ओबीओ लाइव महोत्सव अंक-56 की समस्त स्वीकृत रचनाओं का संकलन - Open Books Online2024-03-28T15:51:52Zhttp://openbooks.ning.com/forum/topics/56-3?commentId=5170231%3AComment%3A665106&feed=yes&xn_auth=noआदरणीया डॉ. प्राची सिंह जी, …tag:openbooks.ning.com,2015-06-24:5170231:Comment:6677712015-06-24T18:00:12.421Zमिथिलेश वामनकरhttp://openbooks.ning.com/profile/mw
<p>आदरणीया डॉ. प्राची सिंह जी, “ओबीओ लाइव महोत्सव अंक-56” के सफल आयोजन एवं रचनाओं के त्वरित संकलन हेतु हार्दिक बधाई. इस आयोजन में कतिपय कारणों से मैं सहभागिता नहीं निभा सका इसके लिए क्षमा चाहता हूँ. मंच से दूर रहना मेरे लिए बहुत कष्टकारी होता है किन्तु मजबूरियां ......</p>
<p>शीर्षक “गर्मी की छुट्टी” पर प्रस्तुत समस्त रचनाओं को आज पढ़ रहा हूँ. सभी बहुत अच्छी और स्तरीय रचनाएँ है.</p>
<p> </p>
<p><b> </b></p>
<p>आदरणीय सौरभ सर का गर्मी-छुट्टी (बाल-गीत) बहुत सुन्दर बना है और बाल मन को बहुत सुन्दर…</p>
<p>आदरणीया डॉ. प्राची सिंह जी, “ओबीओ लाइव महोत्सव अंक-56” के सफल आयोजन एवं रचनाओं के त्वरित संकलन हेतु हार्दिक बधाई. इस आयोजन में कतिपय कारणों से मैं सहभागिता नहीं निभा सका इसके लिए क्षमा चाहता हूँ. मंच से दूर रहना मेरे लिए बहुत कष्टकारी होता है किन्तु मजबूरियां ......</p>
<p>शीर्षक “गर्मी की छुट्टी” पर प्रस्तुत समस्त रचनाओं को आज पढ़ रहा हूँ. सभी बहुत अच्छी और स्तरीय रचनाएँ है.</p>
<p> </p>
<p><b> </b></p>
<p>आदरणीय सौरभ सर का गर्मी-छुट्टी (बाल-गीत) बहुत सुन्दर बना है और बाल मन को बहुत सुन्दर शब्द मिले है जैसे उनके भीतर का बच्चा गीत गा रहा है.</p>
<p><br/> <em>हम हैं क्या</em> <em>?..</em> <em>आज़ाद पखेरू !</em><em> </em><br/> <em>जबसे गर्मी-छुट्टी आई !</em><em> </em><br/> <br/> <em>नहीं सुबह की कोई खटपट</em><em> </em><br/> <em>विद्यालय जाने की झटपट</em><em> </em><br/> <em>सारा दिन बस धमा चौकड़ी</em><em> </em><br/> <em>चिन्ता अब ना</em><em>,</em> <em>कोई झंझट !</em><br/></p>
<p><b> </b></p>
<p>आदरणीया कांता रॉय जी की कविता छायावादी कविता की याद दिलाती सुन्दर रचना हुई है. मात्राओं पर थोड़ा नियंत्रण होने से रचना और निखर आएगी. उन्हें इस सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.<br/> <br/> ताप तपिश से पिघल रही हूँ<br/> नयनों में जलधार लिए<br/> निर्झर - सा झर झर करता<br/> हवा चेतना लुप्त किये<br/> <br/> नयनों में अब आस मिलन की<br/> मिथ्या स्वप्न धूसरित हुए<br/> विलुप्त आँगन की हरियाली<br/> दिन गर्मी के छुट्टीहीन हुए<br/></p>
<p> </p>
<p><strong>आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव सर, गर्मी की छुट्टी में नाना के घर जाना याद आ गया, आपने जैसे में कविता मेरी यादों को समेटकर रख दिया. दिल को छू लेने वाली इस रचना पर दिल से बहुत बहुत बधाई</strong></p>
<p><em>गर्मी की छुट्टी में हम सब</em><em>,</em> <em>नाना के घर जायेंगे।</em></p>
<p><em>बेल आम जामुन का मौसम</em><em>,</em> <em>तोड़ बाग से लायेंगे॥</em></p>
<p><em> </em></p>
<p><em>दिखती कहाँ हैं बैल गाड़ियाँ</em><em>,</em> <em>बड़े शहर की सड़कों पर।</em></p>
<p><em>गाँवों में पर मज़ा और है</em><em>,</em> <em>गाड़ी खूब चलायेंगे॥</em></p>
<p><em> </em></p>
<p><em>सूर्योदय से पहले मामा</em><em>,</em> <em>सब को रोज जगाते हैं।</em></p>
<p><em>नदी किनारे लेकर हमको</em><em>,</em> <em>सूरज बड़ा दिखायेंगे॥</em></p>
<p><em> </em></p>
<p><em>सुबह शाम होती है आरती</em><em>,</em> <em>ज्ञान ध्यान की बातें भी।</em></p>
<p><em>आशीर्वाद बड़ों का लेकर</em><em>,</em> <em>हम प्रसाद फिर पायेंगे॥</em></p>
<p><em> </em></p>
<p><em>दही भात में मज़ा ख़ास है</em><em>,</em> <em>गर्मी में ठंडक पहुँचे।</em></p>
<p><em>मामी देगी मीठा सत्तू</em> <em>,</em> <em>नाना भजन सुनायेंगे॥</em></p>
<p><em> </em></p>
<p><em>सीधे सरल गाँव के बच्चे</em><em>,</em> <em>खेलें हम गिल्ली कंचे।</em></p>
<p><em>हमें जिताकर खुश हों ऐसे</em><em>,</em> <em>मित्र कहाँ हम पायेंगे॥</em></p>
<p><em> </em></p>
<p><em>छुप्पा- छुप्पी धमा चौकड़ी</em> <em>,</em> <em>पैरावट में खेलेंगे।</em></p>
<p><em>मामाजी के साथ नदी में</em><em>,</em> <em>हम भी खूब नहायेंगे॥</em></p>
<p><em> </em></p>
<p><em>रात कहानी परियों वाली</em><em>,</em> <em>हमें सुनाएगी नानी।</em></p>
<p><em>आँगन में हम लेटे- लेटे</em><em>,</em> <em>तारे गिनते जायेंगे॥</em></p>
<p><em> </em></p>
<p><em>जब आएगा वक्त बिदा का</em><em>,</em> <em>प्यार और बढ़ जाएगा।</em></p>
<p><em>माँ नानी की भीगी पलकें</em><em>,</em> <em>देख मौन हो जायेंगे॥</em></p>
<p> </p>
<p>आदरणीय सत्यनारायण सिंह जी को सुन्दर कुंडलियों के लिए हार्दिक बधाई. आपकी छंद रचना सदैव मुग्ध भी करती है और चकित भी.</p>
<p><b> </b></p>
<p>छुट्टी गरमी की करे, मनुज भाव संपन्न।</p>
<p>भाव मनुज संपन्न मन, होता नहीं विपन्न।।</p>
<p>होता नहीं विपन्न, गाँठ मन पक्की बांधो।</p>
<p>अवसर को पहचान, लक्ष्य तुम अपना साधो।।</p>
<p>मस्ती के हर भाव,सुखद यादों की नरमी।</p>
<p>अभिभावक मन बाल, जगाये छुट्टी गरमी।१।</p>
<p> </p>
<p>आदरणीय विनय कुमार सिंह जी का बचपन के दिन (बाल गीत) बहुत सुन्दर हुआ है, बचपन के दिन और गर्मियों की छुट्टियों को रचना में सार्थक शब्द मिले है. बचपन की यादें ताज़ा करती रचना के लिये हार्दिक बधाइयाँ.</p>
<p> </p>
<p>आखिर क्यूँ हम इतने बड़े हो गए <br/> बचपन के दिन जाने कहाँ खो गए <br/> वो खेलना जम के आइस पाईस <br/> गुल्ली डंडा और लट्टू की ख़्वाहिश <br/> दोपहर में लगती लूडो की बाज़ी<br/> खूब खेलते थे हम चोर सिपाही<br/> खेलते खेलते , हम वहीँ सो गए <br/> बचपन के दिन जाने कहाँ खो गए </p>
<p> </p>
<p>आदरणीय गिरिराज भंडारी सर की अतुकांत कविता विषयानुरूप बहुत सशक्त रचना हुई है. विषय को बिलकुल नई दृष्टि से प्रस्तुत करती संवेदनशील और वैचारिक कविता हेतु हार्दिक बधाई </p>
<p> </p>
<p>हमें कहाँ छुट्टियाँ गर्मियों की , सर्दियों की \ हम भी अगर आपकी तरह छुट्टियाँ बितायें \ काम पर न जायें</p>
<p>तो खुद ही न बीत जायें \ छोड़िये भी \ ये सब अमीरों के चोचले हैं \ देर न हो जाये \ काम में जाने के लिये \ </p>
<p>बातें तो बातें हैं , होतीं रहेंगी फ़ुर्सत से , \ बातों का क्या ? \वैसे विषय अच्छा है - गर्मी की छुट्टियाँ ........</p>
<p> </p>
<p>आदरणीया राजेश दीदी ने विषय को सार्थक करती सुन्दर कुण्डलियाँ रची है. परिवार में गर्मी की छुट्टियों के सुन्दर दृश्य उकेरा है तो घुमने फिरने की हुडदंग को भी सुन्दर शब्द मिले है वहीँ अंतिम कुण्डलिया पद ने भाव विभोर कर दिया-</p>
<p> </p>
<p>छुट्टी गर्मी की शुरू ,मुझे पँहुचना गाँव|</p>
<p>घर में विपदा आ पड़ी,माँ का टूटा पाँव||</p>
<p>माँ का टूटा पाँव,पिता जी की लाचारी|</p>
<p>बिना दवा ईलाज,कहाँ छोड़े बीमारी||</p>
<p>बढ़े ट्रेन की चाल ,कराऊँ माँ की पट्टी|</p>
<p>देख फ़सल का हाल, मनाऊँ मैं भी छुट्टी||</p>
<p> </p>
<p>आदरणीय सोमेश जी आपकी कविता को पढते हुए बहुत सी पुरानी यादें ताज़ा हो गई आपको इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई <br/> गर्मी की छुट्टियाँ<br/> दादा का बाग<br/> कोपड़ टपकना<br/> बीनना भाग-भाग |</p>
<p><br/> गर्मी की छुट्टियाँ<br/> कोयल की टेर<br/> सुग्गे की कुटकुट<br/> चिड़ियों के फेर |</p>
<p><br/> गर्मी की छुट्टियाँ<br/> खेतों की माटी<br/> जीवन की थाती<br/> बहुत मन भाती |</p>
<p> </p>
<p> </p>
<p>आदरणीय डॉ० गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर, सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई. रचना में बहुत अधिक क्लिष्ट शब्दों और कठिन वाक्य संयोजन के कारण रचना को समझने का प्रयास करना पड़ रहा है लेकिन रचना के प्रवाह ने मुग्ध कर दिया -</p>
<p> </p>
<p>मह-मह वनज प्रसून </p>
<p>सुरभि से मन भर देते </p>
<p>मलय हिमानी वात</p>
<p>वपुष कम्पित कर देते</p>
<p>अभ्रायित आकाश उठो शाश्वत नक्कारों</p>
<p>चंदा मामा सुनो, सुनो अम्बर के तारों</p>
<p> </p>
<p>देख प्रकृति सौन्दर्य</p>
<p>सहज संसृति में डूबे </p>
<p>मिली हृदय को शांति</p>
<p>पढ़ाई से थे ऊबे</p>
<p>कर्म करे आह्वान देश के दीप्त सितारों</p>
<p>चंदा मामा सुनो, सुनो अम्बर के तारों</p>
<p> </p>
<p>आदरणीया शशि बंसल जी गर्मी की छुट्टी विषय पर मुन्ना मुन्नी के भेद पर व्यंग्य करती बढ़िया रचना हुई है ..हार्दिक बधाई <br/> <br/> हुई शुरू जो गर्मी की छुट्टी ,<br/> खुश हुआ मुन्नू, मुन्नी है सिसकी ।<br/> उमर एक दोनों की, अलग है सख़्ती ।<br/> मुन्नू पाता ढेर आजादी और मिठाई ,<br/> मुन्नी की तो जां पर बन आई ।<br/> फर्क देख बच्चे-बच्चे में कहती मुन्नी,<br/> इससे तो अच्छी स्कुल की घंटी मम्मी ।</p>
<p> </p>
<p>आदरणीय अरुण कुमार निगम सर, कितनी सरल सहज और ह्रदय को छूती बहुत सुन्दर रचना हुई है. आपको इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई</p>
<p> </p>
<p>वह धमा-चौकड़ी धूम-धाम</p>
<p>हर शाम बड़ी रंगीन शाम</p>
<p>ये खेलकूद जब थमते थे</p>
<p>सब रामायण में रमते थे</p>
<p>फिर नाना लेकर जाते थे</p>
<p>नित हाथ - पैर धुलवाते थे</p>
<p>नानी जी देती थी खाना</p>
<p>कहती थी अब तुम सो जाना</p>
<p>फिर गाती लोरी नानी थी</p>
<p>बचपन की यही कहानी थी</p>
<p>अब नाना है ना नानी है</p>
<p>ना गरमी छुट्टी आनी है</p>
<p>बीता बचपन कब आना है</p>
<p>यादों का एक खजाना है</p>
<p>इन पंक्तियों ने बहुत गहरे तक प्रभावित किया और भावुक भी कर दिया. आपकी कलम को नमन.</p>
<p> </p>
<p>आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले सर, सुन्दर और मजेदार कुण्डलिया छंद हेतु हार्दिक बधाई</p>
<p><b> </b></p>
<p>लायी है मुश्किल नयी, गर्मी अबकी बार |</p>
<p>साली-साढू आ रहे, पूरा है परिवार ||</p>
<p>पूरा है परिवार, चार हैं बच्चे नटखट,</p>
<p>शैतानों के बाप, करेंगे दिनभर खटपट,</p>
<p>हमको तो इसबार, नहीं ये छुट्टी भायी,</p>
<p>जो गर्मी के साथ, मुसीबत ढेरों लायी ||</p>
<p> </p>
<p>आदरणीया सरिता भाटिया जी को बढ़िया कुण्डलिया पदों की रचना हेतु हार्दिक बधाई</p>
<p><br/> नाना नानी पूछते, बेटी कैसे बाल ?<br/> गर्मी की छुट्टी हुई ,पहुँच गए ननिहाल<br/> पहुँच गए ननिहाल ,रहे नाती या नाता<br/> किताबें सभी छोड़ ,खेल कूद वहाँ भाता <br/> मामा मामी देख ,करें वो आनाकानी <br/> बच्चों पर सब वार, हुए खुश नाना नानी ।।</p>
<p> </p>
<p>आयोजन में सम्मिलित होने वाले सभी रचनाकारों को ढेर सारी बधाई.</p>
<p>मेरा दुर्भाग्य कि मैं आयोजन में सहभागिता का सुख और आनंद नहीं ले सका किन्तु इस संकलन को पढ़कर बहुत आनंद आया.</p>
<p>शुभकामनायें</p>
<p> </p> आपकी प्रस्तुति को संशोधित स्…tag:openbooks.ning.com,2015-06-18:5170231:Comment:6659172015-06-18T05:50:22.089ZDr.Prachi Singhhttp://openbooks.ning.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>आपकी प्रस्तुति को संशोधित स्वरुप से बदल दिया गया है आदरणीय </p>
<p>आपकी प्रस्तुति को संशोधित स्वरुप से बदल दिया गया है आदरणीय </p> आपका आदेश सर आँखों पर आदरणीय…tag:openbooks.ning.com,2015-06-18:5170231:Comment:6659162015-06-18T05:46:22.010ZDr.Prachi Singhhttp://openbooks.ning.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>आपका आदेश सर आँखों पर आदरणीय :)))</p>
<p>आपका आदेश सर आँखों पर आदरणीय :)))</p> आदरणीया प्राची जी , एक और सफल…tag:openbooks.ning.com,2015-06-18:5170231:Comment:6657632015-06-18T02:21:55.542Zगिरिराज भंडारीhttp://openbooks.ning.com/profile/girirajbhandari
<p>आदरणीया प्राची जी , एक और सफल महोत्सव के लिये आपको और मंच को हार्दिक बधाइयाँ ॥</p>
<p>// ओपन बुक्स आन लाइन नहीं खुल रहा है //</p>
<p>कभी कभी साइट का सर्वर ओवेर लोडिंग की वजस से साइट विषेश को खोल नहीं पाता , क्योंकि एक सर्व्र्र से बहुत सी साइटें खुलतीं है , ये मेरे साथ कई बार हुआ है ॥ आप ये करें --</p>
<p>अगर ब्राउज़र मोजिला फायर फाक्स है तो ----- <strong>टूल्स -> एड ओन --> गेट एड ओन -- सर्च बाक्स मे -- इमेज ब्लाकर </strong> , लिख कर सर्च करें , सामने आने पर इंस्टाल करने को कहें…</p>
<p>आदरणीया प्राची जी , एक और सफल महोत्सव के लिये आपको और मंच को हार्दिक बधाइयाँ ॥</p>
<p>// ओपन बुक्स आन लाइन नहीं खुल रहा है //</p>
<p>कभी कभी साइट का सर्वर ओवेर लोडिंग की वजस से साइट विषेश को खोल नहीं पाता , क्योंकि एक सर्व्र्र से बहुत सी साइटें खुलतीं है , ये मेरे साथ कई बार हुआ है ॥ आप ये करें --</p>
<p>अगर ब्राउज़र मोजिला फायर फाक्स है तो ----- <strong>टूल्स -> एड ओन --> गेट एड ओन -- सर्च बाक्स मे -- इमेज ब्लाकर </strong> , लिख कर सर्च करें , सामने आने पर इंस्टाल करने को कहें । यह एड ओन आपको एक बटन ब्राउज़र मे देगा -- जिससे आप ज़रूरत पड़ने पर साइट के सारे इमेज दिखना बन्द कर सकते हैं । इमेज ही जादा पावर लेते हैं खुलते समय , अब आपको केवल लिखे हुये ही दिखाई देंगे ।</p>
<p>अगर आपके पस बाउज़र क्रोम है , तो इसी साफ्ट वेयर को एक्सटेंसन नाम से खोजियेगा -- ब्राउजर के राइट साइड मे तीन <strong>आड़ी लाइनें होन्गी - > मोर टूल्स --.> एक्स्टेंसन --- सर्च --- इमेज ब्लोक । बस</strong></p>
<p></p>
<p><strong>जब भी ब्राउज़ धीमा लगे इमेज ब्लोक बटन दबा कर रिफ्रेश कर दीजिये । सारे इमेज ब्लोक हो जायेंगे</strong></p>
<p><strong>एड आन सुरक्षित हैं , क्योंकि स्वयम ब्राउजर देते हैं ॥</strong></p> //फिलहाल तो सभी साइट्स खुल रह…tag:openbooks.ning.com,2015-06-17:5170231:Comment:6656742015-06-17T21:02:24.089ZSaurabh Pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>//फिलहाल तो सभी साइट्स खुल रही हैं. //</p>
<p></p>
<p>छन्दोत्सव अब बस सिर पर है.. और कुल्लम छन्द २० ! .. हम इंतज़ार करेंगे .. ..</p>
<p>:-)))) </p>
<p></p>
<p>//फिलहाल तो सभी साइट्स खुल रही हैं. //</p>
<p></p>
<p>छन्दोत्सव अब बस सिर पर है.. और कुल्लम छन्द २० ! .. हम इंतज़ार करेंगे .. ..</p>
<p>:-)))) </p>
<p></p> धन्यवाद आदरणीय सौरभ जी
इस बा…tag:openbooks.ning.com,2015-06-17:5170231:Comment:6657622015-06-17T20:14:20.084ZDr.Prachi Singhhttp://openbooks.ning.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>धन्यवाद आदरणीय सौरभ जी </p>
<p>इस बार आश्चर्यजनक रूप से आयोजन के दूसरे दिन मेरे सिस्टम पर ओबीओ खुल ही नहीं रहा था.. फिर दो दिन और परेशान रही. मेरी परेशानी ये थी की बाकी सब साईट खुल रही हैं, ओबीओ से कैसा बैर...सिस्टम का. आपके निर्देशानुसार कुकीज़ भी डिलीट कर दीं थी, फिर दो दिन बाद अचानक ही ओबीओ खुल गया तो तुरंत संकलन को अंजाम दिया. तब न तो मोजेला फायर फॉक्स और गूगल क्रोम पर और ना ही इंटरनेट एक्स्प्लोरर पर ओबीओ खुल रहा था </p>
<p>फिलहाल तो सभी साइट्स खुल रही हैं. </p>
<p>नेट देवता की कृपा बनी…</p>
<p>धन्यवाद आदरणीय सौरभ जी </p>
<p>इस बार आश्चर्यजनक रूप से आयोजन के दूसरे दिन मेरे सिस्टम पर ओबीओ खुल ही नहीं रहा था.. फिर दो दिन और परेशान रही. मेरी परेशानी ये थी की बाकी सब साईट खुल रही हैं, ओबीओ से कैसा बैर...सिस्टम का. आपके निर्देशानुसार कुकीज़ भी डिलीट कर दीं थी, फिर दो दिन बाद अचानक ही ओबीओ खुल गया तो तुरंत संकलन को अंजाम दिया. तब न तो मोजेला फायर फॉक्स और गूगल क्रोम पर और ना ही इंटरनेट एक्स्प्लोरर पर ओबीओ खुल रहा था </p>
<p>फिलहाल तो सभी साइट्स खुल रही हैं. </p>
<p>नेट देवता की कृपा बनी रहे </p>
<p></p> आदरणीया प्राचीजी ..
मेरी प्र…tag:openbooks.ning.com,2015-06-17:5170231:Comment:6655972015-06-17T17:14:55.896ZSaurabh Pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीया प्राचीजी ..</p>
<p></p>
<p>मेरी प्रस्तुति को निम्नलिखित संशोधित स्वरूप से बदल दी जाये.. <br></br><br></br>हम हैं क्या ?.. आज़ाद पखेरू ! <br></br>जबसे गर्मी-छुट्टी आई ! <br></br><br></br>नहीं सुबह की कोई खटपट <br></br>विद्यालय जाने की झटपट <br></br>सारा दिन बस धमा चौकड़ी <br></br>चिन्ता अब ना, कोई झंझट !<br></br><br></br>शरबत आइसक्रीम वनीला <br></br>चुस्की राहत बरफ-मलाई !<br></br>हम हैं क्या ? आज़ाद पखेरू.. ! <br></br>जबसे गर्मी-छुट्टी आई ! <br></br><br></br>होमवर्क भी कितना सारा !<br></br>अपनी मम्मी एक सहारा !!<br></br>प्रोजेक्टों का बोझ न कम है…</p>
<p>आदरणीया प्राचीजी ..</p>
<p></p>
<p>मेरी प्रस्तुति को निम्नलिखित संशोधित स्वरूप से बदल दी जाये.. <br/><br/>हम हैं क्या ?.. आज़ाद पखेरू ! <br/>जबसे गर्मी-छुट्टी आई ! <br/><br/>नहीं सुबह की कोई खटपट <br/>विद्यालय जाने की झटपट <br/>सारा दिन बस धमा चौकड़ी <br/>चिन्ता अब ना, कोई झंझट !<br/><br/>शरबत आइसक्रीम वनीला <br/>चुस्की राहत बरफ-मलाई !<br/>हम हैं क्या ? आज़ाद पखेरू.. ! <br/>जबसे गर्मी-छुट्टी आई ! <br/><br/>होमवर्क भी कितना सारा !<br/>अपनी मम्मी एक सहारा !!<br/>प्रोजेक्टों का बोझ न कम है <br/>याद करें तो चढ़ता पारा !!<br/><br/>साथ खेल के गर्मी-छुट्टी --<br/>कितनी--कितनी आफत लाई.<br/>हम हैं क्या ? आज़ाद पखेरू.. ! <br/>जबसे गर्मी-छुट्टी आई ! <br/><br/>बहे पसीना जून महीना <br/>निकले सूरज ताने सीना <br/>डर से उसके सड़कें सूनी <br/>अंधड़ लू के, मुश्किल जीना <br/><br/>तिस पर रह-रह माँ की घुड़की --<br/>’क्यों बाहर हो, करूँ पिटाई..?’<br/>हम हैं क्या ? आज़ाद पखेरू.. ! <br/>जबसे गर्मी-छुट्टी आई ! <br/><br/><br/>सादर<br/><br/></p> तनिक विलम्ब से आपके संकलन पर…tag:openbooks.ning.com,2015-06-17:5170231:Comment:6655932015-06-17T17:00:05.988ZSaurabh Pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>तनिक विलम्ब से आपके संकलन पर आ रहा हूँ. इस कार्य-सम्पादन केलिए हार्दिक बधाई आदरणीया.<br/>विश्वास है, अब ब्राउजर सुचारू रूप से कार्य कर रहा होगा. कभी-कभी कूकीज के कारण साइट्स ब्लॉक हो जाती हैं. <br/>शुभेच्छाएँ</p>
<p>तनिक विलम्ब से आपके संकलन पर आ रहा हूँ. इस कार्य-सम्पादन केलिए हार्दिक बधाई आदरणीया.<br/>विश्वास है, अब ब्राउजर सुचारू रूप से कार्य कर रहा होगा. कभी-कभी कूकीज के कारण साइट्स ब्लॉक हो जाती हैं. <br/>शुभेच्छाएँ</p> धन्यवाद आ० अशोक कुमार रक्ताले…tag:openbooks.ning.com,2015-06-16:5170231:Comment:6654442015-06-16T14:56:32.014ZDr.Prachi Singhhttp://openbooks.ning.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>धन्यवाद आ० अशोक कुमार रक्ताले जी </p>
<p>धन्यवाद आ० अशोक कुमार रक्ताले जी </p> मंच संचालिका आदरणीया डॉ. प्…tag:openbooks.ning.com,2015-06-16:5170231:Comment:6655162015-06-16T13:55:49.502ZAshok Kumar Raktalehttp://openbooks.ning.com/profile/AshokKumarRaktale
<p>मंच संचालिका आदरणीया डॉ. प्राची सिंह जी <span> “ओबीओ लाइव महोत्सव अंक-56” की सफलता के लिए हार्दिक बधाई एवं रचनाओं के संकलन के लिए बहुत-बहुत आभार.सादर.</span></p>
<p>मंच संचालिका आदरणीया डॉ. प्राची सिंह जी <span> “ओबीओ लाइव महोत्सव अंक-56” की सफलता के लिए हार्दिक बधाई एवं रचनाओं के संकलन के लिए बहुत-बहुत आभार.सादर.</span></p>