For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओबीओ लखनऊ चैप्टर की साहित्य संध्या माह जनवरी 2019 – एक प्रतिवेदन

 13 जनवरी, दिन रविवार को ओ.बी.ओ लखनऊ-चैप्टर की ‘साहित्य संध्या‘ वर्ष 2019 का पहला सत्र सुप्रसिद्ध कवयित्री संध्या सिंह के आवास, 1225-डी, इंदिरा नगर, लखनऊ पर उन्हीं के सौजन्य से संपन्न हुआ i कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रबुदध कवि रघोत्तम शुक्ल ने की I संचालन मनोज कुमार शुक्ल ‘ मनुज’ द्वारा किया गया I

कार्यक्रम दो चरणों में बंटा हुआ था I प्रथम चरण में प्रत्येक साहित्य-प्रेमी को “लेखन में आत्ममुग्धता की प्रवृत्ति एवं उसके खतरे ?’ विषय पर विचार व्यक्त करने थे I इस परिचर्चा में भाग लेने वाले साहित्य प्रेमी थे – डॉ. शरर्दिंदु मुकर्जी, डॉ. अंजना मुखोपाध्याय ,सुश्री संध्या सिंह, डॉ. अशोक शर्मा, डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव, दयानंद पाण्डेय, कवयित्री संध्या सिंह, सुश्री ज्योत्स्ना सिंह, मनोज शुक्ल ‘मनुज‘, सुश्री निवेदिता श्रीवास्तव एवं रघोत्तम शुक्ल I

परिचर्चा में अधिकतर लोगों ने यह माना कि स्व-लेखन के प्रति आत्ममुग्धता में कोई बुराई नहीं है i लेकिन इसकी एक हद होनी चाहिए I अति सर्वत्र वर्जयेत I डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव के अनुसार अपनी कविता का अच्छा लगना और आत्ममुग्धता में फर्क है i इस बारीक रेखा को समझना होगा I प्रबुद्ध साहित्यकार रघोत्तम शुक्ल ने कहा आत्ममुग्धता अहंकार की छोटी बहन है I अतः एक सीमा के बाद आत्ममुग्धता पर नियंत्रण होना चाहिए I मनोज शुक्ल ‘मनुज‘, का कहना था कि यदि आप अपने को खुद को मान्यता नहीं देंगे तो दूसरे लोग क्यों आईडेंटीफाई करेंगे ? दयानंद पाण्डे ने कहा कि आत्ममुग्धता किसी मानव का जन्मजात या अन्तर्जात गुण है, उसको डिनाई नहीं कर सकते I यह तो बेसिक चीज है पर इसको एप्रोप्रियेट लेवल पर लाना होगा I सुश्री निवेदिता श्रीवास्तव ने कहा कि आत्मसंतुष्टि तो अच्छी बात है कि हम अपने लेखन से संतुष्ट होते हैं, किन्तु जब आत्ममुग्धता आ जाती है तो वहीं गड़बड़ होती है I सुश्री संध्या सिंह ने कहा कि –जब हम अपने जज बने रहें, जब हमको पता हो कि हमने ख़राब लिखा है I वहाँ तक तो ठीक है, लेकिन अगर आत्ममुग्धता इतनी हावी हो जाए कि हम अपनी रचनाओं को पब्लिक या पब्लिश करने से पहले एक बार उसका आकलन न कर पाएं तो यह खतरनाक है I डॉ. अशोक शर्मा का कहना था कि आत्ममुग्ध लेखन में कोई बुराई नहीं है क्योंकि हम इसमें किसी का नुकसान पहुँचाने नहीं जा रहे हैं I हम जब आत्ममुग्ध होते हैं, तभी विश्वास आता है I डॉ. शरदिंदु मुकर्जी ने कहा कि यदि लेखन में अहंकार आ जाए तो उसे सहज ही भुलाया जा सकता है । ऐसे में साहित्य को कोई 'ख़तरा' नहीं है । यदि ऐसी तथाकथित रचना को लेकर हम अनावश्यक बहस करते हैं, तो साहित्य के लिए वह ख़तरनाक हो सकता है I कवयित्री ज्योत्सना सिंह ने कहा कि मुझे तो लगता है कि आत्ममुग्धता और अहम् के बीच एक पतली सी रेखा है और जब वह रेखा पार हो जाती है तो घमंड आ जाता है I डॉ. अंजना मुखोपाध्याय के अनुसार मनोवैज्ञानिक आत्मुग्धता या स्व-प्रेम ( Narcissism ) संप्रत्यय को सामान्य मानव प्रकृति का हिस्सा मानते हैं I आत्ममुग्ध व्यक्ति को अपनी उपलब्धि तथा क्षमताओं का उच्च आकलन करने की तथा दूसरों के अवदान को निम्नतर करने की आदत पड़ जाती है I ऐसे व्यक्तियों में आत्मश्लाघा बहुत होती है और वे आलोचना स्वीकार करने की क्षमता खो बैठते हैं I

कार्यक्रम के दूसरे चरण में काव्यपाठ एवं लघुकथा का वाचन हुआ i इसका समारंभ संचालक ने अपनी सिंहावलोकन घनाक्षरी में वाणी-वंदना से किया I इसके बाद सुश्री ज्योत्सना सिंह का आह्वान लघुकथा पाठ के लिए हुआ I सुश्री ज्योत्सना ने ‘भावनाओं का संबल’ और ‘आधा अंग’ शीर्षक से अपनी दो लघुकथाएँ सुनाईं I कवयित्री निवेदिता श्रीवास्तव ने ‘आरक्षण’ पर कुछ चुटीले दोहे सुनाये i जैसे -

दीमक वाले देश में, बस कुर्सी की होड़

आरक्षण की आड़ में पनप रहा है कोढ़ II

आरक्षण की मार से, योग्य हुए लाचार I

सच्चा मिट्टी में पड़ा खोटे का व्यापार II

फिर उनसे माहिया की फरमाईश की गयी I गले में खराश होने के बावजूद उन्होंने माहिया के कुछ सुन्दर बंद सुनाये i उदाहरण निम्न प्रकार है -

कुछ बीती बातें हैं

कुछ वादे नूतन

आने हैं, जाने हैं I

फिर गीत नया गाया

बीती को बिसरा

लो साल नया आया I

डॉ. शरदिंदु मुकर्जी ने सर्वप्रथम ‘तमाशबीन’ शीर्षक से एक लघुकथा सुनायी I इसके बाद उन्होंने बांग्ला के प्रसिद्ध कवि सुकांत भट्टाचार्य की कविता ‘चारागाछ’ का स्वयं द्वारा किया गया भावानुवाद ‘दुर्निवार उच्छ्वास---‘ का पाठ किया I इस कविता से संदेश मिलता है कि अत्याचार, अनाचार और अन्याय की परिणामी करुणा के बाद कभी न कभी कहीं न कहीं विरोध का अंकुर फूटता अवश्य है I कवि अपनी यूटोपिया (UTOPIA) में इस सत्य का अनुभव करता है, जो डॉ. मुकर्जी के भावानुवाद में इस प्रकार रूपायित हुआ है -

दुर्निवार उच्छवास से बड़े होते हुए / छोटे-छोटे कोपल / चुपचाप हवा में झूमते हुए / सुनते हैं हर ईंट के पीछे छिपी हुयी कहानी / खून पसीना और आँसुओं की कहानी / और मैं अवाक हो देखता हूँ / पीपल के इन कोपलों में / गुप्त विद्रोह का जमा होना I

इसके बाद उन्होंने अपनी स्वरचित कविता ‘जब तुम आओ’ में चिर प्रियतम के पास जाने की अपनी अभिलाषा व्यक्त की है, पर कुछ शर्तों के साथ और कुछ इस प्रकार –

जब तुम आओ / अपने स्पर्श से मेरी अज्ञानता को झंकृत कर / नये शब्दों की, नये संगीत की / और हरित वेदना की रश्मि डोर पकड़ा देना / मैं उसके आलोक में / तुम्हारे आनंदमय चरणों तक / स्वयं चलकर आऊँगा / मेरे प्रियतम !

डॉ. अंजना मुखोपाध्याय का कहना है कि -

चुन लो टूटती कलियों की

व्यथा के बोल

तुम्हारे आत्मा की आवाज है

तुम्हारे ठहराव को परखती

चौखट के बाहर

दरवाजा तो खोल

उनकी एक अन्य कविता, जिसमे तुकांतता का आद्यांत निर्वाह हुआ है उसमे ‘आनंदवाद‘ की वह अवधारणा मुखर हुयी है, जिसका अन्वेषण जयशंकर प्रसाद ने ‘कामायनी’ में किया था I यह मानव की सहज वृत्ति है कि वह सुख की ओर भागता है और कैसी भी परिस्थिति हो वह ढूंढ ही लेता है, अपने लिये ‘छाँव के पल’ कुछ इस तरह -

चिलचिलाती धूप की धधकती आग I

शाम की परछाईं समेटे शब्द की आग II

मानव ढूंढता है छाँव के पल I

दामन भर लेता है लम्हों के बल II

धरती की गोद में खिलते ही कब I

सीख लेता है देखना सपने सबब II

संचालक मनोज शुक्ल ‘मनुज’ ने हाल में ही की गयी बस यात्रा के दौरान प्रकृति के अद्भुत रंगों को अपने शब्दों में बाँधने की स्वीकारोक्ति करते हुए अपनी कविता इस प्रकार पढ़ी-

कंपकंपाते दिख रहे तारे क्षितिज पर

ओस से धरती मसौदी हो रही है I

चल रही है लडखडाती थी सुई भी

वक्त को चुपचाप सिकुड़ी ढो रही है II

कवि दयानन्द पाण्डेय ने गजल के नाम पर दो प्रस्तुतियाँ की I उनकी गजल का एक उदाहरण इस प्रकार है -

दिल के आकाश पर उड़ता बादल मुहब्बत का

तुम्हारे दिल की पृथ्वी पर मैं बरसात लिखता हूँ I

अनमोल है तुम्हरी लगन मुझे गजल में बसाने की

जिदगी की इस घड़ी में तुम्हारी छाँव लिखता हूँ I

कथाकार डॉ. अशोक शर्मा जीवन के ताप-शाप और अभिशाप सहकर परिपक्व हो चुके हैं I उनका कहना है कि ये सब तो मानव जीवन के अनिवार्य अंग हैं I इन्हें कहाँ तक और कब तक याद रखूँ I उनके चिंतन में संताप के जो चित्र उभरते हैं, उनकी बानगी इस प्रकार है -

गर्म तपती रेत में मेरे जलते पांव कब तक याद रखूँ I

मिट गये थे वक्त के कुछ गाँव कब तक याद रखूँ II

चुभ गए थे शूल तन मन में बहुत से

धूप जलती झेल डाली थी जो सर पे

मिल सकी थी पर न कोई छाँव , कब तक याद रखूँ II

डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव ने ‘प्रकृति का व्यापार‘ शीर्षक रचना का जैसे ही पाठ्य प्रारम्भ किया अध्यक्ष ने टिप्पणी की कि इस कविता से सुमित्रा नंदनपन्त की कविता ‘मौन निमंत्रण’ की याद ताजा हो रही है I दरअसल ‘मौन निमंत्रण’ ‘पुनीत छंद’ में लिखा गया है, जिसके प्रत्येक चरण में 15 मात्राएँ होती हैं और चरणांत में 221 अर्थात तगण होता है I पंत जी के 'मौन निमंत्रण' का ही उदाहरण प्रस्तुत है -

सघन मेघों का भीमाकाश
गरजता है जब तमसाकार,
दीर्घ भरता समीर निःश्वास
प्रखर झरती जब पावस-धार;

न जाने तपक तड़ित कौन ?

निमंत्रण देता मुझको मौन II

डॉ. श्रीवास्तव ने इसी छंद में रचना की थी इसीलिये अध्यक्ष महोदय को सहसा पंत की याद आ गयी I रचना के कुछ अंश इस प्रकार थे –

पवन लहरों पर करता राज

रही है पायल जग की बाज

देखता रवि सच्छवि का छाज

नए परिवर्तन का है साज

        शांत रस का सहसा शृंगार

        प्रकृति का है कैसा व्यापार ?

कवयित्री शीला पाण्डेय ने भेद, छेद, साँस और प्यास जैसे शब्दों का एक ही पंक्ति में युक्तिपूर्वक दो बार प्रयोग कर अपनी समर्थ काव्य क्षमता का परिचय दिया I यह रचना उन्होंने बह्र रमन मुसल्लम सालिम अर्थात फायलातुन फायलातुन फायलातुन फायलातुन (2122, 2122,2122, 2122) में की है और बखूबी की है I एक मुजाहिरा पेश है -

भेद विष को अंत तक तू लक्ष्य देकर भेद सागर I

छेदना हो नासिका सर विष बुझे सा छेद नागर II

सांस धड़कन तलहटी में परिक्रमा कर सांस सोयी I

प्यास रख रणभूमि की फिर हर किसी से प्यास रोयी II

प्रसिद्ध कवयित्री संध्या सिह की कविताओं में बिंब योजना देखते ही बनती है I पहले उन्होंने कुछ दोहे सुनाये फिर ‘प्रेम’ को बिम्बों में रूपायित किया I उसका एक बिम्ब इस प्रकार है -

प्रेम अगर घुला होगा / तुम्हारे लहू में / तो तुम्हारे जर्जर मकान के / सीलन भरे कमरे में / बदरंग दीवार पर / दिखने लगेगा / एक इन्द्रधनुष I

अंत में कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री रघोत्तम शुक्ल जिन्होंने  जयदेव के ‘गीत-गोविन्द’ और ‘गीता’ का हिंदी भाषा में काव्य रूपांतरण किया है, उन्होंने गीता-अनुवाद के कुछ अंश सुनाये I एक अनुवाद उदाहरणस्वरुप यहाँ प्रस्तुत है -

गीता - समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः ।

ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम् ॥

हिन्दी पद्यानुवाद- सब में सम हूँ नहीं किसी से मुझको कोई प्रीति- कपट I

                        पर श्रद्धालु भक्त हैं मुझमें और मैं उनमे सदा प्रकट II

उन्होंने यह भी बताया कि हिदी के साथ ही साथ उनके द्वारा अंग्रेजी में भी गीता का पद्यानुवाद किया गया है I कार्यक्रम औपचारिक रूप से यहीं समाप्त हुआ I इसके तुरंत बाद चाय और सूक्ष्म जलपान की व्यवस्था थी I सुश्री संध्या सिंह के आतिथ्य में चाय और चाह का अद्भुत सगम था i ‘प्रेम’ पर जो कविता उन्होंने सुनाई थी उसका इन्द्रधनुष आकार लेने लगा था I मैं भी युग-प्रवर्तक ‘अज्ञेय’ से क्षमा चाहते हुए ‘प्रेम’ से पूछने लगा-

प्रेम !

तुम साकार तो हुए नहीं

छल करना तुम्हें आया नहीं

एक बात पूछूं- जवाब दोगे ?

फिर कहाँ सीखा

दिल में उतरना, अंतस का मथना ? (सद्यरचित )

{मौलिक व अप्रकाशित }

Views: 393

Reply to This

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
yesterday
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Apr 13

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service