समूह या फोरम में इतिहास को शामिल करने की आवश्यकता - Open Books Online2024-03-29T10:22:57Zhttp://openbooks.ning.com/forum/topics/5170231:Topic:589694?groupUrl=complainsujession&feed=yes&xn_auth=noआदरणीय विजय सर
आपके समर्थन से…tag:openbooks.ning.com,2014-11-26:5170231:Comment:5902812014-11-26T07:07:55.750Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आदरणीय विजय सर</p>
<p>आपके समर्थन से इस चर्चा को बल मिला है i मैं आपका आभारी हूँ i सादर i</p>
<p>आदरणीय विजय सर</p>
<p>आपके समर्थन से इस चर्चा को बल मिला है i मैं आपका आभारी हूँ i सादर i</p> आदरणीय बागी जी \
उक्त जानकारी…tag:openbooks.ning.com,2014-11-26:5170231:Comment:5902792014-11-26T07:06:37.959Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आदरणीय बागी जी \</p>
<p>उक्त जानकारी के लिए आभार i सादर i</p>
<p>आदरणीय बागी जी \</p>
<p>उक्त जानकारी के लिए आभार i सादर i</p> आदरणीय डॉo गोपाल नारायण जी का…tag:openbooks.ning.com,2014-11-25:5170231:Comment:5904102014-11-25T17:19:58.655ZDr. Vijai Shankerhttp://openbooks.ning.com/profile/DrVijaiShanker
आदरणीय डॉo गोपाल नारायण जी का सुझाव विचारणीय है। संक्षेप में , हम अपने इतिहास के प्रति उदासीन ही नहीं है , अनभिज्ञ भी है। कभी-कभी किसी विद्वत मंच से अपने इतिहास की इतनी भ्रामक बातें सुनाई पड़ जाती हैं कि आश्चर्य होता है। " हम हजारों साल गुलाम थे " या " हमने सदियों गुलामी झेली है " , जैसे वाक्य जब किसी बहुपठित के मुख से सुनने को मिले तो त्रासदी ही लगती है। सबसे बड़ा आश्चर्य तो यह है कि आज भी हम अपनी हर कमी , हर अकर्यमणता के लिए औपनिवेशिक शासन को उत्तरदायी ठहरा देते हैं। इतिहास को हम सजो - संभाल…
आदरणीय डॉo गोपाल नारायण जी का सुझाव विचारणीय है। संक्षेप में , हम अपने इतिहास के प्रति उदासीन ही नहीं है , अनभिज्ञ भी है। कभी-कभी किसी विद्वत मंच से अपने इतिहास की इतनी भ्रामक बातें सुनाई पड़ जाती हैं कि आश्चर्य होता है। " हम हजारों साल गुलाम थे " या " हमने सदियों गुलामी झेली है " , जैसे वाक्य जब किसी बहुपठित के मुख से सुनने को मिले तो त्रासदी ही लगती है। सबसे बड़ा आश्चर्य तो यह है कि आज भी हम अपनी हर कमी , हर अकर्यमणता के लिए औपनिवेशिक शासन को उत्तरदायी ठहरा देते हैं। इतिहास को हम सजो - संभाल नहीं पाये , वर्तमान हमारे वश में नहीं हैं। जिस मानसिक गुलामी से हम कभी उबर नहीं पाये , उसकी हम कभी बात नहीं करते हैं। शायद इसलिए कि हम उससे मुक्त होना ही नहीं चाहते , बात हम शिक्षा की करते हैं पर अज्ञानता को सर्वाधिक हम ही पूजते हैं , हम अभी भी अज्ञानता को साक्षरता और शिक्षा से अधिक उपयोगी और लाभप्रद मानते हैं। बलिहारी है हमारी। विश्व में आगे वे लोग बढ़ें जिन्होंने दूसरों के लिए कुछ, बहुत कुछ किया। हम ज़रा सी भी पॉवर मिल जाये तो सात पुश्तों के लिए व्यवस्था कर लेने को ही परम लक्ष्य मानते हैं। दुनिया की समस्त आधारिक धारणाओं एवं मान्यताओं की हम अपनी स्वलाभ साधने वाली परिभाषाएं गढ़ लेते हैं। हम जब भी कुछ करते हैं, सबसे पहले छत बनाते हैं , बुनियाद और नाली को तो हम आने वाली पीढ़ियों के लिए छोड़ देते हैं . अधिक नहीं पर ऐसा तो कभी नहीं रहा हमारा इतिहास। जागने का कोई समय नहीं होता है , दुनिया में हर पल कहीं न कहीं सूर्योदय होता रहता है , इसलिए कभी भी जागिये , पर जागिये तो। आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवा…tag:openbooks.ning.com,2014-11-25:5170231:Comment:5901002014-11-25T14:39:41.709ZEr. Ganesh Jee "Bagi"http://openbooks.ning.com/profile/GaneshJee
<p>आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी, जिस विषय हेतु अलग से समूह नहीं बना है उस विषय पर आलेख ब्लॉग सेक्सन में पोस्ट किया जा सकता है उसी प्रकार ऐसे पोस्ट जिसपर चर्चा की गुंजाईश हो उसे फोरम सेक्सन के अंतर्गत पोस्ट कर सकते हैं । सादर ।</p>
<p>आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी, जिस विषय हेतु अलग से समूह नहीं बना है उस विषय पर आलेख ब्लॉग सेक्सन में पोस्ट किया जा सकता है उसी प्रकार ऐसे पोस्ट जिसपर चर्चा की गुंजाईश हो उसे फोरम सेक्सन के अंतर्गत पोस्ट कर सकते हैं । सादर ।</p> वर्मा जी
आपका आभार itag:openbooks.ning.com,2014-11-25:5170231:Comment:5899622014-11-25T10:05:21.272Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>वर्मा जी</p>
<p>आपका आभार i</p>
<p>वर्मा जी</p>
<p>आपका आभार i</p> इस वैचारिक प्रस्तुति के लिए स…tag:openbooks.ning.com,2014-11-25:5170231:Comment:5900592014-11-25T09:11:05.872ZShyam Narain Vermahttp://openbooks.ning.com/profile/ShyamNarainVerma
<p>इस वैचारिक प्रस्तुति के लिए सादर धन्यवाद आदरणीय |</p>
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<p>सादर ...............</p>
<p>इस वैचारिक प्रस्तुति के लिए सादर धन्यवाद आदरणीय |</p>
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<p>सादर ...............</p>