अन्दर चलकर बातें करते हैं। आप मुझे बताएँ कि आख़िर क्या बात है?" पुत्र ने पुनः पूछा।<br />
"तुम्हारी माँ को किसी संस्था ने वाचस्पति पुरस्कार देने की बात किया है..," पिता ने कहा।<br />
"अरे वाह! यह तो बेहद हर्ष और गर्व की बात है। और आप हैं कि यूँ चिंताग्रस्त बैठे हैं कि न जाने कौन सी बड़ी आपदा आन पड़ी। कोई पकी फसल में आग लग गयी या किसी फैक्ट्री गोदाम में...। मैं भी नाहक घबरा रहा था कि ना जाने क्या बात हो गयी।" पुत्र ने कहा।<br />
"वाचस्पति पुरस्कार पाने के लिए तुम्हारी माँ को पन्द्रह से बीस हजार तक खर्च करने होंगे।" पिता ने कहा।<br />
"बस! इतनी छोटी रकम! इतनी तो माँ घर के किसी कोने में रख छोड़ा होगा...। आपको घबराहट इस बात कि तो नहीं कि माँ अपने नाम में डॉक्टर लगाने लगेगी!" पुत्र ने कहा।<br />
"इस पुराने अमलतास वृक्ष के कोटर में हवा के झोंके या खग-विष्ठा से उग आए बड़-पीपल को देखकर रहे हो! क्या बता सकते हो कि इससे प्रकृति को कितना लाभ होगा ?" पिता ने पुत्र से पूछा।<br />
"..." निःशब्दता। पुत्र की चुप्पी ।<br />
°°<br />
रचना प्रक्रिया : 30 जून 2022<br />
अप्रकाशित और अप्रकाशित रचना लघुकथा गोष्ठी का आज अंतिम दिन…tag:openbooks.ning.com,2022-06-30:5170231:Comment:10859882022-06-30T02:12:05.293ZManan Kumar singhhttp://openbooks.ning.com/profile/MananKumarsingh
<p>लघुकथा गोष्ठी का आज अंतिम दिन उम्मीदों से पूर्ण है।लघुकथाएं आयेंगी,लेखक बन्धु भी आयेंगे।</p>
<p>लघुकथा गोष्ठी का आज अंतिम दिन उम्मीदों से पूर्ण है।लघुकथाएं आयेंगी,लेखक बन्धु भी आयेंगे।</p> अंतर्व्यथा मैं पानी की एक बूं…tag:openbooks.ning.com,2022-06-29:5170231:Comment:10861402022-06-29T04:27:18.455ZManan Kumar singhhttp://openbooks.ning.com/profile/MananKumarsingh
<p dir="ltr">अंतर्व्यथा<br></br> मैं पानी की एक बूंद हूं। समंदर के अंदर के उथल - पुथल,कोलाहल और ताप से उत्तप्त हो उठते भाव - भाप के संघनित होने से मैं नभ में सृजित हुई।फिर प्यासी -झुलसती धरती की प्यास बुझाने की कामना मुझमें जागृत हुई।सोचा,किसी मरते को जीवन देकर क्यों न खुद भी धन्य हो जाऊं? <br></br>हवाओं की और अधिक शीतलता से मैं वजनी होती गई।ऊपर से दिलासा कि धरा तक ले जाई जाऊंगी। खुशफहमी में मैं हवाओं संग हिलती -डुलती रही।नीचे आती रही।अब हवायें बवंडर- सी होती गईं।मुझे थपेड़े लगने लगे। संभलने की कोशिश…</p>
<p dir="ltr">अंतर्व्यथा<br/> मैं पानी की एक बूंद हूं। समंदर के अंदर के उथल - पुथल,कोलाहल और ताप से उत्तप्त हो उठते भाव - भाप के संघनित होने से मैं नभ में सृजित हुई।फिर प्यासी -झुलसती धरती की प्यास बुझाने की कामना मुझमें जागृत हुई।सोचा,किसी मरते को जीवन देकर क्यों न खुद भी धन्य हो जाऊं? <br/>हवाओं की और अधिक शीतलता से मैं वजनी होती गई।ऊपर से दिलासा कि धरा तक ले जाई जाऊंगी। खुशफहमी में मैं हवाओं संग हिलती -डुलती रही।नीचे आती रही।अब हवायें बवंडर- सी होती गईं।मुझे थपेड़े लगने लगे। संभलने की कोशिश की,पर संभल न सकी।फिर से मैं समंदर के हवाले हो गई।उसमें धकेल दी गई।हवाएं फुर्र हो गईं। सोचती हूं,पुनः भाव -भाप बनूं,तो ऊपर उठूं।<br/>"मौलिक एवं अप्रकाशित"</p>