दुष्यंत द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण - Open Books Online2024-03-29T08:00:14Zhttp://openbooks.ning.com/forum/topics/5170231:Topic:957819?groupUrl=kaksha&feed=yes&xn_auth=noआदरणीय निलेश जी
दुष्यंत ने य…tag:openbooks.ning.com,2018-10-30:5170231:Comment:9589792018-10-30T15:20:07.231ZAjay Tiwarihttp://openbooks.ning.com/profile/AjayTiwari
<p>आदरणीय निलेश जी </p>
<p>दुष्यंत ने ये साफ़ लिखा है कि वो ये प्रयोग जान बूझ कर रहें हैं. इसका मतलब ये कि वो जानते थे कि अस्ल वज़न क्या है.ग़ज़ल के बारे में जानने के लिए उन्होंने कुछ जानकार लोगों से मदद ली थी. दुष्यंत के बयान में कोई अंतर्विरोध नहीं है. जहाँ तक मुमकिन है उन्होंने शब्द के मूल रूपों का प्रयोग किया है और जहाँ अनिवार्य था वहाँ बोलचाल के शब्दरूपों का प्रयोग किया है.</p>
<p></p>
<p>जहाँ तक अस्ल वज़्न और उसके बोलचाल के रूप का एक साथ प्रगोग करने का सवाल है यह उर्दू शायरी में भी ख़ूब हुआ है…</p>
<p>आदरणीय निलेश जी </p>
<p>दुष्यंत ने ये साफ़ लिखा है कि वो ये प्रयोग जान बूझ कर रहें हैं. इसका मतलब ये कि वो जानते थे कि अस्ल वज़न क्या है.ग़ज़ल के बारे में जानने के लिए उन्होंने कुछ जानकार लोगों से मदद ली थी. दुष्यंत के बयान में कोई अंतर्विरोध नहीं है. जहाँ तक मुमकिन है उन्होंने शब्द के मूल रूपों का प्रयोग किया है और जहाँ अनिवार्य था वहाँ बोलचाल के शब्दरूपों का प्रयोग किया है.</p>
<p></p>
<p>जहाँ तक अस्ल वज़्न और उसके बोलचाल के रूप का एक साथ प्रगोग करने का सवाल है यह उर्दू शायरी में भी ख़ूब हुआ है :</p>
<p> </p>
<p>'मीर' दरिया है, सुने शेर ज़बानी उस की</p>
<p>अल्लाह अल्लाह रे तबियत की रवानी उस की</p>
<p>2122 1122 1122 22 (फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन)</p>
<p>इस शेर के दूसरे मिसरे में अल्लाह(221) बोलचाल के रूप अल्ला(22) के रूप में इस्तेमाल किया गया है. पहले अल्लाह को गिरा कर ‘आल’(21) के वज़न पर बाँधा गया है. दूसरे अल्लाह को अल्ला (22) के वज़न पर. <strong> </strong></p>
<p> </p>
<p>ज़ाहिर कि बातिन अव्वल कि आख़िर</p>
<p>अल्लाह अल्लाह अल्लाह अल्लाह</p>
<p><strong> </strong>22 122 22 122 (फ़ेलुन फ़ऊलुन फ़ेलुन फ़ऊलुन)</p>
<p>इस शेर में अल्लाह(221) अपने अस्ल और बोलचाल के रूप अल्ला(22) दोनों रूपों में एक साथ इस्तेमाल किया गया है.</p>
<p><strong> </strong></p>
<p>मैं हर शायर का भक्त हूँ. क्रिटिकल एनालिसिस से मुझे कोई परेशानी नहीं होती लेकिन इर्रेशनल और आधारहीन एनालिसिस से ज़रूर होती है.</p>
<p>बैन होने या न होने से अरूज़ी गलितियों का कोई सम्बन्ध नहीं है . मैंने सिर्फ दुष्यंत के प्रभाव की प्रकृति बात की थी और यह सियासत की बात नहीं साहित्य के समाज पर प्रभाव की बात है.और ये बात इसलिए सामने रखनी पड़ी की आपने दुष्यंत के प्रभाव की हनी सिंह के प्रभाव से तुलना की थी.</p>
<p>मैंने पहले भी स्पष्ट लिखा है कि ग़लतियाँ किसी की अनुकरणीय नहीं होती चाहे वो कितना भी बड़ा शायर हो. लेकिन सिर्फ़ अरूज़ी ग़लतियों के आधार पर किसी शायर के पूरे अवदान को खारिज़ नहीं किया जा सकता. अगर ऐसा शायर ढूँढना हो जिसने कभी कोई ग़लती न की हो तो ये पूरी धरती खाली है. मेरी कोशिश इस श्रृंखला में सिर्फ़ शायरों के बेहतर शेरों को उनकी बह्रों की जानकारी के साथ प्रस्तुत करने की रही है उनकी गलतियाँ ढूँढने या कोई फैसला देने की नहीं.</p>
<p></p>
<p>दुष्यंत पर इस विस्तृत चर्चा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद. </p>
<p>सादर </p> आदरणीय निलेश जी,
न मीर किसी…tag:openbooks.ning.com,2018-10-30:5170231:Comment:9592102018-10-30T13:00:18.575ZAjay Tiwarihttp://openbooks.ning.com/profile/AjayTiwari
<p>आदरणीय निलेश जी, </p>
<p>न मीर किसी के ख़ुदा बनाने से बने थे न दुष्यंत बन सकते हैं.</p>
<p></p>
<p>ग़लतियाँ मीर की हर दौर की शायरी में है. मीर मेरे भी प्रिय शायर हैं. इसी लिए मैंने सबसे पहले मीर के शेर ही प्रस्तुत किये थे. उनकी ग़लतियों का जिक्र मैंने सिर्फ़ एक उदाहरण के तौर पर किया था. इस लिए आपको मीर को डिफेंड करने की कोई जरूरत नहीं है. यहाँ थोड़ा आपका समानता का व्यवहार करने वाला सिद्धांत हिलता हुआ नज़र आता है.</p>
<p></p>
<p>\\माता के गर्भ से कोई सीख कर नहीं आता...\\</p>
<p>दुष्यंत के बारे में…</p>
<p>आदरणीय निलेश जी, </p>
<p>न मीर किसी के ख़ुदा बनाने से बने थे न दुष्यंत बन सकते हैं.</p>
<p></p>
<p>ग़लतियाँ मीर की हर दौर की शायरी में है. मीर मेरे भी प्रिय शायर हैं. इसी लिए मैंने सबसे पहले मीर के शेर ही प्रस्तुत किये थे. उनकी ग़लतियों का जिक्र मैंने सिर्फ़ एक उदाहरण के तौर पर किया था. इस लिए आपको मीर को डिफेंड करने की कोई जरूरत नहीं है. यहाँ थोड़ा आपका समानता का व्यवहार करने वाला सिद्धांत हिलता हुआ नज़र आता है.</p>
<p></p>
<p>\\माता के गर्भ से कोई सीख कर नहीं आता...\\</p>
<p>दुष्यंत के बारे में भी आपको इसी नज़रिए से सोचना चाहिए था.</p>
<p></p>
<p>दुष्यंत की ग़ज़लगोई की अवधि सिर्फ़ पांच साल की है. उनके पास शायरी की कोई पृष्ठभूमि नहीं थी. वो उर्दू नहीं जानते थे. ऐसे में ग़लतियों का होना स्वाभाविक था. इन सीमाओं को देखते हुए दुष्यंत की उपलब्धियां कम नहीं है. मीर जिस माहौल में पैदा हुए और पले बढ़े उस में हर तरफ शायरी ही शायरी थी. मीर की शायरी की अवधि लगभग 70 साल की है. मीर और दुष्यंत दोनों अलग प्रवृत्तियों के शायर थे. इस लिए दुष्यंत को मीर के मुकाबले में लाने का कोई औचित्य ही नहीं है. और जैसा की मैंने ऊपर भी लिखा है मीर का ज़िक्र मैंने उदाहरण के लिए किया है तुलना के लिए नहीं. </p>
<p>सादर </p> आ. अजय जी,आप लिखा हुआ समझना न…tag:openbooks.ning.com,2018-10-28:5170231:Comment:9585662018-10-28T05:01:54.967ZNilesh Shevgaonkarhttp://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<p><span>आ. अजय जी,<br></br>आप लिखा हुआ समझना न चाहें तो कोई क्या करे.. दुष्यंत अपनी भूमिका में साफ़ लिखते हैं <br></br>कि मैं उर्दू नहीं जानता, लेकिन इन शब्दों का प्रयोग यहाँ अज्ञानतावश नहीं, जानबूझकर किया गया है. यह कोई मुश्किल काम नहीं था कि ’शहर’ की जगह ‘नगर’ लिखकर इस दोष से मुक्ति पा लूँ,किंतु मैंने उर्दू शब्दों को उस रूप में इस्तेमाल किया है,जिस रूप में वे हिन्दी में घुल—मिल गये हैं. उर्दू का ‘शह्र’ हिन्दी में ‘शहर’ लिखा और बोला जाता है ;ठीक उसी तरह जैसे हिन्दी का ‘ब्राह्मण’ उर्दू में ‘बिरहमन’ हो…</span></p>
<p><span>आ. अजय जी,<br/>आप लिखा हुआ समझना न चाहें तो कोई क्या करे.. दुष्यंत अपनी भूमिका में साफ़ लिखते हैं <br/>कि मैं उर्दू नहीं जानता, लेकिन इन शब्दों का प्रयोग यहाँ अज्ञानतावश नहीं, जानबूझकर किया गया है. यह कोई मुश्किल काम नहीं था कि ’शहर’ की जगह ‘नगर’ लिखकर इस दोष से मुक्ति पा लूँ,किंतु मैंने उर्दू शब्दों को उस रूप में इस्तेमाल किया है,जिस रूप में वे हिन्दी में घुल—मिल गये हैं. उर्दू का ‘शह्र’ हिन्दी में ‘शहर’ लिखा और बोला जाता है ;ठीक उसी तरह जैसे हिन्दी का ‘ब्राह्मण’ उर्दू में ‘बिरहमन’ हो गया है और ‘ॠतु’ ‘रुत’ हो गई है."<br/></span>यानी वो मानते थे कि शह्र को शहर लेना ठीक है.. तो बाकी जगह इस थोथी घोषणा का पालन क्यूँ नहीं किया.. क्या वो तब भूल गए कि वो उर्दू नहीं जानते?<br/>रही बात उस दौर के राजनैतिक हालात की ..तो वो न ग़ज़ल का विषय है न अरूज़ का..<br/>यह मंच उस चर्चा का स्थान नहीं है ...<br/>आप उनकी विचारधारा से प्रेरित होकर उनकी ग़ज़लों के भक्त बनें लगते हैं तभी क्रिटिकल एनालिसिस से परेशान हो उठे हैं...<br/>उस दौर में कई ग़ज़लकारों को ban किया गया होगा.. तो क्या इस से सभी को बेबह्र ग़ज़ले कहने का <br/>हक मिल जाता है?.. चर्चा ग़ज़ल पर है और आप सियासत पर पहुँच गए... कमाल है ..<br/>ये मेरी अंतिम टिप्पणी है... शायरों की बेबहर / अमानक रचनाओं को मैं ग़ज़ल नहीं मानता, न मान सकता हूँ..<br/>आप मानते रहिये... जो ग़ज़लें दुरुस्त हैं,, उन्हें ही ग़ज़ल माना जाएगा ..<br/>सादर </p> आ. अजय जी आपने मेरा काम आसान…tag:openbooks.ning.com,2018-10-28:5170231:Comment:9586272018-10-28T04:51:04.314ZNilesh Shevgaonkarhttp://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>आ. अजय जी <br></br>आपने मेरा काम आसान कर दिया..<br></br>आप उन से पूछिए जिन्होंने मीर को ख़ुदा बनाया...जैसे आप दुष्यंत को ख़ुदा बनाने पर तुले हुए हैं.. <br></br>इस मंच पर मीर हों, ग़ालिब हों, दुष्यंत हों... सबके साथ समानता का व्यवहार किया जाता है,,,<br></br>यहाँ महत्व रचना का है, रचनाकार का नहीं.. <br></br>मीर की हज़ारों ग़ज़लों में से कुछ शुरूआती ग़लत हो सकती हैं, माता के गर्भ से कोई सीख कर नहीं आता...<br></br>दुष्यंत की 67 में से 17 यहीं ग़लत पायी गयी...अत: दुष्यंत के मुक़ाबिल मीर को न लाइए..<br></br>दो ग़लत मिलकर भी एक सही…</p>
<p>आ. अजय जी <br/>आपने मेरा काम आसान कर दिया..<br/>आप उन से पूछिए जिन्होंने मीर को ख़ुदा बनाया...जैसे आप दुष्यंत को ख़ुदा बनाने पर तुले हुए हैं.. <br/>इस मंच पर मीर हों, ग़ालिब हों, दुष्यंत हों... सबके साथ समानता का व्यवहार किया जाता है,,,<br/>यहाँ महत्व रचना का है, रचनाकार का नहीं.. <br/>मीर की हज़ारों ग़ज़लों में से कुछ शुरूआती ग़लत हो सकती हैं, माता के गर्भ से कोई सीख कर नहीं आता...<br/>दुष्यंत की 67 में से 17 यहीं ग़लत पायी गयी...अत: दुष्यंत के मुक़ाबिल मीर को न लाइए..<br/>दो ग़लत मिलकर भी एक सही नहीं हो सकेंगे... कम से कम यहाँ तो बिलकुल नहीं </p> आदरणीय निलेश जी,
दुष्यंत ने…tag:openbooks.ning.com,2018-10-28:5170231:Comment:9585622018-10-28T04:36:22.075ZAjay Tiwarihttp://openbooks.ning.com/profile/AjayTiwari
<p><span>आदरणीय निलेश जी, </span></p>
<p>दुष्यंत ने अपनी भूमिका में कहीं नहीं लिखा कि वो 'शहर' के मूल वज़न का प्रयोग नहीं करेंगे. इस लिए इस पर जो भी बहसें होती हैं वो निरर्थक बहसें होती हैं. उनसे आज तक कोई फ़ायदा नहीं हुआ. जो उन्होंने जो कहा वो ये है :</p>
<p></p>
<p>"—कि ग़ज़लों को भूमिका की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए; लेकिन,एक कैफ़ियत इनकी भाषा के बारे में ज़रूरी है. कुछ उर्दू—दाँ दोस्तों ने कुछ उर्दू शब्दों के प्रयोग पर एतराज़ किया है .उनका कहना है कि शब्द ‘शहर’ नहीं ‘शह्र’ होता है, ’वज़न’ नहीं…</p>
<p><span>आदरणीय निलेश जी, </span></p>
<p>दुष्यंत ने अपनी भूमिका में कहीं नहीं लिखा कि वो 'शहर' के मूल वज़न का प्रयोग नहीं करेंगे. इस लिए इस पर जो भी बहसें होती हैं वो निरर्थक बहसें होती हैं. उनसे आज तक कोई फ़ायदा नहीं हुआ. जो उन्होंने जो कहा वो ये है :</p>
<p></p>
<p>"—कि ग़ज़लों को भूमिका की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए; लेकिन,एक कैफ़ियत इनकी भाषा के बारे में ज़रूरी है. कुछ उर्दू—दाँ दोस्तों ने कुछ उर्दू शब्दों के प्रयोग पर एतराज़ किया है .उनका कहना है कि शब्द ‘शहर’ नहीं ‘शह्र’ होता है, ’वज़न’ नहीं ‘वज़्न’ होता है.</p>
<p>—कि मैं उर्दू नहीं जानता, लेकिन इन शब्दों का प्रयोग यहाँ अज्ञानतावश नहीं, जानबूझकर किया गया है. यह कोई मुश्किल काम नहीं था कि ’शहर’ की जगह ‘नगर’ लिखकर इस दोष से मुक्ति पा लूँ,किंतु मैंने उर्दू शब्दों को उस रूप में इस्तेमाल किया है,जिस रूप में वे हिन्दी में घुल—मिल गये हैं. उर्दू का ‘शह्र’ हिन्दी में ‘शहर’ लिखा और बोला जाता है ;ठीक उसी तरह जैसे हिन्दी का ‘ब्राह्मण’ उर्दू में ‘बिरहमन’ हो गया है और ‘ॠतु’ ‘रुत’ हो गई है."</p>
<p></p>
<p>हर रचनाकार स्वतन्त्र है कि वो शब्द को किस तरह बरते हम उसे सिर्फ़ सलाह दे सकते हैं उसे बाध्य नहीं कर सकते. और जो अब जीवित ही नहीं है उसका फैसला सिर्फ़ इतिहास ही कर सकता है.</p>
<p></p>
<p>आपात काल के दौरान दुष्यंत की ग़ज़लों की वज़ह से सारीका के कई अंक बैन कर दिए गए थे. और उस वक़्त के मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्र ने दुष्यंत को व्यक्तिगत रूप से धमकाया था. दुष्यंत के प्रभाव और उस प्रभाव की प्रकृति के विषय में लोग अच्छी तरह जानते हैं. इस लिए इस कोई टिप्पणी करना अनावश्यक है.</p>
<p></p>
<p>मैंने जहां तक मुमकिन है बह्र के नज़रिए से विवादस्पद शेर नहीं चुने हैं लेकिन जो एक-आध अनिवार्य शेर है उन्हें रख लिया गया है.</p>
<p></p>
<p>सादर</p> शुक्रिया आदरणीय समर जी..tag:openbooks.ning.com,2018-10-27:5170231:Comment:9582832018-10-27T14:09:04.473Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://openbooks.ning.com/profile/brijeshkumar
<p>शुक्रिया आदरणीय समर जी..</p>
<p>शुक्रिया आदरणीय समर जी..</p> आदरणीय निलेश जी, मोर का रूपक…tag:openbooks.ning.com,2018-10-27:5170231:Comment:9583672018-10-27T13:41:43.776ZAjay Tiwarihttp://openbooks.ning.com/profile/AjayTiwari
<p>आदरणीय निलेश जी, मोर का रूपक दुनिया के सारे शायरों के लिए इस्तेमाल किया गया है सिर्फ़ दुष्यंत के लिए नहीं. मीर के लिए हमें किसी पक्षी विशेषज्ञ की ज़रूरत नहीं है उन्हें ख़ुदा-ए-सुखन कहा गया है. आरिफ़ हसन ख़ान साहब ने अपने एक लेख में सिर्फ़ एक बह्रे-मीर में मीर की 56 बह्र की गलतियाँ दिखाईं हैं. इनमें से कुछ पे बहस की जा सकती है कि वो गलतियाँ है या नहीं और कुछ ग़लतियाँ ऐसी भी हैं जो आरिफ़ साहब के लेख में नहीं आ पाई हैं लेकिन इससे इन्कार नहीं किया जा सकता की मीर ने इस बह्र में बहुत गलतियाँ की हैं मिसाल…</p>
<p>आदरणीय निलेश जी, मोर का रूपक दुनिया के सारे शायरों के लिए इस्तेमाल किया गया है सिर्फ़ दुष्यंत के लिए नहीं. मीर के लिए हमें किसी पक्षी विशेषज्ञ की ज़रूरत नहीं है उन्हें ख़ुदा-ए-सुखन कहा गया है. आरिफ़ हसन ख़ान साहब ने अपने एक लेख में सिर्फ़ एक बह्रे-मीर में मीर की 56 बह्र की गलतियाँ दिखाईं हैं. इनमें से कुछ पे बहस की जा सकती है कि वो गलतियाँ है या नहीं और कुछ ग़लतियाँ ऐसी भी हैं जो आरिफ़ साहब के लेख में नहीं आ पाई हैं लेकिन इससे इन्कार नहीं किया जा सकता की मीर ने इस बह्र में बहुत गलतियाँ की हैं मिसाल के लिए ये मिसरा देखें :</p>
<p></p>
<p>सोचते आते हैं जी में पगड़ी पर-गुल रक्खे से - कुल्लियाते मीर ग़ज़ल सं.1574</p>
<p>22 22 22 22 22 22 22 2? आख़िर के फ़ा(2) के वज़न पर कुछ नहीं है.</p>
<p></p>
<p>इस तरह की बहुत सारी ऐसी गलतियाँ हैं जिनको नकारा नहीं जा सकता. तो क्या इस आधार पर इन ग़ज़लों को कविताएं कहा जाय? या मीर को शायर मानने से ही इन्कार कर दिया जाय? जबाब सिर्फ़ ना होगा. मीर इन सारी गलतियों के बावज़ूद इस बह्र के सर्वश्रेष्ठ शायर हैं.</p>
<p></p>
<p>बाकी बातों पर पुनः वापस लौटता हूँ . </p>
<p> </p>
<p>सादर</p> आ. मेरा कहना है कि आप जिसे मो…tag:openbooks.ning.com,2018-10-27:5170231:Comment:9583612018-10-27T10:49:35.384ZNilesh Shevgaonkarhttp://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>आ. मेरा कहना है कि आप जिसे मोर मान बैठे हैं वो मोर है भी या नहीं इसके लिए किसी पक्षी विशेषज्ञ का सहारा लेंगे या नहीं? वैसे मोर ठीक ही है... ज़ियादा उड़ान नहीं होती उसकी भी ..</p>
<p>मसअला ग़ज़ल का है .. इसलिए ये टिप्पणी की,, आप इसे दुष्यंत की कवितायेँ कहें तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है ..<br></br>ग़ज़ल है तो बहर पालनी ही पड़ेगी <br></br>67 में से 17 यानी एक चौथाई कथित ग़ज़लों का हश्र आप देख चुके हैं...<br></br>रही बात समाज पर प्रभाव की तो हन्नी सिंह का भी समाज पर जबरदस्त प्रभाव है... उसे भी शायर-ए- आज़म मान…</p>
<p>आ. मेरा कहना है कि आप जिसे मोर मान बैठे हैं वो मोर है भी या नहीं इसके लिए किसी पक्षी विशेषज्ञ का सहारा लेंगे या नहीं? वैसे मोर ठीक ही है... ज़ियादा उड़ान नहीं होती उसकी भी ..</p>
<p>मसअला ग़ज़ल का है .. इसलिए ये टिप्पणी की,, आप इसे दुष्यंत की कवितायेँ कहें तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है ..<br/>ग़ज़ल है तो बहर पालनी ही पड़ेगी <br/>67 में से 17 यानी एक चौथाई कथित ग़ज़लों का हश्र आप देख चुके हैं...<br/>रही बात समाज पर प्रभाव की तो हन्नी सिंह का भी समाज पर जबरदस्त प्रभाव है... उसे भी शायर-ए- आज़म मान लीजिये...<br/>शहर या शह्र की बहस में मैं भी नहीं जाता लेकिन भूमिका में उन्होंने स्पष्ट किया है कि उनका इरादा क्या है... इसके बाद ऐसी क्या विपत्ति आ गयी कि स्वयं के प्रण से विमुख होना पड़ा? कह देते कि मैं दोनों वज़न पर लूँगा...<br/>कौन रोकता?<br/>दुष्यंत हिंदी ग़ज़ल का प्रस्थान बिंदु नहीं है अपितु नए हिंदी ग़ज़लकारों को ग़लत संस्कार देने की प्रथम पाठशाला से अधिक कुछ नहीं... <br/>ग़ज़ल की कक्षा में सिर्फ ग़ज़ल की सही जानकारी होती तो बेहतर था... फिर बेबह्र कोई भी हो ... यहाँ नाम नहीं देखे जाते <br/>अस्तु <br/> </p> जनाब बृजेश जी,फ़िरोज़ुल लुग़त की…tag:openbooks.ning.com,2018-10-27:5170231:Comment:9583482018-10-27T06:13:47.029ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब बृजेश जी,फ़िरोज़ुल लुग़त की रु से "कुहरा" सहीह शब्द है ।</p>
<p>जनाब बृजेश जी,फ़िरोज़ुल लुग़त की रु से "कुहरा" सहीह शब्द है ।</p> आदरणीय महेन्द्र जी, अब जाके म…tag:openbooks.ning.com,2018-10-27:5170231:Comment:9582492018-10-27T02:41:46.273ZAjay Tiwarihttp://openbooks.ning.com/profile/AjayTiwari
<p>आदरणीय महेन्द्र जी, अब जाके मुझे आश्वस्ति हुई. </p>
<p>आदरणीय महेन्द्र जी, अब जाके मुझे आश्वस्ति हुई. </p>