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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-150

विषय : "नयी फसल"

आयोजन अवधि- 15 अप्रैल 2023, दिन शनिवार से 16 अप्रैल 2023, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.

ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन 'घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 15 अप्रैल 2023, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।

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ई. गणेश जी बाग़ी 
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"नयी फसल"

फसल मेहनत से उगाई जाए यारो
खाद पानी धूप देकर पकाई जाए यारो
बहुत से हैं जमीं पर खरपतवार नाकारा
वक़्ते वक़्तन उनपे आरी चलाई जाए यारो।
आपदायें जगत में अचानक से धमक जाती हैं
लगी उम्मीद की जो लगन मिटाती हैं
मेहनती हांथों पे पड़े हुए छालों को
रिसने के लिए मजबूर किये जातीं हैं।
गरीबों का निवाला हुआ करती है ये फ़सल
पेट की आग के लिए शुकराना है ये फ़सल
जलजलों से बरबाद तबाह न हो जायें
इस लिए हुकमरानों ने रखें हैं बीमा के अमल।
मेरी विनती है गुज़ारिश है अरज भी है यारों
वक्त रहते इसकी हिफाज़त का इमदाद कीजिये
सांप गुजर जाने के बाद लक़ीर न पीटिये
कंगाली में गरीब का ही होता है आंटा गीला।
पैसे वालों का तो हर दिन रहता मेला
फसल मेहनत से उगाई जाए यारो
खाद पानी धूप देकर पकाई जाए यारो

मौलिक व् अप्रकाशित

आ. भाई अरुण जी , अच्छी प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।

दोहे ( नयी फसल )
*************


नयी उपज है जन्मती, पाकर पानी खाद।
खरपतवारों  से  हुई, लेकिन  नित बर्बाद।१।
*
पेड़ों पर फल,फूल हों, उपज न ले अवकाश।
बस इतनी  बरसात  हो, फटे  नहीं  आकाश।२।
*
नयी उपज के अन्न  की, मंथर-मंथर चाल
बदलेगी इस वर्ष में, क्या हलधर का हाल।३।
*
नया अन्न ही तो  भरे, नित निर्धन का पेट
जमाखोर ने घर भरा, पिछला सभी समेट।४।
*
थाली के पथ चल रही, मन्थर आँखें मूँद
बाधा उसके राह की, असमय बरसी बूँद।५।
*
ओले  तो  दुश्मन   सदा,  वर्षा  ऐसा  मीत
कभी सफलता दे बड़ी, कभी छीन ले जीत।६।
*
खेतों से बाजार तक, अनगिन खरपतवार
नयी उपज को दे रहे, दुख यूँ नित्य अपार।७।
*
आशा दे नूतन उपज, जिससे हँसे किसान
शिक्षा  रोटी  साथ  जो, करती  कन्यादान।८।
*
उपज बढ़ी तो मिल गये, सबको जैसे राम
उपज घटी तो  हो  गये, चौपट  सारे काम।९।
*
व्यापारी तो बैठते, अण्टी नित कम खोल
जाने क्या सरकार दे, नयी उपज का मोल।१०।
*
मौलिक/अप्रकाशित

खेतों से बाजार तक अनगिन खरपतवार
नयी उपज को दे रहे दुख यूँ नित्य अपार
सत्य है। पूँजीवाद किसान को पनपने नहीं देते हैं।

आ. भाई राम अवध जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए आभार।

बहुत सुंदर दोहे

आ. भाई अटल जी, सादर अभिवादन। दोहों की सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद।

रुबाई

मंज़र को किसी हाल में हम बदलें आज
संकट की घड़ी से सभी बच निकलें आज
है फर्ज हमारा कि बुझा दें यह आग
इस में न झुलस जायें नई फसलें आज
मौलिक अप्रकाशित

आ. भाई राम अवध जी, अच्छी प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।

बरसे इन्द्र-देव वृथा, नई फसल बर्बाद ।
पकता दाना झड़ गया, ईश लगे नाशाद ।।

ईश-कृपा फिर चाहिये, तब फलता श्रमदान।
अटूट ....श्रद्धा ....देवता, धरती ही भगवान ।।

सौ किसान के शत्रु हैं , कभी घात खरपात ।

राम- राम जपता रात्रि, कड़ी धूप बरसात ।।

,
नई फसल भी पक गई, बौराया कब आम ।
सारी ...उम्र वृथा गई, नहीं मिला आराम ।।

जन्म मनुज का क्या लिया, कि खो गई पहचान ।
नाते - रिश्ते..... ढो ....रहा , बैठ कृषक खलिहान ।।

सबका ...दाता ...राम.. है, भूख रही वश धान ।
फसल मिले तब जानिये, जिन्दा ऱहा किसान ।।

भरोसा नई फसल पर, हिम्मत का है काम ।
संस्कार पर्याप्त नहीं, जोखिम इसमे आम। ।

मौलिक एवम् अप्रकाशित

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