For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नवगीत हिन्दी काव्यधारा की एक नवीन विधा है।  नवगीत एक तत्व के रूप में साहित्य को महाप्राण निराला की रचनात्मकता से प्राप्त हुआ । इसकी प्रेरणा सूरदास, तुलसीदास, मीराबाई, रहीम, रसखान की प्रवाहमयी रचनाओं और लोकगीतों की समृद्ध भारतीय परम्परा से है । 

 

नवगीत विधा नें गीत को संरक्षण प्रदान करने के साथ आधुनिक युगबोध और शिल्प के साँचे में ढाल कर उसको मनमोहक रूपाकार प्रदान करने का काम किया है । समकालीन सामाजिकता एवं मनोवृत्तियों को लयात्मकता के साथ व्यक्त करती काव्य रचनाएँ नवगीत कहलाती हैं। नवगीत में गीत की अवधारणा कदापि निरस्त नहीं होती, अपितु वह तो पूर्णतः सुरक्षित है। गीत के ही पायदान पर नवगीत खड़ा हुआ है।

 

यदि कोई रचना सिर्फ प्रस्तुति के लिए ही जीवन का चित्रण करती है, यदि उसमें आत्मगत शक्तिशाली प्रेरणा नहीं है, जो हृदय सागर में व्याप्त भावों से निस्सृत होती है, यदि वह जन चेतना को शब्द नहीं देती, यदि वह अंतस की पीड़ा की मुखर अभिव्यक्ति नहीं हैं, यदि वह उल्लसित हृदय का उन्मुक्त गीत नहीं है, यदि वह मस्तिष्क में कोई सवाल उठाने में सक्षम नहीं है, यदि उसमें मन में कौंधते सवालों का जवाब देने की सामर्थ्य नहीं है, यदि वह अमृत रसधार की वर्षा से जन मानस को संतृप्त नहीं करती, तो वह निष्प्राण है, बेमानी है।  इसी दृष्टिकोण से किये गए रचनाकर्म में नवगीत के प्राण हैं। 

 

नवगीत में कथ्य, प्रस्तुति के अंदाज, रागात्मक लय और भाव प्रवाह का रचाकार के हृदय में ही नवजन्म होता है। नवगीत जितना ही बौद्धिक आयाम में स्वयं को संयत रखता है और आत्मीय संवेदन की अभिव्यक्ति बनता है , उतना ही खरा उतरता है।  समकालीन पद्य साहित्य में नवगीत नें अपने माधुर्य, सामाजिक चेतना और यथार्थवादी जनसंवादधर्मिता के ही कारण अपना एक विशिष्ट स्थान बनाया है ।

 

नवगीत का शिल्प :

अनुभूति की संवेदनशील अभिव्यक्ति किसी भी रचना को मर्मस्पर्शी बनाती है । महाकवि निराला की सरस्वती वंदना में “नव गति नव लय ताल छंद नव” को ही नवगीत का बीजमंत्र माना गया है ।

 

नवगीत सनातनी या शास्त्रीय छंदों में प्रयोग के तौर पर प्रारंभ हुए.  जैसे, दोहे के मात्र विषम चरण को लेकर साधी गयी मात्रिक पंक्तियाँ, या किसी दो छंदों का संयुक्त प्रयोग कर साधी गयी पंक्तियाँ. आदि-आदि. बाद मे नवगीतकारों ने स्वयंसंवर्धित मात्राओं का निर्वहन करना प्रारम्भ किया और बिम्ब, तथ्य और कथ्य में भी विशिष्ट प्रयोग करने की परिपाटी चल पड़ी. इसी तौर पर आंचलिक या ग्राम्य बिम्बों पर जोर पड़ा.

समकालीन नवगीतकारों दो श्रेणियाँ आज स्पष्ट देखने को मिलती हैं : एक वे हैं जो छंदों को महत्त्व देकर उनकी मर्यादा में रहकर गीत लिखते हैं, और दूसरे वे हैं जो छंद में नए प्रयोग करते हैं और लय आश्रित गीत लिखते हैं । प्रथम मतावलम्बी कहते हैं कि नयेपन के लिए छंद तोड़ना आवश्यक नहीं, बल्कि उसकी सीमा का निर्वहन करते हुए आत्मा और हृदय की मुक्तावस्था को शब्दों, प्रतीकों, बिम्बों, मुहावरों, अलंकारों के द्वारा नयेपन के प्रति प्रतिबद्ध होना आवश्यक है । वहीं दूसरे वर्ग के मतावलम्बी अनुभूतियों की भावात्मक और उन्मुक्त प्रस्तुति के लिए लय व विधान के निर्धारण में भी स्वतंत्रता व अनंत विविधता के पक्षधर हैं ।

 

नवगीत में एक मुखड़ा व दो-तीन या चार अंतरे होते हैं । हर अंतरे का कथ्य मुख्य पंक्ति से साम्य लिए होता है, व हर अंतरे के बाद मुख्य पंक्ति की पुनरावृत्ति होती है । हर अंतरे में अंतर्गेयता सहज व निर्बाध होती है साथ ही हर अंतरा दूसरे अंतरे व मुखड़े से सम्तुकान्ताता अनिवार्य रूप से रखता है । मुखड़े की पंक्तियाँ ही गीत की अंतर्धारा का निर्धारण करती हैं व गीत की आत्मा को चंद शब्दों में ही प्रस्तुत करने में समर्थ होती हैं ।

 

  • नवगीत सकारात्मक सृजनशीलता की अभिव्यक्ति होते हैं और निहित कथ्य से दिशा-दर्शन को साँझा करते हुए एक प्रेरणा स्त्रोत की भूमिका का निर्वहन करते हैं।
  • नवगीत सिर्फ व्यक्ति विशेष के भावों की आत्मकथात्मक अभिव्यक्ति न हो कर जन चेतना के भावों को एक सीख के साथ प्रस्तुत करते हैं।
  • नवगीत आधुनिक प्रगतिशील वैज्ञानिक दृष्टिकोण और सकारात्मक सोच के सामंजस्य से लिखे जाते हैं ।
  • नवगीत विषयों की अथाह विविधता को अनुभूतियों के गहनतम स्तर तक अभिव्यक्त करने में सक्षम होते हैं ।
  • लय, कथ्य, गठन, प्रवाह, की विविधता के साथ साथ नए प्रतीकों और बिम्बों का प्रयोग नवगीत को नव्यता प्रदान करता है ।
  • नवगीत यदि सामान्य जन समूह को सार्थक चिंतन के लिए प्रेरित करता है, तो जीवंत हो जाता है ।
  • नवगीत का कथ्य सुगठित तरीके से जितना अभिव्यक्त करता है, यदि उससे भी कहीं ज्यादा अनकहा छोड़ देता है, तब वह पाठक के हृदय में एक अनंत, वृहद कल्पना का बीज रोप देता है, जो मनमुग्ध कर मनस पटल पर विविध चित्र उकेरने की सामर्थ्य रखता है....यही नवगीत की खूबसूरती है ।

 

नवगीत में असाधारण कथ्य का एक उदाहरण पेश है..

"कांधे पर धरे हुए खूनी यूरेनियम हँसता है तम

युद्धों के लावा से उठते हैं प्रश्न और गिरते हैँ हम

राधेश्याम बन्धु जी के नवगीत में से अदम्य जिजीविषा और चेतावनी का स्वर का एक उदाहरण देखिये 
"जो अभी तक मौन थे वे शब्द बोलेंगे
हर महाजन की बही का भेद खोलेंगे।"

मौसम पर आधारित नवगीत में परोक्ष सन्देश का एक उदाहरण देखिये

"धूप में जब भी जले हैं पाँव घर की याद आयी

नीम की छोटी छरहरी छाँव में डूबा हुआ मन

द्वार पर आधा झुका बरगद-पिता माँ-बँध ऑंगन

सफर में जब भी दुखे हैं पाँवघर की याद आयी”

इस नवगीत में ग्रीष्म का वर्णन भर न होकर संतप्त मनुष्य को अपनी जड़ों की ओर लौटने का परोक्ष संदेश भी निहित है

अटल जी के प्रस्तुत नवगीत में सामयिक  कथ्य और पीढा की अनुभूति देखिये 

"चौराहे पे लुटता चीर
प्यादे से पिट गया वजीर
चलूँ आखरी चाल
कि बाज़ी छोड़ विरक्ति रचाऊ मैं
राह कौन सी जाऊँ मैं"

अटल जी के नवगीत में आह्वाहन भरी पंक्तियाँ देखिये 

"आओ फिर से दिया जलाएँ
भरी दुपहरी में अंधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें-
बुझी हुई बाती सुलगाएँ।"

नवगीत लेखन में सावधानियाँ :

नवगीत जितना सहज होता है, उतना ही प्रभावशाली होता है।  अतिशय प्रयोगशीलता के मोह में यह नहीं भूलना चाहिए कि संप्रेषणीयता भी रचना की एक महत्वपूर्ण विशेषता है।  भाषीय क्लिष्टता और प्रयुक्त बिम्बों की दुरूहता चौंकाती ज्यादा है और सुहाती कम है, जिसके कारण उसका पाठकों व श्रोताओं से सहज संवाद स्थापित नहीं हो पाता । नवगीत का सहज गीत होना भी ज़रूरी है ।

 

नवगीतों नें सदा से ही लोकजीवन से ऊर्जस्विता ग्रहण की है, किन्तु यह नवगीत का प्रतिमान नहीं है । आँचलिकता रचना में नव्यता लाती है, किन्तु जब आँचलिकता ही प्रधान हो जाए तो वह नवगीत का दोष बन जाती है और रचना का प्रयोजन ही पूरा नहीं करती।  भाषायी स्तर पर किये गए अत्यधिक आँचलिक प्रयोग कथ्य की संप्रेषणीयता को कम करते हैं । कभी कभी तो रचनाओं को समझने के लिए शब्दकोशों का सहारा लेना पड़ता है । वास्तव में ऐसी क्लिष्टताओं से मुक्त गीत ही नवगीत होता है।  अतः नवगीत में आँचलिक शब्दों को उनके परिवेश के अनुरूप ही संयत तरह से उठाना चाहिए ।

 

नवगीत में आत्मकथा कहने की प्रवृत्ति नहीं होती । जीवन के सुख-दुःख को विस्तार से समेटने, स्मृति की सिरहनों को सम्पूर्णता से शब्दशः व्यक्त करने , आगत अनागत को चित्रित करने , आपबीती का बखान करने आदि का विस्तार नवगीत में दोष माना जाता है ।

 

नवगीत में बिम्ब प्रधान काव्यता तो अभिप्रेय है, किन्तु सपाट बयानी नहीं , क्योंकि सपाट सिर्फ गद्य ही होता है, गीत नहीं।  सपाट बयानी सम्प्रेषण का माधुर्य हर लेती है, बिना गेयता और प्रवाह के कोई भी अभिव्यक्ति नवगीत नहीं हो सकती ।

 

नवगीत सदा ही अर्थप्रधान होना चाहिए, कोरी तुकबंदी उसे फ़िल्मी गीत सा सतही, अत्यधिक आँचलिकता उसे लोक-गीत सा आँचलिक और आपबीती का बखान उसे सिर्फ साधारण गीत ही रहने देते हैं ।

नवगीत में मात्रा गणना के नियम : 

नवगीत विधा गीत का ही नया आधुनिक स्वरुप है, तो जितने नियम गीत में होते हैं वह तो नवगीत में होंगे ही पर कुछ और नव्यता के साथ...

@सबसे पहले यह समझना ज़रूरी है कि गीत क्या है......?

सुर लय और ताल समेटे एक गेय रचना जो अंतर्भावों की प्रवाहमय सहज अभिव्यक्ति हो 

@अब यह जानना होगा कि समान गेयता और सुर लय ताल कैसे आते हैं?

यदि हम मात्रिक नियमों का पालन करते हैं... शब्द संयोजन में कलों के समुच्चय का निर्वहन करते हुए..यानी सम शब्दों के साथ सम मात्रिक शब्द लेकर व विषम शब्दों के साथ विषम मात्रिक शब्द लेकर.

स्वयं ही देखिये कि क्या एक पंक्ति में १४ मात्रा और दूसरी पंक्ति में १७ मात्रा किन्ही दो पंक्तियों में सम गेयता दे सकती हैं?

यह सही है कि मात्रा के निर्धारण में स्वतंत्रता होती है, पर जो निर्धारण मुखड़े में किया जाता है ...यदि अंतरे की अंतिम पंक्ति उसी का पालन नहीं करेगी तो फिर उसी लय में मुखड़े को दोहराया कैसे जाएगा.. 

यदि  मुखड़ा १६, १६  का हो तो अंतरे की पंक्तिया भी ८ या १६ की यति पर होनी चाहियें 

यदि  मुखड़ा १२, १२ का हो तो अंतरे की पंक्तिया भी १२ की होनी चाहियें 

इसमें  ....अनंत विविधताएं ली जा सकती हैं इसीलिये इसे नियमबद्ध करना संभव नहीं है....पर एक बात ज़रूर है कि एक ही गणना क्रम का पालन तो पूरे गीत में करना ही चाहिए 

अब  एक महत्वपूर्ण बात आती है...कि सुधि पाठक जन और रचनाकार कई उदाहरण पेश कर सकते हैं जो इस क्रम का पालन न करते हों, फिर भी नवगीत की श्रेणी में लिए जाते हों... तो इस महत्वपूर्ण बात को समझना आवश्यक है, कि नवगीत विधा को साहित्यकारों का खुला समर्थन अभी तक प्राप्त नहीं है..

दुर्भाग्यवश इस विधा के आलोचक भी नहीं हैं, और जो आलोचक हैं वो पूर्वाग्रह ग्रसित हैं और इस विधा को ही अस्वीकार कर देते हैं तो शिल्प गठन पर तो चर्चा ही नहीं होती..

इस विधा में मात्रा का निर्धारण अभी तक नियमों में आबद्ध नहीं है, लेकिन यदि सुविवेक से कोई भी प्रबुद्ध रचनाकार एक गेयता में पंक्तियों को बाँधता  है तो यह मात्रा निर्धारण या वार्णिक क्रम निर्धारण के बिना संभव ही नहीं.. इस बिंदु पर ही एक स्वस्थ चर्चा की आवश्यकता है... इसीलिये मैंने आलेख में किसी भी उदाहरण को प्रस्तुत नहीं किया था...

सभी पाठकों से मेरा आग्रह है कि कोई भी उदाहरण आप दें, और फिर हम उद्धृत नवगीत को नवगीत की कसौटी पर नापने तौलने का प्रयत्न करें और इस विधा पर अपनी एक समझ को विकसित होने का सुअवसर दें... न कि किसी भी अपवाद को उदाहरण मान कर नवगीत के प्रतिमान स्थापित कर लें...

सादर.

******************************************

नोट: प्रस्तुत आलेख अंतरजाल पर उपलब्ध जानकारियों व तदनुरूप विकसित निजी समझ पर आधारित है.

Views: 11579

Replies to This Discussion

नवगीत के ऊपर प्रस्तुत यह आलेख बहुत कुछ कहता हुआ सा है. यह आलेख आपकी वैचारिकता के साथ-साथ आपकी विधा परख को भी स्पष्ट करता है, आदरणीया.

नवगीत पर आदरणीया सीमाजी द्वारा प्रस्तुत एक आलेख के आगे की कड़ी की तरह है.

यह अवश्य है कि ऐसे विषय को किसी एक पाठ में बाँधा नहीं जा सकता. क्योंकि ऐसी विधा जिसका स्वरूप सर्वग्राही हो पाठ विशेष में सम्यक रूप से नहीं समा पाती. अतः प्रस्तुत आलेख जहाँ विधा की परिचयात्मकता पर मुखर है, विधा के मूल पर इंगित करता चलता है. कुछ उदाहरण अवश्य प्रभावी ढंग से तथ्यों को प्रस्तुत कर सकते थे.

//समकालीन नवगीतकारों दो श्रेणियाँ आज स्पष्ट देखने को मिलती हैं : एक वे हैं जो छंदों को महत्त्व देकर उनकी मर्यादा में रहकर गीत लिखते हैं, और दूसरे वे हैं जो छंद में नए प्रयोग करते हैं और लय आश्रित गीत लिखते हैं । //

बहुत सही ढंग से स्पष्ट किया है आपने, आदरणीया. यह अवश्य है कि छंद की विधाओं से मात्रिकता को ले कर कुछ भ्रम की स्थिति है. किन्तु, छंदमुक्त गेय कविताओं को लिखने वाले जानते हैं कि मात्रिकता का निर्वहन प्रवहमान कविताओं के लिए कितनी आवश्यक है. मात्रिकता के मूलभूत नियमों को जानना किसी कवि के लिए अत्यंतावश्यक पाठ की तरह होना ही चाहिये.

नवगीत सनातनी या शास्त्रीय छंदों में प्रयोग के तौर पर प्रारंभ हुए.  जैसे, दोहे के मात्र विषम चरण को लेकर साधी गयी मात्रिक पंक्तियाँ, या किसी दो छंदों का संयुक्त प्रयोग कर साधी गयी पंक्तियाँ. आदि-आदि. 

बाद मे नवगीतकारों ने स्वयंसंवर्धित मात्राओं का निर्वहन करना प्रारम्भ किया और बिम्ब, तथ्य और कथ्य में भी विशिष्ट प्रयोग करने की परिपाटी चल पड़ी. इसी तौर पर आंचलिक या ग्राम्य बिम्बों पर जोर पड़ा.

अस्तु

इस लेख हेतु पुनः बधाई, डॉ.प्राची.

आदरणीय सौरभ जी,

प्रस्तुत आलेख अपने तथ्यपरक कथ्य और वैचारिकता से आपको संतुष्ट कर सका, यह जान लेखन कर्म में आत्मविशवास को संबल मिला है..इस हेतु आपकी आभारी हूँ.

सभी की तरह आपको भी उदाहरणों की कमी प्रतीत हुई..... यह सही है कि उदाहरण तथ्य को और प्रभावी बनाते लेकिन मुझे लगा था कि  आलेख बहुत ज्यादा विस्तृत हो जाएगा.

फिर भी सबका आग्रह है और आवश्यकता महसूस हो रही है तो, जल्दी ही नवगीत पर एक और आलेख उदाहरणों सहित भी प्रस्तुत करने की कोशिश करूंगी, जिसमें हम सभी कथ्य के सार्थक प्रस्तुतीकरण का तुलनात्मक अध्ययन कर सकेंगे....और अवश्य ही इस विधा को और विस्तार से व और सूक्ष्मता से समझेंगे.

//नवगीत सनातनी या शास्त्रीय छंदों में प्रयोग के तौर पर प्रारंभ हुए.  जैसे, दोहे के मात्र विषम चरण को लेकर साधी गयी मात्रिक पंक्तियाँ, या किसी दो छंदों का संयुक्त प्रयोग कर साधी गयी पंक्तियाँ. आदि-आदि. 

बाद मे नवगीतकारों ने स्वयंसंवर्धित मात्राओं का निर्वहन करना प्रारम्भ किया और बिम्ब, तथ्य और कथ्य में भी विशिष्ट प्रयोग करने की परिपाटी चल पड़ी. इसी तौर पर आंचलिक या ग्राम्य बिम्बों पर जोर पड़ा.//

आप द्वारा प्रस्तुत किया गया नवगीत का यह विकास क्रम उपरोक्त आलेख में शामिल कर रही हूँ. सादर.

//मात्रिकता के मूलभूत नियमों को जानना किसी कवि के लिए अत्यंतावश्यक पाठ की तरह होना ही चाहिये.//...

बिल्कुल सही कहा है आदरणीय आपने , मेरा भी यही मानना है कि मात्रिकता के ज्ञान के बिना अगीत ही लिखे जा सकते हैं गीत कदापि नहीं.

सादर.

//सभी की तरह आपको भी उदाहरणों की कमी प्रतीत हुई.//

आपके आलेख में कथ्यों को संतुष्ट करने के क्रम में नवगीत के किसी पहलू को संतुष्ट करती दो-चार प्रतिनिधि पंक्तियाँ या किसी नवगीत का कोई एक बंद ही उदाहरण स्वरूप होना चाहिये, न कि पूरी की पूरी रचना.

सादर

आदरणीय सौरभ जी,

आदेशानुसार कुछ उदाहरण पेश करने का प्रयत्न किया है...कृपया अवलोकन कर लें...सादर.

जी, पहले तो सुझाव को आदेश न कहें.. :-))
बहुत सही किया आपने कि अपने कथ्य को अनुमोदित और संतुष्ट करती पंक्तियाँ आपने डाल दीं.

आगे, इस लेख पर हुई सुधीजनों की परिचर्चाएँ आपके प्रयास का पूरक होंगी.

सादर

क्षमा करें आदरणीय 

सौरभ जी बिलकुल सत्य कहा आपने .और यह नवगीत की चर्चा ने विस्तार पूर्वक तथ्य को खोल शुरू कर दिया , प्राची जी आपके बहुत उम्दा जानकारिय जोड़ी है . बधाई सुन्दर लेख और परिचर्चा हेतु .

अनुमोदन हेतु सादर धन्यवाद आदरणीया शशिजी.

यदि हमारी परस्पर बातें किसी मुकाम पर पहुँच पायीं तो यह हम सभी के लिए एक अत्यंत तोषदायी बात होगी.  वैसे, बहुत कठिन है डगर पनघट की.. .  :-)))))

सादर

प्राची जी, आपका यह लेख निश्चित ही ज्ञानवर्धक और अनेक शंकाओं का समाधान करने  में सक्षम है। किसी भी गीत या नवगीत में गेयता  ही उसका असली सौन्दर्य होता है और बिना मात्रिक विधान के वह सौन्दर्य नहीं आ सकता। छंद विधान का पालन करते हुए ही गीत में नया कथ्य और तथ्य लाने की कोशिश करनी चाहिए। इसके बिना रचना अछन्द ही कहलाएगी। आपके विचारों से मैं पूरी तरह से सहमत हूँ। आपने बहुत अच्छी तरह हर बिन्दु पर प्रकाश डाला है।...सुंदर लेख के लिए बधाई आपको

आदरणीया कल्पना रामानी जी 

आलेख आपको शंका समाधान में सक्षम लगा यह जान मुझे संतुष्टि मिली है, साथ ही गेयता के लिए मात्रिक विधान के अनुमोदन के लिए भी आपकी आभारी हूँ. आलेख के कथ्य पर आपकी मुखर सहमति के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद. सादर.

आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी,

सर्व प्रथम तो "नवगीत (एक परिचाय)" में काफी परिश्रम कर विस्तार से जानकारी देने के हार्दिक बधाई |

यह सही है की महाप्राण "निराला" की सरस्वती वंदना में “नव गति नव लय ताल छंद नवऔर खड़ी बोली में लिखने वाले

ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित श्रद्धेय सुमित्रा नन्दन पन्त द्वारा पन्त जी की रचना " वह आता, दो टूक कलेजे के करता,

पछताता,पथ पर आता"जैसी रचनाओं में प्रयोग देखने को मिलता है | 

आपका यह कहना भी सही है लय ताल गेयता बिना गीत कैसा ? यहाँ तक कि डॉ औशुतोष वाजपेयी, तो नव गीत को गद्य साहित्य

ही मानते है और उनके कथनानुसार बगर लय,ताल,गेयता और शिप विधा के लिखा गया काव्य नहीं है और वेदों दे अनुसार रचनाकर्मी

पाप करते है |अर्थात वेद संमंत नहीं है | इस तर्क का अधयन करे तो इसके कारण भी सहज उचित दिखाई देते है | आदि कवी वाल्मीकि, सूर,तुलसी,जायसी,रसखान, कबीर सभी ने मात्रिक छंदों के साथ गेयता का पूर्ण ध्यान रखते हुए वधा का पालन किया है |

फिर भी आज नव गीत कहा जाने वाला साहित्य खूब लिखा व् पढ़ा जा रहा है | और नवगीत भी सुन्दर तो वही होगा जो गेयता लिए होगा,

पढने में मधुर लग्गा, मन मुग्ध करेगा |

इसलिए मेरे जैसे साधरण ज्ञान के पाठक के लिए कुछ उदाहरण, के साथ सविस्तार समझाने, तार्किक रूप से उसे नवगीत की कसोटी पर

सुविकसित नवगीत सिद्ध करने हेतु अन्य विद्वजन सविस्तार टिपण्णी करेंगे तो नव गीत पर ओबीओ को शोधगम्य इतिहास बनेगा |

एक बेहद आवश्यक विधा जो दिन प्रति दिन विस्तार ले रही है, बगैर उचित विधा की जानकारी के, इसके प्रशंसक तो

आलोचक भी कमनहीं है, के प्रति आपने मंच प्रदान कर साहसिक और नेक काम किया है | इसके लिए तहे दिल से बधाई  

आदरणीय लक्ष्मण प्रसादजी, आपका नवगीत विधा के प्रति रुचि उत्साहवर्द्धक है. यह इस आलेख के लेखक ही नहीं बल्कि इस मंच के लिए भी संतोष की बात है.

किन्तु, आपकी प्रस्तुत टिप्पणी में कुछ बातें अस्पष्टता का शिकार हो गयी हैं. आपकी टिप्पणी को पढ़ कर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि आप नई-कविता, अतुकांत कविता और नवगीत में अंतर नहीं कर पाये हैं. यदि ऐसा नहीं है तो आप इस तथ्य को स्पष्ट करें ताकि हम आश्वस्त हो सकें. नवगीत कभी बिना मात्रा के हो ही नहीं सकता. और सही मात्रिकता के साथ उचित शब्द-संयोजन कविता की गेयता की नींव होती है.

सर्वोपरि, वह आता दो टूक कलेजे के करता.. जैसी कालजयी कविता (छंदमुक्त/ अतुकांत कविता) पंतजी की नहीं बल्कि निराला की ही कविता है. किन्तु, यह नवगीत तो है ही नहीं है. हालाँकि हमने कई साहित्यिक आयोजनों में इस कविता को गायकों द्वारा गाते हुए भी सुना है. देवघर से मेरे एक परिचित श्री मुकुंद द्वारी इस कविता को करीब हर साहित्यिक आयोजन में सस्वर गाते थे. यह अवश्य है कि पंत और निराला दोनों महाविभूति इलाहाबाद से ही थे.

सादर

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आ. भाई अमित जी, मतले का सानी आपके दिशा-निर्देश पर बदला है,  दास्ता प्यार फ़लसफ़ा भी थी  और…"
6 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"सीधा ओबीओ पर टाइप न करके कहीं फ़ोन पर व्हाट्स ऐप पर टाइप कर लिया करें और फिर  यहाँ मंच पर कॉपी…"
35 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय, अमित जी, नमस्कार! आपने मेरी प्रस्तुति पर गौर फरमाया, आपका, आ. बहुत आभारी हूँ. आज नेट की…"
1 hour ago
सालिक गणवीर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"भाई साहब, न दुआ न सलाम! ऐसे कौन टिप्पणी करता है जी.?"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आभार आ. शिज्जू भाई "
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आभार आ. अमित जी "
1 hour ago
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"दोस्तो आदाब, तबीअत ख़राब होने के कारण इस आयोजन में शिर्कत नहीं  कर पा रहा हूँ, माज़रत  ।"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"२१२२ १२१२ २२ यूँ ख़ुमारी के सँग बला भी थी आँख में नींद थी निशा भी थी /१ ये जो चूके हैं हम निशाने…"
1 hour ago
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"साइट में कुछ तकनीकी समस्या के कारण 'सुरेन्द्र इंसान' अपनी ग़ज़ल मंच पर पोस्ट नहीं कर पा रहे…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"बहुत खूब आदरणीय निलेश भाईअच्छे अशआर हुए हैं, हार्दिक बधाई आपको। गिरह खूब लगी है। मित्रता…"
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय Chetan Prakash जी आदाब  ग़ज़ल के प्रयास पर बधाई स्वीकार करें। 2122 1212…"
3 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"शुक्रिया अमित भाई "
3 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service