"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-18 (विषय: पर्दे के पीछे) - Open Books Online2024-03-28T21:54:46Zhttp://openbooks.ning.com/forum/topics/18?commentId=5170231%3AComment%3A804887&feed=yes&xn_auth=noदशहरा आने के पूर्व ही गोष्ठी…tag:openbooks.ning.com,2016-09-30:5170231:Comment:8050552016-09-30T18:24:33.062ZSheikh Shahzad Usmanihttp://openbooks.ning.com/profile/SheikhShahzadUsmani
दशहरा आने के पूर्व ही गोष्ठी में बेहतरीन उम्दा कथानक पर बेहतरीन भावपूर्ण रचना के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय चन्द्रेश कुमार छतलानी साहब।
दशहरा आने के पूर्व ही गोष्ठी में बेहतरीन उम्दा कथानक पर बेहतरीन भावपूर्ण रचना के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय चन्द्रेश कुमार छतलानी साहब। सादर नमन आदरणीय सर|tag:openbooks.ning.com,2016-09-30:5170231:Comment:8048912016-09-30T18:16:00.074ZDr. Chandresh Kumar Chhatlanihttp://openbooks.ning.com/profile/ChandreshKumarChhatlani
<p>सादर नमन आदरणीय सर|</p>
<p>सादर नमन आदरणीय सर|</p> उम्दा प्रयास किया है आपने, सह…tag:openbooks.ning.com,2016-09-30:5170231:Comment:8050052016-09-30T18:15:31.300Zयोगराज प्रभाकरhttp://openbooks.ning.com/profile/YograjPrabhakar
<p><span><span>उम्दा प्रयास किया है आपने, </span>सहभागिता के लिए बधाई स्वीकार करे।</span></p>
<p><span><span>उम्दा प्रयास किया है आपने, </span>सहभागिता के लिए बधाई स्वीकार करे।</span></p> बहुत सुंदर विषय पर सार्थक कथा…tag:openbooks.ning.com,2016-09-30:5170231:Comment:8050032016-09-30T18:09:50.665Zयोगराज प्रभाकरhttp://openbooks.ning.com/profile/YograjPrabhakar
<p><span>बहुत सुंदर विषय पर सार्थक कथा, <span>बधाई स्वीकारे भाई जी ।</span></span></p>
<p><span>बहुत सुंदर विषय पर सार्थक कथा, <span>बधाई स्वीकारे भाई जी ।</span></span></p> आदरणीय वीरेंद्र भाई जी, आपके…tag:openbooks.ning.com,2016-09-30:5170231:Comment:8051652016-09-30T17:52:26.677ZMahendra Kumarhttp://openbooks.ning.com/profile/Mahendra
<p>आदरणीय वीरेंद्र भाई जी, आपके स्नेहिल शब्दों से अभिभूत हूँ। लघुकथा आपको पसंद आयी इसके लिए आपका हृदय से आभार, सादर!</p>
<p>आदरणीय वीरेंद्र भाई जी, आपके स्नेहिल शब्दों से अभिभूत हूँ। लघुकथा आपको पसंद आयी इसके लिए आपका हृदय से आभार, सादर!</p> दहन किसका
"जानते हो रावण की…tag:openbooks.ning.com,2016-09-30:5170231:Comment:8051622016-09-30T17:49:59.429ZDr. Chandresh Kumar Chhatlanihttp://openbooks.ning.com/profile/ChandreshKumarChhatlani
<p>दहन किसका</p>
<p></p>
<p>"जानते हो रावण की भूमिका करने वाला असली जिंदगी में भी रावण ही है, ऐसा कोई अवगुण नहीं जो इसमें नहीं हो|" रामलीला के अंतिम दिन रावण-वध मंचन के समय पांडाल में एक दर्शक अपने साथ बैठे व्यक्ति से फुसफुसा कर कहने लगा|</p>
<p>दूसरे दर्शक ने चेहरे पर ऐसी मुद्रा बनाई जैसे यह बात वह पहले से जानता था, वह बिना सिर घुमाये केवल आँखें तिरछी करते हुए बोला, "इसका बाप तो बहुत सीधा था, लेकिन पहली पत्नी की मृत्यु के बाद दूसरी शादी की भूल कर बैठा, दूसरी ने दोनों बाप-बेटे को घर से निकाल…</p>
<p>दहन किसका</p>
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<p>"जानते हो रावण की भूमिका करने वाला असली जिंदगी में भी रावण ही है, ऐसा कोई अवगुण नहीं जो इसमें नहीं हो|" रामलीला के अंतिम दिन रावण-वध मंचन के समय पांडाल में एक दर्शक अपने साथ बैठे व्यक्ति से फुसफुसा कर कहने लगा|</p>
<p>दूसरे दर्शक ने चेहरे पर ऐसी मुद्रा बनाई जैसे यह बात वह पहले से जानता था, वह बिना सिर घुमाये केवल आँखें तिरछी करते हुए बोला, "इसका बाप तो बहुत सीधा था, लेकिन पहली पत्नी की मृत्यु के बाद दूसरी शादी की भूल कर बैठा, दूसरी ने दोनों बाप-बेटे को घर से निकाल दिया...”</p>
<p>“इसकी हरकतें ही ऐसी होंगी, शराबी-जुआरी के साथ किसकी निभेगी?"</p>
<p>"श्श्श! सामने देखो|" पास से किसी की आवाज़ सुनकर दोनों चुप हो गये और मंच की तरफ देखने लगे|</p>
<p>मंच पर विभीषण ने राम के कान में कुछ कहा, और राम ने तीर चला दिया, जो कि सीधा रावण की नाभि से टकराया और अगले ही क्षण रावण वहीँ गिर कर तड़पने लगा, पूरा पांडाल दर्शकों की तालियों से गूँजायमान हो उठा|</p>
<p>तालियों की तेज़ आवाज़ सुनकर वहां खड़ा लक्ष्मण की भूमिका निभा रहा कलाकार भावावेश में आ गया और रावण के पास पहुंच कर हँसते हुआ बोला, "देख रावण... माँ सीता और पितातुल्य भ्राता राम को व्याकुल करने पर तेरी दुर्दशा..., इस धरती पर अब प्रत्येक वर्ष दुष्कर्म रूपी तेरा पुतला जलाया जायेगा..."</p>
<p>नाटक से अलग यह संवाद सुनकर रावण विचलित हो उठा, वह लेटे-लेटे ही तड़पते हुआ बोला, "सिर्फ मेरा पुतला! उसका क्यों नहीं जिस कुमाता के कारण तेरे पिता मर गये और तुम दोनों को...."</p>
<p>उसकी बात पूरी होने से पहले ही पर्दा सहमते हुए नीचे गिर गया|</p>
<p></p>
<p>(मौलिक और अप्रकाशित)</p> अपने अपने स्तर पर घर में उतपन…tag:openbooks.ning.com,2016-09-30:5170231:Comment:8050002016-09-30T17:36:26.724ZVIRENDER VEER MEHTAhttp://openbooks.ning.com/profile/VIRENDERMEHTAVEERMEHTA
अपने अपने स्तर पर घर में उतपन्न समस्या का निवारण करने और पर्दे के पीछे रह कर अपना रोल प्ले करने की पिता पुत्री की वानगी को प्रस्तुत करती ये रचना सहज ढंग से ही पाठक को अपनी ओर खीच लेती है।<br />
बढ़िया और सुंदर अंत लिए इस रचना के लिए बधाई स्वीकार करे आदरणीय वर्षा चौबे जी। सादर।
अपने अपने स्तर पर घर में उतपन्न समस्या का निवारण करने और पर्दे के पीछे रह कर अपना रोल प्ले करने की पिता पुत्री की वानगी को प्रस्तुत करती ये रचना सहज ढंग से ही पाठक को अपनी ओर खीच लेती है।<br />
बढ़िया और सुंदर अंत लिए इस रचना के लिए बधाई स्वीकार करे आदरणीय वर्षा चौबे जी। सादर। बहुत उम्दा और लाज़वाब प्रस्तुत…tag:openbooks.ning.com,2016-09-30:5170231:Comment:8050532016-09-30T17:26:48.152ZVIRENDER VEER MEHTAhttp://openbooks.ning.com/profile/VIRENDERMEHTAVEERMEHTA
बहुत उम्दा और लाज़वाब प्रस्तुति है आपकी भाई महेंद्र कुमार जी। रचना न केवल पाठक को बाँधने में सक्षम है बल्कि एक कहानी के प्लाट को लघुकथा में परिवर्तित होने के बाद भी चुस्त दुरुस्त है। शीर्षक की प्रशंसा तो भाई रवि प्रभाकर जी कर ही चुके है। इस बढ़िया सहभागिता के लिए बधाई स्वीकार करे। सादर भाई जी
बहुत उम्दा और लाज़वाब प्रस्तुति है आपकी भाई महेंद्र कुमार जी। रचना न केवल पाठक को बाँधने में सक्षम है बल्कि एक कहानी के प्लाट को लघुकथा में परिवर्तित होने के बाद भी चुस्त दुरुस्त है। शीर्षक की प्रशंसा तो भाई रवि प्रभाकर जी कर ही चुके है। इस बढ़िया सहभागिता के लिए बधाई स्वीकार करे। सादर भाई जी आदरणीय विनोद जी आपकी रचना न क…tag:openbooks.ning.com,2016-09-30:5170231:Comment:8049982016-09-30T17:18:50.986ZVIRENDER VEER MEHTAhttp://openbooks.ning.com/profile/VIRENDERMEHTAVEERMEHTA
आदरणीय विनोद जी आपकी रचना न केवल विषय को सार्थक करती है बल्कि सामयिक (दीवाली भी नजदीक ही है) मुद्दे पर हमारी विचारधारा और दिखावे की मानसिकता को बहुत सुंदर ढंग से सामने लाती है। इस उमदा रचना के लिए दिल से बधाई स्वीकार करे। सादर।
आदरणीय विनोद जी आपकी रचना न केवल विषय को सार्थक करती है बल्कि सामयिक (दीवाली भी नजदीक ही है) मुद्दे पर हमारी विचारधारा और दिखावे की मानसिकता को बहुत सुंदर ढंग से सामने लाती है। इस उमदा रचना के लिए दिल से बधाई स्वीकार करे। सादर। कुछ हटकर लिखी गयी रचना और बढ़ि…tag:openbooks.ning.com,2016-09-30:5170231:Comment:8050522016-09-30T17:13:27.054ZVIRENDER VEER MEHTAhttp://openbooks.ning.com/profile/VIRENDERMEHTAVEERMEHTA
कुछ हटकर लिखी गयी रचना और बढ़िया कथानक के लिए बधाई स्वीकारे भाई तेजवीर सिंह जी ।
कुछ हटकर लिखी गयी रचना और बढ़िया कथानक के लिए बधाई स्वीकारे भाई तेजवीर सिंह जी ।