"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-28 में शामिल सभी लघुकथाएँ - Open Books Online2024-03-29T14:50:19Zhttp://openbooks.ning.com/forum/topics/28-2?feed=yes&xn_auth=noआ.सर ,कथा मे संशोधन किया हैं…tag:openbooks.ning.com,2017-08-09:5170231:Comment:8723612017-08-09T19:08:07.965ZArchana Tripathihttp://openbooks.ning.com/profile/ArchanaTripathi
आ.सर ,कथा मे संशोधन किया हैं सम्भव हो तो संकलन में 11वे क्रमांक पर प्रतिस्थापित कर दीजिए।आपकी सदैव आभारी रहूंगी।सादर<br />
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विश्वासघात का सत्य<br />
" अरे ! मम्मी आप अब भी मुझे क्यों स्कूल और कोचिंग छोड़ने की परेशानी उठाती हो ? क्या आपको मुझपर विश्वास नही हैं ? " बिटिया श्रेया ने उर्मिला से सवाल किया<br />
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" क्यो नही होगा ?" कहने को उर्मिला श्रेया को कह तो गई लेकिन अतीत असँख्य सवालों सहित उसके समक्ष आ गया :<br />
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उर्मिला की बड़ी बहन के विवाह के लिए रिश्ते देखे जा रहे थे।एक प्रस्ताव में लड़के राज ने बड़ी बहन के बदले…
आ.सर ,कथा मे संशोधन किया हैं सम्भव हो तो संकलन में 11वे क्रमांक पर प्रतिस्थापित कर दीजिए।आपकी सदैव आभारी रहूंगी।सादर<br />
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विश्वासघात का सत्य<br />
" अरे ! मम्मी आप अब भी मुझे क्यों स्कूल और कोचिंग छोड़ने की परेशानी उठाती हो ? क्या आपको मुझपर विश्वास नही हैं ? " बिटिया श्रेया ने उर्मिला से सवाल किया<br />
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" क्यो नही होगा ?" कहने को उर्मिला श्रेया को कह तो गई लेकिन अतीत असँख्य सवालों सहित उसके समक्ष आ गया :<br />
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उर्मिला की बड़ी बहन के विवाह के लिए रिश्ते देखे जा रहे थे।एक प्रस्ताव में लड़के राज ने बड़ी बहन के बदले उर्मिला को ही पसन्द कर लिया था। जिसे मम्मी ने यह कहते हुए मना कर दिया था की बड़ी के बाद विचार करेंगे।लेकिन राज ओर उर्मिला सब्र नही कर सके और सारी दुनिया को ताक पर रख कर घर से भाग गए। फिर उन्होंने प्रेम विवाह कर लिया।इस सच को उसके मम्मी-पापा महीनों स्वीकार नही कर पाए की उनकी बेटी अपने सुख के लिए थोड़ा सा इंतजार भी ना कर सकी।"<br />
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अतीत में खोई उर्मिला को झिंझोड़ते हुए श्रेया ने पूछा " मम्मी कहाँ खोई हो ?"<br />
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लेकिन अपने मे ही डूबी उर्मिला बुदबुदा रही थी " विश्वासघाती किसी के सत्य पर भी विश्वास कर सकता हैं क्या ? "<br />
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मौलिक ओर अप्रकाशित संशोधित लघुकथा कथा का अवलोकन…tag:openbooks.ning.com,2017-08-09:5170231:Comment:8725252017-08-09T05:02:13.343Zलक्ष्मण रामानुज लडीवालाhttp://openbooks.ning.com/profile/LaxmanPrasadLadiwala
<p>संशोधित लघुकथा कथा का अवलोकन कर संशोधित कर कृतार्थ करे आदरणीय -</p>
<p><b>कलाई पर राखी (लघु कथा)</b><br></br> ===================<br></br> बिटिया ममता का मार्मिक और स्नेह-भाव से लिखा खत मिला -<br></br> "आज बाजार गई थी, जहाँ रँग-बिरंगी राखियों की चारो ओर रौनक छायी हुई थी । भैया के लिए राखियाँ तो खत के साथ भेज रही हूँ, पर मन में तमन्ना थी कि वीर की कलाई खुद सजाऊँ । माँ-बापू ने तो मुझे ब्याह कर परदेश भेज दिया । "बेटियाँ पराएं घर की होती है" ये कहावत मुझे दुखी करती है ।<br></br> खत पढ़ते ही भैया योगीराज ने…</p>
<p>संशोधित लघुकथा कथा का अवलोकन कर संशोधित कर कृतार्थ करे आदरणीय -</p>
<p><b>कलाई पर राखी (लघु कथा)</b><br/> ===================<br/> बिटिया ममता का मार्मिक और स्नेह-भाव से लिखा खत मिला -<br/> "आज बाजार गई थी, जहाँ रँग-बिरंगी राखियों की चारो ओर रौनक छायी हुई थी । भैया के लिए राखियाँ तो खत के साथ भेज रही हूँ, पर मन में तमन्ना थी कि वीर की कलाई खुद सजाऊँ । माँ-बापू ने तो मुझे ब्याह कर परदेश भेज दिया । "बेटियाँ पराएं घर की होती है" ये कहावत मुझे दुखी करती है ।<br/> खत पढ़ते ही भैया योगीराज ने तुरन्त फोन लगाकर कहाँ - "बहन, माँ-बापू ने तो तुझे इसी शहर में हृदय के पास ही ब्याहा था, पर भाग्य की आस में कर्मवीर ही परदेश ले गए । हमने तुझे हृदय में सहेजकर रखा है। बापू जी का कहना है की बिटियाँ द्वारा खत में लिखी कहावत अधूरी है । "बिटियाँ पराये घर की नहीं, पराये घर की शान होती है, जो दूजे घर का दायित्व सम्भालकर उस घर को आबाद करती है" तूझे यह जानकर ख़ुशी होगी कि बापू ने पहले ही मेरा रिजर्वेशन करा दिया है | मेरी कलाई पर राखी तो तेरे हाथों से ही सजेगी । रक्षा-बन्धन के दिन सुंदर राखी बन्धवाने मैं आ रहा हूँ । और हाँ, तु कुछ दिन के लिए मेरे साथ आने की तैयारी करके रखना ।माँ ने कहाँ है लेकर ही आना ।</p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित)</p> आ.योगराज प्रभाकर सर जी,त्वरित…tag:openbooks.ning.com,2017-08-05:5170231:Comment:8715662017-08-05T18:18:15.973ZArchana Tripathihttp://openbooks.ning.com/profile/ArchanaTripathi
आ.योगराज प्रभाकर सर जी,त्वरित संकलन के लिए हार्दिक बधाई साथ ही क्षमा चाहती हूं कि गलत कथा पोस्ट कर दी थी आपके सहयोग से पुनः सही कथा पोस्ट करने का सुअवसर मिला अतः ह्रदय से धन्यवाद।
आ.योगराज प्रभाकर सर जी,त्वरित संकलन के लिए हार्दिक बधाई साथ ही क्षमा चाहती हूं कि गलत कथा पोस्ट कर दी थी आपके सहयोग से पुनः सही कथा पोस्ट करने का सुअवसर मिला अतः ह्रदय से धन्यवाद। आशा करता हूँ कि भविष्य में आप…tag:openbooks.ning.com,2017-08-04:5170231:Comment:8714592017-08-04T04:08:03.041Zयोगराज प्रभाकरhttp://openbooks.ning.com/profile/YograjPrabhakar
<p>आशा करता हूँ कि भविष्य में आप "दागो और भागो" ब्रिगेड में शामिल होने से गुरेज़ करेंगे भाई सुधीर जी.</p>
<p>आशा करता हूँ कि भविष्य में आप "दागो और भागो" ब्रिगेड में शामिल होने से गुरेज़ करेंगे भाई सुधीर जी.</p> मेरी कथा को स्थान देने हेतु ह…tag:openbooks.ning.com,2017-08-04:5170231:Comment:8713902017-08-04T03:04:27.252ZSudhir Dwivedihttp://openbooks.ning.com/profile/SudhirDwivedi
<p>मेरी कथा को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार ! आउट ऑफ़ स्टेशन रहने के कारण मेरी सक्रिय सहभागिता नही रही . इस हेतु क्षमा प्रार्थी हूँ .</p>
<p>मेरी कथा को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार ! आउट ऑफ़ स्टेशन रहने के कारण मेरी सक्रिय सहभागिता नही रही . इस हेतु क्षमा प्रार्थी हूँ .</p> हार्दिक आभार भाई विनय कुमार स…tag:openbooks.ning.com,2017-08-03:5170231:Comment:8712962017-08-03T09:08:13.197Zयोगराज प्रभाकरhttp://openbooks.ning.com/profile/YograjPrabhakar
<p>हार्दिक आभार भाई विनय कुमार सिंह जी.</p>
<p>हार्दिक आभार भाई विनय कुमार सिंह जी.</p> हौसला अफज़ाई के लिए तह-ए-दिल स…tag:openbooks.ning.com,2017-08-03:5170231:Comment:8713722017-08-03T09:07:50.527Zयोगराज प्रभाकरhttp://openbooks.ning.com/profile/YograjPrabhakar
<p>हौसला अफज़ाई के लिए तह-ए-दिल से शुक्रिया मोहतरम जनाब समर कबीर साहिब.</p>
<p>हौसला अफज़ाई के लिए तह-ए-दिल से शुक्रिया मोहतरम जनाब समर कबीर साहिब.</p> एक और सफल आयोजन के लिए बहुत ब…tag:openbooks.ning.com,2017-08-03:5170231:Comment:8713602017-08-03T05:11:05.002Zविनय कुमारhttp://openbooks.ning.com/profile/vinayakumarsingh
<p>एक और सफल आयोजन के लिए बहुत बहुत बधाई आ योगराज सर </p>
<p>एक और सफल आयोजन के लिए बहुत बहुत बधाई आ योगराज सर </p> कृपया १७ वें क्रमांक पर सही ट…tag:openbooks.ning.com,2017-08-02:5170231:Comment:8712732017-08-02T14:38:32.010ZSheikh Shahzad Usmanihttp://openbooks.ning.com/profile/SheikhShahzadUsmani
कृपया १७ वें क्रमांक पर सही टंकित कर दीजिए : सिखा/शिखा
कृपया १७ वें क्रमांक पर सही टंकित कर दीजिए : सिखा/शिखा बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर…tag:openbooks.ning.com,2017-08-02:5170231:Comment:8711532017-08-02T13:57:53.396ZSheikh Shahzad Usmanihttp://openbooks.ning.com/profile/SheikhShahzadUsmani
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर जी।
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर जी।