कविता के भाव पर व्याकरण की तलवार क्यों - Open Books Online2024-03-29T15:05:06Zhttp://openbooks.ning.com/forum/topics/5170231:Topic:365254?commentId=5170231%3AComment%3A422451&feed=yes&xn_auth=noआदरनीय सर ..मुझे आपका ये अंदा…tag:openbooks.ning.com,2013-09-04:5170231:Comment:4283572013-09-04T11:13:58.566ZDr Ashutosh Mishrahttp://openbooks.ning.com/profile/DrAshutoshMishra
<p>आदरनीय सर ..मुझे आपका ये अंदाज और जवाब बेहद पसंद आया ..मेरी तरफ से हार्दिक बधाई </p>
<p>आदरनीय सर ..मुझे आपका ये अंदाज और जवाब बेहद पसंद आया ..मेरी तरफ से हार्दिक बधाई </p> मैं भी अरुण जी से इस मुद्दे प…tag:openbooks.ning.com,2013-09-04:5170231:Comment:4283502013-09-04T11:05:42.730ZDr Ashutosh Mishrahttp://openbooks.ning.com/profile/DrAshutoshMishra
मैं भी अरुण जी से इस मुद्दे पर सहमत हूँ ..जीवन के रिश्तों तक तो ठीक है जो दिमाग के रथ पर चढ़कर दिल के दरवाजे जाओगे दरवाजे पर खड़े रहोगे खड़े खड़े बापस आओगे ..मैं भी बचपन से कुछ न कुछ लिख रहा था ..लेकिन जब से ओ बी ओ के संपर्क में आया तो महसूस किया किया की आपकी जैसी बात करके मैं नियमों के पालन से बचना चाहता था ..लिखते समय तो शिल्प के बारे में सोचना नहीं चाहिए पर बाद में शिल्प पर काम जरूर करना चाहए ..अब मैं हर रचना में इस बात का ध्यान देता हूँ ..जहाँ मैं गलत हो रहा हूँ वहां मैं लापरवाह नहीं हूँ…
मैं भी अरुण जी से इस मुद्दे पर सहमत हूँ ..जीवन के रिश्तों तक तो ठीक है जो दिमाग के रथ पर चढ़कर दिल के दरवाजे जाओगे दरवाजे पर खड़े रहोगे खड़े खड़े बापस आओगे ..मैं भी बचपन से कुछ न कुछ लिख रहा था ..लेकिन जब से ओ बी ओ के संपर्क में आया तो महसूस किया किया की आपकी जैसी बात करके मैं नियमों के पालन से बचना चाहता था ..लिखते समय तो शिल्प के बारे में सोचना नहीं चाहिए पर बाद में शिल्प पर काम जरूर करना चाहए ..अब मैं हर रचना में इस बात का ध्यान देता हूँ ..जहाँ मैं गलत हो रहा हूँ वहां मैं लापरवाह नहीं हूँ वहां उस बिंदु बिशेस की मुझे जानकारी नहीं है ..अरुण जी विनीत जी आदरनीय यशराज जी , बागी जी , सौरभ जी सभी के मार्गदर्शन से एक परिवर्तन मुझमे आया जहाँ मैं तकरीबन हर हफ्ते दो तीन ग़ज़ल लिखता था अब एक भी नहीं लिखी जाती और जब लिख भी जाते है तो कसौटी पर तमाम बिन्दुओं पर खरी नहीं उतर पाती लेकिन जब उतरती है तो खुद और पाठको दोनों के मुह से निकलती है सिर्फ वाह ..नीरज जी आज से दो तीन महीने पहले मैं भी यही सोचता था ..मुझे उम्मीद है आप भे ये सुखद अहसास जल्द ही करेंगे अध्ययन, मनन, मंथन, गठन तथा सं…tag:openbooks.ning.com,2013-08-28:5170231:Comment:4224512013-08-28T00:08:57.073ZManoshi Chatterjeehttp://openbooks.ning.com/profile/ManoshiChatterjee
<p><strong>अध्ययन, मनन, मंथन, गठन तथा संप्रेषण इन पाँच विन्दुओं से जो रचना नहीं गुजरी, वह पाठक को स्पंदित क्या करेगी, अपने उथलेपन के कारण ग्राह्य ही नहीं होगी.</strong><br/><br/>गूढ़ बात।<br/><br/>--मानोशी</p>
<p></p>
<p><strong>अध्ययन, मनन, मंथन, गठन तथा संप्रेषण इन पाँच विन्दुओं से जो रचना नहीं गुजरी, वह पाठक को स्पंदित क्या करेगी, अपने उथलेपन के कारण ग्राह्य ही नहीं होगी.</strong><br/><br/>गूढ़ बात।<br/><br/>--मानोशी</p>
<p></p> आशीष भाई कोई नयी बात नही कर द…tag:openbooks.ning.com,2013-08-27:5170231:Comment:4221342013-08-27T15:01:25.350ZNeeraj Nishchalhttp://openbooks.ning.com/profile/NeerajMishra
<p>आशीष भाई कोई नयी बात नही कर दी आपने <br/> यहाँ मुझ से सहमत कौन है ।</p>
<p>आशीष भाई कोई नयी बात नही कर दी आपने <br/> यहाँ मुझ से सहमत कौन है ।</p> क्या ही सटीक और काव्यमय भाषा…tag:openbooks.ning.com,2013-08-27:5170231:Comment:4220172013-08-27T12:13:37.150ZSaurabh Pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>क्या ही सटीक और काव्यमय भाषा में आपने अपनी बातें कही हैं, आदरणीय !</p>
<p>सादर</p>
<p></p>
<p>क्या ही सटीक और काव्यमय भाषा में आपने अपनी बातें कही हैं, आदरणीय !</p>
<p>सादर</p>
<p></p> मित्र , आपकी बात से असहमत हूँ…tag:openbooks.ning.com,2013-08-27:5170231:Comment:4218802013-08-27T08:41:36.697ZAshish Srivastavahttp://openbooks.ning.com/profile/AshishSrivastavaSagarSandhya
<p>मित्र , आपकी बात से असहमत हूँ , नियमों में बंधकर ही हम सुन्दर मूर्ति रच सकते है , अब अगर निश्चित है की मनुष्य के पास दो पैर , दो आँख , आदि अंगों की संख्या निर्धारित है , जो कभी किसी कारण से अगर एक अंग अधिक हो जाये तो वह अच्छा नहीं लगता , ठीक इसी प्रकार काव्य भी है , नियम से नहीं लिखा गया तो अजीब सा लगता है , आदरनीय सौरभ जी के अनुसार किसी भी रचना का 5 द्वार से निकलना अत्यंत आवश्यक है ..... जो विद्यार्थी एम् बी ए नहीं किये होते वो हमेशा अव्यवस्थित मैनेजमेण्ट ही करेंगे | या अपने अनुभव से वे…</p>
<p>मित्र , आपकी बात से असहमत हूँ , नियमों में बंधकर ही हम सुन्दर मूर्ति रच सकते है , अब अगर निश्चित है की मनुष्य के पास दो पैर , दो आँख , आदि अंगों की संख्या निर्धारित है , जो कभी किसी कारण से अगर एक अंग अधिक हो जाये तो वह अच्छा नहीं लगता , ठीक इसी प्रकार काव्य भी है , नियम से नहीं लिखा गया तो अजीब सा लगता है , आदरनीय सौरभ जी के अनुसार किसी भी रचना का 5 द्वार से निकलना अत्यंत आवश्यक है ..... जो विद्यार्थी एम् बी ए नहीं किये होते वो हमेशा अव्यवस्थित मैनेजमेण्ट ही करेंगे | या अपने अनुभव से वे व्यस्थित हो जायेंगे | ठीक उसी प्रकार यहाँ भी या तो व्याकरन या उसका अनुभव के आधार पर काव्य रचना होती है , अनुभवों के आधार पर भी कही गई रचना स्वतः नियमानुसार ही हो जाती है , ऐसा मेरा अनुभव है शेष विद् जन मार्गदर्शित करें : </p>
<p></p>
<p>आपका लेख का शीर्षक : </p>
<h1>कविता के भाव पर व्याकरण की तलवार क्यों</h1>
<p>से भी सहमति नहीं है मेरी क्यूँ की व्याकरण की छेनी हो सकती है , तलवार नहीं , </p>
<p></p>
<p>बस अपनी बात यही कहकर समाप्त करता हूँ </p>
<p></p> मुझे इस चर्चा से काफी लाभ हुआ…tag:openbooks.ning.com,2013-07-24:5170231:Comment:4016402013-07-24T00:34:27.499Zबृजेश नीरजhttp://openbooks.ning.com/profile/BrijeshKumarSingh
<p>मुझे इस चर्चा से काफी लाभ हुआ। व्याकरण को अभी तक मैं 'व्याकरण' के रूप में ही जानता था। आज पता चला कि उसका संबंध सार्थकता से भी होता है। यह भी ज्ञात हुआ कि सार्थक और असार्थक कविता भी होती है।</p>
<p>मुझे इस चर्चा से काफी लाभ हुआ। व्याकरण को अभी तक मैं 'व्याकरण' के रूप में ही जानता था। आज पता चला कि उसका संबंध सार्थकता से भी होता है। यह भी ज्ञात हुआ कि सार्थक और असार्थक कविता भी होती है।</p> आपके सहारे आज मुझे भी पता चला…tag:openbooks.ning.com,2013-07-23:5170231:Comment:4015352013-07-23T17:49:49.310Zबृजेश नीरजhttp://openbooks.ning.com/profile/BrijeshKumarSingh
<p>आपके सहारे आज मुझे भी पता चला कि आपने जिन रचनाओं का जिक्र किया है वे कवितायें थीं और उनमें व्याकरण नहीं था।<br/>क्या, क्या और कैसी कैसी बातें लोग करते हैं?!</p>
<p>आपके सहारे आज मुझे भी पता चला कि आपने जिन रचनाओं का जिक्र किया है वे कवितायें थीं और उनमें व्याकरण नहीं था।<br/>क्या, क्या और कैसी कैसी बातें लोग करते हैं?!</p> मेरा सवाल? जब क ख ग घ पता नही…tag:openbooks.ning.com,2013-07-23:5170231:Comment:4016252013-07-23T17:47:19.716Zबृजेश नीरजhttp://openbooks.ning.com/profile/BrijeshKumarSingh
<p>मेरा सवाल? <br/>जब क ख ग घ पता नही ंतो बेहतर यही है कि आप उसे सीखें। सीधे व्याकरण की बात करना उचित नहीं। व्याकरण का नंबर वर्णमाला के बाद आता है।</p>
<p>मेरा सवाल? <br/>जब क ख ग घ पता नही ंतो बेहतर यही है कि आप उसे सीखें। सीधे व्याकरण की बात करना उचित नहीं। व्याकरण का नंबर वर्णमाला के बाद आता है।</p> मान्यवर, मैं तो नहीं जानता अत…tag:openbooks.ning.com,2013-07-23:5170231:Comment:4016192013-07-23T17:25:13.847Zबृजेश नीरजhttp://openbooks.ning.com/profile/BrijeshKumarSingh
<p>मान्यवर, मैं तो नहीं जानता अतुकांत कविता! आप मार्गदर्शन प्रदान करें। </p>
<p>मान्यवर, मैं तो नहीं जानता अतुकांत कविता! आप मार्गदर्शन प्रदान करें। </p>