उपन्यास के निकष पर - ‘शिव :: अलौकिक व्यक्तित्व की लौकिक-यात्रा’ डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव - Open Books Online2024-03-28T19:02:17Zhttp://openbooks.ning.com/forum/topics/5170231:Topic:975232?feed=yes&xn_auth=noआ० शुक्ल जी , आपका आभार कि आप…tag:openbooks.ning.com,2019-02-25:5170231:Comment:9768072019-02-25T08:45:36.849Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आ० शुक्ल जी , आपका आभार कि आप मेरी समीक्षा पर आये i आपने न्यास की जो व्याख्या कि वह उचित ही है I आपने शिव को समझने के लिए 'नम: शिवाय शान्ताय" पढ़ने की अनुशसा की I इसका भी स्वागत है I शिव के बारे में जो जानकारी आपने मुझे दी वह पुस्तक के लेखक को मिलनी चाहिए I मैंने तो उपन्यास पर पाठक के रूप में अपनी प्रतिक्रिया मात्र ही दी है तथापि आपका फिर से आभार और अभिनन्दन i </p>
<p>आ० शुक्ल जी , आपका आभार कि आप मेरी समीक्षा पर आये i आपने न्यास की जो व्याख्या कि वह उचित ही है I आपने शिव को समझने के लिए 'नम: शिवाय शान्ताय" पढ़ने की अनुशसा की I इसका भी स्वागत है I शिव के बारे में जो जानकारी आपने मुझे दी वह पुस्तक के लेखक को मिलनी चाहिए I मैंने तो उपन्यास पर पाठक के रूप में अपनी प्रतिक्रिया मात्र ही दी है तथापि आपका फिर से आभार और अभिनन्दन i </p> पहली बात :-
उपन्यास
संस्कृत…tag:openbooks.ning.com,2019-02-23:5170231:Comment:9758042019-02-23T17:05:26.236ZDr T R Sukulhttp://openbooks.ning.com/profile/DrTRSukul
<p><strong>पहली बात :-</strong></p>
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<p><span style="text-decoration: underline;">उपन्यास</span></p>
<p>संस्कृत शब्द ‘‘न्यास’’ का अर्थ है, स्थापन करना। जैसे,<br></br> <br></br>1. जब गृह निर्माण किया जाता है तो सर्वप्रथम कुछ पत्थरों को नीव में रखा जाता है, इसे कहते हैं शिलान्यास (शिला पत्थर, न्यास स्थापना करना) हमारे देश में नेताओं को शिलान्यास करने का बड़ा शौक है वे पत्थर पर अपना नाम लिखाकर उस स्थान पर रखकर यह किया करते हैं ।<br></br>2. जिस मनुष्य ने आदर्श के लिए सम्यक रूप से अपने को ‘न्यास’…</p>
<p><strong>पहली बात :-</strong></p>
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<p><span style="text-decoration: underline;">उपन्यास</span></p>
<p>संस्कृत शब्द ‘‘न्यास’’ का अर्थ है, स्थापन करना। जैसे,<br/> <br/>1. जब गृह निर्माण किया जाता है तो सर्वप्रथम कुछ पत्थरों को नीव में रखा जाता है, इसे कहते हैं शिलान्यास (शिला पत्थर, न्यास स्थापना करना) हमारे देश में नेताओं को शिलान्यास करने का बड़ा शौक है वे पत्थर पर अपना नाम लिखाकर उस स्थान पर रखकर यह किया करते हैं ।<br/>2. जिस मनुष्य ने आदर्श के लिए सम्यक रूप से अपने को ‘न्यास’ किया है अर्थात् स्थापित कर लिया है वह सम न्यासिन् संन्यासिन् (प्रथमा के एकवचन में ‘संन्यासी’) ।<br/>3. जिस आदर्शवान व्यक्ति ने सद्वस्तु अर्थात् परमपुरुष को पाने के लिए अपने को ‘न्यस्त’ किया हो वह सत् न्यासिन् संन्यासी है।</p>
<p>‘‘उप’’ का अर्थ है आसपास या निकट। अतः,</p>
<p>1. जब कोई भोज्य या भोग्य वस्तु किसी के पास रख दी जाती है तो उसे कहते हंै ‘उपन्यास’ उप आसपास और न्यास स्थापित करना या रखना। यह ‘उपन्यास’ श्रद्धा से भी हो सकता है और अवहेलना से भी। गाय बैलों को चारा, खली भूसा अच्छी तरह मिलाकर उनके मॅुह के पास रख देना श्रद्धा या यत्नपूर्वक न्यास अर्थात् ‘उपन्यास’ हुआ। कबूतर या मुर्गी के लिये दानें छिड़कना भी ‘उपन्यास’ हुआ, रास्ते में सोए कुत्ते को सूखी रोटी का टुकड़ा फेक दिया जाए तो वह भी ‘उपन्यास’ हुआ अवहेलना से। तात्पर्य यह कि उप से न्यस्त होना ही उपन्यास है।<br/>2. किसी पुस्तक की भूमिका या उपक्रमणिका लिखा जाना भी ‘उपन्यास’ कहला सकता है।</p>
<p>अब ध्यान दीजिए अंग्रेजी में जिसे ‘नावेल’ या ‘फिक्शन’ कहा जाता है उसे हम अपनी भाषा में ‘उपन्यास’ कहते हैं तो क्या यह उचित है? स्पष्ट है कि आधुनिक हिन्दी, बंगला और अन्य पूर्व भारतीय भाषाओं में ‘उपन्यास’ शब्द का उपयोग गलत अर्थ में किया जाता है। वैसे अन्य अनेक भारतीय भाषाओं जैसे मराठी में ‘नावेल’ या ‘फिक्शन’ के अर्थ में ‘उपन्यास’ शब्द का व्यवहार होते नहीं देखा गया है। <br/>‘नावेल’ या ‘फिक्शन’ को सही अर्थ देना हो तो उसे हिन्दी में ‘‘कथान्यास’’ कहना सार्थक और सम्पूर्ण लगता है।</p>
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<p><strong>दूसरी बात :-</strong></p>
<p><br/>आप जानते हैं कि पौराणिक कथाएँ काल्पनिक हैं परन्तु उनमें दी गयी शिक्षाएं अमूल्य हैं। दुःख यह है कि कथाकार कथाओं के पीछे छिपी शिक्षा को छोड़कर बाकी सब कुछ व्याख्या करते देखे जाते हैं चाहे वे उपन्यासकार हों या कथाकार। आपने जो कुछ इस उपन्यास के सन्दर्भ में शिव के सम्बन्ध में कहा है वह भी शिव की भूमिका और समाज को उनके योगदान का लेशमात्र संकेत नहीं देता सिवाय पौराणिक कथा के दृष्टांतों के। शिव को सही अर्थों में जानने के लिए पढ़िए अमूल्य पुस्तक " नमः शिवाय शान्ताय" । इसके कुछ बिंदु आपकी जानकारी के लिए नीचे दे रहा हूँ :-<br/> <br/>1 "विवाह " की संकल्पना को व्यावहारिक रूप उन्होंने ही दिया। वे ही प्रथम विवाहित पुरुष कहलाये। उन्होंने परस्पर झगड़ने वाले आर्य, मंगोल और द्रविड़ों को एकीकृत करने की दृष्टि से तीनों सभ्यताओं की क्रमशः उमा (पार्वती), गंगा और काली नाम की कन्याओं से विवाह किया। इस प्रकार उन्होंने परिवार को आदर्श स्वरूप देने के लिये पुरुष को उसके पालन पोषण का उत्तादायित्व देकर ‘भर्ता‘ और पत्नी को इस कार्य में उसके साथ समान रूप से सहभागी बनाने के लिये ‘कलत्र‘ कहा। ये दोनों ही शब्द पुल्लिंग में हैं अतः उन्होंने कभी भी लिंग के आधार पर भेदभाव को नहीं माना और न ही महिलाओं को पुरुषों से कम। इस प्रकार समाज को व्यवस्थित कर उसे उन्नत किये जाने को नया आयाम दिया।<br/>2 शिव ने समझाया कि प्रत्येक जड़ वस्तु चाहे वह सूर्य, और आकाशगंगायें हों या छुद्र कण , सबका अस्तित्व है परंतु वे यह जानते नहीं हैं, जबकि मनुष्य, चीटी, केंचुआ ये सब जानते हैं कि उनका अस्तित्व है। यह एग्जिस्टेंशियल फीलिंग ही वह आधार है जिस पर जीव व जगत टिका हुआ है। इसलिये ‘‘मैं हूं‘‘ इसके साक्षीबोध में उस परमपुरुष की सत्ता अदृश्य रूप में रहती है। इसे सरलता से समझने के लिये हम भौतिकी के ‘‘बलों के त्रिभुज नियम‘‘ को ले सकते हैं जिसके अनुसार दीवार पर संतुलन में टंगी तस्वीर के दो छोरों पर बंधी रस्सी से दो बलों को तो प्रदर्शित किया जा सकता है पर तीसरा बल जो तस्वीर में से लगता हुआ संतुलन बनाये रखता है दिखाई नहीं देता जबकि तस्वीर दिखती है। यही अदृश्य (‘सेंटिऐंट फोर्स’) साक्षीस्वरूप परमपुरुष वह आधार है जो पूरे ब्रह्माॅंड को संतुलित रखते हैं। <br/>3 उस काल में लोग भोजन की तलाश में यहां वहाॅं भटकने में ही अधिकांश समय खर्च कर देते थे , अतः शिव ने ‘नन्दी’ को पशुपालन और कृषिकार्य में प्रशिक्षण देकर अन्न उत्पन्न करने का कार्य सभी को सिखाने का उत्तरदायित्व सौंपा । पहाड़ की गुफाओं के बदले, मैदानों और नदियों के किनारे भवन बनाकर रहने का प्रशिक्षण ‘विश्वकर्मा’ को देकर उन्हें भवन निर्माण शिल्प या स्थापत्य कला को सभी लोगों को सिखाकर घर बनाकर रहने की प्रेरणा देने का दायित्व दिया। शिव ने स्वस्थ रहने के लिये वैद्यकशास्त्र में ‘धनवन्तरि’ को प्रशिक्षित कर अन्य लोगों को सिखाने और सभी के स्वास्थ्य का निरीक्षण करने का काम सौंपा। इसके बाद काम करते करते लोग ऊबने न लगें इसलिए ‘भरत’ को संगीत विद्या में निपुण कर अन्य लोगों को सिखाने का और मनोरंजन करने का काम सौंप दिया। <br/>------- आदि अनेक प्रकार की अन्य जानकारियां इस अनूठे ग्रन्थ में मिलेंगी।सादर।</p>